For the last 25 years Swadeshi Jagaran Manch is relentlessly and successfully safeguarding the country from the onslaught of WTO. But the recent threat from China is really intriguing.China is engaged in most aggressive hostilities against Bharat in economic as well as military arenas. Five threats from China are very conspicuous. Three challenges are usually well discussed namely, threat to employment , economy and security. But threat to health , say, environment and its global hegemonic designs are rarely discussed. Despite all these dangers, we have been economically empowering the Chinese economy by purchasing Chinese products, worth more than 4-5 lakh crores a year, leading to unabated industrial closures, large scale unemployment and wide trade deficit for the country, ranging between $45 to $52 billion a year in last 3 years, the highest and 45% of the country’s total deficit. Consequently, due to wide trade gap, the value of Rupee has sharply declined by 30% in 6 years, from Rs 50 in 2011 to Rs 65 per dollar now. Besides more than 300 industry verticals, 200 industry clusters and 3 lac small and medium scale units are facing imminent closure, whereby more than a crore persons may be rendered jobless either directly or indirectly. We are getting a good response to all our programmes of Rashtriya Swadeshi Sursksha Abhiyan. Over one crore people have expressed solidarity with the cause by signing our petition. On 29 October 2017 a mega rally will be held in Delhi at Ramlila grounds where people will participate from all the nooks and corners of the country. Here are a few eye-opening examples of how China is bulldozing our trade and manufacturing. It has doubled the price of Amoxicillin in a year and raised the price of Folic Acid 11 times from Rs. 4,500 per kg to Rs. 50,000 per kg in 2016. Similarly we Indian have
Monday, August 21, 2017
Sunday, August 20, 2017
प्रेस नोट
प्रेस नोट
स्वदेशी जागरण मंच स्वदेशी नीतियों के प्रसार के लिए कटिबद्ध है, और आज इस अवधारणा को चीन से बड़ा खतरा है। यहां तक कि रक्षाबंधन पर राखियां भी बड़ी मात्रा में चीन से आयात हो रही हैं। चीन से आज पांच किस्म का खतरा है: बेरोजगारी, व्यापारिक, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण, सुरक्षा एवं साम्राज्यवादी नीतियों का। हमारा अभियान इस चुनोति के प्रति जनजागरण, और चीनी सामान के बहिष्कार के लिए मानसिकता तैयार करना है। वर्ष 2015-16 में चीन से हमारा व्यापार घाटा 52.7 अरब डालर तक पहुंच चुका था, जो हमारे कुल व्यापार घाटे (119 अरब डालर) का 44 प्रतिशत था।
हमारे देश से व्यापार द्वारा भारी लाभ उठाने के बावजूद भी चीन भारत से लगातार शत्रुता का भाव रखता आया है। पाकिस्तान के अनाधिकृत कब्जे वाले भारत के भू-भाग में सैनिक अड्डे बनाने का काम हो, भारतीय सीमा का अतिक्रमण हो, कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के अड़ंगा डालना हो, भारत के न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एन.एस.जी.) में सदस्यता की बात हो, या अरूणाचल प्रदेश समेत भारत के कई भू-भागों पर अपना अधिकार जताते हुए, भारत को बार-बार परेशान करने की बात हो, चीन के कुकृत्यों की एक लंबी सूची है।
