Monday, January 30, 2017

आदमी के शरीर की कीमत - अमूल्य

January 2015
प्रसिद्ध अपोलो हस्पताल श्रृंखला के डायरेक्टर डॉ प्रताप सी रेड्डी ने एक अपने लेख में लिखा कि आदमी के शरीर की कीमत लगाने का प्रयास एक बार येल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफेसर  हेरोल्ड जे मोरोविट्ज़ का हिसाब लगाया तो अंदाज आया की 6000 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। 60 हज़ार लाख करोड़ डॉलर भी कह सकते हैं।ध्यान रहे की भारत की कुल जीडीपी ही 2.5, चीन की 11 और अमेरिका की16 ट्रिलियन डॉलर है और सारी दुनियां की जीडीपी से  जोकि लगभग 78 ट्रिलियन डॉलर है, उसका 77 गुना अधिक है। ओह! इतने कीमती, नहीं नहीं बेष कीमती वास्तु भगवान् ने हम को दी है, और इसको  आलस्य, बदपरहेजी, नाशाखोरी और ग़लत जीवनशैली के कारण समाप्त कर रहे है। आइये, डॉ प्रताप रेड्डी का लिखा मूल पत्र जरा पढ़ ले,
Dear Fellow Indian,
Life is priceless and good health is our most precious gift! A healthy body and a
healthy mind help us live a wholesome life, and enjoy all its moments - both big
and small. It is the constant backdrop that our wellbeing demands.
Good health begins with the smooth functioning of the truly invaluable human
body. In a study conducted by Harold J. Morowitz at Yale, it was estimated that to
create the human body, it would cost more than six thousand trillion dollars - that’s
77 times the GDP of the world. And this is without the intuitive intelligence that we
are all blessed with.
The Creator has given human beings the most intricate body - one that is priceless.
Our body is the greatest asset we have, but unfortunately most of us don’t treat it
that way. We need to value our body, protect and cherish it. Most importantly we
must give our bodies the respect it so richly deserves.
We know the path to good health, but often, we don’t walk it. We think the right
thoughts, but don’t back it up with action. The result is now showing – India is
getting seriously unhealthy. We lead the world in lifestyle diseases, and this
disease burden is now assuming alarming proportions.
Our focus should be to become leaders in development and discovery, and not
become the disease capital of the world.
As a nation, we need to get serious about living healthy and good health has to be
our collective priority. Good health is all about small steps – small ones that will
help us take giant strides forward.
So let us begin this New Year with a firm resolve to live healthy and transform India!
With best personal regards,
Dr. Prathap C Reddy
Founder & Chairman, Apollo Hospitals
“I Believe Life is Priceless”

Thursday, January 26, 2017

आठ अमीर बराबर दुनियां की आधी निचली आबादी

सारी दुनिया की आधी आबादी बराबर 8 अमीर
   
एक  चोंकाने वाली खबर प्रमुख अखबारो में छप  तो रही है, शायद आपका ध्यान गया या नहीं। खबर ये कीवैश्वीकरण की प्रक्रिया से दुनिया में बढ़ रही असमानता के बीच स्विट्जरलैंड के दावोस में इस 15 जनवरी मंगलवार से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू हुई। इसमें दुनिया के अमीर से अमीर देशों ने हिस्सा लिया। पर ये हर साल होने वाली बैठक है, नई बात आगे है।

