Wednesday, December 31, 2014

Odisha Resolution 1 (H) बौद्धिक संपदा अधिकारों पर अमेरिकी चेतावनी, मात्रा एक दिखावा

Odisha Resolution 1 (H)
बौद्धिक संपदा अधिकारों पर अमेरिकी चेतावनी, मात्रा एक दिखावा
विश्व की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बौद्धिक संपदा अधिकारों ने विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सन् 1995
में ज्त्प्च्ै समझौता होने के पश्चात एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है। अमेरिका की सकल आय का 35ः और
यूरोपीय यूनियन की सकल आय का 39ः हिस्सा बौद्धिक सम्पदा आधारित व्यवसायों पर आधारित एवं उनसे प्राप्त
होने के कारण अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के लिए यह एक गम्भीर मुद्दा बन गया है। इसलिए पश्चिमी देशो की
ओर से भारत सहित अन्य विकासशील देशों पर इन देशों में लागू घरेलू बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों में उनके हित
में बदलाव करने का लगातार भारी दबाव है। वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार नीति बनाए
जाने की प्रक्रिया चलने और देश में लागू पेटेन्ट कानूनों में, विशेषकर निम्न 3 या 4 मुद्दों में भारत सरकार द्वारा
बदलाव न किए जाने पर बडी दवा कम्पनियों के दबाव में अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबन्धों की धमकी के वातावरण में
यह मुद्दा अत्यंत सम्वेदनशील हो गया है -

1. पेटेंट कानून, 1990 की धारा 3३ (डी) जिसके अन्तर्गत नोवार्टिस, स्विट्जरलैंड की औषधि के फर्जी आविष्कार
की पेटेंट मान्यता रद्द की गई थी और माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त प्रावधान को ज्त्प्च्ै समझौते के पूर्ण
रूपेण अनुरूप मानते हुए मान्य किया गया था।

2. अनिवार्य लाइसेंसिग से सम्बन्धित प्रावधान, विशेषकर ‘नाटको’ कम्पनी को कैन्सर की दवा के उत्पादन की
अनुमति दिए जाने के कारण, क्योंकि यह दवा जर्मनी की ‘बेयर’ कम्पनी द्वारा अत्यंत मंहगे दामों पर बेची जा रही थी।

3. दवाईयों से सम्बन्धित तथ्यों की गोपनीयता रखने की अवैधानिक मांग जोकि ट्रिप्स समझौते की धारा 39.3 के
अन्तर्गत भारत सरकार के औषधि नियंत्राण प्राधिकरण को सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानवीयता के आधार पर उक्त
दवाईयों के परीक्षण नतीजे भारतीय जेनरिक दवा कम्पनियों के साथ साझा करने से रोकती है।

इन मुद्दों के अलावा भी भारत सरकार को भारतीय पेटेंट कानून के वर्तमान में लागू अन्य प्रावधानों जिसमें पेटेंट
दिए जाने से पूर्व विरोध दर्ज करना शामिल है, के सम्बन्ध में समझौता नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, भारत
सरकार को ट्रिप्स समझौते के वर्तमान में लागू अनेक अहितकारी प्रावधानों की पूर्ण समीक्षा एवं विश्व व्यापार संगठन के
सभी सम्बन्धित मंचों पर पर्यावरण एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नवीन टैक्नोलोजी की सुगम उपलब्धता के साथ साथ इस
सम्बन्ध में पुनः चर्चा की मांग करनी चाहिए। हमें शराब आदि उत्पादों से आगे बढ कर, दार्जिलिंग चाय, बासमती
चावल, टैक्सटाइल उत्पादों और भारत के बहुत सारे अन्य मूल कृषि उत्पादों की भौगोलिक पहचान के संरक्षण की
विशेष मांग करनी चाहिए।

हमें हमारी जैव विविधता, पारम्परिक ज्ञान और लोक गीत के संरक्षण हेतु भी वर्तमान में चल रहे दोहा प्रस्तावों के
कार्यान्वयन के दौरान बिना चर्चा में नए बिन्दु जोडें, मांग करनी चाहिए।

भारत सरकार को नवोन्वेषण एवं सष् जनात्मकता की वृद्धि हेतु इस देश के वैज्ञानिकों और कारीगरों को उचित सम्मान
देते हुए शोध एवं विकास पर किए जाने वाले सरकारी खर्च को बढाना चाहि

Concept Paper on IPR

Intellectual Property Rights (IPR) is playing a vital role in the present era of knowledge based economy and particularly so under the WTO regime through the TRIPS Agreement. India has vast resource of intellectual capital including our traditional knowledge and our biological resources. We also have good research institutions, but due to lack of proper awareness and due to our social values and ethics, we have not been able to monetise and optimise the value of our intangible or intellectual assets. Our National IPR Policy adopted by Indian Cabinet on 12th June 2016 has mentioned about developing a strong IP Eco System, which speaks about creation, protection, enforcement, commercialisation of IPR and to educate our scientists and students about the legal framework for getting registration and for transfer of technology by patenting and so on.

The global Intangible wealth is about 80 per cent of the total economic wealth and more than one third of the GDP of US and Europe comes from IP intensive industry. Therefore it is essential that the economy of our country needs to grow through transformation and innovation and for this we need to develop a strong IP Eco system. USA keeps on threatening for imposition of article 301 and there are several issues due to which our Pharma companies are asked to pay for infringement of their patent rights and several restrictions are imposed for compulsory licensing. The lack of knowledge is causing tremendous amount of technology leakage and brain drain from our country by virtue of which our own research is recycled and we are bound to pay hefty amount for royalty and technical fees which is a big drain on our precious foreign exchange.

Therefore there is a need to identify and inventories our vast knowledge resource whether it is in the form of copyrights, or industrial designs or traditional knowledge or geographical indications (GI). We have developed a traditional knowledge digital library but we need to develop more such intellectual resource. IP and Innovation is the key to make India strong and resourceful in the 21st Century. 

It would be very good if We develop an organisation to be named as “Baudhik Sampad Parishad” or Intellectual Resource Centre (IRC) within Sangh Parivar to develop a strong network for all the IP Professional, it can help to protect and create huge amount of intellectual capital in the country.

Warm Regards

Dr.Dhanpat Ram Agarwal

National Co-Convener, Swadeshi Jagaran Manch

dr.agarwal@iitrade.ac.in

+91 98300 41327