चीन संबंधी बहिष्कार पँर पूछे जाने वाले प्रश्न व उत्तर
(1.नागपुर मेटो, गैर कानूनी काम नही पर सरकार रोके, हमने भी विरोध किया। 2, स्टेचू ऑफ यूनिटी, गलत अफवाह है, मात्र 9% कीमत का आ रहा है 91 % यहीं 3. रिलायंस का नया फ़ोन, एकदम बेकार बात, अगर आयात कर रही है तो टैक्स चुकाए बिना कैसे लाएगी 4.सरकार ही क्यों नही करती, पहली सरकारों से बेहतर है, पर हमारी अपेक्षा बड़ी। 5.विकल्प का अभाव तो., जिनका विलाप है वहां से शुरू तो करें..6. चीन यहीं बनाये तो, और भी बदतर, पति मर बुरा, तुरन्त दूसरा खसम किया, और भी बुरा 7. चीन पँर क्या असर पड़ेगा, बिल्कुल पड़ेगा और पड़ा है, कमसे कम हमारे लघु उद्योगों को बहुत फायदा और रोजगार वृद्धि गज़ब 8. कैसे पहचाने, बहुत तरीके पर बार कोड का प्रचार अच्छा रहेगा 9.यदि बाहर हमारे समान का भी बहिष्कार तो....?) जो जरूरी है वो लेंगे ही।
10. चीनी सस्ता तो हम क्यों नही बनाते? चूहेदानी में रसगुल्ले सस्ते ही नही मुफ्त मिलते है, क्या खाओगे?
11.
1. प्रश्न - सरकार ने नागपुर में मैट्रो रेलवे का 860 करोड़ का ठेका चीन की कंपनी को दिया है। जबकि प्रदेश मंे भाजपा की सरकार है। इसमें मंच का क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर - स्वदेशी जागरण मंच न केवल चीनी सामान के आयात का विरोधी है और बहिष्कार के लिए आह्वान कर रहा है, बल्कि हमारा मत है कि चीनी कंपनियों का निवेश आयात से ज्यादा घातक है। उदाहरण के लिए मैट्रो कोच की आपूर्ति हेतु जिस प्रकार चीनी सरकार की कंपनी को नागपुर मैट्रो द्वारा न केवल आॅर्डर दिया गया बल्कि उसी कंपनी को नागपुर में ही अपनी फैक्टरी लगाने हेतु स्वीकृति भी दे दी गई। स्वदेशी जागरण मंच ने इसका विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को पत्र लिखा है और मांग की है कि राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए चीन की इस कंपनी से हुए समझौते को तुरंत प्रभाव से निरस्त किया जाए और देश में अपनी सरकारी अथवा निजी भारतीय कंपनी को इसका जिम्मा सौंपा जाए।
2. प्रश्न - गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति बनाने का ठेका चीनी कंपनी को दिया गया है। सच्चाई क्या है? उत्तर - इस प्रकार की अफवाह सुनने में आ रही थी। इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार सरदार पटेल की मूर्ति बनाने का यह ठेका लार्सन एंड टुबरो नाम की भारतीय कंपनी को दिया गया है। इस संबंध में लार्सन एंड टुबरो ने यह स्पष्ट किया है कि यह मूर्ति भारत में ही बन रही है, चीन में नहीं।
3. प्रश्न - रिलाईंस जियो 1500 रू. का मोबाईल मार्किट में उतार रहा है, उसमें 15 लाख करोड़ का जीएसटी (28 प्रतिशत) बचाकर सरकार को चूना लगायेगा और ये सभी मोबाईल चाईनीज़ है?
