Tuesday, November 15, 2011

प्रस्ताव हिंदी व अंगरेजी - देवघर स्वदेशी सम्मलेन

वदेशी जागरण मंच दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड) 11, 12, 13 नवंबर 2011 के प्रस्ताv - hindi english
by Kashmiri Lal on Tuesday, 15 November 2011 at 23:40

The Draft Resolution of 10 th Swadeshi Jagaran Manch Samamelan at Dewaghar (Jharkhand)

by Anil Saumitra on Sunday, 13 November 2011 at 23:31

Draft Resolutioस्वदेशी जागरण मंच दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड) 11, 12, 13 नवंबर 2011 के प्रस्तावों पर आपके विचार और सुझाव आमंत्रित हैं

by Anil Saumitra on Sunday, 13 November 2011 at 12:40

विचारार्थ प्रस्ताव क्रमांक - 1



स्वदेशी जागरण मंच

दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड)

11, 12, 13 नवंबर 2011

विदेशी निवेश के रूप में आर्थिक आक्रमण



1991 से आर्थिक सुधारों के नाम पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं प्रत्यक्ष संस्थागत निवेश की ओट में विदेशी निवेश ने पिछले 20 वर्षों में हमारे आर्थिक क्षेत्र में भारी तबाही मचाई है। ब्राउन फील्ड निवेश के परिप्रेक्ष्य में देश की वर्तमान सफल कंपनियों के हस्तांतरण के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक औजार बन गया है। व्यावहारिक तौर पर रोजगार सृजन या हरित क्षेत्र निवेश (Green Fields Investment) या अधोसंरचना विकास में FDI की भूमिका नगण्य है। वहीं दूसरी ओर डा0 मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में संसदीय समिति की रिपोर्ट की अनदेखी करते हुए भारत सरकार द्वारा खुदरा क्षेत्र को भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये खोल दिया जाना खुदरा व्यापार से सीधे जुड़े देश के चार करोड़ लोगों की जीविका के लिये संकटकारी हो गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अबाधित प्रवेश एक आर्थिक संकट का द्योतक ही नहीं वरन देश की सुरक्षा के लिये भी गंभीर खतरे का कारण बन रहा है।



विदेशी संस्थागत निवेश के आने का अर्थ है देश के संपूर्ण वित्तीय क्षेत्र की अस्थिरता वास्तविक निवेशकों की पहचान छुपाकर मारिशस मार्ग से इस अनापशनाप पैसे का आना कालेधन, टैक्स हेवन और नशीले पदार्थां के गोरखधंधे को एक प्रकार से महिमामंडित करना है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह सब तब हो रहा है जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समिति ने प्रतिभूति विनियमन बोर्ड भारत सरकार को पार्टिसिपेटरी नोट्स में निवेशकों के नाम उल्लेख की सलाह पूर्व में ही दे दी थी, ताकि विदेशी संस्थागत निवेश पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके ।



यह कहना कि FDI/FII से व्यापार घाटा/चालू खातागत घाटा की पूर्ति हो सकेगी एक कपोल कल्पना है। 150 बिलियन डालर का व्यापार खातागत घाटा एवं जी.डी.पी. का 3 प्रतिशत से अधिक चालू खातागत घाटा 1990 की स्थिति से अधिक भयावह है जब हमें देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था। इस BOP (भुगतान कोष) संकट ने देश की आर्थिक संप्रभुता को दांव पर लगा दिया है। व्यापार खाते पर लगातार दबाव और शेयर बाजार से कभी भी अचानक विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा पैसा वापस निकालना भारतीय मुद्रा को कमजोर कर रहा है। NDA शासन के समय 35 रू0 प्रति डालर से आज हम 50 रू0 प्रति डालर पर पहुंच गए हैं (1991 में 16 रू0 प्रति डालर से) यह अवमूल्यन 300 प्रतिशत से अधिक है जिसका प्रभाव मुद्रास्फीति एवं कीमतों के बढ़ने के रूप में देशवासी पिछले दो दशकों से भोग रहे हैं।

देश में घरेलू बचत जो विकास के लिये 90 प्रतिशत से अधिक का निवेश है इसे प्रोत्साहित दिये जाने की आवश्यकता है। भारत सरकार की वर्तमान आर्थिक नीतियां जिसमें ब्याज दर पिछले 18 माह में रिजर्व बैंक के द्वारा 13 बार बढ़ा दिया जाना आदि अर्थप्रबंध और निवेश प्रंबध को और बड़ी खाई में ढकेलने जैसा है। वस्तुओं का निर्यात, विदेशी निवेश का आयात चीन द्वारा अबाधित निर्यात से बना आयात निर्यात का असंतुलन आर्थिक विकास की नींव को खोखला कर रहा है।

