Saturday, January 16, 2016
जोधपुर सम्मेलन २५-२७ दिसम्बर २०१५ की प्रमुख बातें
Tuesday, January 12, 2016
Resolutions of Jodhpur Swadeshi SAMMELAN (25-27/12/15)
12th National Convention, Jodhpur (Raj.) — Resolution 4 (H)
कृषि निवेश और पेटेंट व्यापार वार्ताओं से बाहर किया जाए
नैरोबी (कैन्या) में 19 दिसंबर 2015 को संपन्न विश्व व्यापार संगठन के मंत्री सम्मेलन में जिस प्रकार से विकासशील देशों के हितों के विपरीत दोहा विकास चक्र को तिलांजली दे दी गई और विकसित देशों द्वारा कृषि को दी जाने वाली भारी सब्सिडी के चलते आयातों की बाढ के फलस्वरूप हमारे किसानों और कृषि को भारी संकट से बचाने हेतु विशेष बचाव उपायों (एसएसएम) और खाद्य सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा खाद्यान्न खरीद पर सब्सिडी गणना की गलती को सुधारने हेतु समाधान देने में भी विकसित देशों की आनाकानी से यह स्पष्ट हो गया है कि विश्व व्यापार संगठन में हुए पूर्व के समझौतों से विकासशील देशों और विशेष तौर पर भारत को भारी कठिनाईयों से गुजरना पड़ रहा है। विदेशों से सब्सिडी युक्त कृषि पदार्थों की बाढ के कारण हमारे किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता और कृषि लगातार अलाभकारी होती जा रही है और हमें अपनी गरीब जनता की खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में भी संघर्ष करना पड़ रहा है। भारत सरकार के वाणिज्य मंत्री ने भी कहा है कि दोहा विकास चक्र को आगे बढाने में असफल होने के कारण वे अत्यन्त निराश है।
यह एक खुला सत्य है कि विश्व व्यापार संगठन के बनने के समय हुआ मराकेश समझौता विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर दबाव बनाकर उनके हितों के विपरीत करवाया गया, जिसमें कृषि, निवेश, पेटेंट और सेवाओं जैसे विषयों को शामिल करते हुए, विकासशील देशों के शोषण का तंत्र तैयार किया गया। ’ट्रिप्स’ के नाम पर बाध्यकारी समझौता करते हुए भारत और अन्य देशों को अपना पेटेंट कानून बदलने के लिए बाध्य किया गया ताकि अमरीका और अन्य विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों के पेटेंट अधिकारों के बदले में उन्हें अधिकाधिक रायल्टी मिल सके। ऐसे में कहा गया कि दवाईयां तो मंहगी होगी लेकिन हमारे किसानों को इस समझौते से लाभ होगा क्योंकि वे विकसित देशों को अपने उत्पादों को निर्यात कर सकेंगे। लेकिन मराकेश समझौते में दिए वचन से मुकरते हुए विकसित देशों ने अपनी कृषि सब्सिडी को घटाने के बजाए ’ग्रीन बाॅक्स’ के नाम पर उसे और बढा दिया। विकसित देशों ने अपनी सब्सिडी को घटाया नहीं और भारत में खाद्य सुरक्षा हेतु किसानों से सीधा अनाज की खरीद पर विश्व व्यापार संगठन में आपत्ति जरूर दर्ज कर दी।
मराकेश में हुए ट्रिप्स समझौते के कारण आज विकसित देशों की दवा निर्माता बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों द्वारा दवाईयों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। लेकिन उस समझौते में उपलब्ध लचीलेपन जैसे इन कम्पनीयांे द्वारा गलत तरीके से पुनः पेटेंटीकरण पर रोक, अनिवार्य पेटेंट की सम्भावनाओं, पेटेंट पूर्व आपत्ति दर्ज करने के प्रावधान और पेटेंट लेने से पहले क्लीनिकल ट्रायल आंकड़ांे को उपलब्ध कराने की अनिवार्यता आदि को समाप्त करवाने के लिए विकसित देश, विशेष तौर पर अमरीकी सरकार, भारत सरकार पर दबाव बना रही है। प्रधानमंत्री जी की अमरीका यात्रा के दौरान भारत-अमरीका सयंुक्त कार्यदल और साथ ही साथ ’थिंक टैंक’ की निर्मिति के माध्यम से भारत और अन्य विकासशील देशों को प्राप्त सुविधा को समाप्त करवाने का प्रयास हो रहा है।
स्पष्ट है कि मराकेश समझौते के कारण हमारी कृषि और किसान ही नहीं बल्कि आमजन की खाद्य सुरक्षा भी गंभीर संकट में है। दवाईयां मंहगी होने के कारण हमारा जन-स्वास्थ्य ही खतरे में नहीं है, बल्कि ट्रिप्स में उपलब्ध छूटों के कारण हमारी स्वदेशी दवा कंपनियां, जो 200 से भी ज्यादा देशांे को सस्ती दवाईयां निर्यात कर विकासशील देशों की ही नहीं बल्कि विकसित देशों की गरीब जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करने में मुख्य भूमिका का निर्वहन कर रही हैं, के उत्पादन को भी बाधित करने का प्रयास हो रहा है।
