‘चीन की चुनौती और हमारा कर्त्तव्य’
प्रिय बहनों, भाइयों........ आज हम स्वदेशी आंदोलन के वर्तमान संदर्भ में बात कर रहे हैं। गत वर्ष दीपावली पर संपूर्ण भारत ने एक स्वतःस्फूर्त स्वदेशी आंदोलन देखा है। सब तरफ चायनीज़ माल के बहिष्कार की एक प्रबल लहर न केवल देखी, अनुभव की गई अपितु प्रत्यक्ष व्यापक असर भी इसका दिखा। यह आंदोलन केवल स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग व चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार के बारे में ही नहीं है, अपितु सारे भारतीयों की सोच व मन एक है, इसका भी यह प्रमाण है! चाहे हरियाणा हो या तमिलनाडू, भारत का युवा मन एक जैसा सोचता है। सब तरफ एक जैसी भावना है। पिछले दिनों तमिलनाडू के त्रिचि शहर की बड़ी यूनिवर्सिटी ‘भारतीदासम्’ में जाना हुआ। वे हिन्दी नहीं समझते, किंतु चीनी वस्तुओं के बहिष्कार में उत्तर भारत जैसे ही हाथ सभी 150 विद्यार्थियों ने खडे किए। उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम सारा भारत इस मुद्दे पर एक जैसा दिखा और मैंने अभी भारत में सभी जगह पर बातचीत की, क्योंकि इस समय पर ये जो चाइनीज वस्तुओं के न खरीदने का आंदोलन है, इसमें स्वदेशी सीधे तौर पर जुड़ा है। दिल्ली में बातचीत की, झारखंड के लोगों से बातचीत की, पंजाब व गुजरात के लोगों से बातचीत की और केवल बातचीत ही नहीं तो सोशल मीडिया में भी तो यही सब चल रहा था। और केवल इसके आधार पर ही नहीं, अपितु शोध रिपोर्टें भी यही आंकडे़ दे रही हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया व ब्लूमबर्ग के संदर्भ से छपी रिपोर्टों के अनुसार भारत के अलग-अलग राज्यों में 20 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक चाइनीज़ सामान की खरीददारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व अन्य समाचार पत्रों ने भी ऐसी ही रिपोर्टें छापी हैं। ब्।प्ज् ;ब्वदमिकमतंजपवद वि ।सस प्दकपं ज्तंकमतेद्ध के सर्वे भी ऐसा ही सब बता रहे हैं। चाइनीज वस्तुओं के प्रतिरोध के इस आंदोलन को पूरे भारत में वैसा ही महत्व व स्वीकार्यता मिली है जैसी गांधी जी के स्वदेशी आंदोलनों को मिली थी। यद्यपि उस समय पर इस प्रकार की रेटिंग व आंकड़ें नहीं थे, लेकिन जो आम आदमियों की भावनाएं उस समय थीं, वैसी ही इस बार प्रकट हुई हैं।
स्वदेशी जागरण और इसकी आवश्यकता
इस स्वदेशी आंदोलन में सारा भारत एकमत रहा। स्वदेशी आंदोलन को जो बड़ी सफलता इस चाइनीज़ वाले विषय पर मिली है। इसका कारण क्या है? स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आरंभ किया हुआ अभियान या कुछ और। इसके कई अन्य कारण भी है। क्योंकि कोई भी आंदोलन ऐसे ही नहीं उठता, उसके आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षात्मक अनेक कारण होते हैं। क्योंकि स्वदेशी जागरण मंच तो कई वर्षों से इस विषय पर लगातार काम कर रहा है। जन-ज्वार इसी वर्ष ही उठा। एक बड़ा कारण यह हुआ कि उड़ी की आतंकवादी घटना के बाद चीनी सरकार के जो वक्तव्य आए और जिस ढंग से चीन ने पाकिस्तान और उसके आतंकवादी संगठनों को समर्थन दिया, उससे चीन का मन्तव्य, भारत के प्रति, बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। एन.एस.जी. ;छनबसमंत ैनचसपमत ळतवनचद्ध में चीन भारत की सदस्यता का पहले से विरोध कर ही रहा है। जबकि चीन को भारत की सदस्यता से कोई नुकसान नहीं है, न पाकिस्तान को है। चीन के इस विरोधी रवैये के कारण लोगों के मन में चीन के प्रति जो नाराजगी का भाव था, वो जन आंदोलन में बदल गया।
भारत और चीन के व्यापारिक संबंध : भारी घाटा, बड़ा आर्थिक संकट
सुरक्षा संबंधी विषयों के अलावा हम देखें तो चीन के साथ हमारी व्यापारिक स्थिति क्या है? इस समय भारत का कुल 190 देशों के साथ व्यापारिक संबंध है। भारत का कुल अंर्तराष्ट्रीय व्यापार 640 अरब डॉलर का है। इसमें निर्यात 261.1 बिलियन डालर व आयात 379.6 बिलियन डालर का है। वर्ष 2015-16 में भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 118.5 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ। (आयात-निर्यात=घाटा) घाटे के कारणों को समझना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हर साल भारत का यह घाटा क्यों हो रहा है और हर साल यह घाटा बढ़ता क्यों जा रहा है। व्यापार किया जाता है लाभ के लिए। फिर ऐसे कौन से कारण या नीतियाँ हैं सरकार की, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निरन्तर घाटे में जा रहा है। क्योंकि नीतियाँ तो अब भी वही चल रही हैं, जो पूर्ववर्ती सरकारों की थी। तो हमारे 640 बिलियन डॉलर के कुल व्यापार में से 118.5 बिलियन डॉलर का हमें व्यापार घाटा हो रहा है। उसमें भी बड़ी बात यह है कि व्यापार संबंधी नीतियों में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। निर्यात बढ़ते नहीं दिख रहे। चायनीज़ आयात बढ़ने से हमारी फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ रही है।
