Saturday, September 15, 2018

स्वदेशी की विकास यात्रा

2.. भूमिका


विकास यात्रा से तात्पर्य है कि स्वदेशी जागरण मंच के आज के विराट स्वरूप धारण की गाथा। स्वदेशी जागरण मंच क्या है, यह जानकारी सबको होनी चाहिये, हम किस वंश से जुडें है, किस कुल से उत्पन्न हुए हैं, कौन सी हमारी परम्परा है, हमारा इतिहास क्या है, किस मुहुर्त में, किस नक्षत्र में हमारा जन्म हुआ है, हमारा लालन पालन कैसा रहा है, यानि कुल मिलाकर स्वदेशी जागरण मंच, जब एक मंच के नाते जब इस धरती पर आया, तब से लेकर आज तक, हमारी यात्रा का क्रम कैसा रहा है? यह एक लम्बा इतिहास है। परन्तु समय सीमा के मर्यादा में उतना लम्बा इतिहास विस्तारपूर्वक बताना सम्भव नहीं होगा। कुछ महत्वपूर्ण, लेकिन मील स्तम्भ कहे जा सके ऐसे तथ्य यहाँ रखने का प्रयत्न होगा ।

३.दूसरा स्वातन्त्र्य युद्ध: आर्थिक स्वतंत्रता हेतु
यह जो विकास यात्रा है, यह स्वदेशी की नहीं, बल्कि इस मंच की विकास यात्रा है। यह देश जब राजनीतिक स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रहा था, जब हम अंग्रेजों के गुलाम हुए थे, दासता का युग उससे पूर्व भी था। विशेषकर अंग्रेजों के गुलामी के दौर में जिन परिस्थितियों का निर्माण इस देश के अन्दर हुआ, उसमें स्वदेशी का भाव, स्वदेशी के कार्यक्रम इनका प्रस्फुटन हुआ था। स्वदेशी का सबसे पहला आंदोलन बंग-भंग आंदोलन, श्री लाल-बाल-पाल के नेतृत्व में लड़ा गया। आजादी मिलने के बाद ही और जिस प्रकार से विदेशी ताकतों का हमारे नीति निर्धारण में जो प्रभाव दिखाई देने लगा, उसके कारण समय-समय पर स्वदेशी की माँग उठती रही है। विशेषकर जब विश्व बैंक के दबाव में 1965 ई. में सिन्धु जल बटवारे का समझौता भारत और पाकिस्तान के मध्य हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक परम् पूज्य गुरू जी ने देश की सरकार और जनता को उस समय सावधान किया था कि नीतियों के निर्धारण के मामले में, किसी दूसरे देश से समझौता करने के मामले में, सरकार विदेशी प्रभाव में न आएं। वास्तव में सिन्धु जल समझौता विश्व बैंक के दबाव में किया गया। राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के बाद यह एक प्रकार से आर्थिक परतन्त्रता है। इस आर्थिक गुलामी के लक्षण राजनीतिक आजादी के बाद ही नजर आने लगे थे.
कुल मिलाकर मंच के नाते हम स्वदेशी आन्दोलन चला रहे हैं। जिसको हमने कहा है कि यह स्वदेशी आन्दोलन आर्थिक स्वाधीनता के लिए एक युद्ध है। यह द्वितीय स्वतन्त्रता युद्ध है। इस शब्द का प्रयोग हमने किया। आज कल ’आर्थिक स्वतन्त्रता का दूसरा संग्राम’ शब्द का प्रयोग बहुत लोग कर रहे हैं। लेकिन इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने 1982 में किया था। उस समय उन्होंने कहा था कि देश एक आर्थिक परतन्त्रता के युग में जा रहा है और आर्थिक परतन्त्रता से मुक्ति के लिए हमें दूसरा स्वाधीनता संग्राम लड़ना पड़ेगा। 1984 ईसवीं मे इन्दौर में भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्तों का एक पाँच दिनों का अभ्यास वर्ग लगा था, जो बहुत ऐतिहासिक था, उस वर्ग में मैं भी उपस्थित था। उसी समय देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या हो गयी थी। तीन दिनों में ही वर्ग का समापन करना पड़ा। पूरा देश एक संकट के दौर से गुजर रहा था। इन्दौर भी उसी के प्रभाव में था।
चाहे यह थोड़ा अलग प्रसंग है परन्तु हम दूसरी बात बताना चाह रहे हे. एक दृष्टि से भी इन्दौर का अभ्यास वर्ग एक ऐतिहासिक था। क्योंकि उसी समय पहली बार सभी कार्यकर्ताओं के सामने आर्थिक पराधीनता और दूसरा स्वातन्त्र आन्दोलन के बारे में राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपने विचार रखे थे। तब भारतीय मजदूर संघ ने यह काम आरम्भ किया था और उसके बाद 1984 ई. के ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने मुम्बई अधिवेशन में पहली बार स्वदेशी व आर्थिक स्वातन्त्रय संग्राम जैसी बातें दोहरायी। मंच के नाते स्वदेशी जागरण मंच का 22 नवम्बर 1991 को गठन हुआ। अतः 1982 ई. से भारतीय मजदूर संघ ने ’आजादी की दूसरी लड़ाई’ शब्द का प्रयोग आरम्भ किया, यह अपना कार्य उसी का विस्तार था।
4.नई आर्थिक नीतियां: विनाश को निमंत्रण
याद करें कि 1991 में जब लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। काँग्रेस सबसे बड़े दल के रुप में उभरी थी। श्री नरसिहं राव जी के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ और डाॅ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने। तब डाॅ. मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। वित्तमंत्री रहने के नाते 24 जुलाई 1991 को भारतीय संसद में एक प्रस्ताव लाएं जिसमें देश की गिरती आर्थिक स्थिति, और पूर्व की सारी सरकारों की आलोचना की (यद्यपि ज्यादा दिनों तक सरकारें कांग्रेस की ही रही थी और बहुत लम्बे समय तक उन सरकारों के सलाहकार स्वयं डाॅ. मनमोहन सिंह थे। प्रमुख आर्थिक सलाहकार रहे, रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, यानि कि इन्हीं के सलाह पर और इन्ही के निर्देशन में सरकार आर्थिक नीतियाँ तय करती रही थी।) 24 जुलाई को डाॅ. मनमोहन सिंह ने पूर्व की सारी नीतियों की आलोचना करते हुए, नयी आर्थिक नीतियों की घोषणा की, जो कि 1 अगस्त 1991 से लागू हुई।
ये नई आर्थिक नीतियाँ क्या थीं? प्रस्ताव में तो ये उल्लेखित किया गया कि देश गहरे आर्थिक संकट में फँस गया है, भुगतान संतुलन का संकट है। अर्थात् देश को बाहर से वस्तुएं मंगाने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है, आय की विषमता हो गयी है, बेकारी फैल रही है, गरीबी फैल रही है, ये सब कुल मिलाकर देश एक भंयकर आर्थिक संकट में फँस गया है और इसमें से निकलने का एक मात्र उपाय - नयी आर्थिक नीति को लागू करना है। (जिसका परिणाम यह हुआ कि हमें 2600 टन सोना गिरवी रखना पड़ा।) इस देश में विदेशी पूँजी को आमंत्रित किया जाए। यानि कि देश अपने पैरों पर विकास नहीं कर सकता, अपने सामथ्र्य के बल पर ये देश खड़ा नहीं हो सकता, इसलिए विदेशी पूँजी की बैसाखी देश के लिए आवश्यक है। नियमों में ढील दी गयी। कस्टम्स ड्युटी घटायी गयी। जो क्षेत्र प्रतिबन्धित थे, उनको खोला गया यानि कि विदेशी पूँजी को यहाँ खुलकर खेलने का मौका, नयी आर्थिक नीतियों के माध्यम से दिया गया। परिणाम क्या हुए ? यह एक लम्बा और दूसरा विषय है।
6. स्वदेशी जागरण मंच - गलत आर्थिक नीतियों का राष्ट्रवादी उत्तर
जब ये नीतियाँ आयी तो ऐसे में जो राष्ट्रवादी लोग थे जिन्हें संघ परिवार कहा जाता था, की बैठक नागपुर में हुई। उस बैठक में एक निर्णय-प्रस्ताव पारित किया गया कि नयी आर्थिक नीतियों के कारण जो संकट खड़ा हो गया है, वह देश को फिर से गुलामी के नये दौर की ओर प्रवेश कराने वाला है।
यानि हजार, बारह सौ वर्षों तक हमने गुलामी के खिलाफ संघर्ष किया, कभी हारे, कभी विजयी रहे, लेकिन अंततः हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के खिलाफ विजयी हुए और विश्व क्षितिज पर भारतवर्ष का एक नये देश के नाते उदय हुआ। अब फिर से ये खतरा उत्पन्न हो गया है कि भारत वर्ष एक नये गुलामी के दौर में प्रवेश करने वाला है। अगर एक बार हम आर्थिक गुलामी में प्रवेश कर गये तो शायद हम राजनीतिक स्वतन्त्रता भी अक्षुण्ण नहीं रख पायेगें। ऐसा एक नया खतरा इस देश के सामने उत्पन्न हो गया है। इस खतरे से निकलने का एक ही मार्ग है कि स्वदेशी जागरण मंच को औजार के रुप में उपयोग करके, आर्थिक स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी जाए, ऐसा संघ की उस नागपुर बैठक में कहा गया।
चूँकि आक्रमण का प्रकार नया था, इस देश ने अभी तक आक्रमण बहुत झेले थे, कुछ शारीरिक, कुछ मानसिक आक्रमण झेले थे। किन्तु यह एक शक्ति के द्वारा एक प्रकार का आक्रमण हुआ करता था जिसका हमने सामना किया था। परन्तु यह जो नया आक्रमण का दौर आरम्भ हुआ इसका प्रकार थोड़ा भिन्न हो गया था। देश ने इसके पूर्व इस प्रकार का आक्रमण नहीं देखा था। इसमें समाज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था, जिस पर आक्रमण ना हुआ हो। यह केवल विदेशी पूँजी भारत नहीं आ रही थी, केवल अमेरिका का डाँलर नही आ रहा था, यह विदेशी पूँजी और अमेरिकी डाॅलर के साथ-साथ एक विदेशी विचार-संस्कृति का आक्रमण भी हो रहा था। जिसको अप-संस्कृति कहते हैं। सांस्कृतिक आक्रमण हमारे देश पर शुरू हुआ। क्यांेकि डाॅलर अकेला नहीं आ रहा था, डाॅलर एक विशेष प्रकार की विकृति अपने साथ लेकर के आ रहा था। यह विदेशी संस्कृति का आक्रमण था। क्यांेकि उनकी भी एक संस्कृति है। तो एक नया दौर जीवन के सभी क्षेत्रों में आरम्भ हुआ। यह जो नये प्रकार के आक्रमण शुरु हुए, इन्हें पारम्परिक हथियारों से नहीं लड़ा जा सकता। किसी एक संगठन के बूते की बात नहीं रही। हमारे यहाँ संगठन तो कई थे। कहीं मजदूर संघ लड़ रहा था, तो कहीं विद्यार्थी परिषद्। कहीं धर्म के क्षेत्र में विश्व हिन्दु परिषद, तो कहीं शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, कहीं किसानों की समस्याओं को लेकर भारतीय किसान संघ। ये सब लड रहे थे।
नये हथियार के नाते, स्वदेशी जागरण मंच का गठन किया गया और स्वदेशी जागरण मंच की संचालन समिति बनायी गई। जिसमें सात प्रमुख संगठन थे। राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी, मजदूर क्षेत्र में काम करने वाला भारतीय मजदूर संघ, किसान क्षेत्र मंे काम करने वाला भारतीय किसान संघ, विद्यार्थियों के बीच काम करने वाला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा के लिए विद्या भारती, महिलाओं और भगिनियों के लिए काम करने वाली राष्ट्रसेविका समिति, ऐसे राष्ट्रवादी संगठनो को मिलाकर स्वदेशी जागरण मंच का गठन हुआ। अर्थात् स्वदेशी का गठन एक संस्था के रुप में नहीं हुआ। मंच को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय है कि स्वदेशी जागरण मंच एक संस्था नहीं है बल्कि आंदोलन है। देश में अनेक प्रकार की संस्थाएं चल रही हैं। एक-एक विषय को लेकर काम करने वाली। स्वदेशी जागरण मंच एक मंच है जो स्वदेशी के लिए काम करता है। स्वदेशी को लेकर काम करने वाले चाहे किसी भी विचारधारा के हो, लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता का विषय उनको प्रिय है तो वे स्वदेशी जागरण मंच के साथ काम कर सकते है। इसलिए जैसे ही स्वदेशी जागरण मंच बना, वैसे ही फरवरी 1992 में पहली बार 15 दिनों का पूरे देश भर में हमने एक जन सम्पर्क अभियान लिया। लगभग तीन लाख गांवों में हमारे कार्यकर्ता गए। एक सूची दी, हमने कि स्वदेशी वस्तु क्या है, विदेशी वस्तु क्या है? साथ ही जनता से आग्रह किया कि अगर हमें इस आर्थिक संग्राम में विजयी होना है तो स्वदेशी वस्तु का अंगीकार करें और विदेशी वस्तु का बहिष्कार करें। इस आन्दोलन ने पूज्यनीय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जो एक आन्दोलन चला था, बहिष्कार का आन्दोलन, विदेशी वस्तुओं के होली जलाने का आन्दोलन, उसकी स्मृति को ताजा कर दिया।