एक रिपोर्ट पर चर्चा हुई जिसका सारांश है कि दुनिया के आठ धनी लोगों के पास निचली आधी आबादी के बराबर संपत्ति है। स्मरण करवाना जरूरी है कि गत वर्ष की इसी ऑक्सफॉम रिपोर्ट में इस श्रेणी में 62 अमीर थे जो अब घट कर 8 रह गए है। यानि की 360 करोड़ गरीबों की कुल संपत्ति 8 बड़े अमीरों के बराबर!
वैसे ये आंकड़े 2010 से प्रारम्भ हुए है। परंतु आंकड़े चुकाने वाले है। वर्ष 2010 में 388 अमीरों की संपत्ति दुनिया की आधी आबादी की कुल दौलत के बराबर थी, जबकि 2011 में उनकी संख्या घट कर 177, 2012 में 159, 2013 में 92, 2014 में 80 और 2015 में 62 रह गई।
आइये जरा इन धनकुबेरों के नाम भी जान लेवें। पहले है बिल गेट्स ($75 bns).  दुसरे है स्पेन के अमान्सिओ आर्तव गाऊन ($67bn), जो फैशन जगत की विख्यात हस्ती है, ज़ारा ब्रांड है और इंडिटेक्स उनकी कंपनी। तीसरे जानेमाने  अमीर वारेन बुफे है और संपत्ति $60.8 बिलियन । चौथे कार्लोस स्लिम हेलू ($50 bn) और मेक्सिको के टेलेकम्युनिकेशन के बेताज बादशाह। पांचवे जेफ बेजोस ($45.2 bn) और इन्हें अधिकाँश भारतीय जानते होंगे, इनकी अमेजॉन कंपनी के कारण। छटे अमीर मार्क ज़ुकरबर्ग ($44.6 bn) जिन्हें फेसबुक के कारण अधिकांश लोग जानते है। ओरेकल के मालिक लॉरेंस जे एलिसन की सम्पति $43.6 बिलियन के कारण सातवे पायदान पर हैं। ब्लूमबर्ग के मालिक माइकल ब्लूमबर्ग ($40 bn) के साथ आठवे स्थान पर।

इस रिपोर्ट पर अंतरराष्ट्रीय संस्था आक्सफैम का कहना है कि बीते 30 साल में दुनिया की निचले स्तर की 50 फीसदी आबादी की आय कमोबेश सुस्त ही रही है जबकि शीर्ष पर बैठे एक फीसदी लोगों की आय 300 फीसदी तक बढ़ी है। अब सोचना ये है कि यह बढ़ोतरी किसी असाधारण कारोबारी प्रतिभा की देन है या उनके द्वारा गढ़ी गई आर्थिक डिजाइन का नतीजा है जिससे उनके पास बेशुमार संपत्ति इकट्ठा हो गई।

भारत में इस असमानता पर गौर करें तो वह चौकाने वाला है। केवल 57 परिवारों के पास 70 फीसदी आबादी के बराबर संपत्ति है। वैश्विक स्तर पर एक फीसदी आबादी के पास 99 फीसदी लोगों के बराबर संपत्ति है। भारत में शीर्ष एक फीसदी धनाढ्य लोगों के पास 58 फीसदी लोगों से ज्यादा संपत्ति है।
हमारा मानना यही है कि ये ऐसे नियमो के कारण है जो की अमीरो के हित के लिए अमीर राष्ट्रों ने गढ़े है। कभी ये वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फण्ड के माध्यम से हुआ और कभी गेट समझोता था , कभी डंकल प्रस्ताव के नाते था और अब विश्व व्यापार संगठन WTO के नाते आया है।
इस गोरखधंधे को सुलझाने स्वदेशी जागरण मंच का 25 वर्ष पूर्व जन्म हुआ।

अगर विस्तार से इस विभीषिका के बारे में पढ़ना हो तो नीचे जनसत्ता में छपे धर्मेंद्रपाल सिंह के 21 जनुअरी के लेख को पढ़े:
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विषमता की दुनिया
आज बिल गेट्स, वारेन बफेट जैसे केवल आठ धन्नासेठों के पास विश्व की आधी गरीब आबादी यानी 3.6 अरब जनता के बराबर धन-दौलत है और एक प्रतिशत अमीरों के कब्जे में 99 फीसद संपत्ति है।

