Wednesday, November 13, 2013

WTO..स्वदेशी जागरण मंच की मांग-कृषि सब्सिडी समाप्त करें विकसित देश

स्वदेशी जागरण मंच की मांग-कृषि सब्सिडी समाप्त करें विकसित देश
तारीख: 30 Aug 2013 17:27:52
विश्व व्यापार संगठन के गठन के बाद, पिछले 18 वषोंर् से भी अधिक समय के अनुभव से अब स्पष्ट हो चुका है कि यह पूरे विश्व के लिए अमंगलकारी व्यवस्था है। विकासशील और विकसित, दोनों प्रकार के देशों की जनता की समस्याएं पहले से अधिक जटिल हुईं। स्वदेशी जागरण मंच की यह स्पष्ट मान्यता है कि विश्व व्यापार संगठन का जन्म बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ के लिए निर्मित भूमंडलीकरण की नीति का एक हिस्सा ही था। इसी वृहत साजिश के तहत बहुराष्ट्रीय कपंनियों के हित साधन हेतु विकसित देशों के दबाव में भारत सहित दुनिया के अन्य विकासशील देशों में भी नई आर्थिक नीति के नाम पर नीतिगत परिवर्तन करवा कर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मार्ग को प्रशस्त किया गया।
आज भारत इस नीति के दुष्परिणामों को भुगत रहा है। रुपये और डॉलर की विनिमय दर 1990-91 में 16 रुपये से आज 65 रुपये प्रति डॉलर से भी अधिक तक पहुंच चुकी है। देश की जनता भयंकर बेरोजगारी, गरीबी, और महंगाई के दंश को झेल रही है। गलत आंकड़ों से बेरोजगारी और गरीबी को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है। बढ़ती कृषि लागतों और अपने उत्पाद का उचित मूल्य न मिलने के कारण हजारों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। विदेशी कंपनियां भारत में खूब लाभ कमाकर अपने देशों को अंतरित कर रही हैं। बढ़ते आयात, गैरकानूनी अंतरणों और लाभों को अपने-अपने देशों को ले जाने की प्रवृत्ति से भारत को खतरनाक घाटे को ही सहना नहीं पड़ा रहा, देश भयंकर विदेशी कर्ज के जाल में फंस भी रहा है। गौरतलब है कि मात्र 4 वर्षों में भारत का विदेशी कर्ज 224 अरब डॉलर से बढ़कर 400 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है।
इस पृष्ठभूमि में दिसंबर 3-6, 2013 को बाली (इंडोनेशिया) में विश्व व्यापार संगठन का 9वां मंत्रीस्तरीय सम्मेलन प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि दोहा मंत्रीस्तरीय सम्मेलन के बाद दोहा विकास वार्ताओं का दौर शुरू होना था, लेकिन पिछले 4 मंत्रीस्तरीय सम्मेलनों से विकसित देशों द्वारा अपनी कृषि सब्सिडी को नहीं घटाने की हठधर्मिता के कारण, विश्व व्यापार संगठन में वार्ताओं का क्रम ठप्प हो चुका है। अमरीका और यूरोप सहित विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बलबूते पर अपने किसानों को भारी सब्सिडी देते हैं, जिसके कारण उनकी डेयरी और कृषि उत्पाद सस्ते होते हैं, जिनसे भारत के कृषि उत्पाद प्रतिस्पर्द्घा नहीं कर सकते। विश्व व्यापार संगठन के गठन के समय किए गए समझौतों में विकसित देशों ने अपनी कृषि सब्सिडी को समाप्त करने का वादा किया था, जिससे अब वे मुकर रहे हैं।
हाल ही के महीनों में अमरीका के दबाव में सरकार के उस संकल्प में ढिलाई आई है, जो देश के कृषि और डेयरी के लिए विनाशकारी तो है ही, देश के उद्योग और सेवा क्षेत्र के लिए भी अशुभकारी है। स्वदेशी जागरण मंच का निश्चित मत है कि अपना कार्यकाल पूरी कर चुकी सरकार को चुनाव से पूर्व किसी भी प्रकार का अंतरराष्ट्रीय समझौता करने का नैतिक अधिकार नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच की कार्यसमिति सरकार को आगाह करती है कि विश्व व्यापार संगठन में देश के हितों के साथ समझौता न किया जाए और जब तक विकसित देश कृषि सब्सिडी समाप्त नहीं करते, तब तक किसी भी प्रकार के नए मुद्दों पर बातचीत न हो। प्रतिनिधि


