Wednesday, March 31, 2021

भारतीय युवा

भारतीय युवा
SECTION
1. सावरकर युवा उल्टा वायु
2. कलाम साहब का उद्बोधन
3. पांडा का लेख युवा के आंकड़े। 1.विनायक दामोदर सावरकर को किसी युवा ने पूछा कि आप युवा किस कहते है? 
भाषा शुद्धिकरण के आन्दोलन को चलाते हुए भारतीय भाषाओं को अनेक नवरचित शब्दों का योगदान देनेवाले महान भाषाशास्त्री सावरकर ने उत्तर दिया, “पद को उलटा करके देखो तो उसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है। 
युवा का प्रतिशब्द है – ‘वायु’। जैसे अनुशासनहीन वायु प्रभंजन के रुप में जीवन का नाश करता है
 किन्तु
 जब प्राणायाम से अनुशासित हो जाता है तब वही वायु प्राणदाता बन जाता है। वैसे ही युवा हैं। अनुशासित हो तो राष्ट्र का प्राण और अनुशासनहीन होकर किसी भी व्यवस्था के लिए असाध्य चुनौती।”
आज भारत की 62% जनसंख्या युवा है। 
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 13 से 45 के मध्य आयुवाले युवाओें की संख्या कुल 125 करोड की आबादी के 62% अर्थात 75 करोड से ऊपर है। 
किसी भी राष्ट्र के लिए यह अत्यंत गर्व के साथ ही आर्थिक विकास के प्रचंड अवसरों का विषय है। 
साथ ही चुनौती भी कि इस असाधारण शक्ति का समुचित सदुपयोग हो। अन्यथा अनियंत्रित होने से यही ऊर्जा राष्ट्र विघातक विस्फोटक का कार्य भी कर सकती है। ऊर्जा को बलपूर्वक नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
 जबरदस्ती अथवा दबाव से तो वह और अधिक विध्वंसक बन जाती है जैसे डटे हुए सेफ्टी वाल्व वाले प्रेशर कुकर में भांफ।
ऊर्जा के अनुशासित नियोजन का सर्वोत्तम तरीका है उसका सुव्यवस्थित परिचालन। 
ऊर्जा को सही दिशा में किसी ध्येय की ओर कार्य में लगा देना ही उसका सदुपयोग है। 
वर्तमान समय में भारतीय समाज के पास अपनी युवाशक्ति को सम्यक ध्येय के साथ सही दिशा की ओर कार्यरत करने की महती चुनौती हैं।
स्वंतत्रता के बाद सबसे बडी विकृती सारे समाज मे व्याप्त हुयी है वह है – शासनावलम्बिता।
हम छोटे से छोटे कार्य के लिए भी सरकार का मुँह ताकते हैं।
घर में सफाई करने के बाद सरकारी सडक पर सरेआम कचरा फेंकने वाले सभ्य नागरिक स्थानीय शासन से अपेक इच्छाएं रखते हैं 
यह स्वावलंबन नहीं है आज की आवश्यकता है कि हम स्वावलंबी हो पर समर्थ बने और दूसरों को भी समर्थक बन बनाएं
आइए हम स्वावलंबी जिला अभियान के सदस्य बन कर दूसरों को भी सदस्यता प्रदान करें।
2. कलाम साहिब 
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INDIA NEWS

Youth power can transform India: Kalam

Former president APJ Abdul Kalam says the great challenge of transforming India can be achieved through youth as they are enabled with ideas and ambition.

By HT Correspondent | IANS, Washington

UPDATED ON MAR 24, 2008 12:33 PM IST


Former president APJ Abdul Kalam says the great challenge of transforming India can be achieved through youth which has got the power of ideas, ambition and ability.

"This resource of the youth is an important building block for transforming India into a developed nation," he said at a breakfast meeting on Saturday with students of the prestigious Wharton business school, Philadelphia, America's oldest institution of its kind.

"If you have an aim in life, realise that spent time cannot be recovered," said Kalam, asserting that no youth today need to fear about the future. The former president was addressing the students at the 12th Wharton India Economic Forum (WIEF) held with the theme of "India Imagine".

The forum is designed to serve as a platform for thought-leaders, professionals and policy makers to define their perception of the global Indian and discuss the wave of new imagination that is spurring the nouveau Indian to create unprecedented opportunities.

"Hence the precious time has to be used for achieving the goal, have confidence to win, have confidence to defeat the problems and succeed and have a righteous heart; you will definitely succeed in all your missions," Kalam said.

"Success can only come to you by courageous devotion to the task lying in front of you. I can assert without fear of contradiction that the quality of the Indian mind is equal to the quality of any Teutonic, Nordic or Anglo-Saxon mind.

