Monday, December 9, 2019

बीज बम द्वारा दूसरी हरित क्रांति


काफी समय से स्वदेशी की महिला प्रमुख बीज बम या बीज गेंदों के बारे में स्वदेशी जागरण मंच के कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक जानकारी दे रही थी, परंतु जनसत्ता के इस लेख ने मेरी आँखें खोल दी है। पढ़ने लायक लेख है।
राजनीति: हरित क्रांति का नया कदम
बीज बमबारी एक प्रकार की हरित कृषि पद्धति है। इसके लिए जमीन पर औजारों का उपयोग आवश्यक नहीं है। इस तकनीक को दूसरे विश्व युद्ध के समय जापान में प्राकृतिक कृषि को प्रचारित और प्रसारित करने वाले मसानबु फ्यूकोंका ने पुनर्जीवन दिया, विशेषकर ज्वालामुखियों की मिट्टी वाले क्षेत्रों में।

वीरेंद्र कुमार पैन्यूली

जंगली जानवरों के बढ़ते आक्रमणों से आज उत्तराखंड के गांवों में रहना और खेती करना जोखिम भरा होता जा रहा है। अन्य पहाड़ी इलाकों में भी कमोबेश ऐसी स्थिति बनती दिख रही है। उत्तराखंड में इसके समाधान का एक रास्ता जन सहयोग से जंगलों में खाद्य शृंखला को सशक्त करना माना जा रहा है। इसके लिए कुछ समाजसेवी घूम-घूम कर लोगों को नदी-नालों के किनारे गांव, शहर, बस्तियों की सीमाओं पर, नजदीकी जंगलों में बीज बमों से बीज बमबारी करने को प्रेरित कर रहे हैं। उनके अभियान का नाम बीज बम अभियान है, जिसे वे खेल-खेल में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम भी मानते हैं।

शुरुआत 2017 में खेतों और बस्तियों के समीपवर्ती जंगलों में फलों व सब्जियों के बीज बिखेरने से हुई थी, पर आशाजनक सफलता नहीं मिली थी। खुले बीजों को पक्षी, बंदर और कीड़े खाते या नष्ट कर देते थे। इससे सीख लेते हुए मिट्टी और गोबर को गूंथ कर बनाए गए गोलों में बीजों को रख कर तीन-चार दिन धूप में सुखाया गया। बाद में उन्हें जंगलों में रखा गया। नमी मिलते ही बीज अंकुरित होते दिखे। परिणाम संतोषप्रद लगे। यह तकनीक जन भागीदारी से ज्यादा से ज्यादा उपयोग में आए, इसलिए उन्होंने बीज गोलों को ऐसा नाम देना चाहा, जिससे इनकी उपादेयता के प्रति उत्सुकता जागृत हो। इन्हें बीज बम कहा जाने लगा। बीज बमों के छिड़काव में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी बढ़ाने का औपचारिक बीज बम अभियान उत्तरकाशी में शुरू किया गया।

इस शुरुआत के बाद उत्तराखंड और अन्य राज्यों में पांच माह की बीज बम यात्राएं की गर्इं। वर्तमान में सहयोगी संस्थाओं के साथ उत्तराखंड और सात अन्य राज्यों में बीज बम अभियान सक्रिय हैं। साझा गतिविधि के तौर पर इस वर्ष जुलाई के आखिरी हफ्ते में उत्तराखंड और अन्य राज्यों में पांच सौ दो स्थानों पर बीज बम अभियान सप्ताह मानाया गया। इसमें लगभग नब्बे हजार छात्रों और ग्रामीणों ने भाग लिया। सप्ताह भर जंगलात विभाग, प्रशासन, शिक्षण संस्थाओं, छात्र-छात्राओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने निर्दिष्ट स्थलों पर बीज बमबारी में उत्साहजनक भागीदारी की। दो जिलों- उत्तरकाशी और देहरादून के जिलाधीशों ने स्वयं बच्चों के साथ बीज बम फेंकने में भागीदारी की। उल्लेखनीय है कि 2019 के पहले कुछ स्थानों पर बच्चों द्वारा स्कूलों के आसपास जो बीज बम डाले गए थे, उनसे उत्पादित सब्जी को मिड डे मिल में अतिरिक्त सब्जी के रूप में प्रयोग भी किया गया था।

इस अभियान को चलाने वाले द्वारिका प्रसाद सेमवाल के अनुभवों से सीख कर बीज बम अभियान में लोगों को यह नहीं पता था कि ऐसे प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के समय ही जापान में शुरू हो गए थे। अब यह अमेरिका, फ्रांस, इग्लैंड, केन्या और स्वयं भारत में धारवाड़ में भी हो रहे थे। इनमें हेलीकॉप्टरों और जहाजों का भी उपयोग हो रहा है। यही नहीं, व्यावसायिक कंपनियां अब पैकेटों में भी उनकी तरह के बीज बम, बीज गेंदों के नाम से बेच रही हैं। केन्या में तो व्यावसायिक कंपनियां सत्तर लाख तक बीज गेंद बेचने का दावा करती हैं।

जहां मिस्र में भी सैकड़ों वर्षों से ऐसी पद्धति अपनाई जा रही थी, वहीं इक्कीसवीं शताब्दी में अमेरिका की नासा जैसी संस्था भी इसको लोकप्रिय बनाने में लगी है। वास्तव में उत्तराखंड में प्रचारित ये बीज बम बीज गेंद ही हैं। दुनिया भी इन्हें बीज गेंद ही कहती है। बीज गेंदें फेंकने को बीज बमबारी का नाम वर्षों से पश्चिम में दिया जाता रहा है। ‘सीड बांबिंग’ वह प्रक्रिया है, जिससे बीज गेंद फेंक कर जमीन पर वनस्पति प्रवेश कराने का प्रयास किया जाता है। विभिन्न नामों से चल रहे हरित अभियानों और वनीकरण में इस पद्धति का उपयोग होता रहा है। ऐसे ही एक अभियान का नाम रहा गुरिल्ला गार्डनिंगि। यह वनीकरण में बहुत उपयोगी साबित हुआ। केन्या में हवाई जहाज से भी सीड बांबिंग की गई।

बीज बमबारी एक प्रकार की हरित कृषि पद्धति है। इसके लिए जमीन पर औजारों का उपयोग आवश्यक नहीं है। इस तकनीक को दूसरे विश्व युद्ध के समय जापान में प्राकृतिक कृषि को प्रचारित और प्रसारित करने वाले मसानबु फ्यूकोंका ने पुनर्जीवन दिया, विशेषकर ज्वालामुखियों की मिट्टी वाले क्षेत्रों में। ज्वालामुखीय मृदा उपजाऊ होती थी।

बीज बम अभियान उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। उत्तराखंड में जलागम विकास में भी इसे अपनाया जा सकता है। निस्संदेह इसमें बीजों का नुकसान होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसमें उतनी ही पैदावार सफलता के लिए पचीस से पचास प्रतिशत ज्यादा बीज की आवश्यकता होती है। पर जो इस प्रक्रिया को लोकप्रिय बनाने की कोशिश में हैं, जैसे भारत में धारवाड़ में सैकड़ों किसान इस अभियान में भाग ले रहे हैं वे बीज गेंदों को कर्नाटक के जंगलों में फेंक रहे हैं। वे कहते हैं कि फेंके गए पचहत्तर प्रतिशत बीज गेंदों से पौधे निकल रहे हैं।

बीज बमबारी नदी किनारे के तटों में निर्मल गंगा अभियान के अंतर्गत भी की जा सकती हैै। बीज गेंदों के लिए अधिकांशतया स्थानीय परिवेश की मिट्टी का ही उपयोग होता है। मिट्टी तालाबों की सफाई या नहरों की सफाई से निकली भी हो सकती है। पर सूरज के ताप में सुखाने पर आवश्यक है कि बीज गेंदों की मिट्टी ठोस रहे, भरभुरी न हो जाए। मजबूती देने के लिए मिट्टी और ऊर्वरकों के साथ लिए कागज की लुगदी मिलाने का भी प्रयोग किया गया है, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब बीज गेंदों को सख्त जमीन पर फेंका जाना हो। बीज गेंदों में अब ऐसा भी मिश्रण होता है, जिसकी निकलती गंध से बीजों के दुश्मन जीवजंतु भाग जाएं।

जंगलों में छिड़काव के लिए ऐसी बीज प्रजातियां चुनी जानी चाहिए, जिनमें पौध आदि की वहां जाकर देखभाल की जरूरत कम से कम पड़े। जिन प्रजातियों को हमने घरेलू बना दिया, खेतों में उगा रहे हैं, उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। जैसे जंगली आम, जंगली आंवला, जंगली फूलों को जंगलों में न के बराबर देखभाल मिलती है। जिन फलों-फूलों के बीज अब वनों में फेंक रहे हैं, वे अगर जंगली ही हों तो सफलता का प्रतिशत बढ़ सकता है। वहां उन प्रजातियों की जरूरत है, जिनमें उद्यानिकी जैसे कार्य न करने हों। क्योंकि जंगलों में उस तरह के कार्यों को करना ज्यादा संभव न होगा। विदेशों में भी बीज गेदों में, जिनसे बमबारी करनी है, जंगली फूलों के बीज ही होते हैं।

