Monday, August 13, 2018

संघर्ष वाहिनी कार्यशाला भाग 1

भूमिका

संघर्ष वाहिनी स्वदेशी जागरण मंच का एक विभाग है, और उसकी अखिल भारतीय कार्यशाला जयपुर में 11,12 अगस्त 2018 को हुई। मंच के उद्देश्य तो बड़े है ही, परंतु स्थानीय मुद्दे भी उस आलोक में आने चाहिए। यह संघर्ष वाहिनी का एक मुख्य लक्ष्य है।  निम्न पत्रक वहां उपर्युक्त कार्यशाला में दिया गया है। स्थानीय आंदोलन क्यो जरूरी है, कैसे सफल कीजे नाते हैं, इन सभी बातों को योग्य ढंग से समझाया गया है। आपका कोई सुझाव हो तो जर्रोर लिखें।

1. आंदोलन क्यों और कैसा 

1-     आंदोलन का प्रकार

       क- तत्कालीन

       ख- अल्पकालीन

       ग- दीर्घकालीन

2-     विषय का अध्ययन

3-     डाक्यूमेंटशन] पंपलेट] हैण्डबिल] पुस्तक कानिर्माण

4-     प्रभावित व्यक्ति&क्षेत्रानुसार समिति रचना

5-     छोटा टीम&नेतृत्व] नेतृत्व की विश्वसनीयता

6-     समाज का प्रभावी व्यक्ति] ओपिनियन मेकर्स कोसाथ में लेना

7-     नीचे का समिति] उपर की समिति और नेतृत्व मेंसमन्वय एवं परस्पर विश्वास

8-     विषय का क्षेत्र परिधि को बढ़ाना

9-     आम जनता का जीवन और जीविका के साथविषय को जोड़ना

10-    प्रेस] मीडिया अन्य प्रचार तंत्र काप्रयोग&व्यवहार

11-    कानूनी सलाहकार समिति

12-    कार्यक्रम रचना

13-    अर्थ संग्रह

 

2. जन-आन्दोलन

परिभाषा: जब लोगों में बदलाव की इच्छा तीव्र हो जाती है,महत्वाकांक्षा व्यापक हो जाती है और कोई दमनकारी बल इसकेविपरित खड़ा होकर अपनी पूरी क्षमता से इसे दबाना चाहता है, तो बदलाव की यही इच्छा धीरे-धीरे जन आंदोलन का स्वरूप लेती है।एक बार जब यह जन-आंदोलन का रूप ले लेती है।  तब कितनी भीदमनकारी बल हो,  उसे झुकना पड़ता है।

सन् 1857 में बैरकपुर में भारतीय सिपाही मंगल पांडे ने अंग्रेजों केखिलाफ हथियार उठा लिया था।  जिसे हम सैनिक विद्रोह के नाम सेभी जानते हैं।  देखते ही देखते क्रांति की लपक बंगाल, बिहार, अवध,अंबालाऔर मेरठ इत्यादि जगहों से होते हुए दिल्ली पहुंच जाती है।

सरदार भगत सिंह ने एसेंबली में बम फेंका और वहां से भागे नहीं,अपनी गिरफ्तारी दी ताकि लोगों को लगे कि एक लड़का अंग्रेजों केखिलाफ खड़ा हो सकता है तो पूरा देश क्यों नही।
12 दिसंबर 1930 को बाबू गेनू ने मुम्बई में विदेशी कपड़ों से भरे ट्रक को रोकने का  प्रयास किया, अंग्रेज सार्जेंट ने ट्रक उसके ऊपर चढ़ा दिया। आंदोलन और मुखर हुआ।

9 अगस्त 1942 को पूज्य महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारतछोड़ो का नारा दिया गया और यह जनआंदोलन का रूप ले लिया। 

5 जून] 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व मेंपटना के गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति की घोषणा हुई और धीरे-धीरे यहजन आंदोलन का रूप ले लिया।

