Tuesday, July 25, 2017

सुभाष जी पुस्तक( भूमिका0)

उ1.  1. आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर भारत 
भारत एक समृद्व , समर्थ और शक्तिशाली राष्ट्र बने , यह देश के हर युवा का सपना है | यही सपना आँखों में लिए हुए हजारो युवा देश की आजादी के लिए फांसी के फंदों पर झूले , अंडमान की काल कोठियो में सारी जवानी गला दी , घर और परिवार के सारे सुख त्याग दिए | यही सपना देखते हुए स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की थी की ,' में देख रहा हूँ की भारत माता फिर से जाग रही है और पहले से भी ज्यादा तेज के साथ विश्व गुरु के सिंहसान पर विराजमान हो रही है " | महान क्रांतिकारी और योगी महारिशी अरविन्द ने भी ऐसा ही विश्वास प्रकट किया था | भारत के युवा वर्ग के प्रेरणास्रोत , पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बहुत विशवास प्रकट करते हुए कई बार कहा है की २०२० तक भारत विश्व की एक बड़ी शक्ति बन जायेगा | देश के करोड़ो लोगो की आँखों में पल रहा यह यह सपना क्या कभी पूरा होगा या सिर्फ सपना ही रहेगा | इस प्रशन का उत्तर तलाशने के लिए अगर हम वर्तमान में भारत की स्थिति को देखते है तो ध्यान में आता है की विश्व के ज्यादातर बड़े नेता और देश भारत को महाशक्ति के रूप में मान्यता देने में लगे है | हाल ही में भारत की यात्रा पर आये अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत की संसद में कहते है की भारत एक बड़ी शक्ति बनने की और अग्रसर नहीं है बल्कि भारत पहले से ही एक बड़ी महाशक्ति बन चुका है तो शायद बहुत लोगो को लगा होगा की यह सब बातें वह सिर्फ भारत के लोगो का दिल जीतने के लिए कह रहे है | परन्तु जब उनकी यात्रा का विश्लेषण करने पर ध्यान में आने लगा की ओबामा का भारत में आने का मकसद अपने देश के लिए नौकरियों की तलाश है तो लगा की सचमुच जो ओबामा कह रहे है वह सिर्फ कल्पना या शब्दों का जाल नहीं है | विश्व के सब देश भारत से व्यापार बढाने के लिए लालायित लग रहे हैं | अन्तरिक्ष विज्ञान से लेकर सूचना और तकनीकी तक हर क्षेत्र में भारत की गूँज है | विश्व व्यापार संगठन की बैठक हो या फिर पर्यावरण का कोई अंतर्राष्ट्रीय समेलन , हर जगह भारत की सशक्त आवाज़ सुनाई पड़ रही है | तो क्या सच में भारत एक बड़ी शक्ति के रूप में विश्व के पटल पर दस्तक दे रहा है ?
अगर आज दुनिया भारत को इतना महत्त्व दे रही है तो उसका कारण भारत की तेजी से बढती अर्थव्यवस्था है | अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( I.M.F ) की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत का सकल घरेलू उत्पाद $ ३,५२६,१२४ मिलियन ( 1 मिलियन = १० लाख ) तक पहुँच गया है तथा यह सिर्फ अमरीका ( $ १४,२५६,२७५ मिलियन ), चीन ( $ ९,०४६,९९० मिलियन ) और जापान ( $ ४,१५९,४३२ मिलियन ) से ही कम है | भारत के सकल घरेलू उत्पाद में ५५ % सेवा क्षेत्र , २८ % उद्योग तथा १७ % कृषि का हिस्सा है | भारत की अर्थव्यवस्था जर्मनी , इंग्लैंड जैसे बड़े यूरोपियन देशो को पीछे छोड़ कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है | भारत की अर्थव्यवस्था इस समय ८.८ % की रफ़्तार से बढ रही है तथा I.M.F के आकलन के अनुसार इस साल ( १ अप्रैल २०१० - ३१ मार्च २०११ ) की वृद्वि दर ९.४ % तक रहने की सम्भावना है तथा भारत इस समय चीन ( १०.५ % ) के बाद दूसरी सब से तेजी से बढती अर्थव्यवस्था है | भारत की इस वृद्वि दर में उद्योगिक उत्पाद ( १२ % ) और उत्खनान ( ९ % ) की बहुत महत्वपूरण भूमिका है , हलाकि कृषि ( २.८ % ) में वृद्वि उस तेजी से नहीं हो रही है | इस समय जबकि आर्थिक मंदी से जूझ रहे अमरीका ( २.५ % ), जापान ( ०.९ % ) , इंग्लैण्ड ( ०.८ % ), जर्मनी ( ०.७ % ) तथा रशिया ( २.७ % ) की अर्थव्यवस्थाएं बहुत मामूली दर से बढ रही है , ऐसे में भारत की यह वृद्वि दर निश्चित रूप से भारत की बढती आर्थिक शक्ति को प्रकट करती है | अमरीका से शुरू होने वाली वर्तमान आर्थिक मंदी ने जहाँ सब विकसित देशो की अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया वहीँ भारत इस के गंभीर परिणामो से बचा रहा | यहाँ तक की चीन की विकास दर इस मंदी के कारण १३ % से कम हो कर मात्र ६ % तक रह गयी थी वहीँ भारत में यह गिरावट बहुत कम रही | चीन का शयेर बाज़ार ५० % तक नीचे आ गया था जबकि भारत में २५ % से भी कम गिरावट  देखी गयी | इतना ही नहीं तो भारत ने मंदी के इस काल में कुछ समय तक चीन से भी दोगुनी वृद्वि अपनी G . D. P में की जबकि भारत के बैंक चीन से आधे ऋण ही दे रहे हैं | प्रसिद्व अर्थशास्त्री जिम वालकर के अनुसार भारत चीन के मुकाबले ऋण से ज्यादा उत्पादन कर रहा है | भारत की अर्थव्यवस्था की यह वृद्वि दर भले ही एक चमत्कार प्रतीत होती हो परन्तु अगर हम पिछले एक दशक की वृद्वि देखें तो ध्यान में आता है की यह वृद्वि बहुत ही स्वाभाविक रूप से हासिल हो रही है तो १९९७ से भारत के वृद्वि दर लगातार ७ % से अधिक बनी हुई है | 

समय अविधि : वृद्वि दर 

१९६० - 19८० : ३.५ % 
१९८० - 19९० : ५.४ %
१९९० - २००० : ४.४ %
२००० - २००९ : ६.४ %
हलाकि १९५० से लेकर २००० तक भारत की अर्थव्यवस्था काफी धीमे रफ़्तार से बढ रही थी और दुनिया के बाकी देशो के मुकाबले हम काफी काफी पीछे थे | जापान ने १९५५ -८५ के ३० वर्षो में अपना उत्पादन ८ गुना बढाया जबकि कोरिया ने १९७०-२००० के दौरान ९ गुना बढाया | चीन जोकि १९७८ में भारत के समकक्ष था , २००५ आते तक अपनी उत्पदान को १० गुना बढ़ा कर हम से काफी आगे निकल गया | परन्तु पिछले लगभग एक दशक से भारत की तेजी से बढती अर्थव्यवस्था ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है | भारत की इस वृद्वि दर ने भारत की प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्वि की है | 

वर्ष : प्रति व्यक्ति आय 
२००२ - ०३ : १९०४० रू 
२००३ - ०४ : २०९८९ रू 
२००४ - ०५ : २३२४१ रू 
२००८ -०९ : ३७४९० रू 

