Tuesday, October 15, 2013

दत्तोपन्त ठेंगड़ी

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दत्तोपन्त ठेंगड़ी
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दत्तोपन्त_ठेंगड़ी
दत्तोपन्त ठेंगड़ी ( 10 नवम्बर, 1920 – 14 अक्टूबर, 2004) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक थे।
आनेवाली शताब्दि “हिंदू शताब्दि” कहलाएगी, इस विश्वास को वैचारिक घनता प्रदान करने वाले आधुनिक मनीषी, डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे द्रष्टा महापुषों की विचारधारा कालोचित संदर्भों में परिभाषित करनेवाला प्रतिभाशाली भाष्यकार; मजदूरों और किसानों के कल्याण की क़ृतियोजना बनानेवाला तप:पूत कार्यकर्ता और व्यासंगी विद्वानों की समझबूझ बढानेवाला दूरदर्शी तत्वचिंतक; चुंबकीय वकृत्व और निर्भीक कर्तृत्व का समन्वय प्रस्थापित करनेवाला बहुआयामी लोकनेता... इन सारे विषेषणों को सार्थक बनाने वाले दत्तोपंत ठेंगडी जी का अल्प परिचय कराना मानो गागर मे सागर भरने का प्रयास करने जैसा है.
परिचय[संपादित करें]

दत्तोपंत ठेंगडीजी का जन्म 10 नवम्बर 1920 के दिन आर्वी में (जि. वर्धा, महाराष्ट्र) हुआ लौकिक क्षेत्र में स्नातक और विधि स्नातक की औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में निकल पडे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गोल्लवलकर गुरूजी के निकटतम प्रेरणादायी सानिध्य का लाभ आप को प्राप्त हुआ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांत और कार्यपद्धति से तथा डॉ. हेडगेवार और श्री गुरूजी के जीवन से आप सदैव प्रेरणा लेते रहे हैं सन 1942 से सन 1945 तक आपने केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक का दायित्व निभाया और सन 1945 से सन 1948 तक बंगाल में प्रांत प्रचारक के रूप में कार्य किया सन 1949 में गुरूजी ने आपको मजदूर क्षेत्र का अध्ययन करने की प्रेरणा दी तदनुसार नीचे दिए हुए घटनाक्रम के अनुसार आपने विभिन्न जिम्मेदारियॉ संभाली
अक्तूबर 1950 में आप इंटक के (Indian National Trade Union Congress) राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बने और पूर्वकालीन मध्य प्रदेश के इंटक शाखा के संगठन मंत्री चुने गए आप सन 1952 से सन 1955 के कालखंड में कम्युनिस्ट प्रभावित ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज असोसिएशन (ए.आय.बी.ई.ए.) नामक मजदूर संगठन के प्रांतीय संगठन मंत्री रहे पोस्टल, जीवन-बीमा, रेल्वे, कपडा उद्धोग, कोयला उद्धोग से संबंधित मजदूर संगठनों के अध्यक्ष के रूप में भी आपने कार्य किया
इसी कालखंड में आपका रा. स्व. संघ से प्रेरित अनेक संस्थाओं से भी संबंध बना हिंदुस्तान समाचार के आप संगठन मंत्री थे
1955 से 1959 तक मध्यप्रदेश तथा दक्षिणी प्रांतों में भारतीय जनसंघ की स्थापना और जगह-जगह पर जनसंघ का बीजारोपण करने की जिम्मेदारी भी आप पर थी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आप संस्थापक सदस्यों में से एक हैं
भारतीय बौद्ध महासभा, मध्य प्रदेश शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन के भी आप सक्रिय कार्यकर्ता रहे
1955 मे पर्यावरण मंच की स्थापना की
सर्व धर्म समादर मंच की स्थापना भी आपने की

