Wednesday, August 24, 2011

शहीद राजगुरु: चार महत्वपूरण तथ्य उनके जीवन के बारें में


राजगुरु शहीद का आज जन्मदिन हे - चार महत्वपूर्ण तथ्य
by Kashmiri Lal on Wednesday, 24 August 2011 at 14:52

राजगुरू का संक्षिप्त जीवन परिचय

1 . शहीद राजगुरू का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरू था. राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ गाँव में हुआ था आजकल उसका नाम राजगुरु नगर रखा गया हे. उनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और उनकी माता का नाम पार्वती बाई था.

अपने जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजगुरू का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था.

राजगुरू ने 19 दिसंबरए 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को गोली मारी थी.इन क्रांतिकारियों ने कबूला था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे.एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस की बर्बर पिटाई में लाला लाजपत राय की मौत हो गई थी.

राजगुरू ने 28 सितंबरए 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गयाण्

उन पर लाहौर षड़यंत्र मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया.

राजगुरू को भी 23 मार्चए 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया.इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था. इतनी बात तो आम लोग राजगुरु के बारे में जानते हे, ऐसा मुझे लगता हे.



2 . महाराष्ट्र से पंजाब कैसे गया: वे अपनी शिक्षा के लिए बनारस गए और संस्कृत BHASH में प्रवीणता प्राप्त की. इतना ही नहीं तो वहां रह कर वे तीर-कमान, कुश्ती, निशानेबाजी में भी अव्वल रहे. ये चीजे उनको क्रांतिकारी जीवन में बहुत काम आयी. 1919 में तेरह अप्रैल को जलियांवाला बाग़ के हत्याकांड के समाया उनकी की घटना का उनके बाल मन पर बहुत असर हुआ और वे गणेश (बाबाराव) सावरकर जी के संपर्क में ए और वहीँ से क्रांतिकारियों के संगठन में जुड़ गए.



3 . कुछ लोगो का दुःख के भगत सिंह तो लोकप्रिय हो गए लेकिन राजगुरु को कोई नहीं जनता: भगत सिंहए राजगुरु और सुखदेव को एक साथ फांसी दी गई थी.भारतीय स्वाधीनता संग्राम में तीन नाम अक्सर एक साथ लिए जाते हैं भगत सिंहए राजगुरु और सुखदेव लेकिन इतिहास में सुखदेव और राजगुरु को शायद वो स्थान नहीं मिल सका जो भगत सिंह को हासिल है.

यही कारण है कि साल 2008 में जहां भगत सिंह की जन्म शताब्दी पूरे देश में धूमधाम से मनाई गई वहीं यह साल राजगुरु की जन्म सदी का है लेकिन सिर्फ उनके गांव को छोड़ कर कहीं भी कोई समारोह शायद ही हुआ हो.

भगत सिंह पूरे क्रांतिकारी आंदोलन के एक तरह से दिशा निर्धारक थे जबकि राजगुरू की भूमिका समझिए एक शूटर की थी जो सबसे कठिन काम करने की कोशिश करता हो. शायद यही कारण था कि उन पर लोगों का ध्यान नहीं गयाराजगुरु की जन्म सदी के अवसर पर सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर समारोह भले ही न हुए हों लेकिन उन पर एक किताब प्रकाशित हो रही है जिसके लेखक हैं अनिल वर्मा.

दिलचस्पी कैसे हुई

अनिल वर्मा पेशे से न्यायाधीश हैं और मध्य प्रदेश में कार्यरत हैं. लेकिन राजगुरु में उनकी दिलचस्पी कैसे हुई?

वर्मा कहते हैं खेल के मुद्दों पर लिखता था लेकिन मेरे पिताजी चंद्रशेखर आज़ाद के साथ स्वतंत्रता सेनानी रहे थे इसलिए मेरी रुचि थी. मुझे कई बार लगता था कि राजगुरु के बारे में लोगों की जानकारी कम है इसलिए मैंने सोचा क्यों न उनके बारे में लिखा जाए.