हमारा जो सबसे बड़ा आयात है वह पैट्रोलियम उत्पादों का है, बल्कि कच्चे तेल का है। जिसे क्रूड ऑयल कहते हैं। और इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पैट्रोल की कीमत काफी कम है। लगभग 42 डॉलर प्रति बैरल। भारत सबसे ज्यादा आयात पैट्रोलियम का करता है जो कुल आयात का लगभग 26 प्रतिशत है और इस पैट्रोलियम उत्पादों में चीन से कुछ नहीं आता। यह खाड़ी देशों से आता है। रशिया, अफ्रीका, नाइज़ीरिया आदि से आता है। यानि भारतीय आयात (तेल) का बड़ा हिस्सा अन्य देशों के साथ है, चीन से नहीं, फिर भी चीन के साथ हमारा व्यापारिक घाटा 52.8 बिलियन डॉलर है यानि कुल घाटे का लगभग 44 प्रतिशत। 2015-16 में चीन के साथ भारत ने कुल व्यापार किया 71.6 बिलियन डॉलर का और उसमें से 61.8 बिलियन डॉलर का हम आयात करते हैं, केवल 9 बिलियन डॉलर का हम चीन को निर्यात कर रहे हैं। और उसमें भी ज्यादातर कच्चा माल है। जैसे कुल निर्यात का 52 प्रतिषत लौहकण (प्तवद वतम) ही है। यह आंकडे़ इसलिए आवश्यक है कि ये जो आंदोलन है उसे समझने के लिए और देश के लिए यह कितना जरूरी है, यह समझने के लिए व्यापारिक असंतुलन समझना अत्यंत जरूरी है। हमारे कुल व्यापारिक घाटे में से 44 प्रतिशत घाटा अकेले चीन से हो रहा है और अगर हम पैट्रोलियम उत्पाद को अलग कर दें, क्योंकि पैट्रोलियम उत्पाद का हमारा चीन से कोई आयात है ही नहीं, क्यांकि चीन तो स्वयं अपने लिए तेल आयात करता है। तो लगभग 60-70 प्रतिशत घाटा केवल चीन से है। इस समय हमारा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर चीन हो गया है। दूसरे पर अमरीका है। जापान तो 15वें नंबर पर है। यानि कि हमारा बाजार चीन पर बहुत अधिक निर्भर हो गया है। चीन का घाटा यदि रूपयों में बताना हो तो वह बनता है-3556 अरब रूपये वार्षिक। इसका साधारण भाषा में अर्थ है कि इतने रूपये (3556 अरब रूपये) हम हर वर्ष चीन को भेंट किए जा रहे है। उफ! इतना तो शायद आजादी से पूर्व इंग्लैण्ड को भी नहीं करते थे, यह क्या कर रहे है हम?
अगर चीन से हमारे दोस्ताना संबंध हां तब भी इस व्यापार के बारे में सारे देश को चिन्तित होने की आवश्यकता है। जापान इण्टरनैशनल कम्युनिटी में हमारा एक मित्र देश है। अगर हमारा व्यापारिक घाटा जापान के साथ भी इस लाइन पर हो जाए, रशिया के साथ हो जाए, तब भी हमें चिन्तित होने की आवश्यकता है और चीन के साथ तो हमारे कूटनीतिक संबंध व सुरक्षा चिंताएं बहुत अलग प्रकार की हैं। बहुत बड़ी हैं। इन दोनों कारणों से और ऐतिहासिक कारणों से भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समय चीन का जो स्तर है जो व्यवहार है उस नाते से भी।
चीन से भारत का जो आयात हो रहा है, उसमें केवल इलैक्ट्रॉनिक सामान यानि बिजली की लड़िया, मोबाइल इत्यादि मिलाकर 19.8 बिलियन डॉलर व्यापार है और मशीनों का व्यापार 10.6 बिलियन डालर का है।
रोजगार बढ़ाना है तो स्वदेशी अपनाना होगा
वर्तमान में सारे देश को अपने आर्थिक मामलों जैसे बडे़ विषय की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। खासतौर पर युवा वर्ग को। उसका कारण हमने देखा ही है कि चीन से हमारा व्यापार घाटा बहुत बढ़ गया है। इससे लगातार हमारा उत्पादन क्षेत्र खत्म हो रहा है, ज्यादा उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। और अपना उत्पादन क्षेत्र कम होते जाना- मतलब, राजगार कम होते जाना। गत 16-17 वर्षों में ही लाखों नौकरियां चीन ले गया। जो यही रह सकती थीं यदि हम चीनी वस्तुएं न खरीदकर यहीं बनाते। हम खाड़ी देशों, यूरोप व अमरीका से भी आयात करते हैं, जिसे हर हाल में कम करना होगा।
चीनी माल से रोजगार के अवसर खत्म हुए।
सस्ते चीनी माल का जो सर्वाधिक बुरा प्रभाव हुआ है वह है हमारे रोजगार क्षेत्र पर। सन् 2000 से पहले भारत का खिलौना उद्योग एक बडा उद्योग था किन्तु चीनी खिलौना आयात ने इस उद्योग को चौपट किया इसमें लगे लाखों कारीगर बेकार हो गए धीरे-धीरे अलीगढ़ का ताला उद्योग हो या पानीपत का दरी-कंबल उद्योग अम्बाला की मिक्सी या जालंधर की खेल वस्तु इण्डस्ट्री तेजी से बंद होती गई परिणाम स्वरूप तेजी से ही लोग बेरोजगार होते चले गए। शिवाकाशी की पटाखा इण्डस्ट्री हो या सूरत की साड़ी। गुजरात का टाईल उद्योग हो या कानपुर का चमड़ा उद्योग, फिरोजाबाद का कांच उद्योग या लुधियाना की साईकिल इण्डस्ट्री उद्योग-इन सब पर सस्ते चीनी माल की भयंकर मार पड़ने से लाखों लोग गत 15-18 वर्षों में बेरोजगार हुए हैं। अब फैक्ट्री मालिक उद्योगपति न होकर केवल ट्रेडर (व्यापारी) बन गए है। वे केवल चीनी माल का आयात कर कुछ मुनाफा कमा आगे बेच रहे है। इससे इन पर तो बहुत असर नहीं पड़ा उन्होंने तो फिर कमाई कर ही ली होगी किन्तु जो सबसे बड़ा असर पड़ा है वह है इन उद्योगों, फैक्ट्रीयों में काम करने वाले मजदूर वर्ग पर, तकनीशियन, इंजीनियर पर। वे बड़ी मात्रा में या तो बेराजगार हो गये या यहाँ-वहाँ किसी छोटे-मोटे काम को करने पर मजबूर हो गये।
