कविता
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं
वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं
रक्स = डांस, नाच करता, झूमता जाता हूँ मैं।
Jigar muradabadi
कम-हिम्मती ख़तरा है समुंदर के सफ़र में
तूफ़ान को हम दोस्तो ख़तरा नहीं कहते
Nwaaz Deobandi
हर घूमी हुई जगह से इतेफाक रखता हू्ं
मैं मुसाफ़िर हूं हर मक़ाम याद रखता हूं
रोजी रोटी हक की बाते जो भी मुँह पर लाएगा
कोई भी हो, निश्चय ही वो कम्युनिस्ट कहलायेगा
जन कवि नागार्जुन, हमें भी जेटली जी कम्युनिस्ट विथ काऊ कहते थे।
जाती पाती से ऊपर उठकर देशभक्ति जोग आएगा अपना स्वार्थ छोड़कर जोजन धर्म संस्कृति को गायक कोई भी हो निश्चय ही हो आर एस एस वाला कहलाएगा
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मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था ।
और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं
वो समझता था उसे पा कर ही मैं रह जाऊंगा
उस को मेरी प्यास की शिद्दत का अंदाज़ा नहीं
जा दिखा दुनिया को मुझ को क्या दिखाता है ग़ुरूर
तू समुंदर है तो है मैं तो मगर प्यासा नहीं
कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मिरा घर तो है दरवाज़ा नहीं
अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों
और जब ऐसा किया मैं ने तो शरमाया नहीं
उस की महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिन के चराग़
मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं
तुझ से क्या बिछड़ा मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई
अब कोई मौसम मिले तो मुझ से शरमाता नहीं
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शेर 20 शेर होंसले बढ़ाने के
1. सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
शहरयार
रिश्ते निभाने हो तो थोड़े फांसले भी रखना,
बहुत नजदीक से चीज़े अक्सर धुंधली नज़र आती हैं, गुलज़ार
2. वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
महफूजुर्रहमान आदिल
3. प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
इक़बाल साजिद
4. हार हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है
शकील आज़मी
5. जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब के
उसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
आबिद अदीब
6. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा
महशर बदायुनी
7. साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
आल-ए-अहमद सूरूर
8. इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह
अनवर शऊर
9. कई इन्क़िलाबात आए जहाँ में
मगर आज तक दिन न बदले हमारे
भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
रज़ा हमदानी
10. ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
अल्लामा इक़बाल
11.ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
माहिर-उल क़ादरी
13. लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैंने उस हाल में जीने की क़सम खाई है
अमीर क़ज़लबाश
12. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
जमील मज़हरी
14. रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
15. ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं
मगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है
अज़हर इनायती
16. आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो।
16. बेनाम-से इक ख़ौफ़ से दिल क्यों है परेशां
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा।
खुशफ़हमी अभी तक थी यही कारे-जुनूँ मेंजो मैं नहीं कर पाया किसी से नहीं होगा
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
- शहरयार
2.
इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की
उधर हमें भी है धुन आशियाँ अपना बनाने की
अज्ञात
कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो,
उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं।
अली सरमद
कमजोर मन वाले
घर से निकले थे होंसला करके,
लौट आये खुदा, खुदा करके।...
दर्द होता है बैठ जाता हूँ, बैठता हूँ तो दर्द होता है ...
जॉन एलिया।
विकास की राह देख रहा एक बंदा दूसरे बंदे से शायद यह कह रहा है:
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशक़दमी से..
मुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराए हैं..!!
-साहिर लुधियानवी
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
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मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए
पर्यावरण संरक्षण:
3. सौंपोगे अपने बाद विरासत में क्या मुझे,
बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से...
- अशअर नजमी
दो शब्द तसल्ली के नहीं मिलते इस शहर में,
लोग दिल में भी दिमाग लिए घूमते हैं ।
आलोचना वाले
दरख्त ए नीम हूं मेरे नाम से घबराहट तो होगी
छांव ठंडी ही दूँगा, बेशक पत्तों में कड़वाहट तो होगी
अनाम
जब कुत्ते, बिल्ली, चूहा, गीदड़ सारे एक घाट पर इकट्ठा पानी पी रहे हों तो समझ लेना चाहिए कि दूसरे घाट पर शेर खड़ा है ।
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मरे बुत-ख़ाने में तो काबे में गाड़ो बिरहमन को
....
