Monday, June 12, 2023

भारत @2047 सतीश जी पुणे

जब हम भारत 2047 की चर्चा करते हैं तो उसमें पहला बिंदु है-
*जनसंख्या संरचना*-----
2047 में हमारी जनसंख्या की संरचना डेमोग्राफी कैसी होनी चाहिए,? इस पर विचार करना आवश्यक है
कोई भी देश क्या होता है? विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहां जनसंख्या का निवास नहीं हो निर्जन या जन शून्यता के स्थान जैसे साइबेरिया स्वयं में अपने आप में कोई देश नहीं ।देश या राष्ट्र के निर्माण की प्रथम शर्त है -वहां की जनसंख्या- 
इस प्रकार जब किसी स्थान पर व्यक्ति या लोग रहते हैं तो वह एक समाज का निर्माण करते हैं और जब समाज एक निश्चित क्रम में आगे बढ़ता है तो उसका उस भूमि के साथ गहरा जुड़ाव बन जाता है वहां की घटनाएं वहां के जनमानस के साथ जुड़ती चली जाती है और लंबे समय तक वहां निवास करने के कारण वहां के समाज के कुछ सांस्कृतिक मूल्य एवं कुछ जीवन मूल्य विकसित होते हैं तो एक संस्कृति के आधार पर एक राष्ट्र का निर्माण होता है। हम हमारा राष्ट्र भारत 2047 में समृद्धि युक्त और ग़रीबी मुक्त चाहते हैं  तो उस समय की जनसंख्या संरचना कैसी हो? उस पर भी विचार करना आवश्यक है ,, डेमोग्राफी को समझने के लिए कुछ पिछले वर्षों का अध्ययन और उनके आंकड़े भी आवश्यक होते हैं।
1947 में जब भारत औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हो गया था परंतु औपनिवेशिक मानसिकता ने यहां एक ऐसा माइंडसेट एक नरेटीव बना दिया  कि भारत की जनसंख्या भारत के विकास के लिए सबसे बड़ी बाधक है ।भारत के 40 करोड़ की जनसंख्या  भारत के लिए एक बड़ा बोझ है।
हमें याद है 1950 के आसपास जब देश की जनसंख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास थी तब विश्व के विकसित देशों के प्रमुख अर्थशास्त्री और यहां तक कि भारत के सभी प्रमुख राजनेता , अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री तक एक ही बात कहते थे कि यह बढ़ती हुई देश की जनसंख्या देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक है इसलिए जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है,उस समय की सभी सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए निरंतर प्रयास भी किए।
इतनी बड़ी जनसंख्या का भरण पोषण करने में हमारा देश असमर्थ होगा परंतु हम देखते हैं कि तमाम अटकलों और जनसंख्या पर अध्ययन करने वाले समाजशास्त्रियों की आशंकाएं, सिद्धांत और धारणाएं धराशाई हो गई।
आज हम जब 140 करोड की आबादी हैं तब भी स्वयं की जनसंख्या के भरण-पोषण के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों को चावल और गेहूं खिलाने में समर्थ हुए हैं। 
विश्व में  चावल का आज  जितना व्यापार होता है उसका 40% हिस्सा अकेले भारत का  है।
इस  बड़ी जनसंख्या ने वास्तव में अपने लिए ही नहीं विश्व के लिए अन्य देशों के लिए भी अन्न उत्पादन करके दिखाया है,इसलिए हम कहते हैं की बढी हुई जनसंख्या बोझ नहीं है, इस संबंध में जरा अपना दृष्टिकोण ठीक करने की आवश्यकता है श्री गुरु नानक देव जी ने कहा है,,,
 *"रब तुझ सों दूर नहीं, तेरा भी कसूर नहीं।*
 *देखने वाली आंखें जेडी ,ओंधे विच ही नूर नहीं"।।*
अर्थात जनसंख्या के प्रति देखने का हमारा दृष्टिकोण और नजरिया ठीक करना होगा।
लंबे समय तक चले एक विचित्र विमर्श के कारण साठ के दशक में भारत के  परिवारों में जब 5 से 6 बच्चे होते थे वह 1970 तक तीन बच्चों पर आ गए 1980 के दशक में 2 पर आ गए और वर्तमान में तो 1 बच्चे पर आ गए हैं। आपको ताज्जुब होगा कि भारत का फर्टिलिटी रेट वर्तमान में 2.0 पर आ गया है ,जो कि ठीक नहीं है।
 2.1 का फर्टिलिटी रेट तो वैश्विक मानक है। भारत के संदर्भ में यदि देखा जाए तो यह फर्टिलिटी रेट 2.2 होना चाहिए वर्तमान में भी इसमें बहुत अधिक विभिन्नता दिखाई देती है।
दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु और केरल में तो यह है 1.8 रह गया है महाराष्ट्र में 1.7 रह गया है।यह स्थिति वास्तव में लम्बे समय की दृष्टि से खराब  स्थिति है। 
जापान का टीएफआर 1.3 रह गया है, लगभग चीन का भी यही हाल हो रहा है उनकी वन चाइल्ड पॉलिसी लगभग लगभग फेल हो गई है।
 हम आज जनसंख्या दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान पर ही नहीं बल्कि युवा जनसंख्या की दृष्टि से भी प्रथम है यदि 2047 में हम समृद्ध भारत का सपना देख रहे हैं तो उसकी पहली शर्त है ,देश की जनसंख्या युवा हो,  देश की जनसंख्या शिक्षित हो, योग्य हों और  
स्वस्थ हो, यह मूल इंडिकेटर हैं। 
हमारी युवा शक्ति विश्व में प्रथम स्थान पर है हमारी साक्षरता की दर भी लगातार बढ़ रही है परंतु हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के आंकड़े जरा डरावने प्रतीत होते हैं तो हमें अपने बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए 2047 के परिपेक्ष्य में  ठीक से योजना बनाने की आवश्यकता है हमारा युवा आईटी के क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे रहा है हमारे युवाओं ने पिछले वर्ष $180 बिलियन के और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में निर्यात किए हैं। कुछ ही वर्षों में हमारा यह निर्यात $1 ट्रिलियन के आसपास हो जाएगा। 
भारत विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है तो उसकी पहली और सबसे बड़ी गारंटी हमारी योग्य, शिक्षित स्वस्थ, युवा शक्ति  है  और इसके लिए हमें हमारे डेमोग्राफी का स्तर कम से कम 2.2 तक आवश्यक रूप से बनाए रखना होगा ताकि निरंतर रूप से जनसंख्या संरचना में युवाओं की संख्या में वृद्धि होती रहे।