"What we lack is perhaps courage, what we lack is perhaps driving force, which takes one anywhere. We have, I think, developed an inferiority complex," the former president said, stressing "what is needed in India today is the destruction of that defeatist spirit.

"We need a spirit of victory, a spirit that will carry us to our rightful place under the sun, a spirit, which will recognise that we, as inheritors of a proud civilization, are entitled to a rightful place on this planet.
3.  Role of Youth in Shaping India’s Future

Pradeep Kumar Panda

Oct 27, 2018·5 min read

Youth are the most important and dynamic segment of the population in any country. It is believed that developing countries with large youth population could see tremendous growth, provided they invest in young people’s education, health and protect and guarantee their rights. We can undoubtedly say that today’s young are tomorrow’s innovators, creators, builders and leaders.

But they need the required support in terms of good health, education, training and opportunities to transform the future. The economic trigger happens when a county’s more hands to work available than more mouths to feed. To put it succinctly, working age population has to be larger than the dependent population.

Today, India is one of the youngest nations in the world with more than 62% of its population in the working age group (15–59 years), and more than 54% of its total population below 25 years of age. It is further estimated that the average age of the population in India by 2020 will be 29 years as against 40 years in USA, 46 years in Europe and 47 years in Japan. This gives us the edge of demographic dividend over other countries. The youth of today is increasingly becoming restless and struggling to remove the disparities. However, more efforts need to be put in, if we are to become free from the vicious circles of poverty, malnutrition, corruption, violence and unemployment. All these vices are still prevalent in the society, which are not allowing our great nation to function in its real spirit.

Unfortunately, being a democratic nation and largest democracy in the world, India is still lagging behind in achieving socio-political and economic equalities, which were dreamt by our predecessors. As a nation, since 72 years, we have been striving to eliminate these inequalities at all levels, which are existing in the forms of poverty, unemployment, illiteracy, corruption, violence, gender bias etc. India is ranked at 130 in Human Development Index, 115 in Human Capital Index, 100 in Global Hunger Index, 122 in World Happiness Index, 62 in Inclusive Development Index, 141 in Gender Development Index and 145 in Global Burden of Disease Study. India’s rank in various development indices has barely grown over the years. If India is to improve upon these indices, then the Indian Youth needs to take the charge and come forward to fight against multiple inequalities and contribute in nation building.



Tuesday, March 30, 2021

कविता अंश

कविता
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना 
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं 
वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़ 
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं 
रक्स = डांस, नाच करता, झूमता जाता हूँ मैं।
Jigar muradabadi

कम-हिम्मती ख़तरा है समुंदर के सफ़र में 
तूफ़ान को हम दोस्तो ख़तरा नहीं कहते
Nwaaz Deobandi

हर घूमी हुई जगह से इतेफाक रखता हू्ं 
मैं मुसाफ़िर हूं हर मक़ाम याद   रखता हूं

रोजी रोटी हक की बाते जो भी मुँह पर लाएगा
कोई भी हो, निश्चय ही वो कम्युनिस्ट कहलायेगा
जन कवि नागार्जुन, हमें भी जेटली जी कम्युनिस्ट विथ काऊ कहते थे।
जाती पाती से ऊपर उठकर देशभक्ति जोग आएगा अपना स्वार्थ छोड़कर जोजन धर्म संस्कृति को गायक कोई भी हो निश्चय ही हो आर एस एस वाला कहलाएगा
।।।
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था ।

और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं

वो समझता था उसे पा कर ही मैं रह जाऊंगा
उस को मेरी प्यास की शिद्दत का अंदाज़ा नहीं

जा दिखा दुनिया को मुझ को क्या दिखाता है ग़ुरूर
तू समुंदर है तो है मैं तो मगर प्यासा नहीं

कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मिरा घर तो है दरवाज़ा नहीं

अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों
और जब ऐसा किया मैं ने तो शरमाया नहीं

उस की महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिन के चराग़
मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं

तुझ से क्या बिछड़ा मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई
अब कोई मौसम मिले तो मुझ से शरमाता नहीं
।।।
शेर 20  शेर होंसले बढ़ाने के

1. सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का 
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का 
शहरयार
रिश्ते निभाने हो तो थोड़े फांसले भी रखना,
बहुत नजदीक से चीज़े अक्सर धुंधली नज़र आती हैं, गुलज़ार
2. वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो 
हौसले मुश्किलों में पलते हैं 

महफूजुर्रहमान आदिल

3. प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर 
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े 
इक़बाल साजिद


4. हार हो जाती है जब मान लिया जाता है 
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है 
शकील आज़मी
5. जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब के 
उसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा 
आबिद अदीब

6. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला 
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा 
महशर बदायुनी

7. साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन 
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है 
आल-ए-अहमद सूरूर

8. इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह 
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह 
अनवर शऊर


9. कई इन्क़िलाबात आए जहाँ में

मगर आज तक दिन बदले हमारे

भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो 
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे 
रज़ा हमदानी



10. ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें 
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें 
अल्लामा इक़बाल


11.ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं 
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं 
माहिर-उल क़ादरी

13. लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं 
मैंने उस हाल में जीने की क़सम खाई है 
अमीर क़ज़लबाश

12. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर 
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की 
जमील मज़हरी



14. रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़ 
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है 
इरफ़ान सिद्दीक़ी


15. ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं 
मगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है 
अज़हर इनायती
16. आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो

जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो।

16. बेनाम-से इक ख़ौफ़ से दिल क्यों है परेशां

जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा।
खुशफ़हमी अभी तक थी यही कारे-जुनूँ में
जो मैं नहीं कर पाया किसी से नहीं होगा

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
- शहरयार

2.


इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की 
उधर हमें भी है धुन आशियाँ अपना बनाने की 
अज्ञात

 
कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो,
उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं।
                    अली सरमद
कमजोर मन वाले 
घर से निकले थे होंसला करके,
लौट आये खुदा, खुदा करके।...

दर्द होता है बैठ जाता हूँ, बैठता हूँ तो दर्द होता है ...
जॉन एलिया।
विकास की राह देख रहा एक बंदा दूसरे बंदे से शायद यह कह रहा है:

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशक़दमी से..
मुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराए हैं..!!

-साहिर लुधियानवी
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों 

न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की 

न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से 

न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से 

न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से 

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से 
।।।।

मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए
पर्यावरण संरक्षण: 
3. सौंपोगे अपने बाद विरासत में क्या मुझे,
बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से...
- अशअर नजमी

दो शब्द तसल्ली के नहीं मिलते इस शहर में,
लोग दिल में भी दिमाग लिए घूमते हैं ।

आलोचना वाले
दरख्त ए नीम हूं मेरे नाम से घबराहट तो होगी
छांव ठंडी ही दूँगा, बेशक पत्तों में कड़वाहट तो होगी
अनाम
जब कुत्ते, बिल्ली, चूहा, गीदड़ सारे एक घाट पर इकट्ठा पानी पी रहे हों तो समझ लेना चाहिए कि दूसरे घाट पर शेर खड़ा है ।
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मरे बुत-ख़ाने में तो काबे में गाड़ो बिरहमन को


....
मन मोया ते सोग न होया, न रोये रूहबारी, 
तन रोया ते यार मेरे न कूक गज़ब दी मारी।

 
मैंने कुछ लोग लगा रखे हैं पीठ पीछे बात करने के लिए 
पगार कुछ नहीं है उनकी पर काम बड़ी इमानदारी से करते हैं ।
कान्हूं
ज़फ़र गोरखपुरी
कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को 
मैं ने अपने से बड़े शख़्स को गाली दे कर । 


2. "मिलकर बैठे हैं, महफ़िल में जुगनू सारे , ऐलान ये है कि सूरज को हटाया जाए।"
3. उस मुक़ाम पे आ गई है ज़िंदगी जहां ...
मुझे कुछ चीज़ें पसंद तो हैं पर चाहिए कुछ नहीं !!
अनाम
5.दर्द एक ही है बस 
इसके जायके दो हैं ,
कोई बिखरता है 
तो कोई निखरता है !!
6. मेरे दामन में अगर कुछ न रहेगा बाकी ,अगली नस्लों को दुआ देके चला जाऊंगा ।
धुआं दे के चला जाऊंगा।
मुजफ्फर रिजमी //
7. वो शख़्स जो झुक कर आपसे मिला होगा!
यक़ीनन उसका कद आपसे बड़ा होगा !!
8. "न नाविक,न साथी न हक़ में फ़िज़ाएं, है नौका भी ज़र्ज़र,ये कैसा सफर है,
फ़क़ीरी का अपना,अलग ही मज़ा है,न पाने की चिंता न खोने का डर है",...
अनाम
9.
अनाम
10. जुनूँ वही है ,वही मैं ,मगर है शहर नया 
यहाँ भी शोर मचा लूँ अगर इजाज़त हो 

