Tuesday, June 25, 2013

जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण (बीआरएआई).विधेयक

जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण (बीआरएआई).विधेयक
1. इस बिल के बारे में वर्तमान प्रासंगिकता :
अप्रैल 22, 2013: महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार के खिलाफ भारी विरोध के बीच लोकसभा में बेरहम जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण (बीआरएआई).विधेयक पेश हुआ। सीपीआई (एम) के सांसद श्री बसुदेव आचार्य के कड़े विरोध के बावजूद, श्री जयपाल रेड्डी ने इस बिल को पेश किया। इससे साफ जाहिर है कि यूपीए सरकार ने न केवल जनता की आवाज को बल्कि इस विषय में कृषि संसदीय स्थायी समिति (पीएससी) की विश्वसनीय रिपोर्ट को भी पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। पीएससी ने स्पष्ट तौर पर इस रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि देश में जीएम फसलों को विनियमित करने के लिए बीआरएआई विधेयक लाना भावी रास्ता नहीं है।
"अधिकांश कृषि विशेषज्ञों का सुविचारित मत है की लोकसभा में आज पेश हुए बीआरएआई विधेयक को पेश किये जाने से पहले एक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए था, जो इस बिल जिसका असर पूरे राष्ट्र और हमारी आगे आने वाली अनेकों पीढि़यों पर सदियों तक रहेगा, के बारे में विधायी परामर्श करवाती।"

बीआरएआई विधेयक का समाज के विभिन्न हिस्सों एवं जनप्रतिनिधियों, सांसदों द्वारा 11वीं लोकसभा में लगातार विरोध किया जा रहा है। बीआरएआई विधेयक इसलिए विवादास्पद है क्योंकि यह भारत में जीएम फसलों के लिए एक एकल खिड़की तंत्र और देश में जीएम फसलों के विरोध गुमराह करने के लिए संप्रग सरकार द्वारा एक प्रयास है। जीएम फसलों के मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता और हमारी खेती पर प्रतिकूल प्रभावों के वैज्ञानिक प्रमाण लगातार बढ़ते जा रहे
"अधिकांश कृषि विशेषज्ञों का सुविचारित मत है की विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री आज बीआरएआई विधेयक को पेश किये जाने लिए जिम्मेदार है। ऐसे में हम यहां पर यह बात साफ करना चाहेंगे कि इस तकनीक के प्रमोटरों को ही नियामकों का दर्जा नहीं दिया जा सकता। बीआरएआई विधेयक को सूचना का अधिकार अधिनियम को ओवरराइड करता है और सार्वजनिक भागीदारी के लिए बहुत कम अवसर प्रदान करता है।"

2.जीन संवर्धित (जीएम) फसलों पर किये जाने वाले प्रयोग को लेकर षुरु से ही विवाद :
बीटी बैंगन पर रोक लगाते समय तो तो पर्यावरण एवं वन मंत्री, जयराम रमेश ने कहा था कि अभी देश में एक स्वतंत्र दीर्घ कालिक जैव सुरक्षा आंकलन तकनीक का आभाव है जिससे साफ जाहिर है कि अभी देश इस तकनीक से खेलने के लिए तैयार नहीं है। कठोर बीआरएआई बिल की जगह जैव सुरक्षा संरक्षण व्यवस्था होनी चाहिए।.

भारत में जीन संवर्धित (जीएम) फसलों पर किये जाने वाले प्रयोग को लेकर षुरु से ही विवाद रहा है। कुछ लोग इस तरह के प्रयोग के पक्ष में हैं, तो वहीं कुछ विरोध में। इस बाबत फसलों पर केन्द्रित भारतीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण विधेयक (बीआरएआई), 2009 को लेकर पहले भी काफी हो-हल्ला मच चुका है।

दरअसल, इस विधेयक के कुछ प्रावधान बेहद ही विवादास्पद हैं। उदाहरण के तौर पर इस विधेयक के आलोक में सूचना के अधिकार के तहत फसलों पर किये जा रहे वैज्ञानिक परीक्षण के बारे में सूचना नहीं प्राप्त की जा सकती है, परीक्षण के बारे में गलत प्रचार-प्रसार करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है, इसके तहत दी जाने वाली सजा के कुछ प्रावधान टाडा एवं पोटा से भी ज्यादा सख्त हैं, विधेयक के अनुच्छेद 81, 86 व 87.2 के मुताबिक पूर्व के समान कानूनों के ऊपर स्वतः ही इस कानून का प्रभावषाली होना इत्यादि। उल्लेखनीय है कि बीआरएआई कोई नया कानून नहीं है। पुराने विधेयक एनबीआरए को संषोधित करके इस कानून को अमलीजामा पहनाया गया है। नये विधेयक की तरह पुराने बिल का भी जबर्दस्त विरोध किया गया था। इसके विरोध में जानकारों, वैज्ञानिकों एवं विविध सामाजिक संगठनों सहित देष के 11 राज्य थे।

