जब हम भारत 2047 की चर्चा करते हैं तो उसमें पहला बिंदु है-
*जनसंख्या संरचना*-----
2047 में हमारी जनसंख्या की संरचना डेमोग्राफी कैसी होनी चाहिए,? इस पर विचार करना आवश्यक है
कोई भी देश क्या होता है? विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहां जनसंख्या का निवास नहीं हो निर्जन या जन शून्यता के स्थान जैसे साइबेरिया स्वयं में अपने आप में कोई देश नहीं ।देश या राष्ट्र के निर्माण की प्रथम शर्त है -वहां की जनसंख्या-
इस प्रकार जब किसी स्थान पर व्यक्ति या लोग रहते हैं तो वह एक समाज का निर्माण करते हैं और जब समाज एक निश्चित क्रम में आगे बढ़ता है तो उसका उस भूमि के साथ गहरा जुड़ाव बन जाता है वहां की घटनाएं वहां के जनमानस के साथ जुड़ती चली जाती है और लंबे समय तक वहां निवास करने के कारण वहां के समाज के कुछ सांस्कृतिक मूल्य एवं कुछ जीवन मूल्य विकसित होते हैं तो एक संस्कृति के आधार पर एक राष्ट्र का निर्माण होता है। हम हमारा राष्ट्र भारत 2047 में समृद्धि युक्त और ग़रीबी मुक्त चाहते हैं तो उस समय की जनसंख्या संरचना कैसी हो? उस पर भी विचार करना आवश्यक है ,, डेमोग्राफी को समझने के लिए कुछ पिछले वर्षों का अध्ययन और उनके आंकड़े भी आवश्यक होते हैं।
1947 में जब भारत औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हो गया था परंतु औपनिवेशिक मानसिकता ने यहां एक ऐसा माइंडसेट एक नरेटीव बना दिया कि भारत की जनसंख्या भारत के विकास के लिए सबसे बड़ी बाधक है ।भारत के 40 करोड़ की जनसंख्या भारत के लिए एक बड़ा बोझ है।
हमें याद है 1950 के आसपास जब देश की जनसंख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास थी तब विश्व के विकसित देशों के प्रमुख अर्थशास्त्री और यहां तक कि भारत के सभी प्रमुख राजनेता , अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री तक एक ही बात कहते थे कि यह बढ़ती हुई देश की जनसंख्या देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक है इसलिए जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है,उस समय की सभी सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए निरंतर प्रयास भी किए।
इतनी बड़ी जनसंख्या का भरण पोषण करने में हमारा देश असमर्थ होगा परंतु हम देखते हैं कि तमाम अटकलों और जनसंख्या पर अध्ययन करने वाले समाजशास्त्रियों की आशंकाएं, सिद्धांत और धारणाएं धराशाई हो गई।
आज हम जब 140 करोड की आबादी हैं तब भी स्वयं की जनसंख्या के भरण-पोषण के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों को चावल और गेहूं खिलाने में समर्थ हुए हैं।
विश्व में चावल का आज जितना व्यापार होता है उसका 40% हिस्सा अकेले भारत का है।
इस बड़ी जनसंख्या ने वास्तव में अपने लिए ही नहीं विश्व के लिए अन्य देशों के लिए भी अन्न उत्पादन करके दिखाया है,इसलिए हम कहते हैं की बढी हुई जनसंख्या बोझ नहीं है, इस संबंध में जरा अपना दृष्टिकोण ठीक करने की आवश्यकता है श्री गुरु नानक देव जी ने कहा है,,,
*"रब तुझ सों दूर नहीं, तेरा भी कसूर नहीं।*
*देखने वाली आंखें जेडी ,ओंधे विच ही नूर नहीं"।।*
अर्थात जनसंख्या के प्रति देखने का हमारा दृष्टिकोण और नजरिया ठीक करना होगा।
लंबे समय तक चले एक विचित्र विमर्श के कारण साठ के दशक में भारत के परिवारों में जब 5 से 6 बच्चे होते थे वह 1970 तक तीन बच्चों पर आ गए 1980 के दशक में 2 पर आ गए और वर्तमान में तो 1 बच्चे पर आ गए हैं। आपको ताज्जुब होगा कि भारत का फर्टिलिटी रेट वर्तमान में 2.0 पर आ गया है ,जो कि ठीक नहीं है।
2.1 का फर्टिलिटी रेट तो वैश्विक मानक है। भारत के संदर्भ में यदि देखा जाए तो यह फर्टिलिटी रेट 2.2 होना चाहिए वर्तमान में भी इसमें बहुत अधिक विभिन्नता दिखाई देती है।
दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु और केरल में तो यह है 1.8 रह गया है महाराष्ट्र में 1.7 रह गया है।यह स्थिति वास्तव में लम्बे समय की दृष्टि से खराब स्थिति है।
जापान का टीएफआर 1.3 रह गया है, लगभग चीन का भी यही हाल हो रहा है उनकी वन चाइल्ड पॉलिसी लगभग लगभग फेल हो गई है।
हम आज जनसंख्या दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान पर ही नहीं बल्कि युवा जनसंख्या की दृष्टि से भी प्रथम है यदि 2047 में हम समृद्ध भारत का सपना देख रहे हैं तो उसकी पहली शर्त है ,देश की जनसंख्या युवा हो, देश की जनसंख्या शिक्षित हो, योग्य हों और