इन परिस्थितियों में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सम्मेलन का यह सुविचारित मत है कि मराकेश के असमान और शोषणकारी समझौते से उत्पन्न समस्याओं के संदर्भ में राष्ट्रीय बहस और विगत 20 वर्षों के अनुभव के आधार पर सरकार एक व्यापक समीक्षा करवाए। देश की कृषि और विज्ञान को बचाने, जनस्वास्थ्य और उद्योगों की रक्षा हेतु कृषि ‘ट्रिप्स’ और ’ट्रिप्स’ (विशेष तौर पर पेटेंट) को विश्व व्यापार संगठन से बाहर करवाने हेतु सघन प्रयास किए जाए। विश्व व्यापार संगठन में राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर विकसित देशों के दबाव में आकर किसी प्रकार का समझौता न करें। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत विकासशील देशों का नेतृत्व करते हुए विश्व व्यापार संगठन में आमूल बदलाव के लिए आगे बढ़े।
यह स्मरण कराते हुए कि विश्व व्यापार संगठन में सभी निर्णय सर्वसम्मिति से होते है स्वदेशी जागरण मंच का यह राष्ट्रीय सम्मेलन इस बात पर बल देता है कि मिडिया में क्षोभ व्यक्त करने के स्थान पर वार्ताकक्ष में दोहा वार्ता की भांति अपना पक्ष दृढतापूर्वक रखते हुए उस पर अडिग रहना चाहिए।
12th National Convention, Jodhpur (Raj.) — Resolution 4 (E)
Pull Agriculture, Investment and IPR out of WTO
The manner in which developed countries dismissed the interests of developing nations, in the just concluded ministerial level meeting of WTO held in Nairobi (Kenya), by not reaffirming the Doha Development Agenda in WTO, has made it explicitly clear that developed countries are not ready to heed to the genuine concerns of developing countries by reducing huge agriculture subsidies, which they provide to distort prices. Their dilly dally approach to correct the faulty and twisting formula of calculating subsidy provided by developing countries to ensure food security and their effort to link genuinely needed Special Safeguard Measures (SSM) to market access for their products, has made it clear that though, previous agreements reached at WTO have been harming the interests of developing countries, particularly Bharat; developed countries are not ready to address legitimate issues impacting their development.
As a result of flooding of our markets by the subsidised imported agricultural products Bhartiya farmers are not getting remunerative prices for their produce and agriculture has become a loss making activity. We have to struggle to ensure food security of poor Indian population. Union commerce Minister also has expressed her disappointment on the failure of forward movement of Doha Development Round.
This is an open fact that at the time of formation of WTO, developed countries forced Marrakesh agreement on developing countries against their wishes and interests. By inserting agriculture, investment, patents and services into the agreements- a discriminatory mechanism was created that favoured rich countries and was against poor developing countries. In the name of ‘TRIPS’ developing countries like India, were intimidated to change their patent laws to facilitate MNCs from developed countries, earn enormous royalty. That time, though it was conceded that essential medicines may get costlier, it was argued that farmers would get benefitted as they may export their produce to developed countries. But taking a U-turn developed rich countries, instead of reducing agricultural subsidies, increased them manifold, in the garb of green box. Double standard of developed nations is explicitly seen, as they themselves did not reduce their subsidies, instead they raised objection against India for procuring food grains directly from farmers, stating that India’s subsidies exceed the limit (based on faulty and twisted formula).