Joan Alia
11. ‘साजिशें ऐसी हुईं है खो गई पहचान सब, खुद पता मैं पूछता हूं, आज अपने गांव का’।
अशोक मैत्रेय
12. पेड़ जुड़ें हैं ज़मीन से, हवा से झगड़ जाते हैं 
आसमान वालों का क्या है, बादल हवा के रुख़ से पलट जाते हैं 
अनाम
13. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का 
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है।
14. 
कभी रुकेंगी हवायें कभी बुझेंगे चिराग 
चलो चलो ये तमाशा तो रात भर होगा ।
एजाज अफजल //
15. 
शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है
हम को हर हाल में जीने का हुनर आता है
- रसूल साक़ी
16. ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया..
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए.. !! 
17. वो अगर बात न पूछे तो करें क्या हम भी ?
आप ही रूठते हैं आप ही मन जाते हैं 
मजरुह सुलतानपुरी
18. #हुनर आने के भी ख़तरे बड़े हैं,
                 पता है ? 
        हाथ  कटवाने पड़े हैं।
19. बात 1955 की है। सउदी अरब के बादशाह "शाह सऊद" प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे। वे 4 दिसम्बर 1955 को दिल्ली पहुँचे जहाँ उनका पूरे शाही अन्दाज़ में स्वागात किया गया शाह सऊद दिल्ली के बाद वाराणसी भी गए। शाह सऊद, जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस के सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे। वाराणसी में जिन जिन रास्तों से "शाह सऊद" को गुजरना था, उन सभी रास्तों में पड़ने वाली मंदिर और मूर्तियों को परदे से ढक दिया गया था। इस्लाम की तारीफ़ और हिन्दुओं का मजाक बनाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था
 - अदना सा ग़ुलाम उनका, गुज़रा था बनारस से॥
 मुँह अपना छुपाते थे, काशी के सनम-खाने॥
 आज योगी व मोदी शासनकाल में भी बड़े बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं और उनको वाराणसी भी लाया जाता है, लेकिन अब मंदिरों या मूर्तियों को छुपाया नहीं जाता है बल्कि उन विदेशियों को गंगा जी की आरती दिखाई जाती है और उनसे पूजा कराई जाती है।
20. उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़, हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा*
21. बग़ैर इश्क़ अँधेरे में थी तिरी दुनिया 
चराग़-ए-दिल न जलाते तो और क्या करते 
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक 
हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते 
नज़ीर banarasi
22. वो बुझ गया तो चला उसकी अहमियत का पता 
कि उस चिराग़ से कितने चिराग़ जलते थे। 
अनाम
वैसा ही,  यूं देखिये तो आँधी में बस एक शजर गया 
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया 
शजर /पेड़ 



श्रीधर वेम्बू

सॉफ्टवेयर डवलपमेंट कंपनी जोहो कॉर्प के फाउंडर और सीईओ श्रीधर वेम्बू ने अपना सफर साधारण व्यक्ति के रूप में शुरू किया और आज उन्होंने सैकड़ों मिलियन डॉलर की कंपनी खड़ी कर ली है। तमिलनाडु के मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े श्रीधर के पिता हाई कोर्ट में स्टेनोग्राफर थे। श्रीधर ने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल से पूरी की। आईआईटी मद्रास से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की। उसके बाद उन्होंने 1989 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कम्प्लीट की।


इस दौरान उन्होंने पॉलिटिकल साइंस और इकोनॉमिक्स में गहरी दिलचस्पी होने के कारण कई किताबें पढ़ी। जापान, सिंगापुर और ताईवान जैसे बाजारों की सफलता के बारे में अध्ययन किया और समझा कि वे कैसे इतनी अच्छी तरह से विकसित हुए। उन्होंने महसूस किया कि इंडिया में सोशलिज्म हमारी प्रॉब्लम है और इस स्थिति को ठीक करना चाहिए। वर्ष 1994 में उन्होंने सैन डिएगो स्थित क्वालकॉम में नौकरी शुरू की।

यहां दो साल काम करने के बाद उन्होंने जॉब छोड़ दी और वापस भारत आ गए। वह नौकरी के बजाय अलग पहचान बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने वर्ष 1996 में एक छोटे से अपार्टमेंट में टोनी थॉमस के साथ मिलकर सॉफ्टवेयर वेंचर एडवेंट नेट शुरू किया। 2009 में कंपनी का नाम बदलकर जोहो रख दिया। वह अपने इस उद्यम को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते थे।

इसके लिए उन्होंने कई क्रांतिकारी फैसले लिए। इससे उनकी कंपनी लगातार ग्रोथ करने लगी। हालांकि इस दौरान उन्हें उतार-चढ़ाव के दौर से भी गुजरना पड़ा, लेकिन वह विचलित हुए बिना मुसीबतों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहे। डिग्री से ज्यादा कुशलता को महत्व देने वाले श्रीधर हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहने में यकीन करते हैं।