अगर हमारा निर्यात बढ़ता है तो हमारे यहां का उत्पादन क्षेत्र बढ़ता है। इसका सीधा प्रभाव रोजगार पर पढ़ता है। अभी भारत सरकार की जो नई रिपोर्ट आई है उसके अनुसार भारत को हर साल 1.15 करोड़ रोजगार चाहिए। जितना युवा हमारा विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों से निकल रहा है उतने रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं है, क्योंकि भारत में युवाओं की संख्या ज्यादा है। यद्यपि यह हमारे देश का सौभाग्य है कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। विश्व के 200 देशों के कुल युवा (15-35 आयु वर्ग) का 60 प्रतिशत से अधिक भारत में है। जापान, यूरोप, चीन सब बूढे़ हो रहे हैं। लेकिन भारत एक जवान देश है। अभी 12-15 साल पहले यह धारणा थी-भारत की जनसंख्या बहुत बड़ी समस्या है। परिवार नियोजन के लिए विशेष भत्ता और कार्यक्रम दे रहे थे और 1975 में आपातकाल के समय पर तो जबरदस्ती पकड़कर परिवार नियोजन कर रहे थे, तब भी स्वदेशी विचारकों ने यह विचार दिया था कि भारत का युवा भारत के लिए समस्या नहीं है। देश का युवा देश की संपत्ति और शक्ति है। यदि युवाओं को हम रोजगार के अवसर नहीं दे पा रहे है तो इसमें युवाओं की गलती नहीं है। युवाओं को रोजगार देना हमारा मुख्य लक्ष्य है। इस समय भारत में रोजगार का मुख्य साधन खेती है। लेकिन उसकी भी एक सीमा है और देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर है। हालांकि वहां से 50 प्रतिशत से ज्यादा रोजगार पैदा हो रहा है परन्तु यह काफी नहीं है। रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा करने होंगे और उसके लिए उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाना होगा ताकि युवाओं को रोजगार मिलें। भारत केवल उपभोक्ता या खरीददार बना रहे अब यह नहीं होगा। इस बार हमारे देश ने प्रयोग (दीपावली पर) करके देखा और वह अत्यंत सफल भी रहा। इसे आगे बढ़ाने से रोजगार के क्षेत्र में भी बहुत लाभ मिलने वाला है।
भारत और चीन के कूटनीतिक संबंधः सुरक्षा संकट
यद्यपि चीनी सामान सस्ता होता है परंतु गुणवता में बहुत घटिया होता है, वह जल्दी खराब हो जाता है। चीनी उत्पाद सस्ता हो या न हो, गुणवता हो तब भी नहीं खरीदना चाहिए। चीन के साथ हमारा व्यापारिक घाटा, केवल आर्थिक घाटा नहीं है। यह हमारे जवानों के लिए, हमारी सीमाओं व देश के लिए एक अलग प्रकार का आयाम है, एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट से 5 गुणा अधिक है। हमारा रक्षा बजट 40 बिलियन डालर वार्षिक से कम है, उधर चीन का 200 बिलियन डालर है। चीन की अर्थव्यवस्था 11 बिलियन डालर से अधिक की है, जबकि भारत की 2.3 बिलियन डालर है। आज अमेरिका के बाद चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। जापान तीसरे स्थान पर है और उसके बाद जर्मनी, फिर भारत। यानि कि भारत पांचवें स्थान पर है और वह भी अभी-अभी हुआ है। अन्यथा तो हम सातवें नंबर पर थे। भारत चीन के मुकाबले में लगभग 1/4 पर खड़ा है। चीन भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने देना नहीं चाहता एवं भारत की अंतर्राष्ट्रीय पहुंच में बाधा बन रहा है। पाकिस्तान का एक आतंकी संगठन है जैश-ए-मौहम्मद उसका मुखिया-सरगना है मसूद अजहर। इसने पठानकोट में पहले आतंकी हमला करवाया और अभी पीछे सितंबर में जो उडी में आतंकवादियों ने बड़ा हमला किया और जिसमें हमारे 19 सैनिक शहीद हो गए, उन सभी हमलों का भी मास्टर माइंड है यह मसूद अजहर। भारत ने फोन-वायस रिकार्ड सहित पुख्ता सबूत दिये हैं इस सबके। उस पर युनाइटिड नेशन की जो सिक्योरिटी कांउसिल (ऑन टेररिज्म) है उसमें इस प्रमुख आतंकी व उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने हेतु, प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव भारत ने रखा। उस काउंसिल में 15 देशों के प्रतिनिधि हैं जिसमें से 14 देश इस आतंकी संगठन के खिलाफ हैं, सारे कागजात पूरे हैं, केवल एक देश ने उसके उपर प्रतिबंध नहीं लगने दिया