Medicines manufactured by MNCs have become very costly after Marrakesh ‘TRIPS’ agreement. However, rich developed countries, in particular the USA has been pressurising Indian government to concede the flexibility available under that agreement like, preventing wrongful re-patenting by corporate, possibility of compulsory licensing, provision for pre-grant objections and compulsory sharing of clinical trial data. This effort to put an end to this flexibility available to India and other developing countries is being attempted through the joint working group and ‘Think Tank’ constituted during the visit of Prime Minister to USA.
It is crystal clear that Marrakesh agreement has not only ruined our agriculture and farmers but has also been threatening food security of nation. In addition to endangering public health, due to costly medicines, production capability of our pharmaceutical companies providing cheap medicines to over 200 nations, playing a crucial role in health care of not only the developing countries but also the poorer sections of society in rich developed countries, has also been facing disruption.2th 12th National Convention, Jodhpur (Raj.) — Resolution 3 (H)
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन हो
व्यक्ति के व्यक्तित्व को, समाज की पहचान को एवं देश की प्रतिष्ठा को निखारने का एक सशक्त साधन है, शिक्षा। इसी उद्देश्य से शिक्षा-नीति निर्धारित हो तो वह अधिक परिणामकारी व फलदायी होगी इसमें कोई संदेह नही। स्वदेशी जागरण मंच का राष्ट्रीय सम्मेलन भारत की शिक्षा व्यवस्था मे लगातार एवं बार-बार हो रही विभिन्न दलों की राजनैतिक दखलदांजी के कारण शिक्षा नीति में आयी विसंगतियों के प्रति अपनी चिन्ता प्रकट करता है।
व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके नैतिक चरित्र एवं आचरण से निखरता है। विज्ञान एवं मनोविज्ञान सम्मन यह बात विश्वव्यापी स्वीकृति प्राप्त कर चुकी है कि शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं आत्मा के सन्तुलित विकास के द्वारा मनुष्य के अन्तर्निहित गुणों के प्रगटीकरण हेतु मातृभाषा के माध्यम से योगाधारित शिक्षा ही सर्वश्रेष्ठ है। NCERT ने यद्यपि योग के महत्व को समझकर उसे पाठ्यक्रम में समाहित किया है परन्तु उसे मातृभाषा को शिक्षा के माध्यम के नाते स्वीकृत कर इस विसंगति को दूर करने की पहल भी की जानी चाहिए।
समरस समाज ही संगठित एवं स्वावलंबी बन पाता है। सामाजिक समरसता में शिक्षा की भूमिका भी तब ही प्रभावी हो पायेगी जब समाज के सभी तबकों, जाति-पंथो, संप्रदायांे, विभिन्न भाषा-भाषियों आदि के सभी स्त्री-पुरूषों को समान रूप से शिक्षा उपलब्ध हो। शिक्षा के नाम पर व्यापार करने वाले एवं विदेशी निवेश के बल पर भारत की शिक्षा व्यवस्था में पैठ जमाने वाले व्यक्ति, संगठन तथा संस्थान समाज को अमीर एवं गरीब की शिक्षा के रूप में दो तबकों में बांट रही है। पंाथिक अल्पसंख्यक होने का लाभ उठाकर शिक्षा में मनमानी कर अवांछित विषय भी पढाये जा रहे है। इन सब विसंगतियों को दूर कर शिक्षा सर्वसमावेशी एवं सर्वसुलभ हो ऐसी नीति बने। यह आज भी महती आवश्यकता है।
12th National Convention, Jodhpur (Raj.) — Resolution 2 (H)
‘मेड बाई भारत’ से ही देश का विकास संभव
स्वदेशी जागरण मंच इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त करता है कि विगत 24 वर्षों में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत आयातों में उदारीकरण से आज जहाँ देश आयातित वस्तुओं के बाजार में बदल गया है, वहीं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को प्रोत्साहन देते चले जाने से देश के सगंठित क्षेत्र के उत्पादन तंत्र के दो तिहाई से भी अधिक अंश पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वामित्व व नियन्त्रण होता चला गया है।
आयातों में अथाह बढ़ोतरी के कारण ही सरकार को चालू खाते के घाटे की पूत्र्ति के लिये नये-नये क्षेत्रों मंे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों को राष्ट्रीय हितों के विपरीत शत्र्तों पर प्रोत्साहन देना पड़ रहा है। अधिकांश उद्योगों में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश के स्वतः अनुमोदन की नीति के परिणामस्वरूप देश के औद्योगिक उत्पादन तंत्र में 2/3 से अधिक विदेशी कम्पनियों का वर्चस्व हो गया है। शीतल पेय, टूथपेस्ट, जूते के पाॅलिश से लेकर टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, स्वचालित वाहन, सीमेन्ट सहित दूर संचार व ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के निर्माण तक के 2/3 भाग पर आज विदेशी कम्पनियां हावी हैं। प्रश्न यह उभरता है कि इस देश के उत्पादन के साधनों पर अब किसका नियंत्रण होगा? भारतीयों का अथवा विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का?
