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डेटा चोरी पर लेख
मुखपृष्ठरविवारीय स्तम्भ
चर्चा: डाटा के तूफान में हमारी निजता
फेसबुक डाटा चोरी की घटना ने सबकी नींद उड़ा दी है। इससे न केवल फेसबुक की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आ गई है, बल्कि डाटा पर निर्भर होती जा रही दुनिया भी सांसत में है। यह संकट सीधे-सीधे निजता के सवाल से जुड़ा है। हमारे बारे में जो जानकारी जिसके पास भी है, उसका इस्तेमाल कौन, कब, कहां कर रहा है, कोई नहीं जानता। फेसबुक विवाद से इस बात का खुलासा होता है कि अपने विस्तार के लिए बाजार और वोटों के लिए राजनीति के खिलाड़ी कैसे डाटा का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप क्या सोचते हैं, राजनीति और उसे चलाने वालों के बारे में आपकी क्या धारणा है, आपकी पसंद और प्राथमिकताएं क्या हैं- सब तो डाटा के रूप में उन बड़े सर्वरों में बंद हैं, जो हमारी-आपकी पहुंच से बाहर हैं। ऐसे में सवाल है, क्या सोशल मीडिया के इस्तेमाल को निरापद बनाया जा सकता है? इसी पर केंद्रित है इस बार की चर्चा - संपादक
जनसत्ता
April 1, 2018 05:35 am
अभिषेक कुमार सिंह
दुनिया में एक ओर ‘डिलीट फेसबुक’ जैसे अभियानों ने जोर पकड़ लिया है, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग दुनिया भर में अखबारों में माफी के विज्ञापन छपवाते घूम रहे हैं, उनकी दशकों की कमाई एक झटके में स्वाहा होने के करीब पहुंच गई है, तो हमारे देश में यह सवाल जोर पकड़ चुका है कि आखिर हमारी ऐसी कौन-सी जानकारी इन चीजों के जरिए लीक हो गई, जो इतना बड़ा तूफान उठ खड़ा हुआ है। फेसबुक पर मुख्य आरोप अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में आम लोगों की मानसिक पड़ताल कर उनके दिलोदिमाग पर असर डालने वाले विज्ञापन तैयार करने में मदद मुहैया कराने का है। उसने (फेसबुक ने) अपने मंच पर मौजूद अमेरिकी नागरिकों का सारा डाटा ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी को बेचा, जिसने उसकी पड़ताल से ट्रंप के चुनावी अभियान में मददगार कैंपेन तैयार की। इस प्रक्रिया में सिर्फ निजी जानकारियों से जुड़े डाटा (जैसे कि उम्र, निवास स्थान, दोस्तों की सूची, हर चीज की पसंद-नापसंद, राजनीतिक रुझान आदि) को लीक ही नहीं किया गया, बल्कि फेसबुक के माध्यम से कई अजीबोगरीब मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाते हुए लोगों के मन को पढ़ने की कोशिश की गई। जैसे, पिछले जन्म में आप क्या थे या दाढ़ी-मूंछ लगाने से आप कैसे दिखेंगे।
2. आमतौर पर ऐसे सर्वेक्षण और सामान्य निजी जानकारियों की लीकेज से लोगों को कोई ज्यादा चिंता तब तक नहीं होती, जब तक कि उनका कोई आपराधिक इस्तेमाल न किया गया हो। जैसे, बैंक खाते या क्रेडिट-डेबिट कार्ड से रकम उड़ाना या किसी व्यक्ति की बेहद निजी जानकारियों को पैसे, किसी शोषण या बदले की भावना से सार्वजनिक करना। इनके अलावा आमतौर पर सामान्य निजी सूचनाओं के दूसरों के हाथों में पड़ जाने से कोई भारी खतरा महसूस नहीं होता।
3. लेकिन जब बात देश की सत्ता बदलने की हो और यह मालूम पड़े कि इन निजी सूचनाओं और अजीब मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के बल पर हमारा मन पढ़ लिया गया और हमारी मानसिक स्थिति पर असर डालने वाले विज्ञापन या अभियान चलाए गए, तो इस पर चौंकना लाजिमी है। इससे साबित होता है कि कैसे हमारी निजी जानकारियों का इस्तेमाल सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों को प्रभावकारी ढंग से बदलने में किया जा सकता है। सरकारें बनाने-बिगाड़ने जैसे महत्त्वपूर्ण काम में सोशल मीडिया के माध्यम से किस तरीके से धांधली हो सकती है, यह सोच कर दुनिया का हिल जाना स्वाभाविक है। अब तो यह भी दावा किया जा रहा है कि ब्रेग्जिट के मतदान में भी इसी तरह से लोगों को प्रभावित किया गया होगा।
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जिस तरह से हमारा बहुत-सा कामकाज डिजिटल सुविधाओं के हवाले हो गया है, उसमें सेवा प्रदाता कंपनियों और उपयोगकर्ताओं की निजी जानकारियों के बीच कोई ज्यादा दूरी नहीं रह गई है। खासतौर से फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम जैसी डिजिटल कंपनियां हमारे बारे में और हमारी प्रत्येक गतिविधि के बारे में शायद हमसे ज्यादा जानने लगी हैं। हम कितने बजे घर से दफ्तर आते-जाते हैं, किन जगहों पर खाते-पीते हैं, रास्ते में ट्रैफिक जाम है या नहीं, हमारे दोस्तों के जन्मदिन कब-कब हैं- सवाल है कि क्या इनके बारे में फेसबुक-गूगल को जानने की जरूरत है। कई बार हमें यह बहुत सुविधाजनक लगता है कि फेसबुक और गूगल को हमारे सारे परिचितों के जन्मदिन से लेकर सारे डिटेल मालूम हैं, क्योंकि याद नहीं आने पर हम उन जानकारियों को फेसबुक आदि से आसानी से हासिल कर लेते हैं। पर उसी वक्त ये डिजिटल प्रबंध हमें कुछ विज्ञापनों के जरिये यह भी बताते दिखते हैं कि हमें जन्मदिन के लिए किसके लिए क्या खरीदना चाहिए। अभी तो सवाल सिर्फ यह उठ रहा है कि फेसबुक ने क्यों आम लोगों की जानकारियां गैरकानूनी ढंग से हासिल कीं और उन्हें किसी और को बेच दीं। लेकिन जब सवाल हमारी निजता का उठेगा तो मामला और पेचीदा हो जाएगा, क्योंकि निजी सूचनाओं तक पहुंच के सारे अधिकार तो लोग पहले ही डिजिटल कंपनियों के हवाले कर चुके हैं।
4. इंटरनेट के माध्यम से दिमाग पर नियंत्रण की शुरुआत शायद यहीं से होती है। यही वजह है कि आज से चार साल पहले यूरोप के डाटा संरक्षण कानून की धारा-17 की तरह 2014 में ब्रूसेल्स की एक अदालत ने व्यवस्था दी थी कि किसी भी व्यक्ति या संस्था को इंटरनेट पर प्रसारित अपनी जानकारियों, छवियों (डाटा और फोटो) पर नियंत्रण का पूरा अधिकार है। इस अधिकार के तहत किसी भी सर्च इंजन या डिजिटल कंपनी से ये चीजें हटाने के लिए कहा जा सकता है। असल में मामला व्यक्तियों और किसी भी संस्था की डिटिजल निशानियां हटाने से संबंधित है जो कई बार उनकी जानकारी में और कई बार बिना उनके संज्ञान में लाए इंटरनेट पर प्रसारित होती रहती हैं। इंटरनेट के सर्च इंजन से कुछ भी खोज लेने के इस युग में सूचनाओं और छवियों के बिना नियंत्रण के ऐसे प्रसार का सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं और बच्चों को हो रहा है। जहां कई महिलाएं इस बात से परेशान हैं कि उनका कोई बेहद निजी फोटो आखिर कैसे उनके पूरे नाम-पते के साथ इंटरनेट पर आ जाता है, वहीं बच्चों को इन वजहों से पोर्नोग्राफी के दलदल में घसीटने की कोशिशें होती हैं।
