Friday, December 3, 2021

मिलेट्स एवं तारना त्रयोदशी

भूमिका: 
17 नवंबर 21 को उदयपुर में तारना त्रयोदशी का कार्यक्रम 8 नगरों में हुआ और उसमें 2200 संख्या उपस्थित रही। संघ का पूरा सहयोग व सहभाग रहा। उसपर मेरा भी भाषण जहां हुआ वहां 400 से ऊपर संख्या रही। मुख्यतः तो मिलेट्स के महत्व पर भाषण हुआ।
1. विश्वास की ठीक जड़ी बूटियों से हुए।
2. कि कोरोनकाल में जो मरे वो पैनिक से ज्यादा मरे पान्डेमिक से कम।
3. कि सबसे कम मृत्युदर दुनिया मे भारत की थी।
4. पर्यावरण हमारे भारतीय ढंग से सुधरेगा गंगा मां, तुलसी, गंगा, गाय, 
मुख्य बिंदु:
1.  तीन लाभ: सेहत, पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था। 
2. Wheat belley नामक पुस्तक का 
3. 60 के दशक में जैसे ग्रीन रेवोलुशन के नाम पर प्राकृतिक वस्तुओं से दूर किया था, यह उसका उल्टा है। अतः प्रशंसनीय है।
4. सरकार को फ़ूड फोर्टीफिकेशन जैसे कृत्रिम उपायों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। 
5. 1. कुछ लुप्त चीजों को प्रारम्भ व पुनर्जीवित करने वाले उदाहरण। हिब्रू भाषा, संस्कृत, बालगंगाधर तिलक शिवाजी जयंती व गणेशोत्सव। वैसा ही काम तानना त्रयोदशी का है।
2. फ़ूड फोर्टीफिकेशन व जैव विविधता का मेलजोल।
3. जैव विविधिता से इसका तालमेल तथा 22 मई अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस का क्या 2023 अंतरराष्ट्रीय मिनट वर्ष घोषित किया गया। उसके लिए क्या-क्या उपाय हो सकते हैं और उसके लिए देश की तैयारी। 
किस प्रकार से मां के दूध में से झलक दिखला दुनिया में पूतना अब सभी उतना । सत्यमेव जयते में दिखाया कि पाइजन इन द प्लेटर । सिक्किम कुछ और प्रदेश। मोटे अनाज या जय विविधता के लाभ। पानी कम लेना बीमारियां कम लगना पोषक तत्वों का भंडार। कोई आंकड़े और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव।विश्वजीत ज्याणी का फार्म, दक्षिण के तेलेंगाना के सह संयोजक। डॉ खदरवल्ली की कथा। बीजमाता को पद्मश्री।महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गाँव की राहीबाई सोमा पोपेरे। ये 'बीजमाता'/सीडमदर के नाम प्रसिद्ध है। 
आंकड़े जहर के बारे में: 2018 में 5438 करोड़ किलोग्राम

2019 में 5621 करोड़ किलोग्राम

2020 में 5988 करोड़ किलोग्राम ।इस रासायनिक ज़हर नें अरबों ₹ किसानों की जेब से निकाल लिए ।


इस ज़हर को अगर 130 करोड़ नागरिकों में देखें - तो प्रत्येक के हिस्से लगभग 4 किलो यह ज़हर हर महीने आया !   और एक साल में 46 किलो से अधिक, अर्थात सामान्य आदमी 45-50 किलो का होता है तो सालाना अपने वजन का तुलादान अपने ही शरीर को पेस्टिसाइड्स का।। जय श्रीराम!!

समारोप: 
1. करणीय कार्य; पहला इन चीजों का प्रयोग पूरा वर्ष करेंगे।
2. अपना खाना खाते समय जीव जंतुओं, कीट पतंगों के बारे में भी सोचेंगे। पर्यावरण है तो हम हैं।
3. गरीब लोगों से खरीदेंगे, सीधा खरीदेंगे, ज्यादा भावताव नहीं करेंगे।
4. बच्चों को परिवारजनों को जहरमुक्त, जैविक खेती मोटे अनाज, रसोई में औषधियों के बारे में जागरूकता, अध्ययन आदि में रुचि पैदा करेंगे। 
5. नेशन फर्स्ट स्वदेशी मस्ट।
6. कहानी : गौमाता, तुलसी, अलवीरा आदि का ।
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1. दुनिया के 36% भारत में और चीन से पांच गुना।।Millet production – 2016
Country Production (millions of tonnes)
India 10.3
Niger 3.9
China 2.0
Mali 1.8
Nigeria 1.5
Burkina Faso 1.1
World 28.4
Source: FAOSTAT of the United Nations
In 2016, global production of millet was 28.4 million tonnes, led by India with 36% of the world total. 

2. Pearl millet (बाजरा)  is one of the two major crops in the semiarid, impoverished, less fertile agriculture regions of Africa and southeast Asia.  Millets are not only adapted to poor, droughty, and infertile soils, but they are also more reliable under these conditions than most other grain crops. This has, in part, made millet production popular, particularly in countries surrounding the Sahara in western Africa.
3.  ICAR-Indian Institute of Millets Research[33] in Telangana, India. इस पर और ज्यादा रिसर्च होनी चहियर।

5. नाम याद करना:  ,

1.  बाजरा, pearl millet,  ज्वार, sorgum,   रागी, (फिंगर मिलेट )भारतमें कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है। इससे मोटी डबल रोटी, डोसा और रोटी बनती है। इस से रागी मुद्दी बनती है जिसके लिये रागी आटे को पानी में उबाला जाता है, जब पानी गाढा हो जाता है तो इसे गोल आकृति कर घी लगा कर साम्भर के साथ खाया जाता है। वियतनाम मे इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। इससे मदिरा भी बनती है।

2. फोनियो,फोनियो एक अनुकूल स्वाद वाला पौष्टिक भोजन है । इसका सेवन मुख्य रूप से पश्चिम अफ्रीकी देशों में किया जाता है , जहां इसकी खेती भी की जाती है।  2016 में वैश्विक फोनियो बाजार 673,000 टन था। गिनी सालाना दुनिया में सबसे अधिक फोनियो का उत्पादन करती है, जो 2019 में दुनिया के उत्पादन का 75% से अधिक है।  नाम फोनियो (द्वारा उधार लिया गया) फ्रेंच से अंग्रेजी) वोलोफ फोनो से है । 

दिसंबर 2018 में, यूरोपीय आयोग ने नए खाद्य उत्पादों के निर्माण और विपणन के लिए इतालवी कंपनी ओबे फूड द्वारा प्रस्तुत करने के बाद, यूरोपीय संघ में एक नए भोजन के रूप में फोनियो के व्यावसायीकरण को मंजूरी दी । 

3. कोदो, कोदो या कोदों या कोदरा एक अनाज है जो कम वर्षा में भी पैदा हो जाता है। नेपाल व भारत के विभिन्न भागों में इसकी खेती की जाती है। धान आदि के कारण इसकी खेती अब कम होती जा रही है। (शायद जिसे महाराणा ने घास खाया, वह कोदो आदि ही हो। 14 साल भगवान राम के ऐसे ही कंदमूल व अनाज खाये होंगे। 

4. कुटकी: कुटकी का वैज्ञानिक नाम पनिकम अन्तीदोटेल है। यह मुख्य रूप से पंजाब, गंगा के मैदान तथा हिमालय में पाई जाती है, यह भी पनिकम परिवार की घास है। पंजाब में तथा संलग्न पाकिस्तान के क्षेत्र में  इसे 'घिरी' या 'घमूर' कहते हैं

 जैसे मोटे अनाज जिन्हें कदन्न भी कहते हैं, मोटे अनाजों की श्रेणी में आते है।
6. इनकी मांग के पीछे कई कारण उत्तरदायी माने जा सकते है –ये फसलें कम पानी में भी उग सकती है, साथ ही मौसम में आ रहे बदलावों को भी आसानी से झेल सकती है।
ये मिलेट फसलें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। इनमें प्रोटीन, फाइबर, स्टार्च प्रतिरोधी बड़ी उच्च मात्रा में होते हैं| साथ ही इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है जिस वजह से यह मधुमेह जैसे रोगों को रोकने में मदद कर सकते हैं। बाजरा में विटामिन बी और आयरन, जिंक, पोटैशियम, फॉसफोरस, मैग्नीशियम, कॉपर और मैंगनीज जैसे आहारीय खनिजों की उच्च मात्रा होती है। इसी तरह ज्वार भी पौष्टिक गुणों से भरा होता है।
7. मिलेट एक प्रकार का स्मार्ट्फूड है जो किसानों,  इसके उपभोक्ताओं और पृथ्वी के लिए फायदेमंद है। जो सतत विकास के लक्ष्यों तक पहुँचने में भी मददगार सिद्ध होगा।
8. संयुक्त राष्ट्र ने भी इनके महत्त्व को देखते हुए 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स-2023) घोषित किया है। जिसका उद्देश्य इन उपेक्षित फसलों को बढ़ावा देना है, जिससे लोगों में इसकी दिलचस्पी बढे और वो इनके पोषण से भरपूर गुणों को जान पाएं। साथ ही इनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए नीतिगत तौर पर इनको समर्थन मिल सके। 👍👍हरित क्रांति के दौरान जिस प्रकार से गेहू और धान की फसलों को प्राथमिकता दी गयी थी और सरकारी नीतियां भी इन्ही फसलों के इर्द-गिर्द बनाई जा रही थी, उस से मोटे अनाजों की महत्व की अनदेखी की जा रही थी। लेकिन हाल के वर्षो में मोटे अनाजों के औषधीय गुणों के कारण इनके प्रति लोगो की जागरूकता बढ़ी है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा दूसरे ऐसे प्रमुख कारण है जिनसे मोठे अनाजों की अहमियत बढ़ी है।
एक प्रकार से देखे इसके लिए न केवल उत्पादन बल्कि इसकी मांग को बढ़ाना भी जरुरी है और साथ ही साथ इन फसलो के प्रति लोगो के नज़रिये को भी बदलना होगा। ऐसे अवसर पैदा करने होंगें जिससे किसानों को भी इनका बेहतर मूल्य मिल सके और उनके और बाजार के बीच की दूरी को मिटाना होगा साथ ही विकास के नए अवसर पैदा करने होंगें।

अब अमीरों की चाहत बना ‘गरीबों का अनाज’…सरकार ने बनाई मोटे अनाज को लेकर नई योजना
9. प्रधानमंत्री मोदी जी इसके पक्ष में बोले आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में 2019 में।  https://www.livemint.com/politics/policy/how-millet-revolution-in-india-will-ensure-nutritious-diet-1567175904866.html

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मुझे लगता है कि हम सबको इनके बारे में जानना चाहिए।

ये हैं महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गाँव की राहीबाई सोमा पोपेरे। ये 'बीजमाता'/सीडमदर के नाम प्रसिद्ध है। 

          ये देसी बीजों को बचाने व उनके संवर्धन को लेकर काम करती है। कभी स्कूल नहीं गई और एक जनजाति परिवार से संबंध रखने वाली है राहीबाई। इनके बीज के प्रति ज्ञान को वैज्ञानिक भी लोहा मानते हैं। अपनी जिद्द और लगन से ये देसी बीजों का एक बैंक बनाई है जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है। ये देसी बीजों को बचाने व उसके समर्थन में तब आई जब इनका पोता जहरीली सब्जी खाने से बीमार पड़ गया। 

           यही कोई बीस साल पहले। तब से ये जैविक खेती के साथ-साथ देसी बीजों के प्रयोग व उनके संरक्षण को प्राथमिकता देने लगी। ये कहती है कि भले ही हाइब्रिड बीजों की तुलना में ये देसी बीज कम उपज देते हैं लेकिन ये आपका स्वास्थ्य खराब नहीं करती,आप बीमारियों के चपेट में नहीं आते।

56 की साल राहीबाई सोमा पोपरे आज पारिवारिक ज्ञान और प्राचीन परंपराओं की तकनीकों के साथ जैविक खेती को एक नया आयाम दे रही हैं।

             गुजरात और महाराष्ट्र में आज परंपरागत बीजों की मांग सबसे ज्यादा है।

और आज जो ये बीजों के माँग की आपूर्ति जो रही है तो बस इसलिए हो रहे हैं इनको जिंदा रखने के लिए राहीबाई जैसे लोग जीवित हैं। नहीं तो ज्यादा उपज और फायदा कमाने के चक्कर में देसी बीजों को लोग कहाँ पहुंचा दिए हैं वो सबको भलीभांति मालूम है। आज से 20-25 साल जिस बीमारी का अता पता नहीं था वो अब फैमिलियर होते जा रहा है।


ऐसे में 'पद्मश्री' बीजमाता राहीबाई जी को मेरा बारम्बार प्रणाम है।🙏🙏🙏

Makarand Kale

Updated On - 7:58 am, Wed, 22 September 21


साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र ने मिलेट्स ईयर घोषित किया है. इसे लेकर भारत सरकार ने तैयारियां तेज कर दी हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर में मीडिया से चर्चा के दौरान जानकारी दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर हैदराबाद में मिलेट्स इंस्टिट्यूट से मिलेट्स इयर की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. इसे लेकर हैदराबाद के मिलेट्स इंस्टिट्यूट में देशभर के कृषि वैज्ञानिकों और जानकारों से चर्चा की गई. भारत सरकार की कोशिश है की पोषक आहार के तौर पर मिलेट्स यानी मोटा अनाज ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उपलब्ध कराया जा सके.सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को मोटा अनाज यहां से उपलब्ध कराया जा सके, सरकार इसकी तैयारी कर रही हैं.


अब क्या होगा

दुनिया ने सेहत के लिहाज से मोटे अनाजों के महत्व को समझा है, इसलिए किसानों के लिए इसे उगाना ज्यादा फायदेमंद हो गया है. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं और दाम भी गेहूं से अधिक मिलता है. इसके तहत्व को ऐसे समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था.



हरित क्रांति के बाद आई खाद्य संपन्नता ने भारतीयों के खानपान से मोटे अनाजों को दूर कर दिया. गेहूं और चावल में ज्यादा स्वाद मिला और यह पौष्टिक अनाजों को रिप्लेस करता चला गया.


नब्बे के दशक के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई. वैज्ञानिक समुदाय ने भी इस पर काम नहीं किया. इसलिए किसानों ने ऐसी फसलों को उगाना बंद कर दिया. लोगों ने इसे गरीबों का खाद्यान्न कहकर उपेक्षित कर दिया. हालांकि, आदिवासी क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती रही है.


सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए मोटे अनाजों की एमएसपी बढ़ा रही है. ज्वार का एमएसपी 118 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया है. इसका एमएसपी 2620 रुपये प्रति क्विंटल है.


बाजरा का एमएसपी 100 रुपये बढ़ 2250 रुपये प्रति क्विंटल है. रागी का एमएसपी 82 रुपये बढ़कर 3,377 रुपये हो गया है. पिछले साल इसकी कमत 3,295 रुपये प्रति क्विंटल थी. मक्के के एमएसपी में मात्र 20 रुपये की बढ़ोतरी हुई है . इसकी कीमत 1850 रुपये प्रति क्विंटल है.


कहां होता है उत्पादन?

-ज्वार: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश

-बाजारा: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र

-जौ: राजस्थान, उत्तर प्रदेश

-रागी: कर्नाटक, उत्तराखंड


जई (Oats) की खेती पहले आमतौर पर जानवरों के खाने के लिए चारे के रूप में की जा रही थी. लेकिन, अब इसका ओट्स और दलिया बनाकर लोग खा रहे हैं. यह जल्दी पचने वाला फाइबर एवं पोषक तत्व से भरपूर खाद्य सामग्री है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के वैज्ञानिकों ने जई की दो नई किस्मों ओएस-405 व ओएस-424 को विकसित किया है. इन किस्मों को कृषि मंत्रालय ने नोटिफाई कर दिया है.

3. 