इससे गरम होती धरती को ठंडा करने में मदद मिलेगी। ग्रीन हाउस गैसें कम की जा सकेंगी। गरम होती धरा को बचाने की लड़ाई को जल्दी से जल्दी लड़े जाने की अपरिहार्यता के कारण बीज बर्बादी की आशंकाओं के बावजूद इस पद्धति को संज्ञान और वरीयता में रखा ही जाना चाहिए। उत्तराखंड में तो पिघलते हिमनदों, बढ़ते भूस्खलनों को कम करने में वानस्पतिक आवरण बढ़ाने के लिए बीज बम अभियान निश्चित रूप से एक सार्थक पहल है।

अंतत: ऐसे अभियानों में जन सहयोग बहुत जरूरी है, आप कर्मचारी रख कर तो बीज बम नहीं फिंकवाएंगे। इसी तरह बीज बम भी विकेंद्रित स्तर पर ही तैयार करने होंगे। स्थानीय मौसम और परिवेश जान कर, जैसे बरसात कब होती है, कितनी होती है, पानी कितना टिकता है, तापमान कैसा और कितना रहता है, सूरज की रोशनी कितनी रहेगी, कब रहेगी, बीजों और बीज बमबारी का समय अगर तय किया जाएगा, तो सफलता की ज्यादा आशा है। क्योंकि बीजों की जड़ें कितनी तेजी से जमीन के भीतर घुस कर मौसम की विपरीत परिस्थितियों को झेल सकती हैं, इसका पूर्व आकलन भी अपेक्षित है।

14वीं राष्ट्रीय सभा, हरद्वार-उत्तराखंड


दिनांकः दिसंबर 6, 2019
विषयः 14वीं राष्ट्रीय सभा, हरद्वार-उत्तराखंड (29-30 नवंबर, 1 दिसंबर 2019) की कार्यवाही एवं लिए गए निर्णय