हालांकि वेब यानी इंटरनेट से लोगों व संस्थाओं की निजी सूचनाएं हटाने का हक देने संबंधी ऐसी व्यवस्थाओं का विरोध भी होता रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। साथ ही, वे सभी जानकारियां जो आम लोगों तक पहुंचनी चाहिए, उन्हें सरकार द्वारा रोक लिए जाने का अंदेशा पैदा होता है। ऐसे मामलों की पेचीदगी यह है कि ऐसी सूचनाओं और तस्वीरों के प्रकाशन से अगर माना जाए कि कानून टूट रहे हैं, तो यह तय नहीं हो पाता है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है। वह व्यक्ति जिसने ऐसे फोटो या सूचनाएं वेबसाइट पर डालीं या फिर वे डिजिटल कंपनियां, जो उनके जरिये पैसा बनाने के लिए तमाम तरह के खेल कर रही हैं। कई बार ऐसी घटनाओं और लोगों का पता लगाना और उन्हें दंडित करना काफी जटिल होता है। यदि मामला दूसरे देशों के इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं से जुड़ा हो, तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है।
कुछ देशों में वेबसाइट के मालिकों और होस्ट करने वाली कंपनियों को कानूनी संरक्षण भी मिला हुआ है। जैसे अमेरिकी कानून- कम्युनिकेशंस डिसेंसी एक्ट की धारा एस-230- के तहत वेबसाइट संचालक और होस्ट करने वाली कंपनी को किसी अनजान इंटरनेट प्रयोगकर्ता द्वारा डाली गई सूचनाओं-तस्वीरों के मामलों में पर्याप्त संरक्षण दिया गया है, यानी इसके लिए गूगल जैसे सर्च इंजन दोषी नहीं माने जाते। यही वजह है कि फेसबुक या यूट्यूब अपनी वेबसाइटों पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री की जिम्मेदारी से बाहर रहते हैं। इसलिए निजी तस्वीरों के पोर्न वेबसाइटों पर प्रकाशन की स्थिति में वहां लोगों को यह साबित करना पड़ता है कि मामला या तो चाइल्ड पोर्नोग्राफी के तहत आता है या फिर वह प्राइवेसी एक्ट यानी निजता के कानून के उल्लंघन का मामला है। असल में, अब इसकी जरूरत उठ खड़ी हुई है कि सरकारें यह तय करें कि खासतौर से इंटरनेट के मामले में कहां और कैसी निजता की जरूरत बनती है। आम नागरिकों के संदर्भ में अब यह बताना जरूरी हो गया है कि निजता का हमारे लिए आखिर क्या मतलब है?
IPR, DHANPAT RAM JI
Working Paper for Discussion at the Nagpur Congruence of the Think Tank of SJM on basic understanding on the legal and economic implications of IPR,
Opportunities and Challenges
1. Intellectual Property (IP) refers to the creative power of the human brain and is manifested in different work of Art, literary work, and scientific invention and is ultimately converged into Intellectual Property Rights (IPR) such as Copy Right, Trade Mark, Industrial Design, Patent and various other similar legal rights.
2. In the present Knowledge Era when the global economy is driven by the forces of knowledge and technology, almost 80 per cent of the global wealth is in the form of Intellectual Property or the Intangible assets.
2. INNOVATION & technology:.
The word innovation occupies the maximum space in all important discussion in all meetings and conferences around the world. There is a direct correlation between innovation and intellectual property. Though the invention takes place in a scientific laboratory but the innovation takes place in a factory or in a business environment at market place and many a time the innovator is not an inventor as is known in the case of Steve Jobs the founder and CEO of Apple iPhone who was not a scientist and there are many such examples. However technology and innovation move hand in hand. There cannot be innovation in true sense without continuous invention and therefore today the business survives on the competitiveness of the technology to meet the growing and changing demands of the customers.
3. TRIPS,WTO AND IPR;
The subject of IPR has gained relevance and importance in the past two decades since after signing of the TRIPs Agreement under the overall legal framework of the World Trade Organization (WTO) which came into effect from 01.01.1995. According to the TRIPs Agreement there are seven types of IPR for which each member country of the WTO have to comply with the obligations for protection and enforcement of the intellectual property imbedded in the technology or any other kind of products used or manufactured or dealt in the respective country. The stated purpose and objective is to exploit the full commercial value of the related intellectual property and to prevent the piracy and counterfeiting of the same.
4. REAL INTENTION IS MONOPOLY:
However the underlying objective is also to enjoy monopoly and extract maximum profit in the form of royalty or technical fees and thereby to dominate the business and the market at global level. Sometimes it also leads to encroachment upon the economic sovereignty of the other member country of the WTO.
5. PRESENT ISSUES:
Nowadays USA and few other European Countries are also trying to ask for some more rights on IPR which are known as TRIPs Plus as imbibed in Transpacific Partnership (TPP) and the same will be dealt with at later stage of this article/booklet.
6. BESIDES TRIPS: However apart from TRIPs, there are several international conventions which also govern the IPR Rules since long even prior to signing of the TRIPs agreement. Some of the International Conventions are enumerated as below for general understanding of the readers.
A. PARIS CONVENTION FOR PROTECTION OF INDUSTRIAL PROPERTY:
Paris convention may be defined as one of the first treaties for the protection of Intellectual property Rights. It was signed on March 20, 1883 in Paris basically for the protection of industrial property.
B. BERNE CONVENTION FOR THE PROTECTION OF LITERARY AND ARTISTIC WORKS, 1886.
Berne Convention for the Protection of Literary and Artistic Works was the first multilateral convention on copyright adopted in 1886.
