2019 में 5621 करोड़ किलोग्राम
2020 में 5988 करोड़ किलोग्राम ।इस रासायनिक ज़हर नें अरबों ₹ किसानों की जेब से निकाल लिए ।
इस ज़हर को अगर 130 करोड़ नागरिकों में देखें - तो प्रत्येक के हिस्से लगभग 4 किलो यह ज़हर हर महीने आया ! और एक साल में 46 किलो से अधिक, अर्थात सामान्य आदमी 45-50 किलो का होता है तो सालाना अपने वजन का तुलादान अपने ही शरीर को पेस्टिसाइड्स का।। जय श्रीराम!!
1. दुनिया के 36% भारत में और चीन से पांच गुना।।Millet production – 2016
Country Production (millions of tonnes)
India 10.3
Niger 3.9
China 2.0
Mali 1.8
Nigeria 1.5
Burkina Faso 1.1
World 28.4
Source: FAOSTAT of the United Nations
In 2016, global production of millet was 28.4 million tonnes, led by India with 36% of the world total.
2. Pearl millet (बाजरा) is one of the two major crops in the semiarid, impoverished, less fertile agriculture regions of Africa and southeast Asia. Millets are not only adapted to poor, droughty, and infertile soils, but they are also more reliable under these conditions than most other grain crops. This has, in part, made millet production popular, particularly in countries surrounding the Sahara in western Africa.
3. ICAR-Indian Institute of Millets Research[33] in Telangana, India. इस पर और ज्यादा रिसर्च होनी चहियर।
5. नाम याद करना: ,
1. बाजरा, pearl millet, ज्वार, sorgum, रागी, (फिंगर मिलेट )भारतमें कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में रागी का सबसे अधिक उपभोग होता है। इससे मोटी डबल रोटी, डोसा और रोटी बनती है। इस से रागी मुद्दी बनती है जिसके लिये रागी आटे को पानी में उबाला जाता है, जब पानी गाढा हो जाता है तो इसे गोल आकृति कर घी लगा कर साम्भर के साथ खाया जाता है। वियतनाम मे इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। इससे मदिरा भी बनती है।
2. फोनियो,फोनियो एक अनुकूल स्वाद वाला पौष्टिक भोजन है । इसका सेवन मुख्य रूप से पश्चिम अफ्रीकी देशों में किया जाता है , जहां इसकी खेती भी की जाती है। 2016 में वैश्विक फोनियो बाजार 673,000 टन था। गिनी सालाना दुनिया में सबसे अधिक फोनियो का उत्पादन करती है, जो 2019 में दुनिया के उत्पादन का 75% से अधिक है। नाम फोनियो (द्वारा उधार लिया गया) फ्रेंच से अंग्रेजी) वोलोफ फोनो से है ।
दिसंबर 2018 में, यूरोपीय आयोग ने नए खाद्य उत्पादों के निर्माण और विपणन के लिए इतालवी कंपनी ओबे फूड द्वारा प्रस्तुत करने के बाद, यूरोपीय संघ में एक नए भोजन के रूप में फोनियो के व्यावसायीकरण को मंजूरी दी ।
3. कोदो, कोदो या कोदों या कोदरा एक अनाज है जो कम वर्षा में भी पैदा हो जाता है। नेपाल व भारत के विभिन्न भागों में इसकी खेती की जाती है। धान आदि के कारण इसकी खेती अब कम होती जा रही है। (शायद जिसे महाराणा ने घास खाया, वह कोदो आदि ही हो। 14 साल भगवान राम के ऐसे ही कंदमूल व अनाज खाये होंगे।
4. कुटकी: कुटकी का वैज्ञानिक नाम पनिकम अन्तीदोटेल है। यह मुख्य रूप से पंजाब, गंगा के मैदान तथा हिमालय में पाई जाती है, यह भी पनिकम परिवार की घास है। पंजाब में तथा संलग्न पाकिस्तान के क्षेत्र में इसे 'घिरी' या 'घमूर' कहते हैं
जैसे मोटे अनाज जिन्हें कदन्न भी कहते हैं, मोटे अनाजों की श्रेणी में आते है।
6. इनकी मांग के पीछे कई कारण उत्तरदायी माने जा सकते है –ये फसलें कम पानी में भी उग सकती है, साथ ही मौसम में आ रहे बदलावों को भी आसानी से झेल सकती है।
ये मिलेट फसलें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। इनमें प्रोटीन, फाइबर, स्टार्च प्रतिरोधी बड़ी उच्च मात्रा में होते हैं| साथ ही इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है जिस वजह से यह मधुमेह जैसे रोगों को रोकने में मदद कर सकते हैं। बाजरा में विटामिन बी और आयरन, जिंक, पोटैशियम, फॉसफोरस, मैग्नीशियम, कॉपर और मैंगनीज जैसे आहारीय खनिजों की उच्च मात्रा होती है। इसी तरह ज्वार भी पौष्टिक गुणों से भरा होता है।
7. मिलेट एक प्रकार का स्मार्ट्फूड है जो किसानों, इसके उपभोक्ताओं और पृथ्वी के लिए फायदेमंद है। जो सतत विकास के लक्ष्यों तक पहुँचने में भी मददगार सिद्ध होगा।