3. स्वदेशी जागरण मंच ने पहले भी किया था हर जगह विरोध :
पूर्व में बीटी बैंगन को लेकर एक जबर्दस्त देषव्यापी आंदोलन हो चुका है। यह एक संवर्धित जीन वाली प्रजाति का नाम है। मूलतः इस प्रजाति के उपभोग से स्वास्थ पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर आम लोगों के मन षंका थी, जिसके कारण किसान इसकी खेती करने से परहेज कर रहे थे। यहाँ पर यह बताना समीचीन होगा कि जीन संवर्धन वाले बीजों के इस्तेमाल का दुष्परिणाम तुरंत सामने नहीं आता है। नकारात्मक प्रभाव के सामने आने में कुछ वक्त लगता है। बहरहाल, इस प्रजाति के विकास से जुड़े वैज्ञानिक आम लोगों के डर को दूर नहीं कर सके। साथ ही, इससे संबंधित अन्य प्रावधान भी किसान व जनविरोधी थे, मसलन, जीन संवर्धित फसल को पुनः बीज के रुप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वैज्ञानिक परीक्षण से उसकी जनन क्षमता खत्म हो जाती है।

विरोध में धरने-पदर्षन होने के बावजूद बीटी बैंगन की खेती करने के लिए सरकार द्वारा सिफारिष की गई। कालांतर में पुनः उग्र विरोध का सामना करने के कारण उसपर प्रतिबंध लगाया गया। तब जाकर पूरा मामला षांत हुआ। बीटी कपास के विरोध में भले ही व्यापक स्तर पर कोई बड़ा जनांदोलन नहीं हुआ, पर इसके दुष्परिणाम से पूरा देष अवगत है। इसका नकारात्मक प्रभाव विषेष तौर पर महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब में देखने को मिला है।

4. कृषि मंत्री पवार ने दुबारा खड़ा किया विवाद :
इसी क्रम में कृषि मंत्री षरद पवार ने अपने एक हालिया बयान में जीन सवंर्धित फसलों पर खेतों में किए जा रहे परीक्षण को जारी रखने की वकालत करके इस विवाद को फिर से जन्म दे दिया है। श्री पवार के इस बयान को इस लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि माकपा सांसद वासुदेव आचार्य की अगुआई वाली कृषि मामले की संसद की स्थायी समिति ने सरकार को ट्रांसजेनिक फसलों का परीक्षण तब तक प्रतिबंधित करने की सिफारिष की है, जब तक कि भारत में बेहतर निगरानी और देख-रेख की प्रणाली न विकसित हो जाए। इस समिति ने वर्ष, 2009 में बीटी बैंगन की खेती को अनुमति देने की सिफारिष की जाँच कराने के लिए भी कहा है। बावजूद इसके श्री पवार समिति की सिफारिषों से इत्तिफाक नहीं रखते हैं।

उन्होंने कहा कि जीएम फसलों पर षोध और खेतों में परीक्षण जारी रहना चाहिए। हाँ, उसकी वाणिज्यिक खेती में जरुर सतर्कता बरती जानी चाहिए। श्री पवार की राय में जीएम फसलों के परीक्षण पर प्रतिबंध के परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। दूसरे षब्दों में कहा जाए तो जीएम फसलों के परीक्षण को रोकना भारतीय विज्ञान के लिए घातक होगा। इससे भारत जीएम फसल को विकसित करने वाले ब्राजील और चीन जैसे देषों से बहुत ज्यादा पिछड़ सकता है। गौरतलब है कि इस मामले में कृषि मंत्रालय की कार्रवाई रिपोर्ट संसद के आगामी सत्र में पेष की जा सकती है। फिलहाल सरकार ने बीटी कपास की वाणिज्यिक खेती की अनुमति दी है, जबकि बीटी बैंगन पर रोक है। निजी कंपनियों को कपास एवं मक्का जैसे जीएम फसलों का पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेष और गुजरात में खेतों में परीक्षण करने की अनुमति दी गई है।
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दुनिया में हो रहे विरोध के कारण:
जीएम फसलों की संकल्पना बहुत पुरानी नहीं है। सबसे पहले वर्ष, 1990 में मल्टीनेषनल कंपनी मोनसेन्टो की सहायक कंपनी कॉलजेन की अगुआई में टमाटर के जीन को परिवर्धित किया गया था। फसलों के जीन संवर्धन के पीछे तर्क है कि इससे फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में इजाफा होगा।
उल्लेखनीय है कि जानवरों के जीन का भी संवर्धन किया जा सकता है। जानवरों के जीन पर इसतरह का परीक्षण सबसे पहले सूअरों पर किया गया था, पर उसके परिणाम उत्साहवर्धक नहीं रहे थे। परीक्षित कुछ सूअरों में आगे जाकर बांझपन के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे थे। इसके बरक्स फसलों पर किये गये अब तक के प्रयोग को भी पूरी तरह से सफल नहीं कहा जा सकता। विष्व के अनेकानेक देषों में इस तरह के परीक्षण पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। स्वंय अमेरिका में भी इस मुद्दे पर जानकारों की एक राय नहीं है।

भले ही भारत सरकार फसलों पर किये जा रहे परीक्षण को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित है, लेकिन स्वंय सरकार के दो मंत्रालयों (पर्यावरण एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का जैव तकनीक विभाग) के बीच इस मुद्दे को लेकर जबर्दस्त मतभेद है। जैव तकनीक विभाग फसलों पर किये जा रहे परीक्षण को सही मान रहा है, वहीं पर्यावरण मंत्रालय का मत इस मामले में भिन्न है। जैव तकनीक विभाग का कहना है कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देष में सभी का पेट भरने के लिए फसलों का जीन संवर्धन करना जरुरी है, अन्यथा आने वाले दिनों में देष की आधी आबादी भूख से मर जाएगी।

