Tuesday, January 3, 2012

विदेशियों द्वारा अदरख का पटेंट होते होते बच गया

विदेशियों द्वारा अदरख का पटेंट होते होते बच गया नयी दिल्ली: ४ जनुअरी २०१२:
स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आज बहुत ही खुशी प्रगट की गयी की आखिर एक अनिष्ट होने सा बचा लिया गया हे. अदरख जो भारत का हर आदमी छाए की चुस्कियों के साथ सर्दी जुकाम से निजात पाने के लिए निगल जाता हे - इस जानकारी को एक इंग्लिश दवा कंपनी ने अपनी 'महत्वपूर्ण खोज' बताया. खैर भारत की पहल पर उसका पटेंट का दवा ख़ारिज कर दिया गया. बधाई की बात हे. पूरी खबर नीचे पांच बिन्दुयों में बतायी गयी हे, कृपया इस खबर को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करना चाहिए. इस खबर के नीचे ही इंग्लिश का प्रारूप भी विस्तार से दिया गया हे जैसा की समाचार पत्रों में दिया गया हे. क्या आप जानते हे जिस डिजिटल लायब्रेरी के कारण ये अनिष्ट होने से बच गया वो किस गौरवपूरण मंत्री की दें थी. यदि जानते हे तो बताएं जरूर.

१. एक विदेशी कंपनी द्वारा ५ साल पहले इंग्लैंड में पटेंट दफ्तर में एक अर्जी दी गयी थी की उसकी खोज हे की अदरख द्वारा जुकाम का इलाज हो सकता हे इस के लिए उसे पटेंट दिया जावे. कंपनी का नाम बताते चले: निच्कोलास जोंस लार्किस, लन्दन हे. अंग्रेजी दवा बनाने वाली इस चोर कंपनी का आवेदन क्रमांक : GB2436063 था और दिनांक था: सोलह मार्च 2006 .
२. भारत की और से अठारवी शताब्दी के ग्रंथों क हवाला देते हुए कहा की भारतीय इस विद्या से उस समय से ही वाकिफकार हे. यही नहीं तो पुराने ग्रन्थ भेष्ज्य रत्नाकर (१००० ईसा पूर्व) और इलाजे-आम्राज (अठारवी शताब्दी) के हवाला देकर बताया की भारतीय लोग जिनमें न केवल अधरख और कुटकी के खांसी जुकाम के इलाज के बारे में बताया गया हे, बल्कि अस्थमा और अन्य श्वास रोगों के इलाज भी इसमें विस्तार से वर्णित हे.
३. भारत द्वारा साक्ष्य देने के दो हफ़्तों में ही पटेंट ओफ्फिस ने उस इंग्लिश कंपनी का दावा ख़ारिज कर दिया.
४. भारत की और से ये दावा आयुष और CSIR यानी काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इन्दुस्त्रिअल रिसर्च द्वारा किया गया हे. भारत की इन संस्थायों द्वारा अप्रैल २५ सन २०११ को केस किया गया और अब केस ख़ारिज कर किया गया हे. भारत के हक में फैंसला हो गया.
५. लगे हाथ ये भी बताते चले की करीब दस साल पहले हर साल लगभग दो हजार गलत पटेंट दुनिया के स्तर पर भारत की पुरानी दवअ आ दि के बारे में दिया जाते थे, क्योंकि भारत की और से कोई प्रमाण नहीं दिया जाते थे. दस साल पूर्व भारत सरकार नें ट्रडिशनल नोलेज डिजिटल लाएब्रेरी बनायीं और अब उसमें लगभग दो लाख छबीस हजार खास फार्मूले लिख कर रखे गए हे ताकि जैव चोरी को रोका जा सके. हल्दी, नीम आदि को इसी aadhar पर बचाया जा सका था. हम जानते ही हे.


dinank 4, 2012 nayi delhi: Highlights:
1. British Pharmaceutcal company files for Patent in 2006, claiming it discovered useof ginder and dutki plant in treatment of cold.
2. India cited medicinal text dating back to the 18th century on useof ginger to treat cough, asthma and lung diseases.
3. British patent office accepts Indian evidence, throws out application 5 years later.
NEW DELHI: India has foiled an attempt by a British pharmaceutical company to claim a patent on using ginger for the treatment of cold.

While Indians have been gulping down 'adrak chai' for generations as a home remedy, Nicholas John Larkins, London, filed a patent application (GB2436063) titled "Pharmaceutical composition for the treatment of excess mucous production" on March 16, 2006 at the British patent office. The firm claimed a "unique finding" in the use of ginger ( Zingiber officinale) and kutki (Picrorhiza kurroa) for the treatment of cough and lung diseases.

"Within two weeks of India providing evidence, the attempt to pirate India's traditional medicinal knowledge was struck down by the UK patent office in 2011," a health ministry official said.
Database helped thwart UK patent bid
The author has posted comments on this articleTNN | Jan 4, 2012, 05.28AM IST
NEW DELHI: Countering the patent claims of British pharmaceutical company on using ginger for the treatment of cough and cold, the department of AYUSH and Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) intervened and provided evidence from age-old ayurveda and unani books, dating back to the 18th century that talked about ginger and kutki being used alone or in combination with other ingredients to treat cough, bronchial asthma and lung diseases.

The books that were referred to as evidence by CSIR included Ilaaj-al-Amraaz (18th century), Bhaisajya Ratnavali and Bharata Bhaisajya Ratnakara (1000 BC), Bayaaz-e-Kabir (1938 AD), Muheet-e-Azam (19th century) and Khazaain-al-Advia from the 20th century.

"India through the Traditional Knowledge Digital Library (TKDL) submitted its prior art evidences on April 25, 2011. The examiner terminated the patent application before grant," a health ministry official said. Till about 10 years ago, around 2,000 wrong patents concerning indigenous systems of medicine were being granted annually at the international level due to lack of evidence provided by India. The digital library has been a real boon for India. More than 2.26 lakh rare medical formulations which were part of the ancient Indian texts have been dug out, transcribed, documented and digitized into the path-breaking TKDL to protect them from bio-pirates.

No comments:

Post a Comment