स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को खुदरा क्षेत्र में पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाय। टोबिन टैक्स लगाकर विदेशी संस्थागत निवेश को नियंत्रित किया जाय। कालेधन का नया स्वरूप हाटमनी के रूप में परिवर्तित होकर देश में आने पर कम से कम 3 वर्ष तक वापस निकालने को प्रतिबंधित कर विदेशी संस्थागत निवेश का नियमन और नियंत्रण किया जाय।







विचारार्थ प्रस्ताव क्रमांक - 2

स्वदेशी जागरण मंच

दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड)

11, 12, 13 नवंबर 2011

भारतीय कृषि एवं किसानों की हत्या का सिलसिला बंद करो



असंदिग्ध रूप में यह कहा जा सकता है कि विगत 2 दशकीय वैश्वीकरण के दौर की कोई एक उपलब्धि है तो वह है खेती और किसानों की हत्या और ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्वीकरण का दौर आरंभ होने के बाद के 2 दशकांे की भारतीय सरकारों की कार्यसूची में यही एकमात्र कार्य रहा है।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान सन् 1951 में 51 प्रतिशत था। तब से लगातार गिरता हुआ यह योगदान केवल आज 14.2 प्रतिशत रह गया है। इसके विपरीत कृषि पर निर्भर हमारी जनसंख्या का प्रतिशत लगातार 60 प्रतिशत (लगभग 70 करोड़) बना हुआ है।

सन् 1994 में कृषि संबंधी विश्व व्यापार संगठन के समझौते के समय से किसान-आत्महत्या की बाढ़ सी आई हुई है। राष्ट्रीय अपराध दस्तावेज ब्यूरो के प्रतिवेदन के अनुसार सन् 1995 से 2010 तक की अवधि में देश भर में 2,56,913 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें 56 प्रतिशत संख्या महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की है। भारत के कृषि क्षेत्र के इस गंभीर संकट के प्रति भारत सरकार घोर संवेदनहीन है। किसान जिस अभूतपूर्व संकट में फंसे हैं, उस संकट से उबरने मंे उनकी सहायता तो दूर, प्रत्यक्षतः सरकार उनके संकट को गहरा करने मंे सक्रियता से लगी हुई है। संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि से संबंद्ध जो विधेयक पारित किये जाने की संभावना है, उनपर दृष्टिपात करें।

1) भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वसन एवं पुनर्बंदोबस्त विधेयक 2011

अपेक्षित है कि यह विधेयक 116 वर्ष पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 का स्थान लेगा। इस विधेयक का तर्क है कि ढांचागत, उद्योग एवं शहरीकरण जैसे कार्यों के लिये कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में परिवर्तित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या यह दैवदुर्विलास नहीं है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय शहरी विकास के लिये कार्य कर रहा है?

विधेयक में निजी क्षेत्र को भूमि अधिग्रहण की अनुमति है बार्ते वह सार्वजनिक हित के लिये हो किन्तु ‘सार्वजनिक हित’ को विधेयक में निजी निगमीय क्षेत्र की सुविधा के लिये बहुत ही अस्पष्ट रूप में परिभाषित किया गया है और पुनर्बंदोबस्त का जो पिटारा किसानों और आजीविका गंवानेवालों के सामने पेश किया गया है, उसमें (अ) 12 महीनों के लिये प्रतिमाह प्रति परिवार मासिक रू0 3,000/- आजीविका भत्ते का प्रावधान प्रस्तावित है। यह प्रावधान प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 20 रू0 बनता है जो कि योजना आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष शपथपूर्वक प्रस्तुत की गई परिभाषा के स्तर से भी बहुत कम है। इस शपथ-पत्र में ग्रामीण गरीबी स्तर को 26 रू0 प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति परिभाषित किया गया है। (ब) विधेयक में किसानों और आजीविका गंवानेवालों को प्रति परिवार प्रतिवर्ष 2,000 रू0 20 वर्षों तक देने का प्रस्ताव है। यह प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 13.30 रू0 बनता है। यह भी गरीबी रेखा संबंधी 26 रू0 प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन की परिभाषा से बहुत कम है। जहां तक पुनर्वसन और पुनर्बंदोबस्त का प्रश्न है, यह है वास्तविकता!

