आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की पूरी अर्थव्यवस्था में हथियार उद्योग की भागीदारी करीब 60 फीसदी है।
अरविंद केजरीवाल के उभार के पीछे है अमेरिका का हथियार उद्योग!
Sundeep Dev
भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी स्वदेशी हथियार इंडस्ट्री खड़ा करने की बात लगातार दोहरा रहे हैं। आर्थिक भंवर में फंसे अमेरिका ने इस डर के कारण इस बार अपनी फंडिंग एजेंसियों के जरिए अरविंद केजरीवाल को एके-14 बनाकर भारत के चुनावी मैदान में उतारा है।
ओबामा प्रशासन को आशंका है कि भाजपा के नरेंद्र मोदी यदि सत्ता में आ गए तो न केवल भारत में उसके हथियार उद्योग को चौपट कर सकते हैं, बल्कि परमाणु करार की समीक्षा जैसा निर्णय भी ले सकते हैं।
Category: राजनीति
Published on Monday, 13 January 2014 14:29
http://www.aadhiabadi.com/society/politics/871-who-is-arvind-kejriwal-in-hindi2
संदीप देव, नई दिल्ली। दिन-रात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी की लॉबिंग में देश की इलेक्ट्रोनिक मीडिया जुटी हुई है। ऐसा भी नहीं है कि अरविंद केजरीवाल की तरह देश में पहले किसी नई राजनैतिक पार्टी या व्यक्ति का उभार न रहा हो, बल्कि मैं तो यह कहना चाहूंगा कि जब 24 घंटे कैमरे का छाता नहीं तना रहता था तब असमगण परिषद जैसी पाटियां सीधे छात्रों के होस्टल से निकल कर सत्ता की कुर्सी तक पहुंची थी! तो आखिर ऐसी क्या वजह है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया का 'केजरी राग' रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है? दरअसल इसके लिए आपको अमेरिका और उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए की पूरी कार्यप्रणाली को समझना होगा, जो दुनिया के हर देश के लोकतंत्र को अपने हथियार उद्योग के लिए बंधक बनाने का खेल प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही खेल रहा है!
आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की पूरी अर्थव्यवस्था में हथियार उद्योग की भागीदारी करीब 60 फीसदी है। मेरे पहले लेख,'कैसे और क्यों बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, पढि़ए पूरी कहानी!' में आप अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी और अमेरिका के बीच एक संदिग्ध रिश्ते की जानकारी हासिल कर चुके हैं। इस लेख में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ इसके मूल कारण को समझाने का प्रयास किया है...
अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए(CIA) की कार्यप्रणाली का एक बड़ा हिस्सा पूरी दुनिया की मीडिया को मैनेज करने का है। आपको तो याद होगा कि केवल मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाकर इराक पर युद्ध थोप दिया गया था जबकि युद्ध के बाद वहां किसी भी तरह का रासायनिक हथियार नहीं मिला था। और यह साबित हो गया था कि अमेरिका ने इराक पर केवल युद्ध थोपने के लिए मीडिया को कैसे मैनेज किया था। दुनिया के सभी बड़े मीडिया हाउस में फंडिंग से लेकर, किसी मीडिया हाउस के शेयर खरीदने और उसे प्रभावित करने का तरीका अमेरिका ने अपने ही देश के फोर्ड मोटर कंपनी और आज दुनिया भर में अमेरिकी हित को स्थापित करने में जुटे फोर्ड फाउंडेश्न के संस्थापक हेनरी फोर्ड से सीखा था।
वर्तमान में सीआईए ने पूरी दुनिया में फंडिंग और पुरस्कार के नाम पर बहुत सारे एनजीओ, ट्रस्ट और व्यक्ति पाल रखे हैं, जो अपने-अपने देश की सरकारी योजनाओं को प्रभावित करने और लोकतंत्र को बंधक बनाने का खेल खेलते हैं ताकि अमेरिकी हित सधता रहे। इसके लिए अमेरिका, नीदरलैंड और स्वीडन- मुख्य रूप से ये तीन देश मिलकर फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर ब्रदर्स फंड, आवाज, हिवोस, पनोस जैसी फंडिंग एजेंसियों के माध्यम से फंडिंग का खेल खेल रही हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में अरविंद केजरीवाल को 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार देकर नायक बनाने वाले और उनकी एनजीओ को फंडिंग करने वाले फोर्ड फाउंडेशन ने अपने हथियार उद्योग को बढ़ावा देने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर के पक्ष में जबरदस्त मीडिया लॉबिंग की थी।
बकायदा हिटलर की तानाशाही को जायज ठहराने के लिए हेनरी फोर्ड ने एक बड़े अखबार 'द डर्बन इंडिपेंडेंट' को ही खरीद लिया था!