ये मोटे अनाज क्यों हैं आपकी जिंदगी के लिए सुपरफूड

ये मोटे अनाज क्यों हैं आपकी जिंदगी के लिए सुपरफूड

मोटा अनाज (Coarse Grains) पौष्टिकता से भरपूर होता है. हमारे यहां ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज खाने की परंपरा थी. लेकिन धीरे-धीरे वो खत्म हो गई...


मोटा अनाज चावल गेहूं की तुलना में ज्यादा पौष्टिक होता है, SEPTEMBER 06, 2019, 11:53 IST


ज्यादा नहीं, आज से सिर्फ 50 साल पहले हमारे खाने की परंपरा (Food Culture) बिल्कुल अलग थी. हम मोटा अनाज (Coarse Grains) खाने वाले लोग थे. मोटा अनाज मतलब- ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के मोटे अनाज. 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया. जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है.



पिछले दिनों आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया. पीएम मोदी बोले, ‘आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया, उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया. जौ, ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, ऐसे अनेक अनाज कभी हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए. अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है.’

....कभी कभी एलोपैथी वाली अपने को भगवान मानने लग जाते हैं और हर विषय पर अपनी राय रखने के लिए खुले घूमते हैं, लेकिन अब एसनहीँ हैं:

आयुष दवाओं के खिलाफ सलाह देना पड़ा भारी: राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग की शिकायत पर एम्स के डॉक्टरों को मांगनी पड़ी माफी, परिसर में बांटे जा रहे थे पर्च, Thu, 03 Mar 2022 05:54 AM IST

सार

बीते माह एम्स के बालरोग विभाग में गुर्दे से जुड़ी एक बीमारी के खिलाफ लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्चे बांटे जा रहे थे। करीब 12 से 14 पन्नों में बीमारी के बारे में पूरी जानकारी दी गई, लेकिन यह भी कहा गया कि जो लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं वे होम्योपैथी इत्यादि की चिकित्सीय सलाह से दूरी बनाकर रखें

Thursday, December 2, 2021

स्वदेशी की विकास यात्रा - एक प्रश्नोत्तरी



1. स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना कहां, कब और किन परिस्थितियों में हुई?
उ. राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा नागपुर में 22 नवंबर 1991 को नये आर्थिक विदेशी हमले के प्रतिकार के लिया स्वदेशी जागरण मंच का गठन  किया गया। सात समविचारी  संगठनो की उपस्थिति में ये कार्य प्रारम्भ हुआ।
प्र.2.  नई आर्थिक नीतियों की वकालत करते हुए डाॅ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में क्या प्रस्ताव रखा था?
उ. श्री नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री और डाॅ. मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री के नाते भारतीय संसद में एक प्रस्ताव लाया गया और पूर्व की गलत नीतियों का उल्लेख करते हुए नई आर्थिक नीतियों की घोषणा 24 जुलाई  1991 में की गई। इन नीतियों को 1 अगस्त 1991 से लागू किया गया।

प्र.3. 1991 की नई आर्थिक नीतियों का सारांश क्या था?
उ. विदेशी निवेश को खुला निमंत्रण, कस्टम डयूटी घटाई गई, विदेशियों के लिए प्रतिबंधित क्षेत्रों को खोला गया, और कुल मिला  कर आर्थिक स्वावलम्बन को खत्म किया गया।

प्र.4.  स्वदेशी जागरण मंच को मंच क्यों कहा गया, संगठन क्यों नहीं?
उ. क्योंकि किसी भी विचारधारा का व्यक्ति जिसे आर्थिक स्वतंत्रता का विषय प्रिय है, वह इसमें भाग ले सकता है। संगठन के खांचे में डालने की अपेक्षा हरेक के लिए इसे खुला रखा गया। 
प्र.5.ठेंगड़ी जी ने स्वजाम को क्या संज्ञा  दी थी?
उ. ठेंगड़ी जी ने इसे ‘ आर्थिक स्वाधीनता का दूसरा युद्ध’ कहा है। अर्थात 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिली परन्तु आर्थिक निर्णय GAT, IMF, WORLD बैंक आदि करते हैं। उन पर अपना निर्णय रहे, ऐसा भाव है आर्थिक स्वतंत्रता का। वैसे इस शब्द का  प्रयोग उन्होंने 1982 में और भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन (1984) में किया था। 
6. प्र: मंच के दो उद्देश्य प्रारम्भ से कौन से बताए गए है?
पहला स्वदेशी भाव का जागरण तथा दूसरा विदेशी आर्थिक आक्रमण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के षड्यंत्रों का भंडाफोड़ करना।
प्र.7. कौन-कौन से प्रमुख महानुभाव स्वदेशी के प्रारंभिक काल में ही मंच से जुड़ गये थे?
उ. (क) 2-5 सितंबर 1993 के प्रथम सम्मेलन में जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर ने उद्घाटन किया।
(ख) कभी प्रसिद्ध मार्क्स वादी रहे डाॅ. बोकरे मंच के प्रथम संयोजक बनाये गए। जो बाद में ‘हिन्दू इकोनोमिक्स’ गं्रथ लिखा।माधव गोबिंद बोकरे जो नागपुर विश्विद्यालय के कुलपति थे। 
(ग) चन्द्रशेखर जैसे समाजवादी, जाॅर्ज फर्नांडीज, अहसान कुलकर्णी (P&T के अध्यक्ष) आदि ऐसे महानुभाव जुड़े।

प्र.8.  श्री निखिल चक्रवर्ती स्वदेशी जागरण मंच की किस बात से प्रभावित हुए?
उ. श्री निखिल चक्रवर्ती एक बड़े साम्यवादी विचारक थे तथा मेनस्ट्रीम पत्रिका के सम्पादक थे। एक स्थान पर उन्होंने हमारे कार्यकर्ताओं को पत्रक स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं के बांटते हुए देखा और पढ़ने लगे। जीप का नाम हमारी स्वदेशी-विदेशी सूचि पत्रक था। उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं में जीप बैटरी को इंगित करते हुए पूछा कि इसके निर्माता को जानते हो? हाँ,जीप सेल् व बैटरी को हैदराबाद के अमनभाई नामक मुसलमान उत्पादक बनाते थे। यह उत्तर सुन वे बहुत प्रभावित हुए। उन्हें लगा कि हम सांप्रदायिकता से उपर उठकर राष्ट्रव्यापी विचार करते है। उन्होंने इस पर एक लंबा काॅलम अपनी पत्रिका में लिखा। बाद में कईं स्वदेशी के कार्यक्रमों में भी वक्ता के नाते उपस्थित रहे।

प्र.8.  1992 व 1994 के जन-जगारण अभियानों का सारांश क्या था?
उ. 1992 में देश भर में स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं की सूचि बांटी गई। 1994 में जल, जमीन, जंगल और जानवर का बड़ा सर्वेक्षण हुआ। 3 लाख गांवों में कार्यक्रम आदि के लिए गये। श्री चन्द्रशेखर जी ने पांच स्थानों पर इसका उद्घाटन किया और खुलकर  भाषण भी दिया।

प्र.9. पहला बड़ा संघर्ष कौन सा था और उस संघर्ष का सरांश क्या था?
उ. विदेशी एनराॅन बिजली कंपनी के खिलाफ एक प्रपत्र तैयार किया। (सन) महाराष्ट्र में शरद पवार की सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया गया। ऐसे 7-8 फास्ट ट्रेक परियाजनाओं का विरोध किया। उससे विदेशी निवेश की रफ्तार धीमी हो गई। किसानों ने इस कंपनी को जमीन देने का विरोध किया, लेकिन इस आंदोलन में कुछ कष्टदायक पहलु भी है, अर्थात् जो राजनेता इस आंदोलन में पहले साथ चले, सत्तासीन होने पर वे इस कंपनी के साथ हो गये। 13 दिन की राजग की सरकार ने इस कंपनी के साथ समझौते को पारित किया, लेकिन जीत सच्चाई की ही हुई और कंपनी एनराॅन को भागना पड़ा।

प्र.10. पशुधन संरक्षण आंदोलन की मुख्य बातें क्या थी?
उ. अलकवीर यात्रा - सेवाग्राम से अलकवीर तक 750 किमी. की यात्रा हुई। 15 नवंबर 1995 से 6 दिसंबर तक 1 बड़ी जनसभा और गिरफ्तारियां भी हुई।

प्र.11.  सागर यात्रा क्या है?
उ. 12 जनवरी 1996 से 8 फरवरी 1996 तक  वैश्वीकरण के दौर में विदेशी कंपनियों को ‘मेकेनाइज्ड फिशिंग’ के लाईसंेस दिये गये, लेकिन हमने विरोध किया। सरकारी मुरारी कमेटी ने भी रिपोर्ट हमारे हक में दी। दो हिस्सों में त्रिवेन्द्रम के पास व काकीनाडा के समुद्र में विशाल जनसभा की गई। लड़ाई तो पहले से थाॅमस कोचरी व मजदूर नेता कुलकर्णी लड़ रहे थे हमने इसे उभार दिया। दोनों यात्राओं के कारण देश-विदेश में बहुत जागृति हुई और मछुआरों का व्यवसाय और समुद्री जीव के साथ साथ फ्लोरा एवं फौना भी बच गया।

प्र.13 बीड़ी रोजगार रक्षा आंदोलन क्या है?
उ. जून 1996 में तेंदुपत्ता उद्योग और बीड़ी उद्योग में लगे लोगों का रोजगार समाप्त हो रहा था। छोटी विदेशी सिगरेट को भारत में बनाने की अनुमति दी गयी। अंततः जीत हमारी ही हुई।

प्र.14 मीड़िया को विदेशी हाथों में पड़ने से कैसे बचाया?
उ. 1995 की केबिनेट चर्चा में कहा गया कि सूचना का अधिकार अपने नागरिकों हेतु है। अतः विदेशियों को यहां अखबार चलाने का अधिकार नहीं है। फिर 26 प्रतिशत विदेशी निवेश आया। इसलिए कुल सकल मीडिया में 26 प्रतिशत से ज्यादा विदेशी चैनल नहीं है। हर प्रांत में अपने चैनल है। 

प्र.15 विदेशी हाथों से टेलिकाॅम्यूनिकेशन कैसे बची?
उ. इसके कारण से वोडाफ़ोन छोड़कर शेष भारतीय कंपनियों का प्रभुत्व रहा। यह भी प्रभावी कदम था।

प्र.16 विनिवेश की लड़ाई क्या हुई?
उ. रिलायंस का पेट्रोलियम उत्पादक का एकाधिकार एनडीए सरकार के समय हुआ। सरकारी होटल भी औने-पौने दामों में बेचे गये। सरकारी उपक्रमों को घाटे का उपक्रम या बीमार उपक्रम घोषित करके निजी हाथों में सस्ते भाव से बेचना, विनियोग कहलाता है। श्री अरूण शौरी के मंत्री काल में इनको बेचा गया और मजदूर भी निजीकरण का शिकार हुए। स्वदेशी जागरण मंच ने इसका डटकर इसका विरोध किया। 

प्र.17 आयोडीन नमक का गौरखधंधा क्या है?
उ. आयोडीन युक्त नमक को अनिवार्य किया जा रहा था। इससे गरीबों की एक जरूरी चीज की बड़ी कंपनियों की इच्छा पर मूल्य बढ़ाने की इजाजत मिल जाती। हमारे आंदोलन की बहुत चर्चा बनी। अभी तक वो मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। गांधी जी ने दांड़ी नमक आंदोलन छेड़ा था, हमें भी वहीं करना पड़ा। इसपर एक पुस्तक भी लिखी गयी "दूसरा नमक आंदोलन".

प्र.18 बौद्धिक संपदा अधिकार की लड़ाई का क्या इतिहास है?
उ. ठेंगडी जी की प्ररेणा से श्री बी.के. कैला ने ‘वर्किंग ग्रुप ओन पेटेंट’ बनाया। धीरे-धीरे कई सांसदों को इसके साथ जोड़ा गया। Forum of parliamentarian or working group on Public Sectors बना।

प्र.19 खुदरा व्यापार की लड़ाई में स्वदेशी जागरण मंच का क्या योगदान है?
उ. बहुत ही अहम्। मंच और व्यापारिक संगठनो के आह्वान पर देशव्यापी बंध हुआ। यद्यपि बिल तो संसद में पारित हुआ परंतु विदेशी कंपनियां आने से कतरा रही है। इससे दवाइयों के रेट कई गुना कम हो गए।

प्र.20 बीटी कपास का मुद्दा और बीटी बैंगन को कैसे रोका गया?
उ. श्री जयराम रमेश ने बी टी बेंगन के लिए सात जगह जन सुनवाई करवाई वहां हमारी उपस्थिति प्रभावी रही और अभी तक अनुमति रुकी हुई है। यह बात 2010 की है।

प्र.21 प्रदेशों के स्तर पर विभिन्न आंदोलन कौन-कौन से हुए?
उ. 1. वेदांता विश्वविद्यालय विरुद्ध सफलआंदोलन, 2. प्लाचीमाड़ा, 3. आलूचासी बेंगाल 4. हल्दी आंदोलन, तेलंगाना 5. हिमाचल प्रदेश में स्की विलेज, 6. 

प्र.22  स्वदेशी मेलें - सीबीएमडी, लघु ऋण वितरण योजना
उ.  ये सब हमारे रचनात्मक काम है।

प्र.23 ठेंगडी जी उद्धरण में से प्रश्न बनता है कि उन्होंने किन-किन विदेशी अर्थशास्त्रियों ने भूमंडलीकरण की निंदा की है, ऐसा उल्लेख किया है
उ: जोसेफ स्टिग्लिट्ज़, एलबुग् डेविसन, आदि का।
निष्कर्ष: 
1. विकास हुआ है अभिप्राय: सिर्फ जीडीपी वृद्धि नहीं बल्कि रोजगार वृद्धि, पर्यावरण सुरक्षा व अंतिम व्यक्ति का विकास आदि हैं।
2. सरकार के प्रति दृष्टिकोण: responsive cooperation का अर्थ। उदाहरण।
3. तीन आयाम:  अध्ययन व शोध (वाचडॉग), आंदोलन व संघर्ष, तथा रचनात्मक, ( स्वदेशी मेले व माइक्रो फाइनेंस आदि, cbmd, स्वदेशी स्टोर को प्रोत्साहनआदि)
4. सभी केंद्रित कार्य नहीं, प्रान्त अनुसार भी और जिला अनुसार भी।
5. मंच का मर्म समझना: अम्ब्रेला आर्गेनाईजेशन। जिसका मुद्दा, उसकी अगुआई, हमारा संवाद, सहयोग व सहकार।

Wednesday, September 22, 2021

प्राचीन भारत में रोज़गार

प्रायः यह धारणा बन गयी है कि भारत में रोजगार देने राज्य का कभी भी काम नहीं रहा है। परंतु यह पूरी तरह सत्य नहीं है। सरकार भी या राज्य भी इसके लिए जिम्मेवार होता था। प्रसिद्ध विद्वान डॉ भगवती प्रकाश जी ने पांचजन्य में छपे निम्न लेख में बताया है कि यह राज्य की जिम्मेवारी भी रही है। आइए इसे समझें:
संस्कृति संवाद -36 रोजगार केन्द्रित प्राचीन अर्थ चिन्तन 
प्रोफेसर भगवती प्रकाश
 