मान्यवर,
उद्घाटन समारोहः स्वदेशी जागरण मंच की अखिल भारतीय राष्ट्रीय सभा प्रात 10.15 पर आचार्य श्री बालकृष्ण जी के करकमलों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ प्रारंभ हुई। इसके साक्षी बने श्री रूपेंद्र सिंह सोढ़ी (निदेशक अमूल इंडिया गुजरात) तथा डाॅ. रूप किशोर शास्त्री (उपकुलपति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार)
स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संयोजक श्री अरुण ओझा, संगठक श्री कश्मीरी लाल, सह संयोजकगण डॉ अश्वनी महाजन, श्री धनपतराम अग्रवाल, श्री आर सुंदरम, श्री अजय पत्की, अ.भा. महिला प्रमुख श्रीमती अमिता पत्की तथा विविध क्षेत्र के श्री पवन कुमार (भा.म. संघ), श्री रमाकांत भारद्वाज व श्री जितेन्द्र गुप्त (लघु उद्योग भारती), श्री लक्ष्मी नारायण भाला सहित कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष श्री विनोद चैधरी तथा संत स्वामी रूपेन्द्रानंद जी महाराज मंच को सुशोभित कर रहे थे।
मंच पर विराजमान अतिथियों का परिचय व संचालन डॉ. राजीव कुमार (क्षेत्र संयोजक उ.प्र.) ने किया।
आचार्य बालकृष्ण ने उद्बोधन का प्रारंभ भारत माता की जय से किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व कल्याणकारी है, वहीं पश्चिम के लोग भारत को बाजार मानते हैं इस बाजारवाद से लड़ाई का नाम है स्वदेशी। हम स्वदेशी संस्कृति के उपासक हैं। भारत का निर्माण भारत से होगा, इंडिया से नहीं। भारत से जुड़ा हुआ व्यक्ति- वह स्थानीय कारीगर (आर्टिज़न) हो या अन्य कार्य करने वाला, भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ा रहता है। देश में वर्तमान में 7 करोड़ से अधिक आर्टिज़न जो भारत की माटी से जुड़े हुए हैं और छोटे-छोटे उत्पाद बना रहे हैं। विदेशी कंपनियां इन लघु उद्यमों व उनके कारीगरों को समाप्त करना चाहती है। विदेशी कंपनियां अपने विज्ञापन के माध्यम से एक धारणा बना चुकी है कि विदेशी वस्तुएं ही श्रेष्ठ है जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने दंतकांति का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अमरीका में पिज्जा बर्गर के कारण हर दूसरा-तीसरा आदमी बीमार पड़ रहा है तथा कई बीमारियों से ग्रस्त है। अतः हमें अपनी खाद्यान्न श्रृंखला को बचाना चाहिए।
उन्होंने आयुर्वेद की महत्ता को प्रकट करते हुए कहा कि इस विषय की भारत में अभी 3 एक्स श्रेणी लैब (एक्सीलैंट क्लास) केवल हमारे पास है। इसका निर्माण करोड़ों रुपए लगाकर पतंजलि ने किया है। देश में 3 करोड से अधिक लोग एफएमजीसी में काम कर रहे हैं। उनको हमें वालमार्ट जैसी कंपनियों से बचाना है। आज देश में आयुर्वेद के प्रति सकारात्मक वातावरण बना है। सैकड़ों कंपनियां आंवला, एलोवेरा जैसे प्राकृतिक पेय का निर्माण कर रही हैं। यह स्वदेशी की जीत है।
श्री रूपेंद्र सोढ़ी (एमडी अमूल) ने 73 वर्षों के अमूल का इतिहास बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अमूल भारत की सबसे बड़ी एफएमसीजी बन गई है। अमूल व स्वदेशी के कारण देश दुग्ध उत्पादन में विश्व में नंबर 1 बन गया है। उन्होंने कहा विदेशी कंपनियां भारत में चैरिटी के लिए नहीं आती, अपितु वह पैसा कमाने आती है। भारत में विदेशी नेस्ले जैसी कंपनियां 8 से 10 प्रतिशत विज्ञापन पर खर्च करती है। जबकि अमूल मात्र 1 प्रतिशत विज्ञापन से ज्यादा खर्च नहीं करता। आरसैप की लड़ाई स्वदेशी जागरण मंच ने की और उसमें विजय प्राप्त की। उसकी बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि हम स्वदेशी के साथ खड़े हैं। स्वदेशी को बढ़ाने के लिए हमें गुणवत्तापूर्ण स्थानीय उत्पाद एवं उत्पादक खड़े करने होंगे, तभी हम विदेशी कंपनियों को मात दे सकेंगे।
गुरुकुल कांगड़ी के माननीय कुलपति श्री रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि स्वदेशी की भावना एक सामाजिक संकल्प है। यह हमारे वेद, संस्कृति, भाषा, भूषा खानपान से जुड़ा है। उन्होंने खादी को पहनने का आग्रह किया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक फार्मेसी खड़ी की है जो कि स्वदेशी रिसर्च पर आधारित है।
श्री अरुण ओझा ने सत्र 2018-19 में हुए स्वदेशी जागरण मंच के कार्यक्रमों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि हम सब कार्यकर्ताओं को आह्वान करते हैं कि आरसीईपी के विरोध में विजय को निरंतर बनाए रखना पड़ेगा। उन्होंने आरसीईपी पर सरकार द्वारा हस्ताक्षर न करने की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने प्रधानमंत्री को महाबली कहकर स्वागत किया। उन्होंने कहा कि श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जन्म शताब्दी में कार्यक्रम करने का आग्रह किया। कार्यक्रम में श्री विनोद चैधरी (स्वागताध्यक्ष) ने अपना उद्बोधन दिया तथा परम पूज्य सरसंघचालक जी द्वारा दिए गए उद्बोधन पर आधारित ‘दिशा बोध’ पुस्तक का विमोचन किया।
श्री भालाजी द्वारा भारतीय संविधान के ‘चित्रों की व्याख्या’ पुस्तक श्री अरुण ओझा को भेंट की। कार्यक्रम में धन्यवाद श्री रामकुमार चैधरी (सह संयोजक उत्तराखंड प्रांत) ने किया। इस प्रकार से उद्घाटन सत्र का समापन हुआ।
कार्यवृत्तः प्रथम सत्र के प्रारंभ में ही केरल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक व विदर्भ प्रांत का कार्यवृत्त हुआ। जिसमें उन्होंने गत 6 मास में हुए विशेष कार्यक्रम, अ.भा. अधिकारियों के प्रवास व दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी उद्घाटन कार्यक्रमों की विशेष रूप से जानकारी दी। इसके अतिरिक्त श्री सतीश कुमार ने ‘जैविक, प्राकृतिक-परंपरागत कृषि ही है लाभकारी’ इस विषय का भूमिका सहित प्रस्ताव वाचन किया। जिसका अंग्रेजी अनुवाद श्री दीपक शर्मा ने पढ़ा।
आर्थिक उपनिवेशवाद - प्रोफेसर भगवती प्रकाशः विश्व की बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विकासोन्मुख बाजारों पर नियंत्रण करना चाहती हैं। आज अमेरिका की कुल आय 70 प्रतिशत विदेशों में बिक रहे उत्पादों पर निर्भर है। विदेशी कंपनियां चाहती है कि एफडीआई के साथ उनके लिए विदेशी बाजार (भारतीय) खुलें। आज देश में 70 प्रतिशत से अधिक टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, स्कूटर, सोलर उत्पाद विदेशी कंपनियों के बिक रहे हैं। डॉ भगवती प्रकाश ने बताया कि विश्व के विकसित देशों में बूढ़ों की संख्या बढ़ रही है। चीन में 24.1 करोड़ लोग 32 से 65 वर्ष के हंै। यूरोपीय देश में 20 से 30 प्रतिशत तथा उत्तरी अमेरिका में भी वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। चीन अमेरिका एवं यूरोपीय कंपनियां, भारत में अपने उत्पादों को अधिक से अधिक बेचना चाहती है। क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा युवा बाजार है। हम सोचें कि देश में, विदेशी कंपनियों का बोलबाला रहा, तो देश के रोजगार समाप्त हो जाएंगे। देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियां सांस्कृतिक प्रदूषण भी फैला रही है। 1990 के दशक में भारतीय परिवारों में 0.1 प्रतिशत विवाह विच्छेद होते थे। आज एक हजार परिवारों में 16 परिवारों में विवाह विच्छेद हो रहे हैं। देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियां धारावाहिकों में विज्ञापन के माध्यम से परिवार तोड़ने के डायलॉग बनाकर प्रस्तुत करती है। माता बहनों को विज्ञापन के माध्यम से प्रस्तुत करती है। देश में बढ़ते विदेशी कंपनियों के प्रभाव के बारे में बताया कि देश के सीमेंट उत्पाद को छह कंपनियां नियंत्रण कर रही हैं। जिसमें फ्रेंच की लाफार्ज, स्विजरलैंड की कंपनियां प्रमुख है। आज मीडिया क्षेत्र में भी विदेशी कंपनियों का प्रभाव बढ़ गया है। जिसके कारण वह हमें क्या पढ़े, क्या देखें आदि पर भी निर्भर बना रही हैं। आज हमारी निर्माण प्रक्रिया से लेकर रसोई के उत्पाद विदेशी हो चुके हैं। हमें देश में बढ़ रही बेरोजगारी रोकनी है तो विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना पड़ेगा। अभी-अभी देश में तीन लाख करोड़ के कारखानें, विदेशी कंपनियों ने खरीद लिए हैं तथा देश में एक करोड़ से अधिक एनर्जी मीटर विदेशी कंपनियां बना रही है। अतः हमें देश में बढ़ती बेरोजगारी को मिटाने के लिए स्वदेशी वस्तुओं एवं संस्कृति को अपनाना ही होगा तभी हम लोग एमएनसी का मुकाबला कर सकेंगे।
राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्यः स्वदेशी जागरण मंच की 14वीं राष्ट्रीय सभा में उत्तराखंड राज्य की माननीय राज्यपाल महोदया श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने देशभर से आए कार्यकर्ताओं को भारतीय संस्कृति एवं स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने उत्तराखंड की महिलाओं को कर्मशील बताया। उन्होंने बताया कि यहां की महिलाएं आचार, स्वेटर आदि बनाती है, समाज में कार्य करती है, जड़ी बूटियां खोजती है और कैंसर के इलाज की भी जड़ी बूटियां खोजी हैं। उन्होंने बताया कि हमारा स्वदेशी जागरण मंच एक ऐसा मंच है जो हमें हमारी संस्कृति की ओर लौटा रहा है। हम स्वदेशी के माध्यम से देश भक्ति का भाव जगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमारी दिनचर्या बदल गई है जिसके कारण हमारी उम्र भी कम होती जा रही है। हमारे बहन-भाइयों में जो छुपी हुई प्रतिभाएं है वह कैसे बाहर आएं, उसके लिए हमें काम करना है। चीन हो या जापान, आज वह अपनी आर्थिक व्यवस्था के कारण मजबूत है। हमारा पर्यावरण लगातार प्रदूषित हो रहा है। यदि पर्यावरण को बचाना है तो वृक्ष जरूर लगाना है। प्लास्टिक का उपयोग बंद हो। जन्मदिन और विवाह के अवसर पर एक वृक्ष अवश्य लगवाएं। हमारे किसानों की आय दुगनी कैसे हो, इस और भी हमारा प्रयास हो।
कार्यवृत्तः द्वितीय सत्र के प्रारंभ में प. महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाकौशल, मालवा, मध्य भारत आदि प्रांतों का वृत्त कथन हुआ। डाॅ. अश्वनी महाजन ने वर्तमान के आर्थिक मुद्दों व आरसीईपी पर हुई विजय के बारे में विस्तार से बताया। प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने ‘रोजगार भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदू...’ इस विषय का भूमिका सहित वाचन किया।
डॉ अश्वनी महाजन (अखिल भारतीय सह संयोजक)ः ने स्वदेशी जागरण मंच के वर्तमान के मुख्य मुद्दों को कार्यकर्ताओं के सम्मुख ओजस्वी शैली में प्रस्तुत किया। मंच के गठन के साथ ही वर्तमान तक स्वदेशी जागरण मंच ने जिन मुद्दों के आधार पर संघर्ष किया, उसकी पहचान देश में दुनिया में अलग से बनी है। भारत ने डब्ल्यूटीओ का संगठित स्वरूप में मुद्दों के आधार पर विरोध किया। परिणामस्वरूप, कृषि व पेटेंट कानून के संबंध में वैश्विक शक्तियां बैकफुट पर आयी हैं और आज हमने आरसीईपी के संबंध में भारत में होने वाले खतरों के बारे में अखिल भारतीय स्तर पर ज्ञापन, संगोष्ठी के माध्यम से जनजागरण किया। जिससे भारत सरकार आरसीएपी समझौते से हट गई। चीन, जापान अब आरसीईपी के विवादित मुद्दों पर बात करने के लिए भारत से बार-बार आग्रह कर रहे हैं। यह स्वदेशी जागरण मंच की बहुत बड़ी जीत है।
उन्होंने बताया कि देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कई सलाहकार भारत सरकार के अधिकारियों को सलाह देते थे तथा तनख्वाह एमएनसी से लेते थे। उनको योजनापूर्वक ब्लैक लिस्ट (बाहर) किया गया। ई-कॉमर्स पर लड़ाई के बारे में भी बताया।
देश भर में अमेजन, फ्लिपकार्ट के विरूद्ध हमने आंदोलन किया। इनके कारण देश में बेरोजगारी फैल रही है। ये देश के धन को लूटने में लगी हैं। इस विषय को हम आंदोलन के द्वारा, विरोध प्रदर्शन द्वारा सरकार और जनता को जागृत कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एमएनसी रॉयल्टी और तकनीक के नाम पर देश से 20 अरब डालर वार्षिक लूट रही है। इसके लिए भारत सरकार को ज्ञापन दिया गया। बीटी बैंगन के लिए आंदोलन किया। उस पर यूपीए सरकार के समय से रोक है। आज एचडी, बीटी कॉटन, ग्लाईफोसेट कंपनी बेच रही हैं। अमेरिका में इस पर कई केस चल रहे हैं। इस कपास के बीजों के रसायन से कैंसर उत्पन्न हो रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए हम आंदोलन करेंगे। देश में डिसइनवेस्टमेंट के नाम पर गलत निवेश की योजना बन रही है। उन्होंने कहा कि बीपीसीएल, एयर इंडिया को बेचने की योजना चल रही है। हम इसका विरोध करेंगे।
डाॅ. धनपत राम अग्रवाल- बौद्धिक संपदा अधिकार को समझने के लिए दो बातें आती है। पहली है बौद्धिक संपदा, यानि जो भी नई सोच या नई खोज जो हमारी बुद्धि में उपजी है और जैसे ही हम उसकी अभिव्यक्ति करते हैं तो वह हमारी बौद्धिक संपदा कहलाती है। यह अभिव्यक्ति किसी वैज्ञानिक अविष्कार के रूप में भी हो सकती है या फिर किसी कविता, संगीत, गीत अथवा चित्र के माध्यम से भी हो सकती है। अगर यह नई खोज आविष्कार वैज्ञानिक क्षेत्र से संबंधित होती है तो उसे कानून तौर पर पेटेंट के नाम से जाना जाता है या फिर अगर कविता, गीत, संगीत यानि किसी पेटेंट आदि के रूप में होती है तो उसे कॉपीराइट कहते हैं। इस तरह के आविष्कार या नई कला का वैज्ञानिक ढंग से रजिस्ट्रेशन करवा लिया जाता है तो उसे बौद्धिक संपदा अधिकार अथवा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (आईपीआर) कहते हैं।
आज के तकनीकी युग में बौद्धिक संपदा हमारे आर्थिक विकास में बहुत महत्व रखती है। हमारे देश में मानव संपदा दुनिया में सबसे सर्वोत्कृष्ट किस्म की है और जरूरत इस बात की है कि हम मानव संपदा को शिक्षण संस्थानों द्वारा अनुसंधान के आधार पर उसे बौद्धिक संपदा में परिवर्तित करें। अमेरिका और चीन बौद्धिक संपदा के बल पर दुनिया में अपना आर्थिक वर्चस्व बनाए हुए हैं। भारतवर्ष में भी हमारी सरकार ने 13 मई 2016 को जो बौद्धिक संपदा अधिकार नीति की घोषणा की है उसके तहत आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक शक्ति का कार्यकलाप बदलने वाला है। प्रत्येक स्कूल, कॉलेज एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में गांव से लेकर शहरों तक हमारी बौद्धिक संपदा की पहचान एवं उसे विकसित करने के साधन जुटाकर भारत को बौद्धिक संपदा क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष स्थान पर पहुंचाने की आवश्यकता है। हमने पेटेंट की लड़ाई विश्व व्यापार संगठन तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों से बहुत हिम्मत के साथ लड़ी है और वर्तमान में बौद्धिक संपदा कानून अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है एवं हमारे राष्ट्र में तकनीक स्तर पर आर्थिक वृद्धि एवं समृद्धि के अनुकूल  है। स्वदेशी जागरण मंच ने इस बौद्धिक संपदा के आधार पर हमारे देश को एक वैभवशाली राष्ट्र बनाने के लिए जो जन जागरण अभियान छेड़ा है उसमें स्वदेशी तकनीकी के आधार पर स्वदेशी उत्पादों में गुणात्मकता ला सकते हैं और हम किसी भी बाहरी उत्पादों के साथ प्रतियोगात्मक बन सकेंगे ताकि न हमें भारी आयात पर निर्भर रहना पड़े और ना ही विदेशी विनियोजन की आवश्यकता होगी और ना ही बाहरी तकनीक पर निर्भर करना पड़ेगा। ऐसी अवस्था में हमारी बौद्धिक संपदा की ताकत हमारे रुपए की ताकत को भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत बनाएगी तथा हमारे देश की कुल सकल आय भी दुनिया में अग्रणी स्थान पर पहुंचेगी और हमारे करोड़ों देशवासियों के लिए रोजगार उपलब्ध होंगे।