3. WIPO COPYRIGHT TREATY (WCT) OF 1996.
After adoption of the TRIPS Agreement, it was realized that not all problems posed by the growing use of Digital Technology especially the Internet were addressed. In order to fill this gap, the WIPO Diplomatic Conference on Certain Copyright and neighboring Right Questions adopted the WIPO Copyright Treaty in 1996.
D. There are about 36 such international conventions on different issues of copy Rights, Trade Mark, Industrial Design and on other IPRs.
7. SEVEN TYPES OF IPRs:
Different kinds of IPRs:
IPR have been categorized mainly into seven (7) kinds under the TRIPS agreement (Agreement on Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights under WTO). All these IPRs are governed by separate statute in India except for Trade Secrete. These are as below:
1) Copyrights, Covering artistic work like, painting, sculpture, Cinematographic films, Computer programs dramatic work etc. It is regulated by the Copyright Act, 1957. This is monitored by Ministry of Human Resource Development, Govt. of India
2) Patents – Covering scientific and technologies inventories. It is regulated by the Patent Act, 1970. This is under Ministry of Commerce, Department of Industrial Policy and promotion (DIPP)
3) Trademarks – Covering Brand goodwill Trade Name etc. It is regulated by the Trade Marks Act, 1999. This is under Ministry of Commerce, Department of Industrial Policy and promotion (DIPP)
4) Geographical Indications – Covering a name or sign used on certain products which corresponds to a specific geographical location or origin such as Darjeeling Tea, AlphansoMango, Kolhapuri Chappal, Agra Petha and many others. It may be agricultural produce or a natural produce or a manufactured goods of a particular territory. It is regulated by the Geographical Indications Act, 1999. The office for registration is in Chennai but is regulated by DIPP, Ministry of Commerce, Govt. of India.
5) Integrated Circuits and Design Layouts - It covers micro cheap or electronic circuits used in Semi Conductor materials in Computer hardware and other electronic gadgets. It is regulated by the Semi-Conductor Integrated Circuits Layout Designs Act 2000. This is under Ministry of Information Technology, Govt. of India.
6) Industrial Designs - It covers shape, pattern and outer layout of any article which has an aesthetic value. This is under Ministry of Commerce, Department of Industrial Policy and promotion (DIPP)
7) Confidential or Undisclosed Information (Trade secrets) - It is largely covered under the Indian Contract Act so far but the Government is thinking of bringing a specific law to govern trade secrets as many other countries like USA already has a legislation for it.
8. Other IPRs YET TO BE RECOGNIZED BY WTO:
However there are few other types of IPRs which are yet to be recognized by the TRIPs but for which negotiations are going on at various levels of WTO. These are in respect of Bio-diversity,Traditional knowledge and folklore, plant variety and farmers rights etc. Government of India has already legislated Biological Diversity Act 2002 and Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Act 2001. Prior approval of National Biodiversity Authority (NBA) is required before making an application for getting any kind of IPR based on any research or information on a biological resource obtained from India. In case of plant varieties it is important to provide an effective system of protection with an aim to encourage the development of new varieties of plants for the agriculture, horticulture and forestry also known as sui generis form of intellectual property rights. The international convention on biodiversity is CBD or the Convention on Biodiversity and the one for the Plant Varity is UPOV or Union for protection of new varieties of plant.
9. PERIOD OF PATENTS:
All the different IPRs as stated above have a limited period of legal right as below:-
The Legal life or duration of Different IPRs
Patent
The term of patent is 20 years from the date of filing of patent application in general. The owner of the patent has a right to prevent others to use the patented technology without is permission. However he may grant a license to use it either on payment of royalty or technical fees or the license fees. Sometimes the technology may become obsolete and the legal life of the patent may become irrelevant and therefore in order to have an effective economic life of the invented technology especially in today’s era of innovation, there is a need for continuous improvement of technology through research and invention.
Copyright
The term of the copyright is generally the life of the authors plus 60 years (Sixty) after his death and it may vary with respect to different copyrighted works
Trademark
A registered trademark is valid for a period of ten years from the date of registration which could be renewed before the expiry of the validity. Non- renewal of a registered trade mark results in the removal of the trade mark from the register of trademarks. The renewal can be done for another period of ten years for any number of times. Thus with continuous renewals the trade mark may have an infinite right which is not so for any other kind of IPR. This is on the logic that the brand or the goodwill keep increasing with the age of the continued credibility of and support of the customers.
Geographical Indication (GI).
A registered GI provides protection for a period of 10 years from the date of registration which can be continued for an unlimited period by renewing it from time to time. This is similar to trade mark rights but the only major difference is that no individual or firm can be the owner and only the related community in that particular territory can alone hold rights over it.
Industrial design.
The total time of a registered design is 15 years. Initially the right is granted for a period of 10 years, which can be extended by another 5 years and no further renewals are granted.
Integrated Circuit and layout design.
The term of protection provided by a registered layout design is 10 years from the date of filing.There is no provision for renewals.
10. Difference between IP and IPR:
IP stands for intellectual property. There are various laws governing protection of IP for literary work or invention and once this protection is granted through proper registration of the patent or copyrights, trademark, design etc., IP become IPR or the Intellectual Property Rights which entitles the owner of respective IP to enforce the same against the infringement.
11. Different Important Aspects of IPR for an effective IP Eco System:
In order to have an effective IP Eco System one has to take a holistic view of all different stages of an intellectual property. The very first stage is creation of an intellectual property whether it is a subject matter of copy right or a patent right. The moment an invention takes place one has to look for its protection under the respective IPR law which in this case is the Indian Patent Act 1970. In order to get a valid patent, one has to satisfy the three legal criteria i.e. (i) Novelty, (ii) Inventiveness or non-obviousness and (iii) Industrial Utility or application.
12. Examples:
It may be noted that the Indian Patent Authorities refused to grant patent to Novartis of Switzerland for their cancer drug Glivek on the ground of novelty u/s 3d of the Indian patent Act as there was an attempt for evergreening of the patent right. The Honorable Supreme Court of India also upheld the decision of the Controller General of India for such refusal of the patent.
B. Section 3 of the Indian Patent Act prescribes that certain inventions are not patentable. Section 3(d) is one of such enabling provision whereby frivolous patents in case of pharmaceuticals which lacks increased efficacy for a known substance are not allowed.
C. Similarly patents are not allowed
for living plants and animals, seeds, Computer Software, traditional knowledge etc. Further no patent is allowed for an invention relating to atomic energy, falling within sub-section (1) of Section 20 of the Atomic Energy Act, 1962.
12. BENEFITS IF IPR AWARENESSES:
A. The creation of IP or intellectual property depends on the level of awareness in the country on IPR and the amount of money spent on research and development.
B. In India almost 80 per cent of the research takes place at Government laboratories and private sector has a very abhorrent or indifferent view on conducting research for invention of new technology.
C. Almost 80 per cent of the patent applications filed in India are by Multi-National Corporations (MNCs). There is therefore a need for increase in research spending by private sector in order to stay competitive.
