Saturday, August 25, 2012

िकसान जमावड़ा का संयुक्त घोषणा पत्र 23 August 2012


िकसान जमावड़ा का संयुक्त घोषणा पत्र
23 August 2012

हम सब जानते ही है कि भारत गांवों का देश है। कृषि के बिना गांव की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पिछले कुछ समय से यह स्पष्ट दिखाई पड़ने लगा है कि कृषि घोर संकट में है। किसान या तो संघर्ष कर रहा है, या गांव तथा खेती छोड़ रहा है, या फिर आत्महत्या कर रहा है।

यह संघर्ष भी टुकड़ों-टुकड़ों में हो रहा हैं। कहीं बीज पर, कहीं खाद पर, कहीं जी.एम./बी.टी. फसलों के विरोध में, कहीं भूमि अधिग्रहण पर, कहीं समर्थन मूल्य पर, कहीं पानी पर, कहीं बिजली पर, कहीं सब्सिड़ी पर, कहीं भंडारण पर, कहीं फसल खरीद पर, कहीं निर्यात पाबंदी पर, कहीं आयात अनुमति पर, कहीं कंपनियों के शोषण पर, कहीं प्राकृतिक आपदा पर। कभी कभार कुछ बलिदानों के बाद एक आधे मोर्चे पर क्षणिक जीत भी मिल पाती है।

कृषि पर देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनता की आजीविका निर्भर है। देश के राष्ट्रीय बजट में कृषि को आबंटित की जाने वाली राशि में हर वर्ष लगातार गिरावट हो रही है। यह आंकड़ा देश की जनता को चकित व आक्रोशित कर देता है कि यह राशि मात्र 1 प्रतिशत ही रह गई है।

बीज अधिनियम, जैव विविधता कानून, बायोटेक्नोलाॅजी रेगुलेटरी अथाॅरिटी आॅफ एण्डिया - ठत्।प् एक्ट, जल नीति, खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून, कृषि उपज विपणन कानून, भूमि अधिग्रहण कानून, सब्सिड़ी, बी.टी. तकनीक, जी.एम. तकनीक, मुक्त व्यापार समझौते (थ्ज्।), पशुधन नीति, कृषि को दी जाने वाली बुनियादी सुविधाएं (सिंचाई, बिजली, खाद, विपणन, ऋण आदि), संसद में प्रस्तुत कृषि से संबंधित अनेक बिल आदि अनेक नीतियों एवं कानूनों को देखें तो यह मानने के लिए पर्याप्त कारण है कि ‘‘कृषि-किसान-गांव’’ धीरे-धीरे सरकारों की सोच की परिधि से बाहर हो रहे हैं। इसका अनुगामी प्रभाव राजनैतिक दलों एवं मीडि़या सहित अन्य वर्गों पर भी दिखाई पड़ने लगा है। देश के विभिन्न राजैनतिक दलों में उपलब्ध कृषि से जुड़ा प्रभावशाली नेतृत्व भी स्वयं को अपने-अपने दलों में इन मुद्दों पर कितना असहाय अनुभव कर रहा है, यह बात वहीं जानते है।

‘‘कृषि-किसान-गांव’’ को अनदेखा करके रोजगार रहित विकास का वर्तमान माॅडल न तो अक्षय है, तथा न ही सर्वसमावेशी है। इससे ग्रामीण जनता का शहरों की ओर पलायन हो रहा है या फिर नरेगा जैसी अनेक योजनाओं के द्वारा उसकी भरपाई करने का कुछ-कुछ प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकार इन समस्याओं का स्थायी समाधान निकलने के स्थान पर स्थितियां बद से बदतर होती जा रही है। अब नरेगा भी भ्रष्टाचार के चक्र व्यूह में फंसजा जा रहा है।

समाज में यूं तो अनेक व्यक्ति एवं संगठन इन मुद्दों पर कार्य अथवा संघर्ष कर रहे हैं। विद्यमान चुनौतियों की व्यापकता एवं गहराई को देखते हुए विभिन्न मोर्चों पर संघर्षरत संस्थाओं एवं नेतृत्व की ओर से और अधिक समन्वित तथा एकजुट प्रयासों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। संभवत तभी सरकारों के विधायी एवं नीतिगत दृष्टिकोण में परिवर्तन के लिए जनाकांक्षाओं का निर्णायक दबाव उत्पन्न हो सकेगा।