 भारत @ 2047 का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है -*भारत को पूर्ण रोजगार युक्त',पर्यावरण हितैषी और एक उन्नत अर्थव्यवस्था बनना होगा*---
इस बिंदु के संदर्भ में बात करें तो आजकल कहा  जाने लगा की "अर्थशास्त्र इतिहास बनने वाला है "
यहां मैं उषा पटनायक की रिपोर्ट का उल्लेख करना बहुत जरूरी समझता हूं जिन्होंने अपने विस्तृत अध्ययन के आधार पर  यह रिपोर्ट प्रस्तुत की कि 1753 से लेकर 1935 तक के कालखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों के शासनकाल में लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर की लूट इंग्लैंड ने भारत से की।
यह तथ्य अपने आप में स्पष्ट करता है कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत ही उन्नत स्तर पर रही थी।
भारत की उद्यमिता और भारत की जनता की जागरूकता का स्तर धीरे-धीरे बहुत जल्दी बढ़ने वाला है आज हम विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं बहुत जल्द हम विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे परंतु हमें केवल उन्नत और बड़ी अर्थव्यवस्था ही नहीं बनना है बल्कि समाज के अंतिम छोर पर स्थित व्यक्ति को रोजगार युक्त  भी करना है।
यह सबसे बड़ी चुनौती है चाहे वह लद्दाख का क्षेत्र हो चाहे पूर्वांचल का हो, चाहे केरल का हो, चाहे राजस्थान का युवा हो,,गलत शिक्षा नीति के चलते हमारे युवा वर्तमान में बेरोजगारी के शिकार हो रहे हैं।
2047 तक हमारी अर्थव्यवस्था उन्नत तो होगी ही पर साथ में सब को रोजगार प्रदान करने वाली भी होगी, 
उन्नत और रोजगार के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि यह पर्यावरण हितैषी भी हो।
 हम कभी भी संसाधनों और पर्यावरण के वृहद शोषक नहीं रहे हैं जैसे अमेरिका और यूरोप के देश सब कुछ समाप्त कर देना चाहते हैं‌,उसके  स्थान पर हम सदैव प्रकृति के संरक्षक और पोषक रहे हैं। हमारी भूमि, हमारे वन,हमारी जल संपदा का उपयोग आर्थिक दृष्टिकोण से तो हो ही परंतु हम विकास के लिए इस पश्चिमी सोच के विनाशवादी विचार के पक्षधर नहीं रहे।हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत (सस्टेनेबल) विकास के मार्ग को अपनाना होगा हालांकि इस बिंदु से संबंधित अभी कोई विशेष ब्लूप्रिंट  तैयार नहीं हुआ है परंतु शीघ्र ही इस पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है, अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि हमारी अर्थव्यवस्था उन्नत विशाल रोजगार प्रदान करने वाली और साथ ही पर्यावरण हितैषी भी हो,,,

तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है 
*अजेय भारत -सुरक्षित भारत*---
भारत को 2047 तक अपने स्वयं के लिए सर्वोच्च स्तर का उच्च सुरक्षा तंत्र चाहिए। सन् 1947 के बाद से  देश में सुरक्षा संबंधी और सीमाओं से संबंधित विषय की सदैव उपेक्षा की गई है।
इतिहास हमें बताता है कि कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने अहिंसा का मार्ग अपना लिया।
पहली, दूसरी, तीसरी शताब्दी से ही उस कालखंड के अन्य सभी शासकों ने भी सैन्य सुरक्षा के इस पक्ष को भुला दिया कुछ लोगों ने अहिंसा के नाम पर बौद्ध धर्म अपना लिया और कुछ जैन मतावलंबी हो गए। इसके चलते जब 712 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण किया तो विश्व का यह विशाल देश और उसके शासक प्रतिकार करने की स्थिति में नहीं रहे,हम देखते हैं कि 1193 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान जब तराइन का युद्ध हारा तो हमारी स्थिति और विकट हो गई 
सुरक्षा की उपेक्षा के कारण ही उन्नत अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भी हम पहले मुगलों के और फिर बाद में अंग्रेजों के गुलाम बन गए। 
इसलिए इतिहास के इन तथ्यों से सबक लेते हुए यदि हमें 2047 में विश्व की प्रथम स्तर की अर्थव्यवस्था उन्नत और रोजगार युक्त अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करना है तो हमें उच्च स्तरीय सुरक्षा तंत्र चाहिए।  
आज अमेरिका व चीन में छह प्रकार की सेनाएं हैं जिनमें जल, थल,नभ, रॉकेट ,आर्मी और स्पेस आर्मी सम्मिलित है परंतु हम अभी भी परंपरागत रूप से सेनाओं के तीनों विभागों के अंतर्गत ही चल रहे हैं हालांकि अग्निवीर योजना देश की सेनाओं को युवा बनाए रखने का प्रशंसनीय प्रयास है।
एक अनुमान है कि 2030 तक भारत सुरक्षा तंत्रों का निर्यातक देश बनेगा हालांकि वर्तमान सरकार ने इस दिशा में तथा सेना के आधुनिकीकरण का निरंतर प्रयास किया है परंतु हम कब तक रूस, जापान, जर्मनी और अमेरिका से  लड़ाकू विमान राइफल्स, टैंक या अन्य  युद्ध सामग्री के आयात पर निर्भर रहेंगे।
अपने सुरक्षा तंत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए अजेय और सुरक्षित भारत का निर्माण आज की प्रथम आवश्यकता है‌।

चौथा महत्वपूर्ण बिंदु है -
*विज्ञान और तकनीकी का विकास (साइंस एंड टेक्नोलॉजीकल डेवलपमेंट)*----
अपने देश की अर्थव्यवस्था को उन्नत करते समय हमें यह विचार करना होगा कि आज यूरोप इतना अमीर कैसे है? अमेरिका विकसित है तो इनके मूल में क्या है? 
हम इतिहास की घटनाओं को देखेंगे तो ध्यान में आएगा के सत्रवीं में शताब्दी में वहां औद्योगिक क्रांति हुई , वह तो ठीक है परंतु इंग्लैंड और यूरोप के देशों ने दुनिया भर में जो लूट मचाई और वहां से जो सारे संसाधनों को अपने स्वयं के देश में लाकर एकत्र कर दिया उसके आधार पर तथा विज्ञान और तकनीकी का तेजी से विकास करते हुए  ये देश विकसित देश बन गये।
 आज अमेरिका की कुल जीडीपी का लगभग 34% (आई.पी.आर )बौद्धिक संपदा अधिकार से आ रहा है,
क्यों ?
क्योंकि वह विकास और अनुसंधान (रिसर्च एंड डेवलपमेंट R&D) के आधार पर मजबूत है। 
 आज दुनिया भर में गूगल, फेसबुक, एप्पल, इंटरनेट आदि के माध्यम से अपने देशों के लिए आय प्राप्त कर रहे हैं। 
अमेरिका के बाद यूरोप में जर्मनी और फ्रांस आते हैं चाहे बिजली हो, रेल हो या अन्य आधुनिक तकनीक हों सब की सब यूरोप और अमेरिका की देन मानी जाती है।
हमने कभी इस विषय पर ध्यान ही नहीं दिया हमारे औद्योगिक और व्यापारिक घरानें हो या सरकारें रही हो किसी ने भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D)के विषय पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया।
नतीजा हमें नवीन तकनीक और अनुसंधान के लिए सदैव विदेशों की ओर ताकना पड़ता है।
 इसलिए भारत को विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना होगा क्योंकि आज अर्थ का उत्पादन और विश्व को देने के लिए यही दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें हम अपनी धाक जमा सकते हैं।
 आज जापान, जर्मनी सबसे विकसित देश है क्षेत्रफल और जनसंख्या के मामले में भारत से बहुत पीछे हैं परंतु रिसर्च डेवलपमेंट के मामले में आज विश्व में अग्रणीय है  तो 2047 के स्वर्णिम भारत के स्वप्न का चौथा स्तंभ विज्ञान और तकनीकी का होगा जिसे हमें बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ कर इसे पूर्ण करना होगा।