7.और कारवां बढ़ता गया:
एक नये प्रकार का स्वदेशी-अंगीकार और विदेशी-बहिष्कार का आन्दोलन हुआ जिसकी गूँज भारतवर्ष के गाँव-गाँव तक पहंुची। सेकुलर कहे जाने वाले लोग, कम्युनिस्ट कहे जाने वाले लोग भी स्वदेशी जागरण मंच में आ गये। इसका पहला अखिल भारतीय सम्मेलन 3,4,5 सितम्बर 1993 को दिल्ली में हुआ और आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उस सम्मेलन का उद्घाटन इस देश के बहुत बडे मार्क्सवादी विचारक और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर ने किया और उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि उन्हें उनके कई मित्रों ने इसमें आने के लिए मना किया था, क्यांेकि स्वदेशी जागरण मंच आर.एस.एस. का है। मित्रों की बातों को दरकिनार करते हुए मैं यहाँ आया हूं और मंच के माध्यम से, जस्टिस अय्यर ने कहा था कि देश का भला सोचने वाले सारे लोगों को अपने मतभेदों को दरकिनार करते हुए स्वदेशी के मंच पर आना चाहिये और देश में एक नया स्वदेशी आन्दोलन खड़ा करना चाहिए।
8. विरोधी बने समर्थक
जस्टिस अय्यर ने इस देश के नकली बुद्धिजीवियों को लताड़ा। कठित बुद्धिजीवियों के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग किया। अंग्रेजी में उन्होने कहा कि आज के भारतीय बुद्धिजीवी अमेरिका के कालगर्लस् बन गये है। जस्टिस अय्यर ने राजनेताओं का आह्वान किया कि सारे मतभेदों को भुलाकर स्वदेशी जागरण मंच पर आइये। यह देश की आवश्यकता है। स्वदेशी जागरण मंच के प्रथम अखिल भारतीय संयोजक डाॅ. एम.जी. बोकरे बने। स्वयं डाॅ. बोकरे इस देश के गिने चुने माक्र्सवादी बुद्धिजीवियों में थे। डाॅ. बोकरे ने एक बडे़ ग्रन्थ ‘हिन्दु-इकोनोमिक्स’ की रचना की। डाॅ. बोकरे नागपुर विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर और अर्थशास्त्र के अध्यापक थे। उन्होंने अपने पहले उद्बोधन मे कहा कि माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी को जितनी गालियाँ नागपुर में पड़ी, उसमें देने वालों में पहला नाम डाॅ. बोकरे का था। वही बोकरे दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा स्थापित, स्वदेशी जागरण मंच के पहले संयोजक बने। उन्होंने कहा कि मैंने रिटायरमेन्ट के बाद हिन्दू धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया। जैसे कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्रनीति, वेदों एवं उपनिषदों का। इनके अध्ययन के बाद मुझे लगा कि भारत में अर्थशास्त्र के अध्ययन की सुदीर्घ परम्परा रही है। इसके बाद मैंने हिन्दू इकोनोमिक्स लिखा। इस प्रकार स्वदेशी जागरण मंच का शुभारम्भ हुआ।
इसी तरह 1994 में हमने दूसरा अखिल भारतीय अभियान लिया। 1992 के अभियान में केवल सूची दी थी कि स्वदेशी अपनाओ और विदेशी हटाओ। 1994 के अभियान में हमने कुछ बातें जोड़ीं। सूची के साथ इस देश के संसाधन क्या है जल, जमीन, जंगल, जानवर, जन्तु इसका एक बड़ा व्यापक सर्वेक्षण किया। लगभग 3 लाख गावों में कार्यकर्ता इस अभियान में गये। और कई नये कार्यकर्ता हमसे जुड़ गये। जिनका अन्य बातों से विरोध था, वो भी साथ आये। चन्द्रशेखर जैसे समाजवादी ने भी हमारे अभियान का श्रीगणेश किया और देश के पाँच स्थानों पर हमारे अभियान में भाषण दिया। दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के प्रेस कार्यक्रम में उनके आने से पूर्व वही पत्रक बाँटा गया जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस के नागपुर में स्वदेशी के कार्यक्रम में बाँटा गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो बात बालासाहब बोलना चाहते थे, इस आर्थिक संकट के बारे में, मेरा भी वही मत है, अतः मैंने उन्हीं का प्रेस ब्रीफ जानबूझकर पहले बंटवाया है।
चन्द्रशेखर जी समाजवादी थे, आरएसएस के आलोचक थे, लेकिन स्वदेशी के मंच पर आये। जार्ज फर्नाडीज़ बहुत बड़े समाजवादी नेता थे, एस.आर. कुलकर्णी पोस्ट एण्ड टेलिग्राफ वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे, वे भी स्वदेशी के मंच पर आये।
यहाँ तक तो बात रही, लेकिन देश के एक बडे़ वामपन्थी पत्रकार, सम्पादक शिरोमणि व विश्वप्रसिद्ध माक्र्सवादी निखिल चक्रवर्ती सम्पर्क में आये। वे स्वदेशी के कार्यकर्ताओं को (उनके पोशाक) देखकर भड़क गये, और कहे कि सब आरएसएस वाले हैं। जब एक कार्यकर्ता ने स्वदेशी का पत्रक दिखाया तो उसे वो बड़े ध्यान से देखते रहे और कहा कि लगता है आरएसएस ने नया शिगूफा छोड़ा है। अरे जनसंघ और आरएसएस, पूँजीपतियों और बनियों के पहले से दलाल हैं। और नयी आर्थिक नीतियों के कारण देशी पूँजीपति समाप्त होने वाले हैं, जिन्हे बचाने के लिए ये शिगूफा छोड़ा गया है। ये बातंे पत्रक पढ़ने के दौरान निखिल जी कह रहे थे। पत्रक पढ़ते-पढ़ते उनकी नज़र एक जगह अटक गयी और पूछा कि ‘‘क्या प्रचार कर रहे हो, आप लोग? टार्च में, जीप टार्च लेनी चाहिये, एवरेडी नहीं लेनी चाहिये?’’ अब निखिल चक्रवर्ती को पता था कि जो जीप वाली टार्च है उसे एक मुसलमान सज्जन बनाते हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से पूछा - कि तुम्हें पता है कि जीप टार्च कौन बनाता है? तो एक कार्यकर्ता ने कहा कि हैदराबाद के अमन भाई बनाते हैं। ‘‘वो तो मुसलमान हैं, और तुम लोग आरएसएस वाले हो, उसका प्रचार क्यों कर रहे हो?’’ तो कार्यकर्ता ने कहा - ‘‘कुछ भी हो, जीप स्वदेशी है, इसलिए हम इसका प्रचार कर रहे हैं।’’ इतना सुनकर निखिल चक्रवर्ती का दिमाग फिर गया और जब वे देहरादून से दिल्ली आये तो एक लम्बा कालम लिखा, जिसमें देश के सभी विचारधारा वाले लोगों से आपसी मतभेद भुलाकर, स्वदेशी से जुड़ने का आग्रह किया। बाद में ३ मई १९९२ को मद्रास के एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा की हमें अपने नेतायो को चेतना होगा की ‘ अगर आप हमें गरीबी से नहीं बचा सकते तो कम से कम हमें बंधुआ मजदूर तो न बनाये.’ उन्होंने आगे कहा की ‘ हो सकता है कि’ लोग इस स्वदेशी आन्दोलन को पुरातनपंथी कहें, नहीं, यह पुरातन पंथी नहीं हे, बल्कि यह इस देश के पुनर्जागरण की भावना को जागृत करने का प्रयास है.”
इन सब बातो का जिक्र करने का उद्देश्य ये हे की शुरू में भी हमारे अभियान में बहुत लोग जुड़े, बहुत बड़े बड़े लोग जुड़े. समर्थक ताल थोक कर साथ खड़े हुए तो साथ-साथ पुराने वैचारिक विरोधी भी दिल खोल कर साथ चले. आज भी उसी बात की जरूरत है की मुद्दों को लेकर सबके साथ चलना चाहिए.