D. There is also need for creating awareness about registration of patent for invention especially by the small scale industries. A recent study shows that 90% of the inventions at global levels take place at micro and small enterprises which do not apply for patent due to several legal hurdles and due to lack of knowledge.
12. Practical points:
Therefore in order to have an effective IP eco systems the below mentioned five areas need to be strengthened for the indigenous technology.
(i) Creation of IP by encouraging research and development (ii) Protection of IPR, (iii) Enforcement of IPR, (iv) Commercialization of IPR, and last but not the least (v) Awareness of IPR at all levels of the organisation.
13. SILENT FEATURES:
Intellectual Property as an Intangible asset
In today’s knowledge based economy intellectual property is considered as an intangible asset. Payments made for acquisition of technology, brands and technical knowhow are recognized as part of the business assets which brings benefits to the business for several years and also adds value to the profit of the business. There is need for proper identification and proper accounting and valuation of IP assets in the organization. B.Intangible assets are transferrable from one hand to another and are also subject to stamp duty, Vat, service tax, custom duty, income tax on different types of IP related transactions. In the Balance sheet of a company it is shown as a separate item under the head fixed assets just like land, building, plant and machineries and are allowed depreciation under the income tax act. IP as an asset can also be mortgaged and the royalty income or the regular license fees can also be securitized for obtaining loan and other financial facilities from the banks.
C. Nowadays the companies are also subject to several risks for likely infringement for known or unknown use of others IP rights and sometimes are subject to pay damages and compensation and also look for IP insurance to cover the risk arising out of litigations.
D. In view of growing complexities of laws and in order to stay competitive in business there is need to develop IP policy and IP strategy and to have effective IP management. Most of the knowledge based companies have a separate department for managing their IP and most of the research institutions have a technology transfer offices or the TTO which enable commercialization for optimizing and leveraging the IP assets in effective manner.
E. IP today has changed the concept of R&D as a profit center from the early concept of cost center.
F. However one must maintain a tradeoff between the profit maximization and the social welfare and between risk and reward. Development should not be at the cost of society and the environment.
14. The Contentious Issues on IPR and TRIPS.
The issues concerning Intellectual Property Rights are always sensitive, serious and to a large extent controversial and contentious due to conflict of national interest of each member country in the WTO. When the issue of IPR was first brought in through Uruguay Round and DunkelProposal (1986-1993) in the form of Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPs), the developing countries had expressed their concern about its non-relevance to the international trade which largely deals with movement of goods and services. However, despite résistance from the developing countries the developed countries who were under the pressure from big pharmaceutical Companies, the TRIPs agreement was introduced as a matter of commercial diplomacy.
G. The developing countries had to amend their respective patent laws in order to grant product patent to pharmaceutical industries from 01.01.2005.
H. It may be noted that the WTO primarily deals with three issues namely (i) Movement of Goods, (ii) Movement of Services, and (iii) Trade Related aspects of Intellectual Property Rights (TRIPs).
15. INDIAN SCENERIO:.
The Indian Government has amended its Patent Act, 1970 by deleting section 5 to enable product patent along with process patent for food, medicines and drugs and thereby bringing the Indian Patent law in full compliance with the TRIPS requirement.
A. In order to prevent frivolous inventions from being patented as ever greening and for safeguarding the national interests especially in the area of public health, Section 3(d) was introduced which inter- alia lays down certain restrictions and criteria such as enhancement of the known efficacy for medicines and pharmaceutical substances. In one of such case, the Controller General of India refused to grant patent to Novartis of Switzerland for their cancer drug Glivek on the ground of novelty and the Honorable Supreme Court of India also upheld the decision of the Controller General of India for such refusal of the patent.
EXAMPLE 2 OF NATCO: In another different instance the Controller General of Patent issued a compulsory license to Natco Pharma of India for a cancer drug “Nexavar” which was patented by Bayer Corporation of Germany. Natco is a reputed Indian drug manufacturing company and was denied a license by Bayer corporation and as a result the Controller General of India granted compulsory license to Natco to manufacture Nexavar in pursuance of section 84(1) (a), (b) and (c) of the Indian Patent Act. Today Natco is supplying the drug to cancer patients at a cost of below Rs. 10,000 per month as against the exorbitant cost of approximately Rs. 3,00,000 per month charged by Bayer corporation and this has brought substantial relief to Indian cancer patients.
C. REACTION OF TWO AMENDMENTS:
The above two provisions in the Indian Patent Act regarding Novelty under section 3(d) and for compulsory licensing under section 84 has bought undesired controversies by the big Pharmacompanies in the developed countries. The USA has published the Special 301 Report for the year 2014 on 30th April, 2014 which classifies India as a “Priority Watch List Country” mainly on the ground of provision of section 3(d) and for issue of compulsory licenses under section 84 of the Indian Patent Act. The Special 301 process is a unilateral measure taken by USA under The Trade Act 1974, to create pressure on countries like India to provide IPR protection beyond TRIPS agreement. It is an extra territorial law of the USA and is not tenable under the overall WTO regime.
D. It is also a matter of fact that no WTO member countries have so far brought any dispute for any alleged violation of the TRIPS agreement by India. In such a situation the extra territorial pressure from USA is undesired and has been objected by the Government of India.
E.Meanwhile, the Government of India is in the process of finalizing its National Intellectual Property Rights policy and a draft had been submitted by the task force on the 24th December 2014. A joint working group is also appointed by the Government of India and United States to look into the working of the Intellectual Property laws of the country.
E. It is a matter of utmost surprise that in a meeting held by the TRIPS Council in the first week of June 2015 at Geneva, United States and Switzerland had tried to invoke the provisions of ‘Non Violation Complains’ stipulated under article XXIII (1b) and (1c) of GATT 1994 read with Article 64.2 of TRIPS agreement. The said proposal had been strongly opposed by India, Brazil and other 17 countries on the ground that the said Non Violation Complain is neither relevant nor legitimate in case of TRIPS agreement for which a moratorium is in force. The said Non Violation Complain is applicable only in a limited manner to movement of goods and services alone and does not apply to issues relating to Intellectual Property Rights under the TRIPS agreement. The illicit proposal of United States and Switzerland was very much visible at the10th Ministerial Conference in Nairobi on 15-18 December 2015, which has adopted a working programmed on “Non-Violence Complain” which is likely to be incorporated as part of the Draft 11th Ministerial Conference in 2017.
E. We should strongly protest the same with advance preparation and through awareness program. The National IPR policy should be drafted in overall national interest keeping in view the above contention issues in mind. It may be noted that the Indian Patent Act is in due compliance of Article 27 for grant of Patents and Article 31 for grant of Compulsory License as contained inthe TRIPs Agreement of the WTO and by using the flexibilities allowed as per the spirits of Article 30 of the TRIPS.