वरिष्ठ प्रचारक एवं स्वदेशी जागरण मंच की केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य श्री सरोज मित्र ने दत्तोपंत ठेंगड़ी के जीवन को विभिन्न उदाहरणों द्वारा कार्यकर्ताओं के समक्ष रखा। राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी भारत के चिरंजीवी विकास हेतु चिंतनशील रहते थे। ठेंगड़ी जी ने इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण करने वाले संगठनों की स्थापना की। उन्होंने मजदूर संघ, किसानों के बीच में किसान संघ तथा देश स्वदेशी संस्कृति एवं अपनी क्षमता पर खड़ा हो, इसके लिए स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की। ठेंगडी जी जब रूस जाकर 1968 में लौटे, तो उन्होंने कोलकाता में घोषणा की, कि कम्युनिज्म रिवर्स गियर में आ चुका है। अर्थात कम्युनिज्म खत्म होने जा रहा है। वह दूरदृष्टा थे। कोलकाता में उनके साथ सुनील घोष (सुभाष चंद्र बोस के मित्र) मिले, तब घोष ने कहा कि ठेंगड़ी जी सुभाष चंद्र बोस से अधिक राष्ट्रीय चिंतक है।
ठेंगड़ी जी ने हयूमिनिज्म पर काम किया। वे मानव मात्र के कल्याण के लिए बात करते थे। इससे प्रभावित होकर  कम्युनिस्ट विचारक श्री डांगे ने भी उनकी प्रशंसा की, कि ठेंगड़ी जी बहुत श्रेष्ठ चिंतक है।
ठेंगड़ी जी ने 1975 में कटक में इंदिरा गांधी के बारे में कहा था कि इंदिरा गांधी की इमरजेंसी 16 महीने में समाप्त होगी। ऐसी दूरदृष्टि वाली बात की। माननीय श्री गुरु जी एवं ठेंगड़ी जी आपस में घंटों वार्ता करते थे, जिससे देश के विकास की नई नई संकल्पना के आधार पर कई संगठन खड़े हुए। जिससे आज देश में राष्ट्र प्रेमी भा.म.स., किसान संघ, स्व.जा.मंच जैसे अनके संगठन खड़े हैं।
1976 में उन्होंने रिवॉल्यूशन करके एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि आंदोलन कभी हिंसक नहीं होना चाहिए अर्थात शांतिपूर्ण आंदोलन के पक्षधर थे। वे कार्यकर्ता पर पूर्ण विश्वास करते थे और कार्यकर्ता की कोई गलती होने पर भी उत्तरदायित्व स्वयं लेते थे। श्री सरोज मित्र ने कहा कि हमें शताब्दी कार्यक्रमों के बाद एक घोषणा पत्र भी जारी करना चाहिए।
कार्यवृत्तः 30 नवंबर प्रातःकाल के पहले सत्र में ही चित्तौड़, जोधपुर, जयपुर, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल व जम्मू कश्मीर प्रांत का कार्यवृत्त उनके प्रांत संयोजकों ने प्रस्तुत किया। ‘डेटा संप्रभुता-डिजिटल राष्ट्रवाद...’ के प्रस्ताव का वाचन डाॅ. अश्वनी महाजन ने भूमिका सहित किया तथा विकास की अवधारणा पर राष्ट्रीय संगठक श्री कश्मीरी लाल द्वारा उद्बोधन हुआ।
विकास की अवधारणाः अखिल भारतीय संगठक श्री कश्मीरी लाल ने कार्यकर्ताओं को माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जन्म शताब्दी हेतु वर्ष भर के लिए अपने को विषय के साथ तैयार रहने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें विकास की अवधारणा पर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में विषय लेते समय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी और भारत निर्माण तथा राष्ट्र की अवधारणा, जिसमें देश की समृद्धि का समुचित वर्णन हो, लेना चाहिए। अ.भा. संगठक ने आग्रह किया कि हमें दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की पुस्तिका ‘विकास की अवधारणा’ को पढ़ना चाहिए। ठेंगड़ी जी आधुनिकीकरण के पक्षधर थे, पर वे कहते थे कि डवकमतदप्रंजपवद ूपजीवनज ूमेजमतदप्रंजपवद होना चाहिए। ठेंगड़ी जी कहते थे कि हम विदेशों की नकल न करें। हमारा विकास ‘गरीबी कैसे हटे’ इसके लिए हो।
ठेंगड़ी जी कहते थे कि वर्तमान में जो गरीबी है इसको हटाने के लिए नेता कहते हैं कि इसको योजना से हटाना पड़ेगा। परंतु ठेंगड़ी जी ने इसे हेतू एक पुस्तक दयाकृष्ण जी से लिखवाई, उनका शीर्षक था ‘योजनाबद्ध गरीबी’। ठेंगड़ी जी गरीबी के लिए कहते थे कि चवअमतजल पे दवज कमेचपजम चसंददपदह इनज इमबंनेम व िचसंददपदहण् उन्होंने खेती का उदाहरण देते हुए कहा कि विकास के कारण सर्वनाश नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब किसान के बेटे को गोबर से बदबू आने लगे तो समझो कि देश में अकाल पड़ने वाला है। जब देश के लोगों को देश की वस्तु से घृणा होने लगे तो समझो देश में महामंदी आने वाली है। उन्होंने इवान इलिच एवं हेरी ट्रूमैन का उदाहरण देते हुए बताया कि डेवलपमेंट शब्द का प्रयोग लूट की अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि श्री गोखले नाम के अर्थशास्त्री ने अपनी पुस्तक में लिखा कि अंग्रेजों ने भारत से 45 ट्रिलियन डालर लूटा है। वर्तमान भारतीय विदेश मंत्री श्री जयशंकर ने भी इस पर सहमति प्रकट की। देश के माननीय प्रधानमंत्री ने देश को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प किया है। यह तभी संभव है जब देश में विकास अंत्योदय से शुरू हो। श्री कश्मीरी लाल ने कहा कि विकास के लिए 6 सूत्र जरूरी है। प्रथम, विकास की शुरुआत विकेंद्रीकरण से हो। द्वितीय, यह विकास गांव आधारित हो। गांव बचेगा तो देश बचेगा। महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की कल्पना गरीब वर्गो से प्रारंभ होती है। तृतीय, उन्होंने कहा रोजगार, विकास का आधार होना चाहिए, रोजगारविहीन विकास का कोई अर्थ नहीं। चैथा, पर्यावरण हितैषी। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा, प्रकृति पूजक है। माताएं बहनंे प्रातः उठते ही वृक्षों को जल चढ़ाते थी। अतः विकास पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए होना चाहिए। अंत में श्री कश्मीरी लाल ने कहा कि हमारे देश की परंपरा धर्माधिष्ठित विकास की रही है। अर्थात मानव मात्र के कल्याण का आधार चिरंजीवी विकास है। आपने एकात्म मानव विकास मात्र के विकास को सच्चा विकास बताया है। जिसमें मानवता बचेगी, प्रकृति बचेगी, पृथ्वी बचेगी, यही स्वदेशी का मूल मंत्र है। विकास की अवधारणा है।
आम सभाः 14वीं राष्ट्रीय सभा की स्वदेशी संदेश यात्रा के पश्चात आमसभा पर कार्यक्रम रहा। इसमें मुख्य अतिथि श्री सतपाल जी महाराज, केबिनेट मंत्री उत्तराखंड सरकार रहे। श्री मोहन जी गांववासी ने अध्यक्षीय उद्बोधन किया। कार्यक्रम में कर्नाटक प्रांत के सह संयोजक श्री एस.सी. पाटिल ने आरसीईपी में भू-राजनीति की बात कही। उन्होंने कहा कि आरसीईपी पर हस्ताक्षर न करके चीन की भू-राजनीति पर रोक लगाई है। कार्यक्रम में अनंदाशंकर पाणीग्रही ने कहा कि स्वदेशी आर्थिक आजादी की लड़ाई है। यह आम आदमी, अंतिम व्यक्ति की उन्नति का मार्ग है। डब्ल्यूटीओ व एमएनसी भारत के व्यक्ति को विकसित नहीं होने देना चाहती। इसलिए हमें इनके उत्पादों का बहिष्कार करना है। हम भारतीयता के स्वाबलंबी बनाने के लिए स्वदेशी आंदोलन चला रहे हैं। स्वदेशी का मतलब है स्वावलंबी भारत।
कार्यक्रम में स्वदेशी जागरण मंच की महिला प्रमुख श्रीमती अमिता पत्की ने महिलाओं का आह्वान करते हुए कहा कि हमें परिवार को संस्कारित करना है। वहां स्वदेशी का संकल्प करवाना है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत संपर्क का संगठन में बहुत महत्व होता है। अतः हमें परिवारों में स्वदेशी का प्रसार करना चाहिए।
भारतीय मजदूर संघ के श्री पवन कुमार ने देश के पब्लिक सेक्टर में खड़े उद्योगों की बात करते हुए कहा कि भारत सरकार विदेशी कंपनियों को यह उद्योग न बेचें। पवन जी ने कहा कि कंाटेªक्ट रोजगार देश के व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति खराब कर रही है, जिससे आर्थिक मंदी की संभावना बनती है।
सभा में अखिल भारतीय विचार विभाग प्रमुख श्री सतीश कुमार ने स्वदेशी आंदोलन को सांस्कृतिक उत्थान का मूलमंत्र बताया। उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिक राष्ट्र है। भारत में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 1850 में श्री राम सिंह कूका से लेकर 1920 में महात्मा गांधी के स्वदेशी (चरखे) आंदोलन के माध्यम से बढ़ता गया।
1991 में स्वदेशी आंदोलन मंच के नाम से राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने शुरू किया जो गत 28 वर्षों में डब्ल्यूटीओ का विरोध, महाराष्ट्र में एनराॅन कंपनी के खिलाफ, 1998 में पशुधन बचाओ, समुद्री क्षेत्र में मछुआरों के रोजगार बचाने की नौका यात्रा, 2017 में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन, फिर एक लाख लोगों की दिल्ली में रैली, ई-काॅमर्स से रिटेल को हो रहे नुकसान पर जनजागरण, खुदरा व्यापार की लड़ाई के माध्यम से बढ़ता चला आया है। और अभी-अभी आरसीईपी पर सफल संघर्ष किया ही है। अंत में श्री सतीश कुमार ने कहा कि शताब्दी वर्ष में सारे देश व दुनिया में स्वदेशी आंदोलन फैलाकर हम ठेंगड़ी जी के सपनों को साकार करेंगे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सतपाल जी महाराज ने स्वदेशी जागरण मंच की प्रशंसा करते हुए कहा कि स्वदेशी जागरण मंच भारत के आम नागरिक के विकास की बात कर रहा है। उन्होंने ई-कॉमर्स को देश के व्यापारियों के लिए घातक बताया और कहा कि हमें अपने व्यापारियों को बचाने के लिए  ई-कॉमर्स को रोकना होगा। श्री सतपाल जी महाराज ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए स्वदेशी इंस्फ्रास्ट्रक्चर बांड बनाकर एफडीआई काो आमंत्रित कर सकते हैं। महाराज ने कहा कि नई दिल्ली से बंग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर तक रेल मार्ग का विस्तार करना चाहिए। इन देशों के साथ व्यापार के माध्यम से मजबूती से जुड़ सकेगें। और भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में मजबूत होगी। सतपाल महाराज ने कहा कि हमारे देश को आयुर्वेद, स्वदेशी तथा तीर्थाटन के माध्यम से विकसित करने का आह्वान किया व उस प्रांत की कई अच्छी योजनाओं की जानकारी दी।
कार्यवृत्तः अगले सत्र में उत्तराखंड, प.उ.प्र., अवध, पूर्वी उ.प्र., दोनों बिहार, झारखंड, उड़ीसा व बंगाल प्रांतों का कार्यवृत्त हुआ। इसके अतिरिक्त श्री सतीश कुमार ने देश भर में हुए श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी समारोह कार्यक्रमों की जानकारी दी। विशेषकर नागपुर में हुए 10 नवंबर को प्रथम अ.भा. उद्घाटन कार्यक्रम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अ.भा. अध्यक्षा श्रीमती सुमित्रा महाजन ने उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा पूज्य सरसंघचालक डाॅ. मोहनराव भागवत ने बहुत प्रेरणापद प्रसंग व विचार (ठेंगड़ी जी के संदर्भ में) प्रस्तुत किए।
दिल्ली में चल रहे माईक्रोफाईन्स के कार्यक्रम चैपाल की जानकारी भी दी गई। इसके द्वारा दिल्ली में ही सौ कार्यक्रम आयोजित हो चुके है, जिनके कारण दिल्ली की हजारों गरीब महिलाएं अपने बल पर अपना रोजगार चला रही हैं व परिवार का भरण-पोषण कर रही है। श्री भोलानाथ विज की अगुवाई में यह कार्यक्रम दिल्ली में पं. दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित स्वदेशी कार्यालय से सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। मंच श्री भोलानाथ विज व पूरी चैपाल टीम का अभिनंदन करता है।  
स्वदेशी जागरण मंच की आगामी कार्यदिशाः आगामी कार्यक्रम के लिए माननीय कश्मीरी लाल ने कहा कि हम अपने क्षेत्र में जाकर स्वदेशी के राजदूत के जैसे कार्य करें। परम पूज्य सरसंघचालक जी के विजयादशमी उत्सव पर दिए गए मार्गदर्शन पर प्रकाशित पुस्तक ‘दिशा बोध’ का सभी कार्यकर्ताओं को पढ़ने का आग्रह किया। उन्हें कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जन्म शताब्दी पर हम सभी मिलकर ‘विकास की अवधारणा’ व राष्ट्र की अवधारणा पर ठंेगड़ी जी के विचारों का अध्ययन करें। हम 7 निम्न बिंदु ध्यान में रखकर कार्यकर्ताओं को संपर्क करें। ये बिंदू है- पत्रक, पत्रिका, प्रचार, प्रदर्शन, प्रवास, प्रबोधन और पैसा (धन संग्रह)।
आगामी कार्यक्रमों की जानकारी देने से पहले उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि इस शताब्दी समारोह में न्यूनतम 15 दिन का समय स्वदेशी विस्तारक बनकर दें। आगामी कार्यक्रमों के लिए हमें क्या करना है, उसके लिए निम्न योजना का आग्रह किया।
1. 14वीं राष्ट्रीय सभा के प्रस्तावों को पढ़ना, पढ़ाना, समाचार पत्रों में देना।
2. प्रत्येक जिला केंद्रों पर ठेंगड़ी जी के जन्म शताब्दी के उद्घाटन कार्यक्रम करना।
3. जनवरी-फरवरी माह में विकास की अवधारणा पर महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में संगोष्ठी करना, प्रबोधन करना।
4. 23 मार्च भगत सिंह के शहीदी दिवस पर युवाओं की रैलियां निकालना।
5. जून-जुलाई में राष्ट्रीय विचार वर्ग आयोजित करना। जिसमें प्रत्येक सहभागी, ठेंगड़ी जी का साहित्य अवश्य पढ़कर आयें।
6. 25 सितंबर से 2 अक्टूबर तक स्वदेशी सप्ताह में प्रत्येक जिल,े स्कूल और कालेजों में पत्रक वितरण करना और उद्बोधन भी देना। इस हेतु नए लोगों को जोड़ना।
7. प्रमुख स्तंभकार लेखकों को राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का साहित्य देना।
8. राज्य के अधिकारियों से संपर्क करना। ठेंगड़ी जी का साहित्य देना तथा सकारात्मक व्यक्तियों की सूची बनाना।
9. अपने घर में ठेंगड़ी जी का चित्र लगाकर जन्मशताब्दी का कार्यक्रम घर में करना तथा स्वदेशी संकल्पित परिवारों का निर्माण करना।
10. देश और दुनिया भर में फैले हुए स्वदेशी प्रेमी बंधु-बहनों को डिजिटल माध्यम से जोड़ने के लिए ‘जाॅइन स्वदेशी...’ प्रक्रिया खड़ी की जायेगी। जिसकी देखरेख श्री बलराम नंदवानी (अ.भा. सहविचार विभाग प्रमुख) करेंगे।