और यह छठी बार किया है। वह देश है चीन। यानि चीन खुलेआम एक आतंकवादी संगठन और उसके मुखिया को बचा रहा है और उसका समर्थन कर रहा है। इतना ही नहीं न्यूक्लीयर सप्लायर ग्रुप (छैळ) में विश्व के 47 देश सदस्य हैं। भारत को उसका सदस्य बनने में चीन का कोई घाटा भी नहीं है और उसमें पाकिस्तान का भी कोई नुकसान नहीं। यदि भारत न्यूक्लीयर सप्लायर समूह का सदस्य बनता है तो केवल यह हो जाएगा कि जो न्यूक्लीयर मैटिरियल (सामान) होता है, न्यूक्लीयर वेस्ट होता है, भारत उसे दूसरे देशों को बेचने-खरीदने में समर्थ हो जाता है और भारत को इसके व्यापार की अनुमति मिल जाएगी। भारत को यह सुविधा मिलने वाली है इसका युद्ध से कोई लेना देना भी नहीं हैं। केवल इसका व्यापारिक असर है। और इस व्यापारिक असर से चीन को कोई घाटा भी नहीं है। 47 में से 39 देश, जिसमें अमेरिका भी शामिल है और अन्य यूरोपीयन देश भी हैं, सभी देशों ने रजामंदी दे दी है क्योंकि भारत इसके लिए क्षमतावान देश है। फिर भी चीन ने एन.एस.जी. में हमारी सदस्यता पर 6 अन्य देशों के साथ मिलकर रोक लगा दी। केवल इतना ही नहीं, हर एक मंच पर जहाँ लगता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा है, उभर सकता है चीन वहां पर विटो लगा देता है। अड़ँगा लगा देता है। भारत के लिए समस्या खड़ी करना व पाकिस्तान की हरकतों को समर्थन करना उसकी अघोषित नीति बन गयी है। एक और उदाहरण देखिए-जब उडी का आतंकी हमला हुआ 18 सितंबर को, तो भारत ने 28 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राईक किया। हमारे जवानों ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकवादियों को जा मारा। फिर भारत ने 1956 में हुई सिंधु जल समझौते की समीक्षा बैठक की। भारत ने तो अभी इतना ही कहा कि यदि पाकिस्तान आतंकी हरकतें बंद नहीं करता तो हम पानी बंद करने की सोचेगें। किंतु उसके चार दिन बाद ही चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी जेकोबा का पानी रोक ही दिया। चीन का संदेश साफ था कि यदि भारत सिंधु जल पाकिस्तान का रोकेगा तो वह भारत को ब्रह्मपुत्र नदी, जो मानसरोवर (अब चीन के कब्जे में) से निकलती है, उसका पानी रोककर पूर्वोत्तर भारत में सूखा ला देगा।
चीन का वैश्विक दृष्टिकोण : खतरनाक
चीन का यह रवैया भारत के साथ ही नहीं अपितु दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भी है। चीन के जापान के साथ कूटनीतिक संबंध भारत से भी ज्यादा खराब हैं। हमारे साथ तो जमीन लगती है चीन की, जापान के साथ कोई जमीन भी नहीं लगती फिर भी चीन के जापान के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं।
जापान के साथ सेनकाकू द्वीप के ऊपर भी झगड़ा है चीन का। केवल 7 वर्ग मील का समुद्र के बीच भूखंड है। वहां एक भी आदमी नहीं रहता। जापान ने केवल टावर लगाया हुआ है जहाजों को दिशा दिखाने के लिए, जो कि जापान से 1200 कि.मी. दूर है तथा 1250 कि.मी. चीन की सीमा से दूर है। वहां क्योंकि कुछ तेल और गैस मिलने की संभावना है। इसलिए चीन का जापान के साथ झगड़ा है। वियतनाम के साथ बॉर्डर नहीं है फिर भी चीन का 2003 में सीधा युद्ध वियतनाम से हुआ। चीन का इंडोनेशिया व मलेशिया के साथ भी बहुत अच्छे संबंध नहीं हैं। श्रीलंका अब तक चीन का मित्र देश था लेकिन अब श्रीलंका भारत के साथ आ गया है, तो उसके साथ भी चीन का झगड़ा शुरू हो गया। चीन के दुनिया में सदाबहार तो केवल दो मित्र देश हैं- एक पाकिस्तान जो भारत का सबसे बड़ा सिरदर्द है और जो दूसरा है वो जो दुनिया का सबसे बड़ा सिरदर्द है-उत्तर कोरिया। यह जानना इसलिए जरूरी है ताकि चीन का मनोविज्ञान समझा जा सके। दुनिया के किसी भी सभ्य एवं सुस्सकृंत देश, समृद्ध देश के साथ चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं। अमेरिका में तो 800 बिलियन का निवेश चीन का है और 28 प्रतिशत व्यापार है लेकिन फिर भी उसके साथ संबंध अच्छे नहीं हैं।
चीन की प्रकृति
जब भारत के लोग, भारत के युवा किसी अभियान के साथ जुड़ते हैं तो उस अभियान के पीछे विचारधारा या विचार को समझना आवश्यक हो जाता है। व्यापारिक घाटे की एक बात, सुरक्षा चिंताओं की एक बात, चीन का डी.एन.ए. क्या है, प्रकृति क्या है, सोचने का ढंग क्या है? वह समझने की प्रमुख बात है। चीन की प्रकृति व सोच को ठीक से समझना केवल सरकार को ही नहीं, जागरूक युवा को भी आवश्यक है। सामान्य नागरिक से लेकर प्रधानमंत्री तक को चीन से वार्ता अथवा समझौते करते हुए इस विषय का ध्यान रखना चाहिए। नहीं तो जैसे तिब्बत का हाल हुआ है, जिसे चीन ने पूरी तरह अपने देश में विलीन कर लिया है और तिब्बत के दलाई लामा वहां के तिब्बतियों सहित गत 56-57 वर्षों से शरणार्थी के रूप में यहां रह रहे हैं व जिस प्रकार से पाकिस्तान चीन की एक कालोनी बनता जा रहा है। कई अफ्रीकी देशों पर उसका प्रभुत्व बन गया है। उसी प्रकार वह हमारे देश को भी खतरा पहुंचा सकता है। और हमारी तो चार हजार मील लम्बी सीमा चीन के साथ लगती है।