अनिल इस तथ्य से इंकार नहीं करते कि राजगुरु को भगत सिंह की तरह स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में ऊंचा दर्जा हासिल नहीं हुआ लेकिन वो कहते हैं कि धीरे धीरे लोगों को राजगुरू के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी. पुस्तक के लिए अपने शोध के कारण अनिल राजगुरू के पैतृक गांव महाराष्ट्र के खैरवाड़ी भी गए जहां उन्हें राजगुरु के बचपन की जानकारियां मिलीं.

एक बार आगरा में चंद्रशेखर आज़ाद पुलिसिया जुल्म के बारे में बता रहे थे तो राजगुरु ने गर्म लोहे से अपने शरीर पर निशान बना कर देखने की कोशिश की कि वो पुलिस का जुल्म झेल पाएंगे या नहीं. देशभक्त के रुप में राजगुरु को भी कठिन परीक्षा देनी पड़ी.केवल 16 साल की उम्र में ही राजगुरु ने घर छोड़ दिया था क्योंकि उनके भाई अंग्रेज सरकार के मुलाज़िम थे औव जब राजगुरु को फांसी हुई तब भी उनके भाई अंग्रेज़ सरकार के नौकर बने रहे.

वर्मा बताते हैं कि इस अंतर्द्वंद्व के बावजूद राजगुरु की देशभक्ति में कोई कमी नहीं आई और वो हमेशा से बलिदान के लिए सबसे आगे रहते.इस समय राजगुरु के एकमात्र भतीजे जीवित हैं लेकिन उनके परिवार के लोगों को भी लगता है कि राजगुरु की उपेक्षा हुई है.

अब उनकी जन्म शती के अवसर पर भारत सरकार का प्रकाशन विभाग उन पर संभवत पहली किताब ; हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित कर रहा है.वर्मा इस तथ्य से आशान्वित दिखते हैं और कहते हैं कि देर से ही सही लेकिन राजगुरु की सुध तो ली गई है और आने वाले समय में राजगुरु के बारे में लोग और अधिक जानना चाहेंगे.

4 . राजगुरु पर एक फिल्म भी बनी हे, आयो जरा निर्माता से मिले: मूलत आंध्र प्रदेश के रहने वाले अशोक कामले जब महाराष्ट्र के इस सपूत के जीवन पर फिल्म बनाने निकले और रिसर्च के दौरान पुणे के निकट खेड पहुंचे तो पाया कि इस क्रांतिकारी के गांव का नाम बदल कर राजगुरु नगर जरूर कर दिया गया है लेकिन राजगुरु का पैतृक निवास खंडहर बन चुका है। और तो औरएगांव के किसी नौजवान को राजगुरु के बारे में कुछ भी पता नहीं है। सालों की मेहनत के बाद अशोक कामले ने राजगुरु के बलिदान पर बनी अपनी फिल्म पूरी कर ली है।



उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल बड़े जोरशोर से घोषणा की थी कि राजगुरु के गांव को ऐतिहासिक स्थल बनाया जाएगा ताकि भारत माता के इस महान सपूत की कुर्बानी के बारे में नई पीढ़ी को पता चले, मगर अफसोस कि सरकार की योजना कागज पर ही सिमट कर रह गई। देशभक्ति से ओतप्रोत राजगुरु के बारे में बहुत कम साहित्य उपलब्ध है और लाइब्रेरी में भी राजगुरु की ले.देकर बस एक ही तस्वीर मिलती है।