F. There are few other areas where the western countries and especially USA has objection to our IPR regime with regards to Pre-grant opposition rights granted in pursuance of section 25 of our Patent act and the rights granted for use of the clinical data for manufacturing generic drugs which is in full compliance with the provisions of Article 39.3 of the TRIPS and hence there is no violation for data exclusivity under our Patent laws and Govt. of India should not compromise on any of these issues which are of prime importance for the public health and social security. One also need to bear in mind that the limited disclosure of preclinical data by the regulating authorities to the generic companies is very much in compliance with the Bolar exceptions as enshrined in the Hatch-Waxman Act of USA in order to avoid the repetition of the preclinical research and also to produce generic medicine in the market with due approval of the regulating authorities immediately after the expiry of the patent of the innovative drugs which has a large advantage to the poor patients and also to the government which provide free medical facilities to its citizen.
G. USA is trying to find a way out for the flexibilities granted under the TRIPS agreement by entering into free trade agreements and regional trade agreements such as the recent transpacific partnership (TPP) between United States and several other Asian countries. USA is afraid that many other countries may adopt India and change their Patent Law in line with section 3d and thereby challenge the hegemony of the Big Pharma companies. The major emphasis of the TPP is on IPR rules than the trade rules although the avowed objectives of any trade agreement are international trade in goods and services and not the IPR alone.
H. However USA itself is now rethinking on agreeing to the terms of TPP as there are adverse views in US congress about free trade and its impact on US trade deficit. Multilateralism in any case needs to prevail upon bilateralism or the plurilateralism or even the unilateralism. The present society cannot afford the unipolar world and India needs to provide effective leadership to the global community for free and fair trade.
15.Opportunities and Challenges of IPR:
A country may have huge amount of human resource but the same requires proper education and training in the field of science and technology to convert the same into knowledge resource or the intellectual resource. This requires establishment of educational institution, research and development. However, mere research of inventions and technology by itself is not enough as the same needs to be legally protected by complying with due process of registration for its protection and its full exploitation through the process of innovation process management.
I. In this way, we find that there are certain in-built gaps between Human resource and Intellectual resource on the one hand and invention-innovation gap on the other hand. There is a need to fill these gaps in order to generate an optimum economic value of the Intellectual property rights in the present globalized knowledge based economy.
16. DATA IN FINANCES:
It may be pertinent to note that the money spent on Research at global level is about USD 1.4 trillion with about 31.1 % contribution by US alone and another about 24.1 % by Europe with a very meager share of India which in fact is much lower than China.
B. A broader analysis of the developed nations specially United states and Western Europe reveals that these nations have been successful in meeting the aforesaid gaps and have been able to generate good amount of revenue from copyrights, brands and technologies which are contributing enormously to their national income. In, United States alone, almost USD 5.06 trillion, accounting for about 34.8 % of its GDP in 2010 came from Intellectual property intensive industries and generated 40 million jobs which are 27.7 percent of all jobs in U.S. When we compare this figure with India’s GDP, which is about USD 1.8 trillion, we find a very gloomy picture. India’s national income from all different resources comprising manufacturing, agriculture and service sector put together is less than one third of United States’ income from IPR resources alone. This should be one of the important lesson and also a challenge for a nation like India with a population of 1.3 billion people which is more than four times that of United states population of about 300 million people, but has not been able to look at the primary need of converting its huge Human resource into an Intellectual resource, even though India has declared the present decade as the decade of innovation, which appears to be superficial.
If India is to become an economic power as per its vision document 2020, it has to increase its R&D activity from the present level of USD 40 billion per year, to at least USD 100 billion annually and should give more emphasis on creativity and innovation in order to increase the total factor productivity in all sphere of its economic activities including agriculture, manufacturing and services. Conversely it may, otherwise remain confined to only marginally successful in its food security through agriculture; generate some marginal employment through its manufacturing and earn some marginal foreign exchange earnings from export of services from semi- skilled outsourcing jobs. It cannot become an economic power with an improved standard of living for its people by sharing adequate portion of global income in proportion to its population in the global economic map.
Merchandise exports of IP-intensive industries totaled $775 billion in 2010, accounting for 60.7 percent of total U.S. merchandise exports. The aforesaid statistics wholly manifest that the developed countries especially U.S. is concentrating its focus on IP-intensive industries which come from innovation, technology and creativity.
However, when we look at China, we find that, it has been able to increase its IPR power by filing the highest number of patent applications as on December 2011, as is evident from the following two charts. It is a matter of fact that the mushrooming of IPR filing in China is due to increased number of utility patents. India also need to adopt utility model to increase grassroots innovation in the country.
C. The role of IPR in knowledge based economy:
Ideas and technologies are two ingredients of a knowledge-based economy and in the present globalized knowledge based economy; research and innovation are the twin engines of competitiveness, means for economic growth and success.
We may better understand the positive impact of application of IPR in a business model followed by Philips by shifting its manufacturing locations in different countries with low wages through technology transfer. Before 1985, Philips’ business model was based on investments on R&D, the resultant R&D outputs were converted to products that were manufactured, marketed and sold resulting in return on investments. The company increased its patent portfolio from around 877 in the year 1993 to around 3144 in the year 2002 which has been increasing consistently. This has helped the company to increase its turnover as well as net profit tremendously.
D. IPR Regime and Economic Development
A nation’s innovation graph is highly affected by the IPR regime it follows. The IPR regime also affects the inflows of FDI, technology transfers and trade that might interrupt on the economic growth. Developed countries do have stronger IPRs regime than the developing countries that in turn affects the relationship between IPR protection and level of development which is basically non-linear which suggests that patent protection tends to reduce the economic strength and further moves beyond the poorest stage into a middle-income stage in which they are more efficient to reproduce new inventions. Therefore, there is no universally imposed minimum standard for patent protection which may contribute to increased growth in countries below a certain threshold level of economic development. However one must bear in mind the national interest at the top priority while implementing the IPR laws. Economic sovereignty should not be compromised.
E. IP as reliever to sick units:
Case study of JLR and Kodak film
It has been observed that many companies which have been facing financial difficulties due to global competition and for other reasons are able to find some relief and despite their net worth and operative results being negative, they have been able to come out of the difficulties by selling out their patents and other intellectual properties. One of such example was seen in the recent past when Ford motor sold its Jaguar and Land Rover (JLR) loss making manufacturing unit in UK to Tata motors of India at a fabulous price of USD 2.5 billion. We find a similar example from Kodak Film Company of Japan which has valued its 1100 patents to an estimated amount of US 2.6 billion, which may provide relief to its creditors. Indian Banks should look at his aspect which may enable them to realize money by capitalizing the IP assets of their defaulting borrowers and thereby to reduce their NPAs.
F. The link between R&D expenditures and IP in select countries
The below figure shows the R&D expenditure in percentage of GDP, compared to number of resident patent filings from 2001 to 2009
G. Share of GDP SPENT ON R&D:
The above graph reflects that Japan and Korea spend about 4 % of their respective GDP on R &D followed by U.S, EU and China with 3.5, 2.75 and 2 % of their respective GDP. However, the figure shows that the number of patents filed by Resident has sharply increased in China in the past few years. India on the other hand spends only about 0.9 per cent of its GDP on R&D.
