आजकल समाचारों में जिसप्रकार पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले खाली करवाने पर उनका विधवा विलाप दिखाया जाता है, बड़े हैरानगी में डालता है। हम पूर्व राजनीति वालों को कितना अनावश्यक महत्व देते, उसके विपरीत संदीप वासलेकर नामक विद्वान कुछ विकसित देशों के पुराने राजनीतिज्ञ लोगो से तुलना करता है।स्वीडन की विदेश मंत्री और पूर्व राष्ट्रपति कालमी-रे एक लंबी विदेशयात्रा से लौटने पर मेट्रो में कोई सीट खाली न पाकर विकलांगो की खाली सीट पर बैठ जाती है, टिकट चेकर उसे उठने के लिए कह देती है! ध्यान रहे, उस सीट पर बैठने के लिए कोई विकलांग वहां नहीं था।...और..यहां..पूरा डिब्बा ही अधिकारी खाली करवा देते है नेता व उसके चेलों के लिए!
दूसरा उदाहरण पूर्व स्विस प्रेजिडेंट जोसफ डैस का देता है जिनसे लेखक ने बात करनी थी । किसी रेस्तरां में खाली सीट न मिलने के कारण इधर से उधर घूमते रहे, अंत मे किनारे जाकर बात की। किसी न विशेष ध्यान नहीं दिया।
तीसरा उदाहरण वो कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति रोहमून का देता है, जो अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद अपने गांव लौट गए थे। उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी ने उनके कार्यकाल में उनके नाम का इस्तेमाल करते हुए एक बड़े औद्योगिक समूह को कोई फायदा पहुंचाया था। रोहमून इतने ईमानदार थे कि इस सूचना ने उन्हें व्यथित कर दिया और इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने पहाड़ी से छलांग लगाकर आत्महत्या कर लिया! जरा राहमून की जगह लालू यादव और पत्नी के नाम पर राबड़ी देवी लिख कर कहानी सोचिये?
चौथा उदाहरण वो भारतीय सांसदों के एक मालदीव जाने वाले प्रतिनिधि मंडल का दिया जिनके पास इकोनॉमी क्लास के हवाई जहाज के टिकट थे, और अफसरों ने आम नागरिक को बड़ी श्रेणी से हटा कर इन को बिठा दिया..... वासलेकर स्वयं इस ग्रुप के साथ थे यानिकि चश्मदीद गवाह थे।
पांचवी घटना अभी 2018 जून की है जो कि सोशल मीडिया पर हमारे जैसे देशों में खूब वायरल हुई पर वो डच प्रधानमंत्री से संबंधित है। एक महत्वपूर्ण मीटिंग में जाते समय उनके हाथ मे कॉफ़ी कप समेत फर्श पर बिखर गई। यहां तक तो आम बात है परंतु उन्होंने एक मोप यानी झाड़ू को उठाया और फर्श को अच्छी तरह साफ किया यहांतक के आस पास के फर्नीचर पर गिरी कॉफ़ी के धब्बों को रुमाल से अच्छी तरह पोछा। एक ज्यादा बड़ी बात अंत मे दिखाई दे रही थी वीडियो में कई वहाँ का सफाई स्टाफ चारों तरफ खड़ा था और हंसते हंसते तालियां बजा रहा था। यानि इतनी हिम्मत की विरासत उन सफाई कर्मचारियों को मिली थी कि वो प्रधानमंत्री के सामने खुल कर हंस सके। पहले भी साईकल चला कर राष्ट्रपति भवन जाते समय के चित्र इस व्यक्ति के मैने देखें हैं।
याद आते हैं दुष्यंत के वो शब्द:
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनियां,
इस बहकती हुई दुनिया को सम्हालो यारो।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
(ये सभी उदाहरण संदीप वासलेकर की पुस्तक "नए भारत का निर्माण" में उसने दिए हैं, बहुत से अन्य भी दिल छूने वाले उदाहरण दिए है, सिवाय अंतिम के जो उन्होंने अपने लेख में दिया है)
Monday, June 4, 2018
राजनीतिक लोगों को अनावश्यक स्थान देना ग़लत
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