भारत की घेरेबंदी व हमारा जवाब
चीन ने अपने व्यापार को बढ़ाने व भारत की घेराबंदी करने की बड़ी महत्वाकांक्षी योजनाएँ बनाई है। चीन, पाक अधिकृत कश्मीर व पाकिस्तान से होती हुई उसके अरब सागर की ग्वादर बंदरागाह को जोड़ती हुई एक 46 बिलियन डॉलर का सी.पी.ई.सी. (चाईना पाकिस्तान इक्नामिक कोरिडार) या आर्थिक गलियारा बना रहा है, जो हमारे पी.ओ.के. के बीच में से निकलकर जा रहा है और भारत के निरन्तर विरोध के बावजूद चीन इसे बना रहा है। गोवा में ब्रीक्स देशों (5-देश ब्राजील, एशिया, इण्डिया, चाइना व साउथ अफ्रीका ठत्प्ब्ै) की मिटिंग में शी जिंग पिंग आए तो उन्होंने 24 बिलियन डॉलर बांग्लादेश को उधार दिए, यद्यपि बंग्लादेश को इतने पैसे की जरूरत नहीं है। सब जानते है कि बांग्लादेश छोटा सा देश है, पूर्व के बंगाल का भी आधा हिस्सा है, उस बांग्लादेश में शी जिंग पिंग गोआ आने से पहले रूके और इतने डॉलर भेंट (उधार देने की इच्छा व्यक्त की) किए। परन्तु इससे चीन की नीयत का साफ पता चलता है। उसने यह पैसे इसलिए दिए क्योंकि वह भारत से बांग्लादेश को अलग करना चाहता है क्योंकि जब भारत के प्रधानमंत्री श्री नेरन्द्र मोदी बांग्लादेश गए थे तो 2 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन बांग्लादेश को देकर आए थे कि तुम हमारे पड़ोसी देश हो। जब भी आपको जरूरत पडे़ इसमें से रुपये लेते रहें। लेकिन चीन ने बांग्लादेश को हमारे से तोड़ने के लिए 24 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाईन ऑफर कर दी जबकि बंग्लादेश ने तो इतनी बड़ी राशि की कोई माँग चीन से की ही नहीं थी।
आखिरकार हम यह कैसे भूल सकते हैं कि 1962 में चीन ने भारत पर हमलाकर हमारी 37,500 वर्ग किमी अक्साईचिन की भूमि पर कब्जा कर रखा है। उस युद्ध में हमारे 1383 जवान शहीद व 1697 लापता हुए। यानि 3080 जवानों के बलिदान को कैसे भुला दें। फिर 1963 में पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की 5180 वर्ग किमी भूमि चीन को दे दी। इतना ही नहीं अभी भी लद्दाख व अरूणाचल की 90,000 वर्ग किमी भूमि पर चीन अपना दावा जताता है। वर्ष भर में (400-500) बार अलग-अलग छुट-पुट तरीके से हमारी सीमा का अतिक्रमण चीन की सेना करती रही है। (गत 2-3 वर्षों में इसमें काफी कमी आई है।) 2013 में लद्दाख के दौलतबेग ओल्डी क्षेत्र में चीन की सेना 19 किमी तक हमारे अंदर घुस आई। एक लज्जास्पद समझौता कर अपने ही बंकर तोड़ हम पीछे हटने को मजबूर हुए, तभी चीनी पीछे हटे। उसी वर्ष के अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अरूणाचल जाने का कार्यक्रम बनाया। कार्यक्रम से दो दिन पूर्व चीन में भारत की राजदूत (एक महिला थी) को रात्रि के 2 बजे उठाकर चीनी विदेश मंत्रालय में बुलाया और मनमोहन सिंह की यात्रा रद्द करवाने का कड़ा आग्रह किया। दबाव में आकर डॉ. मनमोहन सिंह ने वह यात्रा रद्द कर दी। अर्थात् चीन की सरकार का वैश्विक दृष्टिकोण हमारी सीमाओं के लिए स्थाई खतरा है।
उधर देखें जो चीन की सिल्क रूट योजना है यानि ब्च्म्ब् (सिल्क रूट का एक हिस्सा) यह चीन के सीकियांग प्रांत से शुरू होकर कराकोरम दर्रों को चीरता हुआ पाकिस्तान की अरब सागर में स्थित ग्वादर बंदरगाह तक जायेगा। ग्वादर बंदरगाह पहले से ही पाकिस्तान ने चीन के हवाले कर दी है। वहां चीन ने नौसैनिक अड्डा भी बना लिया है। ऐसे ही श्रीलंका की हनमनतोता बंदरगाह व बंग्लादेश की चटगांव बंदरगाह पर भी गतिविधियां बढ़ा रहा है। हिन्द महासागर से लेकर म्ेंज ब्ीपदं ैमं तक उसने सैन्य गतिविधियां की श्रृंखला खड़ी कर दी है। ैवनजी ब्ीपदं ैमं पर अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का फैसला चीन मानने को तैयार नहीं है। वहां पर चीन ।तजपपिबपंस द्वीप बना अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है।
यह अलग बात है कि जवाब में भारत ने भी ईरान की चाबहार बंदरगाह 1.5 बिलियन डालर में लीज पर ले ली है, जो ग्वादर से केवल 60 किमी. की दूरी पर है। भारत ने श्रीलंका व वियतनाम से न केवल संबंध प्रगाढ़ कर लिए हैं बल्कि सैन्य अनुबंध भी किए हैं। यदि चीन ने अरूणाचल के नजदीक परमाणु मिज़ाईल लगाई है तो हमने भी अपना सी-17 ग्लोबमास्टर (टैंक सहित सैन्य सामान वाहक सबसे बड़ा जहाज) चीन सीमा से केवल 26 किमी. दूर उतार दिया है। भारत ने भी मंगोलिया को एक बिलियन की क्रेडिट लाईन देकर चीन की घेरेबंदी का प्रयास किया है। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत के चतुष्कोणीय सैन्य घेरेबन्दी के प्रयास भी शुरू किए हैं।