जन-आंदोलन का का लक्ष्य केवल सत्ता परिवर्तन नहीं इसका लक्ष्यव्यवस्था परिवर्तन भी है।  यह केवल भूख हड़ताल या तोड़-फोड़ नहींबल्कि यह एक सतत् प्रक्रिया है जो लोगों की इच्छा से शुरू होता हैऔर धीरे-धीरे व्यापक स्वरूप लेती है।  इसमें समाज में हर तबके कीभागीदारी होती है( राजनैतिक] आर्थिक] सामाजिक] सांस्कृतिक]बौद्धिक] शैक्षणिक व अध्यात्मिक]  वास्तविक जन-आंदोलन लोकतंत्रको मजबूत करता है।

आन्दोलन के प्रकार& तत्कालिक या दीर्घकालीक

आन्दोलन के तरीके  :1- बौद्धिक 2- मीडिया 3- कानून 4-संघर्षात्मक

बौद्धिक&साहित्य का प्रकाशन] गोष्ठी] बैठक] सम्मेलन] पत्राचारशोसल मिडिया का उपयोग ।

मीडिया & पत्रकारवार्ता] लेख लिखना] सामुहिक परिचर्चा।

कानुन & पी0आई0एल] आर0टी0आई।

संघर्षात्मक & बैठक] धरना] नुक्कड़ सभा] पदयात्रा] रैली] मशालजुलुश] रथयात्रा] आमसभा] पुतलादहन] हस्ताक्षर अभियान] समानविचार वाले संगठनों के साथ बैठक] पोस्टर] स्टीकर] करपत्रक] बेनर]उदघोष] झण्डा] पत्रिका] नाटक] संगीत ।

मुद्दों या विषय का चयन :

किसी भी आन्दोलन के लिए सर्वप्रथम विषय का चयन करना है। विषयचयन के बाद यह पता करना जरूरी है कि इस आन्दोलन से किस क्षेत्रके लोग प्रभावित होंगे। तथा जिनके विरूध आन्दोलन करना है वे लोगकौन है तथा उनकी ताकत क्या है। इन सभी बातों की जानकारी केबाद जहां आन्दोलन प्रारम्भ करना है। वहां के प्रमुख कार्यकर्ता के साथबैठक करना है। तथा बैठक में इन सभी बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चाकरना है। जहां आन्दोलन प्रारम्भ करना है वहां के प्रमुख कार्यकर्ताओंको मुख्य भुमिका में रहना है। स्थानीय कार्यकर्ताओं को आन्दोलन कानेतृत्व देना चाहिए। आंदोलन से प्रभावित लोगों की सहभागितासफलता के लिए आवश्यक शर्त है।  यह दो प्रकार से हो सकती हैादवू पेनम हो तो स्वस्फूर्त होती है या जनजागरण द्वारा मुद्दे प्रभावितलोगों तक ले जाना। आन्दोलन के लिए अपने प्रमुख कार्यकर्ताओं कीएक समिति बनाना चाहिए तथा सभी समविचारी संगठनों केप्रतिनिधियों को लेकर एक संचालन समिति बनाना है।

सभी संगठनों का अलग अलग बैठक आयोजित करना है। इसके बादसभी संगठनों के सदस्यों के साथ एक सम्मेलन आयेजित करना है।सम्मेलन में आन्दोलन के विषय में गहरी जानकारी रखने वाले वक्ताओंको बुलाना है। सम्मेलन के बाद आगामी कार्यकर्म का क्रमवार घोषणाकरना है।

 

3. नारे:

जय स्वदेशी, जय-जय स्वदेशी

जय स्वदेशी - हर घर स्वदेशी

जय स्वदेशी, घर - घर स्वदेशी

जय स्वदेशी, हर - हर स्वदेशी

 

कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए निम्नलिखित समितियों का गठनकरना है।

कार्यकर्म समिति, धन संग्रह समिति, प्रचार समिति, विधि विशेश्ग्यसमिति, मिडिया वार रूम, समन्वय समिति, सलाहकार समिति,संरक्षक, कार्यालय, इत्यादि।

सभी प्रकार के आन्दोलन के लिए गाँव/वार्ड अस्तर पर अलग अलगसमिति बनाना है। पूर्णकालिक कार्यकर्ता तैयार करना है।

4.

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