Tuesday, October 15, 2013

दत्तोपन्त ठेंगड़ी

हिन्दी विकिपीडिया, मुक्त ज्ञानकोष जिसका कोई भी संपादन कर सकता है, 2013 में अपनी दसवीं वर्षगाँठ मना रहा है।


दत्तोपन्त ठेंगड़ी
http://hi.wikipedia.org/s/1jd2
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से


दत्तोपन्त_ठेंगड़ी
दत्तोपन्त ठेंगड़ी ( 10 नवम्बर, 1920 – 14 अक्टूबर, 2004) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक थे।
आनेवाली शताब्दि “हिंदू शताब्दि” कहलाएगी, इस विश्वास को वैचारिक घनता प्रदान करने वाले आधुनिक मनीषी, डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे द्रष्टा महापुषों की विचारधारा कालोचित संदर्भों में परिभाषित करनेवाला प्रतिभाशाली भाष्यकार; मजदूरों और किसानों के कल्याण की क़ृतियोजना बनानेवाला तप:पूत कार्यकर्ता और व्यासंगी विद्वानों की समझबूझ बढानेवाला दूरदर्शी तत्वचिंतक; चुंबकीय वकृत्व और निर्भीक कर्तृत्व का समन्वय प्रस्थापित करनेवाला बहुआयामी लोकनेता... इन सारे विषेषणों को सार्थक बनाने वाले दत्तोपंत ठेंगडी जी का अल्प परिचय कराना मानो गागर मे सागर भरने का प्रयास करने जैसा है.
परिचय[संपादित करें]

दत्तोपंत ठेंगडीजी का जन्म 10 नवम्बर 1920 के दिन आर्वी में (जि. वर्धा, महाराष्ट्र) हुआ लौकिक क्षेत्र में स्नातक और विधि स्नातक की औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में निकल पडे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गोल्लवलकर गुरूजी के निकटतम प्रेरणादायी सानिध्य का लाभ आप को प्राप्त हुआ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांत और कार्यपद्धति से तथा डॉ. हेडगेवार और श्री गुरूजी के जीवन से आप सदैव प्रेरणा लेते रहे हैं सन 1942 से सन 1945 तक आपने केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक का दायित्व निभाया और सन 1945 से सन 1948 तक बंगाल में प्रांत प्रचारक के रूप में कार्य किया सन 1949 में गुरूजी ने आपको मजदूर क्षेत्र का अध्ययन करने की प्रेरणा दी तदनुसार नीचे दिए हुए घटनाक्रम के अनुसार आपने विभिन्न जिम्मेदारियॉ संभाली
अक्तूबर 1950 में आप इंटक के (Indian National Trade Union Congress) राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बने और पूर्वकालीन मध्य प्रदेश के इंटक शाखा के संगठन मंत्री चुने गए आप सन 1952 से सन 1955 के कालखंड में कम्युनिस्ट प्रभावित ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज असोसिएशन (ए.आय.बी.ई.ए.) नामक मजदूर संगठन के प्रांतीय संगठन मंत्री रहे पोस्टल, जीवन-बीमा, रेल्वे, कपडा उद्धोग, कोयला उद्धोग से संबंधित मजदूर संगठनों के अध्यक्ष के रूप में भी आपने कार्य किया
इसी कालखंड में आपका रा. स्व. संघ से प्रेरित अनेक संस्थाओं से भी संबंध बना हिंदुस्तान समाचार के आप संगठन मंत्री थे
1955 से 1959 तक मध्यप्रदेश तथा दक्षिणी प्रांतों में भारतीय जनसंघ की स्थापना और जगह-जगह पर जनसंघ का बीजारोपण करने की जिम्मेदारी भी आप पर थी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आप संस्थापक सदस्यों में से एक हैं
भारतीय बौद्ध महासभा, मध्य प्रदेश शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन के भी आप सक्रिय कार्यकर्ता रहे
1955 मे पर्यावरण मंच की स्थापना की
सर्व धर्म समादर मंच की स्थापना भी आपने की