Monday, March 29, 2021

SECTION विद्यार्थी व स्वदेशी

SECTION विद्यार्थी व स्वदेशी
S से स्टडी वेल भी हो सकता है।

1. S swadeshi
पहले कहते थे भगत सिंह पैदा हो लेकिन मेरे घर में नहीं अब कहते हैं भारत में स्वदेशी इंडस्ट्री बढ़े लेकिन मैं ब्रांड, व सस्ते के नाम पे विदेशी इस्तेमाल करता रहूं।  एक एक आइटम का परसेंटेज आदि के आंकड़े भी देने चाहिए। विद्यार्थियों से स्टेशनरी, कपड़ों के ब्रांड्स, समान अमेज़न की बजाए शहर में ऑनलाइन एप्प्स बनाना। पेंट्स आदि के ब्रांड्स। मां का बना जूता, रुचिकर Nik Wallenda: Beyond Niagara, कौन सी बीमारी और कौन से काम आती हैं desi दवा यथा जुकाम के लिए सरसों तेल नाक में डालना, पेट में जलन। यह प्रश्नोत्तरी आपको स्वयं प्रयोग का अनुभव है। 



2. E earning learning side by side:  एर्निंग के साथ लर्निंग पर कंसंट्रेशन। हर शहर में ऐसे लोग, C. एक लड़का महावीर तीर्थंकर में बताने आया, कितने किस्म के ऐसे लड़के होते हैं जिन्होंने इसमें सफलता पहुंचे।B. अमर बोस के उदाहरण। अभी तक जो देखें हैं: 
लर्निंग की क्या परिभाषा: आने वाली मुसीबतों की पहले से तैयारी। एप्पल निर्माता ने गरीबी के कारण जो कोर्सेज किया वो कितने काम आए।रीड कॉलेज कैलीग्राफी के लिए दुनिया में मशहूर था। पूरे कैम्पस में हाथ से बने हुए बहुत ही खूबसूरत पोस्टर्स लगे थे। मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी कैलीग्राफी की पढ़ाई करूं।

मैंने शेरीफ और सैन शेरीफ टाइपफेस (serif and san serif typefaces) सीखे। मैंने इसी टाइपफेस से अलग-अलग शब्दों को जोड़कर टाइपोग्राफी तैयार की, जिसमें डॉट्स होते हैं। दस साल बाद मैंने पहला (Macintosh computer) डिजाइन किया। खूबसूरत टाइपोग्राफी के साथ यह मेरा पहला कम्प्यूटर डिजाइन था। यदि मैं कॉलेज से नहीं निकालता और मैंने कैलीग्राफी नहीं सीखी होती तो मैं यह नहीं बना पाता”।

3. Confidence in oneself: अपने शरीर की कीमत कितनी है। संत ने आत्महत्या वाले को कैसे रोका, एक एक अंग की कीमत बताई। विवेकानंद नास्तिक वो नही जिसे भगवान पर विश्वास नहीं, बल्कि अपने पर नहीं।
4. T traditional skill learning: पारिवारिक स्किल में भी बहुत लाभ होता है। भारत में साम्यवादियों ने इनसे दूर किया। मां बाप से दूरी हो गयी, दुनिया का सबसे विश्वस्त इंसान से बात नहीं होती है जो कि बाप ही हित है। जो लड़के पढ़ाई के बाद दुबारा खेती में लगे हैं।
5. I innovation: स्टार्टअप की यही परिभाषा है।
6. OFFICIAL प्लान्स, सरकारी योजनाओं जो कि गुजरात वालों ने बताई
7. NOT SERVICE SEEKERS BUT PROVIDER
कितने ऐसे प्रयोग हर शहर में देखते हैं। फिल्म अगर सिर्फ  मेहनत करोगे तो पसीना पैदा होगा, दिमाग लगाओ गए तो पैसा पैदा होगा।

Sunday, March 21, 2021

विविध क्षेत्रों के समूह

विविध क्षेत्रों की समूह रचना:  सामाजिक समूह: 8, शिक्षा 6, सेवा 7, आर्थिक 6, वैचारिक 6, सुरक्षा 3 योग 36 कुल हैं। 

प्रथम समूह Saamajika Samuh
1. Vanavasi Kalyan Ashram वनवासी कल्याण
Committed towards upliftment of Vanavasis
2. Vishwa Hindu Parishad
Dharmo Rakshathi Rakshithaha

3. Bharatiya Janata Party
The World’s Largest Political Party

4. Rashtriya Sikh Sangat
India-based Sikh affiliate of the RSS
5. Rashtra Sevika Samiti
Tejaswi Rashtraka Punarnirmaan
6. Vishwa Vibhag
Hindu Swayamsevak Sangh

7. Mahila Samanvaya
Empowering Women

8. Kreeda Bharati
FIT INDIA – HIT INDIA

द्वितीय :Shiksha Samuh

1. Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad
India's largest student organization