चीन की ताकत व कमजोरी
हमारे से अनेक लोग पूछते हैं कि चीन का सामान इतना सस्ता क्यों होता है व हमारा महंगा क्यों होता है? तो देखिए, चीन में लोकतंत्र नहीं है, वहां कोई भी कानून एक दिन शाम को केबिनेट में व अगले दिन पार्लियामेंट में पास हो जाता है। अगले दिन लागू भी हो जाता है। भारत में नोटबंदी हो, जी.एस.टी बिल या कोई अन्य नियम नियुक्ति, राजनैतिक दल (विषेषतः विपक्ष) विषय को बढ़ने ही नहीं देते। (लोकतंत्र के बहुत से फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं) फिर चीन ने किसानों से बहुत सस्ते में जमीन छीन कर उद्योगों को सस्ते दामों पर दे दी। बहुत सस्ती दर पर 4-4.5 प्रतिशत पर बैंक लोन मुहैया करवाए। सब्सिडी युक्त सस्ती बिजली दी। लेबर तो भारत से भी सस्ती वहां थी ही। चीन ने पर्यावरण की कोई खास परवाह नहीं की। उत्पादों की कीमतों को कम रखने के लिए उसने सब प्रकार के (हानिकारक) तरीके अपनाएं हैं। आज विश्व प्रदूषण में 24 प्रतिशत हिस्सा अकेले चीन का है। खिलौनों तक में विषैले रसायन या गंध की भी उसने परवाह नहीं की। फिर मात्रा बहुत अधिक रखता है (प्द इनसा) जिससे भी कीमत सस्ती हो जाती है। भ्रष्टाचार में तो वह सभी (भारत सहित) प्रमुख देशों में खराब स्थिति में है। फिर चीन ने आईपीआर या किसी भी विषय में कोई मूल्य (म्जीपबे) नहीं रखे। उसने मबवदवउपबे के मूल सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया। उसने ‘पड़ौसियों की टांगे तोड़ो, भले ही इस चक्कर में अपनी बाजू टूट जाए’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए विश्व बाजार पर 23 प्रतिशत कब्जा कर लिया हैं। परंतु इस सबकी अब सीमा आ गई है। अब उसके निर्यात महंगे होते जाने के कारण घट रहे हैं। चीन की विकास दर जो कभी 10.5 प्रतिशत तक थी वह अब 6 प्रतिशत से भी कम हो गई है। वहां नौकरियां छूट रही है। हड़ताल, प्रदर्शन आम बात है। भ्रष्टाचार भी बहुत बढ़ गया है।
एक नवीन युद्ध, व्यापार युद्ध!
द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम चरण में जापान पर बरसाए अणु बम (।जवउ इवउइ) के बाद दुनिया में युद्ध के प्रति सोच बदल गई है। गत 70-72 वर्षों में किन्ही दो परमाणु अस्त्र युक्त देशों में खुला युद्ध नहीं हुआ है। होने की संभावना भी बहुत कम है। कारण है कि इस युद्ध में कोई जीत नहीं सकता। केवल दोनों तरफ महाविनाश ही होगा। वास्तव में परमाणु अस्त्रों ने एक-दूसरे के खिलाफ ही सही पर युद्ध की रोधक क्षमता (क्मजमतमदज च्वूमत) खड़ी कर ली है। अमेरिका-रूस 45-50 वर्षों तक उलझे रहे शीत-युद्ध में, डिप्लोमेसी में। चीन-जापान का भी यही हाल है। यहाँ तक कि अमेरिका उत्तर कोरिया पर भी इसी भय से हमला नहीं कर रहा है। (यद्यपि-ईराक, अफगानिस्तान व अब सीरिया में किया क्योंकि वह परमाणु अस्त्र युक्त नहीं थे)
तो अब युद्ध का दृष्टिकोण बदल गया है अब जो युद्ध है वह है व्यापार युद्ध (ज्तंकम.ॅंतए ॅंत वि म्बवदवउपबे)। चीन से जिस युद्ध में हम लगातार सन् 2000 (लगभग) से उलझे है वह भी व्यापार युद्ध है। सन् 2000 में हमारा चीन का व्यापार केवल 2.6 बिलियन डॉलर का था जो 2013-14 में 75.5 बिलियन तक पहुँच गया, अब लगभग 70 बिलियन (वार्षिक) का है। यदि हम इस युद्ध (ज्तंकम ूंत) की समग्रता को ठीक से समझ गए तो इसमें विजयी होने का रास्ता भी निकल आएगा। इस युद्ध की सेना के 5 प्रमुख अंग होगें। 1. सरकार 2. नीति नियामक संस्थान (ठमंनतवबतंबल) 3. उद्योग जगत 4. अन्वेषक (त्मेमंतबीमते म्बवदवउपेज) 5. उपभोक्ता अर्थात् सामान्य जनता।
इन पाँचों को कर्त्तव्यबोध कराना, चीन की नीति, नीयत, नजर (सोच) को समग्रता से समझना ही हमारे अभियान का केन्द्र होगा। इसके लिए एक प्रबल जन जागरण की आवश्यकता है। सामान्य जनता (उपभोक्ता) चायनीज माल का सस्ता होने के बावजूद बहिष्कार करे विज्ञान व अर्थशास्त्र के अन्वेषक (त्मेमतंबीमते) नयी-नयी तकनीकों का अविष्कार करें, अनुबंधन करें जिससे भारतीय माल का अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में गुणवत्ता व माँग का स्तर पूरा हो। उद्योग जगत कैसे हमारे माल की कीमत सस्ती हो, स्पर्द्धात्मक हो (ब्वउचमजपजपअम) हो यह सोचे। नीति नियामक चीन का पूरा अध्ययन करते हुए भारत की डंदनिंबजनतपदह व ज्तंकम चवसपबल में क्या आवश्यक परिवर्तन करने है यह तय करें व सरकार ।दजल.कनउचपदह कनजलए ेंमिजल बसंनेम सहित सस्ते किन्तु घटिया चीनी माल/कंपनियों/सेवाओं को भारत में आने से कैसे रोका जाए, इसका निर्णय करे।
