Tuesday, February 25, 2020

कश्मीरी लाल

कश्मीरी लाल
आप स्वदेशी जागरण मंच के गत 11 वर्षों से राष्ट्रीय संगठक हैं  और दिल्ली में केंद्र है। स्वदेशी, स्वालम्बन और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित हैं और पिछले 35 वर्षों से इन्ही में इर्दगिर्द कईं कई जनजागरणों, रचनात्मक क्रियाकलापों व जनआंदोलनों का तानाबाना बुनते रहे हैं। मूलतः हरियाणा में अम्बाला में 1952 जन्मे और उधर ही अंग्रेजी साहित्य व दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर पढ़ाई की, व अल्पकाल के लिए शिक्षण भी किया। आजकल हमारे देश का युवा सद्संस्कारों के साथ- साथ 'नोकरी मांगने वाला नहीं बल्कि नोकरी देने वाला बने' इस भाव को जनांदोलन बनाने में जुटे हैं। पूरे देश में अनवरत यायावरी करते हुए युवा, समाज व सरकारों को पूरे मंच के साथ सफलतापूर्वक झकझोरने को संकल्पित हैं।

Tuesday, February 18, 2020

ग्राम आधारित विकास


२. ग्राम आधारित विकास
a. नाना जी देशमुख ने ये किया, गोंडा, चित्रकूट व महराजगंज सरीखे पिछड़े ज़िलों में काम करके।ग्रामों को आबाद किया, कमाई, पढ़ाई और दवाई की व्यवस्था वहां उपलब्ध करवाई, २००५ में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी देखकर प्रभावित हुए और विवादमुक्त गांव देखकर तो अति प्रसन्न हुए। अपनी पूरा योजना में उन्हें डाला। देखा जाए तो कितने पढ़ेलिखों ने अपने गांव की सुधली है। 

B. कभी २००३ की अपने राष्ट्र के नाम संदेश में इसे प्रगट किया और प्रधानमंत्री ने अगले भाषण में अनुमोदन किया। फिर २०१२ में ग्रमविकास   मंत्री श्री जयराम रमेश ने घोषित किया कि Provision of Urban Amenities in Rural Areas (PURA) कि असफल है और नए ढंग से इसे लागू करने का इरादा जताया। भारत तो लगभग साढ़े छः लाख गांव में समाया हुआ है।

3.  सीता राम केदलाए का भारत का भ्रमण। ९ अगस्त २०१२ se kanyakumari prarmbh.Bharat Parikrama Yatra to conclude at Kanyakumari on next Sunday July 9, 2017. which will be completing 1797 days (nearly 5 years), 23,100 km of Walkathon coverimg 2350 villages of 23 states of Bharat. Indirectly 20 thousand villages. 74 saal ke agar kr sakta hae to बाकी kyon नहीं ?
2october 2014 ko smart village yojna sansdo dwara.
4. Anna Hazare bhut padhe likhe nhi  ek ralegadh sindi goam Kya bdla desh bdlne lg gye.. 
5. Surender Singh of gram vikas doing a lot and also so many pracharaks and karyakartas under the guidance of gatividhi 
6. Sri Sri gurudev also doing

Saturday, February 8, 2020

भगवद्गीता चुने हुए श्लोक

महाभारत के मूल श्लोक एक लाख 11 हज़ार हैं। भगवतगीता उसका 158वां हिस्सा है। 
गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- पौने छह सौ से एक कम 574+ अन्य 126=700
अर्जुन ने-             85 अर्थात एक के बदले  7, अर्थात हर सात मिनट बाद कोई प्रश्न नहीं पूछेगा तो भगवान भी नहीं बोल पाता हमारी क्या औकात है।  
संजय ने-             40. (हर 18 मिनिट बाद मंच संचालक नहीं बोलेगा यो कार्यक्रम का गूढार्थ समझ नहीं आयेगा, पर इससे ज्यादा बोलेगा तो भी ठीक नहीं है। देखिए अंतिम समारोप भगवान ने नहीं किया ,इसी मंचसंचालक ने किया  यत्र योगेश्वरः कृष्णो, औऱ अपना निष्कर्ष निकाल दिया। युद्ध होने से पहले ही कि जीतेगा तो कृष्ण ही।
धृतराष्ट्र ने-             1 =कुल (126) लेकिन धृतराष्ट्र एक ही बार और पहला श्लोक बोला और उसमें भी हालचाल जानने के लिए पहले कुंती पुत्रो का नहीं स्वार्थ में अंधा होकर अपने पुत्रों का पूछा,मामका पाण्डेश्चैव... ऐसे स्वार्थी को दुबारा नहीं बुलवाया। गीता के श्लोक भी समझाते ही, उसकी संख्या भी समझाती है। 
गीता कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में सुनाई 45 जन्मों में भी समझ आ जाए तो बड़ी बात है।।
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भाग एक 5 ...श्लोक में भूमिका: धर्मक्षेत्रे,एक धृतराष्ट्र ,, 2,3 अर्जुन, दृष्टेवमं स्वजनं 4-5 संजय,एवमुक्त्वार्जुनः, तम तथा
2. द्वितीय भाग 8 A व B ..दो कृष्ण:  एक कुतस्तव, दो..कलेबयम मा, बी  अशोच्यानन्वशोचस्त्वं, , चार:   हतो वा प्राप्यसि
B एक . देहिनोऽस्मिन्यथा  दो वंसासी जीर्णानि, तीन  नैनम छिदन्ति, व चार:  जातस्य ही ध्रुवो