2. Vidya Bharati
Sa Vidya Ya Vimuktaye

3. Bhartiya Shikshan Mandal
National Resurgence in Education

4. Akhila Bharatiya Shaikshik Mahasangh
Rashtra Ke Hit Mein Shiksha

5. Samskrita Bharati
Mama Mathrubhasha Samskritham

6. Shiksha Samskruthi Uthan Nyas
Shiksha Evam Samskrithi

तीसरा Seva Samuh

1. Seva Samiti

2. SAKSHAM
SAmadrishi KSHamata Anusandhan Mandal
3. Arogya Bharthi
Healthy Family Healthy Nation.

4. National Medicos Organisation (NMO)
Swasthya Sewa se Rashtra Sewa

5.Bharat Vikas Parishad
Swasth – Samarth – Sanskarit Bharath
6. Deendayal Shodh Samsthan
Swavlamban, self-reliance is the key.
7. Rashtriya Sewa Bharati
Jagaran Sahyog Prashiksan Adhyayan

चौथा समूह आर्थिक
Arthika Samuh

1. Bharatiya Kisan Sangh
Farmers are the Integral Part of Nation

2. Bharatiya Mazdoor Sangh
Nationalize the Labour
3. Swadeshi Jagran Manch
Swadeshi, Swabhimaan, Swavalamban
4. Sahakar Bharati
Working for strengthening of Co-op
5. Grahak Panchayat
Grahak Hitay, Grahak Sukhay
6. Laghu Udyog Bharathi
Empowering Micro & Small Enterprise

पंचम समूह वैचारिक,वVaicharika Samuh
1. Samsakara Bharathi
PROMOTING CULTURE AND PATRIOTISM
2. Akhila Bharatiya Sahithya Parishad
Sathyam Shivam Sundaram
3. Akhil Bharatiya Adhivakta Parishad
Nyay, Mama Dharmaha
4. Prajna Pravah
Gnanam Vignana Sahitham

5. Vijnana Bharati
Development of Swadeshi Sciences
6. Akhil Bharatiya Itihas Sankalan Yojana
Infusing a sense of Pride & Patriotism

छटा समूह सुरक्षा

Suraksha Samuh

1. Akhil Bhartiya Poorva Sainik
Seva – Sahas - Samman

2  Hindu Jagran Manch
Samarthya – Gourav - Veertha

3. Seema Jagran Manch
Surakshith Seema – Samarth Bharat





Wednesday, March 10, 2021

how many teeth of horse

HORSE'S TEETH

In the year of our Lord 1432, there arose a grievous quarrel among the brethren over the number of teeth in the mouth of a horse. For thirteen days the disputation raged without ceasing. All the ancient books and chronicles were fetched out, and wonderful and ponderous erudition such as was never before heard of in this region was made manifest. At the beginning of the fourteenth day, a youthful friar of goodly bearing asked his learned superiors for permission to add a word, and straightway, to the wonderment of the disputants, whose deep wisdom he sore vexed, he beseeched them to unbend in a manner coarse and unheard-of and to look in the open mouth of a horse and find answer to their questionings. At this, their dignity being grievously hurt, they waxed exceeding wroth; and, joining in a mighty uproar, they flew upon him and smote him, hip and thigh, and cast him out forthwith. For, said they, surely Satan hath tempted this bold neophyte to declare unholy and unheard-of ways of finding truth, contrary to all the teachings of the fathers. After many days more of grievous strife, the dove of peace sat on the assembly, and they as one man declaring the problem to be an everlasting mystery because of a grievous dearth of historical and theological evidence thereof, so ordered the same writ down.

—Francis Bacon, 1592 (?).

Is this a scientific urban legend?

This text is taken from a compilation of science essays, which had incomplete documentation of the source of this story. I have strong suspicions that the attribution of this passage to Francis Bacon cannot be documented. Perhaps this was written by someone relating a tale "said to have been told" by Francis Bacon. If so, who? If anyone has better information about the earliest documentable version of this story, please send it to me at the address shown to the right. When commenting on a specific document on my web page, please reference it by name or content.

Indeed, some sources attribute this to Francis Bacon (1561-1626), others to Roger Bacon (1290-1222) but the association with Roger Bacon makes more sense. Still, the internal reference to the event happening in 1432, suggests it happened after Roger died. The date 1592 would fall within the lifetime of Francis. Is this another example of the fact that these poor fellows are often mistaken for each other?

Very often, when one seeks sources, such stories are found to be "urban legends" unfounded in fact. I have similar suspicions about the often-related story that medieval scholastic academics debated "how many angels can dance on the head (point?) of a pin?" I cannot document that any such arguments took place, nor have I seen any such documentation. Who started this story? But it does sound like something a critic of scholasticsm would use to characterize or parody the empty silliness of their sober arguments. The parody is quite apt. Apparently scholastics did argue whether Adam had a navel and whether angels defecate. My skeptical comments should not be taken as an apologetic for scholasticism, for its "scholars" were prone to concoct arguments that made them look very foolish.