उत्तर - फाइनांसिएल एक्सप्रेस समाचार पत्र द्वारा दिए गए समाचार के अनुसार रिलाईंस कंपनी ने चीन से नहीं बल्कि ताइबान से बड़ी संख्या में मोबाईल हैंडसेट्स मंगवाए हैं। स्वभाविक तौर पर जब भी कोई सामान विदेश से आयात किया जाता है तो आयातक को उसपर आयात शुल्क देना पड़ता है। यह आयात शुल्क देश में लागू जीएसटी से कम नहीं हो सकता। ऐसे में आयातित हैंडसेटों पर टैक्स देकर ही उन्हें बाजार में उतारा जा सकता है। देश में कोई भी कंपनी विदेशों से बड़ी मात्रा में मोबाईल या अन्य कोई साजो सामान विदेशों से आयात करे यह सही नहीं है और रिलाईंस जैसी बड़ी कंपनी को इन हैंडसेटों का देश में ही निर्माण करवाना चाहिए।
4. प्रश्न - चायनीज़ माल रोकने के लिए वर्तमान सरकार क्या कदम उठा रही है?
उत्तर - हालांकि सरकार आयात-निर्यात के संबंध में डब्ल्यूटीओ के समझौते से बंधी हुई है, इसलिए सामान्य रूप से किसी देश से आने वाले आयातों पर आयात शुल्क अथवा अन्य (गैर टैरिफ) बाधाएं खडी कर उन्हें रोका नहीं जा सकता। लेकिन देश में चीनी माल के आयात के विरोध में जन आक्रोश को देखते हुए भारत सरकार ने भी चीनी आयात को रोकने हेतु कई कदम उठाए हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि चीनी सामान सस्ता ही नहीं बल्कि घटिया किस्म का होता है। इसलिए उसे रोकने के लिए हमें मात्र मानक तय करने हैं। यदि वह सामान हमारे मानकों पर खरा नहीं उतरता है, हम उसे तुरंत रोक सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत सरकार चीन से आने वाले सामानों के मानक तय कर उन्हें घोषित करे। भारत सरकार ने अभी तक प्लास्टिक के सामान, पावर प्लांटों इत्यादि पर मानक लगाकर चीनी आयातों को आने से रोका भी है। ध्यातव्य है कि चीन भारत के बाजारों पर कब्जा करने की दरकार से लागत मूल्य से भी कम पर ‘डम्प’ कर देता है। इस संबंध में डब्ल्यूटीओ नियमों में यह प्रावधान है कि ऐसे सामान जो लागत से कम मूल्य पर ‘डम्प’ किए जा रहे हैं, प्रभावित पक्षों की शिकायत पर ‘एंटी डंपिंग’ ड्यूटी लगाकर रोका जा सकता है। सरकार द्वारा संसद में दिए गए बयान के अनुसार अभी तक चीन से आने वाली 93 वस्तुओं पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लग गई है और 40 और वस्तुओं पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके अलावा भारत सरकार ने हाल ही में ‘जनरल फाइनासिएल रूल्स’ घोषित किए हैं, जिनके तहत अब सरकारी खरीद में देश में बनी वस्तुओं की ही खरीद सुनिश्चित की जाएगी। ऐसे में चीनी वस्तुओं समेत विदेशी वस्तुओं की सरकारी खरीद बंद हो सकेगी। आश्चर्य का विषय है कि हमारे विशेषज्ञ चीनी माल पर प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में डब्ल्यूटीओ के नियमों का हवाला देते हैं, तो दूसरी ओर चीन ने डब्ल्यूटीओ नियमों के बावजूद कई देशों का माल अपने यहां आने से रोक दिया है। कुछ समय पहले जब मंगोलिया ने चीन की धमकी के बावजूद तिब्बती नेता दलाईलामा को अपने देश में आने दिया तो चीन ने सैकड़ों की संख्या में मंगोलिया से आने वाले कोयले के ट्रकों को चीन की सीमा में घुसने नहीं दिया। उधर दक्षिणी कोरिया द्वारा अमरीकी मिसाईल प्रणाली ‘थाड़’ को स्थापित करने पर कोरिया से आने वाले सौन्दर्य प्रसाधनों पर रोक लगा दी। नार्वे से आने वाली सलमन मछली पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि नोबल पुरस्कार समिति ने चीन के विद्रोही नेता को नोबल पुरस्कार प्रदान कर दिया था। अंत में जब नार्वे ने ‘एक चीन नीति’ को मानने की घोषणा की तब जाकर उस प्रतिबंध को हटाया गया।
5. प्रश्न - जब अपने पास मोबाईल व दूसरे उत्पादों को बनाने का विकल्प नहीं है, भारतीय कंपनियां भी सब कुछ चीन से ही बनवा रही है, ऐसे में हम क्या करें?
