अवैध क्लीनिकल ट्रायल - बड़ी चिंता का कारण
पिछले दिनों जो मामला बार सब्क ध्यान खीन्च रहा हे वो हे अवैध क्लीनिकल ट्रायल । ये हे क्या ? इंसान जब अस्पताल में होता है ,बीमार होता है तब उसकी बीमारी ठीक करने के लिए, मर्ज का इलाज करने के लिए कभी-कभार ड्रग ट्रायल किया जाता है। लेकिन अफसोस यह कि क्लीनिकल ट्रायल, ड्रग ट्रायल अब अवैध रूप ले चुका है तभी क्लीनिकल ट्रायल शब्द अब अवैध ड्रग ट्रायल कहलाने लगा है। यह चिंताजनक है जिसका समय रहते निदान ढूंढा जाना चाहिए। इस गंभीर मसले पर एक बात साफ है कि ड्रग ट्रायल के जो नियम-कानून हैं उनकी अनदेखी हो रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक दवा के परीक्षण के दौरान देश में हर दो दिन में तीन लोगों की मौत हो रही है लेकिन लचर कानून का फायदा उठाते हुए जिन दवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय देशों में प्रतिबंधित किया गया है, उन दवाओं को भारत में खुले आम बेचा और मरीजों को सुझाया जा रहा है। यहीं भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण है। जो दवाइयां विदेशों में कई साल पहले बैन हो चुकी है वह भारत में धड़ल्ले से चल रही है और कई अस्पतालों में बेरोकटोक इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
अवैध ड्रग ट्रायल से हो रहे मौत के आंकड़ों की तस्वीर बड़ी भयानक है जो हमें सोचने और जल्द से जल्द कदम उठाने को कहती नजर आती है। भारत में अब तक विभिन्न दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के दौरान मरने वाले 2 हजार 374 लोगों में से सिर्फ 38 लोगों के परिजनों को ही मुआवजा मिल पाया है। देश में जनवरी 2007 से जून 2012 के दौरान हुए क्लीनिकल ट्रायल के दौरान या संबंधित दवाओं के प्रभाव के बाद अब तक कुल 2374 लोगों की मौत हुई। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 2010 में 668, 2011 में 438 और जून 2012 तक 211 लोगों की मौत हुई। साथ ही देश में पिछले ढाई साल में दवा परीक्षण के दौरान 1,317 लोगों की मौत हुई है। यह आंकडे बताते हैं कि हमारे देश में ड्रग ट्रायल के नियम कानून को स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने की वजह से किस तरह से ताक पर रख दिया गया है।
2011 में औषधि परीक्षण के कारण 438 लोगों की मौत हुई जिसमें कैंसररोधी दवाओं से जुड़ी 139, हृदय रोग से जुड़ी 229, मधुमेह से जुड़ी 31, मस्तिष्क एवं रक्त नलिकाओं से संबंधित 11, विषाणुरोधी दवाओं से जुड़ी 12 मौत एवं अन्य रोगों से जुड़ी 16 मौते शामिल है। क्लीनिकल परीक्षण के दौरान कई कारणों ने मरीजों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और मौतें भी होती है। ये मौतें कैंसर, हृदय संबंधी रोग और अन्य गंभीर बीमारियों के कारण हो सकती है। इन मौतों के कारणों और संबंधों का पता लगाने के लिए जांच की जाती है।
कुछ समय पहले एक प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय क्लीनिकल परीक्षण और शोध का बाजार करीब 500 मिलियन डॉलर का है। भारत में यह बाजार करीब दो अरब डॉलर का हो गया है और यह 50 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। दवा बाजार से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि, ज्यादातर नई दवाओं का आविष्कार अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देशों में होता है लेकिन इनका परीक्षण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, अफ्रीकी देश, श्रीलंका जैसे विकासशील और गरीब देशों में किया जाता है।
इन मसले की गंभीरता पर अदालत भी चिंतित है तभी सुप्रीम कोर्ट ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बगैर परीक्षण वाली दवाओं के गैरकानूनी तरीके से लोगों पर किए जा रहे परीक्षणों को रोकने में विफल रहने के लिए केन्द्र सरकार की हाल ही में तीखी आलोचना की और कहा कि इस तरह के परीक्षण देश में तबाही ला रहे हैं और इस वजह से अनेक नागरिकों की मौत हो रही है।
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि देश में सभी क्लीनिकल परीक्षण केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव की निगरानी में ही किये जायें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस मसले पर सरकार गहरी नींद में सो रही है और वह गैरकानूनी तरीके से क्लीनिकल परीक्षण करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस धंधे को रोकने के लिये समुचित तंत्र स्थापित करने में विफल हो गयी है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मसले पर लताड़ लगाते हुए कहा कि मौतों पर अंकुश लगना चाहिए और गैरकानूनी परीक्षण बंद होने चाहिए। न्यायालय ने इस याचिका पर कोई विस्तृत आदेश देने की बजाय पहले ऐसे परीक्षणों बारे में केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया था।
सरकार अब ऐसी पुख्ता व्यवस्था करने पर विचार कर रही है जिसमें दवा परीक्षण से पहले मरीजों के साथ किसी तरह का धोखा न किया जा सके। यह जरूरी भी है। ड्रग ट्रायल कानून भी यही कहता आप मरीज को बताए बगैर किसी भी दवा का परीक्षण नहीं कर सकते। ज्यादतर यह भी शिकायत होती है कि मरीजों की इजाजत के बिना उन पर दवा परीक्षण किए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय एवं उसकी एजेंसी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने नए दिशा निर्देश बनाने शुरू कर दिए हैं। माना जा रहा है कि दो-तीन महीने में परीक्षणों पर कड़े निर्देश तैयार कर उन्हें लागू किया जाए।
लेकिन एक बात जो सबसे जरूरी है वह ये कि हमारे देश में कानून, सख्त नियम, दिशा निर्देश बनकर जरूर तैयार हो जाता है लेकिन उसपर अमलीजामा पहनाने, क्रियान्वित करने, उसके सही ढंग से लागू होने की बात तो कोसों दूर होती है। थोथी दलीलों और लचर कानून से कुछ नहीं होनेवाला। सही मायने में इसके लिए गंभीरता से कोशिश करनी होगी। विदेशों में इसके नियम कानून कठोर है लेकिन भारत में लचर कानून की वजह से मल्टी नेशनल ड्रग कंपनियां भारत का रुख करती है। इसपर नियंत्रण जरूरी है क्योंकि यह मसला उन इंसानों की जिंदगी से जुड़ा है जिनका जीवन अनमोल है।
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