Share in global R &D expenditure
Country
US
Europe
China
Japan
India
2007
34.3
25.9
9.5
13.5
2.0
2012
31.1
24.1
14.2
11.2
2.9
It is a fact as reveals from the above table that the global share of R & D has been increasing for both India and China, though the share of U.S and EU has been declining over the past five years, even if they remain the largest spenders in the R & D.
The growing importance of intangibles in the present knowledge economy
S&P 500 asset distributions:
Year
Tangible Assets (in %)
Intangible Assets (in %)
1978
95
5
1982
62
38
1992
38
62
1998
...
अनिद्रा और अवसाद
राजनीतिः अनिद्रा और अवसाद का बढ़ता खतरा
2. Change. org ear Kashmiri,
I am walking 4000 kilometres from Kanyakumari to Leh.
You must be wondering why?
I am walking for the 28 students we lose to suicide everyday. Which makes it ten thousand young lives a year!
।।।
अनिद्रा के कारण कई तरह की बीमारियां पनपती हैं और जीवन प्रत्याशा कम होने की भी संभावना बढ़ जाती है। नींद की अवधि और मृत्युदर के बीच संबंध पर किए गए सोलह अध्ययनों के एक विश्लेषण में पाया गया कि जो लोग रात सात से आठ घंटे सोते थे, उनकी तुलना में कम सोने वाले व्यक्तियों में मृत्यु का खतरा बारह प्रतिशत ज्यादा होता है।
जनसत्ता
April 7, 2018
अभिजीत मोहन
हाल में फिलिप्स वार्षिक वैश्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह तथ्य उद्घाटित हुआ कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद लेना आवश्यक है। दुनिया भर में तकरीबन दस करोड़ लोग अनिद्रा की बीमारी से ग्रसित हैं। दुनिया के तेरह देशों- अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, पोलैंड, फ्रांस, भारत, चीन, आस्ट्रेलिया, कोलंबिया, अर्जेंटीना, मैक्सिको, ब्राजील और जापान के पंद्रह हजार से अधिक वयस्कों पर किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि अस्सी प्रतिशत से अधिक लोग अनिद्रा बीमारी से अनभिज्ञ हैं, जबकि तीस प्रतिशत लोग नींद लेने और उसे बनाए रखने में दिक्कत महसूस करते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश की राजधानी दिल्ली में सड़सठ प्रतिशत, कोलकाता में साठ प्रतिशत, बंगलुरु में उनसठ प्रतिशत और चेन्नई में अट्ठावन प्रतिशत लोग अनिद्रा के शिकार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तकरीबन उन्नीस प्रतिशत वयस्कों ने स्वीकार किया है कि सामान्य नींद के समय के साथ काम के घंटों का अतिव्यापित होना अनिद्रा का एक प्रमुख कारण है। बत्तीस प्रतिशत वयस्कों ने स्वीकार किया है कि प्रौद्योगिकी भी एक प्रमुख नींद विकर्षण है।
आमतौर पर अनिद्रा नींद, सुस्ती और मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार होने की सामान्य अनुभूति को बढ़ाती है और मनोस्थिति में होने वाले बदलाव मसलन चिड़चिड़ापन और चिंता इसके सामान्य लक्षणों से जुड़े हैं। विशेषज्ञों की मानें तो अनिद्रा रोग दीर्घकालिक बीमारियां होने के जोखिम को बढ़ाता है। अमेरिका के राष्ट्रीय निद्रा फाउंडेशन के मुताबिक तीस-चालीस प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों का कहना है कि उनमें अनिद्रा के लक्षण हैं। चिकित्सकों का कहना है कि अनिद्रा के कारण कई तरह की बीमारियां पनपती हैं और जीवन प्रत्याशा कम होने की भी आशंका बढ़ जाती है। ‘
नींद की अवधि और मृत्युदर के बीच संबंध पर किए गए सोलह अध्ययनों के एक विश्लेषण में पाया गया कि जो लोग रात सात से आठ घंटे सोते थे, उनकी तुलना में कम सोने वाले व्यक्तियों में मृत्यु का खतरा बारह प्रतिशत ज्यादा होता है। हाल ही में एक अन्य अध्ययन में सतत निद्रा और मृत्यु दर के प्रभावों की जांच में पाया गया कि सतत अनिद्रा से ग्रसित लोगों की मौत का जोखिम संतानवे प्रतिशत अधिक होता है। अनिद्रा का दुष्परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में हीनता बढ़ती है और उसकी याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है। उसमें चिड़चिड़ापन इस हद तक बढ़ जाता है कि वह सामाजिक रूप से मिलना-जुलना बंद कर देता है। साथ ही थके होने और पर्याप्त नींद न लेने के कारण वाहन दुर्घटनाओं की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
भारत की बात करें तो यहां छियासठ प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि अनिद्रा के कारण उनका स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती प्रभावित होने के साथ-साथ मानसिक अवसाद बढ़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पहले ही खुलासा कर चुका है कि भारत में अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके कारणों में एक कारण अनिद्रा भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी शीर्षक ‘डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य मानसिक विकार-वैश्विक स्वास्थ्य आकलन’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत और चीन अवसाद से बुरी तरह प्रभावित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में मानसिक अवसाद से ग्रस्त लोगों की संख्या सर्वाधिक है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में पांच करोड़ सत्तर लाख, चीन में पांच करोड़ पचास लाख, बांग्लादेश में चौंसठ लाख, इंडोनेशिया में इक्यानवे लाख साठ हजार, म्यांमार में उन्नीस लाख, श्रीलंका में आठ लाख, थाइलैंड में अट्ठाईस लाख अस्सी हजार और आस्ट्रेलिया में तेरह लाख लोग अवसाद से ग्रस्त हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में अवसाद से प्रभावित लोगों की तादाद बत्तीस करोड़ से ज्यादा है, जिसमें पचास फीसद सिर्फ भारत और चीन में ही हैं।