उदाहरणतः वर्ष 1999 के पूर्व देश में सारा सीमेन्ट भारतीय स्वदेशी उद्यम बनाते थे। देश में निर्माण कार्यों में उछाल आने की आशा में यूरोप के छह बडे़ सीमेन्ट उत्पादकों ने दक्षिण पूर्व एशिया के कोरिया आदि देशोें से सस्ती सीमेन्ट भेजना कर प्रारंभ कर हमारे देश में स्थानीय सीमेन्ट उत्पादकों को दबाब में लाकर उनको उद्यम बिक्री को बाध्य करके आज हमारी आधी से अधिक सीमेन्ट उत्पादन क्षमता पर कब्जा कर लिया है। टाटा के टिस्को के सीमेन्ट के कारखाने और देश भर में फैले एसीसी व गुजरात अम्बुजा आदि के संयंत्रों के यूरोपीय कम्पनियों लाफार्ज व हाॅलसिम द्वारा अधिग्रहण के बाद आज देश की दो तिहाई सीमेन्ट उत्पादन क्षमता यूरोपीय सीमेन्ट उत्पादकों के स्वामित्व व नियंत्रण में गयी है। सौर ऊर्जा जनन के क्षेत्र में विदेशी निवेश व आयात उदारता के कारण देश के सुस्थापित उद्यम भी बंद हो रहे हैं। सूती वस्त्रोंद्योग के निर्यातों में भारत बांग्लादेश से भी पिछड़ रहा है।
इसी प्रकार आर्थिक सुधारों के प्रारम्भ होने पर प्रथम पीढ़ी की दूर संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश सर्वथा स्वावलम्बी था और हमारी प्रौद्योगिकी मोटोरोला व सीमेन्स जैसी यूरो-अमेरिकी कम्पनियों के समतुल्य थी। लेकिन, आयात उदारीकरण के कारण और उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास की ओर उपेक्षा के कारण देश दूसरी, तीसरी व चैथी पीढ़ी की दूर संचार प्रौद्योगिकी में पूरी तरह पराश्रित हो गया है। यही स्थिति उच्च प्रौद्योगिकी के अन्य क्षेत्रों में भी हो रही है। इसीलिये उत्पादक उद्योगों के कुल वैश्विक उत्पादन (World manufacturing) में भारत का अंश मात्र 2.04 प्रतिशत ही है, जबकि इसमें चीन का अंश 23 प्रतिशत है। वर्ष 1992 में चीन का अंश भी मात्र 2.4 प्रतिशत ही था। आज उसने अमेरिका को भी 17.5 प्रतिशत के साथ विश्व में दूसरे स्थान पर पहुँचा कर उत्पादक उद्योगों के उत्पादन (World manufacturing) में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। यह सब हमारे उदार आयातों व विदेशी निवेश को दिये जा रहे अनुचित प्रोत्साहन का परिणाम है, हम इतने पिछड़ते जा रहे हैं।
कई उद्योगों में हमारा आज विश्व के उत्पादन में अत्यन्त स्वल्प व हास्यास्पद अंश है, यथा वैश्विक जलपोत निर्माण (world ship building) में हमारा मात्र 0.01 प्रतिशत अंश ही है। जबकि हम विश्व के चैथे बड़े स्पात उत्पादक देश हैं, 6100 किमी लम्बी हमारी तट रेखा है और 2009 में हमारा अंश कम से कम 1.4 प्रतिशत तो था। दूसरी और दवा उद्योग में उचित वातावरण प्रदान करने से आज विश्व के कुल औषधि उत्पादन में हमारा अंश 10 प्रतिशत होने से हम विश्व की फार्मेसी (Pharmecy of the world) कहलाते है और विश्व के जरूरतमन्द लोगों के लिये सस्ती दवाओं का विश्व में एकमेव स्त्रोत है। वहाँ आज हम हम यूरो-अमेरीकी दबाव में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के नाम पर स्वदेशी उद्यमों