I will not speculate on whether the dust-bunnies in my closet are angel-poo.

Feedback.

Robert O'Shea writes:

The earliest (still apparently secondary) source for the quotation I have found is: Mees, C. E. K. (1934). Scientific thought and social reconstruction. Electrical Engineering, 53, 383-384. But see below.

Others are engaged in a so-far futile search for the source of this story. See google answers and this note.

2015. A bibliophile reader reports pushing back the source of this story to 1901.

I was doing some searches today. It shows up first unattributed in the Monthly Journal of the International Association of Machinists, Volume 13, No. 3 from 1901 on p 129: Chronicle of an Ancient Monastery.

A few years later it occurs again unattributed in "Jack London at Yale" Edited by the State Secretary of the Socialist Party of Connecticut and published by the Connecticut State Committee in 1906. (I have attached the page from this site): Extract from the Chronicle of an Ancient Monastery. The story is on page 12 of the document.)

Here's the page from this book:

It then shows up in The Public, Volume 10, p 17.

From this it looks like a parable written by some socialists and playing on prejudices of the Middle Ages.

It certainly seemed to be popular in socialist circles in the early 20th century. But I'll bet it originated even earler, but unlikely to have been the work of either Francis or Roger Bacon. We have yet to place the blame for that false attribution.

This illustrates how stories proliferate if they tap into reader's beliefs or prejudices. And along the way someone feels compelled to give it added weight by falsely linking it to some well known famous person.


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Tuesday, March 2, 2021

कथ्य निर्माण narrative building क्या?

*Narrative Building: अर्थ और महत्व* 

*रुपये बनाने की मशीन*

एक गाँव में एक बनिया और एक कुम्हार था। कुम्हार ने बनिये से कहा, मैं तो बर्तन बनाता हूँ, पर गरीब हूँ...
तुम्हारी कौन सी रुपये बनाने की मशीन है जो तुम इतने अमीर हो? 
बनिये ने कहा - तुम भी अपने चाक पर मिट्टी से रुपये बना सकते हो।
कुम्हार बोला - मिट्टी से मिट्टी के रुपये ही बनेंगे ना, सचमुच के तो नहीं बनेंगे।
बनिये ने कहा - तुम ऐसा करो, अपने चाक पर 1000 मिट्टी के रुपये बनाओ, बदले में मैं उसे सचमुच के रुपयों में बदल कर दिखाऊँगा।
कुम्हार ज्यादा बहस के मूड में नहीं था... बात टालने के लिए हाँ कह दी।
महीने भर बाद कुम्हार से बनिये ने फिर पूछा - क्या हुआ ? तुम पैसे देने वाले थे...
कुम्हार ने कहा - समय नहीं मिला... थोड़ा काम था, त्योहार बीत जाने दो... बनाउँगा...
फिर महीने भर बाद चार लोगों के बीच में बनिये ने कुम्हार को फिर टोका - क्या हुआ? तुमने हज़ार रुपये नहीं ही दिए... दो महीने हो गए...
वहां मौजूद एक-आध लोगों को कुम्हार ने बताया की मिट्टी के रुपयों की बात है।
कुम्हार फिर टाल गया - दे दूँगा, दे दूँगा... थोड़ी फुरसत मिलने दो।
अब कुम्हार जहाँ चार लोगों के बीच में मिले, बनिया उसे हज़ार रुपये याद दिलाए... कुम्हार हमेशा टाल जाए...लेकिन मिट्टी के रुपयों की बात नहीं उठी।
6 महीने बाद बनिये ने पंचायत बुलाई और कुम्हार पर हज़ार रुपये की देनदारी का दावा ठोक दिया।
गाँव में दर्जनों लोग गवाह बन गए जिनके सामने बनिये ने हज़ार रुपये मांगे थे और कुम्हार ने देने को कहा था।
कुम्हार की मिट्टी के रुपयों की कहानी सबको अजीब और बचकानी लगी। एकाध लोगों ने जिन्होंने मिट्टी के रुपयों की पुष्टि की वो माइनॉरिटी में हो गए। और पंचायत ने कुम्हार से हज़ार रुपये वसूली का हुक्म सुना दिया... 

*अब पंचायत छंटने पर बनिये ने समझाया - देखा, मेरे पास बात बनाने की मशीन है... इस मशीन में मिट्टी के रुपये कैसे सचमुच के रुपये हो जाते हैं, समझ में आया *?

*इस कहानी में आप नैतिकता, न्याय और विश्वास के प्रपंचों में ना पड़ें.. सिर्फ टेक्निक को देखें*...

बनिया जो कर रहा था, उसे कहते हैं narrative building...कथ्य निर्माण...