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में अवसाद के शिकार लोगों की संख्या में 2005 से 2015 के बीच साढ़े अठारह प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि अवसाद के अलावा भारत और चीन में चिंता भी बड़ी समस्या है। भारत एवं मध्यम आय वाले अन्य देशों में आत्महत्या के सबसे बड़े कारणों में चिंता भी एक बड़ा कारण है। रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में भारत में करीब चार करोड़ लोग चिंता की समस्या से ग्रसित हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अवसाद ज्यादा पाया गया है। देश में बढ़ते अवसाद को ध्यान में रख कर ही पिछले दिनों केंद्र सरकार ने संसद में मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक-2016 पर मुहर लगाई, जिसमें मानसिक अवसाद से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखरेख एवं सेवाएं प्रदान करने और ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण करने का प्रावधान किया गया है। चूंकि भारत अशक्त लोगों के अधिकारों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संधि का हस्ताक्षरकर्ता है, लिहाजा उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह इस प्रकार के प्रभावी कानून गढ़ने की दिशा में आगे बढ़े। भारत ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सामुदायिक स्तर पर अधिकतम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की रचनात्मक और स्वागतयोग्य पहल तेज कर दी है। इससे अवसाद पीड़ित मरीजों के अधिकारों की तो रक्षा होगी ही, साथ ही मानसिक रोग को नए सिरे से परिभाषित करने में भी मदद मिलेगी।
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो अवसाद मनोभावों संबंधी दुख है और इस अवस्था में कोई भी व्यक्ति स्वयं को लाचार व निराश महसूस करता है। इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति के लिए सुख, शांति, प्रसन्नता और सफलता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। वह निराशा, तनाव और अशांति के भंवर में फंस जाता है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अवसाद के लिए भौतिक कारक भी जिम्मेदार हैं। इनमें कुपोषण, आनुवंशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों से लंबे समय तक गुजरना जैसे कारण प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त अवसाद के नब्बे प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। अवसाद के लिए व्यक्ति की सोच की बुनावट और व्यक्तित्व भी काफी हद तक जिम्मेदार है। अवसाद अकसर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। यह एक प्रकार का रसायन होता है जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्य स्थापित करता है। इसकी कमी से शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण उभर आते हैं। फिर अवसादग्रस्त व्यक्ति फैसले कर पाने में कठिनाई महसूस करता है और उसमें आलस्य, अरुचि, चिड़चिड़ापन इत्यादि बढ़ जाता है और इसकी अधिकता के कारण कई बार रोगी आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेता है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है तो वह अवसाद से बाहर निकल सकता है। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर समय अवसाद छिपा हुआ रहता है क्योंकि इससे ग्रस्त व्यक्ति इस बारे में बात करने से हिचकता है। अवसाद से जुड़ी शर्म की भावना ही इसके इलाज में सबसे बड़ी बाधा है। पिछले कुछ समय से अवसाद से बाहर निकलने में योग की भूमिका प्रभावी सिद्ध हो रही है। योग को और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अवसाद के इलाज में कई किस्मों की मनोचिकित्सा भी मददगार सिद्ध हो रही है। लेकिन सबसे अधिक आवश्यकता अवसादग्रस्त लोगों के साथ घुल-मिलकर उनमें आत्मविश्वास पैदा करने की है। अगर अवसाद की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले दो सालों में अवसाद दुनिया में सबसे बड़ी मानसिक बीमारी का रूप धारण कर सकता है। अच्छी बात यह है कि दुनिया भर में सतहत्तर प्रतिशत लोगों ने अवसाद और बिगड़ते स्वास्थ्य से उबरने के लिए अपनी नींद में सुधार की कोशिश की है। भारत में पैंतालीस प्रतिशत वयस्कों ने ध्यान और योग करने की कोशिश की है, जबकि चौबीस प्रतिशत लोगों ने अच्छी नींद लेने और उसे बनाए रखने के लिए विशेष बिस्तर को अपनाया है। उचित होगा कि सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं कुछ इस तरह के कार्यक्रम गढ़ें जिनसे लोगों में अच्छी नींद के प्रति जागरूकता पैदा हो और वे संतुलित दिनचर्या के प्रति आकर्षित हों।
द
बैंक कर्जे के फ्रॉड
फंसे कर्ज का बढ़ता मर्ज, एक अच्छा लेख है जो कि जनसत्ता में छापा गया है:
https://www.jansatta.com/politics/opinion-about-pnb-scam-and-banking-crisis-npas-soared-profits-plunged-for-banks/620840/
मुखपृष्ठ/ राजनीति
राजनीतिः फंसे कर्ज का बढ़ता मर्ज
1. भले ही एनपीए का मर्ज बढ़ रहा है, लेकिन सरकार इसके समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने फंसे कर्ज के बोझ तले दबे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए पुनर्पूंजीकरण पैकेज के अलावा बैंकिंग क्षेत्र के लिए कई सुधारों की भी घोषणा की है। पुनर्पूंजीकरण पैकेज से कमजोर बैंकों को वैश्विक पूंजी पर्याप्तता की जरूरत सुनिश्चित करने के लिए धन मिलेगा। बैंकों में पूंजी निवेश से उन्हें नियामकीय जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी, जिससे बैंक ज्यादा कर्ज देने में भी सक्षम होंगे।

सतीश सिंह
April 4, 2018 03:1918
1. एक तरफ भारतीय बैंक पहले से ही फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ पंजाब नेशनल बैंक में हुए फर्जीवाड़े ने एनपीए की समस्या को और गंभीर बना दिया है, क्योंकि इस फर्जीवाड़े का आंशिक असर यूनियन बैंक आॅफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और ऐक्सिस बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि इन तीनों बैंकों ने पीएनबी द्वारा जारी किए गए एलओयू के आधार पर नीरव मोदी की कंपनियों को कर्ज दिया था। वैसे, जांच की प्रक्रिया के आगे बढ़ने पर फर्जीवाड़े की आंच कुछ और बैंकों पर भी पड़ सकती है। अगर पंजाब नेशनल बैंक में हुए फर्जीवाड़े की पूरी रकम एनपीए में तब्दील होती है तो बैंक की अनुमानित 480 अरब रुपए की हैसियत पर पच्चीस प्रतिशत तक का असर पड़ सकता है। हालांकि, फर्जीवाड़े वाले लेन-देन की प्रकृति आकस्मिक है। लिहाजा, जिस रकम की वास्तविक देनदारी बनेगी, उतना ही बैंक को अतिरिक्त प्रावधान करना होगा, जिससे चालू वित्तवर्ष की अंतिम तिमाही में बैंक की संपत्ति की गुणवत्ता उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होगी।
2. हालांकि बैंकिंग कारोबार में फर्जीवाड़े की घटनाएं, भारत ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी होती रहती हैं। वर्ष 2015 में बैंक आॅफ बड़ौदा में दिल्ली के दो कारोबारियों ने 6,000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की थी। वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच सरकारी बैंकों को विभिन्न बैंकिंग धोखाधड़ी के चलते कुल 227.43 अरब रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से संसद में हाल ही में कहा था कि बैंकिंग धोखाधड़ी के 25,600 से ज्यादा मामले दिसंबर, 2017 तक दर्ज हुए, जिसके जरिए 1.79 अरब रुपए की धोखाधड़ी की गई।