चीन के कारण हमारी अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसानों और उसके आयात के कारण होने वाली उद्योग बंदी व बेरोजगारी के मद्देनजर भारत की जनता द्वारा पिछले साल चीनी सामान के बहिष्कार के चलते दीपावली के अवसर पर चीनी माल की बिक्री पर 30 से 50 प्रतिशत का असर हुआ था। ,
जनता द्वारा इस ऐतिहासिक बहिष्कार और आपके नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा पहले चीनी पटाखों के आयात पर प्रतिबंध और बाद में चीन से प्लास्टिक वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने के कारण चीन से आने वाले आयातों में कमी के फलस्वरूप 2016-17 के प्राप्त आकड़ों के अनुसार चीन से व्यापार घाटा 2 अरब डालर कम रहने की उम्मीद है। चीनी स्टील पर भी आपकी सरकार द्वारा 18 फीसदी एंटी डंपिंग टयूटी लगाने का स्टील उद्योग पर बहुत अच्छा असर हुआ है। पटाखे, पतंग के माझे, प्लास्टिक की कुछ चीजों पर प्रतिबन्ध से भी लाभ हुआ है। भारत सरकार ने ओबोर, अर्थात 'वन बेल्ट, वन रूट' के लिए आयोजित बैठक कर चीन को कड़ा सन्देश दिया है।
पिछले वर्ष के चीनी बहिष्कार के अभियान को जारी रखते हुए, स्वदेशी जागरण मंच ने वर्ष 2017 को ‘चीनी वस्तुओं और कंपनियों के बहिष्कार का वर्ष’ घोषित किया है। इस वर्ष के अभियान के पहले चरण में स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने देश भर में आमजन से हस्ताक्षर करवाते हुए युवाओं के रोजगार को बचाने हेतु चीनी माल के बहिष्कार का संकल्प करवाया है। इस हस्ताक्षर अभियान को देश भर में भारी समर्थन प्राप्त हुआ है, और एक करोड़ लोगों ने संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए।
अगले चरण में 688 ज़िलों में से 500 जिलो के जनजागरण हेतु ज़िला सम्मलेन हो चुके हैं
। दिवाली से पहले घर-घर में ऐसा संपर्क और ब्लॉक् स्तर की विचार गोष्ठियों का आयोजन होने वाला है। 29 अक्टूबर को दिल्ली के प्रसिद्ध रामलीला मैदान में दिन भर का विशाल जनसभा का आयोजन होगा जिसमें प्रख्यात विद्वान, लेखक व चिंतक सम्मिलित होंगे।
इस अभियान को सफल बनाने हेतु ही आज यहाँ कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है।
Monday, August 14, 2017
भारत के वनों की कीमत रूस की जीडीपी से ज्यादा
सारांश 1:
रूस और कनाडा की GDP से ज्यादा है भारत के पास जंगल, भारतीय वन संपत्ति का मूल्य है 115 लाख करोड़ रुपए
सारांश क्र: 2 :
भारत ने अपनी वन संपत्ति और जंगलों का वित्तीय मूल्याकंन करने का फैसला किया है और इसका मूल्याकंन 115 लाख करोड़ रुपए (1.7 लाख करोड़ डॉलर) या कहो कि 1.7 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है।
भारत ने अपनी वन संपत्ति और जंगलों का वित्तीय मूल्याकंन करने का फैसला किया है और इसका मूल्याकंन 115 लाख करोड़ रुपए (1.7 लाख करोड़ डॉलर) आंका गया है। यह आंकड़ा भारत की जीडीपी से तो कम है, लेकिन यह कनाडा, कोरिया, मेक्सिको या रूस जैसे देशों की जीडीपी से कहीं ज्यादा है। भारत सरकार द्वारा 2013 में गठित किए गए विशेषज्ञों एक पैनल ने यह मूल्याकंन किया है। सरकार ने इस पैनल से वन भूमि का मूल्याकंन नेट प्रजेंट वैल्यू (एनपीवी) पर तय करने के लिए कहा था, इसमें वो सभी वन भूमि शामिल की गई है जिसे इंडस्ट्रियल या कंस्ट्रक्शन उद्देश्य के लिए परिवर्तित किया गया है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट के प्रोफेसर और इस रिपोर्ट कौ तैयार करने के लिए गठित पैनल की सदस्य मधु वर्मा कहती हैं कि वन भूमि के मूल्याकंन को लोगों के सामने रखने से लोग इसकी चिंता (वन भूमि के परिवतर्नन से जुड़े मामलों पर) गंभीरता से करेंगे। भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने कमेटी की इस रिपोर्ट को अपनी मंजूरी दे दी है।