'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार और फंडिग का यह सारा खेल हथियार उद्योग से जुड़ा है!
जर्मन तानाशाह हिटलर ने अपनी जीवनी 'मैन कॉम्फ' में फोर्ड मोटर कंपनी के संस्थापक हेनरी फोर्ड का बकायदा जिक्र किया है और उसे अपना आदर्श बताया है। हेनरी फोर्ड एक मात्र अमेरिकी है, जिसका जिक्र हिटलर ने अपनी जीवनी में किया है।
हेनरी फोर्ड की कंपनी द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी को हथियारों की आपूर्ति करने वाली प्रमुख कंपनी थी। प्रथम विश्व युद्ध के समय ही फोर्ड प्रमुख हथियार आपूर्ति करने वाली कंपनी के रूप में स्थापित हो चुकी थी। द्वितीय विश्व युद्ध में जब अमेरिका ने प्रवेश किया तो फोर्ड कंपनी ने मिसिगन में लड़ाकू विमानों को बनाने के लिए बकायदा इंडस्ट्री ही शुरू कर दिया था।
दुनिया का सबसे बड़ा और पहला बमवर्षक विमान बी-24 को फोर्ड ने ही बनाया था, जिसके जरिए अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में जीत हासिल की थी। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका के लिए बी-24 बम वर्षक विमान बनाने के लिए 18 हजार से अधिक इंडस्ट्री स्थापित की गई थी, जिसमें आधे से अधिक फोर्ड कंपनी की थी।
फोर्ड कंपनी अपने 'फोर्ड फाउंडेशन' के माध्यम से पूरी दुनिया में पुरस्कार, फंडिंग और मीडिया के जरिए जो खेल खेलती है, वह दरअसल अपने हथियार उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खेलती है! एशिया उसके लिए बड़ा हथियार और कार बाजार है। दक्षिण एशिया में 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार देकर और किसी देश के लोकतंत्र व वहां की सरकारी योजनाओं को प्रभावित करने वाले NGO व व्यक्तियों को फंडिंग कर FORD इस खेल को अंजाम तक पहुंचाती है।
केवल एनजीओ से जब बड़े पैमाने पर हित नहीं सध रहा था तो वर्ष 2000 में फोर्ड ने' रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार की श्रेणी में 'उभरता नेतृत्व' अतिरिक्त रूप से जोड़ दिया था। आपको याद है न कि अरविंद केजरीवाल को उभरते नेतृत्व के लिए ही वर्ष 2006 में 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार मिला था?
जबकि उस वक्त तक केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनआंदोलन की शुरूआत भी नहीं की थी! आपको यह भी बता दूं कि रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार का गठन फोर्ड के साथ एक और अमेरिकी कंपनी रॉकफेलर ब्रदर्स फंड ने मिलकर किया था।
रॉकफेलर का भी आपराधिक इतिहास है, जो आपको अगले किसी लेख में बताऊंगा।
यहूदियों के नरसंहार से बढ़ रहा था हथियार उद्योग, फोर्ड ने संभाल रखा था हिटलर का प्रचार!
