Friday, August 24, 2012

Sizeिकसान जमावड़ा प्रारंभ 22 August 2012


िकसान जमावड़ा प्रारंभ
22 August 2012

देशभर के कोने कोने से आए 1000 किसान नेताओं के साथ स्वदेशी जागरण मंच के तत्वाधान में अध्यात्म साधना केन्द्र, छत्तरपुर, नई दिल्ली में किसान जमावड़ा प्रातः 10.300 बजे प्रारंभ हो गया। डाॅ. एस.ए. पाटिल (कर्नाटक), डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा (उदयपुर, राजस्थान), श्री मोहिनी मोहन मिश्र, राष्ट्रीय मंत्री, भारतीय किसान संघ, श्री युद्धवीर सिंह, महामंत्री, भारतीय किसान यूनियन, श्री सतपाल मलिक, प्रभारी, भारतीय किसान मोर्चा, श्री रामपाल जाट, राजस्थान किसान पंचायत, सरदार सुखदेव सिंह (पंजाब), श्री वर्गिस तोडुपुरम बिल, संगठक, कृषक मुनेत्रम, केरल सहित देश भर से आए किसान नेताओं की उपस्थिति में किसान जमावड़े का उद्घाटन संपंन हुआ।

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा, उपकुलपति, पेसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि कृषि भूमि पर जीवन का आधार है। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि वर्तमान सरकार की नीतियां कृषि को बर्बाद करने वाली है। इस संदर्भ में उन्होंने हाल की में केंद्रीय मंत्री मंडल द्वारा प्रस्तुत कृषि में निजी सार्वजनिक साझेदारी के संबंध में प्रस्तावित समझौते के मसौदे पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किसानों की भूमि हथियाने का एक हथियार बनेगा। उन्होंने कहा कि अनुबंध खेती, खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश और हाल की में घोषित जल नीति के नाम पर भारतीय कृषि को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लूटने की पूरी तैयारी हो चुकी है। भारत के पास दुनिया में किसी भी देश से ज्यादा सिंचित भूमि है। लेकिन देशी और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ के लिए कृषि को बर्बाद करने की तैयारी चल रही है। अपने लाभ के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत की कृषि पर गिद्ध दृष्टि जमाये हुए है। पूर्व में विश्व व्यापार संगठन में किए गए समझौतांे के कारण आज हमारा किसान और कृषि प्रभावित हो रही है। इन समझौतों के अंतर्गत जबरदस्ती आयात करने की मजबूरी के कारण किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता। कटाई के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियां एम.सी.एक्स. और वायदा बाजार के खेल के चलते कृषि पदार्थों की कीमतें लगातार बढ़ती जाती है, उपभोक्ता को महंगाई का सामना करना पड़ता है और कंपनियों की जेब भरती चली जाती है लेकिन किसान की आर्थिक हालत पहले की तरह खराब ही रहती है।

गौरतलब है कि किसानों की बदहाली को रेखांकित करती हुई लाखों किसानों की आत्महत्याएं, खेती का परित्याग करते हुए देश के अन्नदाता एवं सरकार और नीति निर्माताओं की कृषि के बारे में विकृत सोच के कारण देश में एक ऐसा माहौल बन रहा है, जो यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि यदि जल्द ही कुछ न किया गया तो इस राष्ट्र से किसान और उसकी कृषि छिन जायेगी और एक ऐसा ढांचा बचेगा जिसमें देश की खाद्य सुरक्षा छिन्न-भिन्न हो ही जायेगी।

लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या को समोती हुई कृषि पर होने वाला खर्च कुल बजट का मात्र 1 प्रतिशत रह जाना, कृषि के विकास कार्यों से सरकार की निरंतर विमुखता, बड़े काॅरपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित साधन के लिए बीज अधिनियम, जल नीति, खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून, पेटेंट कानून, ठेका खेती, नया मंडी कानून, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, बी.टी. प्रोद्यौगिकी, जी.एम. प्रोद्यौगिकी सहित नित नये कानूनों के कारण किसान कंपनियों के शिकंजे में फसता जा रहा है। अपर्याप्त भंडारण की सुविधाओं, लगातार महंगी होती खाद और कीटनाशक, महंगे बीज और सबसे बढकर अकर्मण्य सरकार के चलते किसानों की आमदनियां लगातार घट रही है और कृषि जो कुल राष्ट्रीय आय का 45 प्रतिशत हिस्सा उपलब्ध कराती थी, का योगदान घटकर मात्र 14 प्रतिशत रह गया है। राष्ट्रीय आय में 14 प्रतिशत हिस्सा और 60 प्रतिशत जनसंख्या का कृषि में होना देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती असमानताओं का जीता जागता उदाहरण है।

आगामी दिनों में देश की खाद्य सुरक्षा किसान और किसानी का भविष्य और देश के गांवों के विकास अथवा विनाश को तय करने वाले कई कानून संसद में विचाराधीन हैं। यही नहीं सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से देश के कृषि बाजार को विदेशी उत्पादों के लिए खोल दिया गया है। किसान को उसकी फसल को लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा। सरकार खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के नाम पर देश की कृषि को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले छोड़ने का मन बना चुकी है। सरकार की अनदेखी के चलते अपनी घटती आमदनियों और लगातार खराब होगी आर्थिक स्थिति के कारण किसान आहत है।

इस अवसर पर कई अन्य किसान नेताओं ने उदबोधित किया। सभी किसान नेतओं ने मतैक्य था कि किसान जो इस समय भारी संकट में है उसके हितों की सुरक्षा और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभों पर रोक लगाने के लिए एक निर्णायक संघर्ष की जरूरत है।

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