3.  तीसरा भाग 3 श्लोक  (जिनका ठेंगड़ी जी जिक्र करते है ऐसे दो) एक अर्जुन कार्पण्यदोषो, संजय एवमुक्त्वा, एक संलग्न 18 का इति ते ज्ञानम् । 

4. भाग चार दो रूस बाले में ध्यायतो विषयां व क्रोधात भवति।
5. पंचम भाग, महाभारत सीरियल: (3) यदा, परित्रां, यत्र योगेश्वर 
6.  भाग षष्टम पांच  श्लोक 
मुक्तसंगों नह्मवादी  
कर्मण्येवाधिकारस्ते
यद्यत अचरति
श्रद्धावान लभते
सर्वधर्मान्परित्यज्य

7. सप्तम  भाग: 2. Oppenhiemer
 दिवि सूर्य सहस्रस्य
  कालोअस्मि
।।।।।।।
Mahtvअभी कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एआर  दवे ने एक सम्बोधन में कहा, यदि वे तानाशाह होते तो बच्चों के लिए पहली कक्षा से गीता का पढ़ना-पढ़ानाअनिवार्य कर दे।  
........     .......    .......
प्रथम भाग में 5: 
1.धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।। 1 ।।
 कुरुक्षेत्र की धर्म भूमि पे जब nb4x7
मिले पांडवों से मेरे लाल सब
 लड़ाई का दिल में जमाए ख्याल 
तो संजय बता उनका सब हाल-चाल।।
2.दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌॥२८॥सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
अर्जुन दिल को अर्जुन के  रंजो मलाल
कहा रहमो-ओ रिक्क्त से होकर निढाल
महाराज ये क्या है दरपेश आज, 
की लड़ने को है ख़वेश से ख़वेश आज।
3.वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥२९॥
अर्जुन बोले- हे कृष्ण! यहाँ मैं युद्ध के अभिलाषी  स्वजनों को ही देखता हूँ। मेरे अंग शिथिल हुए हो रहे हैं और मुख सूख रहा है और मेरे शरीर में मेरा शरीर काँप रहा है और रोएं खड़े हो रहे हैं॥28-29॥ 
बदन में नहीं मेरे ताब-ओ तवाँ,
दहन खुश्क है, सूखती हैं जबां
लगी है मुझे कपकपी थरथरी, 
मेरे रोंगटे भी खड़े हैं सभी।
संजय उवाच -
4.एवमुक्त्वार्जुनः सङ्‍ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्‌।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥४७॥संजय बोले - इस प्रकार कहकर, रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन, बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गए॥47॥
यह कहते हुए हाल-ए-दिल नागहां, दिये फेंक अर्जुन ने तीरों-ओ कमां
न रथ में खड़ा रह सका वो हजीन, जो दिल उसका बैठा तो बैठा वहीं।

5.संजय उवाच
  -तं तथा कृपयाविष्टमश्रु पूर्णाकुलेक्षणम्‌।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥१॥

संजय बोले- तब करुणा-ग्रस्त और आँसुओं से पूर्ण, व्याकुल दृष्टि वाले, शोकयुक्त अर्जुन से भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥1॥Sanjay says - Then, the destroyer of Madhu, Sri Krishna said to compassionate and sorrowful Arjun, who was anxious with tears in his eyes-॥1॥
दूसरा भाग 5
श्रीभगवानुवाच -
1.कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम्‌ कीर्तिकरमर्जुन॥२॥

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है? क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न यश देने वाला ही है॥2॥Lord Krishna says - O Arjun! How can you get sad at this inappropriate time?  This sadness is not observed in nobles, it also does not lead to either heaven or glory.
2.क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥३॥हे पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ॥
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥३॥हे पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ॥3॥

3.अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥११॥
तू बातों के आकिल, न हो दिल मलूल, 
न कर उनका ग़म जिनका ग़म है फज़ूल,
सताएं न दाना को रंजो-अलम, मरे का न सोग और न जीते का ग़म
4. हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

5.देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्ति र्धीरस्तत्र न मुह्यति॥१३
करे रूह जैसे तगेययुर बगैर, लड़कपन, जवानी, बुढ़ापे की सैर, उसी तरह कालिब बदलती है रूह, अगर दिल है मज़बूत चिंता नहीं।
6.  वंसासी जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।२२।।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे नये वस्त्रोंको ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको त्यागकर दूसरे नये शरीरोंको
vāsāṁsi—garments; jīrṇāni—old and worn out; yathā—as it is; vihāya—giving up; navāni—new garments; gṛhṇāti—does accept; naraḥ—a man; aparāṇi—other; tathā—in the same way; śarīrāṇi—bodies; vihāya—giving up; jīrṇāni—old and useless; anyāni—different; saṁyāti—verily accepts; navāni—new sets; dehī—the embodied.
बदलता है इन्सां लिबासे कुहन -नया जामा करता है ,फिर जैब तन .
उसी तरह कालिब बदलती है रूह -नए भेस में फिर निकलती है रूह .