चार साल की रिसर्च के बाद बनी फिल्म श्में शहीद राजगुरु की भूमिका निभाई है एनएसडी के स्नातक चिन्मय मांडलेकर ने। उन्होंने अनेक किताबें पढ़ीं और राजगुरु से जुड़े काफी तथ्य इकट्ठा किएए फिर कैमरे के सामने गए। संगीत कृष्णमोहन का है तथा गीत लिखे हैं नीला सत्यनारायण एवं सलीम बिजनौरी ने। अशोक कामले के अनुसार स्वराज: दी इन्दिपेंदेंस (Swaraj : The Independence ) वीर शहीदों के कारण आज हम आजाद हवाओं में सांस ले रहे हैं उनके बारे में देश की युवा पीढ़ी को शिक्षित करना हम सबका कर्तव्य है।



Monday, August 1, 2011

राजस्थान प्रान्त का विचार वर्ग - अन्य प्रान्तों के लिए प्रेरणा


राजस्थान प्रान्त का विचार वर्ग - अन्य प्रान्तों के लिए प्रेरणा
by
Kashmiri Lal on Monday, 01 August 2011 at 23:08
इस 30 - 31 जुलाई 2011 को राजस्थान के एक एतिहासिक एवं सुंदर नगर जोधपुर में स्वदेशी जागरण मंच के इस प्रान्त का विचार वर्ग सम्पन्न हुआ. मुझे पूरा समय रहने का मौका मिला और लगभग सभी सत्रों में रहने का मौका मिला. ये बताने से पहले की मुझे यहाँ क्या क्या अच्छा लगा, ये बताना बेहतर होगा की यहाँ क्या क्या मुख्य रूप से हुआ. आयो संक्षेप में देखें:
१. उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध समाजसेवी श्री दमदार लाल बंग का अध्यक्षीय भाषण हुआ. मुझे मुख्या वक्ता के नाते बोलना पढ़ा और नए अमरीकी आर्थिक संकट, खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश का नया पंगा, भू-अधिग्रहण,नदियों, विशेषकर गंगा माता का संकट, कृषि क्षेत्र में बी.टी. से लेकर मोंसंतो के नए षड्यंत्र और चीन की चुनातियो जैसे कई विषयों जिन पर हम यहाँ चर्चा करने वाले थेउनका भूमिका रखी. अभी जो चीन डके विशे को लेकर पूरे राजस्थान में सभ समविचारी संघटनो की और से स्वदेशी जागरण मंच के तत्त्वाधान में जो सितम्बर- अक्टूबर में जो पखवाड़ा मनाया जाने वाला हे - मेरे हिसाब से अपने मंच के लिए आगे कार्यविस्तार के लिए बहुत ही बढ़ा अवसर हे. हमें आगो दो दिनों में उस सु-अवसर के लिए अपनी मानसिकता बनानी हे. श्री दामोदर लाल बंग ने गंगा के विषय को चुया और कहा की अगर गंगा समाप्त होती हे तो भारत का बहुत बढ़ा नुक्सान होने वाला हे, और राजस्थान में भी गंगास्वरूपी की नदियों की बहुत ही बुरी हालत हे. स्वदेशी जागरण मंच की भूमिका बहुत बरी होने वाली हे - ऐसा उन्होंने आह्वान किया. मंच पर बीकानेर के एम्.एल.ए श्री देवी सिंह भाती भी पूरे समाया रहे.