1980 से अब तक भारत सरकार 12.9 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि के गैर-वन उद्देश्य के लिए डायवर्जन को अनुमति दे चुकी है। भारत में 7 लाख वर्ग किलोमीटर का कुल वन क्षेत्र है, जो पिछले दो सालों में 0.54 फीसदी की दर से बढ़ा है। इस नई रिपोर्ट में प्रति हेक्टेयर एनपीवी 9.87 लाख रुपए से 55.55 लाख रुपए के बीच तय की गई है।
भारतीय वनों की सुरक्षा है जरूरी
भारत में, प्राइवेट कंपनियां और अन्य संस्थाएं वन भूमि पर प्रोजेक्ट लगाने की अनुमति के बदले सरकार को शुल्क का भुगतान करती हैं। मौजूदा नियमों के मुताबिक, कंपनियों को वन भूमि का उपयोग करने के लिए नेट प्रजेंट वैल्यू के इतर वनीकरण के प्रतिपूरक के रूप में राशि जमा करने को कहा जाता है। यह राशि एक कॉमन सरकारी पूल में जमा किया जाता है, जहां से धन राज्यों को विभिन्न वनीकरण योजनाओं के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
मई में नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रतिपूरक वनीकरण नियम में प्रमुख बदलाव करने का निर्णय लिया। नया कानून भारत के वन क्षेत्र को 21.34 फीसदी से बढ़ाकर 33 फीसदी करने में बहुत मददगार होगा। इस नए कानून में यह भी कहा गया है कि कॉमन पूल से 90 फीसदी राशि राज्यों को उपलब्ध कराई जाएगी, जबकि शेष राशि केंद्र सरकार के पास रहेगी। लेकिन यह भी वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। वर्मा का कहना है कि आप वनों को रिप्लेस नहीं कर सकते। यह कोई उत्पादन नहीं है जिसे किसी चीज के बदले बाजार में बेचा जा सकता है।
जंगल के विस्तार पर भारत खर्च करेगा 41,000 करोड़ रुपए
मोदी सरकार ने भारत के वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए 41,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है। इसके लिए प्रतिपूरक वनीकरण निधि विधेयक-2015 को लोकसभा द्वारा पारित किया जा चुका है। अब इसे राज्यसभा से पारित कराना शेष बचा है।
ऐसा नहीं है कि भारत की प्राचीन परंपरा में वनों का महत्व नही आंका गया था। हमारे यहाँ जंगलो के रख रखाव के बड़े सख्त कानून थे। इस देश मे 250 वर्ष पूर्व राज्थान में पौने तीन सौ व्यक्तियों ने अपने प्राण अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में वृक्षों को बचाने के लिए न्यौछावर किये
हैं। आज़ादी के बाद भी उत्तराखंड में चिपको आंदोलन बड़ी सफलता के साथ चला।
Thursday, August 10, 2017
पंजाबी गीत, स्वदेशी जागो!
सवदेशी दी जागो
जाग जवाना, जाग किसाना, जाग दुकानदारा,
बाई हुन जागो आईऐ.....
जे ना जागिआ, जे ना संभलिआ,
वैरी करजू कारा, बई हुन जागो आईऐ....
छड्ड विदेशी माल दा खहड़ा,
ला सवदेशी नारा, बई हुन जागो आईऐ...
सवदेशी अपनाए बिन, हुन नहीं तेरा गुजारा, नई हुन....
1. चोर विदेशी घर विच वडिआ, लुट्टी गई रसोई
मिट्टी, लोहे, पित्तल तांबे दा, बर्तन दिसे ना कोई
चाकू, छुरीआं, तवे परातां, दालां वाले डब्बे
सब दे ऊपर Made In China दा ही मार्का लभ्भे
माओ, ताओ दे चेलिआं उते, हावी होइआ सवार्थ
धीमा जहर, बिमारी वंडदे, नकली खाद पदार्थ
चोल पलासटक वाले आ गए, नकली मिर्च मसाले
की-की दस्सां चीनी माल दे, की-की घाले माले
चाटी गाइब, मधानी गाइब, गाइब होए दुध लस्सी
जंक फूड ने देश दी भावी, पीड़ी करदी खस्सी
की मैं झूठ बोलिआ ? कोई ना !
की मैं कुफर तोलिआ ? कोई ना!