VERSE 23

7.नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

nainam chindanti sastrani
nainam dahati pavakah
na cainam kledayanty apo
na sosayati marutah

SYNONYMS
na—never; enam—unto this soul; chindanti—can cut into pieces; śastrāṇi —all weapons; na—never; enam—unto this soul; dahati—burns; pāvakaḥ—fire; na—never; ca—also; enam—unto this soul; kledayanti—moistens; āpaḥ —water; na—never; śoṣayati—dries; mārutaḥ—wind.

TRANSLATION
The soul can never be cut into pieces by any weapon, nor can he be burned by fire, nor moistened by water, nor withered by the wind.

 the wind 
8.जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27/2 अध्याय

Transliteration
jātasya hi dhruvo mṛtyurdhruvaṁ janma mṛtasya ca,
tasmādaparihārye'rthe na tvaṁ śocitumarhasi.

Padaccheda
जातस्य हि ध्रुवः मृत्युः ध्रुवम् जन्म मृतस्य च ।
तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे न त्वम् शोचितुम् अर्हसि ॥



Sri Aurobindo’s Interpretation
For certain is death for the born, and certain is birth for the dead; therefore what is inevitable ought not to be a cause of thy sorrow.

जो पैदा हो मौत उसको आये जरूर, 
मरे तो जन्म फिर वो पाए जरूर,
जो यह अमर लाज़िम है और नागज़ीर, 
तो फिर किस लिए तु है गम का असीर।

भाग तीसरा तीन श्लोक ठेंगड़ी जी बताते थे
1.कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌॥७॥शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥ ... कार्पण्य-दोष-उपहत-स्वभावः धर्म- सम्मूढ-चेताः त्वाम्‌ (अहं) पृच्छामि। ... शिष्यः ते अहम् शाधि माम् त्वाम् प्रपन्नम् ॥
कायरता रूप दोष से पराजित स्वभाव वाला और धर्म के विषय में मोहित चित्त, मैं आपसे पूछता हूँ कि जो मेरे लिए निश्चित और कल्याणकारक साधन हो, वह  बताइए। मैं आपका शिष्य हूँ और आपकी शरण में हूँ, अतः मुझे शिक्षा दीजिये॥7।।
संजय उवाच -
2.एवमुक्त्वा हृषीकेशं  गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥९॥

(परन्तप) हे राजन्! (गुडाकेशः) निद्राको जीतनेवाले अर्जुन (हृषीकेशम्) अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराजके प्रति (एवम्) इस प्रकार (उक्त्वा) कहकर फिर (गोविन्दम्) श्रीगोविन्द भगवान्से (न, योत्स्ये) युद्ध नहीं करूँगा (इति) यह (ह) स्पष्ट (उक्त्वा) कहकर (तूष्णीम्) चुप (बभूव) हो गये।

........

3. इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।18.63

इति ते ज्ञानम् आख्यातम् गुह्यात् गुह्यतरं मया ।
विमृश्य एतत् अशेषेण यथा इच्छसि तथा कुरु।।
इति गुह्यात्‌ गुह्यतरं ज्ञानम्‌ मया ते आख्यातम्‌, एतत्‌ अशेषेण विमृश्य, यथा इच्छसि तथा कुरु।
 ॥

So have I expounded to thee a knowledge more secret than that which is hidden; having reflected on it fully, do as thou wouldest.

भाग चार दो 
1. ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते |
सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62||२//
dhyāyato viṣhayān puṁsaḥ saṅgas teṣhūpajāyate
saṅgāt sañjāyate kāmaḥ kāmāt krodho ’bhijāyate,
dhyāyataḥ—contemplating; viṣhayān—sense objects; puṁsaḥ—of a person; saṅgaḥ—attachment; teṣhu—to them (sense objects); upajāyate—arises; saṅgāt—from attachment; sañjāyate—develops; kāmaḥ—desire; kāmāt—from desire; krodhaḥ—anger; abhijāyate—arises

ध्यायत : विषयां पुंस: संग : तेषु उपजायते ।
संगात सज्जायते काम :काम : कामात क्रोध : अभिजायते ॥
गीता 2.62

2. क्रोधात भवति सम्मोह :
सम्मोहात स्मृति विभ्रम :
स्मृति - भ्रंशात बुद्धि - नाश :
बुद्धि - नाशात प्रणश्यति
गीता 2.63
2.63 Anger induces delusion; delusion, loss of memory; through loss of memory, reason is shattered; and loss of reason leads to destruction. 
भाग पांच, 3 
महाभारत सीरियल के दो एवं अन्तिमन श्लोक जो अधिकांश लोग जानते हैं
16. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥


2. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८
3. यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18.78।
। --,यत्र यस्मिन् पक्षे योगेश्वरः सर्वयोगानाम् ईश्वरः? तत्प्रभवत्वात् सर्वयोगबीजस्य? कृष्णः? यत्र पार्थः यस्मिन् पक्षे धनुर्धरः गाण्डीवधन्वा? तत्र श्रीः तस्मिन् पाण्डवानां पक्षे श्रीः विजयः? तत्रैव भूतिः श्रियो विशेषः विस्तारः भूतिः? ध्रुवा अव्यभिचारिणी नीतिः नयः? इत्येवं मतिः मम 
This verse is called the Ekasloki Gita? i.e.? Bhagavad Gita in one verse. Repetition of even this one verse bestows the benefits of reading the whole of the scripture.Wherever is Krishna, the Lord of Yoga; wherever is Arjuna, the wielder of the bow; there are prosperity, victory, happiness and firm policy; such is my conviction.
तत्र श्री, विजयो, विभूति तथा अचल (ध्रुवो नीति) नीति चार बातें कह दी। यह था निष्पक्ष एग्जिट पोल एनालिसिस।

बहुत कहनेसे क्या, समस्त योग और उनके बीज उन्हींसे उत्पन्न हुए हैं? अतः भगवान् योगेश्वर हैं। जिस पक्षमें ( वे ) सब योगोंके ईश्वर श्रीकृष्ण हैं तथा जिस पक्षमें गाण्डीव धनुर्धारी पृथापुत्र अर्जुन है? उस पाण्डवोंके पक्षमें ही श्री? उसीमें विजय? उसीमें विभूति ( विलक्षण शक्ति, अर्थात् लक्ष्मीका विशेष विस्तार और वहीं अचल नीति है -- ऐसा मेरा मत है।

(सात सौ एक श्लोकों वाली श्रीमद्भगवद्गीता का यह अन्तिम श्लोक है। अधिकांश व्याख्याकारों ने इस श्लोक पर पर्याप्त विचार नहीं किया है और इसकी उपयुक्त व्याख्या भी नहीं की है। प्रथम दृष्टि में इसका शाब्दिक अर्थ किसी भी बुद्धिमान पुरुष को प्राय निष्प्राण और शुष्क प्रतीत होगा। आखिर इस श्लोक में संजय केवल अपने विश्वास और व्यक्तिगत मत को ही तो प्रदर्शित कर रहा है? )

कर्म सिद्धान्त

भाग 6 में श्रेष्ठ कार्यकर्त 4 श्लोक

1. मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित: |

सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते || 26||

mukta-saṅgo ‘nahaṁ-vādī dhṛity-utsāha-samanvitaḥ
siddhy-asiddhyor nirvikāraḥ kartā sāttvika uchyate


2,.- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)


अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।


21. 

अर्थ: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख पा जाओगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो।

3. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो  जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्त।।3.21।।

यद्यत् आचरति  श्रेष्ठः तत्तदेव   इतरः  जनः 

स  यत् प्रमाणं कुरुते लोकः तत् अनुवर्तते 

 यद्यत् कर्म आचरति करोति श्रेष्ठः प्रधानः तत्तदेव कर्म आचरति इतरः अन्यः जनः तदनुगतः। किञ्च सः श्रेष्ठः यत् प्रमाणं कुरुते लौकिकं वैदिकं वा लोकः तत् अनुवर्तते तदेव प्रमाणीकरोति इत्यर्थः।।यदि अत्र ते लोकसंग्रहकर्तव्यतायां विप्रतिपत्तिः तर्हि मां किं न पश्यसि

अ।र्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।3.21 यद्यत् whatsoever, आचरति does, श्रेष्ठः the best, तत्तत् that, एव only, इतरः the other, जनः people, सः he (that great man), यत् what, प्रमाणम् standard (authority, demonstration), कुरुते does, लोकः the world (people), तत् that, अनुवर्तते

4. श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥(4/ 39)

श्रद्धावान् लभते ज्ञानम  तत्परः  संयतेन्द्रियः 

 ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिम् अचिरेण अधिगच्छति।śhraddhā-vān—a faithful person; labhate—achieves; jñānam—divine knowledge; tat-paraḥ—devoted (to that); sanyata—controlled; indriyaḥ—senses; jñānam—transcendental knowledge; labdhvā—having achieved; parām—supreme; śhāntim—peace; achireṇa—without delay; adhigachchhati—attainsअर्थ: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधन पारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं।

 

सभी धर्मों को त्याग कर...

5.; सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥(18अध्याय, श्लोक 66)

सर्वधर्मान् सर्वधर्माः तान् परित्यज्य माम्एबकं  शरणंव्रज? । 

अहं त्वा  सर्वपापेभ्यः  मोक्षयिष्यामिमा शुचः 

अर्थ: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर सर्वधर्मान् = सर्व धर्मो को अर्थात् संपूर्ण कर्मोंके आश्रय को ; परित्यज्य = त्यागकर ; एकम् = केवल एक ; माम् = मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव परमात्मा की ही ; शरणम् = अनन्य शरणको ; व्रज = प्राप्त हो ; अहम् = मैं ; त्वा = तेरे को ; सर्वपापेभ्य: = संपूर्ण पापों से ; मोक्षयिष्यामि = मुक्त कर दूंगा ; मा शुच: = तूं शोक मत कर को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी. No