आपने उपर्युक्त पाथेय संजोकर भोपाल में दि. 23 जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की. प्रारम्भ मे स्थानीय छोटे-छोटे युनियनों से इसका प्रांरभ हुआ आज यह संगठन विशाल रूप प्राप्त कर चूका है इसकी सदस्य संख्या 50 लाख से ऊपर जा पहुंची है तथा भारत मे अब यह क्रमांक एक का मजदूर संगठन हैं
1967 में भारतीय श्रम अन्वषण केन्द्र की आपने स्थापना की 1990 में आपने स्वदेशी जागरण मंच की नींव डाली. संसदीय कार्यकाल में और भारतीय मजदूर संघ का प्रतिनिधित्व करते हुए आपने अनेक बार विदेश यात्रा की है आंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में भारत का प्रतिनिधित्व कई बार किया, विदेशों के मजदूर आंदोलनों का अध्ययन करने हेतू – अमेरिका, युगोस्लाविहया, चीन, कनाडा, ब्रिटन, रूस, इंडोनेशिया, म्यानमार, थायलैन्ड, मलेशिया, सिंगापुर, केनिया, युगांडा तथा टांझानिया का भ्रमण किया आपने 1977 में आंतरराष्ट्रीय श्रम संघठन के अडसठवें आंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सहभाग लिया ( जीनिवा, स्वित्झरलैंड )
1978 में अमेरिका के वहॉ के मजदूर संगठन / आंदोलन की गतिविधि देखने हेतु आपने अमेरिका-यात्रा की
1985 में अखिल चायना ट्रेड नियन फेडरेशन के निमंत्रण पर भा. म. संघ के पॉच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व आपने किया चीन से वापसी के पहले आपने चीनी राष्ट्र को और मजदूरों को एक सन्देश भी दिया जो बीजिंग रेडियो से प्रसारित किया गया
1985 में आपने आंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघठन के दसवें एशियाई प्रादेशिक सम्मेलन में सहभाग लिया ( जकार्ता, इंडोनेशिया )

‘ तत्व जिज्ञासा ’, ‘ विचार सूत्र ’, ‘ संकेत रेखा ’, ‘ Third Way ’, ‘ एकात्म मानववाद-एक अध्ययन ’, ‘ ध्येयपथ पर किसान ’ ‘ डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ’ ‘ सप्तक्रम लक्ष्य और कार्य ’ आदि हिन्दी, अंग्रजी एवं मराठी में विविध विषयों पर सौ से ज्यादा पुस्तक-पुस्तिकाओं का लेखन यह माननीय दत्तोपंत ठेंगडी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व को निखारने वाला एक मौलिक पहलू है
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद का सूत्रपात तो किया किंतु उस गहन विचारधारा को सुस्पष्ट बनाने का कार्य उनके अकल्पित दुखद निधन से अधूरा ही रह गया उसे कालोचित परिभाषा मे ढालने का ऎतिहासिक कार्य माननीय दंतोपंत जी ने ही पूरा किया उनकी गहरी सोच और प्रगाढ़ चिंतन उनके संप्रक्त लेखन मे पारदर्शी रीति से प्रतिबिंबित हुई है समाज के कमजोर वर्गो और पीडित – शोषित श्रमजीवियों की हालत सुधारने के लिए आपने केवल वैचारिक योगदान ही नही दिया, देशभर मे अन्याय, अत्याचार, विषमता और दीनता से जूझने के लिए कर्मठ, लगनशील कार्यकर्ताओं का निर्माण करने में भी आप सफल हुए, यह आपके प्रेरणादायी व्यक्तित्व की बडी उपलब्धि है.
वीडियो[संपादित करें]

पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी, स्वदेशी जागरण मंच, षष्टम राष्ट्रीय अधिवेशन, कड़ी, गुजरात भाग १
पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी, स्वदेशी जागरण मंच, षष्टम राष्ट्रीय अधिवेशन, कड़ी, गुजरात भाग २
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी
श्रेणियाँ: संघ परिवारमजदूर आन्दोलन


Friday, October 4, 2013

गुरुमूर्ति जी के नुकसे भाग 1

आमतौर पर गुरुमूर्ति जी अंग्रेजी में जब लिखते हैं तो अंग्रेजी के जानकार बड़े ध्यान से पढ़ते है सहमत होना नहीं होना उनके अपने पूर्व के विचारो पर निर्भर है पर हिंदी में उनके लेख नहीं जैसे आते है। में उनके पुराने लेख को छाप रहा हु ताकि आज किस बीमारी से अमरीका वेन्तिलाटर पर पड़ा  है, उसका कुछ रोग निदान हो सके।
friday 9 January 2009

