Friday, May 17, 2019

नेतृत्व के गुण -ठेंगडी जी

यशस्वी नेतृत्व के लिए आवश्यक गुण, ठेंगड़ी जी का अग्रोहाधाम, हरियाणा में 1986 का बौद्धिक हैं और उसका यूट्यूब का लिंक है :
https://youtu.be/8l8vFZPvaNQ

अंग्रेजी में शीर्षक है Essential Qualities of Leadership.
आइए इसका सारांश पढलेवें:

1. वे प्रारम्भ करते हैं कि आपातकाल में उनके मन पर अन्य कोई दबाव नहीं था कि देशका क्या बनेगा, परंतु जो कागज उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुचाने थे, बस वही टेंशन था, क्योंकि हम इसे ईश्वर का काम समझते  हैं।
2. जो लोग प्रार्थना में "त्वदीयाय कार्याय" कहते है परंतु अनावश्यक हाय तौबा भी मचाते हैं या तो उसका अर्थ नहीं समझते या ढोंग करते हैं। उदाहरण कैसे लोग लखनवी तकल्लुफ करते है, सब आपका औपचारिक बोलते हैं, ऐसा ही सब ईश्वर का कहने मात्र के लिए कहते हैं, मानते नहीं।
2.1. समर्थगुरु रामदास का उदाहरण दासबोध का, कितना दारुण चित्र खींचा थाऔर 25 साल बाद ही शिवजी ने हिंदवी साम्रज्य की घोषणा तो रामदास भी प्रसन्न हुए और 100 साल बाद भगवाध्वज के आगे प्रणाम किया अहमदशाह अब्दाली के पौत्र ने। इसलिए हाए बाप मर गए चिल्लाना ठीक नहीं थोड़ी भी विपदा आने पर। 1947 के पहले एक इंच भूमि भी अपनी नहीं थी अब देश तो आज़ाद है भले ही आपातकाल है, अतः हिम्मत पूरी थी और अब भी पूरी रहनी चाहिए। Tennyson के Brook निर्झर की तरह देश तो  चलते रहेगा ,For the men may come and men may go but l go on for ever.
3. ऐसे निराश लोगों जो हैं उनको संघ की शक्ति पर भी विश्वास नहीं। संघ की तीन प्रकार की शक्ति है, प्रत्यक्ष शाखा के स्वयंसेवक की, विविध क्षेत्र  चलाने वाले स्वयंसेवकों की शक्ति और हिन्दू समाज की जागृत शक्ति।
4. किसी ने पूछा कि संघ की कुल शक्ति कितनी है? उन्होंने उत्तर दियाकि अंदाज नहीं कि शक्ति मापी कैसे जाती है। उसने समझाया कि कुल स्वयंसेवक संख्या की शक्ति का जोड़ ।
4.1 ठेंगड़ी जी ने कहा कि जो सत्य सिद्धांत उसकी भी तो शक्ति है। जैसे गैलेलियो अकेला था जब उसने सिद्धान्त बताया कि पृथ्वी पर उसे मानने वाला अकेला था तो भी सिद्धान्त की ताकत अंततः सबपर भारी पड़ी, अतः उसे भी गिने क्या?
4.2 तीसरे संगठन की अपनी शक्ति भी है या नहीं? A square plus B square plus 2AB वाला उदाहरण दिया, plus 2AB संगठन की शक्ति है।
4.3 चौथे की व्यक्ति की शक्ति भी बढ़ती घटती रहती है, तो किसको गिने। दक्षिण के अंतिम हिन्दू वीर सेनापतिगोखले (कुछ लोग इस किस्से को परशुराम पंत पटवर्धन के साथ जोड़ते हैं) का और नाईं का उदाहरण, दाढ़ी बनवाते और युद्ध के समय की शक्ति अलग अलग है.
ठेंगडी जी एक अपने रिश्तेदार महिला का उदाहरण जो रोटी बनाते तवे पर हाथ लगने पर सी सूं सां करती थी पर घर मे आग लगने पर लपटों में से अपने बच्चे को निकाल लाई ।
ऐसे ही देश की शक्ति का स्तर भी अलग अलग स्थितियों में अलग अलग।
उदाहरण फ्रांस पर हिटलर का हमला,  द्वितीय विश्वयुद्ध में  पेरिस को जीत  लिया, बोर्डो नामक छोटे गांव में प्राइमरी स्कूल में कैबिनेट मीटिंग। मार्शल बेतोन Marshall Beton जोकि फ्रांस के राष्ट्रपति थेऔर चार्ल्स डी गॉल Charles de Gaulle सेनापति। पहला नेता समर से भाग रहा था, उसे लगता था कि देश के लोगों में दम नहीं परंतुदूसरा  गुरिल्ला सेना  खड़ी कर सफल प्रतिरोध खड़ा करता है। एक को फ्रांस में शक्ति नजर नहीं आई, दूसरे को आई। जीत अंततः चार्ल्स दी गॉल की हुई।
अन्य में दो उदाहरण एक द्वितीय विश्व युद्ध का हिटलर का इंग्लैंड पर हमला चेम्बरलैन आत्मसमर्पण को तैयार लेकिन तब लोगों ने विंसेंट Churchil चर्चिल को चुना और युद्ध का आह्वान किया, blood, tears and sweat का आश्वासन दिया, समुद्री हार को भीsuccessful retreat शब्द ढूंढा, और अंततः विजयी रहा।
दूसरा शिवाजी और अफजल खान का उदाहरण लोगों के ताने की परवाह नहीं कि, ठीक समय पर अपनी रणनीति के अनुसार ही युद्ध किया और विजयी हुए। इंग्लैंड की सेना पर हमला नेपोलियन और वड्यूक ऑफ वेलिंगटन दूसरी तरफ। पहाड़ी के सुरक्षित स्थान पर छुपे थे, प्रशिया की सेना चौथे दिन आने वाली थी सहायता को, आ रही थी। नेपोलियन उससे पहले ही ड्यूक को भड़का कर युद्ध करना चाहता था। उसने बार बार उकसाया पर ड्यूक सेना को  समझाबुझा कर चौथे दिन ही बाहर आया, पर्शियन सेना का सहयोग भी मिला और अंततः सफल हुआ। अतः सफल नेतृत्व लोगों के उकसावे में नहीं आता, धैर्यपूर्वक अपने समय व स्थान को चुनकर यश प्राप्त करता।
आम लोगों की सुननी तो पड़ती है, वे लेटेंट स्वयंसेवक हैं, भावी स्वयंसेवक तो है ही, परंतु अपने विवेक का भी सहारा लेना पड़ता है, परंतु नेतृत्वकर्ता को उनके मत का परिष्कार भी करना पड़ता है।://images.app.goo.gl/Ftcg3DSjSS6GkZ7R9