के विकास का मार्ग अवरूद्ध करते जा रहे हैं। अन्य भी अनेक विधिक परिवर्तनों से छोटे उद्यमों के लिए ऐसी बाधाये खड़ी की जाती रहीं हंै, कि सभी क्षेत्रों मंे छोटे उद्यमियों के लिये कारोबार में कई बाधायें अनुभव की जा रही हैं। इसी क्रम में सौर व पवन ऊर्जा के क्षेत्र में आगामी 5 वर्षों में देश में 10 लाख करोड़ का निवेश अपेक्षित है। इसलिए सामान्य उपभोक्ता उत्पादों से अवसंरचना क्षेत्र पर्यन्त ‘मेड बाई इंडिया’ का अनुसरण कर देश में ही सभी उत्पादों व ब्राण्ड़ों के प्रवर्तन को समर्थन देना होगा।
इसलिये स्वदेशी जागरण मंच आवाहन करता है कि देश के इलेक्ट्रोनिक्स सेमीकण्डक्टर उद्योग सौर ऊर्जा संयंत्र उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग से लेकर वस्त्रोद्योग पर्यन्त सभी उद्योगों के क्षेत्र में कार्यरत उद्यम संगठित होकर उनके अपने उद्योग सहायता संघों (Industry Consortium) का विकास कर मेड बाई इण्डिया उत्पाद व ब्राण्ड विकसित करंें। आज देश में 400 प्रमुख उद्योग संकुल (Major Industry Clusters) 7000 लघु संकुल (Minor Clusters) हैं। इन उद्योग संकुलों (Industry Clusters) को उद्योग सहायता संघों (Industry consortiums) में बदलना, उनके लिये प्रौद्योगिकी विकास सहकारी संघों या प्रौद्योगिकी विकास सहकारी समझौतों की योजना करना आदि मेड बाई इण्डिया के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए आज की अनिवार्य आवश्यकता है।
वस्तुतः देश के प्रत्येक उद्योग केन्द्र पर उद्योग संकुलों एवं सभी उद्योगों यथा सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगों व सौर ऊर्जा संयंत्र निर्माताओं से लेकर वस्त्राद्योग, इलेक्ट्रोनिक्स व सेमिकण्डक्टर उद्योग आदि सभी क्षेत्रों में उत्पादकों के स्व-नियामक ‘मेड बाई इण्डिया फोरम या संघ’ विकसित करके ही विदेशी प्रतिस्पद्र्धा का सामना कर उनके प्रभाव व वर्चस्व को सीमित करने का एक श्रेयस्कर मार्ग सिद्ध हो सकता है। समाज में स्वदेशी भाव जागरण के साथ-साथ स्वदेशी उद्यमों को विेदशी उद्यमों के सम्मुख बेहतर स्पद्र्धाक्षम बनाने के लिये संगठित करने के लिए आवाहन करता है। साथ ही सरकार को भी चेतावनी देता है कि आयात व विदेशी निवेश प्रोत्साहन से मेक इन इंडिया के स्थान पर मेड़ बाई इंडिया के श्रेयस्कर मार्ग को प्रोत्साहन दे।
- 3. Swadeshi Jagran Manch expresses its deep concern over the liberalisation of imports under the economic reforms being adopted by the country in the last 24 years that has turned the country into a market for imported goods. Furthermore promotion of foreign direct investment has led 2/3 of the manufacturing sector under the ownership and control of foreign multinational corporations. Steep rise in import has lead to a vicious cycle of over dependence on foreign inflows for bridging the consistent and high current account deficit.