भाग सात ओपेन्ह्यमेर के गयो श्लोक 

25. दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता |

यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन: ॥12॥ 11 अध्याय

(दिवि) आकाशमें (सूर्यसहस्त्रास्य) हजार सूर्योंके (युगपत्) एक साथ (उत्थिता) उदय होनेसे उत्पन्न जो (भाः) प्रकाश (भवेत्) हो (सा) वह भी (तस्य) उस (महात्मनः) परमात्माके (भासः) प्रकाशके (सदृशी) सदृश (यदि) कदाचित् ही (स्यात्) हो।


फ़लक में निकल आएं सूरज हज़ार, 

बा यक वक्त मिलकर हों सब नूरबार, 

तो धुंधली सी समझों तुम उसकी मिसाल, 

महा आत्मा का था इतना ज़लाल।


26. श्री भगवानुवाच

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो

लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे

येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।।

सन्धि विग्रहः

कालः अस्मि लोक-क्षय-कृत् प्रवृद्धः लोकान् समाहर्तुम् इह प्रवृत्तः ।

ऋते अपि त्वाम् न भविष्यन्ति सर्वे ये अवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥ ११-३२॥

11 अध्याय.32 

कालः time? अस्मि (I) am? लोकक्षयकृत् worlddestroying? प्रवृद्धः fullgrown? लोकान् the worlds? समाहर्तुम् to destroy? इह here? प्रवृत्तः engaged? ऋते without? अपि also? त्वाम् thee? न not? भविष्यन्ति shall live? सर्वे all? ये these? अवस्थिताः arrayed? प्रत्यनीकेषु in hostile armies योधाः warriors.

On 16th July, 1945, in a desert in Alamogordo in the state of New Mexico, USA. the first atomic explosion in the world took place at 5.45am which changed the world. The Director of the Manhattan Project, which manufactured the atomic bomb, was Dr Julius Robert Oppenheimer, (1904 -1967)one of the top physicists in the world, who is also regarded as “the father of the atomic bomb”

Dr Oppenheimer, apart from being a great scientist, was also a great lover of Sanskrit. He had studied a vast number of Sanskrit books in original, including the Bhagavad Gita (which is part of the Bhishma Parva of the Mahabharata).


When the massive nuclear blast whose blazing light covered most of the sky took place, the following words in Chapter 11 shloka 12 came out spontaneously from Dr Oppenheimer’s lips:

” Divi surya sahastrasya bhaved yugapad utthita

Yadi bhah sadrashi sa syat bhasastasya mahatmanah”

“If the radiance of a thousand suns were to burst at once in the sky, that would be the splendour of the mighty One”.

That shloka is in the Chapter where Lord Krishna reveals his massive divine form to Arjuna.

Much later, in a television interview in 1965, Dr Oppenheimer said: “We knew the world would not be the same. A few people laughed (immediately after the nuclear explosion), a few people cried. Most people were silent. I remembered the line from the Hindu scripture, the Bhagavad Gita. Vishnu is trying to persuade the Prince (Arjuna) that he should do his duty, and to impress him takes on his multi-armed form, an।d says: “Now I am become Death, the Destroyer of Worlds”.


क्या है डनबर नंबर

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबिन डनबर ने सोशल नेटवर्किंग साइट पर बेस्ड स्टडी में दावा किया है कि इंसान सोशल मीडिया पर कितने भी दोस्तों से जुड़ जाएं, लेकिन वह सिर्फ 150 लोगों से दोस्ती मैनेज कर सकता है और उतने ही दोस्तों को याद रख सकता है। 
हमारे पास एक सीमित मात्रा सामाजिक पूंजी में है और हम बड़ी बारीकी से ज्यादा लोगों पर कम या कम लोगों पर ज्‍यादा निवेश करत सकते हैं, लेकिन हम इसका दायरा बढ़ा नहीं सकते हैं। डनबर के मुताबिक मानवीय रिश्तें परत वाले वक्र हैं, जो सबसे करीब से दूर की तरह व्यवथित हैं।

हमारे औसतन पांच घनिष्ठ मित्र, 15 सबसे अच्छे दोस्त, 50 अच्छे दोस्त, 150 दोस्तों, 500 परिचितों और 1500 लोगों पहचान भर होते हैं।

150 लोग सबसे महत्वपूर्ण हैं ये वे लोग होते हैं जिनके साथ आप वास्तव में ‌रिश्तों को जिंदा रखना चाहते हैं।  लोग फेसबुक पर 500 या 1,000 दोस्त हो सकता हैं, लेकिन वे सब परिचत भर हो सकते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा दिमाग एक निश्चित संख्या 100-200 ही लोगों की दोस्ती को संभाल सकता है। इसे सोशल ब्रेन हाइपोथिसिस के नाम से जाना जाता है। इस आकार की दोस्ती को बनाए रखने के लिए पर्याप्त समय की जरूरत होती है। उन्होंने यह निष्कर्ष 3 हजार लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर निकाला है।
edited dunbar