9.चला अभियान: पहला बड़ा संघर्ष – एनरोंन
एक बड़ा आवश्यक मुद्दा ध्यान में आया ’एनराॅन और एनराॅन (पावर क्षेत्र में मल्टीनेशनल कंपनी)। इस मुद्दे को स्वदेशी जागरण मंच ने 1995 में चलाया। इसने दावा किया की २४ घंटे सात दिन बिजली प्रदान करेगी, लेकिन ये मृग जाल था. वास्तव में ऐसा नहीं हुआ, परन्तु पैसा हमारी ही सरकार से लेकर लगाया था. बहुराष्ट्रीय कमपानियों के मकडजाल का जो हम वर्णन करते थे, ये उसका प्रगत रूप था. लोगो को समझाने के लिए प्रत्यक्ष उदहारण था सामने. हमने बड़े बौद्धिक दृष्टि से इसका अध्ययन किया एक डाॅक्यूमेन्ट बनाया ’एनराॅन देश के हित में नहीं है’ हमने ऐसी कोरी नारे-बाजी नहीं की। बड़ा अध्ययन करते हुए, काम करते हुए, हमने डाॅक्यूमेन्ट बनाया, लाया और उस आन्दोलन को हमने जमीन पर नेतृत्व देना शुरू किया। रत्नागिरि जिले में, जहां लड़ाई जमीनी स्तर पर हो रही थी और महाराष्ट्र में सरकार के विरोध में शरद पंवार की सरकार के विरोध में, एनराॅन को केन्द्र बिन्दु बनाकर, एक जबरदस्त जन-आन्दोलन हमने प्रदेश भर में चलाया, जिसका नेतृत्व स्वदेशी जागरण मंच ने किया, बहुत सारे लोग सहयोगी थे, समाजवादी और सर्वोदयीवादी। सारे लोग जुड़े लेकिन आन्दोलन को एक-एक कदम आगे बढ़ाने का काम स्वदेशी जागरण मंच ने ही किया। यानि नेतृत्व करने का कार्य मंच ने किया। उस समय ’फास्ट ट्रैक प्रोजेक्टस’ जो इलेक्ट्रीसिटी के लिए, कोई सात-आठ की संख्या में प्रोजेक्ट्स चल रहे थे, जिसमें एनराॅन एक था। उधर ’काॅजेस्ट्रिक्स’ कर्नाटक में आ रही थी। इस प्रकार की कई कम्पनियों को लाने का एग्रीमेन्ट आंध्र प्रदेश में भी हुआ था, तो एनराॅन को हम लोगों ने जैसे ही लड़ाई का मुद्दा बनाया, तो अन्य विदेशी कंपनियों के विदेशी निवेश की रफ्तार धीमी हो गयी, कि जरा सावधानी से देखा जाए। देश और समाज, इस पर क्या संकेत देता है, इसको समझा जाए। उसके बाद निवेश करना या नहीं करना, देखेंगे, ऐसा निवेशकों को लगा।
धीरे-धीरे रफ्तार बिलकुल बन्द हो गयी। तो पूरे देश के वैश्वीकरण के विरोध में, स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला समाज का यह आन्दोलन हुआ। जिसका नेतृत्व हमने किया, लेकिन लड़ाई समाज ने लड़ी। समाज ने जो लड़ाई लड़ी वह कोई साधारण लड़ाई नहीं थी। बाद में नन्दीग्राम (बंगाल) की लड़ाई आम आदमी ने लड़ी। मामूली बात नहीं है कि जमीन की कीमत पांच लाख, दस लाख प्रति एकड़ तय कर दे, फिर भी किसानों का यह कहना कि हमें नहीं चाहिए। रत्नागिरी के किसानों ने ’हमें नहीं चाहिए’ कह कर यह लड़ाई लड़ी और हमने नेतृत्व किया। और कुल मिलाकर इस लड़ाई को वैश्वीकरण के विरोध में लड़ा गया। एनराॅन आन्दोलन, एक सफल शुरूआत था।
आन्दोलन को चलाने में, उठाने में, नेतृत्व देने में, लोगों को उस पर चर्चा में खींचने में, हम सफल हुए। इसकी घोषणा हमने कलकत्ता अधिवेशन में किया कि हम इसको पकड़ेंगे और इस पर हम लड़ेगे, फिर इस पर हम निर्णायात्मक लड़ाई लड़ेगे, हम इस पर आगे बढ़ेंगे। इस लड़ाई की एक और भी कहानी है, पहलु है. अब इस कहानी का प्रत्यक्ष रूप सामने आया कि इस लड़ाई के ’ग्रे’ एरिया भी है, कि जिन राजनेताओं के सहयोग से हम इस लड़ाई में आगे बढ़े, उनकी सरकार आने के बाद, उन्होंने एनराॅन के साथ समझौता किया।
13 दिन की राजग सरकार, और उसमें एक केबिनेट मीटिंग हुई। उसमें एक निर्णय हुआ। अल्पमत की सरकार, जो संसद में विश्वासमत का प्रस्ताव हार गई, लेकिन एनराॅन के समझौते पर केन्द्र सरकार ने अनुमति दे दी। तो इससे जन आन्दोलन को जबरदस्त धक्का लगा, लेकिन भगवान सच्चाई के पक्ष में रहते हैं। सच्चाई की जीत हमेशा होती है। सच्चाई की जीत को कोई रोक भी नहीं सकता। इसलिए, एनराॅन के जितने पहलू थे, उसकी कीमतों की दृष्टि से, उसके आधारिक संरचना की दृष्टि से, कम्पनी के प्रोफाइल की दृष्टि से, उस कम्पनी के अभी तक के कार्यों संबंधित जितने भी मुद्दे थे वह सबकी दृष्टि से, वह सब जिसने भी उठाने की कोशिश की, उसको उठाने के लिए, अपने पाले से पाला-बदल कर के कोशिश किया। लेकिन अन्त में हुआ यह कि, ‘एनराॅन, हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’, के अन्दाज में यानि जिन लोगों ने एनराॅन को समर्थन दिया, उनके मुंह पर तमाचा लगाते हुए, डूब गया। साथ ही हमारे आन्दोलन में उतार-चढ़ाव आते रहे, हमारे लिए दिक्कतें भी रही। हमारे लिए चुनौतियाँ भी रही, लेकिन हमारा ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ बेदाग़ रहा, अडिग रहा. लड़ाई के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, जनहित और राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों के प्रति निष्ठों, स्वदेशी नेतृत्व में लोगों में विश्वास भी पैदा हुआ।
हमारी कमजोरियाँ भी सामने आई होगी। लेकिन ’ये लोग अपने-पराये के लिए नहीं, राष्ट्रहित के लिए लड़ेंगे’ यह भी इसी संघर्ष ने स्थापित कर दिया। तो हमने इसे कलकत्ता अधिवेशन (1995) से प्रारम्भ किया। मूर्तिमान मुद्दो पर आन्दोलनों की घोषणा कलकत्ता सम्मेलन में की गई। आखिर दूर रहने वाले मुद्दों के बारे में केवल जागरण से नहीं चलेगा, कुछ मुद्दों को पकड़ कर, वैश्वीकरण के विरूद्ध लड़ाई को लड़ना है, इस घोषणा के बाद इस संघर्ष को आगे बढ़ाया।