इस संदर्भ में एक गैर सरकारी संगठन ‘पैरवी’ द्वारा किये गये पड़ताल में यह पाया गया है कि फसलों का जीन संवर्धन स्वास्थ के लिए घातक है। परीक्षण में प्रयुक्त रसायनों से विविध तरह की बीमारी होने की संभावना रहती है। जीन सवंर्धित फसलों के उपभोग से कई तरह की बीमारियों के फैलने के मामले विभिन्न देषों में पहले ही प्रकाष में आ चुके हैं। उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय के अवकाष प्राप्त न्यायधीषों के संघ ने भी फसलों के जीन संवर्धन पर गहरी चिंता जताई है। केरल सरकार का मानना है कि भारत को अगले 50 सालों तक फसलों के जीन संवर्धन से बचना चाहिए। यह बहुत जरुरी है कि किसी तकनीक को अपनाने से पहले हम उसके साइड इफेक्ट से अवगत हो जायें।

ज्ञातव्य है कि बीते दिनों मोनसेन्टो कंपनी ने ‘गोल्डन राइस’ के जीन को बेटा केरोटीन नामक रसायन की मदद से सवंर्धित करके चावल की एक नई किस्म को विकसित किया था। कहा जा रहा था कि इस नई किस्म से बच्चों में होनेवाले अंधेपन में कमी आयेगी, जबकि हुआ ठीक इसके उल्टा। इसी कंपनी के द्वारा वियतनाम में संतरे के जीन को सवंर्धित करके एक नई किस्म ‘एजेंट संतरा’ को विकसित किया गया, लेकिन उसको खाने से तकरीबन 4 लाख लोगों की मौत हो गई और बड़ी संख्या में लोग विकलांग भी हुए। विषेषज्ञों के अनुसार उसके सेवन से कैंसर के होने की भी संभावना थी।

अमेरिका में भी जीन सवंर्धित सोयाबीन खाने से लोगों के बड़ी आंत में संक्रमण हो गया और उसे ठीक करने के लिए डॉक्टरों को संक्रमित अंग को षरीर से अलग करना पड़ा। ब्रिटिष मेडिकल एसोसिएषन ने भी अपने एक बयान में फसलों के जीन पर किये जा रहे प्रयोग के खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया है। एसोसिएषन का मानना है कि भविष्य में इससे और भी समस्याएँ बढ़ेगी। जानकारों का मानना है कि फसलों पर किये जा रहे लगातार परीक्षणों से प्रर्यावरण भी प्रदूषित होगा। रसायनिक तत्व टॉक्सिन और इसतरह के अन्य खतरनाक रसायनिक तत्वों के कारण इंसान का सांस लेना भी दुर्भर हो जाएगा। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक बार खतरनाक रसायनिक तत्वों के वायुमंडल में फैलने के बाद उसको रोकना या कम करना आसान नहीं होगा।

6.
सरकार ने बैठाया भट्ठा: जाहिर है विकासषील देष विकसित देषों के लिए महज प्रयोगषाला बनकर रह गये हैं। भारत की स्थिति भी इस मामले में अलग नहीं है। संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन (सप्रंग) सरकार महज अमेरिकी आकाओं को खुष करने के लिए फसलों के जीन को संवर्धित करने की कवायद में मल्टीनेषनल कंपनियों को सहयोग दे रही है। आम लोगों की जान को जोखिम में डालकर अमेरिका के साथ गलबहियाँ करना समझ से परे है। वालमार्ट के भारत में स्टोर खुलवाने के लिए अमेरिका में जिस तरह से लाबीइंग की आड़ में पैसों का लेन-देन हुआ है, उसमें सप्रंग सरकार के षामिल होने का भले ही कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन मामले में सप्रंग सरकार की किरकरी जरुर हुई है।

फसलों के जीन संवर्धन के संबंध में सरकार का पक्ष संदेहास्पद है और उसके द्वारा अपने को सही साबित करने के लिए दिया जा रहा बयान हर दृष्टिकोण से गलत हैै, क्योंकि संवर्धित फसलों के उपभोग से होने वाले दुष्परिणाम तुरंत सामने नहीं आते हैं। अस्तु सरकार को इस मामले में तुरत-फुरत किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से बचना चाहिए।


Tuesday, June 11, 2013

शहीद राम प्रशाद बिस्मिल का आज जन्मदिन है.