Dunbar's number is a suggested cognitive limit to the number of people with whom one can maintain stable social relationships—relationships in which an individual knows who each person is and how each person relates to every other person. 
1. This number was first proposed in the 1990s by British anthropologist Robin Dunbar, who found a correlation between primate brain size and average social group size.
By using the average human brain size and extrapolating from the results of primates, he proposed 
1. that humans can comfortably maintain 150 stable relationships. (100 to 250 and commonly 150) Dunbar explained it informally as "the number of people you would not feel embarrassed about joining uninvited for a drink if you happened to bump into them in a bar".On the periphery, the number also includes past colleagues, such as high school friends, with whom a person would want to reacquaint himself or herself if they met again.
In a piece for the Financial Times (10 Aug 2018), titled 'Why drink is the secret to humanity’s success' Dunbar mentioned two more numbers: an inner core of about 5 people to whom we devote about 40 percent of our available social time and 10 more people to whom we devote another 20 percent. All in all, we devote about two-thirds of our time to just 15 people. 
Anthropologist H. Russell Bernard, Peter Killworth and associates have done a variety of field studies in the United Stestimated mean number of ties, 290, which is roughly double Dunbar's estimate. The Bernard–Killworth median of 231 is lower, due to an upward skew in the distribution, but still appreciably larger than Dunbar's estimate. The
Proponents assert that numbers larger than this generally require more restrictive rules, laws, and enforced norms to maintain a stable, cohesive group.  
Popularisation
Malcolm Gladwell discusses the Dunbar number in his popular 2000 book The Tipping Point. Gladwell describes the company W. L. Gore and Associates, now known for the Gore-Tex brand. By trial and error, the leadership in the company discovered that if more than 150 employees were working together in one building, different social problems could occur. The company started building company buildings with a limit of 150 employees and only 150 parking spaces. When the parking spaces were filled, the company would build another 150-employee building. Sometimes these buildings would be placed only short distances apart. The company is also known for the open allocation company structure.
The number has been used in the study of virtual communities, especially MMORPGs, such as Ultima Online, and social networking websites, such as Facebook[25] (Dunbar himself did a study on Facebook in 2010 and MySpace.
The Swedish tax authority planned to reorganise its functions in 2007 with a maximum 150 employees per office, referring to Dunbar's research.
In 2007, Cracked.com editor David Wong wrote a humour piece titled "What is the Monkeysphere?" explaining Dunbar's number.
In the 2012 novel This Book Is Full of Spiders, also by David Wong, the character Marconi explains to David the impact Dunbar's number has on human society. In Marconi's explanation, the limit Dunbar's number imposes on the individual explains phenomena such as racism and xenophobia, as well as apathy towards the suffering of peoples outside of an individual's community.

In episode 103 of the podcast Hello Internet (31 May 2018) Brady Haran and Grey discuss the reasons the number may be limited to 150 including the ability to keep track of political relationships in large groups of people and the amount of time that people have to devote towards developing and maintaining friendships. 

Thursday, February 6, 2020

हिम्मताराम भाम्भू 5 लाख पौधे लगाए एवम् शुभेंदु शर्मा

नागौर जिले की सुखवासी गांव में जन्मे हिम्मताराम भाम्भू ( Environment Lover Himmataram Bhambhu )  को पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीवों की रक्षा एवं पशु क्रूरता के खिलाफ लम्बे समय तक किए गए संघर्ष एवं कार्यों को देखते हुए केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने उन्हें पदम श्री पुरस्कार ( padamshri awardee ) देने की घोषणा की है।

नागौर.
नागौर जिले की सुखवासी गांव में जन्मे हिम्मताराम भाम्भू ( Environment Lover Himmataram Bhambhu ) को पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीवों की रक्षा एवं पशु क्रूरता के खिलाफ लम्बे समय तक किए गए संघर्ष एवं कार्यों को देखते हुए केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने उन्हें पदम श्री पुरस्कार ( padamshri awardee ) देने की घोषणा की है। पर्यावरण प्रेमी भाम्भू को गत दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से मुलाकात कर उनके द्वारा किए गए कार्यों एवं आगामी कार्ययोजना को लेकर चर्चा की थी।

पर्यावरण प्रेमी हिम्मताराम भाम्भू प्रदेश-देश में सरकार एवं कई संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं, जिन्होंने न केवल पिछले 30 वर्षों में 5 लाख से अधिक पौधे लगाए, बल्कि उनके द्वारा लगाए गए साढ़े तीन लाख पौधे आज पेड़ बन चुके हैं। भाम्भू ने नागौर के निकट हरिमा गांव के पास 25 बीघा जमीन लेकर पर 11 हजार पौधे लगाकर जंगल का रूप दिया है। ताकि लोगों को पर्यावरण का महत्व बता सकें। भाम्भू ने यहां पर्यावरण प्रदर्शनी भी बना रखी है।
वन्य जीवों के लिए खुद लड़ते हैं मुकदमे
भाम्भू पर्यावरण संरक्षण के साथ वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए भी हर वक्त तैयार रहते हैं। वन विभाग से ज्यादा सक्रिय रहकर शिकारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं और कोर्ट में मुकदमे भी खुद के खर्चे से लड़ते हैं। कई बार वन विभाग कार्रवाई से पीछे हट जाता है, लेकिन भाम्भू डटकर मुकाबला करते हैं।