Wednesday, May 15, 2019

स्वदेशी आंदोलन - ठेंगडी जी का सारांश

1. "स्वदेशी आंदोलन" नामक माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का भाषण 8 जुलाई 2002 का जोधपुर का है . वैसे तो कई बार इस विषय पर श्रधेय ठेंगडी जी बोले हैं, परंतु यह भाषण अपने आप मे अलग से है, स्वदेशी के सभी पक्ष इसमें सविस्तार लिए हैं। यह 'सर्वसमावेशी स्वदेशी' पुस्तक में संकलित है और यूट्यूब में भी है। वहां शीर्षक है "स्वदेशी ही समाधान || दत्तोपंत ठेंगडी और यह 57.10 मिनट्स का है और उसका लिंक है https://youtu.be/h--Vk_sU9Pc
और आइए उस भाषण का सारांश पढ़ लेवें।
1. सब से पहले वो कहते हैं स्वदेशी का ग्रह योग ऐसा है की स्थापना की पूर्व से ही इसका विरोध होता रहा है और किस प्रकार साम्यवादी लोग स्वदेशी का इसलिए विरोध करते कि हमने विदेशी चीजें नहीं खरीदनी इसीलिए स्वदेशी कंपनियां हमें लूटेंगे और हमें पैसा दिया गया है । ऐसा आरोप लगाया।परंतु अगले दिन ही जब स्वदेशी ने  कास्ट ऑफ़ प्रोडक्शन के आधार पर कीमत लिखा जाने का निर्णय किया तो उनकी बोलती बंद होगी गई ।
वह शुक्र नीति के उस श्लोका वर्णन भी करते हैं जिसमें कीमत कैसे तय होती है
2. स्वदेशी सिर्फ वस्तु प्रयोग तक सीमित नहीं, विचार है: एक नेता बोला कि हमारे क्षेत्र में स्वदेशी की बात सुनकर के लोग मजाक उड़ाएंगे कि यह 16वीं शताब्दी में देश को ले जाना चाहते हैं । उस पर वह बोलते हैं कि क्या आप के लोग क्या इतने एडवांस्ड हैं जैसी मोतीलाल नेहरू और दादा भाई नौरोजी  जिन्होंने स्वदेशी अंगीकार किया, तो चुप हो जाते हैं ।
बाद में कुछ उदाहरण 10 ऐसे देते हैं कि स्वदेशी क्या है?
पहला उदाहरण उसमें से जापान के द्वारा अमेरिकी संतरे ना बिकने का है।
दूसरा उदाहरण ब्रिटेन की महारानी ने जर्मनी की कार खरीदने का निर्णय और जनता के विरोध के कारण अपने देश की कार ही खरीदना।
तीसरा वियतनाम प्रमुख हो ची मिन्ह का और यह बताना फटी और मुरम्मत की गई पैंट इस लिए पहनता हूँ कि "माय कंट्री कैन अफ़्फोर्ड थिस मुच्।"
चौथा,  गांधी इरविन पैक्ट के समय महात्मा गांधी जी का निंबू पानी में वह नमक पुड़िया से डालना जो उन्होंने दांडी यात्रा में प्राप्त किया था।
पाचवां, कोलकाता में देश भक्तों द्वारा ब्रिटिश पुडिंग का विरोध और भारतीय पुडिंग यानी रसगुल्ला जैसे मिष्टान्नका परिवर्धित स्वरूप बनाया।
सातवां मुस्तफा गाजी कमाल पाशा जब तुर्किस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने तुर्की भाषा में कुरान का अरबी से तर्जुमा करवाया और इस पर खून खराबा तो हुआ लेकिन इस्लाम का राष्ट्रीयकरण यानी स्वदेशीकरण हुआ।
आठवां,  क्रिश्चियन मिशनरीओं के कुछ ग्रुप किस प्रकार से भारतीय परंपरा के अनुसार आमीन की जगह ओम और चौगा भी भगवा पहन रहे हैं।