शहीद राम प्रशाद बिस्मिल का आज जन्मदिन है.
unka जन्म 1897 में उत्तरप्रदेश में हुआ और बड़े ही गरीब घर में पलेबौर बढे भगत सिंह इनके जीवन और उनकी कवितायों का फेन था और ऐसे ही बहुत से क्रांतिकारी उनसे प्रेरणा पाते थे.
रोज की तरह उस दिन भी सुबह होती है, लेकिन वह ऐसी सुबह थी जो सदियों तक लोगों के जेहन में रहेगी । दिसंबर का वह दिंन तारीख 19 , फांसी दी जानी थी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को । बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी जानी थी । रोज की तरह बिस्मिल ने सुबह उठकर नित्यकर्म किया और फांसी की प्रतीक्षा में बैठ गए । निरन्तर परमात्मा के मुख्य नाम ओम् का उच्चारण करते रहे । उनका चेहरा शान्त और तनाव रहित था । ईश्वर स्तुति उपासना मंन्त्र ओम् विश्वानि देवः सवितुर्दुरुतानि परासुव यद्रं भद्रं तन्न आसुव का उच्चारण किया । बिस्मिल बहुत हौसले के इंसान थे । वे एक अच्छे शायर और कवि थे ,जेल में भी दोनों समय संध्या हवन और व्यायाम करते थे । महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती को अपना आदर्श मानते थे । संघर्ष की राह चले तो उन्होंने दयानन्द जी के अमर ग्रन्थों और उनकी जीवनी से प्रेरणा ग्रहण की थी । 18 दिसंबर को उनकी मां से जेल में भेट हुई । वे बहुत हिम्मत वाली महिला थी । मां से मिलते ही बिस्मिल की आखों मे अश्रु बहने लगे थे । तब मां ने कहा कहा था कि " हरीशचन्द्र, दधीचि आदि की तरह वीरता से धर्म और देश के लिए जान दो, चिन्ता करने और पछताने की जरुरत नही है । बिस्मिल हंस पड़े और बोले हम जिंदगी से रुठ के बैठे हैं" मां मुझे क्या चिंतन हो सकती, और कैसा पछतावा, मैंने कोई पाप नहीं किया । मैं मौत से नहीं डरता लेकिन मां ! आग के पास रखा घी पिघल ही जाता है । तेरा मेरा संबंध कुछ ऐसा ही है कि पास आते ही मेरी आंखो में आंसू निकल पड़े नहीं तो मैं बहुत खुश हूँ ।
अब जिंदगी से हमको मनाया न जायेगा। यारों है अब भी वक्त हमें देखभाल लो, फिर कुछ पता हमारा लगाया न जाएगा । बह्मचारी रामप्रसाद बिस्मिल के पूर्वज ग्वालियर के निवासी थे । इनके पिता श्री मुरली धर कौटुम्बिक कलह से तंग आकर ग्वालियर छोड़ दिया और शाहजहाँपुर आकर बस गये थे । परिवार बचपन से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा था । बहुत प्रयास के उपरान्त ही परिवार का भरण पोषण हो पाता था । बड़े कठिनाई से परिवार आधे पेट भोजन कर पाता था । परिवार के सदस्य भूख के कारण पेट में घोटूं देकर सोने को विवश थे । उनकी दादी जी एक आदर्श महिला थी , उनके परिश्रम से परिवार में अच्छे दिंन आने लगे । आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और पिता म्यूनिसपिल्टी में काम पर लग गए जिन्हे १५ रुपए मासिक वेतन मिलता था और शाहजहाँपुर में इस परिवार ने अपना एक छोटा सा मकान भी बना लिया । ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष ११ (निर्जला एकादशी) सम्वत १९५४ विक्रमी तद्ननुसार ११ जून वर्ष १८९७ में रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ । बाल्यकाल में बीमारी का लंबा दौर भी रहा । पूजारियों के संगत में आने से इन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया । नियमित व्यायाम से देह सुगठित हो गई और चेहरे के रंग में निखार भी आने लगा । वे तख्त पर सोते और प्रायः चार बजे उठकर नियमित संध्या भजन और व्यायाम करते थे । केवल उबालकर साग, दाल, दलिया लेते । मिर्च खटाई को स्पर्श तक नहीं करते । नमक खाना छोड़ दिया था । उनके स्वास्थ्य को लोग आश्चर्य से देखने लगे थे । वे कट्टर आर्य समाजी थे, जबकि उनके पिता इसके विरोधी थे जिसके चलते इन्हे घर छोड़ना पड़ा । वे दृढ़ सत्यवता थे । उनकी माता उनके धार्मिक कार्यों में और शिक्षा मे बहुत मदद करती थी । उस युग के क्रान्तिकारी गैंदालाल दीक्षित के सम्पर्क में आकर भारत में चल रहे असहयोग आन्दोलन के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल क्रान्ति का पर्याय बन गये थे । उन्होंने बहुत बड़ा क्रान्तिकारी दल (ऐच आर ए) हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेसन के नाम से तैयार किया और पूरी तरह से क्रान्ति की लपटों के बीच ठ गए । अमरीका को स्वाधीनता कैसे मिली नामक पुस्तक का उन्होनें प्रकाशन किया बाद मे ब्रिटिश सरकार नेजब्त कर लिया । बिस्मिल को दल चलाने लिए धन का अभाव हर समय खटकता था । धन के लिए उन्होंने सरकारी खजाना लूटने का विचार बनाया । बिस्मिल ने सहारनपुर से चलकर लखनऊ जाने वाली रेलगाड़ी नम्बर ८ डाऊन पैसेंन्जर में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने की कार्ययोजना तैयार की । इसका नेतृत्व मौके पर स्वयं मौजूद रहकर रामप्रसाद बिस्मिल जी ने किया था । उनके साथ क्रान्तिकारीयों में पण्डित चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां , राजेन्द्र लाहिड़ी, मन्मनाथ गुप्त , शचीन्द्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, बनवारी लाल और मुकुन्दीलाल इत्यादि थे । काकोरी ट्रेन डकैती की घटना की सफलता ने जहां अंग्रजों की नींद उड़ा दी वहीं दूसरी ओर क्रान्तिकारियों का इस सफलता से उत्साह बढ़ा । इसके बाद इनकी धर पकड़ की जाने लगी । विस्मिल, ठा़ रोशन सिंह , राजेन्द्र लाहिड़ी, मन्मनाथ गुप्त, गोविन्द चरणकार, राजकुमार सिन्हा आदि गिरफ्तार किए गए । सी. आई. डी की चार्जशीट के बाद स्पेशल जज लखनऊ की अदालत में काकोरी केस चला । भारी जनसमुदाय अभियोग वाले दिन आता था । विवश होकर लखनऊ के बहुत बड़े सिनेमा हाल 'रिंक थिएटर को सुनवाई के लिए चुना गया । विस्मिल अशफाक , ठा़ रोशन सिंह व राजेन्द्र लाहिड़ी को मृयुदंड तथा शेष को कालापानी की सजा दी गई । फाँसी की तारीख १९ दिसंबर १९२७ को तय की गई । फाँसी के फन्दे की ओर चलते हुए बड़े जोर से बिस्मिल जी ने वन्दे मातरम का उदघोष किया । राम प्रसाद बिस्मिल फाँसी पर झूलकर अपना तन मन भारत माता के चरणों में अर्पित कर गए । प्रातः ७ बजे उनकी लाश गोरखपुर जेल अधिकारियों ने परिवार वालो को दे दी । लगभग ११ बजे इस महान देशभक्त का अन्तिम संस्कार पूर्ण वैदिक रीति से किया गया । स्वदेश प्रेम से ओत प्रोत उनकी माता ने कहा " मैं अपने पुत्र की इस मृत्यु से प्रसन्न हूँ दुखी नहीं हूँ ।" उस दिन बिस्मिल की ये पंक्तियां वहाँ मौजूद हजारो युवकों-छात्रों के ह्रदय में गूंज रही थी---------- यदि देशहित मरना पड़े हजारो बार भी , तो भी मैं इस कष्ट को निजध्यान में लाऊं कभी । हे ईश ! भारतवर्ष मे शत बार मेरा जन्म हो कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो
इस महान वीर सपूत को शत्-शत् नमन ।
2006, February 11 - 13:37 — sgoyal
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
- By Ram Prasad Bismil