भारत @ 2047 का पांचवां और अंतिम बिंदु है 
*वैश्विक दृष्टिकोण और भारतीय जीवन मूल्य*---
उपरोक्त वर्णित किए गए 4 बिंदुओं के बारे में तो विश्व स्तर के कई राजनेता' विचारक' राष्ट्रवादी चिंतक अवश्य सोचते होंगे परंतु इस पांचवें बिंदु "वैश्विक दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों " के बारे में नहीं सोचते हैं।
इस तथ्य और बिंदु पर विचार करने की कोई सोचता है तो वह इस देश का चाणक्य हो सकता है-
पंडित दीनदयाल उपाध्याय हो सकता है-
कोई दत्तोपंत ठेंगड़ी हो सकता है- 
या उसकी विचारधारा से निकले शिष्य सोच सकते हैं।
आप इस दुनिया को क्या देने वाले हैं-? हमारे जीवन मूल्य कैसे हैं-? 
अपने परिवार को ,अपने समाज को, देश को और विश्व को देखने का दृष्टिकोण कैसा है-? यह वैश्विक भाव और जीवन मूल्य विश्व में केवल 140 करोड़ भारतीयों के पास है। 
हमने सदैव से कहा है -"वसुधैव कुटुंबकम' 
 इसी बात को ठेंगड़ी जी कहते थे कि *"पश्चिम के लोग सोचते हैं विश्व एक बाजार है ,जबकि हम भारतीय कहते हैं विश्व एक परिवार है"*
 अगर परिवार भाव का दृष्टिकोण रहता है तो विश्व में युद्धों से बचा जा सकता है।
आज विचार करें रूस और यूक्रेन का युद्ध क्यों हो रहा है? इसके मूल में तो संसाधनों पर कब्जा करने का भाव छिपा है क्योंकि बाजार का भाव रहता है तो परस्पर प्रतिस्पर्धा होनी ही है।
गला काट प्रतिस्पर्धा बाजार का मूल भाव है परंतु परिवार में इसके विपरीत विचार होता है सब स्नेह सूत्र और सहयोग के भाव से चलते हैं।
अभी तो भारत में भी परिवारों पर पश्चिमी सभ्यता और पश्चिमी विचार का दुष्प्रभाव दिखाई देने लगा है, इस संदर्भ में देखेंगे तो अमेरिका के परिवारों की क्या स्थिति है?
 आज वहां डायवर्स दर 72% के आसपास है तो हमारे जीवन मूल्य,हमारे परिवार का भाव, उदार दृष्टिकोण हम विश्व को दे सकते हैं,, आज विश्व को इसकी आवश्यकता है।
 हमने विश्व को बौद्ध धर्म दिया जिसका प्रसार चीन और जापान तक गया परंतु हमने कभी भी किसी देश पर आक्रमण कर उसकी भूमि और संसाधन नहीं हड़पे  हमने सेना भी नहीं भेजी।
आज अमेरिका ने 27 देशों में चीन ने 12 देशों में सेना भेज रखी है।
हम दुनिया में योग लेकर गए ,आयुर्वेद लेकर गए, पंचगव्य लेकर गए और प्राकृतिक खेती, जहर मुक्त खेती दे रहे हैं। यही हमारी ताकत है ।
पहली ,दूसरी और तीसरी शताब्दी में हम सनातन हिंदू संस्कृति के मूल्यों का प्रसार करने के लिए हम पूर्वी और पश्चिमी देशों में गए अभी भी इन मूल्यों को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर लेकर जाएंगे, इस आधार पर विश्व में सबसे बड़ा फैलाव हमारा है,लगभग डेढ़ करोड़ भारतीय मूल के लोग भारत में आर्थिक उन्नति की दृष्टि से पैसा तो भेजते ही हैं परंतु वे अपने-अपने देशों में हमारी संस्कृति और जीवन मूल्यों के ब्रांड एंबेसडर भी है।
*इस प्रकार ऐसे पांच बिंदुओं के आधार पर भारत @2047 की चर्चा प्रारंभ की है*-
*"वादे -वादे जायते तत्त्व बोधा"*
 विचार करते-करते सत्य का दर्शन करना।
हम सागर मंथन करने वाले लोग हैं,यह अभी प्रारंभ में विचार के लिए कुछ सूत्र है, कुछ बिंदु है जिनके आधार पर हम परम वैभव का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।
संपूर्ण विश्व भारत की प्रतीक्षा कर रहा है।
यह भारत का नैतिक और  दैविक दायित्व भी है कि विश्व का पथ प्रदर्शक बने ‌।
अनंत शुभकामनाओ सहित 
जय भारत, जय हिंद ,जय स्वदेशी