भारत सहित विश्व के सभी देषों में आज ‘रोजगार रहित आर्थिक वृद्धि, अर्थात ‘‘जाॅब लेस ग्रोथ’’ एक समस्या है। अधिकांष अर्थ व्यवस्थाओं में विगत दशकों में हुई आर्थिक वृद्धि के उपरान्त भी रोजगार में संकुचन भी हुआ है। प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन रोजगार केन्द्रित रहा है। वैदिक विमर्ष  से लेकर श्रीराम के उपाध्याय एवं अर्थशास्त्री पुष्पधन्वा और चाणक्य रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र तक सभी प्राचीन भारतीय विद्वानों का आर्थिक चिन्तन रोजगार संकेन्द्रित रहा है। कौटिल्य के अनुसार मनुष्यों की वृति अर्थ है, मनष्ुयों से युक्त भूमि अर्थ है एवं ऐसी मनुष्यों से आवासित पृथ्वी की प्राप्ति, विकास व उसका लाभपूर्ण पालन-पोषण का शास्त्र अर्थशास्त्र है।  
‘‘मनुष्याणां वृत्तिरर्थः। मनुष्यवती भूमिरित्यर्थः। तस्य पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थषास्त्रमिति 
(कौटिल्य अर्थषास्त्र 15-1-1) अर्थातः  
इस प्रकार मनुष्याणां वृत्तिरर्थः से आषय है, ‘‘सम्पूर्ण प्रजा या रोजगारक्षम व्यक्तियों को वृत्ति अर्थात आजीविका या रोजगार प्रदान करना अर्थषास्त्र है। मनुष्यवती भूमिरित्यर्थः से आषय है राज्य की भूमि पर बसे लोगों के योगक्षेम अर्थात उनकी आवष्यकताओं पूत्र्ति व उन्हें प्राप्त सुविधाओं के रक्षण की व्यवस्था अर्थशास्त्र है। तस्य पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थषास्त्रमिति से आषय सम्पूर्ण प्रजा से आवासित भूमि पर आय-परक या लाभप्रद गतिविधियाँ जिनमें उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, वित्तीय प्रबन्ध आदि सम्मिलित है, उससे मानव मात्र के लिए लाभोत्पादक आजीविकाओं की व्यवस्था करना अर्थषास्त्र है।  
रोजगार में वृद्धि के बिना, उत्पादन या जी.डी.पी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर से आर्थिक प्रगति का आकलन भ्रामक हैं। प्राचीन आर्थिक चिन्तन में सम्पूर्ण प्रजा अर्थात प्रत्येक रोजगारक्षम नागरिक या मानव मात्र को आजीविका युक्त करना, उस आजीविका के रक्षण संवर्द्धन व सम्पोषण के साथ उन्हें सतत लाभदायी आय से युक्त बनाए रखना अर्थशास्त्र कहा है।  
वेदों में आजीविकायुत कर्म सामथ्र्य व समृद्धि पर बलः  
वेदों में राज्य शासन व राजा द्वारा सम्पूर्ण प्रजा को सम्यक भरण-पोषण योग्य आजीविकाओं का सृजन एवं संधारण राजा का प्रमुख कत्र्तव्य माना है। यजुर्वेद (9/22-25) में प्रजा की कर्मसामथ्र्य वृद्धि, समृद्धि एवं कृषि, उद्योग, व्यापार व वाणिज्य से उत्पादन की प्रचुरता का निर्देष है।  
अस्मे वोऽअस्त्विन्द्रियमस्मे नृम्णमुत क्रतुरस्मे वर्चासि सन्तु वः। नमो मात्रे पृथिव्यै नमो मात्रे पृथिव्याऽइयं ते राड्यन्तासि यमनो ध्रवोऽसि धरुणः। कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा यजुर्वेद 9/22 
भावार्थः मातृभूमि के प्रति सादर व श्रृद्धापूर्वक (मात्रेपृथिव्यै नमः; मात्रे पृथिव्या नमः) तुम अपने पराक्रम, वर्चस्व व तेजस्विता पूर्वक (वः वर्चांसि अस्मे सन्तु) इस राज्य को आधार बना कर सभी दिषाओं में अपनी कर्मसामथ्र्य, धन व धनाजर्न हेत ु व्यवसाय में वृद्धि करो (नृम्णम् उत क्रतुः अस्मे)। मेरे शासन (इयं राड्) में तुम्हारी कृषि सहित योगक्षेम व आर्थिक समृद्धि एवं सभी प्रकार की जीवनोपयोगी आवष्यकताओं के लिए आवष्यक धनोपार्जन-पूर्वक तुम्हारा सम्पोषण करे (त्वा कष्ृये, त्वाक्षेमाय, त्वा रय्ये, त्वा पोषाम)। तम्ु हारे ये उपार्जन सुस्थिर होवें, इनमें वृद्धि होवे इस हेतु राज्य संकल्पबद्ध  है। (यमनः धव्र: धरूणः असि) यजुवेर्द 9/22 
यजुर्वेद के ही अध्याय 9 के निम्न मन्त्रांष भी यहाँ पठनीय हैः  
‘‘           मधुमतीर्भवन्तु वय राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः स्वाहा।।’’ यजुर्वेद 9/23 अर्थः इन माधुर्यपूर्ण व जीवनोपयोगी इन परिलब्धियों की सुरक्षार्थ परु अथार्त नगर के हम हित-चिन्तक  इस राष्ट्र को सतत जागतृ बनाये रखें।  
‘‘           दापयति प्रजानन्त्स नो रयि सर्ववीरं नियच्छतु स्वाहा।।’’ यजुर्वेद 9/24 इस राज्य में तुम्हारे पराक्रमी उत्तराधिकारियों में यह ‘शुद्ध धन’ (रयि) उत्तरोत्तर बढ़े।  
‘‘        सनेमि राजा परियाति विद्वान् प्रजां पुष्टिं वर्धयमानोऽअस्मे स्वाहा।।’’ यजुर्वेद 9/25 सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान से युत ये सभी प्रजाजन यहाँ सख्ु ापूवर्क विहार करते हुए अपने 
धन, बल, पशुधन सहित वृद्धि को प्राप्त होवे।  
यजुर्वेद (18/12-13) में ही कृषि, भूगर्भ-विद्या या विज्ञान व उद्योगों से मूल्यवान पदार्थों के उत्पादन एवं विविध उद्योगों, व्यापार व वाणिज्य से सभी प्रकार क े धन के अर्जन व संचय की कामना के सन्दर्भ हैं। इन मन्त्रों मे ं सभी प्रकार की फसलो ं व धातुओं सहित भगू र्भ  की सम्पदा आदि की प्रचुरता की कामना है।  
व्रीहयश्चमे यवाश्चमे माषाश्चमे तिलाश्चमे मुद्गाश्चमे खल्वाश्चमे प्रियङ्गवश्च मेऽणवश्चमे श्यामाकाश्चमे नीवाराश्चमे गोधूमाश्चमे मसूराश्चमे यज्ञेन कल्पन्ताम्।। यजुर्वेद 18/12 अश्माचमे मृत्तिकाचमे गिरयश्चमे पर्वताश्चमे सिकताश्चमे वनस्पतयश्चमे हिरण्यंच मेऽयश्चमे 
श्यामंचमे लोहंचमे सीसंचमे त्रपुचमे यज्ञेन कल्पन्ताम्।। यजुर्वेद 18/13 
मन्त्रार्थः - मेरे चाँवल, साठी के धान, जौ, अरहर, उड़द, मटर, तिल, नारियल, मूँग, चणे, कंगुनी, सूक्ष्म चावल, सामा चाँवल, मडुआ, पटेरा, चीणा आदि छोटे अन्न, पसाई के चावल जो कि बिना बोए उत्पन्न होते हैं। गेहूँ, मसूर और सभी प्रकार के अन्य अन्न व कृषि पदार्थ प्रचुरता में उपजे व बढ़ें ।। 12।। मन्त्रार्थः - मेरे मूल्यवान खनिज व खनिज युक्त पाषाण, हीरा आदि रत्न, रत्नमयी अच्छी मिट्टी और साधारण मृदा, पर्वत व मेघ और बड़े-छोटे पवर्त और पर्वतों में होनेवाले पदार्थ, बड़ी और छोटी-छोटी बालू, मूल्यवान वनस्पतियाँ बड़ और आम आदि वृक्ष लताएँ आदि, मेरा सब प्रकार का धन, स्वर्ण तथा चाँदी, लोह भण्डार और शस्त्र, नीलमणि, लहसुनिया आदि और चन्द्रकान्त जैसी मणियाँ, सुवर्ण तथा कान्तिसार, सीसा, लाख, टिन व जस्ता और पीतल आदि ये सब अनन्त गनु े होवें ।।13।। इस प्रकार वेद सहित प्राचीन वाङम् य में सम्पूर्ण प्रजा के योगक्षेम, समृद्धि एवं वृति अर्थात रोजगार युक्त कृषि, पषुधन, खनिज उद्योगादि की प्रगति की कामना की गई है। इन सभी की संवृद्धि के लिए उचित परिस्थितियों के संस्थापक को चक्रवर्ती राजा बनाने की आवष्यकता बतलाई है।  
सत्पात्र व कमजोर वर्गों की सहायता:  
राजा को विद्यार्थियों, विद्वानों, बा्रह्मणों एवं याज्ञिकों का राजकोष से पालन करना चाहिए। गौतम (10/19-12, 18/39), कौटिल्य (2/1), महाभारत अनुशासन पर्व (61/28-30), महाभारत शान्तिपर्व (165/6-7), विष्णुधर्मसूत्र (3/79-80), मनुस्मृति (7/82 एवं 134), याज्ञवल्क्य स्मृति (1/315 एवं 323 तथा 3/44), मत्स्यपुराण (215/58), अत्रिस्मृति (24) आदि। राजा को असहायों, वृद्धों, दृष्टिहीनों, अपंगों, मन्बुद्धि व विमन्दित जनों, पागलों, विधवाओं, अनाथों, रोगियांे, गर्भवती स्त्रियों की भोजन, दवा, वस्त्र, निवास आदि की सहायता करनी चाहिए। वसिष्ठ 99/35-36), विष्णुधर्माेत्तर, (3/65), मत्स्यपुराण  (215/62), अग्निपुराण (225/25), महाभारत आदिपर्व (49/99), महाभारत सभापर्व (18/24), महाभारत विराटपर्व (18/24, महाभारत शान्तिपर्व 77/18) आदि। विष्णुधर्माेत्तर सूत्र को उद्धृत करते हुए राजनीतिप्रकाश (पृ० 130-131) के अनुसार राजा पतिव्रता स्त्रियों का सम्मान एवं रक्षा करे। राजनीतिप्रकाष ने शंख-लिखित के सन्दर्भ से लिखा है कि जो वर्ग व समुदाय शास्त्रविहित वृत्तियांे अथार्त आजीविकाआंे  से जीवन निवार्ह नहीं कर सकें, उन्हे ं राजा से भरण-पोषण की माँग करनी चाहिए और राजा अपनी सामथ्र्य के अनुसार उनकी सहायता करे। विपत्ति एवं अकाल के समय में राजा यथा शक्ति भोजन आदि की व्यवस्था करके प्रजापालन करना चाहिए 
(मनुस्मृति 5/94 की व्याख्या में मेघातिथि)। बुड्ढों, दृष्टिहीनों, विधवाओं, अनाथों एवं असहायों की व्यवस्था तथा उद्योग या व्यवसाय रहित क्षत्रियों, वैश्यों एवं शूद्रों को समयानुकूल सहायता देना प्राचीन परम्परा है। धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों दयालु राजाओं की इसी परम्परा के अनुरूप ही अशोक ने मनुष्यों एवं पशुओं के लिए अस्पताल खुलवाये थे (द्वितीय प्रस्तर अभिलेख)। धर्मशालाओं, अनाथालयों, पौसरों, छायादार वृक्षों, सिंचाई आदि की भी व्यवस्था की थी। राजा खारवेल व रुद्रदामा ने भी प्रजा हित को सर्वोच्च महत्व दिया था। महाभारत अनुशासनपर्व व मत्स्य पुराण (215/68) के अनुसार राजाओं को प्रचुरता में सभा-भवनों, प्रपाओं, जलाशयों, मन्दिरों, विश्रामालयांे आदि निर्माण कराने चाहिए। 
श्लोकः शालाप्रपातडागानि देवतायतनानि च। ब्राह्मणावसथाश्चैव कत्र्तव्यं नृपसत्तमैः।। 
(महाभारत अनुशासनपर्व पराशरमाधवीय, भाग 1, पृ० 466) इस प्रकार प्राचीन राजधर्म रोजगार केन्द्रित व लोक कल्याण प्रेरित अर्थ चिन्तन पर आधारित 
था।  

Wednesday, September 15, 2021

न मन हूँ न बुद्धि न चित अहंकार



निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य 1200 वर्ष पूर्व। 
The Atmashatkam (, ātmaṣaṭkam), also known as Nirvanashatkam ( Nirvāṇaṣaṭkam), is a composition consisting of 6 fold śloka (and hence the name Ṣaṭ-ka to mean six-fold) written by the Hindu philosopher Adi Shankara summarizing the basic teachings of Advaita Vedanta, or the Hindu teachings of non-dualism. It was written around 788-820 BCE.
It is said that when Ādi Śaṅkara was a young boy of eight and wandering near River Narmada, seeking to find his guru, he encountered the seer Govinda Bhagavatpada who asked him, "Who are you?". The boy answered with these stanzas, which are known as "Nirvāṇa Ṣaṭkam" or Ātma Ṣaṭkam". Swami Govindapada accepted Ādi Śaṅkara as his disciple. The verses are said to be valued to progress in contemplation practices that lead to Self-Realization.
"Nirvāṇa" is complete equanimity, peace, tranquility, freedom and joy. "Ātma" is the True Self
जन्मकाल अर्थात 2631 युधिष्‍ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5158 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5158 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2527 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2527 में से हम 2019 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व हुआ था। इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी।Most historians agree that Adi Shankaracharya lived in the 8th century CE, ईसापूर्व  or 1,200 years ago, 1,300 years after the Buddha. कालड़ी, म्रत्यु केदारनाथ,32 वर्ष आयु। 

 
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका कर्ण द्वार
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका कर्णद्वार
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।1।।

मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं ,
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु ,
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥
2. 
ना मैं प्राण हूँ ना ही हूँ पंच वायु
ना मुझमें घृणा ना कोई लगाव
ना लोभ मोह इर्ष्या ना अभिमान भाव
धन धर्म काम मोक्ष सब अप्रभाव
 मैं धन राग गुणदोष विषय परियन्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।2।।
मैं धन राग गुणदोष विषय परियांता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता......

