Saturday, June 23, 2012

नोवार्टिस बनाम भारत - और इस के लिए हम क्या कर सकते हैं ?

नोवार्टिस बनाम भारत - और इस के लिए हम क्या कर सकते हैं ?

१० जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक फेंसला आने वाला हे जिसके निर्णय पर बहुत कुछ भारतीय फार्मा कंपनियों का और भारत ही नहीं दुनिया भर के गरीब केंसर पीडित लोगो का भविष्य निर्भर करेगा. हमें भी इस मामले में जरूर रूचि ही नहीं लेनी चाहिए बल्कि इसका प्रचार भी करना चाहिए और प्रदर्शन भी. कृपया निम्न थोड़ी सी बातों पर ध्यान जरूर दीजिये.

१. नोवार्टिस नाम की एक विदेशी कंपनी ग्लीवेक नाम की दवाई बनाती हे जो की ब्लड केंसर के मरीजो के काम आती हे. इसके एक कप्शूल की कीमत भारत में एक हजार रुपये हे.भारत के दवाई निर्माता कंपनियों ने इस दवा का जेनेरिक रूप केवल नब्बे रुपये में तेयार किया हे. मार्केट में ये दवा उतनी ही कारगर हे इस लिए भारतीय कंपनी की दवा केवल भारत में ही नहीं तो दुनिया के अन्य देशों में भी गरीब मरीजो के काम आ रही हे.

२. भारत में इस समय कोई चालीस हज़ार ब्लड केंसर के मरीज हे और दुनिया में दो लाख. अभी पता चला हे की ये दवा आंतो के केंसर में भी काफी लाभदायक हे. इस लिए अब ये केवल दो लाख नहीं बल्कि दुनिया के कोई दस लाख रोगियों के लिए एक-मात्र आशा की किरण हे. अभी तक भी ये भारतीय दवा भी दुनिया के नब्बे प्रतिशत मरीजो के पहुँच से बाहर हे. फ़्रांस के एक एनजीओ मेडिसन सन्स फ्रंटियर्स (Medicine Sans frontiers या MSF ) ही दुनिया के सोलह देशों के एक लाख सत्तर हज़ार इसे रोगियों को ये दवा भारत से खरीद कर मुफ्त में बाँटती हे. इसी प्रकार से एक और संस्था CANCER PATIENT AID ASSOCIATION या CPAA भी सेवा भाव से इस कार्य में लगी हे.

३. एक और बात ध्यान देने की हे और वो ये की ये जो नब्बे रुपये की एक गोली हे या नोवार्टिस की एक हज़ार रुपये के दवा की एक गोली हे ये दिन में चार बार लेनी होती हे इस लिए इस की भारतीय सस्ती दवा भी दिन में तीन सो साठ रुपये में और नोवार्टिस की चार हज़ार की एक दिन की कीमत पड़ती हे. लगे हाथ ये भी बता दें की आजकल नोवार्टिस ने इस की कीमत एक हज़ार चारसो बीस रुपये कर दी हे इस लिए एक दिन का खर्च रुपये 5680 और एक मॉस के रुपये 170400 होंगे. साथ में ये भी ध्यान रखे की ये कीमत भी नोवार्टिस केवल इस लिए ले रही हे क्योंकि प्रतिस्पर्धा हे, और अगर प्रतिस्पर्धा समाप्त होती हे तो हे एक गोली की कीमत कहीं सात से आठ हज़ार तक भी जा सकती हे. इतनी महंगी दवा यदि भारत में सस्ते रूप में नहीं बनती, तो सेवा कम में लगी एनजीओ भी इस काम से हाथ खींच लेंगी तो गरीब मरीजो का भविष्य क्या होगा.

४. जबसे भारत ने 1995 में नया दवा का पटेंट कानून अपनाया हे भारत की कंपनी का ये फार्मूला पुराना हे. और विदेशी कंपनी का थोड़े से परिवर्तन के साथ इसका नवीनीकरण ठीक नहीं था. इस कारण से ही ये विदेशी कंपनी इस केस को मद्रास हाई कोर्ट में हार चुकी हे और अब सुप्रीम कोर्ट में आई हे. पहले से ही ये दवाई भारत की सिप्ला, रान्बक्सी, सन और हेटेरो को इमान्तिनिब नामक दवा बना रही हे और काफी सस्ती भी. हाई कोर्ट का निष्कर्ष यही था की भारतीय कंपनिया क़ानून के अनुसार काम कर रही हे और नोवार्टिस का दवा खोखला हे.