विधेयक में कृषि भूमि को गैरकृषि भूमि के रूप में बदलने की कोई अधिकतम सीमा प्रस्तावित नहीं है। तात्पर्य यही कि भूमि अधिग्रहण तथा पुनर्वसन एवं पुनर्बंदोबस्त विधेेयक में देश की खाद्य, चारा, पोषक आहार एवं जल की सुरक्षा की कोई चिंता दिखाई नहीं देती है।

2) बीज विधेयक - 2010

बीज विधेयक 2010 भारतीय और बहुराष्ट्रीय बीज निर्माताओं के लिए बांध के सभी दरवाजे खोल दिये जाने पर आमादा है। यहां तक कि इन उत्पादकों के बीजों की कीमतों पर किसी अंकुश की आवश्यकता उसे महसूस नहीं होती। इसके परिणाम स्वरूप किसानों का अनियंत्रित षोषण होगा।

विधेयक में नकली और घटिया स्तर के बीज के विपणन के विरूद्ध 30 हजार रूपये का अर्थदंड प्रस्तावित है, वह अत्यंत नगण्य है। विधेयक बीज उत्पादक निगम कंपनियों के प्रति अत्यंत नरम और किसान के प्रति अत्यंत कठोर है।

3) जैव तकनीकी नियमन अधिकरण विधेयक

इस विधेयक का उद्देश्य जैविक रूप मंे परिवर्तित बीजों के उद्योगों का नियमन है जो कि भारतीय बीज उद्योग के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश के प्रयास में है परंतु विधेयक भारतीय और बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियांे का नियंत्रण और नियमन करने के स्थान पर प्रत्यक्ष में उन लोगों पर लगाम लगाना चाहता है जो जैव परिवर्तित बीजों और जैव तकनीकी के आलेाचक हैं विधेयक में खास तौर पर यह प्रतिबंधित है कि बिना किसी समुचित वैज्ञानिक प्रमाण के यदि कोई जैव तकनीकी और जैव परिवर्तित बीजों की आलोचना करता है तो वह 2 वर्षों के कारावास या/और 2 लाख रू0 के जुर्माने का भागी होगा। इतना ही नहीं, जैव तकनीकी के विरूद्ध कोई अनुसंधान भी दंडनीय होगा।

यह एक ऐसा राक्षसी कानून होगा जो नागरिकों की वाणी की स्वतंत्रता और वैज्ञानिक जिज्ञासा पर अंकुश लगायेगा। यह विधेयक अनुचित रूप से जैव तकनीक बीज उद्योग का पक्षपाती है और अंततः यह भारत के परंपरागत बीजों का विनाश करेगा। तात्पर्य यही कि संसद के समक्ष लंबित उपरोक्त तीनों विधेयक यदि उनके वर्तमान स्वरूप में पारित किये जाते हैं तो इनसे भारतीय खेती और किसानों की हालत गिरेगी और अंततः उनका विनाश होगा।

अतः स्वदेशी जागरण मंच का यह दसवां राष्ट्रीय सम्मेलन सरकार से आग्रह करता है कि:-

1. उपरोक्त विधेयकों को जल्दबाजी में पारित न किया जाय,

2. इन विधेयकों पर ग्राम पंचायतों, किसान संगठनों और आम जनता के स्तर पर व्यापक बहस होने दी जाय।

3. किसान विरोधी नीति तत्काल समाप्त की जाए।

4. आगामी 12 महीनों के भीतर किसानपोषक नीतियां विकसित की जाएं और आगामी 12वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में उन्हें क्रियान्वित किया जाय।

5. कृषि और किसानों की हत्या बन्द की जाए।



विचारार्थ प्रस्ताव क्रमांक - 3

स्वदेशी जागरण मंच

दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड)

11, 12, 13 नवंबर 2011

भ्रष्टाचार और काला धन - व्यवस्था परिवर्तन की चुनौती



ग्लोबल फाईनेंशियल इंटेग्रिटी द्वारा अवलोकन के अनुसार भारतीय नागरिकों द्वारा 1948 से लेकर 2008 तक 462 अरब अमरीकी डाॅलर विदेशी बैंकों में जमा किये है। ग्लोबल फाईनेंशल इन्ट्रेग्रिटी ने इस अनुमान को लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के आंकड़ों को विश्व बैंक, अवशिष्ट माॅडल व छद्यम व्यापार आंकड़ों माॅडल का उपयोग किया है। उदारीकरण के पश्चात 2002-2006 की अवधि के दौरान भारत से अवैध वित्तिय बहिर्वाह ( illicit financial outflow) 22.7 अरब अमरीकी डालर से बढ़कर 27.3 अरब डाॅलर प्रति वर्ष हो गया। एक अनुमान के अनुसार आज भारत के 2,100,000 करोड़ रूपये विदेशी बैंकों में जमा है तथा लगभग 19 अरब बिलियन अमरीकी डालर या 1 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष काले धन के रूप में बाहर जा रहे है। अनेक संस्थान विश्व भर के सभी गरीब तथा विकासशील देशों से बहुराष्ट्रीय कपंनियों द्वारा लूटे जाने वाले धन की मात्रा का अनुमान लगा रहे है और मानते है कि यह काला धन एक खरब अमरीकी डाॅलर के लगभग है। ऐसे की एक अनुमान के अनुसार भारत के 1.4 खरब रूपये विदेशों में काले धन के रूप में पड़े हैं।