धर्मेंद्रपाल सिंह
January 21, 2017 05:17 am

दावोस में विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम) की बैठक से ठीक पहले आर्थिक असमानता पर जारी आॅक्सफेम रिपोर्ट चौंकाती है। ‘एन इकॉनमी फॉर 99 परसेंट’ नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, आज बिल गेट्स, वारेन बफेट जैसे केवल आठ धन्नासेठों के पास विश्व की आधी गरीब आबादी यानी 3.6 अरब जनता के बराबर धन-दौलत है और एक प्रतिशत अमीरों के कब्जे में 99 फीसद संपत्ति है। यह हालत तब है जबकि दुनिया के दस प्रतिशत लोग अब भी कंगाली (दो डॉलर प्रतिदिन से कम आय) में जीते हैं। सबसे अमीर आठ खरबपतियों में से छह अमेरिकी, एक मैक्सिको और एक स्पेन का नागरिक है।  हिंदुस्तान के हालात तो और भी खराब हैं। यहां सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास 58 प्रतिशत दौलत है, जो दुनिया के अन्य देशों के औसत (50 प्रतिशत) से अधिक है। भारत में 84 खरबपतियों के पास कुल 24.8 खरब डॉलर का खजाना है, जबकि देश की कुल धन-दौलत का मूल्य 31 खरब डालर आंका गया है। 2014 से हर साल जारी होने वाली इस रिपोर्ट के मुताबिक तमाम दावों के बावजूद दुनिया में अमीर-गरीब के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है, जिस कारण जन-आक्रोश बढ़ रहा है, तथा लोग लोकतंत्र को शक की नजर से देखने लगे हैं।
रिपोर्ट बताती है कि 1998 और 2011 के बीच तेरह बरस में दुनिया के सबसे गरीब दस फीसद लोगों की आमदनी पैंसठ डॉलर सालाना की दर से कुल दस फीसद बढ़ी, जबकि इसी अवधि में एक प्रतिशत सबसे अमीर तबके की आमदनी में 11,800 डॉलर सालाना के हिसाब से 182 गुना इजाफा हो गया। और गहराई में जाने पर पता चलता है कि पिछली चौथाई सदी में एक प्रतिशत अमीरों की आय सबसे गरीब पचास प्रतिशत लोगों से ज्यादा बढ़ी है। पिछले दस साल में अकेले बिल गेट्स की संपत्ति 1.70 लाख करोड़ रुपए बढ़ गई, यानी उसमें हर घंटे दो करोड़ रुपए की तूफानी रफ्तार से इजाफा हुआ है। इस सच से अब कोई इनकार नहीं कर सकता कि विकास की मौजूदा डगर पर चलने से ही गरीब-अमीर के बीच की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है। वर्ष 2010 में 388 अमीरों की संपत्ति दुनिया की आधी आबादी की कुल दौलत के बराबर थी, जबकि 2011 में उनकी संख्या घट कर 177, 2012 में 159, 2013 में 92, 2014 में 80, 2015 में 62 और 2016 में महज आठ रह गई।
आज एक तरफ विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) और वित्तीय संस्थाओं के चुनिंदा मालिक हैं तो दूसरी तरफ करोड़ों कंगाल हैं। यह विषमता जन-कल्याण से जुड़े कार्यक्रमों के मार्ग में रोड़ा बन गई है। दुनिया भर के देशों में उभरता सामाजिक असंतोष भी इसी का परिणाम है। अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए एमएनसी नित नए-नए तरीके खोज रही हैं। अब आदमी के बजाय रोबोट से काम कराने पर जोर दिया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार रोबोट अगले पांच साल में केवल पंद्रह देशों में 51 लाख कर्मचारियों की नौकरी खा जाएंगे। दुनिया भर में जहां नौकरियों का टोटा है, वहीं दूसरी तरफ सारी धन-दौलत मुट्ठी भर लोगों के हाथ में सिमटती जा रही है। भारत का उदाहरण ही लें। पिछली चौथाई सदी में ‘बाजार-अर्थव्यवस्था’ के चलते देश ने क्या खोया और क्या पाया? तेज औद्योगीकरण और आर्थिक सुधार के दावों के बावजूद सच यह है कि पिछले पच्चीस सालों के दौरान अच्छी और सुरक्षित नौकरियां लगातार घटी हैं। 1980 की औद्योगिक जनगणना में प्रत्येक गैर-कृषि इकाई में 3.01 कर्मचारी थे, जो 2013 आते-आते घट कर 2.39 रह गए। उदारीकरण से पूर्व 1991 में 37.11 फीसद उद्योग ऐसे थे जहां दस या अधिक कर्मचारी थे। 2013 में यह संख्या दस प्रतिशत गिरकर 21.15 रह गई। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के अधिकांश उद्योग अब गैर-संगठित क्षेत्र में हैं। यह तथ्य किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था का अच्छा पहलू नहीं माना जाएगा। इस सिलसिले में श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट का जिक्र जरूरी है, जिसमें सर्वाधिक काम देने वाले आठ सेक्टरों- कपड़ा, हैंडलूम-पॉवरलूम, चमड़ा, आॅटो, रत्न-आभूषण, परिवहन, आईटी-बीपीओ और धातु- के मौजूदा हालात का जिक्र है, जहां नई नौकरी न बराबर है।