हलाकि अभी भी भारत की प्रति व्यक्ति आय अमरीका , जापान और चीन के मुकाबले काफी कम है परन्तु बढती वृद्वि दर से इसके तेजी से बड़ने की सम्भावना है | परन्तु एक बहुत महत्व का प्रशन है यह है क़ि क्या भारत की यह विकास दर ऐसे ही बढती रहेगी या इस में गिरावट आ जाएगी ? | अपनी रिपोर्ट " INDIA 's Rising Growth Potential " में Goldman Sach ने २०२० तक भारत की विकास दर 8 % रहने की सम्भावना व्यक्त की है | रिपोर्ट के अनुसार २०३२ तक भारत जापान को तथा २०५० तक अमरीका को पीछे छोड़ कर चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा | रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की २००७-२०२० के १३ सालो में भारत की G. D. P चार गुना बढ जाएगी | उसका मानना है की भारत की बढती युवा जनसँख्या , तेजी से बढती शहरी आबादी , कुशल कारीगर तथा ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के दम पर भारत की वृद्वि लगातार जारी रहेगी| अपनी इस रिपोर्ट में Goldman ने भारत की Trade - GDP RATIO ( जो की १९९० में १३ % थी अब बढ कर ३१ % हो गयी है ) को भी भारत की शक्ति मानते हुए दावा किया है की यह आने वाले समय में और बढेगी जिस कारण भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी |
Ch 2 भारत जो कभी सोने की चिडिया था.......
आज जब भारत समृद्वि और खुशहाली की और बढ रहा है तो इसको बहुत आश्चर्यजनक माना जा रहा है | क्यूंकि भारत की छवि एक गरीब, अनपड़ .और भूखे नंगे देश के नाते बनी हुई है और यही माना जाता है की भारत हमेशा से ही एक गरीब देश रहा है | यहाँ तक की भारत में भी एक बहुत बड़ी संख्या है जिनके मन में भी यही पक्की धारणा बनी हुई है | भारत के वर्तमान गृहमंत्री श्री पी चिन्दम्बर्म एक साल पहले ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में एक कार्यकर्म में हिस्सा लेने गये थे | वहां भाषण देते हुए उन्होंने कहा की यह जो कहा जाता है की भारत बहुत अमीर देश था, यह सब मिथ्या बातें है, भारत की जो तरक्की हो रही है वह अभी ही हो रही है इसके पहले कुछ नहीं था | इसलिए हमें निश्चित रूप से इस बात का गहरायी से विश्लेषण करना होगा की क्या भारत को जो सोने की चिड़िया कहा जाता था वह सिर्फ एक मिथ ही था या उस में कुछ सचाई भी थी | क्यूंकि इतिहास की सही समझ के बिना न तो वर्तमान का सही विश्लेषण हो सकता है और न ही भविष्य की ठीक योजना बनायीं जा सकती है |

अगर हम भारत के प्राचीन समय की अर्थव्यवस्था पर उपलब्ध साहित्य का अध्ययन करते है तो ध्यान में आता है की बहुत से भारतीय और विदेशी अर्थशास्त्रियो और इतिहासकारों ने भारत की समृद्वि की बात कही है | भारत में 600 इसा पूर्व महाजनपद काल में चांदी के सिक्को का प्रचलन शुरू हो गया था | मौर्या काल ने भारत को राजनीतिक रूप से एक करने के साथ ही आर्थिक रूप से भी शक्तिशाली बनाया | विशव के महान अर्थ चिन्तक कौटिल्य ने "अर्थशास्त्र " की रचना कर दुनिया को अर्थ के बारे में एक नया विचार दिया जो आज भी प्रासंगिक है | पहली शताब्दी से लेकर 15 वी शताब्दी तक भारत की अर्थव्यवस्था विशव की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था थी | विख्यात आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन ने अपनी पुस्तक " The world economy : A Millenial Perspective " में विस्तार से भारत की आर्थिक शक्ति का जिक्र किया है | मैडिसन के अनुसार पहली शताब्दी में विशव् के सकल घरेलू उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी 32 .9 % थी जो 1000 इसवी तक भी 28 .9 % बनी रही और भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा | यह आंकड़ा बहुत दिलचस्प जान पड़ता है क्यूंकि आज अपने आपको बहुत समृद्व और शक्तिशाली मानने वाले देश कभी भी इस स्तर तक नहीं पहुँच पाए हैं की पूरे विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई एक ही देश से आता हो | चोल राजायो द्वारा कावेरी नदी पर बने डैम ( विश्व के प्राचीनतम डेमो में से एक ) से लेकर कई प्रकार के ऐसे काम हुए जिस कारण से भारत कृषि उत्पादों का बहुत बडा निर्यातक देश बन गया था | इसके अतिरिक्त चमड़ा, धातु, हीरा और कपडा उद्योग भी उस काल में बहुत फल फूला जिस कारण से भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में हिस्सा बढता गया | भारत की यह समृद्वि विदेशी हमलावरों को हमेशा आकर्षित करती रही है | महमूद गजनवी ने अकेले ही ६०,०९८,३०० दिरहम भारत से लुटे जिसमें सोमनाथ और कनौज से लुटे २०-२० करोड़ दिरहम भी शामिल है | यह लूट का सिलसला निरंतर चलता रहा | १३९८ में तैमूर लंग के हमलो में दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत को बेरहमी से लूटा गया, किसी भी एक हमलावर द्वारा भारत की सबसे बड़ी लूट उसी समय पर हुई जिसने इस पूरे क्षेत्र की समृद्वि को छिन भिन कर दिया | परन्तु इस काल में भी गुजरात , बंगाल और दक्षिण का विजयनगर साम्राज्य समृद्वि की बुलंदियों को छू रहे थे | विजयनगर को उस समय का विश्व का सबसे व्यवस्थित शहर माना जाता था , कई विदेशी यात्रियों ने उस साम्राज्य के गौरव की कहानी लिखी है 
लगातार विदेशी हमलो और भारी लूट के बावजूद मुगलों के आने के समय भी भारत की समृद्वि कायम थी | बाबरनामा में बाबर ने इस समृद्वि की कहानी बहुत विस्तार से लिखी है | वह लिखता है की देश अनाज और उत्पादों से भरपूर था | 16 वी शताब्दी में मुग़ल काल के समय भारत 24.5 % की हिस्सेदारी के साथ चीन ( 25 %) के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था जो 18 वी शताब्दी तक बना रहा | अकबर के काल में 1600 ईस्वी में भारत की सालाना आय १७ मिलियन डालर थी जबकि इंग्लैंड 200 साल बाद 1800 ईस्वी में भी 16 मिलियन डालर के साथ भारत से पीछे था | १७०० ईस्वी में औरेन्गजैब का काल में भारत की सालाना आय 100 मिलियन डालर थी जो उस समय पुरे यूरोपे की आय से भी ज्यादा थी | भारत का कपडा बर्मा , अरब और अफ्रीका तक निर्यात किया जाता था | भारत का सिल्क परसिया , इंडोनशिया , हालैंड तथा कई यूरोपियन देशो को निर्यात किया जाता था | जहाँ एक तरफ बंगाल गन्ने के निर्यात का बडा केंद्र बन चुका था तो पूरा मालाबार क्षेत्र मसालों के निर्यात में बहुत आगे था | इन्ही मसालों के व्यापार के कारण ही पुर्तगाली समुन्दर के रास्ते भारत आना चाहते थे भारत की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत थी इस बात का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है की विदेशी सत्ता के बावजूद भारत १८वी शताब्दी तक यूरोप और अमरीका से ज्यादा खुशहाल और समृद्ध था | भारत की इस आर्थिक समृद्वि में हमारी वैज्ञानिक कृषि पद्वति का बहुत बडा योगदान था | विख्यात गांधीवादी इतिहासकार धरमपाल जी ने अंग्रेजो के सरकारी दस्तावेजो का गहन अध्ययन करके लिखी अपनी पुस्तक " The Beautiful Tree " में विस्तार से भारत की आर्थिक समृद्वि के आंकड़े दिए हैं | पुस्तक में कृषि की उत्पादकता और कृषि तकनीकी में भारत के ज्ञान का विस्तार से जिक्र किया गया है | भारत की कृषि तकनीकी कितनी वैज्ञानिक और आधुनिक थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की अंग्रेजो ने भारत की कृषि में सुधार करने के लिए जिस कृषि वैज्ञानिक अल्बर्ट हावर्ड को भारत बुलाया, वह कई साल भारत की कृषि का अध्ययन करने के बाद भारत की कृषि पद्विती का कायल हो गया | अपनी पुस्तक " An Agriculture Testamant " में हावर्ड ने लिखा है की हमारे पास भारत को सिखाने के लिए कुछ नहीं है , बल्कि हमें तो भारत से खेती करने का तरीका सीखने की जरुरत है | अपनी इस पुस्तक में उसने भारत के विभिन्न भागो में अपनायी जाने वाली कई पद्वतियो का जिक्र किया है | 