Friday, March 24, 2023

farma frauds फार्मा फ़्रॉड्स

लोग मर रहे थे, दवा कंपनियां साजिश रच रही थीं:नेताओं की लॉबिंग पर 3700 करोड़ खर्च किए, जान से खेलती रही हैं ।लेखक: अनुराग आनंद


फिर से कोरोना हमारे दरवाजे पर खड़ा है। नया वैरिएंट ओमिक्रॉन पहले से भी 5 गुना तेजी से फैल रहा है। एक्सपर्ट कह रहे हैं कि जनवरी में तीसरी लहर आ रही है, लेकिन हाय रे पैसे कमाने की भूख। जब आप अपनों को बचाने के लिए अस्पताल-अस्पताल, बेड-बेड, दवाई-दवाई ठोकरें खा रहे थे; तभी कुछ बिजनेस टायकून नेताओं पर अरबों रुपए उड़ा रहे थे, ताकि नेता उन्हें दवाई और कोरोना वैक्सीन पर बिजनेस करने दें।

आइए आपको इस कहानी की परत दर परत बताते हैं। बताते हैं कि कैसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के नाम पर वैक्सीन बनाने का अधिकार कुछ कंपनियों तक सीमित रखा गया। बाद में उन कपंनियों को वैक्सीन बनाने का ठेका मिला जो पहले लोगों की जान के साथ खेलती रही हैं और अरबों रुपए का जुर्माना भर चुकी हैं। ये वैक्सीन कंपनियां हैं फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन। इनके अलावा 3 फार्मा कंपनियां भी ऐसी ही बेईमानी के लिए बदनाम हैं।

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भारत इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की लिस्ट से वैक्सीन को बाहर कराना चाहता था

ये बात 24 फरवरी 2021 की है। आपको ये महीना याद है? कोरोना दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से फैल रहा था। दुनिया वैक्सीन के लिए त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही थी। भारत और साउथ अफ्रीका विश्व व्यापार संगठन, यानी WTO के पास गए थे। ये प्रस्ताव लेकर कि मेडिकल की दुनिया के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वाले नियमों में थोड़ी ढील मिल जाती तो वैक्सीन बनाने में देरी न होती।

भारत का प्रस्ताव पास न हो जाए इसलिए नेताओं की लॉबिंग में खर्च हुए अरबों रुपए

डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन ‘द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ अमेरिका’ ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानी करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए। यही नहीं दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव लागू नहीं हो पाया। 


प्रस्ताव पास हो जाता तो गरीब देशों को मिल गया होता बड़ा फायदा

WTO ने अगर ये प्रपोजल उसी वक्त पास कर दिया होता तो इसका सीधा फायदा विकासशील और कमजोर देशों को मिल गया होता। इसका सीधा गणित यह है कि वैक्सीन के इंटेलेक्चुअल प्राॅपर्टी की लिस्ट से बाहर आते ही ट्रॉयल कर चुकीं सभी कंपनियों को फॉर्मूला दूसरे देशों के साथ शेयर करना पड़ता। फिर सभी देश अपने लोगों के लिए खुद से वैक्सीन तैयार कर चुके होते। गरीब देशों में भी सभी लोगों को वैक्सीन देना आसान होता।

आइए अब बात कर लेते हैं, उन फर्मा कंपनियों की भी जिन्हें वैक्सीन बनाने का ठेका मिला-

1. फाइजर: लोगों की जिंदगी ताक पर रखकर दवा बेचने के जुर्म में जुर्माना

कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर और इसकी सहायक कंपनी फर्माशिया एंड अपजॉन ने लोगों की जिंदगी ताक पर रखकर गलत तरीके से बेक्स्ट्रा दवा को बाजार में उतार दिया था। जब लोगों ने इसके बारे में शिकायत की तो 2005 में इस दवा को कंपनी ने वापस ले लिया था।
1. ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके): लोगों की जान से खेलने के लिए 3 अरब डॉलर का जुर्माना