आपने उपर्युक्त पाथेय संजोकर भोपाल में दि. 23 जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की. प्रारम्भ मे स्थानीय छोटे-छोटे युनियनों से इसका प्रांरभ हुआ आज यह संगठन विशाल रूप प्राप्त कर चूका है इसकी सदस्य संख्या 50 लाख से ऊपर जा पहुंची है तथा भारत मे अब यह क्रमांक एक का मजदूर संगठन हैं
1967 में भारतीय श्रम अन्वषण केन्द्र की आपने स्थापना की 1990 में आपने स्वदेशी जागरण मंच की नींव डाली. संसदीय कार्यकाल में और भारतीय मजदूर संघ का प्रतिनिधित्व करते हुए आपने अनेक बार विदेश यात्रा की है आंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में भारत का प्रतिनिधित्व कई बार किया, विदेशों के मजदूर आंदोलनों का अध्ययन करने हेतू – अमेरिका, युगोस्लाविहया, चीन, कनाडा, ब्रिटन, रूस, इंडोनेशिया, म्यानमार, थायलैन्ड, मलेशिया, सिंगापुर, केनिया, युगांडा तथा टांझानिया का भ्रमण किया आपने 1977 में आंतरराष्ट्रीय श्रम संघठन के अडसठवें आंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सहभाग लिया ( जीनिवा, स्वित्झरलैंड )
1978 में अमेरिका के वहॉ के मजदूर संगठन / आंदोलन की गतिविधि देखने हेतु आपने अमेरिका-यात्रा की
1985 में अखिल चायना ट्रेड नियन फेडरेशन के निमंत्रण पर भा. म. संघ के पॉच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व आपने किया चीन से वापसी के पहले आपने चीनी राष्ट्र को और मजदूरों को एक सन्देश भी दिया जो बीजिंग रेडियो से प्रसारित किया गया
1985 में आपने आंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघठन के दसवें एशियाई प्रादेशिक सम्मेलन में सहभाग लिया ( जकार्ता, इंडोनेशिया )

‘ तत्व जिज्ञासा ’, ‘ विचार सूत्र ’, ‘ संकेत रेखा ’, ‘ Third Way ’, ‘ एकात्म मानववाद-एक अध्ययन ’, ‘ ध्येयपथ पर किसान ’ ‘ डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ’ ‘ सप्तक्रम लक्ष्य और कार्य ’ आदि हिन्दी, अंग्रजी एवं मराठी में विविध विषयों पर सौ से ज्यादा पुस्तक-पुस्तिकाओं का लेखन यह माननीय दत्तोपंत ठेंगडी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व को निखारने वाला एक मौलिक पहलू है
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद का सूत्रपात तो किया किंतु उस गहन विचारधारा को सुस्पष्ट बनाने का कार्य उनके अकल्पित दुखद निधन से अधूरा ही रह गया उसे कालोचित परिभाषा मे ढालने का ऎतिहासिक कार्य माननीय दंतोपंत जी ने ही पूरा किया उनकी गहरी सोच और प्रगाढ़ चिंतन उनके संप्रक्त लेखन मे पारदर्शी रीति से प्रतिबिंबित हुई है समाज के कमजोर वर्गो और पीडित – शोषित श्रमजीवियों की हालत सुधारने के लिए आपने केवल वैचारिक योगदान ही नही दिया, देशभर मे अन्याय, अत्याचार, विषमता और दीनता से जूझने के लिए कर्मठ, लगनशील कार्यकर्ताओं का निर्माण करने में भी आप सफल हुए, यह आपके प्रेरणादायी व्यक्तित्व की बडी उपलब्धि है.
वीडियो[संपादित करें]

पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी, स्वदेशी जागरण मंच, षष्टम राष्ट्रीय अधिवेशन, कड़ी, गुजरात भाग १
पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी, स्वदेशी जागरण मंच, षष्टम राष्ट्रीय अधिवेशन, कड़ी, गुजरात भाग २
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी
श्रेणियाँ: संघ परिवारमजदूर आन्दोलन


Friday, October 4, 2013

गुरुमूर्ति जी के नुकसे भाग 1

आमतौर पर गुरुमूर्ति जी अंग्रेजी में जब लिखते हैं तो अंग्रेजी के जानकार बड़े ध्यान से पढ़ते है सहमत होना नहीं होना उनके अपने पूर्व के विचारो पर निर्भर है पर हिंदी में उनके लेख नहीं जैसे आते है। में उनके पुराने लेख को छाप रहा हु ताकि आज किस बीमारी से अमरीका वेन्तिलाटर पर पड़ा  है, उसका कुछ रोग निदान हो सके।
friday 9 January 2009