परन्तु दुर्भाग्य से यह समृद्वि अंग्रेजी साम्राज्य की भेट चढ़ गयी | 1775 से लेकर 1825 तक के ५० वर्षो में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में नयी कर व्यवस्था लागू कर दी थी और १८०० ईस्वी में कंपनी ने अपने अधिकार वाले भारत के हिस्से से ११ करोड़ डालर का सालाना कर इकठा करना शुरू कर दिया था जिस का ज्यादा हिस्सा नपोलियन के साथ युद्ध में ही खर्च किया गया | यहाँ तक की भारतीय राज्यों को ईस्ट इंडिया कम्पनी से युद्ध हरने पर युद्ध का खर्चा भी भरना पड़ता था | 1825 के बाद इंग्लैंड में आई industrial revolution ने पहली बार इंग्लैंड को यूरोप का अग्रणी देश बना दिया | विख्यात अर्थशास्त्री इंदरजीत राय के अनुसार 1850 में भारत में इंग्लैंड के कपडे का निर्यात 30 % तक पहुँच गया जिस कारन भारत के कपडा उड़ोग का उत्पादन 28 % तक कम हो गया और 1860 तक 5 ,63000 लोग बेरोजगार हो गये और यह सिलसला चलता रहा | भारत के निर्यातों पर कई तरह के प्रतिबन्ध तथा कर लगा दिए गये | भारत के नील उत्पादकों को अंग्रेजो के भारी जुलम का सामना करना पड़ा और भारत का नील निर्यात का सारा उद्योग चौपट हो गया | एक एक करके भारत के सारे उद्योग धंधे अंग्रेजी राज की नीतियों की भेट चढ़ गये | 
प्रसिद्व अर्थशास्त्री आर सी दत्त ने अंग्रजो के बढते सैनिक खर्चे , अफसरों के शाही खर्चे और लगातार बढते कर्ज को भारत की गरीबी के लिए उतरदायी माना है | आर सी दत्त ने विस्तार से लिखा है की भारत ही एक मात्र ऐसा देश था जो अपने पर होने वाले अंग्रेजी सेना के हमले का खर्च भी खुद ही उठता था और यहाँ तक की पर्शिया , तिब्बत , अफगानिस्तान ,चीन, सूडान और इगिप्त के विरुद्ध ब्रिटेन की लडाई का खर्चा भी भारत ने ही उठाया | अंग्रेजी विद्वान William Digby ने अपनी पुस्तक " Prosperous India," में विस्तार से बताया है की १९वि शताब्दी में भारत से GBP 6,080,172,०२१ ( ४२५५६१ करोड़ रुपये ) ब्रिटेन ले जाये गये | इसी लूट के कारण १८७५ में , Salisbury , the secretary of state ने कहा की , “As India must be bled, it must be done judiciously”. इसी का परिणाम था 1925 ईस्वी में अंग्रेजी राज की भारत से सालाना आय १२५ मिलियन डालर तक पहुँच गयी और इसी के सहारे इंग्लैंड अमरीका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया जबकि भारत चीन, फ्रांस और जर्मनी के बाद पांचवे नंबर पर आ गया | 
अंग्रेजो द्वारा भारत के संसाधनों की लूट की नीति के तेहत जहाँ एक और भारत के उद्योग बर्बाद हो रहे थे वहीँ दूसरी और जमींदारी व्यवस्था और भारी करो के बोझ से भारतीय कृषि भी संकट में आया गयी थी | 1925 आते आते भारत खाद्य पदार्थो का निर्यात करने वाले देश से आयात करने वाला देश बन चुका था | 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने भारत पर भी बहुत गंभीर परभाव डाला | अंग्रेजो की लगातार करो में वृद्धि की नीति ने अर्थव्यवस्था को बहुत हानी पहुंचाई , नमक पर कर लगाने के विरोध में गाँधी जी का एतहासिक आन्दोलन भी अंग्रेजो की भारत को लूटने की नीतियों के विरोध में ही था | भारतीय इतिहासकार रजत कान्त राय ने अपनी economic drain theory में बहुत विस्तार से सिद्ध किया की कैसे अंग्रेजो ने भारत की अर्थ व्यवस्था को निचोड़ा और कैसे भारत के संसाधनों से इंग्लैंड समृद्ध हुआ | अंग्रेजो की इस शोषण की नीति को स्वयं इंग्लैंड के ही राजनीतक नेता एडमंड बर्के ने 1780 में पहली बार उजागर किया था जब उसने ईस्ट इंडिया कंपनी पर भारत को लूटने और भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का आरोप लगाया था |
एक अच्छी पुस्तक शशि थरूर द्वारा लिखित An Era of Darkness भी बड़ी आ नही शैली में अंग्रेजो की लूट को प्रदर्शित करती है।  एक तरफ जब ज्यादातर  भारतीय चिन्तक और विदेशी विद्वान भी अंग्रेजी शासन को भारत की आर्थिक कंगाली का कारण मानते है ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह का ब्रिटेन की संसद में दिया ब्यान आश्चर्यजनक लगता है, जिस में वह भारत की तरक्की में अंग्रेजो के योगदान के लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं | अंग्रेजी शासन में भारत कैसे आर्थिक रूप से बर्बाद हुआ इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की 1700 ईस्वी में विश्व की आय में भारत का हिस्सा 24 . 4 % ( जबकि उस समय पूरे यूरोप का हिस्सा २३ .३ % ही था ) था जो 1952 में मात्र ३.८ % ही रह गया | लगभग २०० वर्ष के अंग्रेजी शासन ने सोने की चिडिया कहलाने वाले भारत को गरीबी और भुखमरी का शिकार देश बना दिया