दूसरा सत्र श्री अश्वनी महाजन, राष्ट्रीय विचार मंडल प्रमुख, ने खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के विषय पर विस्तार से हर पक्ष लिया. सरकार के उन तर्कों को बुरी तरह छलनी किया जिनमे विदेशी निवेश के आने से रोजगार में वृद्धि का छलावा किया गया हे और दूसरा की इससे कीमते कम होंगी, ऐसा तर्क दिया जा रहा हे. उन्होंने उन गार्डियन नामक अखबार के सर्वे को अबके सामने रखा की जहाँ शुरू में वाल-मार्ट कीमते कम करता हे, एक बार जम जाने के बाद और दूसरी छोटी दूकानों को मैदान से बाहर करने के बाद कीमते ४० प्रतिशत तक बढ़ जाती हे. सरकार के इस रोने-धोने का भी खुलासा किया के कैसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से भंडारण की कमी को नापा जा सकता हे. उन्होंने चुटकी ली की इस पर कुल खर्च ही सात हजार करोड़ से कम आने वाला हे, और जो प्रधान मंत्री एक लाख सत्र हजार करोर के २ गी स्पेक्ट्रम घोटाले को चुप-चाप होने दे सकता हे, केवल ७ हजार करोरे पर हाथ खरे कर दे- बहुत शर्मिंदगी की बात हे. श्री मोंटेक सिंह अहलुवालिया और उनकी पत्नी जिस इक्रिएर नामक संस्था चलाती हे, उस पर चटकारे लेते हुए कई फब्तिय कसी. इक्रेअर संश्था की रिपोर्ट अधूरी हे, झूठी हे, प्रायोजित हे और उसको आधार बना कर हर बार विदेशो निवेश को ठीक साबित करने की साजिश देश के लिए एक षड़यंत्र हे जिससे करोरो खुदरा-व्यापारिओं के सवा-रोजगार को नष्ट करने का इरादा हे, और इसे हर हालत में नेस्तो-नाबूद करना चाहिए. खासतौर पर इस नयी मंत्री-स्तरीय बैठक की रिपोर्ट जिसके पीछे कथित अर्थशाष्त्री और प्रधान मंत्री के आर्थिक सलाहकार श्री बासु द्वारा खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश का सुझाव एक दम विरोध करने लायक हे, और स्वदेशी जागरण मंच इस का मुंह-तोढ़ जवाब देगा, अन्य संगठनों के साथ मिलकर - ऐसा उन्होंने कहा. कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए श्री संदीप काबरा ने कहा की राजस्थान का इस शेत्र का खुदरा व्यापारी तो पूरे देश में गया हे, इस लिए हमारे लिए तो ये बहुत ही महत्त्व का विषय हे.

