नगरीय विकास का क्या कोई भारतीय मॉडल है?
भीलवाड़ा दिनांक 31 जुलाई 2016
आज यहाँ पर एक विचार गोष्ठी इस उपर्युक्त शीर्षक के साथ रखी गयी थी जिसमें में भी एक वक्ता या मुख्य वक्ता था। तत्काल कुछ स्फुट विचार जो मन में आये और जनसत्ता में स्मार्ट सिटी पर जो लेख पढ़ा, उसी को मिला जुला कर यह प्रस्तुति है। श्री भगवती लाल जगेटिया, पूर्व इतिहासाध्यक श्यामसुन्दर जी और प्रोफ राजकुमार जी भी वक्ता थे।
1.1 भारत की 38 करोड़ शहरी आबादी संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार, 2031 तक बढ़कर 60 करोड़ होने वाली है। जाहिर है, योजनाबद्ध शहरी विकास आज हमारी आवश्यकता है। बेहतर नागरिक के साथ-साथ प्रदूषण मुक्त शहरों के निर्माण में देश के सीमित संसाधनों का उपयोग किया जाए, यह शहरी निर्माण विशेषज्ञों के लिए चुनौती है।
1.2 स्वदेशी जागरण मंच के नाते हमारी गाँव में श्रद्धा है, विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था की लघु इकाई है, और हम मानते है कि भारत वास्तव में गाँव में ही बसता है। लेकिन शहर भी हमारी संस्कृति का अंग रही है। प्रति सुबह हम बोलते है, अयोध्या, मथुरा माया, काशी कांची, अवंतिका, पूरी द्वारावती चैव, सप्तेयता मोक्षदायिका। नरक दायिका नहीं, मोक्षदायिका।
वैसे भी हम जानते है की भगवान कृष्ण पले-बढे तो नन्द गाँव में लेकिन बसाई नगरी जो अब समुद्र में है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा तो जितने विकसित है, उतनी आजकी नगर नगरी भी नहीं, ऐसा लगता है। हाँ, आज जब भी विकसित नगर की बात होती है तो पेरिस के मॉडल से होती है और हम भूल जाते है कि यहाँ उससे भी विकसित कोई पाटलिपुत्र भी था जिसे अभी पटना है। इंग्लैंड का जिक्र करेंगे परंतु इंद्रप्रस्थ भी था। बात सिंगापूर से शुरु होती है और पुराने मायापुरी कप भूल जाते। अग्रोहाधाम को भी स्मरण करना चाहिए जहाँ की गरीन कार्ड पॉलिसी क्या गज़ब थी की आने वाले को एक ईंट और एक स्वर्ण मुद्रा हर स्थानीय व्यक्ति दिया करते थे। टैक्स लेते नहीं थे।
1.3. हमारे देश में ‘जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन’ योजना पहले से जारी थी। इसका लक्ष्य सभी शहरों का विकास करना था। फिर नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के एक माह के भीतर ‘स्मार्ट सिटी परियोजना’ की घोषणा करने से पता चलता है कि सरकार की प्राथमिकताएं बदल रही हैं।
इसकी घोषणा के फौरन बाद अमेरिका की ‘स्मार्ट सिटी काउंसिल’ की भारतीय शाखा ‘स्मार्ट सिटी कांउसिल ऑफ इंडिया’ का गठन किया जाना बतलाता है कि यह योजना मात्र हमारे देश तक सीमित नहीं है। इसकी अलग-अलग शाखाएं विभिन्न देशों में खुल चुकी हैं।
1.4 अमेरिका के योजनाकारों की मानें तो विश्व भर में लगभग 5000 स्मार्ट सिटीज बनेंगी, जिनमें भारत को केवल 100 आवंटित की गई हैं।
आज नजर निवेशकों पर नजर
मई, 2015 में दिल्ली में हुई स्मार्ट सिटी कॉन्फ्रेंस ने इन 100 शहरों के निर्माण में अगले 20 वर्षों में एक लाख 20 हजार करोड़ डॉलर खर्च होने का अनुमान लगाया है। आज एक डॉलर लगभग 69 रुपये का है तो यह रकम लगभग 82 लाख 80 हजार करोड़ रुपये बैठती है, जो हमारे जीडीपी के 60 प्रतिशत के बराबर है। आज जब सरकार शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण, स्वास्थ्य, मनरेगा, स्वच्छ पानी इत्यादि पर अपने खर्चे कम कर रही है, तो सोचा जाना चाहिए कि इतना सारा खर्च सरकार कैसे कर पाएगी?