10.पशुधन संरक्षण आंदोलन
कलकत्ता में हमने घोषणा की, -’पशुधन संरक्षण’। विकास और खेती के संकट को हमने उसी समय भांपते हुए कहा कि मानव पशुधन का जो अनुपात है, वह बहुत घटता जा रहा है, और अधिक यांत्रिक कत्लखानों को खोलनें के प्रयास सरकारों की ओर से हो रहे है। (आंकड़े) इतने कीमती पशुधन को, चाहे वह गाय है, या बैल है, या सांड है, जो केवल घास अथवा कृषि-अवशेष खाकर पूरे देश को दूध, दही, मक्खन और कृषि के लिए अनन्त मात्रा में खाद तथा बैल जुटाने वाले कीमती पशुधन को आप बड़े सस्ते दामों में बेचते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में, पशु को काट के कारखानों में, उसको पैक करके मध्य एशिया (मिडिल ईस्ट) में निर्यात करना, क्यों? निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था, निर्यात केंद्रित विकास, किसी भी कीमत पर निर्यात को बढाना, यह जो चल रहा है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो भारत के किसान और भारत की कृषि पर संकट खड़ा होगा।
यह कोई साधारण पशु बचाने वाली बात नहीं है। इसलिए ’अल-कबीर’ जो आन्ध्र में यांत्रिक कत्लखाना खोला गया था, उसके विरोध में स्वदेशी जागरण मंच की ओर से, तत्कालीन
राष्ट्रीय संगठक मुरलीधर राव के नेत्रित्व में सेवाग्राम (वर्धा) से अल-कबीर (आंध्र प्रदेश) तक की पदयात्रा की। 750 किमी. की पदयात्रा में अपार जन समर्थन मिला। एक माह की पदयात्रा का समापन एक जनसथा में किया गया। जिसमें विभिन्न पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ लगभग 12 हजार लोग रूद्रारम या मेड़क जिले के एक कार्यक्रम में एकत्रित हुए । स्वदेशी केवल जागरण, चर्चा और संगोष्ठी के लिए नहीं, ’सड़क पर लड़ेंगे’, इस प्रकार के आयाम देने का काम हमने ’पशुधन संरक्षण यात्रा’ से किया।