तीसरे सत्र का विषय था भू-अधिग्रहण की चुनोतियाँ: और तीन व्यक्तियों के उद्बोधन के साथ मुझे मुख वक्ता के नाते बोलने का अवसर दिया गया. सबसे पहले तो बाड़मेर के जिले संयोजक श्री राजेंद्र सिंह भीमाड़ ने बताया के कैसे बध्मेर की सीमा पर भ-अधिग्रहण का यद्यंत्र चलाया गया और स्वदेशी जागरण मंच ने इसके खिलाफ बीड़ा उठाया और इसको रुकवाया. बीकानेर के वरिष्ट कार्यकर्त्ता श्री धर्म प्रकाश ने इस विषय की सांगोपांग व्याख्या की, और इसके महत्त्व को दर्शाया. मैंने बताया की वैसे तो कई ग्रामों में ऐसे बदमाश पैदा हो गए हे जो जबरदस्ती लोगो की जमीन पर कब्ज़ा कर के छोटा-मोटा मुआवजा देकर लोगो को चलता करते हे, लोग दर के मारे कुछ बोलते नहीं. लेकिन दुर्भाग्य हे की राष्ट्रीय स्तर पर ये काम केंद्रीय सरकार कर रही हे और प्रदेश स्तर पर प्रदेश सरकारे. लगभग हर रंग-रूप की सरकारे इस में शामिल हे, बस अंतर केवल इतना हे की अपने प्रदेश में वे जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण करती हे और दूसरी पार्टी के राज्य में इसका जमकर विरोध करती हे. एक जगह नायक बनाती हे, दूसरी जगह खलनायक. और इससे मुद्दे को श्रेया दिया जाता हे जिसने सिंगूर और नंदीगाम के कारण वहां की पुरानी जमी सरकार को उखड फेंका. वास्तव में ये विकास और भूमि स्वामित्व की लढ़ाई नहीं, जैसा की प्रचारित किया जाता हे, बल्कि ये तो बरी कंपनियो के स्वामित्व और आम आदमी के भूमि पर स्वामित्व की लढ़ाई हे. जरा आँकरो को देखो तो जिन भी देशो में आदमी जियादा जमीन कम, वे सबका बाहर से आने वालों का स्वागत तो करते हे लेकिन जमीन नहीं खरीदने देते. भारत में दुनिया की 18% आबादी हे लेकिन केवल दो % ही जमीन हे, और दुनिया के 15 % पशु धन भी भारत एं हे, जिनका भरण पोषण इस्सी भूमि से होना हे, तो अगर विदेशियों के द्वारा अंधाधुन्द भूमि=अधिग्रहण होगा तो कैसे चलेगा. सरकारी अन्करे के मुताबिक १९८०-२००६ के बीच 2 .42 लाख हेक्टर अति उपजाऊ भूमि घटी हे. दूसरी और जो १८९४ का एक सो सतरा (११७)साल पुराना अंग्रेजो का नियम भूमि अधिग्रहण के माक्ले में आज भी लागू होता हे. 2007 के जिस बिल के द्वारा इसमें सुधार करना था, वो तो वास्तव में इससमे कंपनियों की भूमिका को और बढ़ाने वाला था, इस लिए उस का डटकर विरोध सर्व-दूर हुआ और अब उसकी जगह नया बिल लाने का प्रावधान हे. कार्यक्रम की अध्यक्षता करने वाले सात बार विधायक रहे श्री देवी सिंह भाटी ने अपने क्षेत्र में कई भू-अधिग्रहण योजनायों का पर्दाफाश किया. गोचर की भूमि जो किसी ने दान दी, सरकार ने उसको ही अधिग्रहित कर वहां एक विधायक का पेट्रोल पम्प खोल कर घिनोना कार्य किया. राजस्थान और बहार जहाँ भी स्वदेशी मंच बुलाएगा, इस काम के लिए वे समर्पित हो कर मंच के साथ जुड़े गे ऐसी घोषणा का तालियों से स्वागत हुआ.