स्वस्थ हो, यह मूल इंडिकेटर हैं।
हमारी युवा शक्ति विश्व में प्रथम स्थान पर है हमारी साक्षरता की दर भी लगातार बढ़ रही है परंतु हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के आंकड़े जरा डरावने प्रतीत होते हैं तो हमें अपने बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए 2047 के परिपेक्ष्य में ठीक से योजना बनाने की आवश्यकता है हमारा युवा आईटी के क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे रहा है हमारे युवाओं ने पिछले वर्ष $180 बिलियन के और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में निर्यात किए हैं। कुछ ही वर्षों में हमारा यह निर्यात $1 ट्रिलियन के आसपास हो जाएगा।
भारत विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है तो उसकी पहली और सबसे बड़ी गारंटी हमारी योग्य, शिक्षित स्वस्थ, युवा शक्ति है और इसके लिए हमें हमारे डेमोग्राफी का स्तर कम से कम 2.2 तक आवश्यक रूप से बनाए रखना होगा ताकि निरंतर रूप से जनसंख्या संरचना में युवाओं की संख्या में वृद्धि होती रहे।
भारत @ 2047 का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है -*भारत को पूर्ण रोजगार युक्त',पर्यावरण हितैषी और एक उन्नत अर्थव्यवस्था बनना होगा*---
इस बिंदु के संदर्भ में बात करें तो आजकल कहा जाने लगा की "अर्थशास्त्र इतिहास बनने वाला है "
यहां मैं उषा पटनायक की रिपोर्ट का उल्लेख करना बहुत जरूरी समझता हूं जिन्होंने अपने विस्तृत अध्ययन के आधार पर यह रिपोर्ट प्रस्तुत की कि 1753 से लेकर 1935 तक के कालखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों के शासनकाल में लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर की लूट इंग्लैंड ने भारत से की।
यह तथ्य अपने आप में स्पष्ट करता है कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत ही उन्नत स्तर पर रही थी।
भारत की उद्यमिता और भारत की जनता की जागरूकता का स्तर धीरे-धीरे बहुत जल्दी बढ़ने वाला है आज हम विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं बहुत जल्द हम विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे परंतु हमें केवल उन्नत और बड़ी अर्थव्यवस्था ही नहीं बनना है बल्कि समाज के अंतिम छोर पर स्थित व्यक्ति को रोजगार युक्त भी करना है।
यह सबसे बड़ी चुनौती है चाहे वह लद्दाख का क्षेत्र हो चाहे पूर्वांचल का हो, चाहे केरल का हो, चाहे राजस्थान का युवा हो,,गलत शिक्षा नीति के चलते हमारे युवा वर्तमान में बेरोजगारी के शिकार हो रहे हैं।
2047 तक हमारी अर्थव्यवस्था उन्नत तो होगी ही पर साथ में सब को रोजगार प्रदान करने वाली भी होगी,
उन्नत और रोजगार के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि यह पर्यावरण हितैषी भी हो।
हम कभी भी संसाधनों और पर्यावरण के वृहद शोषक नहीं रहे हैं जैसे अमेरिका और यूरोप के देश सब कुछ समाप्त कर देना चाहते हैं,उसके स्थान पर हम सदैव प्रकृति के संरक्षक और पोषक रहे हैं। हमारी भूमि, हमारे वन,हमारी जल संपदा का उपयोग आर्थिक दृष्टिकोण से तो हो ही परंतु हम विकास के लिए इस पश्चिमी सोच के विनाशवादी विचार के पक्षधर नहीं रहे।हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत (सस्टेनेबल) विकास के मार्ग को अपनाना होगा हालांकि इस बिंदु से संबंधित अभी कोई विशेष ब्लूप्रिंट तैयार नहीं हुआ है परंतु शीघ्र ही इस पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है, अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि हमारी अर्थव्यवस्था उन्नत विशाल रोजगार प्रदान करने वाली और साथ ही पर्यावरण हितैषी भी हो,,,
तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है
*अजेय भारत -सुरक्षित भारत*---
भारत को 2047 तक अपने स्वयं के लिए सर्वोच्च स्तर का उच्च सुरक्षा तंत्र चाहिए। सन् 1947 के बाद से देश में सुरक्षा संबंधी और सीमाओं से संबंधित विषय की सदैव उपेक्षा की गई है।
इतिहास हमें बताता है कि कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने अहिंसा का मार्ग अपना लिया।
पहली, दूसरी, तीसरी शताब्दी से ही उस कालखंड के अन्य सभी शासकों ने भी सैन्य सुरक्षा के इस पक्ष को भुला दिया कुछ लोगों ने अहिंसा के नाम पर बौद्ध धर्म अपना लिया और कुछ जैन मतावलंबी हो गए। इसके चलते जब 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण किया तो विश्व का यह विशाल देश और उसके शासक प्रतिकार करने की स्थिति में नहीं रहे,हम देखते हैं कि 1193 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान जब तराइन का युद्ध हारा तो हमारी स्थिति और विकट हो गई