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:,
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥

3. 
मैं पुण्य ना पाप सुख दुःख से विलग हूँ
ना मंत्र ना ज्ञान ना तीर्थ और यज्ञ हूँ
 ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता
ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।3।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥
(न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ,
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: .
न धर्मो न च अर्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं .. ॥ ३ ॥)

 
                ।।4।।

ना मृत्यु का भय है ना मत भेद जाना
ना मेरा पिता माता मैं हूँ अजन्मा
 निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता।।
           ।।5।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न (बंधुर न) मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥

मैं निरलिप्त निरविकल्प सूक्ष्म जगत हूँ
हूँ चैतन्य रूप और सर्वत्र व्याप्त हूँ
मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं ..॥ ६॥

              ।।6।।

ये भौतिक चराचर ये जगमग अँधेरा
ये उसका ये इसका ये तेरा ये मेरा
ये आना ये जाना लगाना है फेरा
ये नश्वर जगत थोड़े दिन का है डेरा
 ये प्रश्नों में उत्तर हूँ, निहित दिगंता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता।।।


 

ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार

 ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
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अर्थ
मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥2॥

मैं न प्राण चेतना हूं‚ न ही ह्यशरीर को चलाने वालीहृ पञ्च वायु हूं
मैं न ह्यशरीर का निर्माण करने वालीहृ सात धातुएं हूं‚ और न ही ह्यशरीर केहृ पाँच कोश
मैं न वाणी हूं‚ न हाथ हूं‚ न पैर‚ न ही विसर्जन की इंद्रियां हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः
न धर्मो न चार्थोन कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥

न मुझे किसी से वैर है‚ न किसी से प्रेम‚ न मुझे लोभ है‚ न मोह
न मुझे अभिमान है‚ न ईष्र्या
मैं धर्म‚ धन‚ लालसा एवं मोह से परे हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥4॥

मैं पुण्य‚ पाप‚ सुख और दुख से विलग हूं
न मैं मंत्र हूं‚ न तीर्थ‚ न ज्ञान‚ न ही यज्ञ
न मैं भोजन हूं‚ न ही भोगने योग्य हूं‚ और न ही भोक्ता हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥

न मुझे मृत्यु का डर है‚ न जाति का भय
मेरा न कोई पिता है‚ न माता‚ न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है‚ न मित्र‚ न गुरु‚ न शिष्य
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगत नैव मुक्तिर्न मेयःव
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥6॥

मै निर्विकल्प हूं‚ निराकार हूं
मैं विचार विमुक्त हूं‚ और सर्व इंद्रियों से पृथक हूं
न मैं कल्पनीय हूं‚ न आसक्ति हूं‚ न ही मुक्ति हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

∼ आदि शंकराचार्य


Tuesday, September 14, 2021

शहीद सुखदेव - १० विशेष बातें

भारत के खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के खिलाफ अपील

भारत के खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के खिलाफ अपील

क्या आप जानते है :

1. भारत में 1 करोड़ 20 लाख छोटी बड़ी दुकानें हैं।

2. ये दुकानें देश के 120 करोड़ लोगों को एक वर्ष में 23 लाख करोड़ रूपये का माल खरीदती/बेचती हैं।

3. लगभग 3.5 करोड़ लोग इन दुकानों पर मालिक अथवा कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं तथा 1.5 करोड़ लोग इन दुकानों पर माल लाने/ले जाने व अन्य गतिविधियों में लगे हुए हैं।

4. इन 5 करोड़ लोगों के परिवार एवं साप्ताहिक बाजार (सोम बाजार, मंगल बाजार आदि-आदि) में लगे हुए लोगों की संख्या जोड़ ली जाए तो लगभग 26 करोड़ लोगों का जीवन यापन इन्हीं दुकानों पर निर्भर है।

5. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का लगभग 9 प्रतिशत इसी व्यापार से आता है।

भारत के व्यापार में विदेशी कम्पनियों की दस्तक

1. अमरिका, यूरोप आदि के विकसित देशों ने अपनी जीवन शैली इतनी विलासितापूर्ण एवं खर्चीली बना ली है कि इनका अपने देश में ही कमाई से गुजारा नहीं हो सकता, इसलिए दुनिया के दूसरे देशों के बाजारों पर कब्जा करके भारी कमाई करते हैं। इसी क्रम में इनकी सरकारें भारत सरकार पर दबाव डालकर यहां के बाजार विदेशी कम्पनियों के लिए खुलवा रहे हैं। अमरिका में आई मन्दी के बाद इस गति में तेजी आयी है।

2. वालमार्ट, टेस्को, केरीफोर आदि कम्पनियों ने अनेक देशों के करोड़ों दुकानदारों को व्यापार से बाहर करके उन देशों के 80 प्रतिशत तक व्यापार अपने कब्जे में कर लिया है।

3. भारत का 97 प्रतिशत व्यापार करोड़ों दुकानदारों के द्वारा ही किया जाता है। अभी तक इस व्यापार में विदेशी कम्पनियों को अनुमति नहीं मिली हुई है। किन्तु इन विदेशी कम्पनियों की गिद्ध दृष्टि लगातार हमारे व्यापार पर कब्जा करने के लिए लगी हुई है।

4. केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार देश के कुछ प्रान्तों के हुए विधानसभा चुनावों उपरान्त अब विदेशी कम्पनियों को आने की अनुमति देने जा रही है।



विदेशी कपंनियों के क्या तर्क हैं :



1. विदेशी कम्पनियों के आने से उपभोक्ता को सस्ता एवं अच्छी गुणवत्ता का माल मिलने लगेगा।

2. इन कम्पनियों में नौकरी करके रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

3. बिचौलियों से छूटकारा मिलेगा।

सच्चाई क्या है:

1. इन्हीं तको± के साथ देश के शीतल पेय के बाजार में कुछ वर्ष पूर्व पेप्सी कोला एवं कोका-कोला कम्पनी आई थी। आज स्थिति यह है कि शीतल पेय का 95 प्रतिशत बाजार इन कम्पनियों ने कब्जा करके देश के करोड़ों शीतल पेय निर्माताओं (केम्पा-कोला, स्थानीय ब्राण्ड वाले शीतल पेय, कन्चे वाली बोतल, जूस, गन्ने का रस, शिकञ्जी, सोड़ा, लस्सी, बेल का शरबत आदि-आदि) को बबाZद कर दिया।

2. ये कम्पनियां बिचौलियों को हटाने की बात करती है किन्तु स्वयं फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों को सैकड़ों करोड़ रूपये तथा टेलीविजन चैनल को 1 लाख रूपये प्रति सेकण्ड की दर से विज्ञापन के लिए भुगतान करती है। क्या ये लोग बिचौलिए नहीं हैर्षोर्षो

3. अन्य देशों में इन कम्पनियों का इतिहास यह बताता है कि ये पहले तो सस्ता माल बेच कर वहां ही दुकानों को बन्द करवा देते है फिर ग्राहक को भी मनमाना लूटते है।

4. यूरोप में करीब 4 लाख दुकानें इन्हीं कम्पनियों के कारण बन्द हो गई है। अमरिका के किसानों की आय 10 प्रतिशत कम हो गई है। वालमार्ट ने अपना माल चीन से खरीदना शुरू कर दिया जिस कारण अमरिका का व्यापार घाटा बढ़ गया तथा 5 लाख लोग भी बेरोजगार हो गए। जर्मनी और दक्षिण कोरिया ने अपने दुकानदारों को बचाने के लिए वालमार्ट जैसी कम्पनियों को देश से बाहर निकाल दिया। चीन, थाईलैण्ड व मलेशिया की सरकारें इन कम्पनियों से बचने के लिए रास्ते तलाश रही हैं।

5. देश की संसद के द्वारा गठित संसदीय समिति ने दिनांक 8 जून 2009 को इस सम्बन्ध में विदेशी कम्पनियों को भारत में अनुमति दिए जाने का कड़ा विरोध करते हुए अपनी रिपोर्ट लोकसभा के पटल पर रखी थी। किन्तु उस रिपोर्ट को सरकार दरकिनार करके एक निजी एजेंसी की रिपोर्ट को महत्व दे रही है। इक्रियर नाम की इस एजेंसी ने देश भर में मात्र 2018 दुकानों का सर्वे किया है। यह एक संयोग है कि इस एजेंसी को विदेशी कम्पनियों के सबसे बड़े पेरोकार श्री मोण्टेक सिंह अहलूवालिया (योजना आयोग के उपाध्यक्ष) की धर्मपत्नी चलाती हैं।

भारत में खतरा क्या है :

1. देश में ज्यादातर दुकानदार स्वयं के द्वारा ही जुटाई गई बहुत कम पूञ्जी से अपना व्यापार चलाते हैं। दूसरी ओर बड़ी कम्पनियों को बहुत कम ब्याज पर बैंकों से बड़ी-बड़ी राशि मिल जाती है। इस कारण वे बड़ी कम्पनियों के साथ मुकाबले में वे टिक नहीं पाएंगे।

2. करोड़ों की संख्या में ये छोटे दुकानदार बेरोजगार हो जाएंगे। जिसके कारण हत्या, आत्महत्या एवं लूटपाट बढ़ेगी तथा देश में अनेक प्रकार के आर्थिक, सामाजिक एवं सुरक्षा सम्बन्धी संकट खड़े हो जाएंगे।

3. काण्ट्रेक्ट खेती के नाम पर ये कम्पनियां किसानों का भी भारी शोषण करेगी।

4. भारी मुनाफा कमाकर ये कम्पनियां देश का धन बाहर ले जायेगी।

सरकार से हमारी मांग

1. खुदरा व्यापार खोलने से पहले देश भर में इस मुद्दे पर सरकार की ओर से एक बहस चलायी जाए कि आम व्यापारी इस बारे में क्या सोचता है।

2. सिंगल ब्राण्ड रिटेलिंग के क्षेत्र में अभी तक जिन कम्पनियों को पिछले वषो± में अनुमति दी गई है उसके सम्बन्ध में अब तक देश को हुए लाभ हानि का लेखा जोखा (श्वेत पत्र) सरकार शीघ्र जारी करे। (जैसे शीतल पेय में कोका-कोला, पेप्सी-कोला, खाद्यान्न में कारगिल कम्पनी, आदि-आदि)

3. बड़ी कम्पनियों के आने से लगभग 17 करोड़ लोगोें की दुकानदारी एवं रोजगार बिल्कुल खत्म हो जायेगी, उनके पुनर्वास के लिए क्या योजना है।

4. दिनांक 28 जुलाई 2010 को दिल्ली के कंस्टीटयूशन क्लब में योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने स्वीकार किया था कि कृषि से आजीविका चलाने वाले लोगों की संख्या घटानी पडेगी, लघु उद्योगों में ओर अधिक लोगों को रोजगार नहीं दिया जा सकता अपितु लोगों को निकाला जा रहा है। एक तरफ किसान आत्महत्या कर रहे है, दूसरी तरफ छोटे लघु उद्योगों को चीन का माल बबाZद कर रहा है तो ऐसी स्थिति में खुदरा व्यापार में भी विदेशी कम्पनियों को बुला कर करोड़ों लोगों को क्यों बबाZद किया जा रहा :



हमारा संकल्प

``लघु किसान- लघु व्यापार- लघु उद्योग

बचेगा तो - बचेगा देश - बचेगा देश´´

``घर-घर ले जाएंगे - हम यह सन्देश´´

आईये हम सब मिलकर प्रधानमन्त्री के नाम ज्ञापन पर अपने हस्ताक्षर करके स्वदेशी जागरण मंच द्वारा चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में सम्मिलित होकर करोड़ों लोगों के रोजगार की रक्षा करने में भागीदार बनें।

चीन का खतरा और समाधान - कश्मीरी लाल

चीन का खतरा evam samadhan

यदि ये पूछा जाये कि आजाद भारत का ऐसा कौन सा क्षण हे जिस पर आप सबसे ज्यादा गर्व कर सकते हे. इस के कई उत्तर हो सकते हे. पोखरण के विस्फोट से लेकर बाबरी ढांचा गिरने तक और कारगिल विजय से अन्ना हजारे की विजय तक कई उत्तर हो सकते हैं. लेकिन आजाद भारत के पूरे इतिहास को देखें तो बंग्लादेश पर विजय एक ऐसा उत्तर हे जिसपर काफी लोग सहमत हो जायेंगे. इस तेरह दिन के युद्ध में भारत ने पकिस्तान को बुरी तरह परास्त करके आत्म-समर्पण के लिए मजबूर किया. क्या नज़ारा था जब 16 दिसंबर 1971 को हमारे जेनेरल अरोड़ा ने पकिस्तान के जेनेरल निआज़ी को आत्मसमर्पण पत्र पर दस्तखत करने पर उनके 90 ,००० से ज्यादा भेद-बकरीओं की तरह इकट्ठे किये सैनिको को रिहा किया. अब अगर इससे बिलकुल उल्टा प्रश्न ये पूछा जाये कि आजादी के बाद का सबसे शर्मनाक समय कौन सा हो सकता है, तो इसके भी कई उत्तर हो सकते हे । संसद पर या ताज होटल पर हमले से लेकर नोट फॉर वोट जैसी घटना के कई शर्मनाक दिन गिनाये जा सकते हे. लेकिन एक उत्तर पर ज्यादातर लोगों कि सहमति होगी. वो होगी चीन से करारी हार. 1962 में चीन के हाथों ये बहुत ही शर्मनाक हार थी, और आज भी उसका स्मरण कर सर शर्म से झुकता है. कोई लोग तो उस दुर्घटना को याद भी नहीं करना चाहेंगे। इस हार के कारण क्या थे, इसको विष्लेषण करने के लिए एक समिति बनाई गई थी। उस रिपोर्ट पर चर्चा करके कुछ सबक सीखने की बात तो दूर, उस रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक ही नहीं किया गया।

हमने इस पराजय को एक घिसे-पिटे शब्द से छुपाने व पर्दा डालने की कोशिश की और वह शब्द है ‘‘धोखा’’। चीन ने हमारे साथ छल किया, फरेब किया ऐसा हमारे नेताओं ने कहा. 'हिन्दी चीनी भाई-भाई' के नारे लगाते-लगाते गला अभी सहज भी नहीं हो पाया था कि हमारा गला कोई घोंटने लगा । हमारे प्रधानमंत्री जी ने पंचषील के शांति के कबूतर छोड़कर और उनके सुखद फडफड़ाने के स्वर से आह्लादित हो आंखे बंद कर ली थी. अचानक हमारे इन शांतिदूत कबूतरों के गले से दबी चीख निकली और खून के छींटे नीचे गिरे। चीन के बाजों और चीलों ने उनपर झपट्टा मारके घायल कर दिया था। नेहरु लाचार थे. और सारा देश शर्मसार था. उनको कुछ समझ नहीं आ रहा की ये कैसे हो गया.



१.चीन का आक्रमण क्या अचानक हुआ था :हमारे कुछ रक्षा विषेषज्ञों ने इस सत्य को तथ्यों के साथ उजागर किया है कि ‘‘धोखे’’ का यह इल्जाम शंकास्पद ही नहीं, हास्यास्पद भी है। 'फन्नी' ही नहीं 'फाल्स' भी हे. समय रहते हम ने चीन के कुत्सित इरादों की और कभी गौर नहीं किया था. नेहरु जी की दुनिया में शांति का मसीहा बनाने की खोखली चाहत ने उन्हें कुछ समझने ही नहीं दिया. इतिहास गवाह हे की चीनी नेता माओत्से तुंग ने कई बार कहा था कि तिब्बत चीन के हाथ ही हथेली की मानिंद है और हथेली के साथ की पांच उंगलियां लद्दाख, सिक्किम, नेपाल, भूटान और नेफा है. लेकिन हमने कभी जियादा गौर नहीं किया था। 1950 के बाद के अपने नक्शों में चीन कोरिया, इंडोचीन, मंगोलिया, बर्मा, मलेषिया, पूर्वी तुर्किस्तान, नेपाल, सिक्किम, भूटान व भारत जैसे 11 देषों को अपनी सीमा में दिखाता रहा है. हमें तभी संभलना चाहिए था. लेकिन हमने गौर नहीं किया ।(भारत वर्मा , रक्षा विशेषज्ञ, चीन से भारत को आशंका, इंडियन डिफेन्स रेवियु , मई 2010 ) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया श्रीगुरू जी की भविष्यवाणी उसी समय की गई थी की चीन भारत पर हमला कर सकता हे . उसी समाया चीनी प्रधानमंत्री चायू एन लाई की भारत यात्रा के समय भारत हिंदी-चीनी, भाई-भाई के नारे लगा रहे थे । श्रीगुरू जी की चेतावनी भी अनसुनी कर दी गई - और फिर कहा गया कि धोखा हुआ है।



इस धोखे की बात को आज फिर याद करना पड़ेगा । कुछ विशेषज्ञों का मानना हे की चीन फिर भारत पर अगले साल हमला कर सकता हे. उन रक्षा विषेषज्ञों का अनुमान है कि चीनी विजय के 50 वर्ष 2012 में होंगे। इस स्वर्ण जयन्ति (गोल्डन जुबली ) को चीन भारत पर दुबारा हमला करके मनाएगा। इसके कारन भी बताये हे. चीन की अपनी घरेलू समस्याएं हैं, गरीब अमीर का अंतर बाद रहा हे । गाँव में आक्रोश हे की शहरों की चकाचोंध वहीं सिमट कर रह गई हे. और साड़ी दुनिया में लोकतंत्र की बयार उनके देश को नहीं छू रही. वो पहले की तरह तिनामिनान चौक पर अपने लोगों को टैंकों से रोंद कर 'श्मशान की शांति' पैदा करने से बचना चाहेगा। वह भारत पर आक्रमण करके अपनी जनता का ध्यान बढते हुए आक्रोश से हटा सकता है। भारत की समृधि की और बढ़त उसे फूटी आँखों सुहा नहीं रही. उसे भी अवरुद्ध करने वो हमला कर सकता हे. लेकिन क्या हमारी तैयारी है? क्या हम इसी भरोसे बैठे हैं की चीन व्यापारी बन गया हे और हमारे बाजार को छोड़ेगा नहीं, युद्ध तक नहीं जायेगा. यही बातें 1962 पहले भी नेतायों द्वारा कही जाती थी. हम इतिहास के गढ़े मुर्दे उखडने के आदी नहीं है, लेकिन इतना ही स्मरण करवाना चाहते है कि जो लोग इस कहावत को अक्सर भूलते है कि इतिहास अपने को दोहराते हैं और उससे सीख नहीं लेते वे पुनः लज्जा, शर्म सहने को अभिषप्त रहते है। हमारा ये जन जागरण अभियान एक चेतावनी सा हे. हम पूरे देश के सामने ये बात रखना चाहते हे की यदि युद्ध दुबारा होता हे तो क्या हमारी तेयारी हे. नेता इस मामले में चैन से सोते दिखाई दे रहे हैं.