इस समय देश में कमसे कम बीस जगह विशाल प्रदर्शन इस मामले में चल रहे हे: ओडिशा में चार, यानी पोस्को, वेदान्त विश्व-विद्यालय पूरी, लंजिगढ़ का स्तेर्लिते इन्दुस्ट्री, और कलिंगनगर का टाटा का स्टील प्लांट. पश्चमी बंगाल में दो जगह अभी भी आग सुलग रही हे, सिंगूर और नंदीग्राम में क्योंकि जमीन अभी किसानो को नहीं मिली हे. महाराष्ट्र के चार उदहारण प्रसिद्ध हे: एनरन , रेलिंस सेज नवी मुंबई, जनतापुर का अतोमिक रेअक्टोर और कई जगह पर पावर प्रोजेक्ट के नाम पर भूमि अधिग्रहण का विरोध हो रहा हे. गुजरात में सनद का मामल तो शांत सा लगता हे, लेकिन निरमा द्वारा सीमेंट कंपनी के लिए जल-स्त्रोत का भू अधिग्रहण बहुत उग्र हे. उत्तर प्रदेश में भत्ता पारसोल और यमुना एक्सप्रेस है-वे के अतिरिक्त दादरी (नॉएडा) का रेलिअंस कमपनी के पावर प्रोजेक्ट का विरोध जे मशहूर हे. गोवा में सेज के 19 भू-अधिग्रहण के मामलो के खिलाफ समाज लामबद्ध हे. झारखण्ड में अरेलेर मित्तल के स्टील प्लांट का खूंटी और गुमला में ग्यारह हज़ार एकढ़ का मामला भी जोरो पर हे. इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में कुल्लू में सकी-विल्लेज और ऊना के सेज का मामला भी हे. सुदूर केरला का प्लाचीमाडा और कर्नाटक का मंगलूर सेज का मामला भी शांत नहीं हुआ. इन १८ में से आठ स्थानों पर स्वदेशी जागरण मंच अति सक्रिय हे या आन्दोलन को कहीं वो ही चला रहा हे. ऐसे में प्लाचीमाडा, हिमाचल के दोनों मामले, एनरोन का पूरा मामला, मंगलोर सेज का दूसरा फेज, वेदान्त विश्वविद्यालय, और शुरू में पोस्को, और राजस्थान का मामले, इनमें मंच की भूमिका सबका धियान खींचती हे. मंच ने रायपुर की बैठक में एक प्रस्ताव भी इस निमित पास कर कई सुझाव बी दिया और लगता हे की इस नया प्रावधान में, जो की गत सप्ताह ग्राम विकास मंत्रालय ने दिया उनका कुछ समावेश भी हो रहा हे. केंद्रीय स्तर पर स्वदेशी ने एक कमिटी बना कर प्रान्त प्रान्त में इस विषय के आर.टी.आई भी डाली के और ऐसे सभी संगठनो के जंतर-मंतर दिल्ली में इकठे करने का भी विचार चल रहा हे.
एक महत्त्व पूर्ण सत्र श्री मुरलीधर, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री एवं स्वदेशी नेता ने लिया और स्वदेश की इस समय की प्रमुख आर्थिक चुनोतियों का वर्णन किया .जिस देश को दुनिया का नेत्रित्व करना हो उसके पास सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्माण की तकनीक होनी चाहिए, उदहारण के लिए अभी मोबाइल की ही बात हे. दूसरी बात विकेंद्रीकरण की नीतियां हे जिस के सहारे समाज जिन्दा हे और भूमंदिलिकरण की प्रक्रिया उस का केन्द्रीयकरण करना कर के भारत की आत्मा नष्ट करना चाहती ही. मंदिर हमारी इस समाज-आधारित व्यवस्ता का अंग हे. गौ माता हमारी विकेन्द्रित वयस्था का प्राण हे और गोचर बूमी जिस प्रकार से समाप्त की जा रही हे उसके लिए भी जाना-आन्दोलन चलने परेगे. समाज के अंतिम व्यक्ति को ऊँचा उठाना देश को उठाना मानकर अन्तोदय की व्यवस्था खरी करनी होगी. विश्व व्यापार संगठन मृत-प्राय लग रहा हे, लेकिन दुसरे-दुसरे रूप लेकर यथा मुक्त व्यापार समझोते उसी का दूसरा वीभत्स रूप हे. उन्होंने अपनी बात की शुरुआत एक कथा से की जिसमे एक राजा के पास एक फ्रौड़ विदेशी व्यापारी ऐसा कपर तेयार करने की बात करता हे जिसे केवल साद-आत्मा के लोग ही देख सकें गे और पापी का तगमा न लगे कोई नंगे राजा को नंगा नहीं कह रहा था. जैसे भीर में एक बच्चा भोलेपन में चिल्लाया की राजानंगा हे, वैसे ही भूमंडली-करणके देश के नंगा करने के कू-प्रयासों को कोई बोलता नहीं स्वदेशी जागरण मंच के बच्चे ने निर्भीकता से जो बोला तो उस क्रम को आगे जारी रखना हे. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वहां के भाजपा सांसद श्री विश्नोई ने की.