उत्तर - यह सही है कि हमारे देश में अभी भी मोबाईल और अन्य टेलीकाॅम उपकरण बनाने संबंधी क्षमता कम है। उसका कारण यह है कि पिछली सरकारों ने इसके लिए देशीय उत्पादन संबंधी नीतिगत कदम नहीं उठाए और साथ ही साथ इन उत्पादों के आयात को खुली छूट देकर इनके उत्पादन को हतोत्साहित भी किया। लेकिन हमारा देश मिसाईल, अंतरिक्ष, आणविक, साॅफ्टवेयर आदि तमाम प्रौद्योगिकी में दुनिया में अग्रणी है। कोई कारण नहीं कि हम पूर्णतया भारतीय मोबाईल फोन नहीं बना सकेते। इस दिश में हम आगे बढ़ भी रहे हैं। वो दिन दूर नहीं जब हम दुनिया भर को टेलीकाॅम उपकरण निर्यात करने लगेंगे।
6. प्रश्न - यदि चीनी कंपनियां ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत आकर वस्तु निर्माण करे तो क्या वह स्वदेशी होगा?
उत्तर - स्वेदशी जागरण मंच ने विदेशियों को आमंत्रित कर ‘मेक इन इंडिया’ का सदैव विरोध किया है। मंच का मानना है कि हमारे देश का विकास विदेशी कंपनियों और विदेशी पूंजी से नहीं हो सकता। हमें अपनी टेक्नाॅलजी स्वयं विकसित करनी होगी अथवा विदेशियों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करवानी होगी। ‘ओपो’, ‘वीवो’ या कोई कंपनी देश में आकर उत्पादन कर रही है तो वो चीनी ही है, भारतीय कतई नहीं है। हमें उसका पुरजोर विरोध करना है। यही नहीं भारतीयों द्वारा प्रारंभ किए गए उद्यमों में भी चीनी कंपनियां भारी मात्रा में निवेश कर रही है, जो चिंता का विषय है। स्वदेशी जागरण मंच ने इस संबंध पेटीएम समेत कई सेवाओं के बहिष्कार का भी आह्वान किया है।
7. प्रश्न - चीन के कुल निर्यात में भारत का हिस्सा 2-2.5 प्रतिशत है। अगर हम चीनी वस्तुओं को पूरी तरह से भारत में प्रतिबंधित भी कर दे तो भी चीन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे में इस अभियान को क्या फायदा?