५. अगर ये नोवार्टिस इस प्रयास में सफल हो जाती हे तो भारत की कोई चोबीस हज़ार से जियादा फार्म कंपनियों का भविष्य ही अँधेरे में नहीं जाये गा, दुनिया भर के गरीब मुल्को की अंतिम आशा की किरण भी समाप्त हो जाये गी. इन सब बातों को सोच कर और बड़ी फार्म कंपनियों के लूट और धोका-धडी से बचाने के लिए हे मद्रास है कोर्ट ने इस कंपनी के केस को रिजेक्ट किया था और तब से यानी पिछले छे साल से ये केस सुप्रीम कोर्ट में हे. इसका फेंसला दस जुलाई को होना हे.

६. दुनिया भर में भी लोग इस विषय पर बहुत रुचि ले रहे हे और इसे महत्त्व पूर्ण मान रहे हे. प्रबुद्ध लोग इसके खिलाफ सड़क पर उतर कर भी लढाई कर रहे हे. २३ फरवरी १२ को जब स्विट्जर्लैंड के बसेल शहर में नोवार्टिस कंपनी के शेयर-होल्डर्स की गेनेराल मीटिंग हो रही थी तो दुनिया के सभी बड़े शहरो में नोवार्टिस कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन हुए और मांग की गयी की ये कंपनी भारत में अपना केस वापिस ले. इसी प्रकार से दुनिया के प्रमुख लोगो के हस्ताक्षर भी इस कंपनी के खिलाफ लिए जा रहे हे जो संख्या पचास हज़ार से ऊपर चली गयी हे. आप भी MSF की वेब साईट पर जाकर इंटर-नेट से अपने हस्ताक्षर कर इस अभियान में जुड़ सकते हे. सब की मांग हे की नैतिकता के आधार पर और मानवता के आधार पर नोवार्टिस भारत के सुप्रीम कोर्ट से अपना केस वापिस ले.

७. हम भी यदि इस विषय की जानकारी लोगो तक पहुचाते हे और अपने क्षेत्र में एक छोटा-मोटा पर्दर्शन करते हे, नोवार्टिस का पुतला फूंकते हे और इस का समाचार समाचार पत्र में देते हे तो इस के बहुत दूरगामी परिणाम होंगे. जिस भारतीय पटेंट एक्ट के सेक्शन तीन (डी) को हटवाने का कुत्सित प्रयास ये कंपनिया कर रही हे, उसके कारण केवल एक दवाई ही नहीं बल्कि और भी हजारों दवायों की पहुँच गरीबो से दूर हो जायेगी. अभी नेक्सावार नामक दवाई की कीमत तो विदेशी कंपनिया तीन हज़ार तीन सो गुना जियादा ले रही हे और भारत के एक साहसी और इमानदार पटेंट ऑफिसर श्री कुरियन ने इसके खिलाफ भी भारतीय कंपनी को सस्ती दवा बनाने का कम्पलसरी लायसेंस दिया हे. उसके खिलाफ भी जर्मन की बायर कंपनी कोर्ट में जा सकती हे. इस लिए समय पर ठोकी गयी आप की एक कील अच्छे वकील का काम करेगी, और विदेशी भ्रष्ट कंपनियों के कफ़न में कील का काम करेगे.

आप से अपेक्षा: पहली की इस अभियान में जुटी संस्था के इंटर-नेट पर चल रहे हस्ताक्षर अभियान में अपना योगदान अपने हस्ताक्षर कर के दें.

दूसरे की इस आशय का परचा जनहित में छपवा कर बांटे या दूसरो द्वारा बंटवाएँ.

तीसरा की दस जुलाई से पहले किसी चौक आदि पर एक प्रदर्शन कर नोवार्टिस और विदेशी कंपनी का पुतला फूंकने का काम करें. कृपया समाचार पत्र में प्रयास करके इस खबर को भी लगवाएं.

चौथा के कोई सेमीनार, मीटिंग करके इस विषय को चर्चा का विषय बनाये.