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
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रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith

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Many people have asked me about the lyrics used in the movie 'Rang De Basanti'. Here it goes -- though remember these lines are not part of the original poem written by 'Ram Prasad Bismil'.

है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है





Saturday, June 1, 2013

छतीसगढ़ में नक्सलियों की पाषविकता से ठिठका जन जीवन

छतीसगढ़ में नक्सलियों की पाषविकता से ठिठका जन जीवन
छतीसगढ़ में नक्सलियों की पाषविकता से ठिठका जन जीवन
पिछले दो-तीन दिन से में छत्तीसगढ़ में हूँ और उस से पहले भी 25-26 मई को में बस्तर के साथ लगते और नक्सलवाद से प्रभावित महाराष्ट्र के गढ़ चिरोली जिले में घूमा. हर जगह नकसल वाद की चर्चा है और अखबार इस विषय को लेकर भरे पड़े हैं और एक दल के नेता दूसरे दल पर दोषारोपण कर रहे है. जियादातर लोग श्री जोगी को शक की सुई लगाते नज़र आ रहे हैं. में परसों राजनांदगांव में पुराने विधायक श्री मुदालियर के घर अफ़सोस करने गया जो इस घटना में शहीद हुए. वहां के कांग्रेस के युवा शहीद नेता अल्ला नूर के घर भी बैठने गए. पर हर और लोग श्री जोगी की और इशारा करते हैं. पर नीचे लिखा लेख मुझे काफी सच्चाई के निकट लगा. वैसे लेखक श्री अंजनी झा मेरे पुराने मित्र हैं.
छतीसगढ़ में नक्सलियों की पाषविकता से ठिठका जन जीवन-- डा0 अंजनी कुमार झा
कांग्रेस की परिवर्तन मात्रा के दौरान बस्तर (छतीसगढ़) के निकट सुकमा क्षेत्र में 25 मई को नक्सलियों ने घात लगाकर छतीछतीसगढ़ में नक्सलियों की पाषविकता से ठिठका जन जीवन-- डा0 अंजनी कुमार झा
कांग्रेस की परिवर्तन मात्रा के दौरान बस्तर (छतीसगढ़) के निकट सुकमा क्षेत्र में 25 मई को नक्सलियों ने घात लगाकर छतीसगढ़ प्रदेष कांग्रेस के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और पार्टी के वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा समेत 29 लोगों को गोलियों से भून डाला। पूर्व केंन्द्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल की हालत गंभीर है। प्रदेष में तीन दिन का राजकीय शोक है। पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कार्यकर्ताओं को ढांढस बंधाया। सभी ने कानून व व्यवस्था की धज्जियां उड़ायीं।
सवाल उठता है कि क्या इसके लिये केवल प्रदेष सरकार जिम्मेदार है ? इस राजनीतिक यात्रा की सुरक्षा के लिये सरकार ने पर्याप्त पुलिस उपलब्ध कराये थे। हां हजारों की तादात में बढ़ रहे हथियारबंद नक्सलियों को रोक पाना एक दर्जन पुलिस के बूते से बाहर है। अंतिम सांस तक पुलिसकर्मी लड़ते रहे। बीस से पच्चीस बर्ष के डेढ़ हजार पुरूष-महिला नक्सलियों का जंगल में दिन की तेज रोषनी में चहलकदमी करना क्या केन्द्रीय सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसी को नहीं दिखा ? बडी संख्या में सीआरपीएफ, बी.एस.एफ,आई.टी.बी.पी. के फोर्स तैनात हैं। फिर ऐसी घिनौनी वारदात कैसे? कई अनुत्तरित सवालों का जवाब केन्द्र के पास भी नहीं है। नक्सल प्रभावित छतीसगढ़ में आज और कल भी नक्सल ही एक मुद्दा रहा। केन्द्र से लगातार गुहार के बाद भी आपरेषन नाकाफी साबित हो रहे हैं। कुछ वर्षों पूर्व अचानक नक्सली वरदातों में बढ़ोतरी को रोकने के बजाय तत्कालीन गृह मंत्री षिवराज पाटिल ने इसे राज्य की समस्या बताकर पल्ला झाड़ लिया। अलग-अलग पार्टी की केन्द्र और राज्य में सरकार बनने के कारण निहित स्वार्थ निर्दोष लोगों की बलि ले रहा है।
राजनैतिक विष्लेषकों का अभिमत है कि यह ‘खेल’ आपसी प्रतिद्वंद्विध़ता का हो सकता है। परिवर्तन यात्रा में उमड़ रही भीड़ कहीं जनादेष में परिवर्तित हो जाये तो मुख्यमंत्री को लेकर दौड़ बढ़ जायेगी, शायद षड्यंत्रपूर्वक इसे समाप्त कर दिया गया। दो दिग्गज रेस से बाहर और एक जीवन और मृत्यु से संघर्षरत है। ऐसे में कुछ समीक्षकों ने तो अजीत जोगी की ओर भी बातों बातों में इषारा किया है।
