स्वदेशी का कार्यकर्ता, व्यवहार एवं कार्यपद्धति
प्रश्न: समर्थक और कार्यकर्त्ता में अंतर।दोनों अलग प्रजाति नहीं। स्टेज है, फूल और फल और बीज। वैसे ही पहले जिज्ञासु, फिर समर्थक, और फिर ठीक से सम्हाला गया तो कार्यकर्त्ता बनता है।समर्थक रेल का डिब्बा माने तो कार्यकर्त्ता रेल का इंजन।
इसी प्रकार ट्रेन की चाल, तेल उसमे कैसा, वोल्टेज कैसी, बार बार वोल्टेज बढ़ना और घटना, यात्री कितने परेशानी इस कारण आदि ये व्यवहार है। डिब्बे ठीक, इंजन ठीक है परन्तु चलाने के ढंग आदि के कारण स्मूथ चलती है या झटके देती है ये व्यवहार है। परंतु इसके अतिरिक्त भी कुछ बातें है। ट्रैन का ट्रैक कैसा है, जगह जगह रास्ते के सिग्नल स्ट्रांग है, रास्ते के गेट आदि कैसे है, स्टेशन की व्यवस्था, उसी ट्रैक में और ट्रेन न आये आदि बाते कार्यपद्धति में आती है। तो तीनों का समन्वय जरूरी है।
कार्यकर्ता के चार गुण
1. समझ हो,
2. समझा सके,
3. समय दे सके,
4. समर्पण
II. व्यवहार:
A.जोड़ने वाला,
B.सकारात्मक, योजनापूर्वक, या व्यवस्थित,
3.सादगीपूर्ण।
4. स्वयं से प्रारम्भ करने वाला, बनाम जनरल सुपर्विसजन एंड मैनेजमेंट वाला।
III. कार्यपद्धति:
1. मंचीय व्यवस्था, या गुरिल्ला युद्ध प्रणाली
2. ,टीम वर्किंग,
3. रेस्पॉन्सिव कोऑपरेशन विथ गवर्नमेंट, अगर सरकार सहयोग नहीं देती, सुनती नहीं है तो आंदोलन, यदि सहयोग करती है तो उससे सहयोग से विषय तथा 4. राजनीती से समानांतर,
5. तीन कामों : रचनात्मक, आंदोलनात्मक तथा तीसरे अन्वेषणात्मक एवं प्रचारात्मक में से रचनात्मक तो 'वन लाइफ न मिशन' का काम, का है अतः इस चक्कर में न पड़ना बल्कि प्रचारात्मक में ज्यादा रखना । रचनात्मक में हमने स्वदेशी मेले, लघु वित्त वितरण आदि हम कर रहे है। इसके अतिरिक्त भी कुछ सी बी एम् डी आदि के कार्य भी हैं। हम इनको सफलतापूएवक निभा रहे हैं। और यदि कोई न माने तो आंदोलन/संघर्श करना और 70
संगठन में - कायदा नही,
व्यवस्था होती है ।
संगठन में - सूचना नही,
समझ होती है ।
संगठन में - कानून नही,
अनुशासन होता है।
संगठन में - भय नही,
भरोसा होता है ।
संगठन में - शोषण नही,
पोषण होता है ।
संगठन में - आग्रह नही ,
आदर होता है ।
संगठन में - सम्पर्क नही ,
सम्बंध होता है ।
संगठन में - अर्पण नही ,
समर्पण होता है ।
इसलिये स्वयं को संगठन से जोड़े रखे
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