दुनीआ पट्टी सुआदा ने,
कीड़े मार दवाईयां ने, स्प्रेआं ने, खादा ने
जेहादी दंगे-फसादां ने, फिरकू वाद-विवादा ने
धृतराष्ट्र दीयां औलादा ने
2. कूड़ा कचरा ढाल-गाल के, उसदे पैसे वट्टी जांदे
साडे अखी घट्टा पाके, साडीयां जेबां कट्टी जांदे।
सस्ता-सस्ता कहिके, सारा गंद पिलपले पाई जांदे
साडे लोकी फुकरेपन विच, झुगा चोड़ कराई जांदे।
उतो-उतों जो सस्ता दिसदा, उह आखर नूं महिंगा पैदां
पिछों जा के असर दिखाउनदा, औला खादा सिआना किहंदा
सुचम करो बहाल देश दी, चुक दिऊ गंद-खिलारा
बार्ड हुन जागो आईए
छावा बाई हुन जागो आईए
3. चीन-पाक चंदरे गुआंडी, तेरे इक ऊए
कडी जान अखां तैनंू, ठोकी जान हिक ऊए
पर तेरे घर दे ही जीआं विच फिक ऊए
छोटे-छोटे लालचां च जान लोकी विक ऊए
चीन नंू तां रोंदे ऊ, बाकी किहड़ा घट ए
जीहने जिथे देखिआ, मारी गुझी सट ए।
आपो-आपने लोभ ए, आयो-आपनी लोड़ए
तेल वाले खुहां ऊते, कबजिआं लई होड़ ए।
साडे लई तां दुनीआं कुटुम्ब ए-परिवार ए
ऊहना लई इह दुनीआं, मंडी ए, वपार ए।
भला सरबत दा असी तां सदा मंगदे
पर ऊह तां रात-दिन खाब लैन जंग दे।
नाले अतवादी भेजे, नाले हथिआर बई
साडे फोजी वीरां नाल करे तकरार बई।
नाल कुछ गले होए देश दे गदार बई
अखोती बुद्धिजीवी ने अखोती साहितकार बई, अखोती पत्रकार बई
कोमी चरित्र हो गिआं तितर, स्वार्थ दा वरतारा,
बई हुन जागो आई ए
छावा बाई हुन जागो आई ए
5. होली-होली चोर साडी आस्था नू पै गए
आ के बरोबर साडे, पुरखिआं डे बहि गए।
खूब आ रिहै रास चीन नू फेंगशुई दा धन्दा
डडु, कछु, ड्रैगन, बिली एते ढिड्डल जिहा बन्दा।
वासतु दोश दा हऊआं दिखा के वेचन दे मंत्र
तर्कशील वी बस साडे ही धर्म दी करदे भंडी
लाल-माल नाल पेपर एहनां दी है गन्डी-सन्डी।
समझदार लई हुन्दा है बस काफी एक इशारा,
बई हुन जागो आई ऐ।
छावा बई हुन जागो आई ऐ।
6. कारीगर, दर्जी, घुमार ते चमार जी
रेडीमेड चीजां ने कर ते बेकार जी।
गृह उद्योगा वाला भठा गिआं बहि जी
ढहन्दे-ढहन्दे आर्थिक डांचा गिआं ढह जी।
अमीर ते गरीब विच पाड़ा रिहा वध जी।
मिलूगा समाजिक नीआं खोरे कद जी
सारीयां तो वंध अज दुखी ए किसान जी
कर्जयां दा बोझ ऊहदी कडी जांदा जान जी।
बैलां दी जोड़ी नाल खेत जदों वाहुंदा सी,
गेड़दे होए खुह ऊदों डोले दीयां लाहुन्दा सी
थोड़ा ऊगाऊंदा भावे थोड़ा कमाऊंदा सी दाता-दानी, खेतां दा साधु कहाऊंदा सी।
एहनू भोले पंछी नू पता वी ना लगिआं, हरे इनकलाब दे नांह ते गिआं ठगिआं
देसी-जैविक तकनीका नंू देना पऊ हुगारा, बई हुन
जागो आई ए.....