कृषि नहीं तो गांव नहीं। गांव नहीं तो भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। यह किसान जमावड़ा यह मानता है कि संपूर्ण राजनैतिक व्यवस्था के बारे में विचार करके निर्णयात्मक संघर्ष की घोषणा का समय आ गया है। यह सभा एकमत एक स्वर में इसकी घोषणा करती है।

किसान जमावड़ा में देशभर से 19 प्रांतों के 124 संगठनों के 735 प्रमुख प्रतिनिधियों ने दो दिन तक परस्पर चर्चा एवं गहन विचार विमर्श के उपरान्त यह मानते हैं कि -
1. सरकार की आर्थिक नीतिओं के चलते किसान को लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण, किसानों की आय निरंतर घटती जा रही है। अतः किसान को स्वाभिमानपूर्वक जीवनयापन के लिए एक सुनिश्चित आमदनी की गारंटी देने के लिए ‘किसान आय आयोग’ का गठन किया जाए।

2. भारत के विकास का माॅडल भारत के मानव एवं प्राकृतिक संसाधनों, परिस्थिति, जरूरतों, कमजोरी व ताकतों के आधार पर बनाया व लागू किया जाए। कृषि व पशुधन में सर्वसमावेशी व अक्षय विकास की असीम संभावनाएं है। अतः कृषि-किसान-गांव को केंद्र में रखकर, जल-जमीन-जंगल-जानवर-जनता को विकास का माॅडल का केंद्र माना जाए।

3. निजी क्षेत्र के लिए कृषि जमीन का अधिग्रहण न हो।

4. प्रस्तावित जल नीति वापिस हो और भू-जल पर किसान का स्वामित्व हो।

5. वर्तमान में प्रचलित रसायनिक खेती के दुष्परिणामओं को ध्यान में रखते हुए जैविक खेती को प्रोत्साहित करने की समयबद्ध कार्य योजना बनाई जाए।

6. जी.एम. तकनीक के नाम पर देश की कृषि व खाद्य संप्रभुता को नष्ट करने के तमाम प्रयासों का विरोध किया जाए।

7. किसानों को उनकी उपज की खरीद का भुगतान तुरंत करने की व्यवस्था हो। देरी होने पर उन्हें ब्याज सहित भुगतान किया जाए।

8. पशुधन एवं दुग्ध उत्पाद देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं। इस हेतु अतिक्रमित गोचर भूमि को वापिस लाया जाए और पशुधन विकास को प्राथमिकता मिले।

9. कृषि उत्पादों की आयात-निर्यात नीति बनाते हुए किसान हितों को ध्यान में रखा जाए और उसे फसल चक्र के साथ जोड़ा जाए।

10. मनरेगा योजना को कृषि से जोड़ा जाए।

11. पारंपरिक कारीगरों (यथा जुलाहों, लोहार, बढ़ई, बुनकर, दर्जी, चर्मकार आदि-आदि), मछुआरों, आदिवासियों, सीमांत व भूमिहीन किसान सहित अनेक क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित किया जाए। इस हेतु हर गांव के लिए अलग-अलग ‘मास्टर प्लान’ बने।

यह जमावड़ा किसी भी सरकार अथवा दल या विचारधारा के पक्ष या विपक्ष में नहीं है। हमारा मानना है कि सभी स्थानों पर इन बातों से सहमति रखने वाले अनेक महानुभाव हैं किन्तु वे कुछ कर नहीं कर पा रहे हैं।

अतः
हर स्तर एवं हर क्षेत्र में 2014 के आम चुनाव तक इन मुद्दों को तथा ऐसे नेतृत्व को पूरी शक्ति लगाकर सबल करने का आह्वान यह किसान जमावड़ा करता है। जिसके परिणापस्वरूप कोई भी सरकार अथवा दल इनकी अनदेखी करने का साहस न जुटा सके।

1 comment:

  1. Ek bahut hi upyogi aur safal karyakram isme bhag lene se pata laga ki desh k kisanoo ke sath kaisa dhokha ho raha h desh me aur is tarah k karyakarm se pure desh k kisaano ko ek dusre ka dhukh dard samajhne ka mauka mila.... aur sarkar unke liye vastav me kya kar rahi h ye pata chalta h k sarkar kisaano ko marne pr majboor kar rahi h.....swdeshi jagran munch k dwara kiya gaya yah prayas sarahniye h ...

    Join Swedeshi Jagran Munch and be a part of DESHBHAKT community....

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