दवा कंपनी का नाम ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके)’ है। इस कंपनी पर आरोप था कि बिना सही से जांचे-परखे पैक्सिल और वेलब्यूट्रिन जैसी दवाओं को लेकर ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके)’ ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) को गलत रिपोर्ट दी।

यही नहीं, कंपनी ने इन दवाओं का गलत प्रचार भी किया। सरकार को कीमत के बारे में गलत जानकारी दी गई। इस मामले में कंपनी से 3 अरब डॉलर जुर्माने के तौर पर लिया गया। यह अब तक के इतिहास में किसी दवा कंपनी से वसूला गया सबसे अधिक जुर्माना है।

2. टाकेडा: 8000 मामलों को एक साथ 2.4 बिलयन डॉलर जुर्माना देकर निपटाया

दुनिया की बड़ी दवा कंपनी टाकेडा को अपने किए के लिए 2.4 बिलियन डॉलर का जुर्माना चुकाना पड़ा है। टाकेडा पर आरोप था कि कंपनी ने ब्लड शुगर दवा ‘पियोग्लिटाजोन’ के बुरे प्रभावों को बताए बिना दवा का धड़ल्ले से प्रचार और बिक्री की। FDA ने 1999 में इस दवा के बुरे प्रभावों को बताते हुए इसे बेचने की परमिशन दी थी, लेकिन कंपनी ने इसके जोखिमों को छिपाकर इसे बेचा। जब लोगों और राज्यों ने इसके खिलाफ शिकायत की तो कंपनी को इस मामले में भारी भरकम जुर्माना देना पड़ा।

 
3. फार्मा कंपनी एबॉट लेबोरेटरीज: दवा कुछ और बनाई, बेच दी किसी और कंपनी के नाम पर

2012 में एबॉट लेबोरेटरीज नाम की एक इंटरनेशनल दवा कंपनी को भी गलत तरह से दवा बेचने के आरोप में जुर्माना भरना पड़ा था। फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी के मुताबिक, कंपनी ने डेपाकोट नाम की दवा को गैरकानूनी तरीके से बेचा था। इस दवा से लोगों पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में भी कंपनी ने जानकारी नहीं दी थी।

ऐसे में जब लोगों ने इसके बुरे प्रभाव को लेकर सरकारी संस्था में शिकायत की तो कंपनी को 1.4 बिलयन डॉलर का जुर्माना भरना पड़ा था। FDA ने इस दवा को तीन बीमारियों मिर्गी के दौरे, माइग्रेन और बाइपोलर डिसऑर्डर में बेचने का आदेश दिया था, जबकि कंपनी इस दवा को डिमेंशिया, डिप्रेशन और एंजाइटी पेशेंट को भी बेचने लगी। इससे लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर पड़ा और शिकायत मिलने पर कंपनी पर कार्रवाई की गई

Thursday, January 19, 2023

स्वामी विवेकानंद

श्री कश्मीरी लाल जी -* (1340 शब्द)
                                            *कश्मीरी लाल जी स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संगठक हैं और कार्यक्रम में द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता थे*   स्वामी जी की 6 बातें सीखने लायक: (1)स्वास्थ्य पर ध्यान, (2) एकाग्रता व ध्यान का महत्व, (3)साहस व आत्मविश्वास, (4)सेवा का महत्व, (5)हिंदुत्व का अभिमान व (6)संगठन कौशल्य। 
............
उन्होंने मंच पर आते ही कहा की प्यारे विद्यार्थियों मैं एक प्रश्न आपसे पूछता हू, अब एक प्रश्न का उत्तर आपको देना है और भाई सोच करके देना है क्योंकि आपने काफी देर से सुना है स्वामी विवेकानंद जी के बारे में।  अपनी पढ़ाई के दौरान आपने पढ़ा है  कि किस प्रकार का भाषण उन्होंने दिया  आपने सुना है कि वह व्यक्ति जिसे कोई वहां जानता नहीं था| उस विद्यार्थी के लिए उस 30 साल के युवा के लिए जो वहां भाषण देने आता है उसके 5 शब्दों  के बोलने पर 2 मिनट लगातार तालियां बजती है|  11 सितम्बर 1893 की प्रथम पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन शिकागो में, आप सब जानते हैं कि वह दो शब्द क्या थे, जिस पर तालियां बजी -*