रिपोर्ट के अनुसार, इन आठ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सेक्टरों में जुलाई-सितंबर, 2015 की तिमाही में केवल 1.34 लाख नई नौकरियां आर्इं। मतलब यह कि प्रतिमाह पैंतालीस हजार से भी कम लोगों को काम मिला, जबकि आंकड़े गवाह हैं कि हिंदुस्तान के रोजगार-बाजार में हर महीने दस लाख नए नौजवान उतर आते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि हर महीने लाखों बेरोजगारों की नई फौज खड़ी हो रही है, जो एक साल में एक करोड़ की दिल दहला देने वाली संख्या कूद जाती है। कुल मिलाकर रोजगार के मोर्चे पर हालात बहुत बुरे हैं। सरकारी विभागों में चपरासी के चंद पदों के लिए लाखों आवेदन आते हैं और अर्जी देने वालों में हजारों इंजीनियरिंग, एमबीए, एमए, पीएचडी डिग्रीधारी होते हैं। अगर ‘हर हाथ को काम’ का नारा क्रियान्वित करना है तो सरकार को प्रतिवर्ष कम से कम 1.2 करोड़ नए रोजगार सृजित करने ही होंगे।आय के अंतर की मार औरतों पर सर्वाधिक पड़ी है। एशिया में समान काम के लिए उनका वेतन पुरुषों के मुकाबले दस से तीस प्रतिशत कम है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की विश्व वेतन रिपोर्ट (2016-17) के अनुसार, भारत में पुरुष और महिला के वेतन में तीस फीसद से ज्यादा अंतर है। इतना ही नहीं, सबसे कम वेतन पाने वाले श्रमिकों में महिलाओं की संख्या साठ प्रतिशत है, जबकि उच्च वेतन वर्ग में उनकी तादाद महज पंद्रह फीसद है। गांवों में रहने वाली चालीस करोड़ औरतों में से चालीस प्रतिशत खेती और उससे जुड़े धंधों में लगी हैं, लेकिन उन्हें किसान का दर्जा नहीं दिया जाता। न तो उनके नाम जमीन होती है और न ही सरकारी योजनाओं का उन्हें लाभ मिल पाता है। इससे उनकी माली हालत ही नहीं, उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ता है।
अपनी दौलत बढ़ाने के लिए धन्नासेठ ‘टैक्स हैवन’ देशों की आड़ में कर-चोरी करते हैं। आज अंतर केवल दौलत के बंटवारे में नहीं, कर्मचारियों के वेतन में भी है। भारत की किसी बड़ी आईटी फर्म के सीईओ की तनख्वाह औसत कर्मचारी से 416 गुना अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में हालात सुधरने के आसार नहीं हैं। उलटे अगले दो दशक में पांच सौ धनवान अपनी औलाद को इक्कीस खरब डॉलर की दौलत सौंप कर जाएंगे, जो भारत के जीडीपी से भी ज्यादा होगी। इस संदर्भ में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज की पुस्तक ‘इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शन’ का जिक्र जरूरी है, जिससे देश के विकास के दावों और पैमानों को गंभीर चुनौती मिलती है। खुली और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का मोटा सिद्धांत है कि यदि गरीबों का भला करना है तो देश की आर्थिक विकास दर ऊंची रखो। इस सिद्धांत के अनुसार जब विकास तेजी से होगा तो समृद्धि आएगी और गरीबों को भी इसका लाभ मिलेगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में आज केवल आर्थिक विकास के पैमाने को अपनाने का चलन खारिज किया जा चुका है। किसी देश की खुशहाली नापने के लिए अब मानव विकास सूचकांक तथा भूख सूचकांक जैसे मापदंड अपनाए जा रहे हैं और इन दोनों पैमानों पर हमारे देश की हालत दयनीय है। यदि विकास के लाभ का न्यायसंगत बंटवारा न किया जाए और खुले बाजार पर विवेकपूर्ण नियंत्रण न रखा जाए तो समाज में बदअमनी फैलने का भय रहता है। आज भारत भी इस खतरे के मुहाने पर खड़ा है।

आठ अमीर बराबर दुनियां की आधी निचली आबादी

दुनिया में बढ़ती आर्थिक असमानता बनाम सुधार
   
एक  चोंकाने वाली खबर प्रमुख अखबारो में छप  तो रही है, शायद आपका ध्यान गया या नहीं। खबर ये कीवैश्वीकरण की प्रक्रिया से दुनिया में बढ़ रही असमानता के बीच स्विट्जरलैंड के दावोस में इस 15 जनवरी मंगलवार से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू हुई। इसमें दुनिया के अमीर से अमीर देशों ने हिस्सा लिया। पर ये हर साल होने वाली बैठक है, नई बात आगे है।

एक रिपोर्ट पर चर्चा हुई जिसका सारांश है कि दुनिया के आठ धनी लोगों के पास निचली आधी आबादी के बराबर संपत्ति है। स्मरण करवाना जरूरी है कि गत वर्ष की इसी ऑक्सफॉम रिपोर्ट में इस श्रेणी में 62 अमीर थे जो अब घट कर 8 रह गए है। यानि की 3 करोड़ 60 लाख गरीबों की कुल संपत्ति 8 बड़े अमीरों के बराबर!

