Thursday, May 19, 2011

अमरीकी आर्थिक मॉडल की खामिया - गुरुमूर्ति का नया लेख



श्रीजी का नया लेख जिसमे उन्होंने विदेशी आर्थिक मॉडल की निंदा की है.
by Kashmiri Lal on Thursday, 19 May 2011 at 17:45
श्री गुरुमूर्ति जी ने अपने भाषण में कहा की जो मॉडल २००८ के अमरीकी आर्थिक गढ़बढ़ में बुरी तरह धराशाई हो गया, आज फिर भारत के आर्थिक नीति निर्माता उसी की अंधी नक़ल करने में तुले हे, ये बहुत ही दुःख और चिंता का विषय है. उन्होंने खुलासा किया की जी-२० देशों की बैठक में से फ़्रांस और जर्मन ने इस शर्त पर छोड़ने की धमकी दी की यदि ये ग्रुप अंग्लो-सक्सोन मॉडल की आर्थिक नीतियां ही अपनाएगा, तो वे इसमें शामिल नहीं होंगे.ये बात दुनिया के देशों के लिए नसीहत है.

बंगलोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित भाषण माला में बोलते हुए उन्होंने कहा की अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष जो गत ३० सालों से मुद्राओं की मुक्त परिवर्तनीयता ( फ्री कोन्वेर्तिबिलिटी )का पक्ष लेता रहा, उसका उसे त्याग कर अब ये कह कर करना पढ़ा की ये व्यावहारिक ही नहीं है. एक दम उलटी बात तो इस पर भारत का नेतृत्व एक दम मौन है. वह समझ नहीं पा रहा की क्या प्रतिक्रिया करे.

उन्होंने आगे बढ़ कर ये घोषणा की २००८ का अमरीकी आर्थिक संकट जिसे वैश्विक संकट भी कहा जाता है, वास्तव में पश्चिम के सामाजिक तानेबाने के टूटने की कहानी है एक सांस्कृतिक गिरावट का प्रतीक है जिसके कारण 1976 तक जो अम्रीका दुनिया का सबसे अधिक निवेश करने वाले और उधार देने वाला देश था, वो दुनिया का सर्वाधिक कर्जदार और मांगने वाला देश बन गया. एक महत्व पूरण तथ्य देते हुए उन्होंने खुलासा किया की १९७६ सेलेकर २००९ के बीच में यद्यपि अमरीका का कुल सकल घरेलु उत्पाद १४ गुना बढ़ा, लेकिन उस देश का कुल विदेशी कर्ज १३७ गुना बढ़ गया. ध्यान रहे की १.२ बिलियन क्रेडिट कार्ड्स के कारन उस देश का कुल विदेशी ऋण $२.५ ट्रिलियन तो गया.

पारिवारिक संकट: टूटते परिवार, घटती बचत:

उन्होंने आगे कहा की परिवारों का तलाक लेने की दर ५५ प्रतिशत की दर से बढ़ी, और ये परिवारों का टूटना एक मुख्य करक बना जिसके कारन वहां की राष्टीय बचत में परिवारों का योगदान ७०% से गिर कर नकारात्मक स्टार पर पहुँच गया हे. धीरे धीरे परिवार कंगाल होते गए, देवालिये होते गए और सरकार पर आश्रित होते गए. सरकार ने परिवारों का काम सम्हाल लिया और हालात यहाँ तक गिर गए की सकल घरेलु उत्पाद का ४० प्रितिशत तक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा के लिए खर्च होने लगा. २०१०-११ की अमरीकी बजट का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा की टेक्सो द्वारा जो आमदनी हुई उससे जियादा पारिवारिक सुरक्षा पर होने वाला खर्च हे

उन्होंने बताया का अर्थशास्त्र के सिधान्तो का विश्लेषण करते हुए वहां के आर्थिक नियंता ये नहीं सोच पाए की आम आदमी की आदतों का सकल आर्थिक आधार पर क्या असर पढ़ेगा. उन्होंने नाम लेकर बताया की वहां के फेडेरल रिसर्व के मुखिया, और ज्ञात अर्थशास्त्री अलन ग्रीनस्पान ने तो यहाँ तक कह दिया की बचत केवल गरीब देशों के लोगों के लिए ही जरूरी हे क्योंकि वहां पर आधार भूत आर्थिक तानेबाने नहीं है, इस लिए ये विकासशील देशों के लिए ही जरूरी है. दूसरी तरफ देखें तो भारत और जापान ने रास्ता दुनिया को दिखाया जहाँ की बचत बेंको में सुरक्षित होती हे नाकि शेयर मार्केट में.
अंत में उन्होंने बताया की एशिया का मजबूत पारिवारिक और सामाजिक तानाबाना ही दुनिया को रास्ता दिखा सकता है, और भारत पर ही विश्व को रास्ता दिखने का दायित्व है.

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