क्षमताएं ........जिन के दम पर भारत महाशक्ति बनेगा 
हरेक व्यक्ति , समाज और राष्ट्र की अपनी कुछ आंतरिक क्षमताएं होती है जिनके दम पर वह उन्नति के शिखर तक पहुँचता है | कभी वह प्रकट रूप में होती है तो कभी लुप्त भी रहती हैं | विकास करने की सम्भावना इसी बात पर निर्भर करती है की हम अपनी क्ष्म्तायो का कैसे उपयोग करते हैं | भारत के पास भी ऐसी कई क्षमताएं है जो या तो अभी प्रकट नहीं है या जिनका हम ठीक से उपयोग नहीं कर पा रहा हैं | अगर  भारत को आगे बदना है तो हमें अपनी क्ष्म्तायो को पहचानना होगा तथा उन्हें और विकसित करना होगा | भारत की ऐसी ही कुछ प्रमुख क्ष्म्तायो का हम यहाँ विश्लेषण करेंगे |
संभावनाएं : 

1.भारत की बढती युवा शक्ति :
आज भले ही भारत में बढती आबादी को सबसे बड़ी समस्या माना जा रहा है , परन्तु भारत की यही बढती जनसँख्या भारत की सबसे बड़ी शक्ति भी बन सकती है | भारत इस समय दुनिया की दूसरी सब से बड़ी जनसँख्या वाला देश है और 2050 तक यह दुनिया में नंबर एक बन जायेगा | अगर हम भारत की जनसँख्या के आंकड़ो का विशलेष करें करें तो ध्यान में आता है की भारत में युवायो की संख्या का प्रतिशत बढता जा रहा है | 

Population Projections (millions)

Year 2000 2005 2010 2015 2020
Total 1010 1093 1175 1256 1331
Under 15 361 368 370 372 373
15-64 604 673 747 819 882
65+ 45 51 58 65 76

अगर हम चीन और अमरीका से भारत की तुलना करें तो ध्यान में आता है की भारत में इस समय लगभग 50 % जनसँख्या 25 साल से नीचे है जबकि अमरीका में यह 30 % तथा चीन में 40 % है | इतना ही नही तो भारत की औसत आयु इस समय 25.9 साल है जबकि चीन की 35.2 % तथा अमरीका की 36.8 % है | भारत इस समय दुनिया का सबसे युवा देश है और यह प्रतिशत और भी बढने वाला है क्यूंकि भारत में ३०.१ % लोग १४ साल से कम आयु के है जो चीन ( १८.९ % ) तथा अमरीका ( २०.१ % ) के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं , इसका अर्थ है की आने वाले समय में जब यह बचे बड़े होंगे तो भारत की युवा शक्ति का प्रतिशत दुनिया के बाकी देशो के मुकाबले कहीं ज्यादा होगा |

Population: India, China and U.S.A comparison
INDIA CHINA US 
Population 1.180 bil 1.337 bil 310 mil 
Rank 2 1 3 
growth rate 1.38% 0.49% 0.97% 
Age structure 
0-14 years 30.1% 18.9% 20.1% 
15-64 years 64.6% 73.4% 66.9% 
65+ years 5.3% 8.6% 13.0% 
Median age 25.9 35.2 36.8 
Urbanization 29.0% 43.0% 82.0% 
rate of urbanization 2.4% 2.7% 1.3% 
आज भारत में Working Age Population की प्रतिशत लगातार बढती जा रही है | जहाँ एक और जापान, रशिया की प्रतिशत काम होती जा रही है , ब्राज़ील और चीन बहुत काम रफ़्तार से बढ रहा है , वहीँ भारत का प्रतिशत लगातार बढता जा रहा है | 

आने वाले २० सालो में जब दुनिया में वृद लोग बढ रहेंगे , भारत और युवा होता जा रहा होगा |भारत की यही युवा शक्ति भारत को महाशक्ति बना सकती है अगर इस का ठीक से प्रयोग किया जाये |
2. भारत की परिवार व्यवस्था 
भारत की परिवार व्यवस्था भारत की मजबूत अर्थ व्यवस्था का आधार है | भले ही परिवार को अर्थव्यस्था से जोड़ने की बात अटपटी लगती हो परन्तु गहरायी से अध्यन करने से ध्यान में आता है की कैसे भारत के परिवार भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं | अमरीका , इंग्लैंड ,ऑस्ट्रेलिया जैसे देश व्यक्ति केन्द्रित आर्थिक मॉडल के आधार पर आगे बढ रहे हैं जिस का परिणाम है कम घरेलू बचत दर , ज्यादा घरेलू ऋण , शेयर बाज़ार में ज्यादा निवेश | पारिवारिक व्यवस्था के विघटन के कारण से आज उन सरकारों का बहुत बड़ा बजट बच्चो , बेरोजागरो तथा बूड़े लोगो पर खर्च हो रहा है | इस भारी सामाजिक सुरक्षा खर्च ने उन देशो की अर्थ व्यवस्था के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है | भारत में आज भी सामाजिक सुरक्षा का काम परिवार करता है | जिस कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बोझ नही पड़ता | परिवार केन्द्रित समाज की अर्थव्यवस्था होने के कारण से भारत की घरेलू बचत दर दुनिया में सब से ज्यादा ३६ % है ( जोकि अमरीका के ६ % और जापान के २ % के मुकाबले कहीं ज्यादा है ) ,जिस कारण भारत विदेशी पूँजी निवेश पर निर्भर नहीं है , जो भारत की सबसे बड़ी शक्ति है | इतना ही नहीं तो भारत की बचत का सिर्फ २ % हिस्सा ही शयेर बाज़ार में जाता है ( जबकि अमरीका का लगभग ५० % ), बाकी सुरक्षित निवेश होता है |

3. भारत की मेधा और अथाह ज्ञान 
भारत अपने ज्ञान और बुद्वि के कारण ही हजारो वर्षो तक समृद्ध और शक्तिशाली देश बना रहा है | भारत की यही मेधा आने वाले समय नें भी भारत को महाशक्ति बनाएगी | आज भी भारत की सब भी बड़ी ताकत उसके लोगो की प्रखर बुद्वि और ज्ञान है | अगर हम दुनिया के अमीर देशो की अर्थ व्यवस्था का अध्यन करें तो ध्यान में आता है की उनकी मजबूत अर्थव्यवस्था के पीछे धन की शक्ति नहीं बल्कि ज्ञान की शक्ति है | नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशाष्त्री रोबोर्ट सोरो ने एक अध्ययन में बताया है की अमरीका की 1900 से 1950 तक की वृद्वि का 7/8 भाग ज्ञान के विकास और प्रसार से ही आया जबकि पूँजी की वृद्वि में हिस्सेदारी 1/8 ही थी | एक अन्य अर्थशास्त्री डेनिसन ने अपने शोध में यह निष्कर्ष निकला है की 1929 से 1982 तक के अमरीका के विकास का 94 % हिस्स ज्ञान , शोध और उसके प्रसार से आया है जबकि 6 % भागीदारी पूँजी की रही है | आज भी अमरीका की कमाई का 60 % हिस्सा सिर्फ उनके द्वारा किये गये शोध के पटेंट से ही आता है | इसी से अंदाजा लगया जा सकता है की किस प्रकार से ज्ञान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार बन सकता है | 
भारत के पास आज विश्व का सबसे बड़ा skilled man power है | भारत हर साल लगभग २ लाख वैज्ञानिक , इन्जिनिअर्स तथा तकनीकि विशेषज्ञ पैदा कर रहा है | भारत के IIT तथा IIM जैसे संसथान विश्व स्तर के संसथान बन चुके है हालाकि भारत अभी भी अपनी क्षमता के अनुरूप मानव संसाधन का विकास नही कर पा रहा है तो भी आज पूरे विश्व में भारतीय मेधा की गूँज सुनाई दे रही है | सूचना प्रोधोगिकी में भारत आज बड़ी शक्ति बन के उभरा है | National Association of Software and Service Companies ( NASSCOM ) के अनुसार भारत ki I .T Indusrty का विस्तार 1994-95 के 1.73 बिलियन डालर से बढ कर 2003-04 में 19.9 बिलियन डालर तक जा पहुंचा गया | Department of Information की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत की I.T- B.P.O क्षत्र से 2009-10 की आय 73.1 बिलियन डालर रही जो 2008-09 के 69.4 बिलियन डालर से ज्यादा है , इस समय भारत का यह क्षेत्र लगभग 5 % की दर से वृद्वि कर रहा है | इस रिपोर्ट में यह भी विश्वास व्यक्त किया गया है की 2020 तक इस कषेत्र से बहरत की आय 225 बिलियन डालर तक पहुँच जाएगी |Department of Information की ही एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का सोफ्टवेयर और सेवायो का निर्यात इस वर्ष 49 बिलियन डालर तक जा पहुंचा है और इस में पिछले वर्ष से 5.5 % की वृद्वि हुई है |सूचना प्रोधोग्की के साथ साथ भारत दवाईओं , अन्तरिक्ष तकनीकि में भी बड़ी ताकत बन कर उभरा है | 

