Monday, October 29, 2018

ईसाइयत और ये सेक्स स्कैंडल

आज 21 अक्टूबर 2018 को जालन्धर के नन से रेप के आरोपी बिशप के खिलाफ एकमात्र गवाह पादरी की मौत हो गयी। देखने में ये साधारण सी खबर है पर वास्तव में ऐसा नहीं है। नन से रेप मामले में कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ मुख्य गवाह रहे चर्च के पादरी कुरीकोस  की मौत को उसके परिवारजन  कत्ल मानते हैं।  फादर के भाई ने यह भी बताया कि बिशप फ्रैंको मुलक्कल की जमानत रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
पर ऐसा लगता है मामला रफादफा हुआ कि हुआ। ऐसा क्यों? क्योंकि जिस प्रकार से पहले तो आरोपी को गिरफ्तार ही नहीं किया गया, फिर किया भी तो जल्दी जमानत मिली गयी। जमानत मिलते ही पुष्पवर्षा से स्वागत सत्कार किया गया है, और अब मुख्य गवाह भी दुनिया से विदा। सारे मामले में  एक गहरी साजिश की बू आती है। ट्विटर पर किसी ने उपहास किया " बापू जेल में, फादर बेल पे।
ऐसा पहले कई बार हो चुका है कि पादरी कितने ही कुकर्म करले, सरलता से पार हो जाते हैं। हिन्दू धार्मिक पाखंडी सलाखों में रहते हैं चाहे राम रहीम हो, आसाराम बापू हो या रामपाल हो, और बिल्कुल रहने भी चाहिए, यदि पापी हैं पर बचने कुकर्मी पादरी भी नहीं चाहिए।
आओ जरा एक 36 साल रही ईसाई नन की आत्मकथा देखें। केरल के ही त्रिशुर की सिस्टर जेस्मी की 2009 में लिखी  आत्मकथा पादरियों के कुकर्मों का भंडाफोड़ करती है "दी ऑटोबायोग्राफी ऑफ आ नन"। नन को पागल करार दे दिया और आरोपियों का बाल  भी बांका न हुआ। आओ जरा दुनिया का भी हाल जान लें।
आयरलैंड में ऐसे एक इन्क्वारी कमिशन ने तो पादरियोंके कुकर्मो को एकं 'महामारी' का दर्जा ही दे दिया। प्रायः ऐसे मामले पैसा देकर सेटल हो जाते हैं। बिशप एकाउंटेबिलिटी नामक संस्था ने हिसाब लगाया कि 2012 तक तीन अरब डॉलर यानि कि सवा दो सौ अरब रुपये के हर्जाने यौन पीड़ितों को चर्च द्वारा दे कर मामले यौनशोषण के सुलझा लिए।  जेल-वेल कुछ नहीं। बेचारे 6 चर्च तो मामले सेटल करते दिवालिये हो गए। मायने, करे कोई और भरे कोई।

2006 में BBC ने एक डाक्यूमेंट्री SEX CRIME AND THE VETICAN दिखाई। इससे पूर्व 2002 में THE MAGDALENE SISTERS फ़िल्म में भी चर्च के कुकर्म दिखाए। कुल मिला कर विदेश में 20 ऐसी फिल्में या डॉक्युमेंट्रीज़ प्रदर्शित हो चुकी है, पर शर्म तुमको मगर नहीं आती। कुकर्मी जस के तस।

सारी दुनिया में ही पादरियों के यौनशोषण के खिलाफ उठ रही है पर हमेशा चर्च द्वारा दबाने की कोशिश होती है। सन 2018 के शुरू में पोप फ्रांसिस ने पहले तो आरोप लगाने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया कि वे वेवजह ही फसा रहे है। अप्रैल आते आते जब जनता का दबाव बढ़ा तो इसे "त्रासदपूर्ण गलती" बताया। शोर और मचा तो अगस्त आते-आते "शर्म और दुख" प्रगट किया, लेकिन न तो कोई ठोस उपाय बताया न शोषितों की सहायता का रास्ता। बात महज बातों में ही रह गयी। अतः हम किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है परंतु धर्म के नाम पर कोई माफिया कुकर्म करे और सजा भी न पाए, इसका तो विरोध करना चाहिए। यही हमारा मंतव्य है।