नोवा उदाहरण, किस प्रकार से बाबू गेनू ने विदेशी सामान नहीं आने दिया और हम 12 दिसंबर का दिन मनाते हैं ।
दसवां  चीन और कोरिया की सरकारों ने माइकल जैकसन को अपने यहां प्रवेश नहीं दिया क्योंकि यह उनके देशों पर सांस्कृतिक हमला होगा .
3. इसके बाद ठेंगड़ी जी राष्ट्रवाद व अंतरराष्ट्रीयवाद के भ्रम को दूर करते हैं और मनमोहन सिंह व रामास्वामी के झूठे तर्कों को बताते हैं इंटरडिपेंडेंस और इंडिपेंडेंस में कहाँ तक विरोध नहीं है । स्वदेशी के मुताबिक :
3.1 पहला उदाहरण वह विरोध का यह बताते हैं कि हम पश्चिम के विकास मॉडल को ग्लोबल मॉडल है, और उसकी नकल सब देशों करना चाहिए,  इसका विरोध करते हैं।
3.2 और यही हमारे स्वदेशी का आधार कि हम दूसरे देशों से लेनदेन तो करेंगे पर बराबरी के आधार पर और उससे हमारे आत्मनिर्भरता पर आंच नहीं आनी चाहिए ।
3.3 दूसरा उदाहरण  देते हैं कि डब्ल्यूटीओ की भूमिका क्या है और इससे पहले बताते हैं कि कई बार हमारे पर आपत्ति की जाती है कि हम  सरकार में अपोजिशन का रोल अदा करते हैं । ऐसा नहीं है बल्कि हम सब सरकारों को राष्ट्रीय सरकार मानते हैं और उसके साथ "रेस्पॉन्सिव  कोऑपरेशन" के आधार पर व्यवहार करते हैं ।
4. WTO की भावना की शुरुआत 1991 से नहीं बल्कि पुरानी है। 
यह दूसरे विश्व युद्ध  के अंतिम चरण में 6 जून 1945 से जब अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर की सेनाएं यूरोप तब आ गई और जब लगा कि इसमें सफलता मिलने वाली है तो उन्होंने किस प्रकार अपनी कॉलोनीज़ यानी अपनी उपनिवेशों को बचाया जाए ।इसके लिए प्रयास किया और वही अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड की पहली सीढी बना। IMF एवम वर्ल्ड बैंक स्थापित किये।
4.  उनके कॉलोनी या उपनिवेश जीवित रहें इसके लिए पहला भ्रम फैलाया की हमारी पूंजी के बगैर किसी देश का विकास नहीं हो सकता इसलिए फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट FDI अति आवश्यक है।
यह गलत बात है, और वह बताते हैं कि किस प्रकार राइट टू इन्वेस्ट हमारी संप्रभुता पर आघात है।
4.1 साथ ही हमारे नेताओं ने कहना शुरू किया कि लोग त्याग करने को तैयार नहीं हैं, वास्तव में यह बात भी ग़लत है। नेताजी सुभाष जब दक्षिण एशिया गए तो किस प्रकार लोगों ने सहयोग किया और लाल बहादुर शास्त्री का भी लोगों ने सप्ताह में एक समय का भोजन छोड़ कर के सहयोग किया ।और 62 की लड़ाई हो के बंगलादेश की, हमारे मजदूरों ने ओवरटाइम ना लेते हुए ज्यादा घंटे तक काम किया।  बेशक सामन्यतःव्यक्ति स्वार्थी है पर अगर ठीक ढंग से प्रेरणा दी जाए तो वह निस्वार्थ काम या परमार्थ के काम भी करता है।