भारत का पारम्परिक ज्ञान भारत की बहुत बड़ी शक्ति है जो अभी पूरी तरह से उपयोग नही की जा रही है | पहले तो हमने उसको नजरअंदाज ही कर रखा था परन्तु अमरीका द्वारा हल्दी और नीम के पटेंट करवा लेने से हमें इस ज्ञान का आर्थिक पक्ष ध्यान में आया है | जीवन के हर एक विषय चाहे वोह स्वस्थ्य हो , कृषि विज्ञानं हो , या लघु उद्योग हो हमारे पास पारम्परिक ज्ञान का अथाह भण्डार है जिसे अगर हम आज के युग के अनुसार ढाल कर उपयोग करें तो भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई ऊर्जा मिलेगी |
4. home driven economy 
भारत की लगतार बढती जा रही अर्थव्यवस्था भारत के घरेलू बाजार पर ही केन्द्रित है | बढती जनसँख्या के कारण बढता मध्यं वर्ग , बढती प्रति व्यक्ति आय तथा तेजी से हो रहे ढांचागत विकास ने बाज़ार में मांग को बड़ा दिया है जिस कारण भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्वि दर बढती जा रही है | भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 55 -60 % तक घरेलू उपभोग में ही जा रहा है | भारतीय अर्थव्यवस्था की यह वृद्वि चीन से अलग है क्यूंकि उसकी वृद्वि निर्यात पर आधारित है जबकि भारत की घरेलू मांग पर आधारित है | Global Enterpreneur Monitor Study के अनुसार भारत की 18-64 साल की जनसँख्या का 18 % उद्यमी है जबकि अमरीका के ११% और चीन के 12 % लोग ही उद्यमी है | भारत के इन घरेलू उद्यमियों की सफलता ही भारत की अर्थ व्यवस्था की शक्ति है | 
भारत का नियंत्रित बैंकिंग क्षेत्र भी एक बड़ी ताकत है , जिस कारण भारत पर वैश्विक आर्थिक मंदी का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है हालाकि लगातार दबाब पड़ रहा है की भारत अपने बैंकिंग सेक्टर का उदारीकरण करे | भारत की अर्थव्यवस्था भारत की बचत पर ज्यादा निर्भर है न की विदेशी पूँजी निवेश पर , यह भी हमारी एक बड़ी ताकत है जो हमें आने वाले दिनों में महाशक्ति बनाएगी |

क्या करना होगा ???