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों, व्यापारियों, नशीली दवा बेचने वालों, घूसखोर अधिकारियों तथा भ्रष्ट राजनेताओं ने इस धन को स्वीजरलैंड तथा अन्य टैक्स हैवन कहने वाले स्थान जैसे चैनल द्वीप, मारीशस, कैमेन द्वीप, बहामा तथा लिकटेस्टीन में छिपा कर रखा है। सरकार के हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार आम आदमी की जिन्दगी कष्टमय बना रहा है क्योंकि जनता का धन भ्रष्ट राजनेताओं द्वारा चुराया जा रहा है जिसके कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और स्वच्छता जैसी बुनियादी सामाजिक सेवाएं भी उपलब्ध कराने में कठिनाई हो रही हैं और इस कारण से गरीबों के जीवन स्तर में सुधार असंभव होता जा रहा है।

आज भ्रष्ट राजनेताओं और नशीली दवाओं के व्यापारियों, तस्करों और यहां तक कि आतंकवादियों के बीच सांठ-गांठ चल रही है क्योंकि ये तथ्य अनैतिक रूप से धन के स्थानांतरण में एक दूसरे का सहयोग करते हैं। वर्तमान सरकार आकंठ, भ्रष्टाचार में लिप्त है, यह इस बात से स्पष्ट होता है कि जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं उन्हें तरह-तरह से बदनाम तो किया ही जाता है, साथ ही साथ उनके आंदोलन को पुलिस बल के द्वारा कुचलने से भी सरकार हिचकती नहीं है।

फ्रांस में आयोजित जी.-20 के सम्मेलन में 40,000 से अधिक लोगों ने इस टैक्स हैवन की राजदारी को समाप्त करने की मांग की। अब तक जी.-20 में से 10 देशों ने 14 अरब रूपये की अतिरिक्त राजस्व स्वैच्छिक घोषणा के माध्यम से प्राप्त की। इसका ब्यौरा इस प्रकार है- इटली - रू. 600 करोड़, अमरीका - रू. 2000 करोड़, जर्मनी - रू. 1800 करोड़, फ्रांस - रू. 1200 करोड़, दक्षिण कोरिया - रू. 510 करोड़, नैदरलैंड - रू. 495 करोड़, ब्राजील - रू. 315 करोड़, स्पैन - रू. 260 करोड़, इगीलिस्तान - रू. 260 करोड़, चीन - 80 करोड़,

भारत सरकार काले धन को वापस लाने के बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। यह जानबूझकर टालमटोल का रवैया अपना रही है। क्यांेकि कांग्रेस पार्टी को चन्दा देने वाले अधिकतर लोग इस काले धन को जमा करने वाले है। जर्मनी तथा फ्रांस द्वारा दिए गए काला धन रखने वालों के 700 लोगों के नामों को गुप्त रखा जा रहा है। यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी की मंशा काले धन के मालिकों की रक्षा करना है। अब समय आ गया है कि सरकार को बाध्य किया जाए कि वो विदेशों में जमा काले धन को वापिस लाने के लिए ठोस कदम उठाए।

स्वदेशी जागरण मंच की यह स्पष्ट मान्यता है कि भ्रष्टाचार और कालाधन आज की राजनीतिक व्यवस्था की उपज है और आज की राजनीतिक व्यवस्था लूट की व्यवस्था के नाते स्थापित हो गई है। यह व्यवस्था हमारी अर्थव्यवस्था, उत्पादन संबंधों और यहां तक कि सुरक्षा के लिए भी खतरे उत्पन्न कर रही है। जरूरत इस बात की है वर्तमान राजनीतिक और अफसरशाही व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन करते हुए मजदूरों, किसानों और दलितों के शोषण पर रोक लगाई जाए और वास्तव में जन के तंत्र की स्थापना हो सके। भारत सरकार के इस कुकृत्य तथा दुष्कर्म को देखते हुए यह प्रस्ताव पारित किया जा रहा है, स्वदेशी जागरण मंच अपने विरोध प्रदर्शन तथा आंदोलन को ओर तेज करेगा अैार यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि काला धन वापिस नही लाया जायेगा।