हमारी सरकार को व जनता को लगातार इस खतरों को भांपना चाहिए था। हर बार पृथ्वीराज की तरह उदार होते-होते फिर स्वयं गिरफ्तार और आंखों से लाचार होने को अभिशप्त होना हमारी नियति नहीं होनी चाहिए. धोखा-धोखा चिल्लाने की बजाय कुछ और सोचना चाहिए. क्या अच्छा नही कि भारत शिवाजी महाराज की तरह पूर्व तैयारी में हो. धोखा देने वाला अफजल खां रूपी चीनी दैत्य स्वयम पेट की आंतडियां बाहर निकलते वक्त चिल्लाए 'फरेब', 'धोखा'। यदि भारत चैन की नींद न सोये तो यह बिलकुल हो सकता है. भारत को तेयार रहना ही चाहिए. .



2. चीन द्वारा पैदा किये गए संकट का कारण क्या हैं: हमें कई बार हेरानी होती हे की चीन बेशक हमारा सदा से पडोसी रहा हे और हमेश से ही एक ड्रेगन के स्वाभाव का देश रहा हे. दूसरों को अपने अधीन करने वाला मुल्क रहा हे. लेकिन हमारे इतिहास में एक भी घटना ये नहीं दर्शाती की चीन ने हमारे पर कभी कोई हमला किया हो. चंगेज़ खान नामक वहां का क्रूर हमलावर जहाँ कहाँ अपनी तलवार घुमाता रहा लेकिन भारत भूमि पर बिलकुल नहीं आया क्योंकि वो बौद्ध धर्म का मानाने वाला बताया जाता हे और महात्मा बुद्ध की भूमि को कैसे छेड़ता. इतिहासकार तो उसका नाम भी चंगेस हान बताते हे. तो फिर क्या हुआ की चीन ने सं 1962 में हमारे पर हमला बोल दिया और तब से लगातार हमारे प्रति शत्रुता दिखा रहा हे. वास्तव में चीन और हमारे बीच तिब्बत था, और 1950 से पहले कभी भी हमारी और चीन की सीमा आपस में मिलती नहीं थी. तिब्बत की बफर स्टेट बीच में गायब होते ही स्थिति गड़बड़ा गयी. ये गलती इस लिए हुई की तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु चीन के इरादे नहीं भांप पाए थे और चीन को खुश करने के लिए एक से एक गलती करते गए जिसको आज तक भुगतना पड़ रहा हे. पंडित नेहरु "हिंदी चीनी भाई भाई " और " तीसरी दुनिया को अलग पहचान दिलाने " की हवाई नीतियों में मस्त रहे और चीन नयी से नयी चाले चलने में व्यस्त रहा. तिब्बत पर चीन से समझौता बहुत बड़ी भूल थी, और इसके बाद वो लगातार हिमालयन फ्रंटीयर के इलाके में फेलता गया और भारत अपने पैर समेटता गया ( . मोनिका चंसोरिया "चीन क विस्तार" "जौर्नल, सेंटर फॉर लैंड वार फैर स्टडीज़ )

चीन की रणनीति शुरू से यही रही की शक्ति बन्दूक की नाली से निकलती हे ना की शांति के प्रवचनों से. वैसे यदि हमने चीन के षड्यंत्रों को समझना हो तो चीन के एक पुराने राजनीतिक चिन्तक झून-जी (298 -238 ईसा पूर्व ) को समझना होगा. उसके तीन सिद्धांत चीन आज भी अनुसरण करता प्रतीत हो रहा हे. क्रमांक एक कि आदमी स्वाभाव से कुटिल और धूर्त होता हे. दुसरे कि संघर्ष और कलह में से ऐसी परिस्थितियाँ बनती हे जिसमें हर देश को उसका लाभ अपने हक में करने की कोशिश करनी चाहिए. और तीसरे यह के द्वि-पक्षीय संबंधो को कानूनी रूप देने से पहले अपनी हालत इतनी मजबूत कर लेनी चाहिए , जहाँ से उसका दब-दबा हमेश बरकरार रहे. अगर चीन और भारत के सम्बन्ध देखें जाएँ तो ये बातें बिलकुल खरी उतरती हे और चीन इन बातों का उपयोग अपने हक में करता स्पष्ट दिखाई देता हे. (नेहा कुमार, चीन से आणविक खतरा" इंडिया क्वार्टरली 65 ,2009 ) सन 1949 के बाद से ही चीन ने अपना चक्र-व्यूह रचना शुरू कर दिया था. चीन की चाल में फँस कर नेहरु ने तिब्बत जो की एक स्वतंत्र देश था, उसको चीन का अभिन्न अंग मानने की गलती कर ली. वास्तव में 1950 में तिब्बतियों ने भारत के साथ रहने और भारत का प्रोटेक्टोरत बनने की इच्छा जाहिर की. लेकिन विडम्बना देखिये कि नेहरु जी ने उदारता बरतते हुए उन्हें चीन का प्रोटेक्टोरत बनने की सलाह दी. इतना ही नहीं तो 1951 में उनकी एक संधि भी करवाई जिसमे तिब्बत की आन्तरिक स्वायत्ता और संस्कृति और स्वशाशन आदि कायम रहें गे, ऐसा कहा. और कहा की केवल संधि कर चीन की संप्रभुता तिब्बत स्वीकार कर ले. तिब्बत ने भारत के भरोसे ही यह संधि की थी. लेकिन भरोसे में मारा गया. जैसे ही 1955 के बाद चीन ने तिब्बत में अपनी सेना भेजनी शुरू की तो पंडित नेहरु को अपनी गलती का एहसास होने लगा. 1959 के आते आते चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया . यही वो दुर्भाग्यशाली साल था जब पूज्य दलाई लामा को तिब्बत छोड़ कर भारत की शरण लेनी पड़ी. यहाँ ध्यान रहे कि पंडित नेहरु ने चीनी विस्तारवाद का विरोध तो किया लेकिन यह विरोध केवल शब्दों तक ही सीमित था. भारत और चीन के बीच से एक बफर स्टेट तिब्बत के गायब होने से हमारे लिए भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. इसके बाद चीन तिब्बत तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि वो पहले नेपाल, फिर भूटान, मंगोलिया आदि समीपवर्ती देशों पर अपनी पकड़ मजबूत करता गया.



3. एक गलती का एहसास होने पर क्या पंडित नेहरु सम्हल गए ? नहीं, बिलकुल नहीं. तिब्बत को हडपने के बाद चीन ने एक पर एक कब्जे करने शुरू कर दिए. पहले चीनी राष्ट्रपति चायू एन लाई ने कभी नहीं कहा की भारत के साथ चीन का कोई सीमा विवाद हे. लेकिन 1959 में तिब्बत पर कब्ज़ा पूरा होने के बाद चीन ने चिल्लाना शुरू किया कि भारत ने हमारी एक लाख चार हज़ार वर्ग किलो मीटर जमीन दबा राखी हे. दूसरी गलती और सुन लेनी चाहिए. पहला धोखा खाने के बावजूद भारत ने चीन से शांति खरीदने के मृगजाल में एक और गलती करदी. जब चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं था तो साम्यवादी देशो के इलावा भारत ही एक ऐसा देश था जिसने चीन कि सदस्यता के लिए प्रबल समर्थन किया था. और चीन ने इस उपकार का बदला दिया और 1962 में भारत पर बलात हमला कर दिया. इसी वक्त हमारी 38 ,000 वर्ग किलो मीटर जमीन पर कब्ज़ा कर लिया जो आजतक यथावत हे. (रिपोर्ट, तिब्बत डेली नोवंबर 2010 ). इतना ही नहीं तो उसने 5183 वर्ग किलोमीटर 1963 में पकिस्तान से ले ली. इसी जमीन पर महत्वपूर्ण कराकोरम पक्का मार्ग तेयार कर लिया. उसका पेट इससे भी नहीं भरा हे. उसने इल्जाम लगाया हे हे की भारत ने उसकी 90000 वर्ग किलोमीटर जमीन कब्ज़ा रखी हे. जो जो इलाके सामरिक दृष्टी से उसे उपयोगी लगते हैं, उनपर उसने अपनी उंगली टिका रखी हे. अब यदि तिब्बत सुरक्षित रहता तो चीन हमारा पडोसी बनकर हमारे पर लगातार दवाब नहीं बना सकता था. दूसरी बात हे जल विवाद की जो उसके बाद पैदा होने शुरू हुए . तिब्बत से ही ब्रह्पुत्र सहित और दस नदियाँ निकलती हे जिनसे 11 देशों की जलापूर्ति होती हे. अब ये सर्व विदित हे कि चीन उन नदियों के जल को अपने ढंग से मोड़ने का प्रयास कर रहा हे. चीन का उत्तर-पूर्वी हिस्सा सूखा हे और उसका तीन घाटियों वाला बाँध सूख रहा हे. इस लिए चीन इन नदियों का पानी उधर दे रहा हे. इसके लिए टनल और सुरंगों का जाल बिछाया जा रहा हे. दुःख का विषय हे की भारत सरकार ने अपने देश से इस बातको छुपा रहा हे. वैसे उपग्रहों के चित्र और अंतर-राष्ट्रीय प्रेक्षक और ऐसी पत्रिकाएं इन तथ्यों को नंगा कर रही ही. चीन की ये करतूते आने वाले दिनों में ये भारत के लिए ही नहीं तो विश्व के लिए एक संकट बनने वाला हे. (डॉ. भगवती शर्मा: चीन एक सुरक्षा संकट, पेज 13 )



४. नेहरु का पंचशील और आजके पंचशूल: हमने नेहरू के पंचषील के सिद्धांत की दुर्दषा होते देखी है - वह पंचषील हमारे लिए ‘पंचषूल’ बन गया और आज वे पांच शूल बहुत ही कष्ट दे रहे है . पहला शूल तो हे आर्थिक रूप से नुकसान. जो चीनी माल हमारे देष की दूकानों में अटे पड़े है। बचों के खिलोनो से लेकर पूजा के लिए लक्ष्मी गणेश कि प्रतिमा तक चीन निर्मित हे. होली का रंग भी चीन का, पिचकारी भी चीन की. दिवाली के चीन निर्मित पटाखे हमारे देश का दिवाला निकल के छोड़ें गे. हर साल चालीस हजार करोड़ रुपये हम चीन तो मुनाफे के रूप में दे रहे हे. बेरोजगारी भी इससे बढ रही हे. दूसरा नुक्सान पर्यावरण का हे. सारी दुनिया में आज पर्यावरण रक्षा की दुहाई दी जा रही हे. लेकिन पता हमें पता रहना चाहिए कि दुनिया का सबसे बड़े पर्यावरण विनाशको में से एक चीन है. बल्कि वो नंबर एक हे । दुनिया के सारे प्रदूषण का पांचवा हिस्सा यानि 21 प्रतिषत चीन फैला रहा है। तीसरा नुकसान चीन द्वारा हमारे देष में अराजकता फेलाना हे । माओवादी कहां से संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं, उनको हथियार से लेकर ट्रेनिंग देने में चीन की बहुत बड़ी भूमिका हे. हमारे देश में लगभग 150 जिलो में मायो-वादियों का सिक्का चल रहा हे. और तो और - 'माओ' नाम ही उनके यहां से आया है . चौथा नुक्सान चीन कर रहा हे कि वो हमारे सभी पड़ोसियों को हथियार दे देकर और आर्थिक सहयोग करके उन्हें हमारे खिलाफ उकसा रहा है। पाकिस्तान, नेपाल, बंग्लादेष सभी को हमारे खिलाफ उकसाने का काम तो चीन कर ही रहा हे, उसने वहां अपनी सैनिक चोकियाँ बना ली हे। और पांचवा सीधा-सीधा चीन से सामरिक खतरा है। रक्ष विशेषज्ञों को प्राय ये लगता हे के चीन के सामने हम कहीं नहीं टिकते. संसद में 2007 में सरकार ने एक सवाल के जवाब में इस बात को माना की चीन बार बार हमारे यहाँ घुसपैठ करता हे. ये माना की अकेले इस साल के ग्यारह महीनो में चीन ने 146 बार घुसपैठ की हे. मोटा अनुमान हे की बासठ के युद्ध के बाद अबतक 1500 बार चीन ने हमारी सीमायों में घुसपैठ की हे. ये भी लगता हे के दुबारा चीन से युद्ध होने पर फिर शर्मनाक हार होगी. ये भी लगता हे के सरकार उसी तरह गुमराह हे, या मुगालते में हे जैसे पहले थी. हम उसको अपने देश में मार्केट देकर समझ रहे हे के चीन हमारे से युद्ध करके इस व्यापार को नहीं खोएगा. लेकिन हालत खतरनाक हे. अब तो चीन के शस्त्र भी नये-नये है। उधाहरण के लिए यदि चीन ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे बांध को ही कहीं विस्फोट से तोड़ता है तो बहुत बड़े हमारे भूभाग को सुनामी जैसी स्थिति में ला सकता है। यह कल्पना की उड़ान नहीं, कुछ वर्ष पूर्व पूरा हिमाचल ऐसी ही स्थिति में लाने का चीनी प्रयोग सफल रहा है। हमारी सरकार को व जनता को लगातार इस खतरों को भांपना चाहिए था. (भारत वर्मा , रक्षा विशेषज्ञ, चीन से भारत को आशंका, इंडियन डिफेन्स रेवियु , मई 2010 ). आईये इन पांचो खतरों रुपी शूलों को विस्तार से पहचाने.