*मेरे प्यारे बहनों और भाइयों,*
*यही वे पांच शब्द थे|*
*बिल्कुल यही शब्द थे 
*2. और दूसरा प्रश्न मैं आपसे करना चाहूंगा  और वह आपको हिला देगा  कि जब अमेरिका के सारे अखबार स्वामी विवेकानंद जी की प्रशंसा में भरे हुए थे, सभी समाचार पत्रों ने कहा कि कल जब 7000 या 4000 ऑडियंस थी, कल जब सैकड़ों की तादाद में  वक्ता थे उनमें सबसे बढ़िया भाषण हुआ वह स्वामी विवेकानंद का हुआ| जब यह सब समाचार पत्रों में छपा होगा तब आप सोचिए कि भारत में उनके साथ रहने वाले उनके  साथी थे जो कठिन तपस्या करते थे,  जो गुरु के एक ही स्थान पर रहते थे तो वह कितनी खुशी मना रहे होंगे, कहां खुशी मना रहे होंगे ऐसा आप सोच सकते हो क्या ?*
*आपको लगेगा कि उस दिन बहुत सारा जश्न मनाया जा रहा होगा, उनके साथी तालियां पीट रहे होंगे*
*ऐसा है कि नहीं है कि उनका एक साथी अचानक दुनिया में बहुत प्रसिद्ध हो गया, उनके बाकी लोग कितने प्रसन्न हुए होंगे यहआप सोच सकते हो लेकिन उत्तर आपको निराश करेगा कि कोई प्रसन्नता नहीं थी, कोई बधाई नहीं दे रहा था  कोई एक दूसरे को कह ही नहीं रहा था कि कमाल हो गया,*
*कारण य़ह था कि  15 दिन तक उनके साथियों को यह ही नहीं पता चला कि  जिस व्यक्ति का भाषण हो रहा है विवेकानंद, यह वही हमारा दोस्त है जिनको हम नरेंद्रदत्त के नाम से जानते हैं, यह विवेकानंद वही हमारा मित्र है यह कोई और नहीं जानता था।*
*अब आप सोच सकते हैं कि जो घटनाएं दुनियाँ में होती हैं वह सोच समझकर नहीं होती है, अचानक भी कभी-कभी होती हैं  और अपने जीवन के अंदर भी ऐसी कोई घटना आए  उसके लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए|*
3. *स्वामी विवेकानंद जी ने उससे पहले कभी इतनी ज्यादा संख्या के सामने भाषण नहीं दिया था, और वहां अंग्रेजी में भाषण दिया जाना था जो की श्रेष्ठ अंग्रेजी थी और उसका उच्चारण बिल्कुल यूरोपवासियों जैसा था। मात्र 473 शब्दों की थी* ऐसी बात इंग्लैंड के सभी प्रसिद्ध अखबारों में छपी थी।  *उनके विद्यालयों में अंग्रेजी में कभी उच्च अंक नहीं आए , ना ही संस्कृत में अच्छी अंक आये थे। इसलिए अगर आप कहीं पढ़ाई में कमजोर हों या अंकत्तालिकाओं ने श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाएं तो ये मत सोचना की आप अंग्रेजी नहीं बोल सकते , आप जीवन में उच्चता के शिखर पे नहीं जा सकते या आप देश समाज को प्रभावित नहीं कर सकते। विवेकानंद जी का जीवन इसी निराशा में से आशा की और बढ़ने का संदेश देता हे।* 
4. *स्वामी विवेकानंद जी सबसे ज्यादा स्वास्थ्य और खेलो की महत्व देते थे। उन्होंने कहा की आज गीता पढ़ने से अधिक शारीरिक रूप से मजबूत ओर स्वस्थ होना अधिक आवश्यक है।* *वो कहते थे की जो युवा लोहे जेसी मजबूत भुजाओं वाला नही होगा वो न तो भगवान श्री कृष्ण की गीता को पढ़ पाएगा, ना समझ पाएगा और न उस ज्ञान की रक्षा ही कर पाएगा। आपने देखा होगा की उनका शरीर कितना बलवान और सुंदर था , वो कितने बलिष्ट थे। जब वो। अमेरिका धर्म संसद में भाग लेने गए तब वहां कोई परिचित नहीं होने के कारण सड़क के पास खुले में सोए, तब उन्होंने कहा था कि अगर मेरा शरीर मजबूत नहीं होता तो में वही मर चुका होता। उन्होंने मोटे अनाज की रोटी पानी में भिगो कर खाई तथा इसी परिस्थितियों में भी अपना समय व्यतीत किया।* इस लिये युवाओं को अपने स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। 
5. एकाग्रता व ध्यान:  