भाम्भू ने बताया कि उनके द्वारा मूक पशु-पक्षियों की सुरक्षा एवं पर्यावरण के क्षेत्र में जो काम किया, उसका प्रतिफल उन्हें आज मिला है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को सामाजिक सरोकार व पर्यावरण के क्षेत्र में आगे आने का आह्वान किया है।
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48 जंगल उगा चुका है ये शख्स, पर्यावरण बचाने छोड़ी थी लाखों की नौकरी / 48 जंगल उगा चुका है ये शख्स, पर्यावरण बचाने छोड़ी थी लाखों की नौकरी

  • अपने उगाए जंगल में शुभेंदु शर्मा।अपने उगाए जंगल में शुभेंदु शर्मा।
Jun 30, 2016, 12:18 PM IST
एजुकेशन डेस्क। उत्तराखंड के रहने वाले एक इंजीनियर देश में जंगल उगाने के काम कर रहे हैं। सुनने में ये बात अजीब जरूर लगेगी, लेकिन पूरी तरह सच है। दरअसल, शुभेंदु शर्मा टोयोटा के प्लांट में इंजीनियर थे। एक दिन उनके प्लांट में जापान के पर्यावरणविद अकिरा मियावाकी आए। मियावाकी से मिलने के बाद शुभेंदु की लाइफ अलग ट्रैक पर चली गई। ऐसे शुरू किया जंगल उगाने का काम...
 
 
 
मियावाकी टोयोटा के परिसर में जंगल उगाने आए थे। शुभेंदु को अचरज हुआ कि क्या जंगल भी उगाया जा सकता है, क्योंकि प्राकृतिक रूप से किसी जंगल को साकार होने में कम से कम 100 साल का वक्त लगता है। 86 साल के मियावाकी ने बताया कि कैसे प्रकृति के तौर- तरीकों में दस गुना रफ्तार लाकर 10 साल में जंगल खड़ा हो सकता है। वे दुनियाभर में 4 करोड़ पेड़ लगा चुके थे। बस, शुभेंदु पर भारत में जंगल उगाने की जिद सवार हो गई। उन्होंने मियावाकी के सहायक के रूप में काम करके उनकी विधि का अध्ययन किया। 
 
अपने घर में किया पहला प्रयोग :
 
शुभेंदु ने पहला प्रयोग हुआ उत्तराखंड स्थित घर के पीछे के 93 वर्ग मीटर के बगीचे में। वहां वे एक साल में 42 प्रजातियों के 300 पेड़ लगाने में कामयाब रहे। इसके बाद तो उन पर जंगल उगाने की धुन सवार हो गई, लेकिन इस काम को नौकरी में रहते नहीं किया जा सकता था। अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ना आसान फैसला नहीं था। हालांकि, हिम्मत करके 2011 में नौकरी छोड़ी और एक साल तक सिर्फ रिसर्च की, क्योंकि भारतीय मिट्टी और पर्यावरण अलग होने के कारण मियावाकी की विधियों को हूबहू इस्तेमाल करने में खतरा था।
 

Tuesday, February 4, 2020

वृक्षपुरुष भैयाराम यादव


11 साल, 40 हज़ार पेड़ और एक ‘पागल’ हीरो: मिलिए चित्रकूट के ट्री-मैन से!
भैयाराम यादव की कड़ी मेहनत और विश्वास ने सूखाग्रस्त क्षेत्र कहे जाने वाले बुंदेलखंड की 50 एकड़ भूमि पर आज एक घना जंगल उपजा दिया है।
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यह कहानी है चित्रकूट के ‘वृक्ष पुरुष’ कहे जाने वाले बाबा भैयाराम यादव की। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के भरतपुर गाँव के रहने वाले भैयाराम ने साल 2007 में शपथ ली थी कि वे सिर्फ़ पेड़ों के लिए जियेंगे। आज, लगभग 11 साल बाद वे अपने लगाए हुए 40 हज़ार पेड़ों की अपने बच्चों की तरह देखभाल कर रहे हैं।

उनके इस फ़ैसले के पीछे की वजह उनके जीवन में घटी एक दुर्घटना है। वह बताते हैं, “पहले मेरी ज़िंदगी का कोई उद्देश्य नहीं था। मेरी शादी हो गई और एक बेटा भी हुआ। लेकिन 2001 में मेरी पत्नी बेटे को जन्म देते वक्त चल बसी, उसके सात साल बाद 2007 में मेरा बेटा भी बीमारी के चलते गुजर गया और मैं अकेला रह गया। तब मैंने तय किया कि अब मैं दूसरों के लिए जियूँगा न कि खुद के लिए।”

पत्नी और पुत्र वियोग में भैयाराम चित्रकूट में भटकने लगे, इसी दौरान उन्होंने वन विभाग का स्लोगन ‘एक वृक्ष 100 पुत्र समान’ पढ़ा। भैयाराम उसी वक्त अपने गाँव भरतपुर लौट पड़े। उन्होंने गाँव के बाहर जंगल में जाकर झोपड़ी बनाई और वहीं बस गए। वहां वन विभाग की खाली पड़ी ज़मीन पर पौधे लगाए और अपने गाँव से 3 किलोमीटर दूर से जंगल में पानी ले जाकर पौधों को पानी पिलाने लगे। लोगों को लगा कि भैयाराम पागल हो चुके हैं।