11. सागर में संघर्ष
कलकत्ता सम्मेलन में जब चर्चा हो रही थी तो सच में देखा जाए तो, रैली निकालने में नारे देने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या भी हमारे पास पर्याप्त नहीं थी। अनुभव नहीं था, मंच पर भाषण देने वाले लोगों की संख्या भी पर्याप्त नहीं थी, लेकिन समाज में ताकत है। जब समाज के मुद्दों पर लड़ेंगे तो समाज आपके साथ आयेगा और जो-जो आप में कमियां है, उसे दूर कर देगा। महत्वपूर्ण निर्णय जो स्वदेशी जागरण मंच ने वहां लिया वह है ’सागर यात्रा’। वह बड़ी ऐतिहासिक यात्रा है। मुझे लगता है कि देश में कभी गत सैकड़ों वर्षों के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ होगा कि सम्पूर्ण सागर की यात्रा की गई हो। इस यात्रा में नाव में बैठकर हर तट पर, हर गांव में सभा करते हुए नाव को आगे बढ़ाते जाना, और यात्रा करना क्या हुआ कि मछुआरे विवश हो रहे थे ? वैश्वीकरण के संकट से उत्पन्न बेरोजगारी के कारण परेशान हो रहे थे। क्योंकि सरकार, समुद्र की गहराई में मछली पकड़ने का काम, विदेशी कम्पनियों को, जो यांत्रिक पद्धति से मछली पकड़ने वाली एवं ’मेकेनाइज्ड फिशिंग’ करने वाली कम्पनियों को लाईसेन्स दे चुकी थी। अन्धाधुन्ध रूप से, हर तरफ, अनाप-शनाप, भारी मात्रा में मछली पकड़ना और इस प्रक्रिया में जो मछलियाँ और समुद्री जीव मर जाते उनको समुद्र तटों पर फेंकना, इस तरह प्रदुषण, बेरोजगारी और अस्तित्व का संकट था। तो हमारे पास मछुआरों में कार्यकर्ताओं की बड़ी टोली या नेटवर्क नही था। कोई संगठन भी साथ नहीं था। कोई इकाईयाँ भी नहीं था। स्वदेशी जागरण मंच ने तय किया कि यह देश का मुद्दा है, इसके लिए लड़ना है। तो कल्पना कीजिए कि एक तरफ दो हजार, एक तरफ तीन हजार किलो मीटर की समुद्र यात्रा करते हुए, त्रिवेन्द्रम में हमने अन्तिम कार्यक्रम किया। फादर थामस कोचरी के नेतृत्व में पहले से चल रहे आंदोलन को श्री सरोज मित्रा एवं लालजी भाई ने नई दिशा प्रदान की और हम देश की लड़ाई के नाते, इसे उभारने में सफल हुए।

बड़ा विचित्र, कई बार आपको लगता है। अल-कबीर का आन्दोलन करते समय जो जैन-समाज के लोग हमारा समर्थन कर रहे थे वहीं मछुवारों की लड़ाई में हमारा विरोध कर रहे थे। वो कहते थे, आप मछुआरों की लड़ाई क्यों लड़ रहे हो, वे मांसाहारी हैं। लेकिन हमने उन्हें समझाया कि यह शाकाहारी या मांसाहारी का विषय नहीं है। ’राष्ट्रहित के नाते हमने इस लड़ाई को लिया’ और अन्त में उसमें हमने सफलता प्राप्त की।

मुरारी कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार को विवश होकर बड़े विदेशी ट्राले के अनुबंध को रद्द करना पड़ा। क्योंकि पूरे समुद्र तट पर मछुआरों का जो समाज है वह संगठित हो गया। उसमें इसाई, मुसलमान, हिन्दू - सब साथ आ गये। स्वदेशी जागरण मंच इन सबको साथ ले चलने में सफल हुआ। हमने अलग से अपना नेतृत्व चलाने का कभी प्रयत्न नहीं किया तो भी हम इसमें सफल हुए। इस प्रकार से, जिसको मुद्दों के माध्यम से वैश्वीकरण के विरोध में लड़ाई को खडा करना कहते है। हमने इन विषयों को आगे बढाना शुरू किया।
12. मिनी सिगरेट विरुद्ध बीडी आन्दोलन
:फिर बाद में अभियान पर अभियान हम लेते गये। फिर बीड़ी वालों के लिए भी हमने अभियान लिया। हम सब जानते है कि बीड़ी बनाने वाले लोग मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आदि प्रांतों में हैं। इन प्रान्तों में तेंदुपत्ता से बीड़ी बनाते हुए अनेकों महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। आई.टी.सी. जैसी बड़ी कम्पनियों को ’मिनी सिगरेट’ के लिए परमिशन मिल गया, तो उनके साथ कम्पीटिशन होता। तो ऐसे में, हमने कहा कि यह नहीं चलेगा। इतने सारे रोजगार समाप्त करके कैसे चल सकता है? इसके लिए हमने ’बीड़ी रोजगार रक्षा आन्दोलन’ चलाना शुरू किया और इसके लिए समन्वित प्रयास हमने प्रारम्भ किये और ये प्रयास भी सफल हुए। सारे आन्दोलनों में हम सफल हुए। बीड़ी रोजगार बचाने में हम सफल हुए। इस प्रकार से, मुद्दों को उठाते हुए, आन्दोलन चलाने का काम किया, और हम आगे बढ़ते गये।
13. जनसंचार (मीडिया) को विदेशियों के हाथों में पड़ने से बचाया
इसी क्रम में मीडिया में विदेशी निवेश की बात चली। आप जानते है 1955 के केबिनेट डिसिजन के बारे में। उपनिवेशवाद के बाद भारत की केबिनेट ने यह तय किया था कि ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (राइट टू इन्र्फोमेशन)’ जो है वह केवल अपने नागरिकों के लिए है। इसलिए अखबार जो है वह जन-जागरूकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार के तहत आता है, इसलिए विदेशी नागरिकों के लिए इस देश में अखबार चलाने का अधिकार नहीं रहेगा। ऐसा उन्होंने तय किया था, अब उसको बदलने के बड़े प्रयास हुए, तो इसके विरोध में लड़ाई को हमने आगे बढ़ाया। लड़ाई चलती रही। कहीं हारे कहीं जीते और अंत में, 26 प्रतिशत प्रिन्ट मीडिया में विदेशी निवेश आया। लेकिन उसका लाभ यह हुआ, कि बाद में मीडिया यानि केवल प्रिन्ट मीडिया नहीं है, तो फिर अन्त में स्टार चैनल भी स्वदेशी हो गया, सारे विदेशी चैनल स्वदेशी हो गये। क्योंकि टोटल ग्रोस मीडिया जो भी है, उसमें 26 प्रतिशत से ज्यादा मीडिया में विदेशी निवेश नहीं हो सकता। इस लड़ाई को लड़ते रहने के कारण, लगातार दबाव बढ़ाने के कारण, हम अपना पूरा मीडिया जो आज है, जो पचासों चैनल आप देखते है, न्यूज का, हर स्टेट का दो-तीन चैनल्स है (उडि़या का भी चैनल्स है, तमिल का भी चैनल्स है, तेलगू का भी चैनल्स है, जितने भी चैनल्स है), पूरी तरह हमारे देश के लोगों के हाथों में है। इसका व्यापार हमारे देश के लोगों के हाथों में है। सूचना तंत्र भी हमारे देश के लोगों के हाथों में है। इसके अनुभव भी हमारे देश के लोगों के हाथों में हैं, तो इसी बलबूते वैश्विक स्तर की क्षमताओं को हमने अपने यहां विकसित किया।
14. दूरसंचार (टेलिकम्यूनिकेशन) भी बची
उसी प्रकार टेलिकम्यूनिकेशन के विषय में हमारी लड़ाई चलती रही। अगर सरकार की मर्जी चलती, अगर सरकार का वश चलता तो 100 प्रतिशत विदेशी कम्पनियों को अनुमति होती। वे तो शुरू ही 100 प्रतिशत से करते। लेकिन हमने कहा कि टेलिकम्यूनिकेशन में जो रिवोल्यूशन आ रहा है, उसका लाभ देशी उद्योगों को, छोटे उद्योगों को चलाने वालों को भी मिलना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि अगर वोडाफोन जैसी विदेशी कम्पनियां पहले आ जातीं, तो जैसी स्थिति हम रेनबेक्सी के सम्बन्ध में सुन रहे है, जैसी स्थिति हम पेप्सी और कोका कोला की देख रहे है, वैसी स्थिति हम टेलिकम्यूनिकेशन में भी देखते। तो हमारी लड़ाई के कारण आज आप देखते है कि भारतीय उद्यमी चाहे वह एयरटेल हो, श्याम टेलिलिंक हो, आइडिया हो, रिलायंस हो, टाटा हो (सब इण्डियन कम्पनीज़ हैं), भारतीय पहचान के नाते जम गये और बी.एस.एन.एल. की कहानी तो और है। तो इस प्रकार टेलिकम्यूनिकेशन को देशी हितों के लिए बचाना, बीमा को देशी हितों के लिए बचाना, बीड़ी के विषय में आगे बढ़ाना और जितने मुद्दे हैं, सब हमने लड़े। उन सब पर हम लड़ते गये, लगातार संघर्ष करते गये।

