दवाईयों के पेटेण्ट पर केन्द्र सरकार का निर्णय स्वागत योग्य ( प्रेस नोट )
डाॅ. भगवती प्रकाश
केन्द्र सरकार द्वारा अमेरिकी दबाव की अनदेखी कर दवाईयों के पेटेन्ट के मामले में अनिवार्य अनुज्ञापन (कम्पल्सरी लाईसेसिंग) के प्रावधानों एवं भारतीय पेटेन्ट अधिनियम की धारा 3 डी में, किसी भी प्रकार की शिथिलता लाने से इन्कार कर देने का निर्णय अत्यंत स्वागत योग्य है। भारत आज ‘फार्मेसी आॅफ द वल्र्ड‘ कहलाता है और पेटेन्ट के क्षेत्र में उपरोक्त दोनों मानवोचित प्रावधानों के कारण ही आज विश्व भर में ब्लड केन्सर, एच.आई.वी एड्स और अन्य गम्भीर बीमारियों के सस्ते ईलाज के लिए सस्ती दरों पर दवाईयाँ सुलभ करा पा रहा है, जिसके फलस्वरूप ही आज विश्व के 40 प्रतिशत से भी अधिक रोगी अपना ईलाज भारत में सस्ती दर पर सुलभ दवाईयों के कारण ही करा पा रहे है। देश मंे स्वास्थ्य - रक्षा व चिकित्सा लागतों पर नियंत्रण और वैश्विक मानवता के प्रति संवेदनावश ही विगत कई वर्षों से चल रहे अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि और ओबामा प्रशासन के दबाव को पूरी तरह से नकारते हुए अब तो सरकार ने मंगलवार, दिसम्बर 29 को व्यक्त रूप से ही इन मुद्दों पर अमरीकी दबाव में आने से सर्वथा इन्कार कर दिया है। पिछली सरकार इन मुद्दों को व्यक्त रूप से नकारने का साहस नहीं दिखा पायी थी। इस सम्बन्ध में विश्व व्यापार संगठन के हाल ही में नैरोबी में सम्पन्न दसवें मंत्रीय स्तरीय सम्मेलन में भी भारत ने विकासशील व अल्पतम विकसित देशों के पक्ष को मजबूती से रखते हुए इन मुद्दों पर पर्याप्त दृढ़ता दिखाई थी।
यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में जब भारत के तत्कालीन चीफ कन्ट्रोलर आॅफ पेटेन्ट्स, पी.एच. कुरियन ने जर्मन कम्पनी ‘बायर एजी‘ की 2,80,000 रूपये कीमत वाली, लीवर व किडनी केन्सर की ‘नेक्सावर‘ नामक दवाई को भारत को 8,800 रूपये में बनाकर बेचने के नेटको नामक भारतीय कम्पनी को कम्पलसरी लाईसेन्स दे दिया था, तब केन्द्र सरकार ऐसा साहस नहीं दिखला पायी थी। वस्तुतः श्री कुरिअन द्वारा दिये लाइसेंस के विरूद्ध तब तत्कालीन मनमोहसिंह सरकार पर इस कम्पल्सरी लाइसेंस के विरूद्ध आए यूरो अमेरीकी दबाव को वह सहन नहीं कर पाई थी। इसलिए इस बायर एजी कंपनी द्वारा 2 लाख 80 हजार रूपये में बेचे जा रहे लीवर व किडनी केंसर के इस इन्जेक्शन को, 8800 रूपये में बनाकर बेचने का कम्पल्सरी लाइसेंस देने वाले चीफ कंट्रोलर आॅफ पेटेन्ट्स, पी.एच. कुरियन का कार्यकाल 2.5 वर्ष शेष होने पर भी सरकार उनका इस पद से स्थानान्तरण कर देने के दबाव में आ गई थी। मानवता के हित में देश के विद्यमान कानून और 2001 के बहुपक्षीय दोहा घोषणा पत्र के अनुरूप ही कम्पल्सरी लाइसेंस देने पर भी पी.एच. कुरियन को समय से पहले उस पद से हटा दिया देने अत्यन्त हास्यास्पद निर्णय था। उसके बाद कोई भी चीफ कंट्रोलर आॅफ पेटेन्श देश में कम्पल्सरी लाइसेंस देने का साहस नहीं जुटा पाया है।