स्वदेशी जागरण मंच मांग कर रहा है कि विदेशों में जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए और काला धन जमा करने वालो की भारत में जो संपत्ति है, उसकी कुर्की की जाए और अन्य आक्रामक पग उठाकर काले धन को शीघ्रातिशीघ्र वापस लाया जाए। इस कार्य को बल देने के लिए स्वदेशी जागरण मंच सभी देशभक्त ताकतों को साथ लेते हुए एक देशव्यापी आंदोलन करेगा।



विचारार्थ प्रस्ताव संख्या - 4

स्वदेशी जागरण मंच

दशम् राष्ट्रीय सम्मेलन, देवघर (झारखंड)

11, 12, 13 नवंबर 2011

वालस्ट्रीट कब्जाओ आंदोलन



पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से स्वदेशी जागरण मंच और दुनियाभर के विकासशील देशों में वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की षोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ चल रहे संघर्ष ने अब विकसित देशों में भी फैलाव लेना शुरू किया है। गत डेढ़ माह से अमेरिका के आर्थिक सत्ताकेन्द्र न्यूयार्क शहर में वालस्ट्रीट के ‘झुकोटी पार्क’ में ‘आक्यूपाय वालस्ट्रीट’ आंदोलन शुरू है। इसमें बेरोजगारी से त्रस्त हुए युवक शामिल हैं। कुछ को वैश्वीकरण के कारण उद्ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था पटरी पर लानी है, तो कुछ युवकों को अमेरिका के कर्जदार होने के कारणों का उत्तर चाहिए। वहाँ बैठे सब युवक आज की अर्थव्यवस्था से चिढ़े हुए हैं। वालस्ट्रीट पर रहने वाले अति अमीर लोगों के हितसंबंधों का संरक्षण करनेवाली अर्थव्यवस्था हमें मान्य नहीं, ऐसा उनका कहना है। वैश्वीकरण आज दुनिया के 1 प्रतिशत लोगों के लिए ही लाभकारी सिद्ध हो रहा है। प्रो0 क्रुगमैन का कहना है कि इनमें से भी मात्र 0.1 प्रतिशत लोग ही अति धनाढ्य की श्रेणी में आते हैं। अमेरिका के 99 प्रतिशत लोगों की आवाज बुलंद करनेवाले ये युवक ‘झुकोटी पार्क’ में इकट्ठा हुए हैं। आज की नवसाम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था का होनेवाला विरोध केवल अमेरिका तक मर्यादित नहीं है, अब यह आंदोलन स्पेन, कॅनाडा, यूरोपीय देश ऐसे दुनिया के कुल 83 देशों में शुरू हुआ है। यह इस बात का प्रतीक है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शोषण पर आधारित वैश्वीकरण की यह व्यवस्था दुनिया के आम लोगों के जीवन को दूभर बना रही है।

यह अनियंत्रित, बेछूट, मुक्त बाजार व्यवस्था - सट्टेबाजी तथा लोभीवृत्ति पर आधारित है। केवल मुट्ठीभर लोगों के लाभ के लिए विषमता बढ़ानेवाली यह अर्थव्यवस्था हमें नही चाहिए, यह इस आंदोलन के पीछे की भावना है। स्वदेशी जागरण मंच की हमेशा से यह दृढ़ मान्यता है कि वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण, इन माध्यमों से आनेवाली आर्थिक नीतियाँ सामान्य मनुष्यों के हित की नहीं है। ऐसी आर्थिक नीतियाँ विभिन्न देशों के बीच, और देशांतर्गत विषमता बढ़ानेवाली सिद्ध होगी, ऐसा मंच का दृढ़मत है। पिछले 20 वर्षों के वैश्वीकरण ने भारत में भी कुछ मुट्ठी भर लोगों ही लाभ पहुंचाया है। देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या को वैश्वीकरण का कोई लाभ नहीं मिला है।

भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रादुर्भाव के चलते किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, बढ़ती महंगाई, बंद होते उद्योग और समाप्त होता स्वरोजगार आज देश के लोगों का जीवन दूभर कर रहा है। कंपनियों की किसी भी कीमत पर लाभ कमाने की महत्वाकांक्षा दुनियाभर के लोगों के लिए कष्टों का कारण बन रही है। वैश्विक स्तर पर चल रहे यह सब आंदोलन स्वदेशी जागरण मंच द्वारा गत 20 वर्षों से अभिव्यक्त किए जा रहे मतों का समर्थन करने वाले है। स्वदेशी जागरण मंच की यह स्पष्ट मान्यता है कि वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ चल रहे संघर्षं में दुनिया के किसान, मजदूर और आम आदमी को एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए। इस कारण स्वदेशी जागरण मंच विभिन्न देशों में हो रहे इन आंदोलनों के पीछे की भावना और विचारों का इस प्रस्ताव द्वारा समर्थन करता है।