पहला शूल: चीन का भारत पर आर्थिक हमला:



अभी इस 16 सितम्बर के दैनिक जागरण एवं दुसरे अखबारों में सुरक्षा सलाहकार का खुलासा चौकाने वाला हे. उसके मुताबिक चीन का खतरा अब देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से पर उसका परोक्ष कब्जा हो गया है। लगभग 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन अब चीन से आयातित इनपुट या उत्पादों पर निर्भर है, यानी उसकी मुट्ठी में है। यह हैरतअंगेज निष्कर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार [एनएसए] का है। एनएसए सचिवालय ने चीन पर हाल में सरकारी विभागों को एक रिपोर्ट दी है।

इसके अनुसार चीन ने कई संवेदनशील क्षेत्रों में हमारी आत्मनिर्भरता पर दांत गड़ा दिए हैं। बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में उसका दखल अब खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इस रिपोर्ट के बाद विदेश मंत्रालय और आर्थिक मंत्रालयों में हड़कंप मचा हुआ है।

करीब आठ पेज की यह गोपनीय रिपोर्ट बेहद सनसनीखेज है। एनएसए ने इस साल मार्च में योजना आयोग और अगस्त में आर्थिक मंत्रालयों के साथ बैठक की थी। इसके बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की नीयत और नीतियां साफ नहीं है। वह दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में अपने दखल का इस्तेमाल साइबर जासूसी के लिए कर सकता है।

इस रहस्योद्घाटन ने सरकार के हाथों से तोते उड़ा दिए हैं कि अगले पांच साल में चीन हमारे 75 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन को नियंत्रित करने लगेगा। इस समय देश मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का करीब 26 फीसदी उत्पादन चीन से मिलने वाली आपूर्ति के भरोसे है। एक देश पर इतनी बड़ी निर्भरता अर्थव्यवस्था को गहरे खतरे की तरफ ले जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक तमाम तरह की सब्सिडी और मौद्रिक अवमूल्यन के चलते चीन हमारी तुलना में 40 फीसदी सस्ता उत्पादन करता है, जिससे भारत की औद्योगिक प्रतिस्पतर्धा बुरी तरह टूट रही है।

चीन के असर से भारत की आत्मनिर्भरता को खतरे के कई उदाहरण इस रिपोर्ट में दर्ज हैं। हमारे उद्योग बिजली बचाने वाले सीएफएल लैंप के प्रमुख कच्चे माल [फास्फोरस] के लिए चीन पर पूरी तरह निर्भर हैं। हाल में फास्फोरस की कीमत बढ़ाकर चीन ने यहां के सीएफएल उद्योग की चूलें हिला दीं। स्टील और इसके उत्पादों में ही चीन की कीमतें यहां से 26 फीसदी कम हैं। हमारा दवा उद्योग भी कुछ बेहद जरूरी [फमर्ेंटेशन आधारित] कच्चे माल यानी और बल्क ड्रग के लिए पूरी तरह चीन के भरोसे है। घरेलू दवा उद्योग चीन से सस्ते आयात के चलते सालाना 2500 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रहा है। कंपनियां चीन से आयातित पेनिसिलीन जी पर एंटी डंपिंग लगाने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का निष्कर्ष है कि भारत में दूरसंचार उद्योग अपनी जरूरत के 50 फीसदी उपकरण आयात करता है, जिसमें चीन का हिस्सा 62 फीसदी है। बिजली परियोजनाओं के एक तिहाई ब्वॉयलर और टरबाइन जनरेटर चीन से आए हैं, जो भारत के मुकाबले 6 से 20 फीसदी सस्ते हैं। दूरसंचार और बिजली क्षेत्र में चीन के दखल को लेकर सुरक्षा चिंताएं चरम पर हैं। यही चिंता सूचना तनकीक उत्पादों को लेकर भी है, जिनका आयात का आकार 2020 तक पेट्रो आयात से ज्यादा हो जाएगा। चीन इन उत्पादों का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है, इसलिए भारत में प्रमुख सप्लायर है।



सिफ इतना ही नहीं तो आज हर तरफ हमारे बाज़ार चीनी माल से भरा पड़ा हे. 2001 तक चीन का भारत से व्यापार कोई खास नहीं था. भारत चीन को हर तरह से सुविधाएँ दे रहा हे. और 2010 तक भारत चीन व्यापार 62 अरब डालर का हो गया था, और 2011 ख़तम होते तक ये आंकड़ा 84 अरब डालर तक पहुँचाने वाला हे. इस व्यापार में दो हिस्से चीन के हे और एक हिस्सा भारत के, लेकिन इस में भी एक पेच हे. वो ये हे की हम जो बीस अरब डालर का माल चीन को देते हे वो कच्चा माल हे. इन बेश-कीमती खनिज पदार्थों में से भी साठ प्रतिशत तो कच्चा लोहा हे. अनुमान हे की यदि भारत इसी गति से लोह-अयस्क का निर्यात करेगा तो ये पचास साठ साल में बिलकुल ख़तम हो जायेगा. फिर जरूरत पूरी करने पर चीन से किस भाव खरीदेंगे, इसका नदाजा ही रोंगटे खड़े कर देता हे. दूसरा सामान जो चीन को हम भेजते हे वो कच्चा रबर हे. आज भारत दुनिया के तीन-चार बड़े रबर उत्पादक देशों में से एक हे. लेकिन त्रासदी ये हे की हम अपना रबर अनुदान देकर निर्यात करते हे. इस का नतीजा ये हे की चीन हमारा रबर सस्ते रूप में खरीदता हे. बस और ट्रक का टायर चीन इसी कारण भारत में 2000 से 3000 रुपये सस्ता बेचता हे. अब हालत ये की बड़ी-बड़ी भारतीय कम्पनिया भी चीन में कारखाना लगाने की सोच रहीं हैं . ऐसे ही वस्त्र उद्योग भी प्रभावित हो रहा हे. कपास भी बड़ी मात्र में चीन जा रही हे. फिक्की के सर्वे में आया हे की 74 पर्तिशत उद्यमियों को चीनी उत्पादों के कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा हे. 62 फ़ीसदी उद्यमियों का मानना हे की चीन के सस्ते उद्पादों के कारण कभी भी उनको अपना कारखाना बंद करना पड़ सकता हे. यही हाल प्रिंटिंग या इंजिनीरिंग के उत्पादों का हे, और रसायनों का तो और भी बुरा हाल हे. आज की तारीख में 35 फ़ीसदी पवार प्लांट और टेलीफोन एक्सचेंज भी चीनी लग रहे हे. आर्थिक नुक्सान के साथ साथ एक बहुत बड़ा खतरा ये भी हे की टेलीफोन क्षेत्र में चीन का आना वैसे भी बड़ा संवेदनशील मुद्दा हे. चीन जब चाहे हमारे महत्वपूर्ण लोगो की बात जब चाहे टेप कर सकता हे, देश की सुरक्षा और गोपनीयता कहा बचेगी.चीन से बड़ी मात्र में हम मौसम जानने वाले संयंत्र आयात कर रहे हे. अब वो हमें मौसम का हाल बताएँगे, या यहाँ की गतिविधियों के चित्र अपने देश में पहुचाएंगे.



आज दुनिया में तकनीक समृद्ध करने की होड़ लगी हे. हमारे यहाँ बताते हे की अभी टेलकम में प्रथम जेनेरशन टेक्नोलोगी ही विकसित हुई, और दूसरी पीड़ी की टेलेकाम टेक्नोलोजी ही यहाँ विकसित नहीं हुई. और तीसरी की तो दूर दूर तक सोची नहीं. चीन, आपकी जानकारी के लिए, चौथी पीड़ी की टेक्नोलोजी विकसित करने में अमरीका से भी आगे बढ़ने की कोशिश में हे. अगर हम आपनी चीजो का उपयोग नहीं करेंगे, अपने यहाँ उत्पादन नहीं करेंगे तो हमेशा के लिए पिछड़ जायेंगे. कच्चा माल ही चीन को देकर खुश होंगे और तेयार माल कई गुना कीमत चुका कर लेते रहेंगे तो हालत बहुत बुरी होगी. ये नीति तो ईस्ट इंडिया कंपनी हमारे साथ आजादी से पहले करती थी. कहाँ तो हम अमरीकी और यूरोप के आर्थिक जाल से बचने की कोशिश कर रहे थे, और कहाँ एक नया फन्दा चीन का और पड़ गया. इसी बात से अनुमान लगा लीजिये की आर्थिक गुलामी चीन से कितनी हे. बच्चो के खिलोनो से लेकर टेक्सन के केलकुलेटर चीनी हे. दिवाली के पटाखों से लेकर 'लिनोवा' के कम्प्यूटर भी चीनी हे. मंदिर पर जगमगाने वाली बिजली की लड़ियों से लेकर पूजा में रखी गयी लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियाँ भी चीनी हे. मोटा अनुमान हे की हर साल हम 40-50 हजार करोड़ रुपये का आर्थिक सहयोग मुनाफे के रूप में चीन का कर रहे हे. शत्रु देश का आर्थिक सशक्तीकरण करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना ही होता हे. . कुछ समय पहले ही चीन ने जापान को दुनिया की दुसरे नंबर की सर्व-श्रेष्ट अमीर अर्थवयवस्था के स्थान से हटा कर अपना कब्ज़ा जमाया हे. वैसे भी चीन के सामान नुकसानदेह हे. चीनी दूध के उत्पाद दुनिया भर में प्रतिबन्ध का विषय बने हैं क्योंकि उनमे एक मेलामाइन नामक नुक्सानदेह औद्योगिक रसायन हे. खिलोनो के रंगों में भी घातक रसायन बच्चों के लिए खतरनाक हे. सस्ते जरूर होते हे चीनी सामान लेकिन इतनी जल्दी खराब होते हे की पूछिए नहीं. इस लिए लम्बे वक्त में कुल मिला कर चीनी उत्पाद महंगे ही पड़ते हे. बेशक ये एक चुटकला होगो पर चीनी वस्तुयों की हकीकत दर्शाता हे. एक लड़के ने किसी चीन की लडकी से शादी की और पांच-छे महीने बाद ही वो लड़की मर गयी. अफ़सोस करने वालों में से एक ने उसे यूँ धाडस दिलाया: भले मानस क्यों रोता हे, पांच छे महीने तो निकाल ही गयी आपकी चीनी पत्नी. ये क्या कम हे. और चीनी माल वैसे चलता ही कितनी देर हे," ऐसे में फिर क्यों खरीदना ऐसा चीनी सामान को. क्योंकी इससे सेहत का भी नुक्सान, जेब का भी नुक्सान और वातावरण का भी नुक्सान.





दूसरा शूल - चीन से पर्यावरण को खतरा: तिब्बत कभी दुनिया के सबसे पर्यावरण की दृष्टि से साफ़-सुथरे स्थानों में से एक था. लेकिन तिब्बत को हडपने के बाद उसने तिब्बत को न केवल सैनिक अड्डे बल्कि आणविक कचरादान के रूप में तब्दील कर दिया हे. ऐसा करने के लिए तिब्बत के घने जंगलो को उसने काटना शुरू कर दिया हे. तकरीबन 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फ़ैली चीन के हरयाली और खूबसूरती को तहस-नहस कर दिया हे. यहाँ से निकलने वाली दस नदियाँ भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, बंगलादेश, भूटान, पकिस्तान, थाईलैंड, बर्मा, विएतनाम, लोस और कम्बोडिया जैसे अन्य ग्यारह देशों का मेरुदंड हैं. ये न केवल उन देशों की पानी की जरूरत पूरी करती हे बल्कि उपजाऊ मिटटी भी इनके बहाव के साथ मिलकर इन देशों की फसल को उपजाऊ बनती हे. मोटे तौर पर इन नदिओं के तटों पर विश्व के करीब आधी आबादी बसती हे.( भारत-नीति प्रतिष्ठान ,'चीनी- विस्तारवाद' पेज 17.)



लेकिन पिछले चार दशकों से इन देशों का मौसम चीन के कारण से बुरी तरह प्रभावित हुआ हे. अगर चीन के द्वारा सैनिक समीकरण के नाम पर तिब्बत की पहाड़ों पर बड़े-बड़े डैम बनाये जाते तो प्रत्यक्ष नुक्सान तो भारत को होगा, पर चीखे गी दुनिया भी. लेकिन इससे भी खराब बात हे के तिब्बत के एक हिस्से को आणविक अवशेष में तब्दील कर दिया गया हे. इससे ये परमाणु का कचरा मुहाने के भारतीय खेत खलिहानों और लोगों के घरों तक पहुँच रहा हे. यहाँ ये बात बताने की हे के कभी दलाई लामा ने विश्व शांति के लिए इस क्षेत्र को 'आणविक-मुक्त क्षेत्र' घोषित करने की बात 1980 के दशक में कही थी. वैसे भी चीन दुनिया के सबसे प्रदूषण फैलाने वाले देशों में अग्रणी हे. दुनिया का पांचवा हिस्सा परदुषण यानी 21 अकेला चीन ही फैला रहा हे. विश्व की सर्वाधिक प्रदुशंकारी ग्रीन हाउस गसों का उत्सर्जन चीन ही कर रहा हे. दुनिया में इस बात की काफी चर्चा हे, और चीन की प्रोद्योगिकी इतनी प्रदुषण पैदा करने वाली हे. ये बाते लोगों के जेहन में बिठाई जाती हे तो चीन देश द्वारा बनाई चीज़ों का बहिष्कार लोग सरलता से कर देंगे.परन्तु साथ में भारत सरकार की एक और बहुत बड़ी गलती ही नहीं बल्की पाप का जिक्र हम करना चाहेंगे. अभी दो साल पहले पर्यावरण पर संपन्न कोपेंगेहन वार्ता में cheen का साथ उस समाया दिया jab वह अंतर-राष्ट्रीय jagat mein kopbhaajan ban raha tha.





हिंद स्वराज के मूल गुजराती रूप का हिंदी और अंग्रेजी में रूपांतरण



हिंद स्वराज पुस्तक का नए (पुराने) रूप में लोकार्पण कार्यक्रम:



ब्रिटिश की कंपनी द्वारा अदरख का पटेंट होने से बच गया हिंदी व इंग्लिश

ब्रिटिश की कंपनी द्वारा अदरख का पटेंट होने से बच गया हिंदी व इंग्लिश
dinank 4 janwari 2012:दिनांक ४ जनुअरी २०१२: सारांश: एक इंग्लैंड की कंपनी ने सन २००६ में एक अर्जी दी थे

एक पेज की स्वदेशी विदेशी वस्तुओ की सूची

सूचना प्रसारण में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ने का विरोध

स्वदेशी जागरण मंच का विरोध हे सूचना प्रसारण में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ने पर, वैसे गृह मंत्रालय और सुरक्षा विभागों ने भी इस पर आपति जताई हे. रक्षा, अंतरिक्ष, सूचना प्रसारण में FDI सीमा बढाने पर गृह मंत्रालय को आपत्ति
Sunday, July 07, 2013, 23:31
Qनई दिल्ली : गृह मंत्रालय ने रक्षा, अंतरिक्ष, दूरसंचार तथा अन्य क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अधिकतम सीमा बढाये जाने के प्रस्ताव पर गहरी चिंता जताई है और उसका कहना है कि इन क्षेत्रों में चीन जैसे देशों से धन के प्रवाह से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

गृह मंत्रालय ने औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) को अपनी इस राय से अवगत करा दिया है। वह इस बारे में एक और पत्र भेजने की तैयारी में है। इस पत्र में वह किसी भी ऐसे कदम का कड़ा विरोध करेगा जिससे देश की सुरक्षा संकट पड़ने की आशंका हो।

गृह मंत्रालय का कहना है कि चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सउदी अरब तथा इंडोनेशिया जैसे देशों से रक्षा, अंतरिक्ष, दूरसंचार, सूचना एवं प्रसारण व नागर विमानन जैसे क्षेत्रों में एक निश्चित सीमा से परे एफडीआई की अनुमति से उन देशों के लोग ऐसी शर्तें लाद सकते हैं जो भारत के हितों के खिलाफ हो सकती हैं।

गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, `यह एक गंभीर मुद्दा है। हमने अपनी राय से पहले ही डीआईपीपी को अवगत करा दिया है और शीघ्र ही एक पत्र भेजेंगे जिसमें इन प्रमुख क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढाने के पीछे हमारे विरोध का कारण बताएंगे।` (एजेंसी)




http://www.swadeshionline.in/press-release-eng/stop-anti-national-move-increase-dominance-foreigners-defence-telecom
Swadeshi Jagaran Manch


::Central
Office::
Dharmakshetra,
Sector-8, R.K. Puram, New Delhi - 110 022


Ph.: 011-26184595, E-Mail:
swadeshipatrika@rediffmail.com, Website: www.swadeshionline.in





Dated:
13-07-2013



Press Release


Stop Anti-National Move to Increase
Dominance of Foreigners in Defence & Telecom


Swadeshi
Jagaran Manch strongly condemns governments move to increase the FDI limit in
the telecom sector to 100 percent, as this move will not only kill domestic
telecom sector, but even expose the nation to serious strategic risks and make
the nations security vulnerable. Swadeshi Jagaran Manch wishes to draw the
attention of the public about serious concerns raised by Home Ministry over
hiking FDI cap in defence, space, telecom and other sectors, contending that
flow of funds from countries like China in these sectors may compromise
countrys security.


The
Ministry of Home affairs has also said that FDI beyond certain limit from
countries like China, Pakistan, Bangladesh, Saudi Arabia and Indonesia in
defence, space, telecom, information and broadcasting, civil aviation may allow
people from these countries to dictate terms which could be contrary to Indias
interests. Even Ministry of Defence has opposed higher foreign investment in
defence, again stating that the move would make the nations security
vulnerable.