सुरक्षा की उपेक्षा के कारण ही उन्नत अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भी हम पहले मुगलों के और फिर बाद में अंग्रेजों के गुलाम बन गए।
इसलिए इतिहास के इन तथ्यों से सबक लेते हुए यदि हमें 2047 में विश्व की प्रथम स्तर की अर्थव्यवस्था उन्नत और रोजगार युक्त अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करना है तो हमें उच्च स्तरीय सुरक्षा तंत्र चाहिए।
आज अमेरिका व चीन में छह प्रकार की सेनाएं हैं जिनमें जल, थल,नभ, रॉकेट ,आर्मी और स्पेस आर्मी सम्मिलित है परंतु हम अभी भी परंपरागत रूप से सेनाओं के तीनों विभागों के अंतर्गत ही चल रहे हैं हालांकि अग्निवीर योजना देश की सेनाओं को युवा बनाए रखने का प्रशंसनीय प्रयास है।
एक अनुमान है कि 2030 तक भारत सुरक्षा तंत्रों का निर्यातक देश बनेगा हालांकि वर्तमान सरकार ने इस दिशा में तथा सेना के आधुनिकीकरण का निरंतर प्रयास किया है परंतु हम कब तक रूस, जापान, जर्मनी और अमेरिका से लड़ाकू विमान राइफल्स, टैंक या अन्य युद्ध सामग्री के आयात पर निर्भर रहेंगे।
अपने सुरक्षा तंत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए अजेय और सुरक्षित भारत का निर्माण आज की प्रथम आवश्यकता है।
चौथा महत्वपूर्ण बिंदु है -
*विज्ञान और तकनीकी का विकास (साइंस एंड टेक्नोलॉजीकल डेवलपमेंट)*----
अपने देश की अर्थव्यवस्था को उन्नत करते समय हमें यह विचार करना होगा कि आज यूरोप इतना अमीर कैसे है? अमेरिका विकसित है तो इनके मूल में क्या है?
हम इतिहास की घटनाओं को देखेंगे तो ध्यान में आएगा के सत्रवीं में शताब्दी में वहां औद्योगिक क्रांति हुई , वह तो ठीक है परंतु इंग्लैंड और यूरोप के देशों ने दुनिया भर में जो लूट मचाई और वहां से जो सारे संसाधनों को अपने स्वयं के देश में लाकर एकत्र कर दिया उसके आधार पर तथा विज्ञान और तकनीकी का तेजी से विकास करते हुए ये देश विकसित देश बन गये।
आज अमेरिका की कुल जीडीपी का लगभग 34% (आई.पी.आर )बौद्धिक संपदा अधिकार से आ रहा है,
क्यों ?
क्योंकि वह विकास और अनुसंधान (रिसर्च एंड डेवलपमेंट R&D) के आधार पर मजबूत है।
आज दुनिया भर में गूगल, फेसबुक, एप्पल, इंटरनेट आदि के माध्यम से अपने देशों के लिए आय प्राप्त कर रहे हैं।
अमेरिका के बाद यूरोप में जर्मनी और फ्रांस आते हैं चाहे बिजली हो, रेल हो या अन्य आधुनिक तकनीक हों सब की सब यूरोप और अमेरिका की देन मानी जाती है।
हमने कभी इस विषय पर ध्यान ही नहीं दिया हमारे औद्योगिक और व्यापारिक घरानें हो या सरकारें रही हो किसी ने भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D)के विषय पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया।
नतीजा हमें नवीन तकनीक और अनुसंधान के लिए सदैव विदेशों की ओर ताकना पड़ता है।
इसलिए भारत को विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना होगा क्योंकि आज अर्थ का उत्पादन और विश्व को देने के लिए यही दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें हम अपनी धाक जमा सकते हैं।
आज जापान, जर्मनी सबसे विकसित देश है क्षेत्रफल और जनसंख्या के मामले में भारत से बहुत पीछे हैं परंतु रिसर्च डेवलपमेंट के मामले में आज विश्व में अग्रणीय है तो 2047 के स्वर्णिम भारत के स्वप्न का चौथा स्तंभ विज्ञान और तकनीकी का होगा जिसे हमें बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ कर इसे पूर्ण करना होगा।
भारत @ 2047 का पांचवां और अंतिम बिंदु है
*वैश्विक दृष्टिकोण और भारतीय जीवन मूल्य*---
उपरोक्त वर्णित किए गए 4 बिंदुओं के बारे में तो विश्व स्तर के कई राजनेता' विचारक' राष्ट्रवादी चिंतक अवश्य सोचते होंगे परंतु इस पांचवें बिंदु "वैश्विक दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों " के बारे में नहीं सोचते हैं।
इस तथ्य और बिंदु पर विचार करने की कोई सोचता है तो वह इस देश का चाणक्य हो सकता है-
पंडित दीनदयाल उपाध्याय हो सकता है-
कोई दत्तोपंत ठेंगड़ी हो सकता है-
या उसकी विचारधारा से निकले शिष्य सोच सकते हैं।
आप इस दुनिया को क्या देने वाले हैं-? हमारे जीवन मूल्य कैसे हैं-?
