लोग मर रहे थे, दवा कंपनियां साजिश रच रही थीं:नेताओं की लॉबिंग पर 3700 करोड़ खर्च किए, जान से खेलती रही हैं ।लेखक: अनुराग आनंद
फिर से कोरोना हमारे दरवाजे पर खड़ा है। नया वैरिएंट ओमिक्रॉन पहले से भी 5 गुना तेजी से फैल रहा है। एक्सपर्ट कह रहे हैं कि जनवरी में तीसरी लहर आ रही है, लेकिन हाय रे पैसे कमाने की भूख। जब आप अपनों को बचाने के लिए अस्पताल-अस्पताल, बेड-बेड, दवाई-दवाई ठोकरें खा रहे थे; तभी कुछ बिजनेस टायकून नेताओं पर अरबों रुपए उड़ा रहे थे, ताकि नेता उन्हें दवाई और कोरोना वैक्सीन पर बिजनेस करने दें।
आइए आपको इस कहानी की परत दर परत बताते हैं। बताते हैं कि कैसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के नाम पर वैक्सीन बनाने का अधिकार कुछ कंपनियों तक सीमित रखा गया। बाद में उन कपंनियों को वैक्सीन बनाने का ठेका मिला जो पहले लोगों की जान के साथ खेलती रही हैं और अरबों रुपए का जुर्माना भर चुकी हैं। ये वैक्सीन कंपनियां हैं फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन। इनके अलावा 3 फार्मा कंपनियां भी ऐसी ही बेईमानी के लिए बदनाम हैं।
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भारत इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की लिस्ट से वैक्सीन को बाहर कराना चाहता था
ये बात 24 फरवरी 2021 की है। आपको ये महीना याद है? कोरोना दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से फैल रहा था। दुनिया वैक्सीन के लिए त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही थी। भारत और साउथ अफ्रीका विश्व व्यापार संगठन, यानी WTO के पास गए थे। ये प्रस्ताव लेकर कि मेडिकल की दुनिया के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वाले नियमों में थोड़ी ढील मिल जाती तो वैक्सीन बनाने में देरी न होती।
भारत का प्रस्ताव पास न हो जाए इसलिए नेताओं की लॉबिंग में खर्च हुए अरबों रुपए
डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन ‘द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ अमेरिका’ ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानी करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए। यही नहीं दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव लागू नहीं हो पाया।
प्रस्ताव पास हो जाता तो गरीब देशों को मिल गया होता बड़ा फायदा
WTO ने अगर ये प्रपोजल उसी वक्त पास कर दिया होता तो इसका सीधा फायदा विकासशील और कमजोर देशों को मिल गया होता। इसका सीधा गणित यह है कि वैक्सीन के इंटेलेक्चुअल प्राॅपर्टी की लिस्ट से बाहर आते ही ट्रॉयल कर चुकीं सभी कंपनियों को फॉर्मूला दूसरे देशों के साथ शेयर करना पड़ता। फिर सभी देश अपने लोगों के लिए खुद से वैक्सीन तैयार कर चुके होते। गरीब देशों में भी सभी लोगों को वैक्सीन देना आसान होता।
आइए अब बात कर लेते हैं, उन फर्मा कंपनियों की भी जिन्हें वैक्सीन बनाने का ठेका मिला-
1. फाइजर: लोगों की जिंदगी ताक पर रखकर दवा बेचने के जुर्म में जुर्माना
कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर और इसकी सहायक कंपनी फर्माशिया एंड अपजॉन ने लोगों की जिंदगी ताक पर रखकर गलत तरीके से बेक्स्ट्रा दवा को बाजार में उतार दिया था। जब लोगों ने इसके बारे में शिकायत की तो 2005 में इस दवा को कंपनी ने वापस ले लिया था।
1. ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके): लोगों की जान से खेलने के लिए 3 अरब डॉलर का जुर्माना
दवा कंपनी का नाम ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके)’ है। इस कंपनी पर आरोप था कि बिना सही से जांचे-परखे पैक्सिल और वेलब्यूट्रिन जैसी दवाओं को लेकर ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके)’ ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) को गलत रिपोर्ट दी।
यही नहीं, कंपनी ने इन दवाओं का गलत प्रचार भी किया। सरकार को कीमत के बारे में गलत जानकारी दी गई। इस मामले में कंपनी से 3 अरब डॉलर जुर्माने के तौर पर लिया गया। यह अब तक के इतिहास में किसी दवा कंपनी से वसूला गया सबसे अधिक जुर्माना है।
2. टाकेडा: 8000 मामलों को एक साथ 2.4 बिलयन डॉलर जुर्माना देकर निपटाया
दुनिया की बड़ी दवा कंपनी टाकेडा को अपने किए के लिए 2.4 बिलियन डॉलर का जुर्माना चुकाना पड़ा है। टाकेडा पर आरोप था कि कंपनी ने ब्लड शुगर दवा ‘पियोग्लिटाजोन’ के बुरे प्रभावों को बताए बिना दवा का धड़ल्ले से प्रचार और बिक्री की। FDA ने 1999 में इस दवा के बुरे प्रभावों को बताते हुए इसे बेचने की परमिशन दी थी, लेकिन कंपनी ने इसके जोखिमों को छिपाकर इसे बेचा। जब लोगों और राज्यों ने इसके खिलाफ शिकायत की तो कंपनी को इस मामले में भारी भरकम जुर्माना देना पड़ा।
3. फार्मा कंपनी एबॉट लेबोरेटरीज: दवा कुछ और बनाई, बेच दी किसी और कंपनी के नाम पर
2012 में एबॉट लेबोरेटरीज नाम की एक इंटरनेशनल दवा कंपनी को भी गलत तरह से दवा बेचने के आरोप में जुर्माना भरना पड़ा था। फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी के मुताबिक, कंपनी ने डेपाकोट नाम की दवा को गैरकानूनी तरीके से बेचा था। इस दवा से लोगों पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में भी कंपनी ने जानकारी नहीं दी थी।
ऐसे में जब लोगों ने इसके बुरे प्रभाव को लेकर सरकारी संस्था में शिकायत की तो कंपनी को 1.4 बिलयन डॉलर का जुर्माना भरना पड़ा था। FDA ने इस दवा को तीन बीमारियों मिर्गी के दौरे, माइग्रेन और बाइपोलर डिसऑर्डर में बेचने का आदेश दिया था, जबकि कंपनी इस दवा को डिमेंशिया, डिप्रेशन और एंजाइटी पेशेंट को भी बेचने लगी। इससे लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर पड़ा और शिकायत मिलने पर कंपनी पर कार्रवाई की गई
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