It
is even more unfortunate that the advocacy about raising of FDI cap in defence,
telecom, space and other sectors is coming from the person no less than Prime
Minister of India, in the name of external payment crisis and depreciation of
rupee. The argument being given by the government is that such moves would
reinstate the investors confidence.
Swadeshi Jagaran Manch sincerely believes that the present payment crisis
and depreciation of rupee is primarily due to the policy of unbridled
globalization. It may be recalled that ever since the policy of globalization
has started rupee has constantly been depreciating, as exchange rate of rupee which was rupee 18 per
dollar in 1991 has gone up to more than rupee 61 per dollar by July 2013. The
argument, made at that point of time was also that opening the borders for
foreign goods and capital would help in correcting imbalance in the balance of
payment. However, the outcome of the policy of globalization is that in the
last quarter current account deficit had reached 6.7 percent of GDP, which was
hardly 3.3 percent of GDP in 1990-91 (the worst year).


It seems that the government bowing down to the pressures from
overseas, is compromising national security, which is most unfortunate.
Swadeshi Jagaran Manch warns the government to desist from such an antinational
move and drop the proposals to raise FDI limit in Defence and telecom sectors.
Swadeshi Jagaran Manch also calls upon the general public, experts,
intelligentsia and the political parties to exert pressure on the government to
stop this move.











Panipat Resolution No. 1 (Hindi

Panipat Resolution No. 1 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 1

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश

सघन चर्चा, बहस एवं आंदोलनात्मक कार्यक्रमों के कारण आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में सबसे चर्चित विषय है। विविध क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को पिछले दशक में अंधाधुंध रूप से खोला गया है। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लगभग सभी क्षेत्रों में खोला गया है। अब हमें इस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का देश की जनता एवं आर्थिक स्थिति पर क्या परिणाम हुआ है इसका आकलन करने के लिए पर्याप्त उपलब्ध है।

विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का हिस्सा मात्र 5 प्रतिशत तक रहा है तथा घरेलू बचत से विकास दर सतत ऊंचा बना रहा है। 2007-08 से चली हालांकि मुद्रा के प्रसार के माध्यम से वे देश आज किसी प्रकार से बच पाये हैं वैश्विक आर्थिक मंदी ने अमरीका एवं यूरोपीय समुदाय जैसी आर्थिक महासत्ताओं के खो
FOREIGN INVESTMENT IN INDIA
Amidst intense campaigns and agitational programmes against Foreign Direct Investment, it has been a subject of intense discussion in the country. It is notable that the country has opened various sectors to FDI and the momentum gathered speed in the last decade. Now FDI is permitted in various sectors barring a few with sectoral caps, some under the automatic route and some others under the approval route. We have sufficient experience with us which enables us to assess the impact of FDI on the people of India and Indian Economy as a whole.

Various studies have revealed that the share of FDI in Indian Economy is less than 5% and the country achieved consistently high growth through domestic investments. The Global Economic Meltdown during the 2007-08 thoroughly exposed the shallowness of the so called Economic Powers like the United States and the European Union. Creation of currencies by their countries has saved the day for them. After deep introspection the International community now looks up to the Asian Countries and their model to initiate sustainable development and their hope on India is immense.

Swadeshi Jagran Manch is of the firm belief that FDI and FII have done more bad than good to the country. We find that in 1992-93, total outflow of foreign exchange in the name of interest, profits, royalties, salaries etc. was $ 3.8 billion which increased to $31.7 billion in 2012-13. It is notable that inflow of FDI has been only $26 billion in 2012-13. Another source of foreign investment namely Foreign Institutional Investment (FII) is highly volatile. After meltdown in USA and Europe, these FIIs withdrew and stock markets crashed suddenly leaving domestic investor in lurch, who lost lakh of crores of rupees. Further large scale outflow of foreign exchange, led to the dampening of rupee too.

Our country is savings oriented, with 30 plus percentage. This factor with a high GDP growth in the last two decades, increased the capital available for investment. Now the focus should be on improving the capital output ratio which will help in increasing manufacturing efficiency. Efforts should be on import substitution through increased investment in R & D leading to savings in Foreign Exchange. This will be significant step to reduce the current account deficit. Various studies both by the local and International Financial bodies confirm that India is capable of meeting all its investment needs of trillions of rupees on its own without outside support. The time has come to play leadership role and the days of succumbing to International pressure from bodies like IMF, World Bank are over.

A new government under strong leadership with the complete mandate of the nation has assumed power. The SJM joins the nation in congratulating the government and wishing it all round success. The SJM welcomes the stand the government expressed by the Hon’ble Commerce Minister that the government is not in favour of FDI in Multi Brand Retail.

However, we would like to reiterate that, after global meltdown, the world has understood that the developed nations are the largest debtors and the Asian countries are their creditors. They themselves are facing shortage of capital. Hard Foreign Exchange Reserves are available only with countries like China, Korea etc. The new hope generated due to political change has enthused the domestic investors and they are waiting in the wings go ahead with the new investment and expansion plans. This coupled with Public Sector investment can stimulate the economy. The SJM suggests that at this crucial juncture a thorough review of the FDI policy needs to be initiated based on our experience during the last two decades and also the International experience. In view of the fact that FDI and FIIs have far reaching consequences for the economy, this National Council of Swadeshi Jagran Manch urges upon the government to institute a study on the impact of FDI on Indian economy with respect to employment, technology up gradation and upliftment of poor and issue a ‘white paper’ on the subject encompassing all the above aspects.. In this attempt for technological improvement, green field investments and employment generation should be the guiding factors. The outgo of foreign exchange in form of Royalty, repatriation of profits must be carefully evaluated in considering FDI proposals. The SJM appeals to the government to fully utilize the domestic potential before turning outwards.

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Add new commentखलेपन को उजागर किया है। लेकिन दीर्घकालीन रूप से ये देश एशियाई देशों की ओर चिरंजीवी विकास के प्रारूप के लिए आशा भरी निगाहों से देख रहे है।

स्वदेशी जगारण मंच की यह मान्यता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं विदेशी संस्थागत निवेश ने देश का भले से बुरा ही अधिक किया है। हमें ध्यान में आता है कि सत्र 1992-93 में ब्याज, लाभांश, अधिकार शुल्क, वेतन एवं ऐसे माध्यमों से डाॅलर 3.8 बिलियन की विदेशी मुद्रा देश से बाहर गई है जो सन 1992-93 में डाॅलर 31.7 बिलियन हो गई। जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सन 2012-13 में मात्र डाॅलर 26 बिलियन रहा है। विदेशी संस्थागत निवेश यह विदेशी निवेश दूसरा महत्वपूर्ण स्त्रोत है। संस्थात्मक विदेशी निवेश के अचानक निकाले जाने से प्रतिभूति बाजार में भारी गिरावट देखी गयी जिससे भारतीय निवेशकों को लाखों करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ा है। विदेशी संस्थागत निवेश के निकल जाने से रूपए पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है।

बचत हमारे देश के जनसामान्य की आदत है तथा 30 प्रतिशत से अधिक बचत परिवार द्वारा की जाती है। ऐसी बचत से देश का विकास दर गत दो दशकों में बढ़ता रहा है। देश में बचत से उपलब्ध निधि के द्वारा मैन्यूफैक्चरिंग की क्षमता बढ़ाने पर हमारा ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। अनुसंधान एवं विकास पर अधिक व्यय करते हुए विकास योजना पर ध्यान देने से विदेशी मुद्रा को बहिर्गमन पर काबू पाया जा सकता है। यह चालू खाते घाटे को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।

देश एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई अध्ययनों का मत है कि भारत अपनी खरबों रूपए घाटे की मैन्यूफैक्चरिंग लागत की आवश्यकताओं को स्वयं ही पूर्ण कर सकता है। इसके लिए उसे विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं है। अब समय आया है कि जब हमारे देश ने विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के समक्ष निवेश के लिए गिडगिडाने की अपेक्षा दृढ़ रहकर स्वावलंबन की ओर जाने वाले देशों को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।
देश में बहुमत से स्थापित मजबूत नेतृत्व वाली सरकार के गठन पर स्वदेशी जागरण मंच को प्रसन्नता है तथा हम सरकार का अभिनंदन करते है। वाणित्य मंत्री द्वारा खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अस्वीकृत करने के बयान से हमें संतोष है।

वैश्विक आर्थिक मंदी आने से दुनिया को स्पष्ट हो गया है कि विकसित देश अत्यधिक देनदार है एवं एशियाई देश उनके लेनदार है। वास्तव में विकसित देश ही पूंजी के अभाव को महसूस कर रहे हैं। केवल चीन, कोरिया जैसे देशों के पास ही विदेशी मुद्रा का भंडार है। सत्ता परिवर्तन से देश के घरेलू निवेशको की आशाएं पल्लवित हुई है तथा वे शासन की योजनाएं एवं विस्तार कार्य में अपना सहयोग प्रदान करने का अवसर ढूंढ रहे हैं। घरेलू निवेश एवं सरकारी क्षेत्र के उद्योगों के निवेश से भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। स्वदेशी जागरण मंच का मत है कि पिछले दो दशकों की विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की समीक्षा कर ऐसे निवेश की आवश्यकता पर पुनर्विचार किया जाए और उपरोक्त सभी पक्षों को शमिल करते हुए एक श्वेत पत्र जारी करे। प्रत्यक्ष विदेशी एवं संस्थागत निवेश का देश की आर्थिक स्थिति पर दूरगामी परिणाम होता है। स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद मांग करती है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के देश की आर्थिक स्थिति पर हुए प्रभाव का अध्ययन कर, रोजगार निर्मिति, तकनीकी, उन्नययन तथा गरीबों के उद्धार में इस निवेश का क्या सहयोग रहा है, इसका अध्ययन किया जाए।


Panipat Resolution No. 2 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 2

आर्थिक चुनौतियां और समाधान
स्वदेशी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय परिषद केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन का स्वागत करती है। उल्लेखनीय है कि इस सरकार को एक बीमार अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है। मंहगाई, गरीबी, बेरोजगारी, भारी राजकोषीय और भुगतान घाटे, भुखमरी और भ्रष्टाचार से ग्रस्त इस अर्थव्यवस्था को पुनः अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करने, गरीब और बेरोजगार की विपदाओं को समाप्त करने और रूपये की बदहाली का अंत करने के लिए जरूरी है कि तुरंत कुछ प्रभावी कदम उठाये जायें। जरूरी है कि ऐसी समस्त नीतियों, कार्यक्रमों और प्रकल्पों की पहचान की जाए, जिसके माध्यम से अर्थव्यवस्था में खुशहाली लाई जा सके।

पिछले एक दशक से चल रही यूपीए सरकार द्वारा अपनायी गई जनविरोधी आर्थिक नीतियों के कारण देश केवल मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक गिरावट आदि की त्रास्दी से ही ग्रस्त नहीं हुआ, देश पर विदेशी ताकतों का प्रभुत्व भी बढ़ा और देश जो इससे पूर्व दुनिया में अपनी पहचान बनाने की ओर अग्रसर हो रहा था, विकास की दौड़ में पिछड़ने लगा।

स्वदेशी जागरण मंच मानता है कि देश के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों के चलते नई सरकार की राह कठिन है, कई ठोस और कठोर निर्णय लेने की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन बढ़ती मंहगाई के लिए जिम्मेदार है। आज जरूरत इस बात की है कि पूर्व सरकार की कृषि की अनदेखी को समाप्त करते हुए कृषि उत्पादन, विशेष तौर पर खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने का काम किया जाए। गौरतलब है कि खाद्य पदार्थों की आपूर्ति और मांग में असंतुलन के कारण पिछले तीन सालों में खाद्य पदार्थाें की कीमतें 50 प्रतिशत बढ़ चुकी है। सटोरियों और कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से पिछले लगभग 15 सालों से काॅमोडिटी एक्सचेंजों में कृषि उत्पादों का वायदा बाजार चलाया जा रहा है। यह सर्व मान्य है कि इस वायदा बाजार, जिसमें कृत्रिम कमी पैदा कर कीमतें बढ़ाई जाती है और खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती है। किसानों को इससे कोई लाभ नहीं होता। कामोडिटी एक्सचेंजों से खाद्य पदार्थों को बाहर करने से बढ़ती खाद्य कीमतों को रोका जा सकता है। यही नहीं विदेशों से आयात पर रोक लगनी चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा की मांग घटे और रूपये पर दबाव कम हो सके। रूपये में 10 प्रतिशत का सुधार देश में मुद्रा स्फीति को 3 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

नई सरकार के सामने एक अन्य चुनौती रोजगार सृजन की है। पिछली सरकार में दस साल के शासनकाल में बेरोजगारों की संख्या में दस करोड़ की वृद्धि हुई है। बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में कुंठा और हताशा बढ़ा रही है। समय की मांग है जहां-जहां संभव हो बड़ी पूंजी के स्थान पर लघु उद्यमों को बढ़ावा दिया जाए, ऐसी तकनीकों का उपयोग हो जहां श्रम का उपयोग बढ़े। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा दिया जाए। 12 साल पहले बनी एस.पी. गुप्ता कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए।

देश में मैन्यूफैक्चरिंग बुऱी अवस्था में है। मैन्यूफैक्चरिंग संवृद्धि दर जो 10 से 15 प्रतिशत के बीच चल रही थी, पिछले साल ऋणात्मक 0.2 प्रतिशत पहुंच चुकी है। गौरतलब है कि आज इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रोनिक उपभोक्ता वस्तुएं ही नहीं, बड़ी मात्रा में प्रोजेक्ट वस्तुओं, पूंजीगत साज सामान और पावर प्लांट भी आयात किए जा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे बी.एच.ई., लारसन एण्ड टुयरो इत्यादि की आर्डर बुक सूख रही है और पूंजीगत वस्तुओं का आयात भारी मात्रा में हो रहा है।

स्वदेशी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय परिषद देश की सरकार से आह्वाहन करती है कि देश के समक्ष भीषण आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर पूर्व सरकार की कृषि की अनदेखी समाप्त करे, कृषि उत्पादों को काॅमोडिटी एक्सचेंज से बाहर करे।

कृषि और लघु उद्योगों को राष्ट्रीय अर्थनीति के केन्द्र में लाया जाना चाहिए। रेलवे बजट की तर्ज पर कृषि बजट बनना चाहिए। कृषि ऋण शून्य ब्याज दर पर उपलब्ध करवाया जाए। मैन्यूफैक्चरिंग को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है कि मंहगाई को थामते हुए ब्याज दरों को घटाया जाए, आयातों विशेष तौर पर चीन से आयातों पर रोग लगे। हर वस्तु पर अधिकतम खुदरा मूल्य के साथ-साथ लागत मूल्य घोषित हो।

Panipat Resolution No. 3 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 3

जी.एम. फसलों के खुले परीक्षण के खतरे
देश में जैव रूपान्तरित फसलों अर्थात् जेनेटिकली माॅडिफाइड (जी.एम.) फसलों के परीक्षण के विरूद्ध सर्वोच्य न्यायालय में याचिका विचाराधीन होने पर भी पूर्व पर्यावरण मंत्री वीरप्पा मोयली द्वारा फरवरी 28 को ऐसी 200 प्रजातियों के परीक्षण की अनुमति दे देने से देश के पारिस्थितिकी तंत्र के सम्मुख एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। देश के सम्पूर्ण वानस्पतिक जगत, उसके जैव द्रव्य और जीव सृष्टि के सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करने वाले इन परीक्षणों पर रोक लगाने के सर्वाेच्च न्यायालय के कारण बताओ नोटिस की अनदेखी कर आचार संहिता लागू हाने के ठीक पहले अनुमति दे देना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण एवं सन्देहास्पद है। इन परीक्षणों के विरूद्ध सुनवाई के क्रम में सर्वोच्य न्यायालय द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने भी इन परीक्षणों पर रोक की अनुशंसा की है। सर्वोच्च न्यायालय के कारण बताओ नोटिस का उत्तर देकर न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करने के स्थान पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री मोयली द्वारा पर्यावरण के लिए इन घातक प्रभाव वाले परीक्षणों को अनुमति दे देने में की जल्दबाजी के गंभीर दुष्परिणाम होंगे।