7. रल-मिल सबने एस वार कुछ ऐसी दिवाली मनौडी आ।
देश तो बाहर गई लक्ष्मी, वापस मोड़ लिआउडि आ।
चीन दे पटाके चलाऊने नहीं
चीन दे पटाके पाऊने आ
सड़ीआं-लड़ीआं दी थां एदकी
मिटी दे दीवे जागाऊंडे आं।
जेकर चीन नंू करना सूत
गृहि उद्योग करो मजबूत।
नाहरा करो बुलन्द बई स्वदेशी दा
आऊ छड़िये खहिड़ा चीन कलेशी दा
सो रोगां दी इर दवां
स्वदेशी चीजां आपना।
चीनी माल ना वेचांगे, ना खरीदांगे, ना वरतांगे,
देश दी खातिर स्वदेशी वल परतांगे।
फिर तो विश्वगुरू दा दर्जा पावे देश प्यारा, बई
हुन जागो आई ए।
हसदा-वसदा देश गुलाम ना हो जे किते दुबारा,
बई हुन जागो आई ए।
एस जंग विच मोदी ही ना, कहि जाए कल्ला कारा,
बई हुन जागो आई ए।
स्वदेशी ने लाऊना बहे हुबिआं अर्थचारा,
बई ुहन जागो आई ए।
जाग जवाना, जाग किसाना, जाग दुकानदारा,
जे ना जागिआ, जे ना संभालिआं,
वैरी करजू कारा, बई हुन जागो आइ ए।
अश्वनी गुप्ता
94642-93764ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਦੀ ਜਾਗੋ
ਜਾਗ ਜਵਾਨਾ, ਜਾਗ ਕਿਸਾਨਾ, ਜਾਗ ਦੁਕਾਨਦਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ....
ਜੇ ਨਾ ਜਾਗਿਆ, ਜੇ ਨਾ ਸੰਭਲਿਆ, ਵੈਰੀ ਕਰਜੂ ਕਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ..
ਛੱਡ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਮਾਲ ਦਾ ਖਹਿੜਾ, ਲਾ ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਨਾਹਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ............
ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਅਪਣਾਏ ਬਿਨ ਹੁਣ, ਤੇਰਾ ਨਹੀਂ ਗੁਜਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ..........
ਚੋਰ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਘਰ ਵਿਚ ਵੜਿਆ, ਲੁੱਟੀ ਗਈ ਰਸੋਈ
ਮਿੱਟੀ, ਲੋਹੇ, ਪਿੱਤਲ, ਤਾਂਬੇ ਦਾ ਬਰਤਨ ਦਿਸੇ ਨਾ ਕੋਈ।
ਚਾਕੂ-ਛੂਰੀਆਂ, ਤਵੇ-ਪਰਾਤਾਂ, ਦਾਲਾ ਵਾਲੇ ਡੱਬੇ
ਸਭ ਦੇ ਉਪਰ Made In China ਦਾ ਹੀ ਮਾਰਕਾ ਲੱਭੇ।
ਮਾਓ-ਤਾਓ ਦੇ ਚੇਲਿਆਂ ਉੱਤੇ, ਹਾਵੀ ਹੋਇਆ ਸੁਆਰਥ
