disha Resolution 4 (H)
खेती में विदेषी प्रभाव समाप्त करो
पंूजी के अभाव, तकनीक विकास का अभाव, परंपरागत, रोजगार की समाप्ति, प्राकृतिक जैविक खेती
की समाप्ति ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग के खात्मे तथा पलायन की मार झेल रही भारतीय खेती एवं ग्रामीण
अर्थव्यवस्था की कमर पिछले दस सालों की आर्थिक नीतिओं ने और भी तोड़ दी है।
आज खेती, पषुपालन, मत्स्यपालन, वनोत्पाद संकट के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ माॅन्सेन्टो
जैसी कंपनियेां की नजर भारत के प्राकृतिक क्षेत्र की जैवविविधता पर है और खेती का व्यवसायीकरण बढ़
रहा है तो दूसरी तरफ आधुनिक खेती के कारण भूमि के बंजरीकरण का उसरीकरण का संकट और ज्यादा
बढ़ गया है। विकास के नाम पर बड़ी परियोजनाओं ने पर्यावरण संकट के साथ बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि
में जल-जमाव और दलदल का संकट पैदा किया है। जल, जमीन और जंगल के सवाल गहरे अंतरविरोध
को रेखांकित कर रहे हैं। स्वदेषी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय सभा अपील करती है कि जमीन, जल और
जंगल के प्रबंधन एवं उपयोग का स्वदेषी माॅडल विकसित किया जाय। खेती के लिए स्वदेषी, उन्नत बीजों
को विकसित किया जाय। वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून द्वारा छोटे-छोटे गरीब किसानों से भूमि अधिग्रहण
किया जाता है। रियल स्टेट एवं विषेष आर्थिक क्षेत्रों के नाम पर किये जा रहे भूमि अधिग्रहण से खेती को
भयानक नुकसान हो रहा है। स्वदेषी जागरण मंच का विष्वास है कि किसान, मजदूर, कारीगर और उनसे
जुड़े सहायक क्रियाकलाप, स्वदेषी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करने के अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार का अवसर प्रदान करते हैं।
स्वदेषी जागरण मंच का दृढ़ विष्वास है कि भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया जाये और भूमि
अधिग्रहण कानून की वर्तमान संरचना के वर्तमान कानून तत्काल बदले जाएं। भूमि अधिग्रहण के समय
अपवादों को छोड़कर किसी भी परिस्थिति में कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाय। जमीन की
मालकीयत का हस्तांतरण नहीं किया जाय और जमीन 30 साल के पट्टे पर दिया जाय और किसानों को
कारखाने में हिस्सेदार भी बनाया जाय ताकि किसान हिस्सा एवं पट्टे से प्राप्त राषि से खेती लायक बन
सकें।
अब समय आ गया है कि सरकार खेती एवं अन्य गतिविधियों के व्यवसायीकरण पर रोक लगाये।
पट्टे पर खेती को बढ़ावा न दे। कारखाना, परियोजनाओं आदि के लिए बंजर, उसर और अनुपयोगी जमीन
का ही उपयोग हो। आधुनिक खेती पद्धति में परिवर्तन लाया जाय। जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा
दिया जाये। ग्रामीण क्षेत्रों कृषि आधारित उद्योग, ग्रामीण, कुटीर उद्योग तथा खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा
देकर किसानों के लिए सम्मानजनक मूल्य तथा रोजगार का अवसर पैदा किये जायें।
जैव सवंर्द्धित खाद्यानों (जी.एम.) के बीजों के प्रयोग और परीक्षण पर तत्काल रोक लगे। इस प्रकार
के प्रयोग एवं परीक्षण समग्र मानवता, पषुधन, पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। यह सामान्य
खेती को प्रभावित करते हंै जिस पर नियंत्रण संभव नहीं है।
कृषि मूल्य नीति को लागत और मुनाफा आधारित बनाना चाहिए। वर्तमान सत्ताधारी दल ने अपने
चुनावी घोषाणा पत्र में स्पष्ट कहा था कि कृषि समर्थन मूल्य लागत मूल्य पर 50 प्रतिषत अतिरिक्त जोड़कर
दिया जायेगा। यह बात स्वामीनाथन कमीषन की रिपोर्ट में भी कही गई है। उत्पादन मूल्य को समय-समय
पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए और समय-समय पर तैयार करना चाहिए। मंच की राष्ट्रीय सभा सरकार
से अपील एवं मांग करती है कि चुनावी घोषणा को तत्काल लागू करे।
बड़े पैमाने पर रख-रखाव एवं यातायात की असुविधा के कारण तैयार फसलों की बर्बादी होती है।
जिससे किसानों को घाटा होता है। एफ.डी.आई. को खुदरा व्यापार में लाने के पीछे यह कारण भी बताया
गया था। किसानों को एफ.डी.आई. की आवष्यकता नहीं है, परंतु उपयुक्त यातायात सुविधा एवं भंडारण की
आवष्यकता है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त शीतगृह एवं गोदामों की व्यवस्था की जाये। राष्ट्रीय
हित में स्थानीय स्तर पर यातायात एवं भंडारण का तंत्र विकसित होना चाहिए।
राष्ट्रीय सभा की मांग है कि कारखाना उत्पादों का लागत मूल्य, बाजार मूल्य के साथ अंकित करने
का प्रावधान करे ताकि किसान एवं खाद्य प्रसंस्करण के उद्योगों के बीच संतुलन कायम हो। इसी प्रकार
खेती की जरूरत के उत्पादनों पर यह नियम लागू करना चाहिए।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीतिओं में विरोधाभास का षिकार है। उदाहरण के रूप में चीनी उद्योग को
लिया जा सकता है। एक तरफ उत्पादन लागत बढ़ने के कारण गन्ने का उचित मूल्य बढ़ाना जरूरी है,
लेकिन दूसरी सरकार एथेनाॅल और चीनी का दाम संगतपूर्ण बनाने के लिये तैयार नहीं, जिसके कारण चीनी
उद्योग समेत अन्य कृषि आधारित उद्योग संकटग्रस्त है। स्वदेषी जागरण मंच सरकार से मांग करती है कि
सरकार तत्काल इस भ्रम को दूर करे और सलाह देती है कि लागत जोड़ नीति को स्वीकार कर उचित एवं
सम्मानजनक मूल्य नीति बनाये, जो आम आदमी को राहत दे।
स्वदेषी जागरण मंच यह मांग करता है कि खेती, खेती आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग,
कुटीर उद्योग, घरेलू उद्योग एवं गा्रमीण उद्योग, खादी को मनरेगा के साथ संबद्ध कर उत्पादन व रोजगार को
बढ़ावा दे। यह सरकार को एक सबल, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, स्वदेषी तथा विकासषील भारत के निर्माण में
मदद करेगी तथा एक प्रकार से सामाजिक, आर्थिक क्रांति को जन्म देगा।
इस देष की अजीब विडम्बना है कि जहां एक ओर 55 प्रतिषत से ज्यादा लोग खेती में लगे हैं, वहां
कोई कृषि नीति ही नहीं है। सरकार भारतीय कृषि नीति अविलंब घोषित करे।
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