आज गोरखपुर में गुरु गोरखनाथ मंदिर का दर्शन किया। बहुत लोग समझते है कि महंत अवेद्यनाथ या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कारण यह मंदिर प्रसिद्ध हो रहा है....बिल्कुल गलत बात है। मुझे याद आया कि ओशो ने उन्हें हीरो में कोहिनूर हीरा कहा। ओशो से कभी महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने पूछा कि अगर भारत के बारह महापुरुषों का ही नाम लेना हो तो किन्हें गिनोगे, वे बोले :कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर,नागार्जुन, शंकर, गोरख, कबीर, नानक, मीरा, रामकृष्ण, कृष्ण मूर्ति। फिर कहा कि कोई 7 चुने तो ...और अंत मे कहा अगर चार चुनने हो तो उन्होंने - कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध और गौरखनाथका नाम लिया। साथ ही वे बोले कि अब इससे कम नहीं क्योंकि ये चार दिशाओ जैसे हैं, दिशाएँ चार से कम नहीं। गुरु गौरखनाथ का ऐसाअद्भुत वर्णन मैने कभी पहले व अन्यत्र सुना नही था। साथ ही बताता चलूं की उनकी सूची ऑब्जेक्टिव टाइप नही थी, पूरा वर्णन, गज़ब का विश्लेषण किया है गौरखनाथ के बारे में।आज मंदिर के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा देखकर मैंने नेट से वो पूरा प्रसंग निकाला। समय लगे तो नीचे पढ़े।,,,,,,,,,
उन्होंने महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने मुझसे एक बार पूछा कि भारत के धर्माकाश में वे कौन से सबसे चमकते हुए सितारे है? मैंने उन्हें सूची दी: कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर,नागार्जुन, शंकर, गोरख, कबीर, नानक, मीरा, रामकृष्ण, कृष्ण मूर्ति।
उन्होंने फिर मुझसे पूछा: तो फिर ऐसा करें सात नाम मुझे दें। अब बात और कठिन हो गई थी। मैंने उन्हें सात नाम दिये: कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, शंकर, गोरख, कबीर। उन्होंने कहा आपने जो पाँच नाम छोड़ दिये, वे किस आधार पर। मैंने कहां नागार्जुन बुद्ध में सम्माहित है। जो बुद्ध में बीज-रूप था, उसी को नागार्जुन ने प्रगट किया है। नागार्जुन ने प्रगट किया है। नागार्जुन छोड़े जा सकते है। और जब बचाने की बात हो तो वृक्ष छोड़े जा सकते है। बीज नहीं छोड़े जा सकते। क्योंकि बीज से फिर वृक्ष हो जाएगा। जहां बुद्ध पैदा होंगे वहां सैकडों नागार्जुन पैदा हो जाएंगे, लेकिन कोर्इ नागार्जुन बुद्ध को पैदा नहीं कर सकता। बुद्ध तो गंगोत्री है, नागार्जुन तो फिर गंगा के रास्ते पर आये हुए एक तीर्थ स्थल है—प्यारे है, अगर छोड़ना हो तो तीर्थ स्थल छोड़े जा सकते है। गंगोत्री नहीं छोड़ी जा सकती है।
ऐसे ही कृष्ण मूर्ति भी बुद्ध में समा जाते है। रामकृष्ण, कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते है। मीरा, नानक, कबीर में लीन हो जाते है। जैसे कबीर की ही साखायें है। जैसे कबीर में जो इक्कठ्ठा था, वह आधा नानक में प्रगट हुआ और आधा मीरा में। नानक में कबीर का पुरूष रूप प्रगट हुआ है—इसलिए सारा सिक्ख धर्म क्षत्रिय का धर्म हो गया, योद्धा का, तो आर्श्चय नहीं है। मीरा में कबीर का स्त्रैण रूप प्रगट हुआ है—इसलिए सारा माधुर्य, सारी सुगंध सारा सुवास, सारा संगीत,मीरा के पैरों में धुँघरू बन कर बजा है। मीरा के इकतारे पर कबीर की नारी गाई है, नानक में कबीर का पुरूष रूप बोला है। दोनों कबीर में समाहित हो जाते है।