सत्य और तथ्य का निर्माण नहीं हो, कथ्य का निर्माण हो ही सकता है.!!
अगर आप अपने आसपास कथ्य निर्माण होते देखते हैं, पर उसकी महत्ता नहीं समझते, उसे चैलेंज नहीं करते तो एकदिन सत्य इसकी कीमत चुकाता है...

*हमारे आस-पास ऐसे कितने ही नैरेटिव बन रहे हैं। दलित उत्पीड़न के, स्त्री-दासता और हिंसा के, बलात्कार की संस्कृति के, बाल-श्रम के, अल्पसंख्यक की लिंचिंग के*...

ये सब दुनिया की पंचायत में हम पर जुर्माना लगाने की तैयारी है। हम कहते हैं, बोलने से क्या होता है? 

*कल क्या होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि आज क्या कहा जा रहा है.?*
*इतने सालों से कांग्रेस ने कोई मेरी जमीन जायदाद उठा कर मुसलमानों को नहीं दे दी थी*...

सिर्फ मुँह से ही सेक्युलर-सेक्युलर बोला था न...

सिर्फ मुँह से ही RSS को साम्प्रदायिक संगठन बोलते रहे;

बोलने से क्या होता है.? 

*बोलने से कथ्य-निर्माण होता है... दुनिया में देशों का इतिहास बोलने से, नैरेटिव बिल्डिंग से बनता- बिगड़ता रहा है।*
यही तमिल-सिंहली बोल बोल कर ईसाइयों ने श्रीलंका में गृह-युद्ध करा दिया...
दक्षिण भारत में आर्य -द्रविड़ बोल कर Sub- Nationalism की फीलिंग पैदा कर दी। 
*भारत में आदिवासी आंदोलन चला रहे है। केरल, कश्मीर, असम, बंगाल की वर्तमान दुर्दशा इसी कथ्य को नज़र अंदाज़ करने की वजह है*।
UN के Human Rights Reports में भारत के ऊपर सवाल उठाये जाते हैं..
RSS को विदेशी (Even neutral) Publications में Militant Organizations बताया जा रहा है।
हम अक्सर नैरेटिव का रोल नहीं समझते... हम इतिहास दूसरे का लिखा पढ़ते हैं!
*हमारे धर्मग्रंथों के अनुवाद विदेशी आकर करते हैं। हमारी वर्ण-व्यवस्था अंग्रेजों के किये वर्गीकरण से एक कठोर और अपरिवर्तनीय जातिवादी व्यवस्था में बदल गई है*...
*हमने अपने नैरेटिव नहीं बनाए हैं... दूसरों के बनाये हुए नैरेटिव को सब्सक्राइब किया है*...
अगर हम अपना कथ्य निर्माण नहीं करेंगे, तो सत्य सिर्फ परेशान ही नहीं, पराजित भी हो जाएगा...
*सत्यमेव जयते को अभेद्य-अजेय समझना बहुत बड़ी भूल है । सबका पूरे विश्व सभी विधर्मियों का एकमात्र टारगेट केवल सनातन है*
अब आप समझे *Narrative Building: अर्थ और महत्व* 
8कमैंट्स संजय तिवाड़ी: सत्ता से सात साल दूर रहने के बाद लेफ्ट आज भी भारत का सबसे ताकतवर बौद्धिक समूह है। जो चाहता है वो नैरेटिव पैदा कर लेते है। 

लेकिन इन्हीं सात सालों में सत्ता पर यत्र तत्र सर्वत्र सर्वत्र कब्जा करने के बाद भी नेशनलिस्ट लोगों का बौद्धिक विमर्श कॉपी पेस्ट और गाली गलौज के सहारे ही आगे बढ रहा है। 

नेशनलिस्ट लोग चाहते तो हैं कि बौद्धिक जगत में उनका नैरेटिव स्थापित हो लेकिन जानते नहीं कि ये होता कैसे है। सत्ता के आसपास बुद्धिजीवी के नाम पर चाटुकारों को बिठा लिया गया है। अब बेचारे चाटुकार की कुल कला तो चाटुकारिता की है। बौद्धिक जगत के मानसिक युद्धों में उतरने, लड़ने और विजेता होने का तो उसके पास कोई अनुभव ही नहीं है। कॉपी पेस्ट बुद्धिजीवी रहा है हमेशा। अब एकदम से युद्ध के मैदान में उतार दोगे तो वह भला तर्क की कौन सी तलवार निकालेगा? 

जब जब में बौद्धिक जगत को देखता हूं राष्ट्रवाद मुझे हारी हुई विचारधारा लगती है। खैर, जहां नारद को पत्रकारिता का पितामह बताकर उनकी जयंती मनायी जाए उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?