More than 2/3 of the industrial production mechanism owns by the multinational corporations in various industries such as cold drinks, television, refrigerator, motor vehicles, cement, telecom, energy production etc. this gives rise to the question of whether Indian companies control the means of production of the country or the multinational corporations. for example in the case of cement almost 100% ownership and control of manufacturing of cement was with Indian, when six European cement major took over manufacturing of cement in South-East Asia and these European companies started dumping cheap cement from south Korea. Consequently, Tata begun to face problems and they sold the cement plants of TISCO to LAFARGE of France. Then ACC and the Gujarat Ambuja cement were sold to a Swiss company Holcim. So today almost 2/3 of our cement manufacturing has gone into foreign hands. Even in the field of solar energy production Indian firms are closing down due to FDI and import liberalisation. The Indian textile industry is loosing its share in world market to even Bangladesh because of faulty policies.
India was self sufficient in the field of information technology and was well at par with those of the Motorola and Siemens before economic reforms initiated. But today due to import liberalisation and ignoring the home-grown capacities against foreign technologies, India is fully dependent on the foreign technologies in 2G, 3G and 4G technology pitch. Today just because of liberalisation of import and undue promotion to foreign direct investment, Bharat has a mere 2.05% share in world manufacturing whereas China has a 23% share in the world manufacturing and pushed the United States to second position with 17.2% share in world manufacturing. In various industries such as ship-building our share in the world production is 0.01%, which is very dismal. Needless to say Bharat is the 3rd largest steel producer of the world and with a coast line of 6100 km, it can easily capture at least 10% share in the world production of ship-building, provided proper policies are devised by the government. to the contrary Bharat able to acquire 10% share in the world pharma manufacturing and known to be the pharmacy of the world owing to the proper policy support. Though, it is also bound to erode in the name of Intellectual property rights (IPRs) in the pressure of Euro-American countries. In the next 5 years investment in the wind and solar energy is expected to be 10 lakh crores. Hence, this requires promoting domestically owned enterprises.
Therefore Swadeshi Jagran Manch urges that, all the industries, from solar energy and Information technology to the textile sector, should work together and form consortium and should endeavour to roll out more "Made by Bharat" products and brands. Today, there are 400 major industry clusters and 7000 minor clusters in the country and there is a need to convert industry clusters into industry consortiums and to plan technology development cooperative societies along with developing technology development agreements for enhancing domestic participation
and made by Bharat campaign.Therefore Swadeshi Jagran Manch urges that, all the industries, from solar energy and Information technology to the textile sector, should work together and form consortium and should endeavour to roll out more "Made by Bharat" products and brands. Today, there are 400 major industry clusters and 7000 minor clusters in the country and there is a need to convert industry clusters into industry consortiums and to plan technology development cooperative societies along with developing technology development agreements for enhancing domestic participation and made by Bharat campaign.
Today all the industry clusters and industries such as IT, solar energy, textiles, electronics and semi-conductor etc. can only compete with foreign competition and can promote made by Bharat products and brands with the help of made by Bharat forum and industry consortiums approach along with facilitating technology development co-operative associations and agreements. Swadeshi Jagran Manch appeals government to adopt made by Bharat pathway instead of Make in Bharat supported by import liberalisation and FDI promotion.
4. 12th National Convention, Jodhpur (Raj.) — Resolution 1 (H)
सतत विकास-समय की मांग
ग्लोबल वार्मिगं और जलवायु परिवर्तन हर बीतते वर्ष के साथ बहुत तेजी से क्रूर एवं नुकसानदेह होता जा रहा है। WMO ने अभी हाल ही में ही कहा है कि सन 2015 अभिलेखों के अनुसार अभी तक का सबसे गर्म वर्ष था। यदि हम गत 150 वर्षों के सबसे गर्म 15 वर्षों की सूची बनाएं तो वे समस्त 15 वर्ष सन 2000 के बाद अर्थात 21वीं शताब्दी के ही वर्ष होगें। यह तथ्य 21वीं शताब्दी में ग्लोबल वार्मिगं की समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। भूमंडल के बढ़ते हुए तापमान से गंभीर मौसमी आपदाएं जैसे कि कुछ सीमित क्षेत्रों में तेज और भारी वर्षा, जैसाकि नवम्बर एवं दिसम्बर माह में चैन्नई और इसके आस पास के इलाके में देखी गयी एवं देश के बाकी हिस्सों में गंभीर सूखे की समस्या के प्रकोप में लगातार वृद्धि के आसार दिखायी दे रहे हैं। चैन्नई में आई बाढ़ ने प्रकृति के रोष के समक्ष मानव की लाचारी एवं मानवीय संस्थाओं की असफलता को हमें दृष्टिगत कराया है। अगर साल दर साल, इसी प्रकार से अनेक नगर एक साथ प्राकृतिक आपदा के कारण मुश्किल में आते हैं, तब कौन किसकी सहायता कर पायेगा?