4.3  दूसरा भ्रम फैलाया गया की विदेशी टेक्नोलॉजी ही मॉडर्न टेक्नोलॉजी है,और इसी प्रकार से अगर हम को देश आगे बढ़ाना है तो विदेशों से टेक्नोलॉजिकल सहयोग जरूर लेना चाहिये।  हिरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण देकर के वो बताते हैं कि साइंटिफिक एडवांसमेंट की भी सीमा है और उसके लिए दुनिया में टेक्नोलॉजिकल ओंबड्समैन ombudsmen या उस पर नियंत्रण रखने वाले लोग होना चाहिए। और डॉक्टर अब्दुल कलाम की बात इंडिया 2020 की कहते हैं कि हमारा देश अपनी ही  तकनीकी एडवांसमेंट के आधार पर फर्स्ट रैंकिंग कंट्री हो सकता है ।
5. इसी प्रकार वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन है विश्व व्यापार संगठन के बारे में बताते हैं कैसे उसका विरोध भी उसी के जानकार करते हैं और वह दो उदाहरण  जोसेफ स्टिगलटीज़ और दूसरा उदाहरण इंटरनेशनल मोनेटरी फंड के टॉप ऑफिशल डेविसन एल्बुगका देते हैं जिन्होंने खूब डट कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का विरोध किया है।
5.1 फिर वह गोरे देशों की ग्रीन रूम पॉलिसी के बारे में बताते हैं। और मलेशिया के प्राइम मिनिस्टर महाथिर मोहम्मद में इसके विरोध में आवाज उठाई और साउथ साउथ कमिशन बनाया जिसके जनरल सेक्टरी डॉ मनमोहन सिंह थे और जब वह वित् मंत्री बने तो वह उन बातों को भूल गए कि कैसे गोरे देशों के विरोध में साउथ साउथ कमिशन रिपोर्ट तैयार की थी ऐसा ही उदाहरण यशवंत सिंहा जो उस समय भारत के वित्त मंत्री थे उनका भी वह देते हैं कि पहले वह विश्व व्यापार संगठन का विरोध करते थे परंतु जब वित्त मंत्री बने तो उन बातों को भूल गए और वह "एमनिशिया" amnesia नामक बीमारी का यानी पूर्ण विस्मरण वाली बीमारी का उल्लेख करते हैं जो वित्तमंत्री बनते ही शुरू हो जाती है।
5.2 अगला बिंदु है कि डब्ल्यूटीओ के मुताबिक सब देश समान है परंतु अमेरिका ऐसा नहीं करता वे 1988 के उस  कानून का और उसके स्पेशल 301 क्लॉज़ का वर्णन करते हैं और इसी प्रकार वह दूसरे नियम का भी वर्णन करते हैं कि जिसके कारण से उनका सामान कोई रोक नहीं सकता चाहे किसी देश को जरूरत हो या ना हो।
6.  अगला बिंदु लेते हैं कि महाथिर मोहम्मद ने सुझाव दिया था कि इन गोरे देशों की मोनोपोली को कैसे तोड़ा जाए और उसके लिए विकासशील देशों का अलग ब्लॉक बनाने की जरूरत है और भारत को उसका नेतृत्व करना चाहिए पर भारत में ऐसा नहीं किया । दूसरी बात कहते हैं कि हम ने समय-समय पर जो आवाज इसके खिलाफ उठाई उसके कारण डब्ल्यूटीओ की बैठक में दोहा में मुरासोली मारन ने विरोध किया और दुनिया में भारत छा गया। और हमने उनके सार्वजनिक अभिनंदन की बात भी सोची थी ।
7. साथ ही जो निवेश मीडिया में प्रिंट मीडिया में फॉरेन इन्वेस्टमेंट आ रहा है उसके लिए विरोध किया सरसंघचालक माने सुदर्शन जी की बयान को भी तोड़ मरोड़ कर छापा गया जो बाद में स्पष्ट हो गया तो इस यह सब बातें जन जागरण द्वारा जो चल रही है।
8.  अंत में इक्ष्वाकु राजा के सार्वभौमिकता का श्लोक बोलते हुए वे अपना भाषण पूरा करते हैं।