प्रतिनिधिगणः देश भर से विभिन्न राज्यों से निम्नलिखित स्वदेशी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया - केरल-20, तेलंगाना-03, आंध्र प्रदेश-23, तमिलनाडू-08, कर्नाटक-25, विदर्भ-22, प. महाराष्ट्र-03, कोकण-02, गुजरात-39, मध्य भारत-47, महाकौशल-24, मालवा-23, छत्तीसगढ़-04, चित्तोड़-19, जोधपुर-30, जयपुर-38, जम्मू कश्मीर-25, पंजाब-15, हिमाचल प्रदेश-43, हरियाणा-60, दिल्ली-85, प.उ.प्र.-42, अवध-04, पूर्वी उ.प्र.-96, उत्तराख्ंाड-07, उड़ीसा-83, प. बंगाल-57, झारखंड-78, उ.बिहार-14, द.बिहार-40, सिक्किम-01, कुल-980

दायित्वः श्री आर.सुन्दरम जी अब स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संयोजक का दायित्व निभायेंगे तथा अभी तक अखिल भारतीय संयोजक श्री अरूण ओझा जी अब अखिल भारतीय सहसंयोजक रहेंगे। ऐसे ही आयुवृद्धि के कारण अब तक अ.भा. सहसंयोजक प्रो. बी.एम.कुमारस्वामी अब सिर्फ रा.प. सदस्य रहेंगे। राष्ट्रीय सभा में निम्नलिखित स्वदेशी कार्यकर्ताओं के दायित्व की भी घोषणा हुई -
- तमिलनाडू- श्री पी. पूमारन-मदुरै (विभाग संयोजक व रा.प. सदस्य)
- आंध्र प्रदेश- श्री कृष्णभगवान (सिर्फ प्रांत संपर्क प्रमुख रहेंगे)।
- कर्नाटक- अब से दो प्रांत रहेंगे 1. दक्षिण कर्नाटक, 2. उत्तर कर्नाटक, श्री जगदीश इन दोनों प्रांतों के संगठक व तेलंगाना के संपर्क प्रमुख रहेंगे।
श्री मंजूनाथ (प्रांत संयोजक-द. कर्नाटक), श्री विजय कृष्णा (प्रांत सहसंयोजक-द. कर्नाटक), श्री एस.सी. पाटिल (प्रांत संयोजक-उत्तर. कर्नाटक), श्री श्रीनिवास (प्रांत संपर्क प्रमुख, द. कर्नाटक), प्रो. सत्यनारायण (प्रांत सह विचार विभाग प्रमुख व रा.प. सदस्य)  
- मध्य भारत- श्री बाबूदास (केवल रा.प. सदस्य), श्रीकांत बुधोलिया (सह प्रांत संयोजक)
- महाकौशल- श्री संजीव डे (प्रांत संपर्क प्रमुख व रा.प. सदस्य)
- मालवा- श्री सुरेश बिजोलिया (सिर्फ रा.प. सदस्य), श्री हरिओम वर्मा (प्रांत संयोजक), श्री दिलीप चैहान (सह प्रांत संयोजक)
- राजस्थान क्षेत्रः डाॅ. सतीश आचार्य (क्षेत्र सह संयोजक, राज.),
- चित्तौड़ प्रांत- श्री पुरूषोत्तम शर्मा (प्रांत संयोजक), श्री महेश नवहाल (प्रांत सहसंयोजक), श्री राजेन्द्र शर्मा-कोटा (प्रांत सहसंयोजक)
- जयपुर प्रांत- श्री सुरेश खंडेलवाल (केवल रा.प. सदस्य)
- पंजाब- डाॅ. मनजीत बंसल (प्रांत संपर्क प्रमुख व रा.प. सदस्य), श्री अरविन्द (महानगर संयोजक व रा.प. सदस्य), श्री मधुर महाजन-चंडीगढ़ ( महानगर संयोजक व रा.प. सदस्य)
- हरियाणा- श्री अनिल कुमार-हिसार (विभाग संपर्क प्रमुख व रा.प. सदस्य)
- दिल्ली- श्री सुशील पांचाल (सिर्फ रा.प. सदस्य), श्री रविन्द्र सोलंकी (सिर्फ रा.प. सदस्य)
- अवध- डाॅ. मनोज अग्रवाल-लखनऊ (सह प्रांत संयोजक)
- पूर्वी उ.प्र.- श्री शारदानंद त्रिपाठी (प्रांत सह संघर्षवाहिनी प्रमुख)    
- उ. बिहार- श्री मणिकांत जालान (विचार विभाग प्रमुख, जिला बेगूसराय), श्री पवन कुमार (सह विचार विभाग प्रमुख, बेगूसराय)
- द. बिहार- श्री प्रवीण दूबे (प्रांत विचार विभाग प्रमुख व रा.प. सदस्य), श्री लाल बहादुर दुबे (सह प्रांत संयोजक)
- झारखंड- श्री पुतकर हैम्बर्ग (सिर्फ रा.प. सदस्य)
- बंगाल- डाॅ. समीर चटर्जी (प्रांत विचार विभाग प्रमुख व रा.प. सदस्य), डाॅ. भाग्योधर भट्टाचार्य (रा.प. सदस्य),
श्री अशोक पाल चैधरी (रा.प. सदस्य), श्रीमती दुलाली दसक (रा.प. सदस्य), श्री श्यामल कांतिधर (रा.प. सदस्य)
- सिक्किम- श्री शिरीष खाडे-नामची (सह प्रांत संयोजक)
- असम- श्री प्रशांत भोइयां अब सिर्फ राष्ट्रीय परिषद् सदस्य रहेगें।

