चीन से रुके कारोबार, सामान पर लिखा हो बनाने का खर्चः स्वदेशी जागरण मंच
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इकनॉमिक टाइम्स | Jun 4, 2014, 09.16AM IST
भावना विज अरोड़ा, नई दिल्ली
संघ परिवार की आर्थिक शाखा स्वदेशी जागरण मंच के पास नरेंद्र मोदी सरकार के लिए पूरा अजेंडा है। इसमें एफडीआई पर श्वेत पत्र लाना, जीएम फसलों का फील्ड ट्रायल रोकना, चीन के साथ बिजनस घटाना और शिक्षा के क्षेत्र में नई शुरुआत जैसे कदम शामिल हैं। इसके अलावा मंच ने महंगाई घटाने के लिए भी कुछ सुझाव दिए हैं।
स्वदेशी जागरण मंच ने कीमतों और महंगाई को घटाने के लिए अनोखा आइडिया पेश किया है। स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अरुण ओझा ने कहा, 'किसी भी सामान पर एमआरपी लिखना पर्याप्त नहीं है। किसी भी सामान पर मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट भी लिखी जानी चाहिए, ताकि कंज्यूमर को यह पता चल सके कि मैन्युफैक्चरर कितना मुनाफा बना रहा है। सरकार को दखल देकर रीटेलर और मैन्युफैक्चरर का मुनाफा तय करना होगा। प्रॉफिट की सीमा होनी चाहिए। इससे न सिर्फ कंज्यूमर्स के लिए कीमतें कम होंगी, बल्कि लोगों की तामझाम वाली लाइफस्टाइल पर लगाम लग सकेगी, जिसकी मुख्य वजह जरूरत से ज्यादा प्रॉफिट के कारण होने वाली कमाई है।'
मंच का कहना है कि सरकार को टेलिकॉम और पावर जैसे स्ट्रैटेजिक सेक्टरों में चीन से बिजनस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। भारत को बाकी सेक्टरों में भी चीन के साथ बिजनस खत्म कर दिया जाना चाहिए। सस्ते चीनी सामानों से देश की स्मॉल और मीडियम इंडस्ट्रीज को जबरदस्त चोट पहुंच रही है। स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक ने कहा, 'इससे न सिर्फ लोकल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे।'
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मंच का मानना है कि जीएम फसलों से आर्थिक साम्राज्यवाद का खतरा है। ओझा का कहना है कि उन्हें बीजेपी सरकार से काफी उम्मीदें हैं। उन्होंने बताया, 'पिछले एक दशक में देश में विदेशों का असर बढ़ा है। यह असर सभी सेक्टरों में देखा जा सकता है। कृषि, व्यापार, अर्थव्यवस्था या फिर समाज में भी। सरकार को इस देश को विदेशी असर से मुक्त करने की जरूरत है।'
ओझा बिहार के एक बैंक में काम करते हैं और उन्हें उम्मीद है कि एफडीआई प्रस्तावों पर आगे बढ़ने में सरकार पूरी सावधानी बरतेगी और किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करेगी। स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार को इस मसले पर श्वेत पत्र लाने को कहा था। ओझा का कहना था कि सरकार को रक्षा और ढांचागत क्षेत्रों में निवेश की मांग करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए।
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ओझा ने बताया, 'सरकार को पहले विस्तार से तमाम चीजों का आकलन कर यह देखना चाहिए कि किन सेक्टरों को निवेश की जरूरत है। इसके बाद प्राथमिकता घरेलू निवेश लाने की होनी चाहिए। इसके बाद ही इस बात का फैसला होना चाहिए कि कितने एफडीआई की जरूरत है।' उनके मुताबिक, इन चीजों को तय करने के दो ही पैमाने होने चाहिए- जनहित और राष्ट्रहित।
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