चीन की चुनोतियों का विषय श्री भगवती प्रकाश जी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक ने लिया. क्योंकि पूरे प्रान्त में इस विषय को गाँव-गाँव में लिया जाने वाला हे, इस लिए उनके भाषण की पर आधारित एक लघु-पुस्तिका लाखों की संख्या में वितरित करने की योजना हे. उनका पूरा भाषण का लघु रूप हम यहाँ नोट में एक दो दिन में छापे गे, इस लिए में कोई जियादा रूप यहाँ नहीं लिख रहा हूँ.इसी सत्र में श्री देवी सिंह भाति ने स्वेन घास का जो प्रकल्प उन्होंने प्रारंभ किया उसका वर्णन किया और बताया की पशु आहार का ये बीज जो बिलकुल लुप्त सा हो गया था, आज गाँव गाँव में प्रचारित हो रहा हे, और एक आन्दोलन का रूप लेता जा रहा हे. इसी एक साथ एक सत्र मीन मंच के प्रान्त सह संयोजक और इस कार्यक्रम के प्रमुख संयोजक डॉ. रणजीत सिंह ने आगामी चीन सम्बंधित अभियान के पखवाड़े का प्रारूप रखा और सभी के सुझाव सुनकर योजना बने. हर प्रखंड पर एक गोष्टी हो और हर घर में एक पत्रक जाएँ - ऐसी योजना का खुलासा किया. डॉ.राजकुमार चतुर्वेदी, भीलवाडा, और मंच के प्रान्त सह-संयोजक ने चीन की चोनोती सम्बन्धी विषय पर अपने सारगर्भित विचार रखे. प्रान्त संयोजक श्री भागीरथ चौधरी ने वर्तमान कृषि की दुरावस्था का चित्र खींचा और मंच के प्रयासों की जानकारी रखी. श्री अरुण शर्मा ने एक सत्र में जैविक खेती का विषय रखा. उन्होंने बताया की 78 % कीटनाशक अपने मानदंडो पर खरे नहीं उतारते और एन्डोसल्फान पर तेयार अपनी रिपोर्ट सरकार इस लिए प्रकाशित नहीं कर रही की उसके पास ४००० करोड़ का रखा स्टॉक कही बेकार न हो जाये, इस लिए लोगो की जान और कृषी को खतरा मंजूर कर रही हे.

कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएं: खैर अन्य विशेश्तायों के साथ अच्छी बात थी की सारे कार्यक्रम की रेकोरेडिंग की गयी और अब उसकी सीडी बना कर सबको दी जायेगी, ऐसा बताया. अगर ऐसा होता हे तो आगे कार्यकर्ताओं को इससे काफी लाभ होगा. दूसरी विशेषता ये लगी की जियादा विषय लेने की बजाय जो भी चार पांच प्रमुख विषय लिए गए, वो तसल्ली की साथ लिए गए. हर सत्र में कुछ न कुछ चर्चा भी हुई. तीसरी बात लगी के हाजरी हर सत्र में अच्छी रही और लोगो का पूरा ध्यान विषयों पर था. ऐसी ही कार्यक्रम के साथ चार छोटी लेकिनी कार्यकर्तायों के लिए उपयोगी पुस्तके भी दी गयी, जिनका छपवाना भी जोधपुर मंच ने ही किया था.
बस थोड़ी कमी लग रही थी तो ये की जो 64 कार्यकर्ता आये थे उनमें नए जितने आने चाहिए थे, शायद कम थे, 26 इनमे से जोधपुर व आसपास के, तीन उदयपुर से, पांच जालोर के, छे बाढ़मेर के, पांच बीकानेर के, तीन जयपुर, एक कोटा चार चितोर्गढ़ से, चार भीलवाडा से और दो फलौदी से, ऐसे ११ स्थानों से थे. शायद एक कारण वहां शिक्षकों की परीक्षा भी रही जो इसी दिन थी. हाँ, शायद स्वदेशी में आने के बाद ये मेरा पहला प्रान्त का ऐसा अभ्यास वर्ग था, बाकी जगह और और कार्यक्रम तो हुए लेकिन प्रांतीय अभ्यास वर्ग मैंने पहली बार देखा, इस लिए लगता हे की ये अन्य प्रान्तों के लिए भी प्रेरणा का विषय बन सकता हे. बाकी सुधार करने के लिए तो अच्छे व्यक्ति के पास हमेश ही