आइये जरा इन धनकुबेरों के नाम भी जान लेवें। पहले है बिल गेट्स ($75 bns).  दुसरे है स्पेन के अमान्सिओ आर्तव गाऊन ($67bn), जो फैशन जगत की विख्यात हस्ती है, ज़ारा ब्रांड है और इंडिटेक्स उनकी कंपनी। तीसरे जानेमाने  अमीर वारेन बुफे है और संपत्ति $60.8 बिलियन । चौथे कार्लोस स्लिम हेलू ($50 bn) और मेक्सिको के टेलेकम्युनिकेशन के बेताज बादशाह। पांचवे जेफ बेजोस ($45.2 bn) और इन्हें अधिकाँश भारतीय जानते होंगे, इनकी अमेजॉन कंपनी के कारण। छटे अमीर मार्क ज़ुकरबर्ग ($44.6 bn) जिन्हें फेसबुक के कारण अधिकांश लोग जानते है। ओरेकल के मालिक लॉरेंस जे एलिसन की सम्पति $43.6 बिलियन के कारण सातवे पायदान पर हैं। ब्लूमबर्ग के मालिक माइकल ब्लूमबर्ग ($40 bn) के साथ आठवे स्थान पर।

इस रिपोर्ट पर अंतरराष्ट्रीय संस्था आक्सफैम का कहना है कि बीते 30 साल में दुनिया की निचले स्तर की 50 फीसदी आबादी की आय कमोबेश सुस्त ही रही है जबकि शीर्ष पर बैठे एक फीसदी लोगों की आय 300 फीसदी तक बढ़ी है। अब सोचना ये है कि यह बढ़ोतरी किसी असाधारण कारोबारी प्रतिभा की देन है या उनके द्वारा गढ़ी गई आर्थिक डिजाइन का नतीजा है जिससे उनके पास बेशुमार संपत्ति इकट्ठा हो गई।

भारत में इस असमानता पर गौर करें तो वह चौकाने वाला है। केवल 57 परिवारों के पास 70 फीसदी आबादी के बराबर संपत्ति है। यानि आठ करोड़ 75 लाख लोगों के पास जितना धन उतना धन सिर्फ 57 लोगों के पास है। वैश्विक स्तर पर एक फीसदी आबादी के पास 99 फीसदी लोगों के बराबर संपत्ति है। भारत में शीर्ष एक फीसदी धनाढ्य लोगों के पास 58 फीसदी लोगों से ज्यादा संपत्ति है।
हमारा मानना यही है कि ये ऐसे नियमो के कारण है जो की अमीरो के हित के लिए अमीर राष्ट्रों ने गढ़े है। कभी ये वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फण्ड के माध्यम से हुआ और कभी गेट समझोता था , कभी डंकल प्रस्ताव के नाते था और अब विश्व व्यापार संगठन WTO के नाते आया है।
इस गोरखधंधे को सुलझाने स्वदेशी जागरण मंच का 25 वर्ष पूर्व जन्म हुआ।

Monday, January 23, 2017

चीन से चुनोती- सतीश जी के बुलेट पॉइंट्स


चीन से चुनौती

1.1 इस दीपावली पर सारे देष की भावना प्रकट हुई, चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में।

1.2 टाईम्स ऑफ इंडिया, न्यू इंडियन एक्सप्रेस, भास्कर, जागरण ने और CAIT आदिके अनुसार 20 प्रतिषत से लेकर 70 प्रतिषत तक की कमी आई।

ऽ उड़ी हमले, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उफान उठा, किन्तु कोई उफान अचानक नहीं उठता, उसके आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षा के अनेक कारण, उड़ी हमला आखिरी चोट, देश के मन में 5-6 वर्ष से चल रहा था।