द्वितीय विश्व युद्ध में अपने हथियारों की बिक्री को बढ़ाने के लिए हेनरी फोर्ड ने न केवल नाजी जर्मनी को सपोर्ट किया था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिटलर की तानाशाही और यहूदी नरसंहार को जायज ठहराने के लिए बकायदा अखबार तक निकाल दिया था। हिटलर ने जब यहूदियों का नरसंहार किया था तब उसके पक्ष में पूरी दुनिया में माहौल बनाने के लिए फोर्ड के संस्थापक हेनरी फोर्ड ने पानी की तरह पैसा बहाया था। हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ''मैं हेनरी फोर्ड का सम्मान करता हूं और उससे प्रेरित हूं। मैं जर्मनी में उनकी समूची अवधारणा को लागू करना चाहता हूं।'' हेनरी फोर्ड को अपना आदर्श मानने वाला जर्मन तानाशाह हिटलर 'फोर्डिज्म' की अवधारणा को पूरी दुनिया पर लागू करना चाहता था। क्या आप जानते हैं कि यह 'फोर्डिज्म' की अवधारणा क्या है? बिजनस के लहजे में कहें तो पूरी दुनिया को फोर्ड का बाजार बनाना। प्रचार, पुरस्कार और फंडिंग के जरिए 'फोर्डिज्म' के इस फैलाव पर दुनिया के प्रबंधन संस्थानों में बकायदा पढ़ाई और शोध होता है।
हिटलर की तानाशाही को तार्किक रूप से सही ठहराने के लिए फोर्ड कंपनी के मालिक हेनरी फोर्ड ने एक साप्ताहिक अखबार 'द डर्बन इंडिपेंडेंट' को फंड मुहैया कराया था। वर्ष 1918 में हेनरी फोर्ड के निजी सचिव अर्नेस्ट लेबोल्ड ने इस साप्ताहिक अखबार को खरीदा था। 'द डर्बन इंडिपेंडेंट' अखबार ने लगातार लेख लिखकर हिटलर का पक्ष लेते हुए यहूदियों के नरसंहार को जायज ठहराया था।
वर्ष 1920 से 1927 तक लगभग पूरे यूरोप में फोर्ड कंपनी का विस्तार हो चुका था। फोर्ड अपने फ्रेंचाइजी के माध्यम से हर देश में इस अखबार को पहुंचा रहा था और हिटलर के पक्ष में जनमत तैयार करने की कोशिश कर रहा था। 'द डर्बन इंडिपेंडेंट' अखबार की पाठक संख्या उस जमाने में 7 से 8 लाख के करीब पहुंच गई थी, जिसके जरिए हिटलर व नाजीवाद को सही ठहराया जा रहा था, जिसके बल पर उसके हथियरों की बिक्री लगातार बढ़ रही थी। हेनरी फोर्ड के इस काम से हिटलर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने हेनरी फोर्ड को जर्मनी का सबसे बडा नागरिक सम्मान 'ग्रांड क्रॉस ऑफ द जर्मन ईगल' से सम्मानित किया था। यहूदियों के नरसंहार को जायज ठहराने वाली फोर्ड कंपनी द्वारा फंडेड पुस्तक 'द इंटरनेशनल ज्यू, द वर्ल्डस फॉरमोस्ट प्रॉब्लम' को जब आप पढेंगे तो पाएंगे कि कि फोर्ड अपने हथियार उद्योग को बढ़ाने के लिए किस तरह से यहूदियों के प्रति घृणा का प्रचार कर रहा था!
मीडिया को कब्जे में लेना 1908 में ही सीख लिया था हेनरी फोर्ड ने
हेनरी फोर्ड को मीडिया की ताकत का अंदाजा वर्ष 1908 में ही हो गया था जब उसने अपनी पहली कार के 'मॉडल टी' को लॉंच किया था। अमेरिकी मध्यवर्ग में इस गाड़ी को लोकप्रिय बनाने के लिए उसने अमेरिका के हर अखबार में विज्ञापन दिया था और उसी के बल पर हर अखबार में 'पेड न्यूज' व संपादकीय भी लिखवाई थी। यह वह दौर था जब मीडिया का इतना उफान नहीं था, लेकिन दुनिया ने देखा कि हेनरी फोर्ड ने मीडिया की बदौलत अपनी पहली कार 'मॉडल टी' को पूरे अमेरिका में लोकप्रिय करा लिया था। 'मीडिया मैनेजमेंट' के कारण 1918 आते-आते अमेरिका के कुल कार बाजार का 50 फीसदी फोर्ड के कब्जे में आ चुका था। हिटलर के पक्ष में अपने मीडिया मैनेजमेंट के इसी हुनर को हेनरी फोर्ड ने अपनाना चाहा, लेकिन नरसंहार एक अमानवीय मुददा था, जिसके पक्ष में सीधे-सीधे नहीं लिखा जा सकता था इसलिए फोर्ड ने हिटलर के लिए एक अखबार 'द डर्बन इंडिपेंडेंट' को फंड कर उसे खरीद लिया।
अपने फंडिंग के बल पर मीडिया मैनेज करने की हेनरी फोर्ड की ताकत से तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वाड्रो विल्सन बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद गठित राष्ट्रसंघ में न केवल हेनरी फोर्ड को प्रवेश दिलाया, बल्कि मीडिया ताकत का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्र संघ को शांति के संघ के रूप में पूरी दुनिया में स्थापित करने का काम भी हेनरी फोर्ड को सौंपा था। वर्ष 1919 में हेनरी फोर्ड ने पूरी दुनिया की मीडिया को अपने पैसे की ताकत का अहसास कराया और राष्ट्रसंघ के पक्ष में जमकर माहौल तैयार किया। अपने आखिरी दिनों में हेनरी फोर्ड ने कहा था,''अपने वित्त, कौशल और व्यवसाय के जरिए अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना ही फोर्ड कंपनी का मकसद है।'' आज अमेरिका को मजबूत बनाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन दूसरे देशों के लोकतंत्र को वहां के व्यक्तित्व, एनजीओ, योजनाकार और मीडिया के बल पर ही बंधक बना रहा है!