इस तरह मैंने सात की सूची बनाई। अब उनकी उत्सुकता बहुत बढ़ गयी थी। उन्होंने कहा: और अगर पाँच की सूची बनाई जाए तो। मैंने कहां काम मेरे लिए कठिन हो गया है। मैंने यह सूची उन्हें दी: कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, गोरख....। क्योंकि कबीर को गोरख में लीन किया जा सकता है। गोरख मूल है। गोरख नहीं छोड़े जा सकता। और शंकर तो कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते है। कृष्ण के ही एक अंग की व्याख्या है, कृष्ण के ही एक अंग का दार्शनिक विवेचन है।
तब तो वे बोले: बस एक बार और....। अगर चार ही रखने हों।
तो मैंने कहां:’’ कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, गोरख....। क्योंकि महावीर बुद्ध से बहुत भिन्न नहीं है। थोडे ही भिन्न है। जरा-सा ही भेद है। वह भी अभिव्यक्ति का भेद है। बुद्ध की महिमा में महावीर की महिमा लीन हाँ सकती है।
वे कहने लगे एक बार और .....। अब तीन व्यक्ति चुनें।
तब मैंने कहां: अब असंभव है। अब इन चार में से किसी को भी छोड़ा नहीं जा सकता। मैंने उन्हें कहां: जैसे चार दशाएं है, ऐसे ये चार व्यक्तित्व है। जैसे काल और क्षेत्र के चार आयाम है, ऐसे ये चार महापुरुष है।जैसे परमात्मा की हमने चार भुजाओं सोची है, ऐसी ये चार भू जाएं है। ऐसे तो एक ही है, लेकिन उस एक की चार भुजाएं है। अब इनमें से कुछ छोड़ना तो हाथ काटने जैसे है। यह मैं न कर सकूंगा। अभी तक में आपकी बात मानकर चलता रहा, संख्या कम करता रहा। क्योंकि अभी तक जो अलग करना पडा वह वस्त्र था, अब अंग तोड़ने पड़ेंगे। अंग-भंग मैं न कर सकूंगा। ऐसी हिंसा आप न करवायें।
वे कहने लगे: आपने महावीर को छोड़ दिया, गोरख को नहीं?
गोरख को नहीं छोड़ सकता हूं, क्योंकि गोरख से इस देश में एक नया ही सूत्रपात हुआ है, महावीर से न कोई नया नहीं हुआ है। वे अपूर्व पुरूष है। मगर जो सदियों से कहा गया था, उन्होंने उसकी पुनरूक्ति की है। वे किसी यात्रा का प्रांरभ नहीं है। वे किसी नया शृंखला की पहली कड़ी नहीं है, बल्कि अंतिम कड़ी है।
गोरख एक शृंखला की पहली कड़ी है। उनसे नए प्रकार के धर्म का जन्म हुआ, अविभाव हुआ। गोरख के बिना न तो कबीर हो सकते थे, न नानक हो सकते थे। न दादू, ना वाजिद, न फरिद, न मीरा, गोरख के बिना ये कोर्इ भी न हो सकते थे। इन सब के मौलिक आधार गोरख में है। फिर मंदिर बहुत ऊँचा उठा। मंदिर पर बड़े स्वर्ण कलश चढ़े.....। लेकिन नींव का पत्थर नींव का पत्थर है। और स्वर्ण कलश दूर से दिखाई दे जाते है। लेकिन नीव के पत्थर से ज्यादा मूल्यवान नहीं हो सकते है। और नींव भित्तियों सारे शिखर...। शिखर की पूजा होती है, बुनियाद के पत्थरों को तो लोग भूल ही जाते है। ऐसे ही गोरख भी भूल गए थे।