स्वदेशी जागरण मंच की यह सभा इस प्रस्ताव के माध्यम से भारत सरकार से मांग करती है कि जागतिक स्तर पर होनेवाले इन आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में भारत के हित की आर्थिक नीतियाँ बनाने के लिए योग्य कदम उठाएँ। इस प्रस्ताव द्वारा देशभक्त जनता को आवाहन किया जाता है कि वैश्विक स्तर पर चल रहे इस प्रकार के आंदोलन स्वदेशी जागरण मंच के मतों और विचारों की पुष्टि करने वाले होने के कारण इन आंदोलनों के पीछे की भावनात्मक एवं वैचारिक पृष्ठभूमि शहर-शहर और गाँव-गाँव में जनमानस तक पहुंचाएं।

n - 1



SWADESHI JAGARAN MANCH

10th National Conference, Deoghar (Jharkhand)

11, 12, 13 November, 2011



Foreign Investment An Economic Invasion



Entry of foreign investments in the form of Foreign Direct Investment) FDI) and Foreign Portfolio Investments (FPI) since the introduction of Economic Reforms in 1991 has been causing tremendous damage to our economy for the past 20 years.



FDI has become a tool of taking over the existing successful companies in the guise of brown field investment. The contribution of FDI in creation of employment or in building of infrastructure or in Green Fields Investment is practically negligible. On the other hand, the Government of India is opening the flood gate of FDI in Retail ignoring the recent Report of the Parliamentary Committee led by Dr. Murli Manohar Joshi, which will endanger the small retail shops employing more than 4 crore people of this country. The unbridled entry of FDI is causing not only economic threats but also endangering the national security concerns in certain sensitive sectors of the economy.



The inflow of Foreign Portfolio Investment has destabilized the entire financial sector of our economy. The volatility in the Stock Market, with the hot money flow through Mauritius Route without due identification of the real investors whose names are not disclosed in the Participatory Notes and its illicit nexus with Black Money, Tax heavens and the ill design of recycling of funds generated through illegitimate trade of Narcotics & Drugs is causing serious national security concerns. This is despite the advice of National Security Advisory Committee to SEBI for regularising the FII Investments by disclosing the name of the Investors in the PI notes.



There is an absurd assumption that the capital inflow through FDI / FII Route will hell in mitigating the trade/current account deficit. The trade account deficit of about USD 150 bn and the current account deficit exceeding 3% of GDP is very alarming and may lead to BOP Crisis of much grave nature than the 1990 position when We had to mortgage our gold and this may compel the country to compromise further on its economic sovereignty. The continuous pressure on the trade account and the sudden withdrawal of funds by FIIs from the Stock Market has is weakening the Indian Rupees which has gone down from about Rs. 35 during NDA Rule ( Rupees 16 in 1991) to as low as Rs.50 per USD during the UPA Rule, resulting in devaluation of more than 300% is one of the major cause of imported inflation/price rice in the country during the past two decades. To sum up it can be said that domestic savings which contribute almost 90 percent of the investments in the country needs to be further encouraged with more fiscal and monitory incentives to be given to the domestic investment. The present policy of the Central Govt. with continuous increase in interest rates for the consecutive 13 times through RBI for the so called inflationary control measure for demand management ignoring the supply side management is further dampening the investment climate. The disproportionate dependents on the external sector for export of goods, import of foreign capital an unrestricted imports including China has caused tremendous harm to our domestic industries resulting into huge unemployment problems and affecting our economic development. SJM demands a complete ban on the FDI in Retail and due restriction on FPI inflow by imposition TOBIN tax on the hot money inflow along with the condition for the minimum lock in period of 3 years and regulating the FIIs source of funds in order to break and bust the illegitimate nexus of Black Money and the inflow of Capital in the Stock Market.



Draft Resolution - 2



SWADESHI JAGARAN MANCH

10th National Conference, Deoghar (Jharkhand)

11, 12, 13 November, 2011



Stop Killing Farming & Farmer



The twenty years of globalization has clearly succeeded in one thing – killing Indian farming & farmer. This appears to be the single point agenda of the Governments in the post globalization period of the last 20 years.



The contribution of agriculture to India G.D.P. has continuously come down from 51% in 1951 to about 14.2% today. But the percentage of our population dependent on agriculture continuous to be the same 60% (about 70 crore people today).