भारत में कौन हैं, जो फोर्ड के पैसे पर पल रहे हैं?
भारत में 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार प्राप्त करने वाले और फोर्ड से फंड पाने वाले अधिकांश चेहरों व संस्थाओं और उनकी गतिविधियों को देख लीजिए! इनमें से अधिकांश आपको कश्मीर में अलगाववाद की वकालत करने वाले, माओवादियों के समर्थक और आतंकवाद के पैरोकार मिलेंगे।
अमेरिका भारत पर सीधे युद्ध नहीं थोप सकता है, इसलिए कश्मीर, आतंकवाद और माओवाद यहां हथियारों की बिक्री का बाजार उपलब्ध कराता है, जो सीधे तौर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है। इसलिए अमेरिका नहीं चाहता कि कश्मीर समस्या कभी हल हो। इसकी वजह से वह पाकिस्तान को भी हथियार का बाजार बनाए हुए है।
केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पदाधिकारियों के चेहरों को देखिए, इनमें से हर बड़ा चेहरा किसी न किसी सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और एनजीओ नेटवर्क से जुड़ा था। अरविंद केजरीवाल खुद, पहले 'परिवर्तन' एनजीओ से जुड़े और सरकारी नौकरी में रहते हुए भी यहां से वेतन लेकर एनजीओ की कार्यप्रणाली को समझा। उसके बाद अपने सहयोगी मनीष सिसोदिया के फोर्ड फंडेड 'कबीर' से जुड़े और उसी फोर्ड से मिले 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार के पैसे से 'पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन(सीपीआरएफ)' नामक एनजीओ का गठन किया।
अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन का सारा पैसा भी सीपीआरएफ के बैंक खाते में जमा हुआ था, जिसे लेकर अन्ना-अरविंद विवाद पैदा हुआ था।
आज देश की राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के एनजीओ गिरोह की अपनी सरकार है, जिसके लिए सीआईए की कार्यप्रणाली के अनुरूप साबित हो रही भारत की इलेक्ट्रोनिक मीडिया लॉबिस्ट की भूमिका में है! 'आम आदमी पार्टी' के नेता प्रशांत भूषण खुले तौर पर कश्मीर और नक्सल इलाके में जनमत संग्रह की बात कर रहे हैं और उन्हें टेलीविजन स्टूडियो में बैठे अमेरिकी एजेंटों द्वारा 'अभिव्यक्ति की आजादी' के नाम पर खुला समर्थन भी मिल रहा है।
प्रशांत भूषण अप्रत्यक्ष तौर पर गृहयुद्ध की वकालत कर रहे हैं, जिसमें कश्मीरी अलगाववादियों और माओवादियों को समर्थन देने का भाव छिपा है। यह समर्थन अप्रत्यक्ष तौर पर अमेरिका के हथियार इंडस्ट्रीज का समर्थन है। भारत में माओवादियों, कश्मीरी अलगाववादियों और आतंकवादियों के पास अमेरिकी हथियार ही तस्करी के जरिए पहुंच रहा है।
आज जेएनयू के प्रोफेसर कमल मित्र चेनाय जैसे आतंकवाद को समर्थन देने वाले लोग आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। वामपंथी विचारधारा वाले प्रोफेसर कमल मित्र चेनाय ने दुनिया के दुर्दांत आतंकवादी ओसाबा बिन लादेन के समर्थन से लेकर भारत में संसद हमले के आरोपी मोहम्मद अफजल को शहीद बताने के लिए बकायदा अभियान चलाया था।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसीISI फंडेड गुलाम नबी फई के फंड पर वह कश्मीर में पाकिस्तानी पक्ष रखने के लिए सभा-सेमिनार में शिरकत करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के मुताबिक प्रोफेसर कमल मित्र चेनाय ऐसी शख्सियत हैं जो अमेरिकी कांग्रेस की कमेटी में गुजरात के दंगों के बारे में यह बताया कि गुजरात में जो हुआ वो दंगा नहीं बल्कि जनसंहार था.. स्टेट स्पोंसर्ड जेनोसाइड था।