*स्वामी जी से सीखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात जो हे वो हे, एकाग्रता। ये गुण उन्होंने बचपन से ही प्राप्त कर लिया था। एक बार बचपन में खेल खेल में ध्यान लगाया। तब उनके साथी थोड़ी देर में उठ गए , और बालक नरेंद्र को ध्यान से हटाए की कोशिश करने लगे। इतनी देर में वह सांप आ गया, बालक चिल्लाने लगे ! सांप आ गया , सांप आ गया। लेकिन नरेंद्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जब वो ध्यान से बाहर आए तब उनके साथियों ने बताया की यहां थोड़ी देर पहले सांप आ गया था। तब उन्होंने कहा की में तो ध्यान लगा रहा था , और बिना कारण से कोई जीव कभी किसी को हानि नहीं पहुंचाता है ये हमे ध्यान रखना चाहिए।* 
*स्वामी विवेकानंद जी के बचपन की याद करने की क्षमता और तेज बुद्धिमता के कईं उदाहरण हैं।* *एक बार वो अमेरिका में किसी पुस्तकालय में गए और वह से  2,3 पुस्तकें पढ़ने के लिए ली, अगले दिन उन्होंने वो वापस कर दी।* *तब पुस्तकालय प्रभारी ने पूछा की क्या तुम्हे पुस्तकें पसंद नहीं आयी, तब उन्होंने कहा की पुस्तक तो अच्छी थी।* *फिर उन्होंने पूछा की क्या तुम्हे पुस्तक पढ़ने का समय नहीं मिला और कहीं जा रहे हो इसलिए वापस कर रहे हो, तो उन्होंने कहा की मुझे पढ़ने के लिए पर्याप्त समय मिला।* *तो क्या तुम पढ़ नहीं पाए , तो स्वामी जी ने कहा की मेने सब पढ़ ली। तो पुस्तकालय प्रभारी ने कहा की मेने अपने जीवन काल में आजतक किसी को इतनी बड़ी पुस्तक इतने कम समय में पूरी पढ़ के वापस करते हुए नहीं देखा।* *तब उन्होंने कहा की आप किसी भी पृष्ठ से कोई वाक्य पूछ लीजिए तब आपको विश्वास हो जायेगा। तब उन्होंने अलग अलग पृष्ठों से कुछ बातें पूछी जो स्वामी जी ने यथावत बता दी।* *इस घटना से सभी आश्चर्यचकित हो गए और जब उनसे पूछा गया की क्या इतने कम समय में इतनी बड़ी पुस्तक पढ़ना संभव हे। तब स्वामी जी ने कहा की ये संभव हे, उच्च एकाग्रता व अभ्यास से।*  *इसी तरह मेने एकाग्रता और ध्यान से मेरी बुद्धि , मन और मस्तिष्क को इस प्रकार साध लिया है की मैं एक बार देखते ही उस पुस्तक या लेख को याद कर लेता हूं।* *हमे भी हमारे मन को एकाग्र और मन को संयमित करने की तथा स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता हे। इस कार्यक्रम से जाने के बाद उनकी जीवनी या किसी न किसी पुस्तक को अवश्य अध्ययन करें*
*3. आत्मविश्वास: साहस: 
*स्वामी विवेकानंद जी ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही थी की , नास्तिक वो नहीं हे जो कहता हो की में ईश्वर पर  विश्वास नहीं करता , जबकि नास्तिक वो हे जो खुद पर विश्वास नहीं करता।* *आत्मविश्वास सबसे बड़ी पूंजी है।*
*आज हमे जो मनुष्य जीवन और जो शरीर मिला हे ये अमूल्य है। अगर इसका वैज्ञानिक या चिकित्सकीय आंकलन किया जाए तो एक जीते जागते मानव शरीर का मूल्य इतना अधिक हे की इसे कृतिम रुप से बनाया जाना संभव नहीं है। अपोलो अस्पताल के प्रमुख डॉ प्रताप रेड्डी ने ने इसे 60 ट्रिलियन डॉलर का नोशनली बताया। यह अमूल्य है।इसलिए इस शरीर को स्वस्थ रखें और इसका उपयोग मानव जाति के कल्याण के लिए करें।* *स्वामी विवेकानंद जी जब देश में भुखमरी, अशिक्षा, अनाथ और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित लोगों को देखते थे तो बहुत दुखी होते थे। हमे इन सबको ध्यान में रखकर अपने जीवन को अपने अपने कार्यक्षेत्र में पुरुषार्थ करते हुए भारत माता की ओर मानवता सेवा मे लग जाएं।*
* *सबसे अधिक आवश्यकता है की भारत का युवा स्वरोजगार के माध्यम से स्वावलंबी बने और देश के युवाओं को नई दिशा , नया रोजगार प्रदान करें और आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भारत बनाने में सहयोग करें और स्वामी विवेकानंद जी के स्वप्न को साकार करें।*

*स्वामी विवेकानंद जी का जीवन इतना प्रासंगिक और इतना आदर्शपूर्ण रहा हे की उनके किसी भी एक प्रसंग , एक घटना या एक वाक्य को ध्येय बना कर आप और भारत का हर युवा विवेकानंद जी के मार्ग पर चल कर इस देश और अपने व्यक्तित्व को महानता के शिखर पर ले जा सकते हैं।*