आशा की किरण
भारत में एक जनज्वार पिछली दीपावली पर उठ गया है। चीनी वस्तुओं की खरीद में बड़ी कमी आई है। यह अभियान आगे भी जारी रखना है। मैं अभी पानीपत गया था वहां के लोगों ने बताया कि मिंक कम्बल इण्डस्ट्री फिर से चल पड़ी है। 3डी की चादर अब पानीपत में बनने लगी है। अब भारत का माल सस्ता व चीन का महंगा हो रहा है। शिवाकाशी की पटाखा इण्डस्ट्री फिर से रफ्तार पकड़ गई है। चीनी स्टील पर 18 प्रतिशत की ।दजप क्नउचपदह क्नजल लगने से मंडी गोविन्दगढ़ पंजाब सहित भारत की स्टील मिलें गति पकड़ रही हैं। चीन के प्लास्टिक के माल पर भी पिछले दिनों प्रतिबंध लग गया है।
इसलिए हमें ध्यान करना है कि हमें अपने देश की सुरक्षा के लिए, टै्रड बैलेंस को ठीक करने के लिए, रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए, चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का एक लंबा और निरंतर चलने वाला अभियान चलाना होगा। सस्ती चीज के कारण आम आदमी इन चीनी वस्तुओं को खरीद लेता था, लेकिन हम सब भारतीयों ने मिलकर जो आंदोलन चलाया, और चीनी सामान का बहिष्कार किया, इस अभियान को अभी और आगे बढ़ाना होगा। भारत की सुरक्षा के लिए, भारत के रोजगार की वृद्धि के लिए, भारत के उत्पादन क्षेत्र के विकास के लिए और कुल मिलाकर भारत को दुनिया का एक सर्वशक्तिशाली देश बनाने के लिए इस प्रकार के बडे़ अभियान को सबको मिलकर, एकजुट होकर चलाना होगा। इस राष्ट्रीय अभियान में हम सब तन,मन से जुटे, यही अपेक्षा है।
भारत माता की जय
बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न ;थ्तमुनमदजसल ें ुनमेजपवदेद्ध
प्र.1 वैश्वीक परिदृश्य में जब भूमण्डलीकरण व मुक्त व्यापार को अपनाया जा रहा है, ऐसे में हम चीन के सामानों का विरोध क्यों कर रहे है?
उत्तर कोई भी भूमण्डलीकरण व मुक्त व्यापार हमें हमारे देश की उन्नति एवं राष्ट्रभक्ति से रोकती नहीं है। हमारे देश की उन्नति यहाँ के युवाओं को रोजगार एवं घरेलु छोटे-बड़े उद्योग धन्धों के विकास से ही संभव है। चीन के सस्ते सामानों से हमारे औद्योगिक क्लस्टर खत्म होते जा रहे है। इसके कारण छोटे उद्योग समाप्त होकर ट्रेडिंग का रूप ले रहे है एवं इसमें काम करने वाले रोजगारयुक्त भारतीय ही नहीं बल्कि वे उससे बेरोजगार हो रहे है। अमेरिका जैसे मजबूत राष्ट्र जो भूमण्डलीकरण व मुक्त व्यापार के प्रमुख पैरवीकर्ता है, वो भी अब ’’बी अमेरिकन एवं हायर अमेरिकन’’ से भी आगे बढ़कर ‘बाय अमेरिकन’ के नारे के साथ अमेरिकन कंपनियों के उत्पाद एवं सेवाओं को स्वयं के देश में अधिक लेने के लिए अभियान चला रहे है। इसलिए चीन के सामानों का विरोध हमारे देश की उन्नति एवं तरक्की के लिए नितांत आवश्यक है।
प्र.2 सरकार पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में है, ऐसे में यदि सरकार ही कोई नियम या कानून बना कर चीनी सामानों पर पाबंदी लगा दे। उपलब्धता न होने के कारण चीनी सामान बाजारों में बिकेंगे ही नहीं, तो कोई खरीदेगा ही नही। ऐसे में हम जनता की बजाय सरकार पर नियम बनाने के लिए क्यों नहीं डाल रहे?
उत्तर राष्ट्रीय स्वदेशी-सुरक्षा अभियान व्यापार युद्ध में चीन से सावधान करने के लिए पाँचों प्रमुख अंगों पर दबाव बनाने का काम कर रहा है। ये अड़. हैं- 1. सरकार 2. नीति नियामक संस्थान 3. उद्योग जगत 4. अन्वेषक 5. उपभोक्ता अर्थात् सामान्य जनता। इन पाँचों अंगों को चीन के इस व्यापार युद्ध हेतु सजग एवं जागरूक होने की महत्ती आवश्यकता है। हम उपभोक्ताओं अर्थात् सामान्य जनता को अपने हिस्से का कार्य चीन के सामान का संपूर्ण बहिष्कार कर पूर्ण करने की आवश्यकता है। अतः हमें स्वंय को जागरूक होते हुये (जिसमें सरकार भी शामिल है) को जागरूक करने के लिए अभियान का हिस्सा बनना है। हमारे उत्पाद अच्छे व सस्ते हों, इसके लिए अपने उद्योगपतियों को परिश्रम करना होगा। विभिन्न क्षेत्रों में आवष्यक नई टैक्नोलोजी हमारे विज्ञान विकसित करें। हम सबसे सस्ते व उत्तम राकेट-सेटेलाईट बना सकते हैं तो मोबाईल या अन्य बस्तुएं तो क्या चीज़ हैं? इस अभियान का उद्देष्य सबको अपना कर्तव्य बोध कराना है। यहाँ यह कहना भी अनुचित नहीं होगा की वैश्विक अनुबन्धों एवं नेशनल पॉलिसी तथा वैश्वीक संगठनों (ॅज्व्ए ठत्प्ब्ै आदि) का हिस्सा होने के चलते कोई सरकार सीमित सीधे प्रतिबंध नहीं लगा पाती। परन्तु जबरदस्त जन दबाव के कारण सरकारों को कई बार झुकते देखा गया हैं।
प्र.3 मंच विभिन्न मुद्दों पर लड़ता आया है। वर्तमान में प्रमुख मुद्दों को दरकिनार कर चीन के मुद्दे पर इतनी ज्यादा ताकत क्यों लगा रहा है?