उत्तर - यह आंकड़ा सही नहीं है। 2015-16 में चीन के कुल निर्यात 1845 अरब डालर के थे, जबकि भारत को उसके निर्यात 61.7 अरब डालर के थे, जो चीन के कुल निर्यातों का 3.4 प्रतिशत था। साथ ही यह सर्वविदित है कि चीन से भारी मात्रा में माल गैरकानूनी तरीके से भारतीय सीमा में प्रवेष करता है, जो आयात के सरकारी आंकड़ों में शामिल नहीं होता। इसके अलावा चीन से कानूनी रूप से आने वाले आयातों के बिल को भी कम दिखाया जाता है, जिसे ‘अंडर इनवाईसिंग’ के नाम से जाना जाता है। दोनों परिस्थितियों में देष से हवाला के माध्यम से विदेषी मुद्रा चीन जाती है और सरकार को राजस्व का भारी नुकसान भी होता है। इस प्रकार वास्तव में चीन से हमारे आयात 3.4 प्रतिषत नहीं बल्कि 10 प्रतिषत से भी ज्यादा है। यही नहीं यदि देखा जाये तो भारत का चीन से व्यापार घाटा (51 अरब डालर) चीन के कुल व्यापार सरप्लस का 12 प्रतिषत है। यानि हम चीन से आयातों को रोककर न केवल भारतीय उद्योगों को नया जीवन प्रदान कर सकते है बल्कि चीन को भी भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अनेक लोगों का मानना है कि भारतीयों द्वारा चीन के माल के बहिष्कार के कारण ही चीन डोकलाम पर झुका और उसने अपनी सेनाओं को वापिस बुला लिया।
8. प्रश्न - बहुत से उत्पादों पर मेड़ इन चाईना नहीं लिखा होता, तो पहचान कैसे करें?
उत्तर - चीनी आयातों के संबंध में यह समस्या तो है ही। इसका कारण यह है कि चीनी उत्पाद मानकों के स्तर पर सही नहीं हैं। इसलिए उन पर अधिकतम खुदरा मूल्य, स्रोत, कंपनी का नाम इत्यादि कुछ भी नहीं लिखा होता। ऐसे में चीन के माल की कुछ पहचान इस प्रकार से है - मेड इन पीआरसी, बार कोड़-जिसमें पहले तीन अंक हैं-690, 691, 692, 693, घटिया स्तर-694, 695.
9. प्रश्न - यदि हम विदेशों के माल का बहिष्कार करेंगे तो वो भी हमारे (भारत) माल का बहिष्कार करेंगे। ऐसे में तो हमारा ही नुकसान ही होगा?
उत्तर - यह सही है कि स्वदेशी जागरण मंच भारतीय लोगों को विदेशी आयातित वस्तुओं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाई वस्तुओं का उपयोग न करने के लिए आहवान करता है। इसका कारण यह है कि चीन समेत कई देश एक ओर तो भारत को एक डंपिंग ग्राउंड समझते हैं और विदेशी कंपनियां भारत से मुनाफा कमाकर अपने देशों को स्थानांतरित कर रही हैं। जितनी एफडीआई हमारे यहां आ रही है, उससे कहीं ज्यादा पैसा विदेशी कंपनियां अपने देशों में ले जा रही हैं। चीन के माल के व्यापक बहिष्कार के आहवान के कई कारण हैं। एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि हमारा चीन के साथ व्यापार भयावह रूप से असंतुलित है। चीन से हमारा व्यापार घाटा 51 अरब डालर का है, जो हमारे कुल व्यापार घाटे का 47 प्रतिशत है। इस घाटे के कारण हमें भारी रूप से विदेशी मुद्रा का संकट है, जो हमारे रूपये को कमजोर कर रहा है। दूसरे चीन हमारे देश के वृहत बाजार का लाभ भी उठा रहा है और हमारे दुश्मनों की मदद ही नहीं कर रहा बल्कि सीमा पर हमें आंखे भी दिखा रहा है। यही नहीं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ खड़ा दिखाई देता है। चीन ने पावर ग्रिड, टेलीकाम इत्यादि क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को प्रतिबंधित भी किया हुआ है। इन सब कारणों से भारतीय जनता ने चीन को बहिष्कार के हथियार से सबक सिखाने की ठानी है। हमें ध्यान रखना होगा कि भारत ईमानदारी से व्यापार करता है। न तो दूसरे देशों में लागत मूल्य से कम पर माल डंप किया जाता है और न ही मानकों को दर किनार कर निर्यात किया जाता है। हमारे निर्यातों के संदर्भ में मानकों का विशेष ध्यान रखा जाता है, ताकि देश की साख बनी रहे।
Dr. Ashwani Mahajan