खाद्य सुरक्षा : कोई भी देश विकसित नहीं कहला सकता अगर उसके नागरिक भूख और कुपोषण के शिकार हैं | इस लिए अगर भारत को आर्थिक महाशक्ति बनना है तो भारत के हर नागरिक को पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाना होगा | भारत की बढती जनसँख्या के लिए खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है | आज जबकि एक तरफ दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे लोग भारत में है , हर दिन लगभग ५००० बच्चे कुपोषण से देश में मर रहे हैं , देश के अनाज भण्डारो में अनाज सड़ रहा है | देश में बहस चल रही है की क्या सब को भर पेट भोजन उपलभध करवाना संभव है या नहीं ? अभी हाल ही में सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा बिल भी लाया गया है जिसका उद्देश्य खाद्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है | भारत के विख्यात खाद्य विशेषज्ञ देवेंदर शर्मा के अनुसार हमें अपने जन वितरण प्रणाली को पुनर्गठित करना होगा | इस समय भारत को भूख मुक्त करने के लिए एक अनुमान के अनुसार लगभग ६० मिलियन टन अनाज की जरुरत है ( 35 किलोग्राम प्रति परिवार ) जिस पर 1.10 लाख करोड़ रूपये खर्च होंगे | अगर इस वर्ष के भारत सरकार के बजट पर नजर डाले तो 5 लाख करोड़ रूपये की टैक्स छूट दी गयी है | देवेंदर शर्मा के अनुसार इस टैक्स छूट का एक हिस्सा अगर वापिस ले लिया जाये तो न सिर्फ देश के सभ लोगो को भोजन दिया जा सकता है बल्कि पीने का साफ़ पानी भी उपलभध करवाया जा सकता है | भारत के ६,००,००० लाख गाँवो को भूख मुक्त करने के लिए अनाज बैंक योजना लागू करनी होगी और प्रयास करना होगा की हर एक गाँव की जरुरत १०० किलोमीटर के घेरे में ही हो | हमें भी ब्राज़ील की तरह Zero Hunger Programme शुरू करना होगा तथा उसके लिए हमें अपने देश के सबसे ज्यादा भूखे और कुपोषित लोगो की संख्या निश्चित करने के लिए एक भूख रेखा परिभाषित करनी पड़ेगी | इन लोगो के लिए तुरंत खाद्य पदार्थ उपलभ्द करवाने होगे | इसके साथ ही गरीबी रेखा को भी पुनर परिभाषित करना होगा | 
भारत की बढती जनसँख्या के साथ ही खाद्य पदार्थो की मांग भी तेजी से बढेगी | भारत के योजना आयोग के एक अनुमान के अनुसार २०२० तक भारत को ११९ मिलियन टन चावल , ९२ मिलियन टन गेहू , १५.६ मिलियन टन कोर्स सीर्ल्स , १९.५ मिलियन टन डाले तथा १६६ मिलियन टन दूध चाहिए होगा | इस बढती मांग को अगर पूरा करना है तो भारत की खेती को फिर से अपनी योजनायो में प्राथमिकता देनी होगी | २०२० तक खेती की वृद्वि दर ४-५ % तक होगी तो ही भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर रह सकता है| इसके लिए कृषि में एक नई क्रांति की जरुरत होगी परन्तु ध्यान रखना होगा की यह क्रांति हरित क्रांति जैसी बाहर से नक़ल की हुई नहीं हो | भारत दुनिया का सबसे पुराना खेती करने वाला देश है , अपने उसी हजारो वर्षो के परम्परिक खेती के ज्ञान के आधार पर हमें अपनी नई क्रांति का खाका तयार करना होगा | आज भारत की उत्पादकता दुनिया के बाकी देशो के मुकाबले में काफी काम है | आज मेक्सिको में कपास का प्रति एकड उत्पादन हमसे ४ गुना तथा अमरीका में ३ गुना है | हमें अपनी उत्पादकता बदानी होगी और इसके लिए हमें अपनी ज़मीन , पानी के स्रोतों और बीज की उत्पादन क्षमता बदने की जरुरत है | इसके लिए हमें शोध पर विशेष ध्यान देना होगा | भारत बीज , जैविक खाद , जैविक कीटनाशक पर शोध करके हम न सिर्फ अपनी उत्पादन क्षमता बड़ा सकते है बल्कि लागत और पर्यावरण के खतरे को भी कम कर सकते है | अभी हाल ही में देवेंदर शर्मा ने अपने एक लेख में खुलासा किया की उन्हें ब्राज़ील में जा कर पता चला की कैसे ब्राज़ील ने भारत की देसी गाय की किस्मो का आयात किया और फिर उनपर शोध करके उन्हें दुनिया की सबसे ज्यादा दूध देने वाली किस्मो में तब्दील कर दिया | यह हमारे नीति निर्धारको के लिए एक सबक है जो बिना सोचे समझे हमेशा विदेशी माडल को भारत पर लागू करने की फ़िराक में रहते है |
भारत में खेती को उन्नत करने के लिए हमें किसान को तकनीकी रूप से मजबूत बनाना होगा , ज़मीन की विशेषता को देखते हुए अलग अलग क्षेत्रो के लिए फसल का निर्धारण करना होगा , किसानो के लिए सुव्यवस्थित बाज़ार उपलब्ध करवाना होगा , फसल की कीमत को उसकी लागत से जोड़ना होगा , भूमि सुधारो को पूरी तरह से लागू करना होगा , गाँवों में ढांचागत विकास को मज्बूओत बनाना होगा , बेहतर भण्डारण की व्यवस्था करनी होगी , खेती आधारित उद्योग को प्रोत्साहित करना होगा | 
खेती में आज भारत को महाशक्ति बनाने की अपार संभावनाएं है | दुनिया में सबसे ज्यादा खेती योग्य भूमि , जैविक विविद्ता , सस्ती श्रम शक्ति तथा agroclimatic variety के दम पर भारत न सिर्फ अपने लोगो का पेट भार सकता है बल्कि विश्व को खाद्यान निर्यात करने की भी समर्थ रखता है | विश्व के खाद्यान बाज़ार पर कब्ज़ा ज़माने का भारत के पास पर्याप्त अवसर है परन्तु इसके लिए हमें भारत के किसानो और भारत की खेती को विदेशी कंपनियों की शिकंजे से बचाना होगा | खेती के निगमी करण और कुदरती स्रोतों के निजीकरण के सुझावों को नजरअंदाज करक
भारत के समक्ष चुनौतिया भयंकर गरीबी और लगातार बढती जा रही असमानता 
भले ही आज दुनिया में भारत को एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में पहचान मिल रही है और निश्चित रूप से भारत इस और अग्रसर भी है परन्तु सचाई यह भी है की आज भी भारत के ज्यादतर लोग भयंकर गरीबी की मार झेल रहे हैं तथा असमानता बढती जा रही है , जो भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने के रस्ते में सब से बड़ी चुनौती है जिस का हमें सामना करना है | विश्व बैंक की 2005 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत के 42 % लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा ( $ १.२५ प्रतिदिन ) से नीचे हैं हालाकि यह संख्या 1981 ( 60 प्रतिशत थी ) के मुकाबले काफी कम है | NATIONAL COMMISSION FOR INTERPRISES IN THE UNORGANISED SECTOR की 2007 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत के 77 % लोग ( 836 मिलियन )प्रतिदिन 20 रुपये से भी कम में गुजारा कर रहे हैं जो इस बात की और इंगित करता है की देश के बहुगिनती लोग कैसी भयंकर गरीबी में जी रहे हैं | UNDP की मदद से OXFORD POVERT AND HUMAN DEVELOPMENT INITIATIVE द्वारा २०१० ही में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है की भारत के आठ राज्यों बिहार , छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश , झारखण्ड , उत्तरप्रदेश , पश्चिम बंगाल , ओड़िसा तथा राजस्थान में 421 मिलियन लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं जोकि अफ्रीका के 26 सबसे गरीब देशो की गरीब संख्या से भी ज्यादा हैं | यह अनुमान Multidimensional Povety Index की मदद से लगाया गया है जिसे 1997 से HUMAN DEVELOPMENT REPORT बनाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है | 
ऐसा नहीं है है की भारत में गरीबी को समाप्त करने के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं | आज़ादी के बाद से निरंतर सभी सरकारे गरीबी को समाप्त करने के बड़े बड़े दावे करती रही हैं , कई बार गरीबी हटायो का नारा दे कर वोट हासिल किये जाते रहे हैं परन्तु गरीबी जस की तस बनी हुई है | निश्चत रूप से आज़ादी के बाद गरीबी के प्रतिशत में कुछ कमी आई है | वैश्वीकरण व् उदारीकरण की नीतियों के पैरोकार यह दावा करते रहते हैं की 1992 के बाद लगातार गरीबी में कमी आई है और आर्थिक सुधारों के कारन से आने वाले समय में इस में और तेजी आएगी | सरकार के योजना आयोग के आंकड़े भी गरीबी में लगातार कमी की बात कर रहे हैं , गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो की संख्या 1977 -78 में 51 .3 % थी जो 2005 -6 में 27 .5 % रह गयी है | परन्तु पी . साईनाथ जैसे कई चिन्तक इस बात की और भी इशारा कर रहे हैं की अगर गरीबी सच मुच में कम हो रही है तो फिर भारत का Human Development Index में स्थान 122 ( 1992 में ) से गिर कर 132 ( 2008 में ) तक कैसे पहुँच गया है | 
World Hunger Index में 119 देशो में भारत का स्थान 94 वा है जो यह दर्शाने के लिए काफी है की भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे रहते हैं | इस गरीबी और भूख का ही परिणाम है की दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषण के शिकार लोग ( 230 मिलियन ) भारत में ही हैं | आज दुनिया के 42.5 % कुपोषित बच्चे भारत में हैं | जबकि विश्व के कम् भार वाले 49 % बच्चे भी अकेले भारत में ही है | आज जब हम यह सोच रहे हैं की भारत कैसे महाशक्ति बन कर दुनिया में उभरे , यह सोचना बहुत जरुरी है की कुपोषित और भूख से पीड़ित बच्चो कैसे आने वाले समय में भारत को शक्तिशाली बनाने में अपना योगदान देंगे | निश्चित रूप से हमें भूख , गरीबी और असमानता की इस चुनौती से निपटाना ही होगा | 

लगातार बढती बेरोजगारी 
भारत लगातार बढती हुई बेरोजगारी से जूझ रहा है | लगातार बढती जनसँख्या के कारण श्रम शक्ति हर साल बढती जा रही है परन्तु उस अनुपात में रोजगार के साधन न बड़ने के कारण बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार होते जा रहे हैं | अगर हम पिछले कुछ वर्षो की बेरोजगारी की दर का अध्यन करें तो ध्यान में आता है की बहुत सारे दावों के बावजूद भी बेरोजगारी लगातार बढती ही जा रही है | 

YearUnemployment rateRankPercent ChangeDate of Information
2003 8.80 %110 2002
2004 9.50 %1057.95 %2003
2005 9.20 %83-3.16 %2004 est.
2006 8.90 %91-3.26 %2005 est.
2007 7.80 %92-12.36 %2006 est.
2008 7.20 %89-7.69 %2007 est.
2009 6.80 %85-5.56 %2008 est.
2010 10.70 %12157.35 %2009 est