उत्तर स्वदेशी जागरण मंच अपने प्रादुर्भाव के समय से ही देश के आर्थिक चिन्तन में क्रियाशील है। एफडीआई के तहत् कृषि, उद्योग, व्यापार, वित्तीय सेवाओं समेत तमाम क्षेत्र विदेशी कम्पनियों के हवाले किये जाते रहे हैं। जी.एम. फसलों के नाम पर हमारी कृषि में विदेशी कम्पनियों को काबिज करने, हमारी जैव विविधता को नष्ट करने, किसान से उसका बीज छिनने और विदेशी कम्पनियों का एकाधिकार स्थापित करने का वैश्विक षडयंत्र चल रहा है। स्वदेशी जागरण मंच- जन, जंगल, जमीन से जुडे़ राष्ट्र हित के सभी आर्थिक मुद्दों के मोर्चो पर अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। चाहे सरकार किसी भी दल की रही हो। और ये प्रयास अभी भी जारी हैं। पिछले दिनों बिल मिलिंड़ा गेटस फाउंडेषन की गतिविधियों को रूकवाने का मामला हो या स्टंट की कीमतें कम करवाने का, इन सब में मंच की बड़ी भूमिका रही है। दो वर्ष पूर्व जब भूमि अधिग्रहण का विषय चला तो मंच ने सड़कों पर उतरने में संकोंच नहीं किया। परंतु वर्तमान में चीन ने हमारे बाजारों के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। जिसके कारण हमारे इससे अधिकांश लघु कुटीर उद्योग बंद हो रहे हैं। हमारे रोजगार बड़ी मात्रा में चीन छीनकर ले जा रहा है। ऐसे में सर्वप्रथम बड़ी लड़ाई वर्तमान समय में चीन जैसे अहितेषी राष्ट्र के साथ लड़नी आवश्यक है। इसी कारण राष्ट्रीय स्वदेशी-सुरक्षा अभियान की आवश्यकता है, यह आर्थिक स्वतंत्रता, समृद्धि का उसी कड़ी में नया अभियान है, जिसमें आप सभी का साथ राष्ट्र हित में परम आवश्यक है।
प्र.4 चीन का माल इतना सस्ता कैसे है? हमारे उद्योग क्यों नहीं उतनी कीमत पर उत्पाद कर पाते? आखिर कितने दिन भावात्मक अपनी चलेगी। अंततः तो दाम ही ठीक होने चाहिए।
उत्तर हमें यह ध्यान रखना होगा कि चीन में एकाधिकारवादी सरकार है। निष्चित रूप से हमारे उद्योगियों को कम कीमत पर उत्पाद के तरीके लताषने होंगे। इस अभियान में उन्हें भी जागरूक करना है। किन्तु सबसे प्रमुख जनता है। यह भावात्मक अपील नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र के स्थाई जागरण का विषय है। इसे आर्थिक राष्ट्रवाद (म्बव.छंजपवदंसपेउ) भी कह सकते है। जापान में ठम श्रंचंदमेमए ठनल श्रंचंदमेम उनके स्वभाव में है। अमेरिका भी आज ऐसे ही प्रयास कर रहा है। यह देषभक्ति का, स्वदेषी भाव का, जागरण अभियान है। यह निरंतर चलते रहना चाहिए।
प्र.5 इस अभियान में मैं कैसे सहयोग कर सकता हूँ?
उत्तर राष्ट्रीय स्वदेशी-सुरक्षा अभियान देशभर में संचालित हो रहा है। आप इस अभियान के तहत् चीन का सामान न खरीदने हेतु जनता को जागृत कर सकते है। विभिन्न संस्थाएं, बिरादिरियां मंच, व्यापार संगठन, बाजार, स्कूल-कॉलेज अपने-अपने प्रस्ताव पारित करें, इस हेतु संपर्क अभियान कर सकते हैं। चीन के सामान न खरीदने के संकल्प हस्ताक्षर अभियान में अपने परिवार सहित अन्य लोगों के बीच चीन से होने वाले नुकसानों की जानकारी पहुँचा हस्ताक्षर करवा कर अभियान में सहयोग कर सकते है। सोशियल मीडिया का उपयोग करने वाले सभी लोग इस भावना को अपने मित्रों एवं विभिन्न गु्रप में भेजकर सहयोग कर सकते है। विभिन्न संस्थानों, सार्वजनिक आयोजनों, विद्यार्थियों, युवाओं एवं महिलाओं सहित सभी लोग चीन के सामानों एवं सेवाओं के बहिष्कार का आह्वान कर इस अभियान में सहयोग कर सकते है। स्वदेशी जागरण मंच की स्थानीय इकाई के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अभियान में सहयोगी बन सकते है।
भारत माता की जय।
श्रीमान् सतीश कुमार
त्री क्षेत्र (उत्तर, राजस्थान, म.प्र.) संगठक व अ.भा. सह विचार विभाग प्रमुख तथा ’राष्ट्रीय स्वदेशी-सुरक्षा अभियान’ के अखिल भारतीय प्रमुख के राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर एवं कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में चीन पर हुए व्याख्यान के अंश।
Suraj Bhardwaj
9899225926
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