ये कारण तीन प्रकार के है: सीमा पर चीन द्वारा 1962 के बड्स अतिक्रमण के प्रयास, पाकिस्तान जैसे हमारे दुश्मन देशों का सहयोग करना और आर्थिक रूप से हमारा नुक्सान।

सबसे बड़ा आर्थिक संकट- देखें कि सन 2000 में 2.8 बिलियन डालर का कुल ट्रेड ,  2013-14 मेंए 75.8 बिलियन डालर तक पहुंचा, अभी यह 71.6 बिलियन डालर है।

ऽ इसमें हमारा निर्यात 9 बिलियन डालर का आयात 61.6 बिलियन डालर, इससे व्यापार घाटा 52.68 बिलियन डालर का।

ऽ भारत का कुल व्यापार घाटा है 118.5 बिलियन डालर का। अकेले चीन से है 52.6 बिलियन डालर (3541.71 अरब रूपये)। कुल घाटे का 44 प्रतिषत। कुल व्यापार 4815.1 अरब रूपये का।

ऽ भारत का 118.5 बिलियन डालर का घाटा गत 5 वर्षों में न्यूनतम है। इसमें ऑयल आयात है 26.2 प्रतिषत। यदि यह बाहर रखें तो चीन से 70 प्रतिषत।

ऽ हमारा कुल ट्रेड है - निर्यात 261.1, आयात 379.1, कुल 640 बिलियन डालर का ट्रेड इै। 118.5 का घाटा है।

ऽ चीन का कुल निर्यात है 2282 बिलियन डालर, हमारा 261, यानि हमसे लगभग 9 गुणा है। चीन के कुल निर्यात का 3.2 प्रतिषत भारत से है।

ऽ चीन के आयात में 26.3 प्रतिषत इलेक्ट्रोनिक्स, 16.1 प्रतिषत मषीन एवं इंजिन पम्पस, 4.3 प्रतिषत फर्निचर, लाईटिंग।

ऽ लेकिन भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर चीन हो गया है। दूसरे पर अमरीका, जबकि जापान 15वें नंबर पर है।

ऽ चीन 11 ट्रिलियन, यूएसए 17 ट्रिलियन, जापान 6 ट्रिलियन, भारत सातवें पर 2.3 ट्रिलियन

सुरक्षा के मुद्दे पर

ऽ किसी भी देष के साथ अमरीका, यूरोप  जापान से घाटा केवल रूपये डालर का घाट है पर चीन के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा भी जुड़ी है।

ऽ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से चीन से खतरा है।

ऽ 1962 में 37,500 वर्ग किमी अक्साइचिन की भूमि युद्ध में हडप ली, बाद में 5180 वर्ग किमी भूमि पाकिस्तान ने चीन को दे दी। कुल भूमि 42,680 वर्ग किमी.।

ऽ 20 अक्टूबर 1962, 1383 शहीद $ 1696 लापता, कुल-3079, चीन के 722 मरे, 1697 घायल।

ऽ वह अरूणाचल सहित 90,000 वर्ग किमी. की लद्दाख तक की भूमि को विवादस्पद बता, हमेषा संकट किये रहता है।

ऽ वर्ष भर में 400 से 450 बार तक अतिक्रमण करता है अपनी तरफ से सीमा के जीरो पॉइंट तक सड़क बनाई है। बल्कि भारत के प्रत्येक बड़े शहर तक परमाणु मिसाईल लगा रखी है।

ऽ 2013 में दौलतबेग ओल्ड़ी में 19 किमी. पीछे आना पड़ा। अपनी अग्रिम चौकिया स्वयं तोड़नी पड़ी।

ऽ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होते हुए अरूणाचल का कार्यक्रम बनाया। रात्रि 2 बजे हमारी राजदूत को बुलाकर विरोध दर्ज किया। मनमोहन सिंह ने यात्रा स्थगित कर दी।

ऽ इधर नेपाल, बंग्लादेष, श्रीलंका, सिंगापुर के साथ पाकिस्तान की ग्वादर बंदरगाह में परमाणुयुक्त पनडुब्बी, नौसैनिक अड्डे बनाए हैं।

ऽ जैष-ए मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर पर यूएन की सिक्यूरिटी परिषद के 15 में से 14 तैयार, केवल चीन अडंगा लगाता है।

ऽ एनएसजी - न्यूक्लियर सप्लायर ग्रूप में 47 देष है, चीन, पाकिस्तान को कोई नुकसान नहीं, 40 देष तैयार है। 6 देष तटस्थ है। चीन विरोध है। उससे आणविक सामग्री के व्यापार का रास्ता खुलेगा।