मन मोया ते सोग न होया, न रोये रूहबारी,
तन रोया ते यार मेरे न कूक गज़ब दी मारी।
मैंने कुछ लोग लगा रखे हैं पीठ पीछे बात करने के लिए
पगार कुछ नहीं है उनकी पर काम बड़ी इमानदारी से करते हैं ।
कान्हूं
ज़फ़र गोरखपुरी
कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को
मैं ने अपने से बड़े शख़्स को गाली दे कर ।
2. "मिलकर बैठे हैं, महफ़िल में जुगनू सारे , ऐलान ये है कि सूरज को हटाया जाए।"
3. उस मुक़ाम पे आ गई है ज़िंदगी जहां ...
मुझे कुछ चीज़ें पसंद तो हैं पर चाहिए कुछ नहीं !!
अनाम
5.दर्द एक ही है बस
इसके जायके दो हैं ,
कोई बिखरता है
तो कोई निखरता है !!
6. मेरे दामन में अगर कुछ न रहेगा बाकी ,अगली नस्लों को दुआ देके चला जाऊंगा ।
धुआं दे के चला जाऊंगा।
मुजफ्फर रिजमी //
7. वो शख़्स जो झुक कर आपसे मिला होगा!
यक़ीनन उसका कद आपसे बड़ा होगा !!
8. "न नाविक,न साथी न हक़ में फ़िज़ाएं, है नौका भी ज़र्ज़र,ये कैसा सफर है,
फ़क़ीरी का अपना,अलग ही मज़ा है,न पाने की चिंता न खोने का डर है",...
अनाम
9.
अनाम
10. जुनूँ वही है ,वही मैं ,मगर है शहर नया
यहाँ भी शोर मचा लूँ अगर इजाज़त हो
Joan Alia
11. ‘साजिशें ऐसी हुईं है खो गई पहचान सब, खुद पता मैं पूछता हूं, आज अपने गांव का’।
अशोक मैत्रेय
12. पेड़ जुड़ें हैं ज़मीन से, हवा से झगड़ जाते हैं
आसमान वालों का क्या है, बादल हवा के रुख़ से पलट जाते हैं
अनाम
13. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है।
14.
कभी रुकेंगी हवायें कभी बुझेंगे चिराग
चलो चलो ये तमाशा तो रात भर होगा ।
एजाज अफजल //
15.
शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है
हम को हर हाल में जीने का हुनर आता है
- रसूल साक़ी
16. ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया..
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए.. !!
17. वो अगर बात न पूछे तो करें क्या हम भी ?
आप ही रूठते हैं आप ही मन जाते हैं
मजरुह सुलतानपुरी
18. #हुनर आने के भी ख़तरे बड़े हैं,
पता है ?
हाथ कटवाने पड़े हैं।
19. बात 1955 की है। सउदी अरब के बादशाह "शाह सऊद" प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे। वे 4 दिसम्बर 1955 को दिल्ली पहुँचे जहाँ उनका पूरे शाही अन्दाज़ में स्वागात किया गया शाह सऊद दिल्ली के बाद वाराणसी भी गए। शाह सऊद, जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस के सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे। वाराणसी में जिन जिन रास्तों से "शाह सऊद" को गुजरना था, उन सभी रास्तों में पड़ने वाली मंदिर और मूर्तियों को परदे से ढक दिया गया था। इस्लाम की तारीफ़ और हिन्दुओं का मजाक बनाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था
- अदना सा ग़ुलाम उनका, गुज़रा था बनारस से॥
मुँह अपना छुपाते थे, काशी के सनम-खाने॥
आज योगी व मोदी शासनकाल में भी बड़े बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं और उनको वाराणसी भी लाया जाता है, लेकिन अब मंदिरों या मूर्तियों को छुपाया नहीं जाता है बल्कि उन विदेशियों को गंगा जी की आरती दिखाई जाती है और उनसे पूजा कराई जाती है।
20. उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़, हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा*
21. बग़ैर इश्क़ अँधेरे में थी तिरी दुनिया
चराग़-ए-दिल न जलाते तो और क्या करते
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक
हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते
नज़ीर banarasi
22. वो बुझ गया तो चला उसकी अहमियत का पता
कि उस चिराग़ से कितने चिराग़ जलते थे।
अनाम
वैसा ही, यूं देखिये तो आँधी में बस एक शजर गया
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया
शजर /पेड़
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