ਧੀਮਾ ਜ਼ਹਿਰ, ਬੀਮਾਰੀ ਵੰਡਦੇ, ਨਕਲੀ ਖਾਧ-ਪਦਾਰਥ।
ਚੌਲ ਪਲਾਸਟਿਕ ਵਾਲੇ ਆ ਗਏ, ਨਕਲੀ ਮਿਰਚ-ਮਸਾਲੇ
ਕੀ-ਕੀ ਦੱਸਾਂ ਚੀਨੀ ਮਾਲ ਦੇ ਕੀ-ਕੀ ਘਾਲੇ-ਮਾਲੇ।
ਚਾਟੀ ਗਾਇਬ, ਮਧਾਣੀ ਗਾਇਬ, ਗਾਇਬ ਹੋਏ ਦੁੱਧ ਲੱਸੀ,
ਜੰਕ ਫੂਡ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਭਾਵੀ ਪੀੜ•ੀ ਕਰਤੀ ਖੱਸੀ।
-ਕੀ ਮੈਂ ਝੂਠ ਬੋਲਿਆ? ਕੋਈ ਨਾ
-ਕੀ ਮੈਂ ਕੁਫਰ ਤੋਲਿਆ? ਕੋਈ ਨਾ
ਦੁਨੀਆਂ ਪੱਟੀ ਸੁਆਦਾਂ ਨੇ,
ਕੀੜੇ ਮਾਰ ਦਵਾਈਆਂ ਨੇ, ਸਪ੍ਰੇਆਂ ਨੇ, ਖਾਦਾਂ ਨੇ
ਜੇਹਾਦੀ ਦੰਗੇ-ਫਸਾਦਾਂ ਨੇ, ਫਿਰਕੂ ਵਾਦ-ਵਿਵਾਦਾਂ ਨੇ
ਧ੍ਰਿਤਰਾਸ਼ਟਰ ਦੀਆਂ ਔਲਾਦਾਂ ਨੇ
ਕੂੜਾ ਕਚਰਾ ਢਾਲ-ਗਾਲ ਕੇ, ਉਸਦੇ ਪੈਸੇ ਵੱਟੀ ਜਾਂਦੇ
ਸਾਡੇ ਅੱਖੀਂ ਘੱਟਾ ਪਾ ਕੇ, ਸਾਡੀਆਂ ਜੇਬਾਂ ਕੱਟੀ ਜਾਂਦੇ।
ਸਸਤਾ-ਸਸਤਾ ਕਹਿਕੇ, ਸਾਰਾ ਗੰਦ-ਪਿੱਲ ਪੱਲੇ ਪਾਈ ਜਾਂਦੇ
ਸਾਡੇ ਲੋਕੀਂ ਫੁਕਰੇਪਣ ਵਿਚ, ਝੁੱਗਾ ਚੌੜ ਕਰਾਈ ਜਾਂਦੇ।
ਉੱਤੋਂ-ਉੱਤੋਂ ਜੋ ਸਸਤਾ ਦਿਸਦਾ, ਉਹ ਆਖਰ ਨੂੰ ਮਹਿੰਗਾ ਪੈਂਦਾ
ਪਿੱਛੋਂ ਜਾ ਕੇ ਅਸਰ ਦਿਖਾਉਂਦਾ, ਔਲਾ ਖਾਧਾ, ਸਿਆਣਾ ਕਹਿੰਦਾ।
ਸੁੱਚਮ ਕਰੋ ਬਹਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੀ, ਚੁੱਕ ਦਿਓ ਗੰਦ-ਖਿਲਾਰਾ,
ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ...
ਛਾਵਾ ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ।
ਚੀਨ-ਪਾਕ ਚੰਦਰੇ ਗੁਆਂਢੀ ਤੇਰੇ ਇੱਕ ਉਏ
ਕੱਢੀ ਜਾਣ ਅੱਖਾਂ ਤੈਨੂੰ, ਠੋਕੀ ਜਾਣ ਹਿੱਕ ਉਏ।
ਪਰ ਤੇਰੇ ਘਰ ਦੇ ਹੀ ਜੀਆਂ ਵਿਚ ਫਿੱਕ ਉਏ,
ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਲਾਲਚਾਂ 'ਚ ਜਾਣ ਲੋਕੀਂ ਵਿਕ ਉਏ।
ਚੀਨ ਨੂੰ ਤਾਂ ਰੋਂਦੇ ਓ, ਬਾਕੀ ਕਿਹੜਾ ਘੱਟ ਐ
ਜੀਹਨੇ ਜਿੱਥੇ ਦੇਖਿਆ, ਮਾਰੀ ਗੁੱਝੀ ਸੱਟ ਐ।
ਆਪੋ-ਆਪਣੇ ਲੋਭ ਐ, ਆਪੋ-ਆਪਣੀ ਲੋੜ ਐ
ਤੇਲ ਵਾਲੇ ਖੂਹਾਂ ਉੱਤੇ, ਕਬਜਿਆਂ ਲਈ ਹੋੜ ਐ।
ਸਾਡੇ ਲਈ ਤਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਕੁਟੰਭ ਐ-ਪਰਿਵਾਰ ਐ
ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਇਹ ਦੁਨੀਆਂ, ਮੰਡੀ ਐ, ਵਪਾਰ ਐ।
ਭਲਾ ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਅਸੀਂ ਤਾਂ ਸਦਾ ਮੰਗਦੇ
ਪਰ ਉਹ ਤਾਂ ਰਾਤ-ਦਿਨ ਖਾਬ ਲੈਣ ਜੰਗ ਦੇ।
ਨਾਲੇ ਅੱਤਵਾਦੀ ਭੇਜੇ, ਨਾਲੇ ਹਥਿਆਰ ਬਈ
ਸਾਡੇ ਫੌਜੀ ਵੀਰਾਂ ਨਾਲ ਕਰੇ ਤਕਰਾਰ ਬਈ।
ਨਾਲ ਕੁਝ ਰਲੇ ਹੋਏ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਗੱਦਾਰ ਬਈ