15. क्या क्या बताये तुमको, दर्दे वतन कहानिया
कहानिया चेतना यात्रा, संघर्ष यात्रा और मुद्दों को लेकर आन्दोलन, महाधरना, यह सब हम करते गये। ये सब, आन्तरिक वैश्वीकरण के जितने प्रयास है, ये उनके विरोध में है। एक और महत्व के मुद्दे अर्थात् भारतीय रूपये की पूर्ण परिवर्तनीयता के बारे में आज भी लगातार हमारी लड़ाई जारी है, जिसको वित्तीय भूमंडलीकरण (फाइनेन्शियल ग्लोब्लाइजेशन) कहते है, के लिए रूपये की पूर्ण परिवर्तनीयता करना आवश्यक है। जिसके विरोध में स्वदेशी जागरण मंच लगातार संघर्ष कर रहा है।
चार्टर्ड एकाउंटेन्ट्स की सेवाओं (सर्विसेज) के भूमंडलीकरण (ग्लोब्लाइजेशन) के विषय में हमने लड़ाई शुरू की। हमने कन्वेंशन्स किये, दिल्ली में, मुम्बई में, बैंगलूर में, चैन्नई में, हजारो-हजारों चार्टर्ड एकाउंटेन्ट्स के हमने कन्वेंशन्स किया, हमारे देश के सी.ए. क्या चाहते है? ’लेवल प्लेइिंग फील्ड’ (बराबरी) चाहते है। तो इस प्रकार से वकीलों के विषय में भूमंडलीकरण नहीं चल सकता। हमारे वकीलों को पहले बराबरी पर लाओ, इसलिए हमने वहां सर्विस सेक्टर की लड़ाई शुरू की, उनके साथ मिलकर लड़ाई चलाई। ऐसे बहुत से मुद्दे हैं। इन मुद्दों को हम एक के बाद एक लड़ते गए। गिनती करते जायेंगे तो इसमें और दस मुद्दें जुड़ेंगे। तो हम इस लड़ाई में आगे बढे।
16. आंतरिक विनिवेश –
इस लड़ाई का एक और पहलू है, वह है सरकारी कंपनियों का ’विनिवेश’ (डिसइन्वेस्टमेन्ट)। चली चलाई मशहूर कंपनियों को औने पौने दामो पर नहीं, बल्कि कोडियो के दाम बेचने की कुत्सित चल चली गयी, तो हमने विरोध किया. डिसइन्वेस्टमेन्ट चाहे नरसिंह राव की सरकार में, मारूति के सन्दर्भ में, कांग्रेस की सरकार के विरोध में, एन.डी.ए. सरकार के विरोध में, और सारी सरकारों के विरोध में डिसइन्वेस्टमेन्ट का मुद्दा, सैद्धान्तिक पक्ष की बात नहीं है, . पब्लिक सेक्टर में मोर्डन ब्रेड को हमें चलाना चाहिए या नहीं चलाना चाहिए, अभी इस मुद्दे को जरा बगल में रखदे. , लेकिन, हमारे देश की इतनी बड़ी संपत्ति है, जमीन है, इतना बड़ा ब्राण्ड है, उसको आप औने-पौने दाम पर बेचकर, पूंजीपतियों को दान कर रहे है। कई जगह एकाधिकार स्थापित करने के लिए, मोनोपोली लाने के लिए, जैसे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का जो ट्रेड है, उसमें रिलायंस का एकाधिकार स्थापित करने का काम, एन.डी.ए. सरकार के जमाने में हुआ। पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के टेªड में जो कम्पनी है, उनका डिसइन्वेस्टमेन्ट कर दिया, और उसके रहते हुए आज पूरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की, पूरे देश में उसका एकाधिकार है। रिलायन्स के एकाधिकार के समर्थन में, बड़े अजूबे ढंग से तर्क दिया गया, उस समय के मंत्रालय चलाने वाले लोगों ने। तो हमने विरोध किया। हम तर्कों को सामने लाएं, हमने पूरे देश में डिबेट, एक बहस को छेड़ दिया। इस बहस का अगर कोई केन्द्र था तो वह स्वदेशी जागरण मंच था।
भारत पेट्रोलियम व हिन्दुस्तान पेट्रोलियम इन दोनो को या इनमें से किसी एक को बेचना चाहते थे और इसको विदेशी ’शैल कम्पनी’ या रिलायंस कम्पनी दोनांे लेना चाहती थी यानि एक दम धंधा बेचने के जैसा। जिसमें फायदा किसी और को कितना हो, परन्तु हमारे देश को घाटा ही घाटा था । जहां आप बेच भी सकते है ऐसे क्षेत्रों में, जहां सिद्धान्त रूप में विरोध नहीं है वहां भी, जैसे 31 करोड़ में होटल बेचा गया, सिद्धान्ततः होटल के विनिवेश के हम विरोध में नहीं है लेकिन देश की सम्पतियों को जिस प्रकार की पद्धतियों से बेचा गया, उसके कारण विनिवेश लगातार हमारी लड़ाई का एक मुद्दा रहा।
बी.एस.एन.एल. को कमजोर करना चाहते थे, डिसइन्वेस्टमेन्ट करना चाहते थे, तो हमने कहा कि इसको कमजोर करोगे, तो टेलिकोम मार्केट का अभी जो प्रतिस्पद्र्धा चल रहा है, उसमें ग्राहक के हित में भी सोचना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिस्पद्र्धा को बनाए रखना सम्भव नहीं है। इसलिए प्रतिस्पद्र्धा में बनाए रखने के लिए भी एक कम्पनी रहनी चाहिए। इस दृष्टि से हमने तर्कों को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रहित को मजबूत रखने के लिए जो आवश्यक है वह किया। विनिवेश हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और हम लड़ते रहे हैं।
17. दूसरा नमक आन्दोलन
नमक के विषय में, आयोडिन नमक!
जहां नमक के विषय को लेकर पूज्य महात्मा गांधी ने लाखों लोगों को साथ लेते हुए आन्दोलन किया। दांडी मार्च किया। उस ’दांडी मार्च’ की शताब्दी समारोह मनाकर सत्ता में आये लोग, सत्ता का सुख भोग रहे लोग, दांडी मार्च इतिहास को भुलाना चाहते है। कहीं किसी व्यक्ति को गण्डमाला (गाॅयटर) हो रहा है, इस नाम पर कम्पनियों को नमक की कीमतों को अनाप-शनाप बढ़ाने का एकाधिकार दे दिया जाता है। आयोडिन नमक के नाम पर कुछ बड़ी कम्पनियों को नमक के क्षेत्र में एकाधिकार हो गया। आयोडिन नमक की अनिवार्यता का विरोध करते हुए हमने कहा कि आयोडिन नमक के नाम पर बड़ी कम्पनियां अनाप-शनाप मुनाफाखोरी करके लोगों का शोषण कर रही है।
जिस तरह से आयोडिन को नमक के साथ, दिया जा रहा है, उस तरह से यह भारत में चल ही नही सकता। जिस तरह से हम सब्जियों में नमक मिलाते है, उससे आयोडिन का मतलब ही नहीं रहता। ऐसे बहुत सारे तर्को को हम सामने लाये। डाॅक्टर्स, विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) को हमने साथ लिया, लड़ाई आगे बढ़ाई और फिर हमने ’दांडी मार्च’ की घोषणा करते हुए कहा कि या तो आप रहेंगे या हम रहेंगे। कार्यक्रम पर कार्यक्रम चलेंगे और एक बार जनता के कार्यक्रम चलेंगे तो आपके नियन्त्रण में नहीं रहेंगे। जब आन्दोलन शुरू हुआ तो फिर सरकार ने निर्णय लिया कि आयोडिन नमक के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, अनिवार्यता समाप्त करते है।
बाद में फिर सरकार बदली, दूसरी सरकार आयी, तो फिर इस विषय को आगे क्यों बढ़ाया ? क्योंकि काॅर्पोरेट इन्ट्रेस्ट, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित जो है, वे लगातार इसको आगे बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत लगाते हैं. हमने भी इस मुद्दे पर सड़क, संसद, से लेकर सर्वोच्य न्यायलय तक ये लडाई लड़ी, और अभी तक चल रही है. तो हम कई मुद्दों पर लड़ते है, आंशिक सफलता प्राप्त करते है, कई मु द्दों पर सफलता प्राप्त करते है, कई मुद्दों पर गति को रोकने में हमें सफलता मिली, तो इस प्रकार से आयोडिन नमक के विषय पर हमने लड़ाई लड़ी। यह लडाई हम कोर्ट में भी लड़ रहे हैं।
18. बौद्धिक लड़ाई
ये सारे एक अध्याय है, एक आयाम है, तो दूसरी तरफ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) की नीतियों के खिलाफ देश में बौद्धिक जागरूकता का कार्य भी करना होता है। इस देश में बौद्धिक सम्पदा (इण्टेलेक्चुअल प्रोपर्टी) अधिकार विषय पर सारे पक्षों को एक मंच देने का कार्य स्वदेशी जागरण मंच ने किया। इस लड़ाई को कभी कोई लिखेंगे तो इसे स्वर्ण अक्षरों से लिखना पड़ेगा, यह एक स्वर्णिम अध्याय है, कि बालकृष्ण केला जी ने एक अकेले, पहल करते हुए, चार-पांच लोगों को साथ लेकर लड़ाई लड़ी। हमेशा हर विषय पर बौद्धिक दृष्टि से, सब सांसदों को, सभी संगठनों को, सभी आन्दोलनों को दिशा देना कोई शुल्क लिए बगैर, बैंगलोर जाना है, मुम्बई में समझाना है, हैदराबाद में कार्यक्रम में जाना है, साहित्य देना है, हजारों की संख्या में पुस्तकों को बांटना, यह काम वो करते रहे, और इन सभी कार्यों को करने में हम साथ रहे। जन-जागरण में हमने अग्रिम भूमिका निभायी। हमसे ज्यादा किसी ने भी देश में विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ बड़े कार्यक्रम नहीं कियेे। अनेक लोगों ने किये, कई संगठनों ने किये, हम उनके खिलाफ नहीं है, हम उनके साथ है, हमारा समन्वय है, लेकिन किसी एक आन्दोलन ने, इसे लगातार चलाया और जनता में एक जन-दबाव उत्पन्न करने का प्रयास किया, वह स्वदेशी जागरण मंच ने किया।
इसमें बहुत अध्याय है, बौद्धिक सम्पदा अधिकार हो, सिंगापुर मुद्दे हो, दोहा विकास हो, या सियाटेल और काॅनकुन सम्मेलन के फेल्योर हो, ’नो निगोशियेशन्स, वी वाॅन्ट रिव्यु आॅफ डब्ल्यू.टी.ओ.’ ’नो न्यू निगोशियेशन्स आॅनली आॅल्ड कण्डीशन हेव टू बी फुलफिल्ड’। इस प्रकार से मुद्दों को समय-समय पर आगे बढ़ाते गये। डब्ल्यू.टी.ओ. अन्तर्विरोधों के कारण रूक गया, उसकी गति मन्द पड़ गई, उसमें हमारी भूमिका भारत के सन्दर्भ में कम नहीं है। (नोवार्टिस, नायेर्स, सिप्ला आदि के मुद्दों का भी जिक्र करना चाहिए)
19. खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश: कभी स्वीकार नहीं
डब्ल्यू.टी.ओ. के विषय पर हमने रामलीला मैदान पर अनेकों कार्यक्रम किये। उसी प्रकार एक अन्य मुद्दा आया - खुदरा व्यापार (रिटेल ट्रेड)। रिटेल ट्रेड का मुद्दा आज का नहीं है। यह बहुत पुराना मुद्दा है। मनमोहन सिंह की सरकार के समय ’रिटेल ट्रेड’ मुद्दा था और चिदम्बरम उसको आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके विरोध में उसी समय से हमारे कार्यक्रम शुरू हुए। महाराष्ट्र में जो ’फेहमा’ संगठन है, उस संगठन के साथ मिलकर हमने समन्वय किया और उनको आगे बढ़ाया। हम सबसे मिलते गये, और बाद में मनमोहन सिंह भी विपक्ष में आये, तो रिटेल ट्रेड के आन्दोलन को सहयोग मिला। बाद में फिर दुबारा सरकार में आये तो फिर सरकार के रूख को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के खतरे छोटे, फुटकर व्यापारियों पर है। इस विषय पर हमने विभिन्न स्थानों पर अनेकों सम्मेलन किये।
खुदरा व्यापार के आन्दोलन को अखिल भारतीय स्तर पर उठाने वाला और चलाने वाला, गैर-खुदरा व्यापारियों का संगठन अगर कोई है, तो वह स्वदेशी जागरण मंच है। गत 15-16 वर्षों से, आज जो आप देख रहें है, वह सब स्वदेशी जागरण मंच की आन्दोलनों में सक्रियता का फल है। स्वदेशी जागरण मंच के नेतृत्व में 25 जुलाई 2005 को अखिल भारतीय खुदरा व्यापार सम्मेलन दिल्ली के कांस्टीटयूशन क्लब में किया गया। देश के उतरी क्षेत्र के मात्र पांच प्रान्तों में ही दूकानदारो से हस्ताक्षर अभियान में लगभग ४० हज़ार लोगो की भागीदारी का काम हुआ.
20.‘सीमा की रक्षा-बाजार की सुरक्षा’ अभियान –
पिछले कुछ वर्षों से चीन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। जहां भारत का रक्षा बजट 37 अरब डाॅलर है तो चीन का 131 अरब डालर। जहां भारत 13 अरब डालर का निर्यात (ज्यादातर कच्चा माल) चीन को करता है वहीं 54 अरब डालर का तैयार माल आयात करता है। साथ ही चीन ने एक लाख साईबर हैकर्स की सेना भी नियुक्त कर रखी है।
मंच ने देश का ध्यान चीन से संकट की ओर खीचने के लिए व्यापक अभियान चलाने का निर्णय किया। इस अभियान में मोटे तौर से तीन प्रकार की चुनौतियों को केन्द्र बिन्दु बनाया गया एवं तथ्यपरक जानकारी जनता तक पहुंचाई गई-