बहरहाल, जनाक्रोष में लगी चिंगारी लपटों में सरकार को न लपेट ले, इसको लकर राजनीतिक दुराग्रह को समझने की जरूरत है। पूरे प्रांत में चुनाव के निकट आते ही लाषों को बिछाने का ‘खेल’ बढ़ जाता है। केन्द्र इसे राज्य का मामला बताकर चुप्पी साध लेता है, जबकि राज्य अपने सीमित संसाधनों का रोना रोता है। तत्कालीन गृहमंत्री पी.चिदम्बरम के कार्यकाल मे सुकमा के कलेक्टर ऐलिस का दिनदहाडे आहरण समेत सी.आर.पी.एफ के दर्जनों जवानों की नृषंस हत्या जैसी कई वारदातों के बाद भी दिल्ली से केवल ‘वायदों’ का पुलिंदा रायपुर आता रहा। कभी प्रभावित और पीडि़त जिलों को सेना के हवाले तेा कभी विषेष दर्जा देकर विषेष निगरानी की बातें केवल की जाती रहीं। हां, बेकसूर जवानों और निर्दोष नागरिकों का कत्लेआम नरसंहार की तर्ज पर जरूर होता रहा, जो आज भी बदस्तूर जारी है।
सलवा जुडूम के जनक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा की उग्रवाद की बलिवेदी पर शहादत होना बेहद दुखद अध्याय है। गरीबी और भूख से तड़पते आदिवासियों को नौकरी का प्रलोभन देकर नक्सली उन्हें अपना समर्थक फिर वेतन पर रखकर पुलिस,सरकार, ठेकेदार, उद्योगपति,नेता आदि को निषाना बनाते हैं। सरकार की बेबसी और पूरे सिस्टम में अनगिनत छेद ही नक्सलियों की ताकत को बढ़ाने में यूरिया खाद का काम करती है। भ्रष्ट तंत्र ने पूरे नक्सल प्रभावित क्षेत्र को बेकारी और विवषता की अंधी गली में धकेल दिया है। अकूत प्राकृतिक खनिज संपदा को लूटने में नक्सली भी बड़े हिस्सेदार हैं। गरीबों का मसीहा बनने का नाटक कर अरण्य क्षेत्र पर नक्सलियों का कब्जा उनकी रणनीति है। विचार और सिद्वांत की खुली पोल ने उन्हें भी लुटेरों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे में सरकार को व्यूह रचकर नक्सली ताकतों को नेस्तनाबूद करने में पूरी ताकत झोंकनी चाहिये।
सितंबर , 2012 में चतरा (झारखण्ड) मं घायल सी.आर.पी.एफ जवानों के राहत और बचाव मिषन को लेकर वायुसेना और गृह मंत्रालय आमने-सामने थे। वहीं जनवरी 2013 में वायुसेना हेलीकाॅप्टर पर गोलीबारी मामले पर भी दोनों के विवाद खुलकर सामने आये थे। नक्सल प्रभावित क्षेत्रांे में विभिन्न केन्द्रीय सुरक्षा बलों, राज्य पुलिस और खुफिया अधिकारियों के बीच तालमेल का नितांत अभाव के कारण दर्जनों निर्दोष पुलिस और नागरिकों की जानें जाती रही हैं। सुरक्षा अभियान के तालमेल के लिए बतौर सलाहकर सेना के सेवानिवृत मेजर जनरल रैंक में भी कोई प्रगति नहीं हुई। रिटायर्ड सैन्य अफसरों के नामों का पैनल भी गृह मंत्रालय में धूल फांक रहा है।
नक्सली धड़ल्ले से लेवी (रंगदारी टैक्स) औद्योगिक घरानों , सरकारी अफसरों, ठेकेदारों से वसूलते हैं और सरकार उनके दुस्साहस के सामने बौनी साबित हो रही है। एक गैर सरकारी संस्था के सर्वे के मुताबिक, ये 60 प्रतिषत हिस्से को संगठन को मजबूत करने में व्यय करते हैं। इनका मकसद हिंसा को तेज करना, राष्ट्रविरोधी तत्वों से गठजोड़ कर भय का साम्राज्य फैलाना है। बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराकर वे अपने गिरोह को संगठित करते हैं। वायदों और वायदों से केवल अलोकप्रिय होती सरकार से बनी नाउम्मीदी ने नक्सलियों को काफी सषक्त बना दिया है।
नक्सलियों ने भाजपा की ‘विकास यात्रा’और कांग्रेस की ‘परिवर्तन यात्रा’ का विरोध किया है।
नक्सलियों से जुड़ी हिंसक घटनाएं
साल घटनाएं
2003 1597
2004 1533
2005 1608
2006 1509
2007 1565
2008 1591
2009 2258
2010 2213
2011 1760
2012 1412
सूबे में 30 साल से नक्सली समस्या एक नासूर बन गई है। 16 जिले पूरी तरह इनके कब्जे में हैं। उनके मजबूत होते पांव ने नागरिकांे का जीना मुहाल कर दिया है। इस बढ़ती विषबेल को रोकने में प्रषासन अक्षम है। पष्चिम बंगाल से लकर आंध्रप्रदेष तक नक्सली ने सक बड़ा काॅरिडोर बना लिया है। आठ राज्यांे में इनकी और समर्थकांे की संख्या तेजी से बढ़ रही है। लम्बे अर्से से सरकार ने जिन उपेक्षित वर्गों की अनदेखी की, उन्हंे ये अपना समर्थक बना रहे हैं। ये संख्या बल में ज्यादा हैं। इस कारण सरकार को ज्यादा चुनौती मिल रही है। अनेक सरकारी योजनाओं के बावजूद आदिवासी, और हरिजन नक्सली-नेता -नौकरशाह - ठेकेदार के अत्याचार के षिकर हैं। हमेषा ठगे रहने के कारण वे उपेक्षित होकर बगावत पर उतारू हैं। ऐसे में नक्सली को उन्हें सरकार के खिलाफ करने में ज्यादा मषक्कत नहीं करनी पड़ती है।
छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह से पांच सवाल