विशेषः केंद्रीय टोली ने एक निर्णय द्वारा अ.भा. कार्यसमिति का पुनर्गठन किया है। इसलिए इसकी सूचना नये सिरे से भेजी जायेगी। जिन्हें इसकी सूचना मिले कृपया वे ही अपना आरक्षण 28-29 मार्च की कार्यसमिति बैठक दिल्ली हेतु करें।

समापन समारोहः समापन समारोह में अखिल भारतीय संयोजक श्री अरूण ओझा ने सभी कार्यकर्ताओं का अभिनंदन किया तथा हरद्वार की पवित्र धरती के पावन वातावरण में संपन्न अखिल भारतीय सभा के लिए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ता डाॅ. राजीव कुमार, श्री सुरेन्द्र सिंह, श्री रामकुमार सहित सभी कार्यकर्ताओं का आभार व अभिनंदन किया। स्वदेशी जागरण मंच की 28 वर्षाें की यात्रा के साक्षी श्री अरूण ओझा ने कहा कि भारत के आर्थिक क्षेत्र का स्वदेशी जागरण मंच का अखिल भारतीय संगठन सबसे बड़ा है। इस पर हमें गौरव है। यह कार्यकर्ताओं की तपस्या से हुआ है। भारत की परंपरा और पश्चिमी संस्कृति में अंतर बताते हुए कहा कि हम अंतिम व्यक्ति के विकास की चिंता करते है, वहीं पश्चिम के लोग सर्वोत्तम का चयन करते है। उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई आर्थिक साम्राज्यवाद के विरूद्ध है। देश में इसके कारण हमारी परिवार प्रणाली पर आक्रमण हो रहे हैं। परिवारों में पश्चिमी प्रभाव देखा जा रहा है व रहने का तरीका बदल रहा है। जिससे भारतीय संस्कृति पर काले बादल मंडरा रहे है। हमारी संस्कृति देश की आत्मा है और इस बचाना है। श्री घनश्याम दास बिडला के वाक्य को उद्धत करते हुए उन्होंने कहा कि भारत अपने आप में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। हमें अपनी शक्ति पर खड़े होना है। आज दुनिया को भारत की जरूरत है। हम वनराज हैं। अपनी शक्ति को हम पहचानते है। हम सब इसको मिलकर नई ताकत के रूप में खड़ा करेंगे। जो नहीं हुए पूर्ण काम ....... पंक्ति के साथ ही सब कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए अपना उदबोधन समाप्त किया।
मंच पर प्रो. भगवती प्रकाश ने श्री अरूण ओझा के स्थान पर श्री आर. सुन्दरम को अखिल भारतीय संयोजक के नये दायित्व की घोषणा की। श्री आर. सुन्दरम ने अपने उद्बोधन में श्रद्धेय बाला साहब देवरस जी को उद्धत करते हुए कहा कि अपने पास यह देव दुर्लभ टोली है, जो समाज जीवन में परिवर्तन करेगी। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती संयोजकों डाॅ. एम.जी. बोकरे, श्री पी.मुरलीधर राव, श्री अरूण ओझा के प्रयत्नों को स्मरण किया व प्रो. भगवती भगवती प्रकाश, श्री कश्मीरी लाल तथा अन्य महानुभवों को संबोधित होकर कहा कि इन सब लोगों का मार्गदर्शन लेते हुए पूज्य ठेंगड़ी जी की नीतियों के अनुसार स्वदेशी जागरण मंच को आगे बढ़ायेंगे। उन्होंने पूंजीवाद की चर्चा करते हुए कहा कि अनेक राष्ट्र इस विकास के मार्ग को अपना रहे हैं। पर स्वदेशी मार्ग इसको नहीं मानता। हमने आम आदमी की बात की है। डब्ल्यूटीओ के समान, आरसीईपी का भरपूर विरोध किया और हमें अंततः विजय मिली है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्ष भारत के अर्थिक क्षेत्र के लिए बड़े चुनौतिपूर्ण होंगे। मंच को इसके लिए तैयार रहना होगा। देश को 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने व रोजगार खड़ा करने हेतु व्यापक प्रयत्न भी करने होंगे। भारत में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के मार्ग पर चलते हुए हम राष्ट्र प्रथम, स्वदेशी प्रथम के सिद्धांत को अपनायेंगे। हम सबको भारत को एक महाशक्ति बनाने का संकल्प करना है। भारत माता की जय।
भवदीय