Since the signing of the WTO agreement in 1994, there has been a flood of farmers suicide in India. As per National Crime Records Bureau report, from 1995 to 2010 two lakh fifty six thousand nine hundred thirteen farmers have commited suicide all over the country, 56% of this has taken place in five state that Maharastra, M.P.-Chhatisgarh, Karnataka and Andhra Pradesh.



However, the Govt. of India has been most insensitive to the crisis in our Agricultural sector. Instead of trying to help the farming sector to come out of the unprecedented crisis, it is actually positively contributing towards the further worsening of the crisis. Bills pertaining agriculture that may be passed in the winter session of the Parliament, say the same story.



1) The Land Acquisition and Rehabilitating & Resettlement Bill 2008



This Bill is expected to replace the 116 years old Land Acquisition Act 1894.

The Bill argues that transfer of land from agriculture to non agricultural purpose such as infrastructure, industries and urbanization is very important. Rural Development Ministry is working for urban development. What an irony!



The Land acquisition by private sector is allowed, provided it is for public purpose. But the Bill deliberately defines “public purpose” very vaguely for facilitating the private corporate sectors.



Further look at the R&R package over to the farmer and other livelihood loosers.



a) A subsistent allowance of Rs.3000/- per month per family for 12 months. This works out to Rs.20/- per day per person. This is far below the definition of BPL that Rs.26/- per day per person in Rural Areas, which the Planning Commission said in its affidavit filed before the Supreme Court.



b) Rs.2000/- per month per family as annuity for 20 years.

This works out to Rs. 13.33 per person per day. Again far below the Rs. 26/- B.P.L. definition. So much, as far as the glorified R & R package is concerned, The Bill does not suggest any maximum limit for transferring agricultural land for non agricultural purposes. Thus LARR Bill 2011 does not care for food security, fodder security, nutritional security and water security of the country.



2) The Seed Bill 2010



The Seed Bill 2010 opens the flood gate for the Indian & MNC seed producers, however there is no provision in the Bill for the controlling corporate seed prices. It results in the exploitation of the India farmers.



The penalty suggested in the Bill for marketing fake and substandard seeds in very trivial Rs.30,000/- only. The Bill is very soft on corporate seed companies and very hard for farmers.



3) The Bio Technology Regulatory Authority of India Bill – BRAI Bill



The BRAI Bill aims at regulating genetically modify seed industry which is trying to enter the Indian seed industry in a big way. However instead of controlling and regulating the Indian as well as MNC GM Seed companies. The BRAI Bill actually curbs the people who criticize the GM Seed and Bio Technology. The Bill curbs specifically provides that who ever criticize this BT and GM seed without proper scientific evidence will be punished with two years of imprisonment or/and Rs.2,00,000/- fine. Even scientific research against BT are punishable.



This is a decronian law which curbs the freedom of speech of the citizens and scientific enquiry. It unduly favour the BT seed industry and lead to the ultimate destruction all our traditional seeds.



Thus all the three Bills pending before the Parliament if passed in their present forms will ultimately lead to decay and destruction of India farming as well as the farmers.



This 10th National Confernence of SJM call upon the Government :



1) Not to pass the three Bills in a hurry,

2) Allow wide public debate at Gram Panchayat, farmers organization and the general public.

3) Put an immediate halt on the anti farmer policies.

4) Evolve a pro farmer an organically based agriculture policy over the next 12 months and implement during the coming 12th Five Year Plan period.

5) Stop killing farming and farmers.











Draft Resolution - 3

SWADESHI JAGARAN MANCH

10th National Conference, Deoghar (Jharkhand)

11, 12, 13 November, 2011



Corruption And Black Money- Call For Vyavastha Parivartan



Black money deposited in foreign banks by Indians since 1948 to 2008 amounts to $462 bn as per estimate done by Global Financial Integrity. (Methodology – World Bank residual model & Trade mis-pricing model based on IMF trade statistics)



The illicit financial outflow from India increased during post liberalization period from $22.7 in 2002 to $27.3 bn in 2006. About Rs. 2,100,000 crores are lying in foreign banks and every year about 19 bn dollar or 1 lakh crore rupees as black money goes out of India. Various agencies world over are calculating black money siphoned out of developing poor countries by MNCs etc. and it is about $1 trillion every year. According to a calculation black money stashed out of India is about $1.4 trillion.



It is an open secret now that the MNCs, Traders, Drug Merchants, Officers & Politicians etc. are depositors of Black Money who deposited it in tax heavens countries like Switzerland, Mauritius, Cayman Island, Bahama, Liechtenstein etc.



Rampant corruption at all levels of the Government is making the life miserable for the masses as the public funds are being siphoned off by corrupt politicians, making it impossible to provide quality social services like education, health, drinking water, sanitation, etc. and thereby improving the life of downtrodden.