वर्तमान में देश में बेरोजगारी की दर 10.7 % तक पहुँच चुकी है जोकि अमरीका ( ९.६ % ), चीन ( ४.१ %), जापान ( ५.१ %) के मुकाबले में कहीं ज्यादा है | 

भारत सरकार के Labour Bureau द्वारा करवाए गए Employment - Unemployment survey 2009-10 की रिपोर्ट भारत में बेरोजगारी की विस्तृत स्थिति को उजागर करती है | रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश की अनुमानित जनसँख्या 1182 मिलियन है जिस में काम करने योग्य 15 साल से लेकर 59 साल तक के लोगो की संख्या 65 % है | पूरे देश में 238 मिलियन परिवार हैं जिनमें 172 मिलियन गाँव में तथा 66 मिलियन शहर में हैं |

रिपोर्ट के अनुसार भारत की Labour Participation Ratio 359 व्यक्ति ( प्रति 1000 व्यक्ति ) है , जिस के अनुसार भारत में 424 मिलियन लोग या तो काम कर रहे है या काम करने योग्य है | वर्तमान में भारत में बेरोजगारी की दर 9 .4 % है , इसके हिसाब से इस समय लगभग 40 मिलियन लोग भारत में बेरोजगार है | हलाकि देश में बेरोजगारी की स्थिति इस सरकारी आंकड़े से भी ज्यादा भयंकर है |
भारत में बढती जा रही इस बेरोजगारी की समस्या के कारणों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है | भारत में श्रम शक्ति २ % सालाना की रफ़्तार से बढ रही है , जिस के अनुसार लगभग 7 - 8 .5 मिलियन लोग हर साल बढ जाते हैं जबकि रोजगार के साधन उस गति से नहीं बढ रहे हैं | आज़ादी के बाद से जारी आर्थिक नीतियाँ हमेशा उत्पादन पर ही केन्द्रित रही हैं जिस कारण रोजगार के प्रयाप्त मोके नही मिल सके | देश में वैश्वीकरण की नीतियाँ लागू होने के बाद स्थिति और भी बिगडती जा रही है | देश को रोजगार देने वाले दो बड़े क्षेत्र , कृषि और लघु उद्योग , वैश्वीकरण की नीतियों की मार झेल रहे हैं | 

बदहाल खेती ....बेहाल किसान 

खेती भारत की आत्मा है , भारत की संस्कृति और जीवन पद्वति में इस का महत्व का स्थान है | आर्थिक द्रष्टि से भी खेती भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है | आज भी भारत के 52% लोग अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है तथा सकल घरेलू उत्पाद का 16.6 % हिस्सा खेती से ही आता है | परन्तु दुर्भाग्य से आज यही खेती गंभीर संकट मैं है | देश के बहुगिनती लोग जिस क्षेत्र से रोजगार पाते है उसकी वृद्धि दर लगातार कम होती जा रही है , 1985-90 तक कृषि की वृद्धि दर 3.2 % थी जो 1997-2002 में काम हो कर 2.1 % हो गयी | आज जबकि भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 10 % की रफ़्तार से बढ रही है वहीँ कृषि सिर्फ 1.9 % की रफ़्तार से ही बढ रही है | कृषि की इस ख़राब हालत के कारण जहाँ भारत के लिए गंभीर खाद्य संकट खड़ा हो गया है वहीँ ग्रामीण रोजगार पर भी इस का भयंकर परिणाम हुआ है | 
भारत में खाद्यान के उत्पादन के आंकड़ो पर अगर नजर डालें तो ध्यान में आता है की भले ही इस में लगातार वृद्धि हो रही है परन्तु वृद्धि की दर कम होती जा रही है | 1950-51 से लेकर 1960-61 के दस वर्षो में वृद्धि की दर 4.9 % थी जो 1990-91 से लेकर 2000-01 में मात्र 1.10 % रह गयी है |

RiceWheatCoarse CerealsPulsesTotal food grainsGrowth Rate
1950-5120.586.4615.388.4150.82-
1960-6134.581123.7412.782.024.90
1970-7142.2223.8330.5511.82108.432.83
1980-8153.6336.3129.0210.63129.591.80
1990-9174.2955.1432.714.26176.393.13
2000-0184.9869.6831.0811.07196.811.10