सतीश कुमार
स्वदेशी जागरण मंच, दिल्ली

संलग्नः चारों प्रस्ताव 

प्रस्ताव -1
जैविक, प्राकृतिक-परंपरागत कृषि ही है लाभकारी
स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा ने भारत में कृषि की मौजूदा स्थिति और किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दुर्बल स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की।भारत की आत्मा अपने गांवों में निहित है। प्राचीन भारतीय गाँव आत्मनिर्भर थे, जिनमें कुशल समुदाय शामिल थे और सभी लोग आत्मनिर्भर थे। देश के भोजन का उत्पादन करने के अलावा उन्होंने शहरों को प्राथमिक और द्वितीयक उत्पादों की आपूर्ति की। शहर, गाँवों पर निर्भर थे और दुनिया भर में व्यापार और निर्यात किए जाने वाले इन सामानों और उत्पादों के प्राथमिक आपूर्ति के केंद्र थे, गांव। इसके परिणामस्वरूप भारत ‘सोने की चिड़िया’ कहलाया और दुनिया के कुल उत्पाद (जीडीपी) का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा भारत का हो गया। दुर्भाग्य से, आज के गाँव पूरी तरह से बेरोजगारी की मार झेल रहे शहरों पर निर्भर हो गए हैं।
भारत में हरित क्रांति ने उच्च उपज देने वाली किस्मों, बीजों, सिंचाई, रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों को अपनाने और मशीनीकरण के कारण पारंपरिक कृषि को एक औद्योगिक प्रणाली में बदल दिया। हालाँकि इसने खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की और भारत को एक खाद्य अधिशेष राज्य बना दिया, लेकिन किसानों के लिए दीर्घकालिक सामाजिक और वित्तीय समस्याएं पैदा कर दीं। फसलों के लागत मूल्य में तेजी से वृद्धि हुई। पर नतीजा यह हुआ कि कृषि पर निर्भरता 1947 में 70 प्रतिशत से 44.8 प्रतिशत तक कम हो गई है, साथ ही साथ राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 49 से 14 प्रतिशत तक कम हो गया है। किसानों को संस्थागत फसल ऋण अब 11.68 लाख करोड़ रुपये है।
इस तरह के भारी इनपुट लगाने के बाद भी, कृषि उत्पादकता में स्थिरता आई है और कृषि क्षेत्र की वृद्धि आम तौर पर स्वीकृत 4 प्रतिशत के स्तर से भी कम 2.8 प्रतिशत है। आर्थिक सुधारों और वैश्वीकरण के कारण ग्रामीण आय में असमानताएँ हुई, जिससे संकट और बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्याएँ करने लगे। एमएसपी वृद्धि ने आम तौर पर संपन्न किसानों को लाभान्वित किया और भंडारण एजेंसियों के साथ 50 मिलियन टन से अधिक खाद्यान्न की अभूतपूर्व मात्रा में वृद्धि की, परंतु इससे सब्सिडी का बोझ कई गुना बढ़ गया।
रासायनिक खेती ने हमारी मिट्टी, पानी, नदियों, हवा, भोजन और यहां तक कि मां के दूध में भी जहर घोल दिया है। कैंसर, हार्टअटैक, डायबिटीज, बीपी, मनोवैज्ञानिक विकार इत्यादि के खतरे वाले जीवन अब सामान्य हैं। कॉटन बेल्ट में ‘कैंसर ट्रेन’ रासायनिक खेती का उपहार है। महंगे कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग ने न केवल खेती की लाभप्रदता को कम किया है, बल्कि राष्ट्र के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरे भी पैदा किए हैं।
उत्पादन की बढ़ती लागत ने 25 प्रतिशत छोटे किसानों को खेती से बाहर कर दिया और 31 प्रतिशत सीमांत किसान उत्पादकता में वृद्धि के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। रासायनिक खेती ने न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर दिया, बल्कि गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन के कारण रोजगार में कमी आई है। अकेले दस वर्षों में, शहरी आबादी 25.6 प्रतिशत से बढ़कर 30.2 प्रतिशत हो गई है।
भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ। एम.एस. स्वामीनाथन ने इन दुष्परिणामों को स्वीकार किया और अनेक वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि पारंपरिक कृषि उतनी अकुशल नहीं थी जितनी कि इसे बताया गया था। 1880 में नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और अकाल आयोग की रिपोर्टों से भी पारंपरिक खेती के कारण भारत में अक्सर अकाल कायम रहने का मिथक टूटा है।
पारंपरिक भारतीय कृषि प्रणाली ने बहु-स्तरित फसलों, मिट्टी के संवर्धन और उत्पाद मूल्य संवर्धन सहित व अधिक उत्पादन वाले इष्टतम मॉडल’ को अपनाया, जो पर्यावरण के साथ एक स्थिर संबंध भी स्थापित करती है। यह माॅडल खेती का सबसे वैज्ञानिक तरीका था, जो देशी गाय के आसपास विकसित और केंद्रित था, जिससे गाँव के सभी समुदायों को 100 प्रतिशत रोजगार भी मिलता था।
रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए, स्वदेशी जागरण मंच ने स्वदेशी स्वावलंबन मॉडल का आहवान किया, जो कि भारत में 43 लाख से अधिक किसानों द्वारा 15 से अधिक पारंपरिक खेती के तरीकों का सफलतापूर्वक अभ्यास किया जा रहा है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को सफलतापूर्वक अपनाना इस बात का प्रमाण है कि रासायनिक खेती की तुलना में उत्पादन वास्तव में बढ़ता है। ये भूमि अब ‘कीटनाशक मुक्त’ हैं और किसान की आय में कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
वैश्विक वैज्ञानिक सबूतों को स्पष्ट रूप से दोहराया गया है कि ‘जैविक खेती मौजूदा भूमि से 2050 तक 9 अरब की आबादी को सहजता से खिला सकती है’। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पारंपरिक भारतीय कृषि की अप्रत्यक्ष रूप से पुष्टि की गई है, जो श्रेष्ठ प्राकृतिक उत्पादों की श्रेष्ठता है और भारत निर्यात व जैविक उत्पादों के लिए विश्व नेता के रूप में है। भारत सरकार ने विभिन्न प्राकृतिक व परंपरागत कृषि तकनीकों की सफलता और क्षमता का एहसास करते हुए रुपये के परिव्यय के साथ एक महत्वाकांक्षी ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ शुरू की। 4000 करोड़।
कुछ निहित स्वार्थों ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का विरोध किया है कि यह मुद्रास्फीति को बढ़ाता है। विख्यात अर्थशास्त्रियों द्वारा हाल के कई अध्ययनों ने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक अध्ययन करके इस मिथक का भंडाफोड़ किया है।
स्वदेशी जागरण मंच भारत के नागरिकों से अपील करता है कि वे अपने कृषि को विदेशी कंपनियों के चंगुल से बचाने के लिए तरीकों और साधनों की तलाश करें, जो कि संकर/जीएम बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जहरीले जबड़े से भारतीय कृषि को मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार भी अनुकूल नीतियों का मसौदा तैयार करे।
इसलिए यह आवश्यक है कि पारंपरिक भारतीय तरीके से कृषि को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं हों, कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन को सुनिश्चित किया जाए और एमएसपी में काफी वृद्धि की जाए ताकि कृषि क्षेत्र को तेजी से रिकवरी मोड पर लाया जा सके। स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा आम जनता और विभिन्न राज्य सरकारों व केंद्र सरकार से भी इस संबंध में उचित निर्णय लेने का अनुरोध करती है।


प्रस्ताव -2 
रोजगार भारतीय अर्थव्यवस्था व समाज जीवन का प्राणतत्व है, इसकी वृद्धि हेतु सरकार व समाज दोनों प्रयत्न करें।