प्रश्न: नक्सलवाद पर नियंत्रण पाने में आप क्यांे विफल हुए ?
उत्तर: इसके लिये कांग्रेस की नीतियां जिम्मेदार हैं। अब तक कोई इंटीग्रेटेड प्लान
तैयार न हो पान से स्थिति अनियंत्रित हो गई है। केन्द्र सरकार को राष्ट्रीय
स्तर पर बातचीत करनी चाहिये।

प्रष्न: क्या केन्द्र से मदद नहीं मिल रहा है ?
उत्तर: पिछले 9 साल में हमारे राज्य में एक भी नई रेल लाईन को मंजूरी नहीं दी
गई। एन.एच.आई. के लिए फंड चाहिए लेकिन निर्णय नहीं हो सका।

प्रष्नः क्या केन्द्र व राज्य के बीच तालमेल का अभाव है ?
उत्तरः हां, केन्द्र से हमें अपेक्षित मदद नहीं मिल पाता है। बड़े हादसे के बाद नियंत्रण
के लिये जरूर वायदे किये जाते हैं, किन्तु वे कभी पूरे नहीं हो पाते।

प्रष्न: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति धीमी क्यों है ?
उत्तर: विकास के लिये राषि तो काफी व्यय हो रहे हैं, किन्तु नक्सली निर्माण कार्य के
साथ सड़कों को ध्वस्त कर देते हैं, इसलिए विकास की गति धीमी है।

प्रष्न: क्या यह सरकार की विफलता है ?
उत्तर: नहीं, प्रयास जारी है। विकास के लिये कई योजनायें चल रही हैं।