ਅਖੌਤੀ ਬੁੱਧੀਜੀਵੀ ਤੇ ਅਖੌਤੀ ਸਾਹਿਤਕਾਰ ਬਈ, ਅਖੌਤੀ ਪੱਤਰਕਾਰ ਬਈ,
ਕੌਮੀ ਚਰਿੱਤਰ ਹੋ ਗਿਆ ਤਿੱਤਰ, ਸੁਆਰਥ ਦਾ ਵਰਤਾਰਾ,
ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ
ਛਾਵਾ ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ।
ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਚੋਰ ਸਾਡੀ ਆਸਥਾ ਨੂੰ ਪੈ ਗਏ
ਆ ਕੇ ਬਰੋਬਰ ਸਾਡੇ ਪੁਰਖਿਆਂ ਦੇ ਬਹਿ ਗਏ।
ਖੂਬ ਆ ਰਿਹੈ ਰਾਸ ਚੀਨ ਨੂੰ ਫੇਂਗਸ਼ੂਈ ਦਾ ਧੰਦਾ,
ਡੱਡੂ, ਕੱਛੂ, ਡ੍ਰੈਗਨ, ਬਿੱਲੀ ਇਕ ਢਿੱਢਲ ਜਿਹਾ ਬੰਦਾ।
ਆਪੇ ਲੁੱਟਣ ਆਪਣੇ ਦੱਸਣ ਧਨੀ ਬਣਨ ਦੇ ਮੰਤਰ
ਵਾਸਤੂ ਦੋਸ਼ ਦਾ ਹਊਆ ਦਿਖਾ ਕੇ ਵੇਚਣ ਚੀਨੀ ਜੰਤਰ।
ਤਰਕਸ਼ੀਲ ਵੀ ਬੱਸ ਸਾਡੇ ਹੀ ਧਰਮ ਦੀ ਕਰਦੇ ਭੰਡੀ
ਲਾਲ-ਮਾਲ ਨਾਲ ਐਪਰ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਹੈ ਗੰਢੀ-ਸੰਢੀ।
ਸਮਝਦਾਰ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਬਸ ਕਾਫੀ ਇਕ ਇਸ਼ਾਰਾ,
ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ।
ਛਾਵਾ ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ........
ਕਾਰੀਗਰ, ਦਰਜੀ, ਘੁਮਾਰ ਤੇ ਚਮਾਰ ਜੀ
ਰੈਡੀਮੇਡ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਰ ਤੇ ਬੇਕਾਰ ਜੀ।
ਗ੍ਰਹਿ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਾਲਾ ਭੱਠਾ ਗਿਆ ਬਹਿ ਜੀ
ਢਹਿੰਦੇ-ਢਹਿੰਦੇ ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚਾ ਗਿਆ ਢਹਿ ਜੀ।
ਅਮੀਰ ਤੇ ਗਰੀਬ ਵਿਚ ਪਾੜਾ ਰਿਹਾ ਵੱਧ ਜੀ,
ਮਿਲੂਗਾ ਸਮਾਜਿਕ ਨਿਆਂ ਖੌਰੇ ਕਦ ਜੀ।
ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅੱਜ ਦੁਖੀ ਐ ਕਿਸਾਨ ਜੀ
ਕਰਜਿਆਂ ਦਾ ਬੋਝ ਉਹਦੀ ਕੱਢੀ ਜਾਂਦਾ ਜਾਨ ਜੀ।
ਬੈਲਾਂ ਦੀ ਜੋੜੀ ਨਾਲ ਖੇਤ ਜਦੋਂ ਵਾਹੁੰਦਾ ਸੀ, ਗੇੜਦੇ ਹੋਏ ਖੂਹ ਉਦੋਂ ਢੋਲੇ ਦੀਆਂ ਲਾਉਂਦਾ ਸੀ
ਥੋੜ•ਾ ਉਗਾਉਂਦਾ ਭਾਵੇਂ ਥੋੜ•ਾਂ ਕਮਾਉਂਦਾ ਸੀ, ਦਾਤਾ-ਦਾਨੀ, ਖੇਤਾਂ ਦਾ ਸਾਧੂ ਕਹਾਉਂਦਾ ਸੀ।
ਇਹਨੂੰ ਭੋਲੇ ਪੰਛੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਵੀ ਨਾ ਲੱਗਿਆ, ਹਰੇ ਇਨਕਲਾਬ ਦੇ ਨਾਂਅ 'ਤੇ ਗਿਆ ਠੱਗਿਆ।
ਦੇਸੀ-ਜੈਵਿਕ ਤਕਨੀਕਾਂ ਨੂੰ ਦੇਣਾ ਪਊ ਹੁੰਗਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ.....