भारत अनादिकाल से आर्थिक स्वावलम्बन-प्रधान एवं पूर्ण रोजगारयुक्त राष्ट्र रहा है। हमारी अधिकांश जनसंख्या अपने पारिवारिक व्यवसाय के माध्यम से आर्थिक समृद्धि व स्वावलम्बन के मार्ग पर अनवरत अग्रसर रही है और देश के ग्राम व नगर अपनी अधिकांश आवश्यकताओं के लिए स्वावलम्बी रहे है। उन्नत व विकेन्द्रित उत्पादन के आधार पर ही ईसापूर्व काल से ही भारत, विश्व का सबसे बड़ा उत्पादन व वस्तु निर्यात का केन्द्र रहा है। ब्रिटिश आर्थिक इतिहास लेखक एंगस मेडिसन के अनुसार भारतवर्ष 1500 तक विश्व के एक तिहाई उत्पादों के उत्पादन व निर्यात का वैश्विक उद्गम रहा है। देश के विकेन्द्रित उत्पादन तंत्र का सुदृढ़ आधार नष्ट होने और वैश्वीकरण में आयात उदारीकरण व विदेशी पूंजी निवेश प्रोत्साहन के कारण आज विश्व के विनिर्माणी उत्पादन में भारत का योगदान मात्र 3 प्रतिशत ही है। आज देश के सूक्ष्म, लघु, मध्यम एवं वृहद-स्तरीय उद्यमों में फैलती रूग्णता व उद्यमबंदी से देश में फैलती बेरोजगारी के कारण, कार्यशील आय की जनसंख्या की श्रम शक्ति में भागीदारी तक 50 प्रतिशत से भी न्यून हो गयी है।
देश में बेरोजगारी एवं संगठित क्षेत्र मे रोजगार सृजन में सतत गिरावट, अनौपचारिक क्षेत्र के संकुचन, संगठित क्षेत्र में रोजगार के घटते अवसरों के आलोक में आने वाले समय में युवाओं को वृहद स्तर पर अपना स्व-उद्यम स्थापित करने की पहल कर स्वयं रोजगार प्रदाता बनना होगा। देश में कई युवाओं द्वारा अध्ययनोपरान्त स्टार्ट-अप सहित विविध सफल उद्यमों, कृषि क्षेत्र में नई तरीकों के प्रयोगों की स्थापना प्रवृत्ति बढ़ भी रही है। लेकिन, स्वरोजगार, स्व-उद्यमों एवं स्टार्ट-अप्स सहित स्वदेशी पूंजी आधारित उद्यमों की स्थापना के लिए वांछित पारिस्थितिकी तंत्र एवं उचित वातावरण के अभाव में स्वरोजगार सहित सभी प्रकार के रोजगार सृजन में गंभीर गतिरोध भी दृष्टिगोचर होता है। कृषि के बाद रोजगार के सबसे बड़े आधार वस्त्रोद्योग से लेकर सौर ऊर्जा व इलेक्ट्रानिक्स पर्यंत विविध क्षेत्रों के उद्यमबंदी भी चिंताजनक है। उद्यमिता विकास की मुद्रा योजना व स्टार्ट-अप संवर्द्धन आदि की 50 से अधिक शासकीय योजनाओं का अधिकतम लाभ उठाते हुये युवाओं को वेतनकर्मी बनने की अपेक्षा अपना सफल व स्व-संचालित उपक्रम स्थापित कर प्रत्येक ग्राम, कस्बे, नगर व महानगर को नवस्थापित उद्यमों से युक्त करते हुये हर घर-द्वार को रोजगार सृजन का आधार बनाना होगा। स्टार्ट-अप इण्डिया व स्टैण्ड-अप इण्डिया की महत्वकांक्षी योजनाओं के उपरान्त भी इतने विशाल युवाओं वाले देश में आज भी मात्र 50,000 पंजीकृत स्टार्ट-अपस् हैं और आगामी पाँच वर्षों में भी सरकार इसमें 50,000 की ही वृद्धि की अपेक्षा कर रही हंै। इस गति से उद्यमिता विस्तार से देश की बेरोजगारी की समस्या का समाधान कठिन है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था 80 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्रान्तर्गत व मात्र 6.5 प्रतिशत औपचारिक क्षेत्र में है। विगत 28 वर्षों में नव-उदारवादी नीतियों के अधीन विदेशी निवेश्कों व संगठित क्षेत्र को प्रदत्त लाखों करोड़ की राजकोषीय छूटों, सहायताओं, अनुदानों व उनके लिये घोषित विविध राजकोषीय पैकजों का 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या के योगक्षेम के मूल बने हुए आधार अनौपचारिक क्षेत्र को नहीं गया है। इसके विपरीत खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश, ई-कामर्स में विदेशी कम्पनियों के प्रवेश रोकड़ सहित व अल्परोकड़ उपयोग प्रोत्साहन योजनाओं आदि से स्वरोजगार क्षेत्र व अनौपचारिक क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ है।
स्वदेशी जागरण मंच सरकार से आग्रह करता है किः
1. देश के स्वरोजगाररत वर्गों की समस्याओं का निकट से अध्ययन कर उनके संरक्षण, समर्थन व सम्बल प्रदान करे। इस हेतु स्वरोजगार में संलग्न व्यक्तियों व परिवारों का विश्वसनीय और तथ्यात्मक डेटा बैंक व विस्तृत प्रतिवेदन भी विकसित करे। रोजगार निर्माण हेतु कोई नियामक भी बनाया जा सकता है।
2. स्वरोजगार को प्रभावित करने वाली आर्थिक नीतियों को उलटकर, उसे बढ़ावा देने की प्रभावी योजना लाये। स्वरोजगाररत एवं मुद्रा आदि ऋणों के पात्र लोगों को ऋण देने हेतु चयन बैंकांे पर छोड़ने के स्थान पर इच्छुक लोगों का स्वतंत्र पंजीयन, चयन व अनुशंसा करने की प्रक्रिया विकसित की जाये।
3. स्वरोजगाररत व अनौपचारिक क्षेत्र के उपक्रमों की सूचीयन, पंजीयन, विपणन व संवर्द्धन आदि के लिए ऐसा डिजिटल विनिमय ;क्पहपजंस म्गबींदहमद्ध विकसित करे जिस पर उनकी वस्तुओं व सेवाओं का लाभ पूर्ण विपणन हो सके।
मंच का आग्रह है कि सरकार स्व-उद्यम व स्टार्ट-अप सहित सभी प्रकार के स्वरोजगार में संलग्न वर्गों जिसमें फेरीवाले, रिक्शा वाले, कुम्हार, बढ़ई, चर्मकार, हस्तशिल्पी, टिफिन सेवा प्रदाता, सौन्दर्य विशेषज्ञ (ब्युटिशियन) आदि सभी स्वरोजगाररत वर्गों के सूचीयन, संवर्द्धन एवं उनके उचित योगक्षेम की वृहद स्तर पर आयोजन कर इसका अविलम्ब क्रियान्वयन करे।
मंच समाज से भी आग्रह करता है कि -
— युवा वर्ग सहित सभी श्रेणीयों के समाजजन विविध प्रकार के स्व-उद्यम व स्वरोजगार के अवसरों का उपयोग कर न केवल अपने रोजगार का सृजन करें, वरन अन्य भी रोजगार खोजने वाले अधिकतम लोगों के लिए रोजगार प्रदाता बनें। श्ॅम ूपसस दवज इम रवइेममामतए ूम ूपसस इम रवइ चतवअपकमतश् यह विचार देश भर के युवाओं का प्रेरक-दिशा बोध हो, इस हेतु जनजागरण करना होगा।
— स्थानीय व स्वदेशी की खरादो का आग्रह भी रोजगार, लघु व स्थानीय उद्योगों को बढ़ायेगा व रोजगार बढ़ेगा।
— कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर बेचना, व कृषि की सहायक गतिविधियां (गौ, पशुपालन, मधुमक्खी, मुर्गी पालन आदि) भी ग्रामीण क्षेत्र की आय व रोजगार बढ़ाती है।

मंच सभी कार्यकत्र्ताओं का भी आवाहन करता है कि सभी शिक्षण संस्थानों, स्थानीय स्व-उद्यम संकुलों और सम्पूर्ण समाज में स्व-उद्यम व स्वरोजगार की प्रेरणा जगायें और उद्यम उष्मायन केन्द्रांे अर्थात इनक्यूबेशन सहित उद्यमिता विकास की गातिविधियों उद्यमिता विकास अभ्यास वर्गों आदि के माध्यम से समाज को व्यापक स्तर पर स्वरोजगार की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा एवं अधिकतम सहकार प्रदान करंे।

प्रस्ताव -3
डेटा संप्रभुता-डेटा स्थानीयकरण-डिजिटल राष्ट्रवादः समय की मांग
डेटा चैथी औद्योगिक क्रांति का नया आधार है और यदि डेटा को प्रोसेस करते हैं तो इसमें एक तेज एल्गोरिथम के साथ वह करने की क्षमता है, जिसकी मानव अभी तक कल्पना भी नहीं कर पाया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सत्ता के लिए एक कच्चा माल है, प्रभाव बढ़ाने का स्रोत है और मानवता को नियंत्रित करने का एक माध्यम है। जब वैश्विक शक्तियां इस डेटा को कब्जाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, भारत जो दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा; इंटरनेट उपभोक्ताओं का पांचवां हिस्सा है, चुप नहीं बैठ सकता।
भारत को न केवल देश में इक्ट्ठा किए डेटा के स्वामित्व की ही नहीं, बल्कि देश की भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत डेटा की गणना करने के अधिकार की भी आवश्यकता है। डेटा व्यवहार को समझने और व्यवहार को प्रभावित करने के साथ-साथ कुशल रोजगार और उद्यमशीलता के अवसरों के सृजन की कुंजी है। यह भविष्य है, यह वर्तमान है और देश को इस अवसर को पाने के लिए जागना होगा।
यदि हम अपने आस-पास देखें तो रोबोट आधारित उत्पादन और मशीन लर्निंग के लिए डेटा एक कुंजी है, जो मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र को आकार दे रही है। ई-काॅमर्स फर्में और प्लेटफार्म डिजिटल अर्थव्यवस्था में डेटा को नियंत्रित कर रहे हैं और इसके माध्यम से वे एकाधिकारिक लाभ उठा रहे हैं। बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हम अपने ही आचरणों और उपक्रमों के व्यवहार और समाधान जानने के लिए डाॅलरों या यूरो में भुगतान कर सकते हैं? चैथी औद्योगिक क्रांति या डिजिटल औद्योगिक क्रांति की सफलता डेटा तक पहुंच पर निर्भर करती है।
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