ऽ पाकिस्तान के साथ 46 बिलियन डालर का चीन पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर स्थापित कर रहा है। पीओके से निकलता है, भारत ने विरोध किया है।

ऽ बंग्लादेष को 24 बिलियन डालर की करेडिट लाईन, भारत ने 2 बिलियन की दी थी।

चीन का वैष्विक दृष्टिकोण खतरनाक

ऽ चीन का वैष्विक दृष्टिकोण दुनिया भर में खौफ डालने वाला है। चीन को भी पता है इसलिए उसने चीन सरकार का घोषित उद्देष्य त्पेम वि से बदलकर क्मअमसवचउमदज वि ब्ीपदं किया है 1962 में।

ऽ वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग मजबूत नेता है। शाकियां केंद्रित भी है।

ऽ चीन का दुनिया के हरेक देष के साथ अविष्वासनीय या शत्रु जैसा संबंध है। दो ही देष विष्वसनीय - एक नॉर्थ कोरिया, दूसरा पाकिस्तान।

ऽ अपने चारों तरफ के पड़ौसियों जापान, वियतनाम, द. कोरिया, मलेषिया, इण्डोनेषिया, म्यांमार सबसे नदमेंल तमसंजपवदे

ऽ वियतनाम से 2003 में युद्ध किया, जापान से 1200 किमी. दूर ैमदांन पेसंदक 1250 चीन से 7 ाउेण् म्ेंज.बीपदं ेमंण्

ऽ ैवनजी ब्ीपदं ेमं पर वह अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं।

चीन की कमजोरियां

ऽ 4000 मौत प्रतिदिन 17 प्रतिषत। कुल मौतों का चीन में पर्यावरण से हो रहा है। वह दुनिया में 24 प्रतिषत प्रदूषण फैलाने वाला है।

ऽ 135 करोड़ की आबादी अब बूढ़ी हो रही है। व्दम ब्ीपसक च्वसपबल

ऽ पहले वह 2005-2011 तक 10.5 प्रतिषत की जीडीपी से बड़ा दुनिया का सबसे िंज मबवदवउल अब स्मे जींद 6 प्रतिषत है। जबकि भारत 7.5 प्रतिषत जीडीपी के साथ दुनिया का िंजमेज है।

ऽ युआन पिछले 6 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर है।

ऽ सेंसक्स को गत 1 साल में ही 5 बार इतमां करना पड़ा है।

ऽ ब्वततनचजपवद बहुत बढ़ गयी है।

ऽ स्टील व कोयला उपदपदह ेमबजवत में 5 लाख संल.विे हुए है। 3.5 लाख है अभी।

ऽ हड़ताल प्रदर्षन है किंतु ेजंजम बवदजतवससमक उमकपं है।

चीन की आइटम सस्ती क्यों?

ऽ चीन में कमउवबतंबल नही है। शाम को केबिनेट में पास, अगले दिन पार्लियमेंट में पास, अगले दिन लागू। भारत में लेंड बिल 4 महीने पब्लिक डिबेट के बाद ूमपजीकतूं

ऽ सस्ते लोन, 4 प्रतिषत पर दे देते हैं, बिजली सब्सिडी देते है। यह इकोनोमिक्स के इेंपबे के अनुख्य नहीं है। किन्तु चीन अपनी एक टांग टूटे भले पड़ौसी की तोड़ो, पूरे विष्व मार्किट पर कब्जा। आज उंदनिंबजनतपदह में 23 प्रतिषत चीन है।

ऽ सस्ती लेबर - अब महंगी होती जा रही है।

ऽ फिर कोई मजीपबे नहीं , दुनिया भर की कंपनियां बुला ली फिर सख्त शर्तें लाद दी, पेटेंट की परवाह नहीं।

ऽ प्द इनसा पैदा किया, किंतु अब सीमा आ गई है।

आशाएं

ऽ भारत में एक जन-ज्वार उठ गया है, दुनिया में भी उठेगा। इस बार ही कमी नहीं आई, आगे भी रहेगी। 20-70 प्रतिषत की कमी।