अपने परिवार को ,अपने समाज को, देश को और विश्व को देखने का दृष्टिकोण कैसा है-? यह वैश्विक भाव और जीवन मूल्य विश्व में केवल 140 करोड़ भारतीयों के पास है।
हमने सदैव से कहा है -"वसुधैव कुटुंबकम'
इसी बात को ठेंगड़ी जी कहते थे कि *"पश्चिम के लोग सोचते हैं विश्व एक बाजार है ,जबकि हम भारतीय कहते हैं विश्व एक परिवार है"*
अगर परिवार भाव का दृष्टिकोण रहता है तो विश्व में युद्धों से बचा जा सकता है।
आज विचार करें रूस और यूक्रेन का युद्ध क्यों हो रहा है? इसके मूल में तो संसाधनों पर कब्जा करने का भाव छिपा है क्योंकि बाजार का भाव रहता है तो परस्पर प्रतिस्पर्धा होनी ही है।
गला काट प्रतिस्पर्धा बाजार का मूल भाव है परंतु परिवार में इसके विपरीत विचार होता है सब स्नेह सूत्र और सहयोग के भाव से चलते हैं।
अभी तो भारत में भी परिवारों पर पश्चिमी सभ्यता और पश्चिमी विचार का दुष्प्रभाव दिखाई देने लगा है, इस संदर्भ में देखेंगे तो अमेरिका के परिवारों की क्या स्थिति है?
आज वहां डायवर्स दर 72% के आसपास है तो हमारे जीवन मूल्य,हमारे परिवार का भाव, उदार दृष्टिकोण हम विश्व को दे सकते हैं,, आज विश्व को इसकी आवश्यकता है।
हमने विश्व को बौद्ध धर्म दिया जिसका प्रसार चीन और जापान तक गया परंतु हमने कभी भी किसी देश पर आक्रमण कर उसकी भूमि और संसाधन नहीं हड़पे हमने सेना भी नहीं भेजी।
आज अमेरिका ने 27 देशों में चीन ने 12 देशों में सेना भेज रखी है।
हम दुनिया में योग लेकर गए ,आयुर्वेद लेकर गए, पंचगव्य लेकर गए और प्राकृतिक खेती, जहर मुक्त खेती दे रहे हैं। यही हमारी ताकत है ।
पहली ,दूसरी और तीसरी शताब्दी में हम सनातन हिंदू संस्कृति के मूल्यों का प्रसार करने के लिए हम पूर्वी और पश्चिमी देशों में गए अभी भी इन मूल्यों को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर लेकर जाएंगे, इस आधार पर विश्व में सबसे बड़ा फैलाव हमारा है,लगभग डेढ़ करोड़ भारतीय मूल के लोग भारत में आर्थिक उन्नति की दृष्टि से पैसा तो भेजते ही हैं परंतु वे अपने-अपने देशों में हमारी संस्कृति और जीवन मूल्यों के ब्रांड एंबेसडर भी है।
*इस प्रकार ऐसे पांच बिंदुओं के आधार पर भारत @2047 की चर्चा प्रारंभ की है*-
*"वादे -वादे जायते तत्त्व बोधा"*
विचार करते-करते सत्य का दर्शन करना।
हम सागर मंथन करने वाले लोग हैं,यह अभी प्रारंभ में विचार के लिए कुछ सूत्र है, कुछ बिंदु है जिनके आधार पर हम परम वैभव का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।
संपूर्ण विश्व भारत की प्रतीक्षा कर रहा है।
यह भारत का नैतिक और दैविक दायित्व भी है कि विश्व का पथ प्रदर्शक बने ।
अनंत शुभकामनाओ सहित
जय भारत, जय हिंद ,जय स्वदेशी
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