1.5 उसे अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से उधार लेना पड़ेगा, जो जाहिर है उनकी शर्तों पर ही मिलेगा। संभव है कि सरकार को जन-कल्याण योजनाओं के खर्च में और अधिक कटौती करने के लिए कहा जाए। ग्रीस, स्पेन और अन्य कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को विश्व बैंक और आईएमएफ ने अपने कर्ज में फांस कर उनका क्या हश्र किया, यह जगजाहिर है।
भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने अपने ‘ड्राफ्ट कॉन्सेप्ट नोट ऑन स्मार्ट सिटी मिशन’ में स्मार्ट सिटी की विशेषताएं इस तरह गिनाई हैं- ‘यहां बहुत ही उच्च स्तर पर गुणवत्तापूर्ण जीवन होगा, जिसकी तुलना यूरोप के किसी भी विकसित शहर से की जा सकती है। स्मार्ट सिटी वह स्थान होगा जो निवेशकों, विशेषज्ञों और प्रफेशनल्स को आकर्षित करने में सक्षम होगा।’ ये निवेशक और विशेषज्ञ सूचना व संचार तकनीकों पर निर्भर होंगे।
2. क्या बहुत जरूए है इस विषय पर बोलना और स्मार्ट सिटी बनाने?
2 .1 अब जरा दूसरी तरफ देखिए तो आज दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारतीय है। यहां स्वच्छ पानी केवल 34 प्रतिशत आबादी को उपलब्ध है। शौचालय की सुविधा अभी देश की आधी आबादी के पास नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सिर्फ 2012 में 98 लाख 16 हजार लोग भारत में ऐसी बीमारियों से मर गए, जिनका इलाज सहज ही संभव था। ऐसी परिस्थितियों में हमारी प्राथमिकताएं शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सस्ता भोजन होनी चाहिए, न कि स्मार्ट सिटी।
2 .2
2008 की मंदी ने बहुराष्ट्रीय निगमों की आर्थिक स्थिति पतली कर दी थी। इसकी मुख्य वजह यह थी कि उनके उत्पादन के लिए खरीदार नहीं मिल रहे थे। आज भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। उत्पादित माल गोदामों में पड़े हैं और उन्हें खरीद सकने वालों की जेबें खाली हैं।
2.3 स्मार्ट सिटी परियोजना का विश्व-व्यापी लक्ष्य महामंदी के दलदल में फंस चुकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उबारना है। स्मार्ट सिटी के इस अभियान का नेतृत्व अमेरिका की आईबीएम और ऑप्टिकल नेटवर्क बनाने वाली कंपनी ‘सिस्को सिस्टम’ कर रही हैं। इनके साथ ही बिजली, गैस व पानी के स्मार्ट मीटर बनाने वाली इटरोन, जनरल इलेक्ट्रिक, माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, स्विट्जरलैंड की एजीटी इंटरनेशनल और एबीबी, इंग्लैंड की साउथ अफ्रीका ब्रूअरीज जो बीयर के अलावा घरेलू उपभोक्ता सामान भी बनाती है, जापान की हिताची व तोशीबा, चीन की ह्वावेई जर्मन की सीमन्ज इत्यादि अपना माल बेचने की उम्मीद में इस स्मार्ट-सिटी अभियान में पूरे उत्साह के साथ शामिल हैं।
2.4 कोई आश्चर्य नहीं कि 17-18 फरवरी 2015 को इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित स्मार्ट सिटीज सम्मेलन के पहले सत्र में ही चर्चा का विषय था, ‘भारत में स्मार्ट सिटीज विकसित करने में अमरीकी कंपनियों के लिए अवसर।’ जिस तरह कोई बिल्डर अपनी हाउसिंग परियोजना के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए एक मॉडल घर का निर्माण करता है, उसी तर्ज पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने दो प्रोटोटाइप स्मार्ट सिटीज का निर्माण किया है। उनमें एक शहर बार्सिलोना है और दूसरा अबूधाबी के निकट तैयार हो रहा शहर मसदर। जिन शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए परियोजना के पहले चरण में चुना गया है, वहां के महापौर और नगर-निगम के मुख्य अधिकारियों को विडियो द्वारा इन शहरों की चकाचौंध दिखाई जा रही है।
खास खरीदारों के लिए
स्मार्ट सिटी को लेकर 16 फरवरी, 2015 को हमारे प्रधानमंत्री ने अमेरिका के मीडिया मुगल और वहां के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति माइकल ब्लूमबर्ग से मुलाकात की और ‘सिटी चैलेंज प्रतियोगिता’ का प्रबंधन इन्हीं सज्जन की तथाकथित लोकोपकारी संस्था ब्लूमबर्ग फिलनथ्रॉपी को सौंप दिया। उपलब्ध सुविधाओं तथा मांग व आपूर्ति के हिसाब से इन स्मार्ट सिटीज में आवास की कीमतें ज्यादा होंगी। इसका नतीजा यह होगा कि भारत के आम लोगों के लिए इन शहरों में रहना काफी मुश्किल होगा, और अगर यहां किसी ने कोई झुग्गी-झोपड़ी डालने की कोशिश की तो बलपूर्वक उसे बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा लगता है कि ये स्मार्ट शहर भारत के उभरते नव-धनाढ्य वर्ग के स्मार्ट लोगों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारोबार के हित में बनाए जा रहे हैं।
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