There is an unholy nexus between corrupt politicians on the one hand and drug paddlers, smugglers and even the terrorists on the other, as huge illegal transfer of funds is being facilitated by these elements. The present Government is neck deep into corruption, is evident from the fact that the Govt. machinery starts misinformation campaign against the persons or groups raising voice against corruption. Government does not even hesitate to crush the movements against corruption using police force.



Governments of different countries have already started making efforts to bring back money parked in tax heavens. This month during G-20 meet, France demanded to end Tax Heavens secrecies. So far 10 countries out of G-20 have received Rs.14 bn as additional revenue through voluntary declaration. Italy – Rs. 600 mn, US – Rs. 2000 mn, Germany – 1800 mn, France – 1200 mn, South Korea – 510 mn, Netherland – Rs. 495 mn, Brazil – Rs. 315 mn, Spain – Rs. 260 mn, UK – Rs. 260 mn, China – Rs. 80 mn.



The Government of India is delaying and avoiding to bring back Black Money as most ruling party financiers are depositors of black money abroad. Names of black money depositors supplied by Germany & 700 persons by France to government are being kept secret. Thus intention of this government is to protect black money depositors. It is high time that government of India is forced to act positively in bringing black money illegally kept abroad.



Swadeshi Jagran Manch is of the firm opinion that corruption and black money is the by product of the present political system, which has emerged as system of loot & plunder. This is endangering our economy, production relations and even our security.



It is imperative to bring basic changes in the present day political and bureacatic system, ending exploitation of workers, farmers and dalits, so as to establish peoples rule in real sense.



To expose mis-deed on the part of Government of India it is resolved to stage protest, agitation throughout India so as to make it a mass movement until black money is brought back. We demand all black money deposited out side India be nationalized and depositor’s property be attached in India. For such aggressive action, SJM will launch a nation wide movement taking along all patriotic forces.





Draft Resolution - 4

SWADESHI JAGARAN MANCH

All India Conference, Deoghar (Jharkhand)

11, 12, 13 November, 2011



‘Occupy Wall Street Agitation’



Struggle against globalization and exploitative system of multinational corporations in the last two decades by Swadeshi Jagaran Manch and people of various other developing countries is spreading in developed nations like USA. From last one and a half month, “Occupy Wall Street’ agitation is going on in full swing at Wall Street in New York’s Zuccotti Park, the nucleus of America’s economic power. This movement, comprises of youths depressed due to unemployment. Some of them want to restore the economic system that is completely destroyed due to globalization. Some youths want a solution for the huge amount of debt on the shoulders of United States. All of them are irked over the current economic system. They are flaying the economic system that is protecting the interests of extremely wealthy. Today’s globalization is benefiting only 1% of the population all over the globe. According to Prof. Kruggman out of this 1% hardly 0.1% people are becoming a superrich. Youths representing the feelings of 99 per cent of the American masses have assembled for this cause at Zuccotti Park. This is indicative of the fact that globalization based on exploitative system of multinational corporations has been making life miserable for the common man all over the world.



These youths don’t want the economic system based on the open market, uncontrolled betting and greed for wealth which is benefiting a few people & thereby creating an imbalance in the society. This feeling is the basis behind the ongoing movement.



Swadeshi Jagaran Manch has always adopted a view that the economic policy based on globalization, liberalization and privatization is not beneficial at all for the welfare of common man. Such economic policy is creating disparities between and within the nations. Last 20 years of globalsation have benefited only a handful of people in India. Around 80 % of the total population have not received any benefit.



Due to dominance of multinational corporations farmers are forced to comic suicide, galloping inflation, closure of industries and declining self employment is making the life difficult for the common man. Ambitious plans of multinational corporations to a maximum profit at any cost is the major cause of miseries of people around the world.



Protest towards today’s neo-capitalist economic system has now not just been limited to America. The agitation has now spread in 83 nations round the globe such as Europe, Canada, Spain, etc.



All these world-wide agitations are in line with the views being expressed by Swadeshi Jagaran Manch from last 20 years. Hence Swadeshi Jagaran Manch supports all these feelings and idea behind these movements.



This meeting of Swadeshi Jagaran Manch resolves to appeal to the Indian Government to take cognizance of all these world-wide agitations and adopt necessary steps towards framing the economic policies that will be in the interest of India.



It is further resolved that, as all these agitations that are blooming in various nations of the world are justifying the views proposed by Swadeshi Jagaran Manch. This 10th National Convetion of Swadeshi Jagaran Manch calls upon patriotic people of the country to back this movement of capture wall street and such other movements against exploitative system of globalization.

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