गुरुमूर्ति की बातें - खंड एक
आज अमेरिका इतनी भयानक मंदी में फंस गया है कि अगर वह कर्ज न ले, तो वहां कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगा। अमेरिका पहले ऐसा नहीं था, वहां के लोग पहले ज्यादा मेहनत और कम खर्च किया करते थे। वह पहले दौलत पैदा करने वाला देश था, लेकिन आज वह दौलत खर्च करने वाला देश है। वहां के लोग मानते हैं कि धन खर्च करने के लिए धन कमाने की जरूरत नहीं है। किसी और से धन लेकर भी खर्च किया जा सकता है, चुकाने की जरूरत नहीं है। धन वापस न चुकाने की वजह से ही वहां मंदी का हाहाकार मचा हुआ है। पहले अमेरिका दुनिया के अन्य देशों को धन दिया करता था, लेकिन 1980-85 के बीच अमेरिका में कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। 1980 में अमेरिका में बामुश्किल पांच-छह प्रतिशत परिवारों ने ही शेयर बाजार में पैसा लगाया था, लेकिन आज वहां के 55 प्रतिशत परिवारों का पैसा शेयरों में लगा है। जब वहां शेयर के भाव गिरेंगे, तो जाहिर है, आर्थिक तबाही ही होगी।हम भारत की जब बात करते हैं, तो यहां अभी कुल बचत का 2।2 प्रतिशत पैसा ही शेयरों में लगा है, अत: यहां शेयर भाव गिरने पर जो हल्ला किया जाता है, वह उचित नहीं है। सेंसेक्स के गिरने से भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आखिर अमेरिकियों ने शेयरों में क्यों धन लगाया? उन्होंने पैसा बचाया क्यों नहीं? उन्हें आज उधार पर क्यों जीवन काटना पड़ रहा है। इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अमेरिका में ज्यादातर परिवार राष्ट्रीय परिवार हो चुके हैं, मतलब बच्चों की जिम्मेदारी सरकारें संभाल रही हैं। बूढ़ों की फिक्र सरकार को है। वयस्क आबादी बेफिक्र हो चुकी है। बच्चा जब स्कूल जाता है, तो उसे एक फोन नंबर दे दिया जाता है और बता दिया जाता है कि कोई परेशानी हो, तो इस नंबर पर फोन करे। मतलब अगर माता-पिता परेशान करें, तो बच्चा फोन करे, अगर शिक्षक क्रोध करे, तो बच्चा फोन करे और निश्चिंत हो जाए, सरकार माता-पिता या डांटने वाले शिक्षक की खबर लेगी। बच्चों को एक तरह से बदतमीजी सिखाई जा रही है, अभद्रता ही हद तक निडर बनाया जा रहा है। इधर भारत में आज भी बच्चे को यही बताया जाता है कि माता-पिता को प्रणाम करके स्कूल जाना है, गुरुजनों को देवतुल्य मानना है।तो अमेरिका में लोग यह देख रहे हैं कि बच्चों की जिम्मेदारी सरकार उठा रही है, तो फिर आखिर धन वे किसके लिए बचाएं। एक दौर था, जब अमेरिका में बैंक डिपोजिट पर बीस प्रतिशत ब्याज मिला करता था, तो आखिर लोग शेयर जैसे जोखिम भरे निवेश में पैसा क्यों लगाते, लेकिन जैसे-जैसे डिपोजिट पर ब्याज घटने लगा, त्यों-त्यों लोग शेयरों में धन लगाने लगे। और वही लोग आज मुश्किल में हैं, अगर उन्हें कर्ज न दिया जाए, तो जीवन मुश्किल में पड़ जाए। अमेरिका में वही हाल शादी का है। केवल दस प्रतिशत शादियां ही 15 साल से ज्यादा समय तक टिक पाती हैं। आधे से ज्यादा विवाह पहले पांच वषü के दौरान ही टूट जाते हैं। वहां लोगों का साथ रहना एक अल्पकालीन समझौता है। वे परिवार की तरह नहीं, बल्कि हाउसहोल्ड की तरह रहते हैं। हाउसहोल्ड में लोग कुछ समय के लिए साथ रहना स्वीकार करते हैं, उनमें भावनाओं का बहुत जुड़ाव नहीं होता है, जबकि परिवार में परस्पर लगाव होता, एक दूसरे के प्रति अत्यधिक चिंता होती है। अमेरिका में परिवार लगभग नष्ट हो चुके हैं। उसी हिसाब से खर्च भी बढ़ा है। वहां 11 करोड़ हाउसहोल्ड हैं, लेकिन उनके सदस्यों के पास 120 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं। लगभग हर आदमी के पास तीन-चार से ज्यादा क्रेडिट कार्ड हैं। तो अमेरिका को बिखरे हुए परिवारों ने तबाह कर दिया है, जबकि भारत जैसे देशों में परिवार और संस्कृति की वजह से ही अर्थव्यवस्था बची हुई है। क्र