8. संयुक्त राष्ट्र ने भी इनके महत्त्व को देखते हुए 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स-2023) घोषित किया है। जिसका उद्देश्य इन उपेक्षित फसलों को बढ़ावा देना है, जिससे लोगों में इसकी दिलचस्पी बढे और वो इनके पोषण से भरपूर गुणों को जान पाएं। साथ ही इनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए नीतिगत तौर पर इनको समर्थन मिल सके। 👍👍हरित क्रांति के दौरान जिस प्रकार से गेहू और धान की फसलों को प्राथमिकता दी गयी थी और सरकारी नीतियां भी इन्ही फसलों के इर्द-गिर्द बनाई जा रही थी, उस से मोटे अनाजों की महत्व की अनदेखी की जा रही थी। लेकिन हाल के वर्षो में मोटे अनाजों के औषधीय गुणों के कारण इनके प्रति लोगो की जागरूकता बढ़ी है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा दूसरे ऐसे प्रमुख कारण है जिनसे मोठे अनाजों की अहमियत बढ़ी है।
एक प्रकार से देखे इसके लिए न केवल उत्पादन बल्कि इसकी मांग को बढ़ाना भी जरुरी है और साथ ही साथ इन फसलो के प्रति लोगो के नज़रिये को भी बदलना होगा। ऐसे अवसर पैदा करने होंगें जिससे किसानों को भी इनका बेहतर मूल्य मिल सके और उनके और बाजार के बीच की दूरी को मिटाना होगा साथ ही विकास के नए अवसर पैदा करने होंगें।
अब अमीरों की चाहत बना ‘गरीबों का अनाज’…सरकार ने बनाई मोटे अनाज को लेकर नई योजना
9. प्रधानमंत्री मोदी जी इसके पक्ष में बोले आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में 2019 में। https://www.livemint.com/politics/policy/how-millet-revolution-in-india-will-ensure-nutritious-diet-1567175904866.html
।।।।।
मुझे लगता है कि हम सबको इनके बारे में जानना चाहिए।
ये हैं महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गाँव की राहीबाई सोमा पोपेरे। ये 'बीजमाता'/सीडमदर के नाम प्रसिद्ध है।
ये देसी बीजों को बचाने व उनके संवर्धन को लेकर काम करती है। कभी स्कूल नहीं गई और एक जनजाति परिवार से संबंध रखने वाली है राहीबाई। इनके बीज के प्रति ज्ञान को वैज्ञानिक भी लोहा मानते हैं। अपनी जिद्द और लगन से ये देसी बीजों का एक बैंक बनाई है जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है। ये देसी बीजों को बचाने व उसके समर्थन में तब आई जब इनका पोता जहरीली सब्जी खाने से बीमार पड़ गया।
यही कोई बीस साल पहले। तब से ये जैविक खेती के साथ-साथ देसी बीजों के प्रयोग व उनके संरक्षण को प्राथमिकता देने लगी। ये कहती है कि भले ही हाइब्रिड बीजों की तुलना में ये देसी बीज कम उपज देते हैं लेकिन ये आपका स्वास्थ्य खराब नहीं करती,आप बीमारियों के चपेट में नहीं आते।
56 की साल राहीबाई सोमा पोपरे आज पारिवारिक ज्ञान और प्राचीन परंपराओं की तकनीकों के साथ जैविक खेती को एक नया आयाम दे रही हैं।
गुजरात और महाराष्ट्र में आज परंपरागत बीजों की मांग सबसे ज्यादा है।
और आज जो ये बीजों के माँग की आपूर्ति जो रही है तो बस इसलिए हो रहे हैं इनको जिंदा रखने के लिए राहीबाई जैसे लोग जीवित हैं। नहीं तो ज्यादा उपज और फायदा कमाने के चक्कर में देसी बीजों को लोग कहाँ पहुंचा दिए हैं वो सबको भलीभांति मालूम है। आज से 20-25 साल जिस बीमारी का अता पता नहीं था वो अब फैमिलियर होते जा रहा है।
ऐसे में 'पद्मश्री' बीजमाता राहीबाई जी को मेरा बारम्बार प्रणाम है।🙏🙏🙏
Makarand Kale
Updated On - 7:58 am, Wed, 22 September 21
साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र ने मिलेट्स ईयर घोषित किया है. इसे लेकर भारत सरकार ने तैयारियां तेज कर दी हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर में मीडिया से चर्चा के दौरान जानकारी दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर हैदराबाद में मिलेट्स इंस्टिट्यूट से मिलेट्स इयर की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. इसे लेकर हैदराबाद के मिलेट्स इंस्टिट्यूट में देशभर के कृषि वैज्ञानिकों और जानकारों से चर्चा की गई. भारत सरकार की कोशिश है की पोषक आहार के तौर पर मिलेट्स यानी मोटा अनाज ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उपलब्ध कराया जा सके.सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को मोटा अनाज यहां से उपलब्ध कराया जा सके, सरकार इसकी तैयारी कर रही हैं.