इतना करने अर्थात कुरियन को पद हटा देने के बाद भी तत्कालीन मनमोहनसिंह सरकार के विरूद्ध अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने दण्डात्मक कार्यवाही तक के लिए, भारत के विरूद्ध आऊट आॅफ साइकिल जन सुनवाई प्रारंभ कर दी थी। तब यह लग ही रहा था कि अमेरिकी प्रसासन भारत के विरूद्ध अमेरिकी कानून सुपर 301 के अधीन कार्यवाही करने के लिए भारत को प्रायोरिटी फाॅरेन कंट्री की श्रेणी में रखने वाला है। लेकिन, लोक सभा चुनावों के बीच अप्रेल 30, 2013 को जारी अपने प्रतिवेदन में उसने ऐसा नहीं किया। अब तो वर्तमान सरकार की दृढता को देखते हुए अमरिकी व्यापार प्रतिनिधि माइकल फ्रोमेन ने किसी आऊट आॅफ साइकिल समीक्षा जैसा कदम दुबारा नहीं उठाया है जबकि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने अपनी ताजा वार्षिक स्पेशल 301 रिपोर्ट में इस मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
इस संबंध में भारत सरकार अपनी दृढ़ता बनाये रखते हुए अन्य भी विदेशी पेटेन्ट युक्त महंगी जीवन रक्षक दवाईयों के संबंध में भी उदारता पूर्वक कम्पल्सरी लाइसेंस जारी करने की नीति पर आगे बढ़े तो देश व विदेश के आम रोगियों के लिए वरदान सिद्ध होगा। अच्छा तो यही होगा कि, सरकार पेटेन्ट के अधीन आने वाली अन्य भी ऐसी महंगी दवाईयाँ, जिन्हें कोई भी स्थानीय उत्पादक उसके विदेशी पेटेन्टधारी की तुलना में एक चैथाई से कम कीमत पर बनाकर बेचने को प्रस्तुत हो जाये उन सभी के लिए, स्वतः अनिवार्य अनुज्ञापन (आॅटोमेटिक कम्पल्सरी लाइसेंस) का प्रावधान करे।
ऐसी अनेक दवाईयां है यथा रोश कम्पनी की केंसर-रोधी 1,35,200 रूपये की दवा हरसेप्टीन मर्क कम्पनी की अरबीटक्स जो 87,920 रूपये की है, ब्रिस्टोल मेयर स्क्विब की आई जेम्प्रा जो 66,460 रू. की है, फाइजर कम्पनी की मेकुजन जो 45,350 रूपये की है और सनोफी एवेन्टीस की फास्चरटेक 45,000 रूपये की कीमत पर उपलब्ध है। ऐसी सभी महंगी दवाईयों के लिए भी कम्पल्सरी लाइसेंस जारी किया जाना चाहिए। इनमें से अधिकांश दवाईयां केंसर, मधुमेह, हृदय रोग एवं अन्य गंभीर वेदनाओं के लिए प्रभावी दवाईयां हैं।
ऐसे सभी मामलों में ऐसा कम्पल्सरी लाइसेन्स आवश्यक है। इसी प्रकार भारतीय पेटेण्ट अधिनियम की धारा 3 डी के कारण ही ब्लड कैंसर की दवा ग्लिवेक आज भी देश में रू. 1200 के स्थान पर मात्र रू. 90 में उपलब्ध है। अतएव पेटेण्ट व ट्रिप्स के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार की दृढ़ता भारत व विश्व भर के मध्यम व निम्न आय वर्ग के लाखों रोगियों के लिये जीवनदान तुल्य निर्णय है।
डाॅ. भगवती प्रकाश
अखिल भारतीय सह संयोजक
स्वदेशी जागरण मंच।
No comments:
Post a Comment