आपको यह भी बता दूं कि जेएनयू को भी शोध के नाम पर फोर्ड फाउंडेशन से पैसा मिलता है, जहां से निकले वामपंथी विचारधारा वाले प्रोफेसरों व छात्रों को यह काम सौपा गया है कि वे भारत के अंदर हर हाल में राष्ट्रवादी विचारधारा को पनपने से रोकें।
अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस की जीत क्यों चाहता है अमेरिका?
पिछली बार वर्ष 2008-09 में जब अमेरिका मंदी के दुष्चक्र में फंसा था तो इसी भारत की संसद में नोटों के बल पर यूपीए सरकार ने परमाणु करार को पास करा लिया था और इसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने जनता को भ्रमित व गुमराह करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की मदद स्टिंग की सीडी छिपा कर की थी। इस बार अमेरिका भांप चुका है कि घोटाले के दलदल में फंसा यूपीए सत्ता की दौड़ से बाहर है। जनदबाव के कारण ही उसे अगस्टा वेस्टलैंड व इसरो-देवास जैसे कई सौदों को उसे रद्द करना पड़ा है।
दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी स्वदेशी हथियार इंडस्ट्री खड़ा करने की बात लगातार दोहरा रहे हैं। आर्थिक भंवर में फंसे अमेरिका ने इस डर के कारण इस बार अपनी फंडिंग एजेंसियों के जरिए अरविंद केजरीवाल को एके-14 बनाकर भारत के चुनावी मैदान में उतारा है। याद हो कि फोर्ड व रॉकफेलर ब्रदर्स फंड के अलावा अरविंद की आम आदमी पार्टी को जो चुनावी चंदा मिला है, उसमें बड़ा हिस्सा अमेरिका से आया है।
ओबामा प्रशासन को आशंका है कि भाजपा के नरेंद्र मोदी यदि सत्ता में आ गए तो न केवल भारत में उसके हथियार उद्योग को चौपट कर सकते हैं, बल्कि परमाणु करार की समीक्षा जैसा निर्णय भी ले सकते हैं। गुजरात में आतंकवाद पर लगी लगाम के कारण भी अमेरिका को मोदी के कारण भविष्य में अपने हथियार इंडस्ट्रीज के सिकुड़ने का डर सता रहा है।
दूसरी तरफ अमेरिका का आकलन है कि यदि अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में 30-40 सीट हासिल कर लिया तो वह न केवल नरेंद्र मोदी को रोक देंगे, बल्कि कांग्रेस के सहयोगी की भूमिका में रहेंगे। दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार चलाकर अरविंद केजरीवाल ने इसे साबित भी किया है। यदि लोकसभा चुनाव के बाद भी ऐसा ही होता है तो इससे भारत में अमेरिका का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम ज्यों का त्यों चलता रहेगा।
अभी हाल ही में मिश्र में अपने प्रतिकूल 'मुर्सी सरकार' के सत्तासीन होने के बाद अमेरिका ने जिस तरह वहां के विरोधियों को मदद पहुंचाकर मुर्सी का तख्ता पलट किया था, उससे जाहिर होता है कि अमेरिका पूरी दुनिया में केवल अपने अनुकूल सरकार चाहता है। फिर भारत-पाकिस्तान के संयुक्त रूप से बड़े हथियार बाजार को वह भला किसी नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति के कारण कैसे बंद होने दे सक