Sunday, October 21, 2018

लाल किले से आज़ाद हिंद सेना का स्मरण व निहितार्थ

आज 21 अक्टूबर 2018 को आज़ाद हिंद फौज के 75 वर्ष मनाना कोई सामान्य बात नहीं है। आज लाल किले पर तिरंगा फहराकर श्री नरेन्द्र मोदी ने जो किया, इसे करने में देश 75 साल देरी कर गया और इस बीच 12 प्रधानमंत्री यह बिना किये सिधार या पधार गए। जिन कांग्रेसी-कामरेड गठजोड ने नेता जी सुभाष को 'तोज़ो का कुत्ता' कभी कहा था, उनके वैचारिक कुनबे के मुंह पर यह करारा थप्पड़ है। सुभाष बोस 1938 में राष्टीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, 1939 में बीमार होने पर स्ट्रेचर पर लाये गएऔर फिर भीअध्यक्ष चुने गए, लेकिन उन्हें जिन लोगों ने ज़लील कर त्यागपत्र देने को मजबूर किया, उस दुष्ट मंडली के वंशजों को सदा के लिए त्यागपत्र थमाने का आज दिन है।

आज याद करवा दें, जिस नेताजी पर श्याम बेनेगल ने फ़िल्म बनाई थी The Forgotten Hero, उस भूले-बिसरे हीरो को याद कराने का त्योहार है आज! लगे हाथ बताते चले कि नेता जी पर सात फिल्में और दर्जनों डॉक्यूमेंटरी बनाई गई थी।  फेसबुक-व्हाट्सअप की नई पीढ़ी क्या जानती है?  उसे याद कराना है। आज इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लेमेन्ट एटली के वो शब्द याद करने का दिन है कि "हमारे चुपचाप जल्दी भारत छोड़ने का कारण गांधी जी के आंदोलन नहीं, बल्कि सुभाष बोस के विदा होने के बाद भी उनकी प्रेरणा से चलने वाले सैनिक  और जलसेना के विद्रोह थे।" सोचिए आज़ादी किसने दिलवाई! मोदी जी ने आज देश को बढ़िया स्मरण करवाया कि सुभाष बाबू आज के दिन 1943 में देश के पहले प्रधानमंत्री घोषित हुए थे, अर्थात देश के प्रधानमंत्रियों का पहाड़ा नेहरू से नहीं, सुभाष से शुरू होता है। कि देश का निर्माण तभी होगा जब नेता जी का उद्घोष याद करेंगे "तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आज़ादी दूंगा"। न कि "तुम मुझे वोट दिलाओ, मैं तुम्हे देश लूटने व भ्रष्टाचार की आज़ादी दूंगा" जैसा कि जीप कांड से बोफ़ोर तक चलता रहा। आज़ाद हिंद सेना का 80 किलो सोना और उस वक्त के 5.5 करोड रुपये जो नेताजी के विमान जलने के बाद गबन करने के आरोपी था श्री अय्यर। उसको ही पंच वर्षीय योजना का सलाहकार नियुक्त किया था कांग्रेस सरकार ने। आज याद करें जीप कांड नहीं, ये पहला घोटाला कांग्रेस का था।

नेता जी का आज लालकिले पर स्मरण करना उस दुष्प्रचार की धज्जियां उड़ाता है कि 'आजादी बिना खड़ग बिना धार' मिली। बल्कि दीपक जतोई का शाखा वाला गीत भी आज दोहराना है "अमर शहीदां ने सिर देकेे, बन्निय मुढ कहानी दा, आज़ादी है असल नतीजा वीरां दी कुर्बानी दा।" बेशक गांधी जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, और न कभी भुलाना चाहिए। परंतु हज़ारो क्रांतिकारियों को नजरअंदाज करने का पाप, जो अब तक सरकारों से होता रहा, उसके पश्चाताप का भी आज मौका है। इस देश का असली सत्य है कि हमारे "हाथ मे माला भी है, खंडा भी है, रूह में नानक भी है, बंदा भी है।" सभी देवी देवताओं के हाथ मे शस्त्र भी, शास्त्र भी दोनों रहते है। सुभाष बोस उसी परम्परा के प्रतीक हैं। आओ एक बार बोलें "सुभाष बोस अमर रहे, अमर रहे, अमर रहे। जय हिंद।