आज 21 अक्टूबर 2018 को जालन्धर के नन से रेप के आरोपी बिशप के खिलाफ एकमात्र गवाह पादरी की मौत हो गयी। देखने में ये साधारण सी खबर है पर वास्तव में ऐसा नहीं है। नन से रेप मामले में कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ मुख्य गवाह रहे चर्च के पादरी कुरीकोस की मौत को उसके परिवारजन कत्ल मानते हैं। फादर के भाई ने यह भी बताया कि बिशप फ्रैंको मुलक्कल की जमानत रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
पर ऐसा लगता है मामला रफादफा हुआ कि हुआ। ऐसा क्यों? क्योंकि जिस प्रकार से पहले तो आरोपी को गिरफ्तार ही नहीं किया गया, फिर किया भी तो जल्दी जमानत मिली गयी। जमानत मिलते ही पुष्पवर्षा से स्वागत सत्कार किया गया है, और अब मुख्य गवाह भी दुनिया से विदा। सारे मामले में एक गहरी साजिश की बू आती है। ट्विटर पर किसी ने उपहास किया " बापू जेल में, फादर बेल पे।
ऐसा पहले कई बार हो चुका है कि पादरी कितने ही कुकर्म करले, सरलता से पार हो जाते हैं। हिन्दू धार्मिक पाखंडी सलाखों में रहते हैं चाहे राम रहीम हो, आसाराम बापू हो या रामपाल हो, और बिल्कुल रहने भी चाहिए, यदि पापी हैं पर बचने कुकर्मी पादरी भी नहीं चाहिए।
आओ जरा एक 36 साल रही ईसाई नन की आत्मकथा देखें। केरल के ही त्रिशुर की सिस्टर जेस्मी की 2009 में लिखी आत्मकथा पादरियों के कुकर्मों का भंडाफोड़ करती है "दी ऑटोबायोग्राफी ऑफ आ नन"। नन को पागल करार दे दिया और आरोपियों का बाल भी बांका न हुआ। आओ जरा दुनिया का भी हाल जान लें।
आयरलैंड में ऐसे एक इन्क्वारी कमिशन ने तो पादरियोंके कुकर्मो को एकं 'महामारी' का दर्जा ही दे दिया। प्रायः ऐसे मामले पैसा देकर सेटल हो जाते हैं। बिशप एकाउंटेबिलिटी नामक संस्था ने हिसाब लगाया कि 2012 तक तीन अरब डॉलर यानि कि सवा दो सौ अरब रुपये के हर्जाने यौन पीड़ितों को चर्च द्वारा दे कर मामले यौनशोषण के सुलझा लिए। जेल-वेल कुछ नहीं। बेचारे 6 चर्च तो मामले सेटल करते दिवालिये हो गए। मायने, करे कोई और भरे कोई।
2006 में BBC ने एक डाक्यूमेंट्री SEX CRIME AND THE VETICAN दिखाई। इससे पूर्व 2002 में THE MAGDALENE SISTERS फ़िल्म में भी चर्च के कुकर्म दिखाए। कुल मिला कर विदेश में 20 ऐसी फिल्में या डॉक्युमेंट्रीज़ प्रदर्शित हो चुकी है, पर शर्म तुमको मगर नहीं आती। कुकर्मी जस के तस।
सारी दुनिया में ही पादरियों के यौनशोषण के खिलाफ उठ रही है पर हमेशा चर्च द्वारा दबाने की कोशिश होती है। सन 2018 के शुरू में पोप फ्रांसिस ने पहले तो आरोप लगाने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया कि वे वेवजह ही फसा रहे है। अप्रैल आते आते जब जनता का दबाव बढ़ा तो इसे "त्रासदपूर्ण गलती" बताया। शोर और मचा तो अगस्त आते-आते "शर्म और दुख" प्रगट किया, लेकिन न तो कोई ठोस उपाय बताया न शोषितों की सहायता का रास्ता। बात महज बातों में ही रह गयी। अतः हम किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है परंतु धर्म के नाम पर कोई माफिया कुकर्म करे और सजा भी न पाए, इसका तो विरोध करना चाहिए। यही हमारा मंतव्य है।