वस्तुतः खुले में इन जैव रूपान्तरित फसलों के परीक्षण की दशा में इनके पराग कण विकिरण से आस-पास की साधारण फसलों या अन्य किन्हीं पादप प्रजातियों के जैव द्रव्यों को अनजाने में ही प्रदूषित कर सकते हैं। इस प्रकार पर-परागण या परा-निषेचन से प्रदूषण की संभावना को निर्मूल करने के लिए जी.एम. फसलों में टर्मिनेटर टेक्नोलाॅजी अर्थात बांझ बीजों का उपयोग करने की दशा में, किसानों को उनकी फसल से बीज नहीं प्राप्त हो सकेगा। इसलिए परागणकणों के विकिरण को रोकने के लिए ये परीक्षण खुले में न कर कांच या पी.वी.सी. के ग्रीन हाउस में ही किए जाने चाहिए।
परीक्षण के बाद भी इन फसलों की खेती की दशा में भी जैव रूपान्तरित फसलों में उत्परिवर्तन या म्यूटेशन की संभावनाएं बनी रहती है। उत्परिवर्तन की दशा में ही वह फसल अधिक गुणकारी या घातक व एलर्जी पैदा करने वाली अथवा विषैली हो सकती है। इसलिए बिना टर्मिनेटर या बांझ बीजों के बिना इनकी खेती करना जन स्वास्थ्य व हमारे जैव द्रव्य की शुद्धता के लिए खतरनाक है। दूसरी ओर टर्मिनेटर या बांझ बीजों से किसान को बीजविहीन कर देना भी खतरनाक है। इसके अतिरिक्त कीटाणुरोधी जी.एम. फसलों के कारण संवर्द्धित कीट या सुपर पेस्ट विकसित होने की घटनाएं भी खतरनाक हैं। ऐसे परिवर्तन कपास के डोडा कीट में भी हुए हैं।

परीक्षणों के बाद व्यापारिक स्तर पर इन्हें उगाने पर ये खाद्य कितने खतरनाक हो सकते हैं, इसके भी कुछ उदाहरणों व प्रयोगों का उल्लेख यहां आवश्यक है। अनेक प्रयोगों में जी.एम. टमाटर से चूहों के आमाशय में रक्तस्राव, बी.टी. आलू से चूहों में आंत्रक्षति, बी.टी. मक्का से सूअरों व गायों में वन्ध्यापन, आर.आर. सोयाबीन से चूहों, खरगोशों आदि के यकृत, अग्नयाश्य आदि पर दुष्प्रभाव आदि के अनेक मामले प्रायोगिक परीक्षणों के सामने आए हैं। जी.एम. फसलों से व्यक्ति में एण्टीबायोटिक दवाओं के विरूद्ध प्रतिरोध उपजना, कोषिका चयापचय (सेल मेटाबालिज्म) पर प्रतिकूल प्रभाव आदि जैसी अनेक जटिलताओं के भी कई शोध परिणाम सामने आए हैं। बी.टी. कपास की चराई के बाद कुछ भेड़ों के मरने आदि के भी समाचार आते रहे हैं। जी.एम. फसला या खाद्य के अनगिनत दुष्प्रभावों के परिणाम प्रयोगों में सामने आते रहे हैं।

कुछ समय पूर्व, नवंबर 12, 2012 को आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने ‘फ्रेन्केन’ नाम जैव रूपान्तरित गेहूं के बारे में चेतावनी देते हुए कहा है कि इस गेहूं से यकृत खराब (लीवर फैल्यर) हो सकता है। पागलपनर या खाने वाले की अनुवांशिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। इस गेहूं में बाहरी वंशाणु (जीन) प्रवेश कराने के स्थान पर इसी के कुछ वंशाणु अवरूद्ध (जीन ब्लाक) किए गए हैं।

जी.एम. फसलों के उपरोक्त प्रत्यक्ष दुष्प्रभावों के अतिरिक्त देश में प्रत्येक फसल की प्रजातियों में जो अथाह विविधता है और जिसके कारण प्रत्येक प्रजाति में प्रकृति में आने वाले विभिन्न चुनौतियों के विरुद्ध प्रतिरोध की भिन्न-भिन्न प्रकार की विविधतापूर्ण सामथ्र्य है। उनके स्थान पर एक ही जी.एम. फसल लेने पर हमारी विविध वैशिष्ठ्य वाली जैविक निधि विलोपित हो जायेगी। इसके अतिरिक्त पराग कण विकिरण की संभावनाओं के चलते क्या इनके खुले परीक्षण के लिए कदम बढ़ाने चाहिए ? एक बार किसी देश की कृषि व उसकी कृषि फसलों सहित संपूर्ण वानस्पतिक जगत के जैव द्रव्य के प्रदूषण से होने वाली क्षति की पूर्ति क्या कभी भी संपूर्ण हो सकेगी? यदि नही ंतो वीरप्पा मोयली का यह निर्णय तत्काल उलटना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त राज्यों को भी अपने अधिकारों का उपयोग कर इन परीक्षणों को अनुमति नहीं देनी चाहिए।
इसलिए स्वदेशी जागरण मंच सरकार से आग्रह करता है कि जिन जी.एम. फसलों के परीक्षण की अनुमति पूर्व पर्यावरण मंत्री ने दे दी है, उनके खुले में परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। कोई भी जी.एम. परीक्षण कभी भी बन्द ग्रीन हाउस के बाहर नहीं किए जाएं। इसके साथ ही जी.एम. द्रव्य युक्त खाद्य पदार्थों पर जी.एम. लेबल की अनिवार्य बाध्यता को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। आयातित कृषि उत्पादों व कृषि जैव द्रव्य के संबंध में कठोर संगरोध प्रक्रिया अपनायी जाए। इसके अतिरिक्त कृषि जैव आतंकवाद से सुरक्षा के भी समुचित कदम उठाए जाने चाहिए। मंच अपने सभी कार्यकर्ताओं, नागरिकों के जागरूक संगठनों, किसान बंधुओं एवं समस्त देशवासियों का भी आवाह्न करता है कि हमारी कृषि जैव संपदा के प्रति जी.एम. फसलों से उपजे संकटों के विरुद्ध हम एकजुट हो जाएं।





पर्यावरण पर निरंकार

धरती को बचाना होगा
एक अनुमान के मुताबिक धरती के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस बढ़ोत्तरी से कृषि पैदावार में दस फीसद की गिरावट आती है। अगर बांग्लादेश का उदाहरण लिया जाए तो उसकी कृषि पैदावार में चालीस लाख टन की कमी आएगी। हर साल पृथ्वी पर जल और खनिजों सहित प्राकृतिक संसाधनों के जबर्दस्त दोहन से जंगल साफ हो रहे हैं। पीने लायक पानी की कमी है। लिहाजा भूकम्प, सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती जा रही हैं।

जनसत्ता
Published on: September 26, 2019 1:44 AM
दुनिया इसी सदी में एक खतरनाक वातावरण परिवर्तन का सामना करने जा रही है।
निरंकार सिंह

दुनिया के एक सौ तिरसठ देशों के चालीस लाख लोग जलवायु संकट को दूर करने के लिए सड़कों पर उतरे। इसी महीने संयुक्त राष्ट्र युवा जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले इन प्रदर्शनकारियों ने जलवायु संकट से निपटने के लिए कदम उठाने की मांग की है। धरती के बढ़ते तापमान से जलवायु जिस तेजी से बदल रही है, अब वह हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है। भविष्य में वैश्विक तापमान और तेजी से बढ़ने का खतरा सिर पर है, क्योंकि आने वाले समय में कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन में और ज्यादा बढ़ोत्तरी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने पांच करोड़ साल पहले के वार्मिंग माडल के अध्ययन के बाद यह भविष्यवाणी की है। अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय और एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बढ़ते वैश्विक तापमान के अध्ययन के लिए पहली बार सफलतापूर्वक एक जलवायु मॉडल का उपयोग किया जो धरती के प्रारंभिक अवधि के वैश्विक तापमान से मिलता-जुलता है और जिसे भविष्य की पृथ्वी की जलवायु के सदृश्य माना जाता है।

वैज्ञानिकों के सबसे बड़े समूह ने दुनिया को यह चेतावनी देते हुए कहा है कि अब धरती को बचाने के लिए बहुत कम वक्त रह गया है। अगर फौरन कुछ नहीं किया गया तो पृथ्वी को भारी नुकसान होगा। हाल में दुनिया के एक सौ चौरासी देशों के करीब पंद्रह हजार वैज्ञानिकों ने बायोसाइंस जनरल के लेख ‘वर्ल्ड साइंटिस्ट-वार्निंग टू ह्यूूमैनिटी-ए सेकेंड नोटिस’ पर दस्तखत किए। धरती को लेकर यह अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन था, जिसमें दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने शिरकत की। पर्यावरण विज्ञानी विलियम रिपल ने बायोसाइंस के इस लेख में लिखा है कि धरती को बचाने का दूसरा नोटिस लोगों दे दिया गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी से जुड़ी कई चुनौतियों जैसे पेड़ों की कटाई, ओजोन परत में छेद, मौसमी बदलाव आदि के बारे में पच्चीस वर्ष पहले ही चेतावनी दे दी गई थी। आज जब इन चुनौतियों पर अध्ययन किया गया तो पता चला कि हालात बदतर हो चुके हैं। ताजे पानी में छब्बीस फीसद की गिरावट आई है और तीस करोड़ एकड़ जंगलों का सफाया किया जा चुका है। इन ढाई दशकों में स्तनधारी जीवों, पक्षियों आदि में उनतीस फीसद की गिरावट देखी गई है।

विकासशील देशों की इस अध्ययन रिपोर्ट में 2010 और 2030 में एक सौ चौरासी देशों पर जलवायु परिवर्तन के आर्थिक असर का आकलन किया गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक जीडीपी में हर साल 1.6 फीसद यानी बारह सौ खरब डॉलर की कमी हो रही है। अगर जलवायु संकट के कारण धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो 2030 तक यह कमी 3.2 फीसद हो जाएगी और 2100 तक यह आंकड़ा दस फीसद को पार कर जाएगा। जबकि जलवायु संकट से लड़ते हुए कम कार्बन पैदा करने वाली अर्थव्यवस्था को खड़ा करने में वैश्विक जीडीपी का मात्र आधा फीसद खर्च होगा। जलवायु संकट का सबसे ज्यादा असर गरीब देशों पर हो रहा है। 2030 तक विकासशील देशों की जीडीपी में ग्यारह फीसदी तक की कमी आ सकती है। एक अनुमान के मुताबिक धरती के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस बढ़ोत्तरी से कृषि पैदावार में दस फीसद की गिरावट आती है। अगर बांग्लादेश का उदाहरण लिया जाए तो उसकी कृषि पैदावार में चालीस लाख टन की कमी आएगी। हर साल पृथ्वी पर जल और खनिजों सहित प्राकृतिक संसाधनों के जबर्दस्त दोहन से जंगल साफ हो रहे हैं। पीने लायक पानी की कमी है। लिहाजा भूकम्प, सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती जा रही हैं।

वस्तुत: पृथ्वी की एक बहुत सुसंबद्ध व्यवस्था है। पिछले साठ-सत्तर सालों में हमारी गतिविधियों के कारण वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड काफी तेजी से बढ़ी है। किसी एक देश में छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइआक्साइड फौरन समूचे वातावरण में घुल जाती है और किसी एक स्थान पर समुद्र में छोड़ा गया कचरा धरती के एक सिरे से दूसरे छोर पर पहुंच जाता है। इसलिए उत्सर्जन और प्रदूषण का असर स्थानीय नहीं रहता और वह विश्वव्यापी प्रदूषण की समस्या बन जाता है। जैव विविधता को हो रहे नुकसान और भूरक्षण के कारण भविष्य में मौसम में और तेज बदलाव आ सकते हैं। इसी तरह ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने और समुद्र की सतह में छह मीटर की वृद्धि से भारी आर्थिक-सामाजिक नुकसान हो सकते हैं। यह साफ हो चला है कि हमारी पृथ्वी उस युग में प्रवेश कर चुकी है, जिसमें आदमी नाम की प्रजाति ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय शक्ति है। इसलिए जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार बदलावों को रोका जा सकता है।

धरती का तापमान जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, वह इस सदी के अंत तक प्रलय के नजारे दिखा सकता है। दुनिया इसी सदी में एक खतरनाक वातावरण परिवर्तन का सामना करने जा रही है। भारत सहित पूरी दुनिया का तापमान छह डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। पेट्रोलियम पदार्थों का कोई वैकल्पिक र्इंधन ढूंढ़ने में विफल दुनिया भर की सरकारें इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं। पीडब्ल्यूसी (प्राइस वाटरहाउस कूपर्स)के अर्थशास्त्रियों ने अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अब वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस के अंदर तक रखना असंभव हो गया है। इसलिए इसके घातक नतीजे सारी दुनिया को भोगने होंगे।

अब सवाल उठता है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए किया क्या जाए। क्या हम जलवायु बदलाव के विनाशकारी प्रभावों का समापन या प्रबंधन कर सकते हैं, जबकि लगातार बढ़ती वैश्विक आबादी अपनी निरंतर विस्तारवादी इच्छाओं, लालच और भूख को संतुष्ट करने के लिए विश्व के सीमित संसाधनों पर भारी दबाव डाल रही हो? इस पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है, यह गंभीर सवाल है। विकास के प्रचलित मॉडल पर चलते हुए तो हम इसका समाधान नहीं खोज सकते हैं। इस संकट का अनुमान महात्मा गांधी ने पहले ही लगा लिया था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि आधुनिक सभ्यता, प्रकृति का ध्यान नहीं रखती है और मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बना कर रहते हुए अपनी इच्छाओं को घटाने के लिए तैयार नहीं होता है तो अनेक प्रकार की

सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल, पारिस्थितिकीय विनाश और मानव समाज के लिए अन्य दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियां जन्म लेंगी। असीमित उपभोक्तावादी प्रवृत्तियां और मूल्यों के प्रति आलस्यपूर्ण उदासीनता मानवता को शांति की ओर बढ़ने में मदद नहीं करेगी। आर्थिक चुनौतियों की ही तरह आधुनिक विश्व के सामने पर्यावरणीय चुनौतियां हैं जो विभिन्न प्रकार के विनाशों, खाद्य और ऊर्जा संकट, सामाजिक तनावों और संघर्षों की ओर ले जा रही हैं। महात्मा गांधी का स्वराज या स्वशासन और स्वदेशी के माध्यम से लोगों को अपने पर्यावरणीय, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वातावरण पर नियंत्रित करने का दृष्टिकोण आज के बाजार संचालित पूंजीवादी तरीके के विकास की तुलना में विश्व को ज्यादा संतुलित और पर्यावरण-मित्र विकास की ओर ले जाने में ज्यादा सक्षम है।

हमारे पास गांधी जी के बताए रास्ते की ओर लौटने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। आखिर टिकाऊ विकास क्या है? यह विनाश की अवधारणा के साथ प्रकृति और भावी पीढ़ियों के प्रति गांधीवादी नैतिक दायित्वों को मिलाने से ही तो बना है। इस नैतिक दायित्व के भाव का लोगों, समाजों और सरकारों द्वारा निर्वहन हुए बिना टिकाऊ विकास का विचार सफल नहीं हो सकता। इसके बिना आम लोगों के आम संसाधनों के संरक्षण के लिए चल रहे प्रयास भी केवल कानूनी उपायों के वित्तीय सहायताओं के बूते सफल नहीं हो सकते। वे केवल तभी सफल हो सकते हैं, जब नैतिक दायित्व की भावना सभी पक्षों की भागीदारी से मजबूत की जाए।