पर्यावरण कानून तोडऩे के जुर्म में वालमार्ट को 11 करोड़ डॉलर का जुर्माना

पर्यावरण कानून तोडऩे के जुर्म में वालमार्ट को 11 करोड़ डॉलर का जुर्माना

Date: May 29, 2013



Report By: Punjab Infoline Bureau
Ludhiana

पर्यावरण कानून तोडऩे के जुर्म में वालमार्ट को 11 करोड़ डॉलर का जुर्माना,
वालमार्ट को अमरीका में 615 करोड़ रुपये का जुर्माना भरना जहाँ पर्यावरण के इतने सख्त नियम हैं, भारत में तो जुर्माना भरना दूर मानहानि का दावा ही थोक देती. एक बार इस खबर को पढ़ कर औरों को भी वालमार्ट जैसी कंपनियों के काले कारनामे बताने जरूरी हैं. जरा पूरी खबर पढ़ लेवें जी
वाशिंगटन, अमेरिका की वैश्विक खुदर कंपनी वालमार्ट ने अमेरिका की एक अदालत में पर्यावरण कानून के तहत अपना जुर्म कबूल करते हुए मामला निपटाने के लिए 11 करोड़ डॉलर (615 करोड़ रुपए से अधिक) की राशि भुगतने को तैयार हो गई है।
अमेरिकी न्याय विभाग ने बताया कि वालमार्ट स्टोर्स ने लास एंजेलिस और सैन फ्रांसिस्को में सरकारी वकीलों द्वारा दायर मामले में अपना दोष स्वीकार कर लिया है। कंपनी पर साफ पानी अधिनियम के उल्लंघन और पूरे अमेरिका में अपनी दुकानों से पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक सामग्री असुक्षित तरीके से फेंकने का आरोप था। कंपनी ने अमेरिका में कीटनाशक, फफूंदनाशक और चूहानाशक अधिनियम (फिफ्रा) के उल्लंघन के मामले में भी अपना दोष स्वीकार किया है।
वालमार्ट को इन सभी मामलों में आपराधिक और सिविल कानून के तहत दायर मामलों में करीब 8.16 करोड़ डॉलर का भुगतान करेगी। न्याय विभाग ने कहा ‘‘इसी तरह की गतिविधियों के लिए कैलिफोर्निया और मिसौरी ने भी पहले कार्रवाई की थी। इन मामलों को भी मिला कर वालमार्ट को संघीय और प्रांतीय पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के आरोपों को सुलझाने के कुल 11 करोड़ डॉलर से अधिक का भुगतान करना होगा।’’
अमेरिका के संघीय प्रशासन ने आरोप लगाया था कि वालमार्ट के पास अपने कर्मचारियों को स्टोर में खतरनाक कचरे के प्रबंधन और निपटान का प्रशिक्षण देने का कोई कार्यक्रम नहीं है। इसलिए खतरनाक कचरे को या तो नगरपालिका के कूड़ेदान में डाल दिया गया या यदि यह कोई तरल कचरा था तो उसे स्थानीय सीवर प्रणाली में डाल दिया जाता था फिर बिना किसी सुरक्षा के और दस्तावेज तैयार किए बगैर कंपनी के वापस किए गए सामानों के लिए बने छह केंद्रों पर भेजा जाता था।
पूरे अमेरिका में कंपनी के 4,000 स्टोर है। इनसे वह हजारों तरह की चीजें बेचती है। इनमें कुछ अमेरिकी कानून के तहत ज्वलनशील, छीजनकारी, जलन पैदा करने वाले, विषाक्त और खतरनाक सामान की श्रेणी में आते हैं।
Tags: वाशिंगटन अमेरिका वालमार्ट
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America's largest retailer Wal-Mart Stores pleaded guilty << >> Clean Water Act and other environmental regulations, fined more than 110 million U.S. dollars.

U.S. Justice Department said, Wal-Mart retail stores nationwide distribution illegal disposal and discard of environmentally harmful waste.

Pleaded guilty to pay $ 110 million ticket

Wal-Mart six lawsuits plea, which the Justice Department and the Environmental Protection Agency filed criminal and civil litigation, so Wal-Mart faces a fine of $ 81.6 million.

California, which paid $ 40 million in criminal fines, extra $ 20 million for community service projects to help train other employees of legitimate retailers handling hazardous materials.

Missouri paid $ 11 million in criminal fines, extra $ 3 million to the state department of natural resources for future monitoring and education do fund.

In addition, Wal-Mart needs to pay $ 7,628,000 in civil damages to the federal government(http://www.best-news.us/).

Count two years ago in California and Missouri previously under state law out of the ticket, the cumulative three-year Neiwoerma fined $ 110 million.

Federal prosecutors said that in January 2006 ago, Wal-Mart has not been set up plans on how to dispose of hazardous waste training for employees(News News http://www.best-news.us/).

In some cases, Wal-Mart employees are not properly discarded chemicals, or threw them municipal trash, or put them into the local drainage system. Other cases, in the absence of proof of safety of chemicals in case incorrect shipping.

Federal prosecutor Andrew Bi Luote said in a statement, the hazardous waste into the sewers 'both illegal and unsafe', 'Wal-Mart's case against China's environmental laws and regulations designed to ensure that in the present and in the future have been complied with.'

Wal-Mart spokesman, said Brooke Buchanan, was Wal-Mart improperly discarded hazardous waste, including fertilizer, bleach, hair spray, nail polish and deodorant.

Rectification staffing scanner

In addition to pay the fine, Wal-Mart has also been ordered to implement a spread nationwide, comprehensive environmental agreements involving management of hazardous waste generated by Wal-Mart stores.

Wal-Mart on the 27th, said the complaint referred to happened many years ago, has long been corrected.

Wal-Mart U.S. Chief Compliance Officer Phyllis Harris said: 'We are all on the government instituted a similar problem be solved pleased.'

Wal-Mart released a long three documents listed in detail the company since 2006, to take environmental compliance initiatives, such as waste classification regulations and other measures.

Buchanan said: 'Since the date of the implementation of this plan, each employee knows how to deal with these products.'

Buchanan said, the staff is now equipped with a scanner in order to understand whether the goods damaged packaging as hazardous substances, and trained to deal with such situations.

A little money will not affect the performance penalty

Assistant U.S. Attorney Joe Johns, said: 'This case with Wal-Mart as big as Wal-Mart, said the United States each have appeared such behavior.'

Wal-Mart admitted that in July 2006 to February 2008 to more than 900,000 kg of pesticides and other products shipped to Missouri a recycling plant, after the mixing process again after sale to the consumer. Insecticide re- shelves, the failure to require labeling ingredients or registration information.

Johanns said: 'If we say Which companies have the resources to abide by the law, it is Wal-Mart.'

Wal-Mart said the fines sufficient to affect second-quarter results, the company will not have material impact on the financial position Wal-Mart stock on the 27th to close at $ 77.31 per share.

Wal-Mart headquarters in Arkansas in 1962 by Sam Walton, founder of the business throughout the world, is the world's largest retailer, is the world's largest private employer, employees more than 2 million.

(Xinhua News Agency for the newspaper feature articles

(Original title: Wal-Mart littering fined billions of dollars



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