सम्पूर्ण विश्व अपनी ही गलतियों का स्वंय ही शिकार बन चुका है। अस्थायी विकास का माॅडल जोकि पश्चिमी देशों में सन 1850 से प्रारम्भ हुआ और जिसका विश्व के सभी देशों ने बिना सोचे समझे अनुसरण किया, यही इस वैश्विक जलवायु संकट का प्रमुख कारण है। विकास का पश्चिमी माॅडल टिकाऊ नहीं है क्यूंकि 160 वर्षों के छोटे से कालखंड में ही, सन 1850 जबसे यह प्रारम्भ हुआ, सम्पूर्ण विश्व को इस विनाश के कगार बिन्दु पर ले आया है। आज के वैश्विक तापमान में औद्यौगिक क्रान्ति से पूर्व के वैश्विक तापमान से मात्र 1°C की वृद्धि ही हुई है। जलवायु स्थिति हमारे नियन्त्रण से बाहर होती है, जैसाकि केवल 1°C पर हुआ है, तो भविष्य में वैश्विक तापमान में यदि 2°C या अधिक की वृद्धि होती है, तो क्या होगा?
विकास का पश्चिमी माॅडल उसी प्रकार के लचर असीमित उपभोग के माॅडल पर आधारित है और इस पर ही मजबूती से निर्भर करता है। यह लालच और अदूरदर्शिता है। WWF के द्वारा तैयार की गई लिविगं प्लेनेट रिपोर्ट - 2014 का स्पष्ट कहना है कि सन 1970 से विश्व के जंगली जानवरों की आधे से अधिक संख्या उनका अधिक और अवैद्य शिकार किए जाने, उनकी मारे जाने और उनके रहने के स्थान में आए संकुचन के चलते कम हुई है। उसका आगे कहना है कि यदि सम्पूर्ण विश्व अमेरिका की भांति संसाधनों के अत्यधिक उपभोग के स्तर को बनाऐ रखता है तो हमें संसाधनों की आपूर्ति के लिए चार और पृथ्वियों की आवश्यकता पड़ेगी। इससे सिर्फ पश्चिमी जीवन शैली का खोखलापन सिद्ध होता है।
आखिर इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? वर्तमान पश्चिमी विकास एवं जीवन शैली के माॅडल से प्रतीकात्मक एवं गड्डमड्ड समझौता विश्व को बिल्कुल भी बचाने नहीं जा रहा। हमको अधिक सौम्य और अधिक स्थायी तरीके से विकास एवं जीवनशैली के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। विकास एवं जीवनशैली के टिकाऊपन का एक सजीव एवं प्रमाणित उदाहरण विकास का भारतीय माॅडल है जिसे विकास एवं जीवनशैली का स्वदेशी माॅडल भी कहा जा सकता है। स्वदेशी माॅडल इस अर्थ में सम्पूर्णता लिए हुए है कि यह जीवन (धर्म एवं मौक्ष) में भौतिकता (अर्थ, काम) एवं आध्यात्मिकता को समान महत्व देता है। यह पृथ्वी मां को उसके चेतन एवं अचेतन, समस्त स्वरुपों में अत्यन्त सम्मान एवं श्रद्धा देती है।
स्वदेशी विकास की अवधारणा भविष्य में आने वाली पीढि़यों की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए औचित्यपूर्ण उपभोग की वकालत होती है। आज समय की मांग है कि न केवल भारत अपितु पूरे विश्व को विनाश से बचाने के लिए सहस्राब्दी से प्रमाणित एवं सफलतापूर्वक संचालित स्वदेशी की विकास की अवधारणा और जीवन शैली को अपनाया जाए।
जोधपुर (राजस्थान) में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन मांग करता है कि -1. टिकाऊ विकास का भारतीय माॅडल एवं जीवन शैली से संबंधित विभिन्न आयामों पर विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के द्वारा व्यापक एवं स्तरीय शोध कार्य को प्रोत्साहन दें।2. विशेषकर विश्वविद्यालद्यों एवं विषय पर स्वयंभू तज्ञयों के बीच शोध के परिणामों को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित करें।3. शोध के परिणामों के आलोक में सरकार की विकास प्राथमिकता निश्चित हो।4. COP-21 को भारत सरकार द्वारा सौंपी गई INDC के अनुरूप अक्षुण ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए।5. जैविक खेती एवं पशुपालन को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु योग्य कदम उढाया जाए।6. वृक्षारोपण, विशेषकर स्वदेशी किस्म के फलदार वृक्षों का व्यापक आंदोलन चलाया जाए, ताकि वन जीव-जंतुओं को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध रहे।स्वदेशी जागरण मंच देश की जनता से भी विशेषकर स्वदेशी कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता है कि वे प्रकृति के प्रति संवेदनशील उद्यमता एवं जीवन शैली को अपनाए।
Sustainable growth, Need of the hour..Global warming and climate change are becoming increasingly ferocious with each passing year. W.M.O. has recently stated that 2015 was the hottest year on record. If we make a list of 15 hottest years of the last 150 years, all the 15 years have appeared since 2000. This only shows the seriousness of the problem of Global warming in the 21st century.With increasing global temperature, extreme weather events such as heavy to very heavy down pour in limited areas, such as the one witnessed in Chennai and surrounding areas of Tamil Nadu during November and early December and severe famine situations as in the rest of the country, are going to be more and more frequent. The Chennai flood, exposed the helplessness of human beings against the fury of nature and the failings of human institutions. If several cities are battered simultaneously, year after year, who will help whom?