1. सीमा एवं सैन्य चुनौती
2. लघु उद्योग/व्यापार सहित आर्थिक चुनौती
3. दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी सहित साईबर चुनौती
इस अभियान में मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक प्रो. भगवती प्रकाश ने गहन अध्ययन के उपरांत 53 पृष्ठ की एक पुस्तक ‘चीनी घुसपैठ एवं हमारी सुरक्षा व्यवस्था’ का लेखन किया एवं मंच ने उसका प्रकाशन किया। प्रो. भगवती प्रकाश के नेतृत्व में 39 सदस्यों की टोली को इस अभियान के संचालन का दायित्व दिया गया एवं पूरे देश को 4 जोन में बांट कर अभियान चलाया गया।
दिनांक 1 सितंबर 2013 से 2 अक्टूबर 2013 तक चले इस अभियान में 20 प्रांतों में 4088 स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। (इसमें स्कूल, काॅलेज, पंचायत, नगर, पुतला दहन, पत्रकार वार्ता, रेली, मोटरसाईकिल रेली आदि सम्मिलित हैं।) महाराष्ट्र प्रांत में बडात्या उत्सव में 80 फुट ऊंचा चीन का पुतला दहन किया गया। इसमें लगभग 3 लाख लोगों ने भाग लिया। राजस्थान प्रांत ने इस अभियान हेतु विशेष रूप से वक्ता प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया, जिसमें 42 प्रशिक्षुओं ने भाग लिया।
इन कार्यक्रमों में चीन से संबंधित 11 लाख हस्त-पत्रक एवं प्रो. भगवती प्रकाश द्वारा लिखित 1,20,000 पुस्तकें (हिन्दी व अन्य प्रांतीय भाषाओं) वितरित की गई एवं समाज के अनेक संगठनों का सहयोग प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई। देश के मीडिया/समाचार पत्रों ने प्रमुखता से इन कार्यक्रमों को स्थान दिया। मंच के हजारों कार्यकर्ताओं ने इसमें सक्रिय रूप से योगदान किया।
इस अभियान के फलस्वरूप देश की सरकार, राजनेता, मीडिया, अफसरशाही, सामाजिक संगठन एवं जनता का ध्यान इस संकट की ओर व्यापक स्तर पर आकृष्ट हुआ तथा आज बच्चे-बच्चे की जुबान पर चीन के संबंध में चर्चा की जा रही है।
इसके अतिरिक्त और भी बाते है जो हमने मिल कर की. वैश्विक सम्मेलनों के समय अपनी तेयारी और सरकार की भी तेयारी, दोनों हमने की. इसी प्रकार बी टी बेंगन से लेकर जी एम् फूड्स की लडाई, न्हूमि अदिग्रहण से लेकर कोका कोला पेप्सी की लूट की नीतियों और स्वस्थ्य को धत्ता बताने वाली चालाकियो के खिलाफ हम खड़े और खड़े.
21. स्थानीय मुद्दे, - मारो कहीं, पड़े वहीँ .... राज्यवार आंदोलन - हिमाचल प्रदेश में स्की-विलेज, कुल्लू जिला में, और सेज के खिलफ आन्दोलन, जिला ऊना. आंध्र प्रदेश में बुनकर व हल्दी खाड़ी देशों में गए मजदूरों के हित मे आंदोलन, पुरी (उड़ीसा) में वेदांता यूनिवर्सिटी विरोधी आंदोलन, पोस्को और रेंगाली राईट नदी के लिए आन्दोलन. बंगाल के आलू उत्पादकों की समस्या पर आंदोलन। केरला में भी कोका कोला कंपनी के द्वारा चलाये जा रहे प्लाचीमाडा में आन्दोलन. इन सब में भी बहु राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थानीय स्तर पर जो लूट का धंधा चलता था, उसके खिलाफ स्थनीय लोगो को जोड़ कर, जिसका मुद्दा, उसकी लड़ाई, उसकी अगुआई; इस आधार पर आन्दोलन चलते रहे और सफलता पाते गए,