ਰਲ ਮਿਲ ਸਭ ਨੇ ਏਸ ਵਾਰ ਕੁਝ ਐਸੀ ਦੀਵਾਲੀ ਮਨਾਉਣੀ ਆ
ਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਗਈ ਲੱਛਮੀ, ਵਾਪਸ ਮੋੜ ਲਿਆਉਣੀ ਆ।
ਚੀਨ ਦੇ ਪਟਾਕੇ ਚਲਾਉਣੇ ਨਹੀਂ
ਚੀਨ ਦੇ ਪਟਾਕੇ ਪਾਉਣੇ ਆਂ
ਸੜੀਆਂ-ਲੜੀਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਐਰਕੀਂ
ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਦੀਵੇ ਜਗਾਉਣੇ ਆਂ।
ਜੇਕਰ ਚੀਨ ਨੂੰ ਕਰਨਾ ਸੂਤ
ਗ੍ਰਹਿ ਉਦਯੋਗ ਕਰੋ ਮਜਬੂਤ।
ਨਾਹਰਾ ਕਰੋ ਬੁਲੰਦ ਬਈ ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਦਾ
ਆਓ ਛੱਡਈ ਖਹਿੜਾ ਚੀਨ ਕਲੇਸ਼ੀ ਦਾ
ਸੌ ਰੋਗਾਂ ਦੀ ਇਕ ਦਵਾ
ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਚੀਜ਼ਾਂ ਅਪਣਾ।
ਚੀਨੀ ਮਾਲ ਨਾ ਵੇਚਾਂਗੇ, ਨਾ ਖਰੀਦਾਂਗੇ, ਨਾ ਵਰਤਾਂਗੇ
ਦੇਸ਼ ਦੀ ਖਾਤਿਰ ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਵੱਲ ਪਰਤਾਂਗੇ।
ਫਿਰ ਤੋਂ ਵਿਸ਼ਵਗੁਰੂ ਦਾ ਦਰਜ਼ਾ ਪਾਵੇ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ,
ਹੱਸਦਾ-ਵਸਦਾ ਦੇਸ਼ ਗੁਲਾਮ ਨਾ ਹੋ ਜੇ ਕਿਤੇ ਦੁਬਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ।
ਏਸ ਜੰਗ ਵਿਚ ਮੋਦੀ ਹੀ ਨਾ ਰਹਿ ਜਾਏ ਕੱਲਾਕਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ
ਸਵਦੇਸ਼ੀ ਨੇ ਲਾਉਣਾ ਬੰਨੇ ਡੁੱਬਿਆ ਅਰਥਚਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ
ਜਾਗ ਜਵਾਨਾ, ਜਾਗ ਕਿਸਾਨਾ, ਜਾਗ ਦੁਕਾਨਦਾਰਾ, ਬਈ...
ਜੇ ਨਾ ਜਾਗਿਆ, ਜੇ ਨਾ ਸੰਭਲਿਆ, ਵੈਰੀ ਕਰ ਜੂ ਕਾਰਾ, ਬਈ ਹੁਣ ਜਾਗੋ ਆਈ ਐ।
ਅਸ਼ਵਨੀ ਗੁਪਤਾ
ਮੋ:94642-93764