ऽ पनीपत की मिंक कम्बल फैक्टरी 60-70 प्रतिषत तमअपदम कर गई है।

ऽ षिवा काषी की पटाखा कंपनी तपअपदम कर गई है।

ऽ मण्डी गोविन्दगढ़ के 2000 यूनिट में 40-50 प्रतिषत तपअंइंस हो गया है।

ऽ कोल्हापुर में लडिया बनना शुरू हो गई है।

ऽ नदकमत इपससपदह  पर रोक प्रभावी हो रहे है।

ऽ च्वतजे पर 4 महीने तक की कमसंल की गई है। ेपचउंजे की दमू प्दकपंद मगचतमे की तमचवतज है।

ऽ दक्षिण-चीन समुद्र में जापान के साथ घोषणा पत्र पर जारी करने का है।

ऽ त्वांग में दलाई लामा की यात्रा होने वाली है।

ऽ ब्रिक्स की गोवा व बाद की ठप्डैज्म्ब् में जैसे आतंक के खिलाफ आवाज उठाई है। उसेस चीन अब त्मजीपां को मजबूर होगा।

ऽ दीपावली पर कुल 4 बयान आए, इग्नॉर, भौंकने, कुछ नहीं रिलेषन बिगडने की धमकी - चीन में चिंता हो गई है।

ऽ भारत ने नेपाल, श्रीलंका, भूटान, वियतनाम, बंग्लादेष, सिंगापुर से रिष्ते बहुत बेहतर कर लिए है। चीन की चिंता में इजाफा।

ऽ स्ववा म्ेंज से ।बज मेंज पर भारत आ गया है। ये सब भातर की घनिष्ठता बढ़ रही है।

ऽ अफ्रीका, जापान, यूरोपियन यूनियन, अमेरिका सब तरफ भारत के बडा चसंलमत करके उभर रहा है।

हमारा कर्तत्व

ऽ जिस भावना से दीपावली पर किया है - उसी से वर्ष भर करें।

ऽ चीन की आइटम का पूर्ण बहिष्कार।

ऽ थोडा महंगा होने से क्या होगा? कोई कुम्हार कोई लघु उद्यमी, कोई भारतीय ट्रेडर ही तो होगा। स्वदेषी बपतबनसंजपवद अपने देष में होगा।

ऽ भारत में मोबाइल व अन्य बवदेनउमत पजमउे पर 25-30 प्रतिषत चीन आ गया है।

ऽ लोग कहते थे सस्ती है। कौन महंगी खरीदे। सरकार क्यों नहीं रोक लगाती। किंतु लोगों ने बहिष्कार किया ले - सफल

ऽ चीन तक संदेष जाना शुरू हो गया है, वह पुनर्विचार को बाध्य होगा ही।

ऽ हमारे सरकारी अधिकारी, नेता ही नहीं उंदनिंबजनतमतए जतंकमत सब पुनर्विचार करेंगे। जनांदोलन की उपेक्षा कोई नहीं कर सकता।

ऽ आजाद भारत का रामजन्मभूमि, आपातकाल के बाद यह तीसरा बड़ा जनांदोलन बनेगा।

दो बड़े प्रष्न

ऽ सरकार रोक क्यों नहीं लगाती?

ऽ चीनी आइटम इतनी सस्ती कैसे? हमारी महंगी क्यां?

ऽ 1. सरकार का व्यापार 170 देषों से है। विभिनन संधिया है। डब्ल्यूटीओ है, ब्रिक्स है, ठप्डैज्म्ब् है, अफ्रीकन समझौते है, एफटीए है, तोड नही सकते। रूस, ब्राजील से व्यपार हम तोड़ना नहीं चाहते। वर्तमान सरकार मन से चाहती है वह हो तो रास्ते निकलते है- निकल रहे हैं।

ऽ अरूणाचल में सीमा से 26 किमी इधर अपना ग्लोबमास्टर सी-17 विमान (युद्ध सामग्री-टैंक सहित वहां उतरा है।) दलाईलामा को भेजना, साउथ चीन समुद्र पर जापान से घोषणा पत्र, सिंगापुर से वार्ता, वियतनाम में तेल के कुएं दुबाई खुदाई करना, षिपमेटस को देर कराना, नदकमत इपससपदह पर नकेल कसना, स्टील पर 18 प्रतिषत ंदजप कनउचपदह कनजल पटाखों पर मदअपतवदउमदज रोक, ंदजल कनउचपदह भी।

ऽ कुल 146 एंटी डंपिंग केस किए है। डब्ल्यूटीओ व जतपइनदंसे अकेले 70 चीन के खिलाफ है।