अब क्या होगा
दुनिया ने सेहत के लिहाज से मोटे अनाजों के महत्व को समझा है, इसलिए किसानों के लिए इसे उगाना ज्यादा फायदेमंद हो गया है. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं और दाम भी गेहूं से अधिक मिलता है. इसके तहत्व को ऐसे समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था.
हरित क्रांति के बाद आई खाद्य संपन्नता ने भारतीयों के खानपान से मोटे अनाजों को दूर कर दिया. गेहूं और चावल में ज्यादा स्वाद मिला और यह पौष्टिक अनाजों को रिप्लेस करता चला गया.
नब्बे के दशक के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई. वैज्ञानिक समुदाय ने भी इस पर काम नहीं किया. इसलिए किसानों ने ऐसी फसलों को उगाना बंद कर दिया. लोगों ने इसे गरीबों का खाद्यान्न कहकर उपेक्षित कर दिया. हालांकि, आदिवासी क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती रही है.
सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए मोटे अनाजों की एमएसपी बढ़ा रही है. ज्वार का एमएसपी 118 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया है. इसका एमएसपी 2620 रुपये प्रति क्विंटल है.
बाजरा का एमएसपी 100 रुपये बढ़ 2250 रुपये प्रति क्विंटल है. रागी का एमएसपी 82 रुपये बढ़कर 3,377 रुपये हो गया है. पिछले साल इसकी कमत 3,295 रुपये प्रति क्विंटल थी. मक्के के एमएसपी में मात्र 20 रुपये की बढ़ोतरी हुई है . इसकी कीमत 1850 रुपये प्रति क्विंटल है.
कहां होता है उत्पादन?
-ज्वार: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश
-बाजारा: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र
-जौ: राजस्थान, उत्तर प्रदेश
-रागी: कर्नाटक, उत्तराखंड
जई (Oats) की खेती पहले आमतौर पर जानवरों के खाने के लिए चारे के रूप में की जा रही थी. लेकिन, अब इसका ओट्स और दलिया बनाकर लोग खा रहे हैं. यह जल्दी पचने वाला फाइबर एवं पोषक तत्व से भरपूर खाद्य सामग्री है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के वैज्ञानिकों ने जई की दो नई किस्मों ओएस-405 व ओएस-424 को विकसित किया है. इन किस्मों को कृषि मंत्रालय ने नोटिफाई कर दिया है.
3.
ये मोटे अनाज क्यों हैं आपकी जिंदगी के लिए सुपरफूड
ये मोटे अनाज क्यों हैं आपकी जिंदगी के लिए सुपरफूड
मोटा अनाज (Coarse Grains) पौष्टिकता से भरपूर होता है. हमारे यहां ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज खाने की परंपरा थी. लेकिन धीरे-धीरे वो खत्म हो गई...
मोटा अनाज चावल गेहूं की तुलना में ज्यादा पौष्टिक होता है, SEPTEMBER 06, 2019, 11:53 IST
ज्यादा नहीं, आज से सिर्फ 50 साल पहले हमारे खाने की परंपरा (Food Culture) बिल्कुल अलग थी. हम मोटा अनाज (Coarse Grains) खाने वाले लोग थे. मोटा अनाज मतलब- ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के मोटे अनाज. 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया. जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है.
पिछले दिनों आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया. पीएम मोदी बोले, ‘आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया, उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया. जौ, ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, ऐसे अनेक अनाज कभी हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए. अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है.’
....कभी कभी एलोपैथी वाली अपने को भगवान मानने लग जाते हैं और हर विषय पर अपनी राय रखने के लिए खुले घूमते हैं, लेकिन अब एसनहीँ हैं:
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