3. सच कहा जाए तो फर्जीवाड़े में बैंककर्मियों की संलिप्तता अकसर देखी जाती रही है। इसके अलावा भी बैंकों द्वारा परिचालन स्तर पर बैंक परिपत्रों तथा नियामकों के दिशा-निर्देशों की अनदेखी की जा रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में एनपीए के नियमों में संशोधन किया है, जिससे फंसे कर्ज का मर्ज और भी ज्यादा बढ़ सकता है।
नए नियमों की वजह से साठ से नब्बे दिनों तक के बकाया खाते एनपीए में तब्दील हो सकते हैं। रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2017 तक अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का फंसा कर्ज करीब 8 लाख करोड़ रुपए था और आगामी कुछ तिमाहियों में नए नियम के कारण लगभग 2.8 लाख करोड़ रुपए इसमें और भी जुड़ सकते हैं। साफ है, इससे फंसे कर्ज के लिए ज्यादा प्रावधान करने पड़ेंगे और सरकार द्वारा बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए दिए जाने वाले पैसे प्रावधान में चले जाएंगे।
4. सितंबर 2017 तक बैंकों के कुल ऋण में ऐसे ऋण की हिस्सेदारी कुल कर्ज का तकरीबन साढ़े तीन प्रतिशत है। नए नियम से एसएमए 2 खातों के एनपीए होने की आशंका ज्यादा है और सकल एनपीए का आंकड़ा बढ़ने पर आगामी तिमाहियों में बैंकों पर ज्यादा प्रावधान करने का दबाव बढ़ेगा। गौरतलब है कि बैंकिंग क्षेत्र में ऐसे खातों- जिनका भुगतान साठ से नब्बे दिनों के अंदर नहीं हुआ हो- को विशेष निगरानी वाले खाते या एसएमए-2 कहते हैं। रिजर्व बैंक के नए नियम के अनुसार बैंकों को एक वर्ग में वर्गीकृत सभी खातों को एक समान देखना होगा अर्थात अगर कोई बैंक किसी खाते को एनपीए के तौर पर देखता है और दूसरे बैंक को भी उसी के अनुरूप उक्त खाते को अपने बही-खाते में एनपीए के तौर पर वर्गीकृत करना होगा।
5. दिवालिया कानून के तहत अगर बैंक 2,000 करोड़ रुपए और इससे अधिक के कर्जदारों के लिए समाधान योजना लागू करने में समर्थ नहीं हो पाता है तो ऐसे मामलों को ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण के पास भेजे जाने का प्रावधान है। रिजर्व बैंक द्वारा जारी चूककर्ता कंपनियों की दूसरी सूची में अधिकतर ऐसी ही चूककर्ता कंपनियां हैं। बहरहाल, ऐसा करने से बैंकों को इसके लिए वित्तवर्ष 2019 में ज्यादा प्रावधान करना पड़ सकता है। दिवालिया कानून के तहत एनपीए की पहली सूची में शामिल बारह कंपनियों में से नौ के निपटान में बैंकों को अपने कुल बकाया कर्ज में करीब पचास से अस्सी प्रतिशत तक प्रावधान करना पड़ सकता है। यह आकलन संबंधित कंपनियों की बोली प्रक्रिया के आधार पर किया गया है।
6. भले ही एनपीए का मर्ज बढ़ रहा है, लेकिन सरकार इसके समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने फंसे कर्ज के बोझ तले दबे सार्वजिनक क्षेत्र के बैंकों के लिए जीडीपी की 1.2 प्रतिशत राशि का पुनर्पूंजीकरण पैकेज घोषित किया है। सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र के लिए कई सुधारों की भी घोषणा की है। माना जा रहा है कि पुनर्पूंजीकरण पैकेज से कमजोर बैंकों को वैश्विक पूंजी पर्याप्तता की जरूरत सुनिश्चित करने के लिए धन मिलेगा। बैंकों में पूंजी निवेश से उन्हें नियामकीय जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी, जिससे बैंक ज्यादा कर्ज देने में भी सक्षम होंगे। इसके बरक्स सरकार को रिजर्व बैंक द्वारा एनपीए के नियमों में किए गए संशोधन पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, क्योंकि पुनर्पूंजीकरण की राशि के प्रावधान के साथ समायोजित होने की आशंका है।
7. आईडीबीआई बैंक के फंसे कर्ज सभी बैंकों में सर्वाधिक करीब पच्चीस प्रतिशत है। इसलिए, पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के माध्यम से इसे सबसे अधिक 10,600 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। उसके बाद बैंक आॅफ इंडिया को 9,200 करोड़ रुपए दिए जाएंगे, क्योंकि बैंक आॅफ इंडिया का एनपीए दो साल में दोगुने से ज्यादा हो गया है। मजबूत बैंकों जैसे, भारतीय स्टेट बैंक को 8,800 करोड़ रुपए, पंजाब नेशनल बैंक को 5,470 करोड़ रुपए और बैंक आॅफ बड़ौदा को 5,370 करोड़ रुपए दिए जाएंगे।
8. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सुधार के क्रम में ऋणदाताओं के समूह के आकार को भी छोटा किया जाएगा, जिसके तहत प्रत्येक भागीदार बैंक को न्यूनतम 10 प्रतिशत अंशदान करना होगा। वित्तीय सेवाएं विभाग के सचिव राजीव कुमार के मुताबिक पहले ऋणदाताओं के समूह में 20 से 22 वित्तीय संस्थान शामिल होते थे, लेकिन नए प्रावधान से कंसोर्टियम का आकार छोटा हो जाएगा और बड़ी कंपनियों को कर्ज देने वाले समूह में सात-आठ बैंक ही शामिल हो सकेंगे, ताकि ऋणी के खातों पर बारीकी से निगरानी रखी जा सके।
9. फंसे कर्ज को लेकर बैंकिंग क्षेत्र में समग्र जोखिम कम होने का नाम नहीं ले रहा है। मार्च और सितंबर 2017 के बीच बैंकों का सकल एनपीए उधारी अनुपात 9.6 प्रतिशत से बढ़ कर 10.2 प्रतिशत हो गया है। इधर 9,339 जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाले लोगों ने 1,11,738 करोड़ रुपए बैंकों के पचा रखे हैं, जिसमें 93,357 करोड़ रुपए सरकारी बैंकों के हैं और इसे 7,564 कर्जदारों ने पचा रखा है। स्थिति की गंभीरता का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि वर्ष 2013 में यह आंकड़ा 25,410 करोड़ रुपए था, जो पांच साल में 340 प्रतिशत बढ़ गया है।
इलाज
10.इस सबके बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि एनपीए एक लाइलाज बीमारी है। बैंकिंग कारोबार में जोखिम तो रहते ही हैं, लेकिन एनपीए प्रबंधन, बैंककर्मियों में जागरूकता बढ़ाने, प्रशिक्षण की व्यवस्था, कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने, परिपत्रों के निर्देशों का अनुपालन, धोखाधड़ी पर लगाम लगाने, एनपीए व धोखाधड़ी के डेटाबेस को मजबूत करने, बैंकों द्वारा एनपीए से संबंधित सूचनाओं को आपस में साझा करने, राजनीतिक हस्तक्षेप से परहेज करने, चूककर्ता बड़े कारोबारियों पर सरकार द्वारा शिकंजा कसने आदि उपायों से निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम निकल सकते हैं।