The entire world has become a prey of its own folly. The unsustainable development model which originated in the west since 1850 and mindlessly followed by the whole world to day is to be blamed for this global climate crisis. The Western Development model is unsustainable because within a very short period of 160 years, since it began in 1850, it has brought the whole world to this tipping point. The global temperature has increased by just 1°C above pre-industrial revolution global temperature. If the climatic situation is going out of our control, even at + 1°C , what would happen, if global temperature rises to + 2°C and beyond ?
The Western Development Model is strongly based on its equally unsustainable consumption model. It is greedy and short sighted. The Living Planet Report – 2014 prepared by W.W.F. clearly states that half of world’s wild animals is lost since 1970 due to over hunting, over fishing, over-poaching and habitat loss. It further states that if the whole world is to adopt the level of consumption of resources as the United States, we need 4 earths to supply resources. This only proves the unsustainability of the western life style.
The Paris Climate Agreement recently concluded with a lot of fanfare ,miserably fails in emphasising sustainable development and sustainable life style ,to the world community especially to the people in the developed countries.
What is the way out ? Symbolic and patchy compromises with the current Western Development and life style model is not going to save the world at all. We need a Paradigm shift in the pattern of Development and life style to more benign and more sustainable pattern.
A living and time tested example of sustainable model of development and life style is the Bharathiya Model of Development , which can also be called Swadeshi Model of Development and Life style. The Swadeshi Model is wholistic in the sense it gives equal importance to the Materist (Artha, Kama) as well as the spiritual aspects of life (Dharma and Moksha). It gives great respect and reverence to mother earth, in all her manifestations – animate and inanimate. Swadeshi life style advocates responsible consumption , keeping the requirements of the future generations of life in mind. To day not only India, but the whole world needs to revive and practice the sustainable development model and life style that Bharath practiced successfully for centuries.
The Jodhpur National Conference of Swadeshi Jagarana Manch urges the government to,1. undertake widespread research into the various aspects of the Bharathiya Sustainable Development Model and Life Style through various research institutions and universities.2. propagate the research findings widely among the so called experts and the universities.3. restructure the government’s Development Priorities and Programmes accordingly.4. accord top most priority for Renewable Energy sources as found in the INDC submitted by India to COP-21.5. propagate and incentivise organic farming and animal husbandry.6. Give top priority for afforestation with lot of indigenous species and particularly fruit bearing species, which can supply abundant food to the wild life and birds.The Swadeshi Jagarana Manch (S.J.M.) also urges the Karyakarthas and the general public to adopt Environment friendly Production methods and life style.