गुरुमूर्ति की बातें - खंड एक
आज अमेरिका इतनी भयानक मंदी में फंस गया है कि अगर वह कर्ज न ले, तो वहां कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगा। अमेरिका पहले ऐसा नहीं था, वहां के लोग पहले ज्यादा मेहनत और कम खर्च किया करते थे। वह पहले दौलत पैदा करने वाला देश था, लेकिन आज वह दौलत खर्च करने वाला देश है। वहां के लोग मानते हैं कि धन खर्च करने के लिए धन कमाने की जरूरत नहीं है। किसी और से धन लेकर भी खर्च किया जा सकता है, चुकाने की जरूरत नहीं है। धन वापस न चुकाने की वजह से ही वहां मंदी का हाहाकार मचा हुआ है। पहले अमेरिका दुनिया के अन्य देशों को धन दिया करता था, लेकिन 1980-85 के बीच अमेरिका में कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। 1980 में अमेरिका में बामुश्किल पांच-छह प्रतिशत परिवारों ने ही शेयर बाजार में पैसा लगाया था, लेकिन आज वहां के 55 प्रतिशत परिवारों का पैसा शेयरों में लगा है। जब वहां शेयर के भाव गिरेंगे, तो जाहिर है, आर्थिक तबाही ही होगी।हम भारत की जब बात करते हैं, तो यहां अभी कुल बचत का 2।2 प्रतिशत पैसा ही शेयरों में लगा है, अत: यहां शेयर भाव गिरने पर जो हल्ला किया जाता है, वह उचित नहीं है। सेंसेक्स के गिरने से भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आखिर अमेरिकियों ने शेयरों में क्यों धन लगाया? उन्होंने पैसा बचाया क्यों नहीं? उन्हें आज उधार पर क्यों जीवन काटना पड़ रहा है। इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अमेरिका में ज्यादातर परिवार राष्ट्रीय परिवार हो चुके हैं, मतलब बच्चों की जिम्मेदारी सरकारें संभाल रही हैं। बूढ़ों की फिक्र सरकार को है। वयस्क आबादी बेफिक्र हो चुकी है। बच्चा जब स्कूल जाता है, तो उसे एक फोन नंबर दे दिया जाता है और बता दिया जाता है कि कोई परेशानी हो, तो इस नंबर पर फोन करे। मतलब अगर माता-पिता परेशान करें, तो बच्चा फोन करे, अगर शिक्षक क्रोध करे, तो बच्चा फोन करे और निश्चिंत हो जाए, सरकार माता-पिता या डांटने वाले शिक्षक की खबर लेगी। बच्चों को एक तरह से बदतमीजी सिखाई जा रही है, अभद्रता ही हद तक निडर बनाया जा रहा है। इधर भारत में आज भी बच्चे को यही बताया जाता है कि माता-पिता को प्रणाम करके स्कूल जाना है, गुरुजनों को देवतुल्य मानना है।तो अमेरिका में लोग यह देख रहे हैं कि बच्चों की जिम्मेदारी सरकार उठा रही है, तो फिर आखिर धन वे किसके लिए बचाएं। एक दौर था, जब अमेरिका में बैंक डिपोजिट पर बीस प्रतिशत ब्याज मिला करता था, तो आखिर लोग शेयर जैसे जोखिम भरे निवेश में पैसा क्यों लगाते, लेकिन जैसे-जैसे डिपोजिट पर ब्याज घटने लगा, त्यों-त्यों लोग शेयरों में धन लगाने लगे। और वही लोग आज मुश्किल में हैं, अगर उन्हें कर्ज न दिया जाए, तो जीवन मुश्किल में पड़ जाए। अमेरिका में वही हाल शादी का है। केवल दस प्रतिशत शादियां ही 15 साल से ज्यादा समय तक टिक पाती हैं। आधे से ज्यादा विवाह पहले पांच वषü के दौरान ही टूट जाते हैं। वहां लोगों का साथ रहना एक अल्पकालीन समझौता है। वे परिवार की तरह नहीं, बल्कि हाउसहोल्ड की तरह रहते हैं। हाउसहोल्ड में लोग कुछ समय के लिए साथ रहना स्वीकार करते हैं, उनमें भावनाओं का बहुत जुड़ाव नहीं होता है, जबकि परिवार में परस्पर लगाव होता, एक दूसरे के प्रति अत्यधिक चिंता होती है। अमेरिका में परिवार लगभग नष्ट हो चुके हैं। उसी हिसाब से खर्च भी बढ़ा है। वहां 11 करोड़ हाउसहोल्ड हैं, लेकिन उनके सदस्यों के पास 120 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं। लगभग हर आदमी के पास तीन-चार से ज्यादा क्रेडिट कार्ड हैं। तो अमेरिका को बिखरे हुए परिवारों ने तबाह कर दिया है, जबकि भारत जैसे देशों में परिवार और संस्कृति की वजह से ही अर्थव्यवस्था बची हुई है। क्र

Saturday, September 28, 2013

भारत स्टोर्स - एक छोटी फिल्म


Film portraying 'kirana' shop's plight bags national film award
G S KUMAR, TNN Mar 19, 2013, 01.28AM IST

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Prasad Kumar|national awards|Govinda Shetty|govinda|FDI
BANGALORE: Bharat Stores, a Kannada movie directed by P Sheshadri and produced by Basant Kumar Patil, has won the national award for Best Regional Film in Kannada. The 60th National Film Awards for 2012 were announced in New Delhi on Monday.
The movie highlights how globalization has resulted in mushrooming of malls and marts, leading to closure of neighbourhood 'kirana' shops, affecting the lives of those dependent on them.