“मेरे पिता की इच्छा थी कि मैं मरने से पहले अपने जीवन में 5 महुआ के पेड़ लगाऊं। वे मुझे स्कूल तो नहीं भेज सकते थे लेकिन उन्होंने मुझे पेड़ लगाना और फिर उनकी देखभाल करना ज़रूर सिखाया। मैं ये पेड़ अपनी ज़मीन में नहीं लगा सकता था क्योंकि मुझे डर था कि भविष्य में अगर किसी ने इन पेड़ों को काट दिया तो,” भैयाराम जी ने आगे बताया।

वक़्त के साथ भैयाराम यादव के 5 पौधे, 40 हज़ार पेड़ों में तब्दील हो गए। लेकिन उन्हें अपने इस अभियान में काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। गाँव के बाहर पानी का कोई स्त्रोत नहीं था। इसलिए वे हर रोज़ अपने कंधे पर एक पतली-सी रस्सी के सहारे 20-20 किलोग्राम के दो डिब्बों में गाँव से पानी भरकर लाते और पौधों को पिलाते, ऐसा वे दिन में चार बार करते थे।

भैयाराम यादव की कड़ी मेहनत और विश्वास ने बुंदेलखंड की 50 एकड़ भूमि पर आज एक घना जंगल उपजा दिया है, वरना बुंदेलखंड को सूखाग्रस्त क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि यहाँ बारिश बहुत ही कम होती है। इस जंगल को इतना घना और बड़ा बनाने के लिए उनकी 11 साल की मेहनत लगी।
वक़्त के साथ उन्होंने इन पेड़ों की देखभाल करना ही अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया। इस वजह से उनका संपर्क बाकी गांवों और दुनिया से मानों खत्म ही हो गया। जंगल में रहते हुए, वे एक छोटी सी जगह में अनाज और सब्ज़ियाँ भी उगाते हैं जिससे उनका भरण-पोषण हो सके। इसके अलावा उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। उनके लगाए गए फल के पेड़ जैसे महुआ, औरा, इमली, बेल, अनार आदि पक्षियों को काफ़ी आकर्षित करते हैं और इन वृक्षों के फलों को ये पक्षी ही खाते हैं।
अपने इस काम में उन्हें सरकार से सिर्फ़ इतनी ही मदद चाहिए कि सरकार उनके जंगल में बोरवेल लगवा दे ताकि पानी की आपूर्ति होने से पेड़ों की देखभाल करना आसान हो जाए। इस बारे में उन्होंने कई बार सरकारी अधिकारियों से गुजारिश भी की, लेकिन अब तक उन्हें कोई मदद नहीं मिली है।

इस अनदेखी पर भैयाराम का कहना है, “पर्यावरण दिवस पर सरकार हर एक जिले में पौधारोपण अभियान में लाखों रुपए खर्च करती है। लेकिन, इस दिन के बाद फिर कोई भी इन पौधों की तरफ पलटकर नहीं देखता और मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब हमारे यहाँ ऐसे लोग हैं जो अपना समय और साधन खर्च करके पेड़ों की देखभाल और पर्यावरण संरक्षण का काम कर रहे हैं, ऐसे में सरकार की तरफ से कोई तवज्जो नहीं मिलती है तो मनोबल टूटता है।”

और जहाँ तक पौधरोपण की बात है तो वे कहते हैं, “लगाने वाले बहुत है, बचाने वाले नहीं।”

अब तक भले ही उन्होंने 40 हज़ार पेड़ लगाए हैं, लेकिन उनके इरादे इससे भी बड़े हैं। वे अधिकारियों का साथ और पानी की अच्छी सप्लाई चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि पेड़ों की संख्या 40 लाख तक पहुंच जाए। पेड़ उनकी ज़िंदगी है और अपनी आख़िरी सांस तक इनकी देखभाल करना चाहते हैं।

अपने काम के ज़रिए वे लोगों को पेड़ बचाने का संदेश देते हैं। बहुत से लोग उनके पेड़ों को काटने और टिम्बर चोरी करने की भी कोशिश करते हैं, इसलिए भैयाराम को हमेशा अलर्ट रहना पड़ता है। सवाल यह है कि उनके जाने के बाद इन पेड़ों का ख्याल कौन रखेगा ?

इस पर वे अंत में सिर्फ़ इतना कहते हैं, “फ़िलहाल, यह ज़िम्मेदारी मेरी है और मेरी मौत के बाद, दूसरे इसे उठा सकते हैं। अब लोग इनकी देखभाल करें या फिर इन्हें काटे, किसी को क्या पता ? लेकिन जब तक मैं हूँ, इन्हें कोई नहीं काट सकता।”

संपादन: भगवती लाल तेली
(साभार: खबर लहरिया और नवभारत टाइम्स)