कल 35 अक्टूबर को पानीपत के स्वदेधि संकल्प सभा में एक राष्ट्रिय कवि रविनदेर मुद्गिल ने निम्न कविता का पथ किया। मैंने उसमें एक छंद और में अंत में जोड़ने की कुचेष्टा की। देखे कैसी लगी ये कविता।
देशभक्ति की कविता
हमारे उत्पाद है हमारी आन शान बान, स्वदेशी समृधि पे गुमान होना चाहिए, मल्टीनेशनल ब्रांड देशी पूँजी के लुटेरे , इन का यहाँ से प्रस्थान होना चाहिए
अर्थशास्त्र घर का समझना जरूरी है तो , देश का भी अर्थशास्त्र ज्ञान होना चाहिए
भारती का जयघोष विश्व के पटल पे हो, मन में हमारे हिन्दोस्तान होना चाहिए .!!!.१.
पब, डिस्को-डांस लीळ रहे अपने कल्चर को, मंदिर के भाव योग करना सीखाते है,
जंक फ़ूड, चाउमीन पेट जाम करते है, दूध दही लस्सी आदि हरना सिखाते है, चायनीज़ लडियो में भावहीन चुधियारा, माटी वाले दिए हमें जगना सिखाते है, पन्नाधाय, राणा, प्रताप से शिवाजी तक, वचन आन बान पर मरना सिखाते है,...२.
देश की समृधि हित मानसिकता बदल, स्वदेशी का सकल परिवेश जोड़ लीजिये निजता हनन, भय दूर करने के लिए, देश में सभी का गणवेश जोड़ लीजिये
घर को बचाने हित बहुत जरूरी है जी, जन-मन-गन में स्वदेश जोड़ लीजिये भय, भूख, भ्रष्टाचार, भारत से दूर होवें, भाव भावना का ये निवेश जोड़ लीजिये...३.
विचार व्यवहार में भी उर्जा निवेश हित, सौर उर्जा का प्रभामंडल जगाईये
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान कहने वाले, अटलजी के सपनो को अपना बनाईये
योग से निरोग, तनमन को प्रचुर भर, सीम से असीम तक जुड़ना सिखाईये
विश्व गुरु बनने का मूलमंत्र मोदगिलतन-मन-धन से स्वदेशी बन जाइए .4.
भाषा-भूषा-भवन, भाइयो ,भोजन और भावना में, स्वदेशी जीवन शैली पक्की अपनाईये,
कोक मेगी कोलगेट लक्स तोड़ छोड़ कर, विदेशी वस्तुयों की सब होली जलाईये । लाल-बाल-पाल, भगत सिंह जैसे याद कर, चीन का सामान सीमा पार फ़ेंक आईये,
मेरे साथ मिल, मुठ्ठी बाँध के लगा के जोर, जयघोष सभी ऊँचे स्वर से लगाईये, 5.