लेकिन भारत की सारी संत-परंपरा गोरख की ऋणी है। जैसे पतंजलि के बिना भारत में योग की कोई संभावना न रह जाएगी; जैसे बुद्ध के बिना ध्यान की आधारशिला उखड जायेगी। जैसे कृष्ण के बिना प्रेम की अभिव्यक्ति को मार्ग न मिलेगा—ऐसे गोरख के बिना उस परम सत्य को पाने के लिए विधियों की मनुष्य के भीतर अंतर खोज के लिए उतना शायद किसी ने भी नहीं किया है। उन्होंने इतनी विधियां दी की अगर विधियों के हिसाब से सोचा जाए तो गोरख सबसे बड़े आविष्कारक है। इतने द्वार तोड़े मनुष्य के अंतरतम में जाने के लिए, इतने द्वार तोड़े कि लोग द्वारों में उलझ गये।
इसलिए हमारे पास एक शब्द चल पडा है—गोरख को तो लोग भूल गए—गोरखधंधा शब्द चल पडा है। उन्होंने इतनी विधियों दीं की लोग उलझ गये की कौन ठीक और कौन गलत, कौन सी करे और कौन सी न करे। अब कोई किसी चीज में उलझा हो तो हम कहते है, क्या गोरख धंधे में उलझ गया है।
गोरख के पास अपूर्व व्यक्तिव था, जैसे आइंस्टीन के पास व्यक्तित्व था। जगत के सत्य को खोजने के लिए जो पैने से पैने उपाय अल्बर्ट आइंस्टीन दे गया, उसके पहले किसी ने भी नहीं दिये थे। हां,अब उनका विकास हो सकता है, उन पर और धार रखी जा सकेगी। मगर जो प्रथम काम था वह आइंस्टीन ने किया है। जो पीछे आयेंगे वे नंबर दो होंगे। वे अब प्रथम नहीं हो सकते। राह पहली तो आइंस्टीन ने तोड़ी, अब इस राह को पक्का करनेवाले, मजबूत करने वाले मील के पत्थर लगाने वाले, सुंदर बनानेवाले, सुगम बनानेवाले बहुत लोंग आयेंगे। मगर आइंस्टीन की जगह अब कोर्इ भी नहीं ले सकता। ऐसी ही घटना अंतर जगत में गोरख के साथ घटी है।
लेकिन गोरख को लोग भूल गये, गोरख जिस खादन के हीरे है, वह तो अनगढ़ होता है, कच्चा होता है। अगर गोरख और कबीर बैठे हो तो तुम कबीर से प्रभावित होओगे,गोरख से नहीं। क्यो गोरख तो खादन से निकला हीरा है और कबीर—जिन पर जौहरियों ने खूब मेहनत की, जिन पर खूब छेनी चली है। जिनको खूब निखार दिया गया है।
यह तो तुम्हें पता है ना कि कोहिनूर हीरा जब पहली दफा मिला तो जिस आदमी को मिला था उसे पता भी नहीं था कि कोहिनूर है। उसने बच्चों को खेलने के लिए दे दिया था, समझकर की कोई रंगीन पत्थर है। गरीब आदमी था। उसके खेत से बहती एक छोटी से नदी की धार में कोहिनूर मिला था। महीनों उसके घर पडा रहा। कोहिनूर बच्चे खेलते रहे, फेंकते रहें इस कोने से उस कोने, आँगन में पडा रहा....।
तुम पहचान न पाते कोहिनूर को उसका वज़न तीन गुना था आज को कोहिनूर से। उस पर धार रखी गई, निखार किये गये काटे गए, उस के पहलु उभारे गये, लेकिन दाम करोड़ों गुना ज्यादा हो गया। क्योंकि गोरख तो अभी गोलकोंड़ा की खादन से निकले कोहिनूर हीरे है। कबीर पर धार रखी गई है। जौहरी ने मेहनत करी है....कबीर पहचाने जा सकते है।
गोरख का नाम भूल गए है। बुनियाद के पत्थर भूल जाते
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