देश मे पहली स्वतन्त्रता का प्रतीक थी-खादी और अब दूसरी स्वतन्त्रता का प्रतीक बनेगा जैविक खाद। देवघर अधिवेशन में हमने नया नारा दिया - ‘‘तब खादी, अब खाद’’। विकास का ढ़ाँचा भारतीय चिन्तन के आधार पर कैसा होना चाहिए? केवल वस्तु तक सीमित ना रहकर, इन विचारों को आन्दोलन रूप देना जरूरी है। विकास की भारतीय अवधारणा को लेकर स्वदेशी जागरण मंच आगे बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में स्वदेशी आन्दोलन को मान्यता मिल चुकी है। स्वदेशी का आन्दोलन दुनिया का आधुनिकतम आन्दोलन है। अमेरिका सहित कई देशों में स्वदेशी का आन्दोलन चल रहा है। अमेरिकी संसद में ‘‘बी अमेरिकन, बाॅय अमेरिकन’’ का प्रस्ताव लाया गया है। स्वदेशी का विचार अर्थशास्त्र का आधुनिकतम विचार है। स्वदेशी का आन्दोलन आज अभिनन्दन का विषय बन गया है। इसमें भी हमने कोई संकुचित दायरे में नहीं देखा, हम लड़ाई का नेतृत्व करते गये, लेकिन हमने सबको साथ लिया। अगर कोई और आगे बढ़ रहा है, तो उसका हमने साथ दिया। ’फोरम आॅफ पारलियामेन्ट्रेरियन’ कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इसको भी बनाने में हमने साथ दिया और ’वर्किंग ग्रुप आॅन पब्लिक सेक्टर युनिट’ के निर्माण में साथ रहे। जो भी लड़ रहे थे वे चाहे कम्यूनिज्म से प्रेरित हो, राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हो या अन्य किसी विचार से प्रेरित हो, सभी के साथ मिलकर समन्वय करते हुए, इन सारे डब्ल्यू.टी.ओ. मुद्दों को हमने आगे बढ़ाया। विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में धीरे-धीरे हमने अपने प्रतिनिधियों को भी भेजना शुरू किया। काॅनकुन, हांगकांग, जेनेवा, बाली मिनिस्ट्रीयल मीटिंग में स्वदेशी जागरण मंच के प्रतिनिधि गये। इस प्रकार स्वदेशी जागरण मंच ने 24 वर्षों के अन्दर अनेकों आंदोलनों की एक श्रृंखला की। अगर आप संगठन की क्षमता और सम्भावना देखेंगे तो अभी भी आपको संदेह हो सकता है, लेकिन हमारी ताकत क्या है? क्यों यह सब कर पाये? मुद्दों में जो ताकत होती है उसके कारण, मुद्दे उठाकर हम आगे बढे, तो समाज ने साथ दिया। मछुआरों का विषय हो, पशुधन का विषय हो, डब्ल्यू.टी.ओ. का विषय हो या और अन्य विषय हो, इन सभी विषयों में सम्पूर्ण समाज स्वदेशी जागरण मंच के साथ खड़ा रहा तथा अन्य वैश्विक संगठनों का भी साथ लिया गया।

कुछ कथाएं

एनरॉन के बारे में

*श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय, एक मशहूर कम्पनी एनरॉन ने महाराष्ट्र के दाभोल में कारखाना लगाने की प्लानिंग की, लेकिन यह स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण हो न सका। फलस्वरूप बदलती विषम परिस्थितियों से नाराज एनरॉन ने भारत सरकार पर 38,000 करोड़ के नुकसान की भरपाई का मुकदमा दायर कर दिया।*

*वाजपेयी सरकार ने हरीश साल्वे, जिन्हें आप सभी जानते है ने कुलभूषण जाधव का मुकदमा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में लड़ कर जीता, को भारत सरकार का वकील नियुक्त किया। पर आप जान कर चोंक जाएंगे कि एनरॉन के वकील पी चिदंबरम बने यानी पी चिदंबरम भारत के विरुद्ध।*

*समय बीता, यूपीए सरकार बनी, कैबिनेट मंत्री चिदंबरम एनरॉन की तरफ से मुकदमा नहीं लड़ सकते थे पर वो कानूनी सलाहकार बने रहे और वो मुकदमे को एनरॉन के पक्ष में करने में सक्षम थे।*

*अगला खुलासा और चौकानें वाला है।*

*चिदंबरम ने तुरंत हरीश साल्वे को एनरॉन केस से हटा दिया।हरीश साल्वे की जगह खबर कुरेशी को नियुक्त किया,आप ठीक समझे, ये वही पाकिस्तानी वकील है जिसने कुलभूषण जाधव केस में पाकिस्तान सरकार का मुकदमा लड़ा।*

*कांग्रेस ने भारत सरकार कि तरफ से पाकिस्तानी वकील को 1400 करोड़ दिये वकील कि फीस के रुप में। अंततः भारत मुकदमा हार गया और भारत सरकार को 38,000 करोड़ का भारी भरकम मुआवजा देना पड़ा। लेकिन लुटीयन मिडिया ने ये खबर या तो गोल दी या सरसरी तौर पर नहीं दिखाई ।*

*अब सोचिए कि 38000 करोड़ का मुकदमा लडने के लिए फीस कितनी ली होगी ? जो पाठक किसी क्लेम के केस मे वकील कि फीस तय करते है उन्हें पता होगा कि वकील केस देखकर दस प्रतिशत से लेकर साठ प्रतिशत तक फीस लेता है।*

*सोचिए इस पर कोई हंगामा नही हुआ ?*

*अगर ये केस मोदी के समय मे होता और भारत सरकार कोर्ट में हारती तो? चमचो की छोड़िए, भक्त भी डंडा लेकर मोदी के पीछे दोड़ते ।*

*और मजेदार बात जिन कम्पनियों का एनरान मे निवेश करके यह प्रोजेक्ट केवल फाईल किया था उनका निवेश महज मात्र 300 मिलियन डालर याने उस वक्त कि डालर रुपया विनियम दर के हिसाब से महज 1530 करोड़ था और वह भी बैठे बिठाये। महज सात साल मे 38,000 करोड़ का फायदा वो भी एक युनिट8 बिजली का संयंत्र लगाये बिना ???*

*कांग्रेस हमारी सोचने की क्षमता से भी ज्यादा विनाशकारी है।*