उत्पादन की वृद्धि दर में कमी के साथ ही कृषि में रोजगार की वृद्धि दर भी लगतार कम होती जा रही है | खेती की बदतर होती जा रही इस हालत के कारण किसान भी बदहाल हो गये हैं | हरित क्रांति की सफलता की चमक समाप्त हो गयी है , कृषि में उत्पादन का खर्चा बढता जा रहा है जबकि उत्पादन उस अनुपात में नहीं बढ रहा , जिसके कारण किसान आर्थिक रूप से कंगाल होते जा रहे हैं , कर्जा बढता जा रहा है | जहाँ एक और किसान आर्थिक संकट के कारण आत्महत्या कर रहे हैं वहीँ दूसरी और कीटनाशको , रसायनिक खादों के प्रयोग से पर्यावरण का गंभीर संकट खड़ा हो गया है | 
वैश्वीकरण का खेती पर प्रभाव : 1991 से देश में जारी वैश्वीकरण की आर्थिक नीतियों ने सब से ज्यादा खेती को ही प्रभावित किया है | इन नीतियों के कारण से आज भारत में खेती लाभ का व्यवसाय नहीं रह गया है | यही कारण है की इन नीतियों के लागू होने के पहले ही दशक में 1991 से लेकर 2001 के 10 वर्षो में 8 मिलियन किसान खेती से बाहर हो गये थे , अगले दस वर्षों में यह गिनती कितनी बढेगी इस का पता तो 2011 की जनगणना के बाद ही पता चलेगा परन्तु निश्चित रूप से यह संख्या बड़ने वाली है | खेती की ख़राब होती हालत का पता इससे ही चलता है की 1993-2007 के 15 वर्षो में खाद्यान की उपलब्धता 510 ग्राम प्रति व्यक्ति से काम हो कर 422 ग्राम प्रति व्यक्ति रह गयी है | खेती पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जा रहा है | किसान को कपास का जो बीज 1990 में 6-7 रूपये प्रति किलोग्राम मिल जाता था वहीँ बीज मोंसैंटो जैसी बड़ी कंपनिया बी. टी कपास के नाम पर 2005 आते आते 450 ग्राम के पैक में 1650-1800 रूपये तक बेचने लगी थी | इन बीजो के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग भी बढता जा रहा है जिस कारण से किसान लगतार कर्जे के बोझ तले दबते जा रहे हैं | 1991 से लेकर 2001 के दस सालो में कर्ज के नीचे दबे किसानो की संख्या 26 % से बढकर 48.6 % हो गयी | वर्तमान में भी यह लगातार बढती जा रही है | कर्जे के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं | India's National Crime Records Bureau के अनुसार 1997 से 2007 के दस वर्षो में 182936 किसानो ने आत्महत्या की है और इन आत्महत्याओ की वार्षिक वृद्धि दर 2.4 % है | देखने में यह एक आंकड़ा लगता है लेकिन जरा गंभीरता से विचार करेंगे तो ध्यान में आता है की अगर समाज के किसी और वर्ग के लोगो ने इस का दसवा हिस्सा भी आत्महत्या की होती तो शायद देश में बवंडर मच गया होता लेकिन दुर्भाग्य से देश के अन्नदाता के जीवन की इस देश के नीति निर्मातायो को शायद ही कोई चिंता हो | किसानो की इस आत्महत्या के पीछे सबसे बड़ा कारण वह नव उदार आर्थिक नीतिया है जो विश्व बैंक के कहने पर भारत की सरकारे लागू करती जा रही हैं | इन नीतियों के अनुसार किसानो को गेहूं, धान, दाले आदि की खेती को छोड़ कर पैसे कमाने वाली फसलो को उगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए | इसी का परिणाम है की आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसान कैश क्रोप्स उगने वाले किसान ही हैं जो महंगे बीज , महंगी खाद. महंगे कीटनाशको के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर हुए |
किसान की जमीन निगलते सेज ( विशेष आर्थिक ज़ोन ) : एक तरफ जहाँ भारत में खाद्य सुरक्षा पर गंभीर संकट है वहीँ देश की जमीन को बड़ी कंपनियों और निगम निगलते जा रहे है | इस समय देश की 70 % जमीन 26 % आबादी के पास है | ११ वी पञ्च वर्षीय योजना के ख़तम होने तक देश की 90 % जमीन सिर्फ 15 % लोगो के अधिकार में होगी | विशेष आर्थिक ज़ोन ( सेज ) के नाम पर किसानो की उपजाऊ जमीन बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनिया हथिया रही है | अंग्रेजो के बनाये Land Acquisation Act 1894 की मदद से सरकारे किसानो की जमीन छीन कर सस्ते में कम्पनियों को दे रही है | Land Acquisation ( Amendment ) Bill 2007 तथा Resettlement and Rehabilitation Bill 2009 के रूप में जमीन हथियाने के नये कानून बनाये जा रहे है , हालाकि अभी तक यह संसद में पारित नहीं हो सके हैं परन्तु खतरा बरकरार है | 15 अगस्त 1955 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने लाल किले से भाषण देते हुए कहा कहा था की खाद्य पदार्थो का आयात किसी भी देश के लिए शर्मनाक है हमे आत्मनिर्भर बनना होगा | आज 55 साल बाद कांग्रेस के प्रधानमंत्री डॉ; मनमोहन सिंह कह रहे हैं की खाद्य पदार्थो का तो निर्यात भी किया जा सकता है परन्तु हमे देश के विकास के लिए उद्योग स्थापित करने ही होंगे तथा उसके लिए जमीन चाहिए ही होगी | यह सोच विश्व बैंक और विश्व व्यापर संगठन की नव उदार वादी नीतियों का ही समर्थन करती है | लेकिन इस प्रशन का उत्तर हमारे नीति निर्मातायो को जरुर देना होगा की १२० करोड़ लोगो के लिए अनाज उपलब्ध करवाने की ताकत दुनिया के किस देश के बस में है |
भारत की खेती के लिए आने वाले दिनों में एक और बड़ा खतरा सामने आने वाला है | भारत के नये बीज कानून की मदद से भारत के बीज बाज़ार पर कब्ज़ा ज़माने के बाद अब बहुराष्ट्रीय कम्पनिया Genetic Modified Crops के नाम पर भारत की फसलो को अपने कब्जे में लेने की साजिश कर रही है | बी. टी कपास के बाद बी.टी बेंगन का बीज ला कर सब्जियों के सारे बाज़ार पर कब्ज़ा ज़माने की शुरुयात हो चुकी है | हालाकि देश भार में हुए व्यापक विरोध के कारण अभी सरकार ने इसकी मजूरी नहीं दी है परन्तु खतरा अबी टला नहीं है | G.M Crops से एक तरफ हमारी फसलो की देसी किस्मे समाप्त हो जायेंगी वहीँ दूसरी और हमारे स्वास्थ पर भी इसका गंभीर परिणाम होगा | 
भारत की खेती पर दुनिया के सब बड़े देशो और उनकी कम्पनियों की नजर है | बराक ओबामा ने भी अपनी भारत यात्रा में कृषि बाज़ार को खोलने की बात की है और इसके लिए दबाब लगातार बनाया जा रहा है | आज जबकि अमरीका और यूरोप अपने किसानो को भारी सब्सिडिया दे रहे है तथा वहां खेती किसान नहीं कंपनिया कर रही है , ऐसे में भारत के बाज़ार को विदेशी निवेश के लिए खोलने से हमारे किसानो के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो जायेगा | भारत में भी खेती के निगमिकरन की नई नीति अपनाने की वकालत की जा रही है , परन्तु इस प्रश्न का उत्तर कोई नही दे पा रहा की लगभग 70 करोड़ लोगो को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र का अगर निगमि करन कर देंगे तो बेरोजगार होने वाले करोड़ो किसानो को कौन सा वैकल्पिक रोजगार दिया जा सकता है | किस क्षेत्र में इतने लोगो को रोजगार देने की क्षमता है |

भ्रष्टाचार और काले धन की अर्थव्यवस्था 
भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की राह में एक और बड़ी रूकावट देश में व्यापत भ्रष्टाचार और काले धन की अर्थव्यवस्था है | अगर हम भ्रष्टाचार की बात करें तो पिछले २० वर्षो में बोफोर्स घोटाला , शेयर घोटाला , चारा घोटाला , चीनी घोटाला , जी . स्पेक्ट्रम घोटाला सहित अनेको घोटाले हुए है जिन में लाखो करोड़ रूपये भ्रष्ट राजनेता तथा अफसर डकार गये है | जितनी भी योजनाये बनती है उनका बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार में ही चला जाता है | राजीव गाँधी ने एक बार कहा था की अगर १ रुपया दिल्ली से भेजता हूँ तो नीचे सिर्फ २० पैसे ही पहुँचता है , बाकी रस्ते में भ्रष्टाचार की भेट चढ़ जाता है | आज स्थिति उस से भी भयंकर है | देश में भ्रष्टाचार अब संस्थागत हो गया है | देश की संसद से लेकर न्यालय और अदालते तक सब भ्रष्टाचार से लिप्त है | ऐसे में कोई भी योजना असरकार नही हो सकती | जो देश कबी नैतिक मूल्यों , इमानदारी और सचाई के लिए विश्व में प्रसिद्ध था आज भ्रष्टाचार की सूची में सबसे ऊपर के देशो में शामिल है | भ्रष्टाचार के साथ साथ भारत में काले धन की अर्थ व्यवस्था भी जोर शोर से चल रही है | जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण कुमार ने अपनी पुस्तक The Black Economy in India में विस्तार से बताया है की जी. डी.पी का 50 % काले धन में ही जा रहा है | Central Stastical Organisation के अनुसार इस समय 2500000 करोड़ रूपये की काले धन की अर्थव्यवस्था देश में चल रही है | अगर 30 % की दर से इस सारे धन का टैक्स लिया जाये तो यह 750000 करोड़ रूपये बनेगा | यह राशी 2009-10 में देश में एकत्र टैक्स 641000 करोड़ से भी ज्यादा बनती है | 
भारत में भ्रष्टाचार और काले धन का परवाह कितना अधिक है इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की स्विस बैंक में सबसे ज्यादा पैसा भारतीयों का ही है , इस समय लगभग 1456 बिलियन डालर भारत के स्विस बैंक में जमा हैं जबकि जबकि रशिया ( 470 बिलियन डालर ), इंग्लैंड ( 390 बिलियन डालर ) तथा चीन ( 96 बिलियन डालर ) कहीं पीछे हैं | भारत का स्विस बैंक में जमा धन भारत के विदेशी ऋण से 13 गुना ज्यादा है | इसलिए आज अगर भारत को आर्थिक महाशक्ति बनना है तो तो भ्रष्टाचार और काले धन की अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाना होगा |