Senior artiste HG Dattatreya (Dattanna) won a special mention for his performance as a shopkeeper (Govinda Shetty) in the movie. Chi Gurudutt, Sudharani, Padmakala, Prasad, Kumar and Venkat Rao are the others in the cast.
Sheshadri's has won the Best Regional Film award, his seventh, every time he has been in the fray.
Bharat Stores begins with Bharathi (Sudharani) returning to Bangalore after a nine-year stay in the US with her husband Sharath. She had promised her father that she would repay his dues to Govinda Shetty, owner of Bharat Stores, a kirana shop. The store was so popular that a bus stop in front of it was named after it.
On alighting at the bus stop, Bharathi fails to find the shop. She begins search for Govinda Shetty and meets Chandru and Manjunath who had worked in the shop. The meeting takes her to an old-age home where she finds Govinda Shetty, who has not been able to speak for months and is unable to respond to her. She comes to know that he is a victim of globalization and had shut his shop.
Sheshadri found the subject interesting for a movie when a debate started after the central government opened India to FDI.
"The story is based on the subject and I have just highlighted the pros and cons of FDI and stopped short of giving any judgment. I want petty shop owners to know about the issue. The story is based on the life of a petty shop owner in Bangalore," he said.
According to Dattatreya, it is a complex subject the results of which will be known years later. "But we have made efforts to create awareness among 'kirana' shopowners to prepare themselves for the possible situations due to entry of mall and mart culture. Of course, the subject is debatable. But it is difficult to give a judgment on the issue," he said.

Monday, September 9, 2013

गणपति बाप्पा मौरया का मतलब जानते हैं क्या आप

गणपति बाप्पा मौरया का मतलब जानते हैं क्या आप? मौरया एक 14vi शताब्दी का संत था जिसने गणेश जी की सालों पूजा अर्चना की और गनेस्श जी ने प्रगट होकर आशीर्वाद मांगने को कहा? उसने कहा न तो मेरा कोई बीटा बेटी है और न ही कोई सगा सम्बन्धी. तो धन दौलत किसके लिए मंगू. बस प्रभु साल में एक बार आपके साथ मेरा भी कोई बाम लेले तो लोगो का भागती करने में आस्था बढ़ेगी. तथास्तु कहा गणपति जी ने की एक्ब्दीन नहीं दस दिन तक मेर्साथ तुम्हारा भी नाम हर कोई रटेगा. लेकिन गणेश विसर्जन पहले तो भी होता था पर लोग अकेले अकेले करते थे. जब से श्री बल गंगाधर तिलक ने सोचा की गुलामी में काल में लोगो को कैसे इकाठाथा किया जाये तो उन्होंने दो उस्तव सामूहिक कर सारे समाज में अंग्रेजो का भय ख़त्म किया था. एक उत्सव था शिवाजी जयंती और दूसरा था गणेश चतुर्थी. आज लाखो लोग सामूहिक रूप से गणेश विसर्जन को जातेहैं. सो गणपति की जय मैय्ने भारत मत की जय ही है.

Tuesday, September 3, 2013

चीन का खतरा और समाधान 2 - कश्मीरी लाल

Latest cheen 2 चीन का खतरा और समाधान - कश्मीरी लाल

1.  पिछले दिनों लद्दाख में जिस तरह चीन 19 किमी अंदर घुसा और चैकियां बनाकर जम गया, उससे सारे देष में चिंता की लहर छा गई। जब वे 40 चीनी सैनिक वापिस भी गए तो हमारे लिए शर्मसार करने वाली शर्तों को मनवा कर. हमें अपने हाथों से अपने बनाये बंकर तोड़ने पडे और सुरक्षा टावर गिराने पडे जिनको दुबारा बनाने में दिक्कत आए गी.  परंतु चीन तो ऐसा बार बार कर ही रहा है। गत वर्ष भी कम से कम 400 बार और इस वर्ष 100 बार चीन ऐसी घुसपैठ की हरकत कर चुका है। एक प्रष्न का उत्तर देते हुए 2007 में सरकार ने संसद में बताया कि चीन हमारे यहां तब तक 1500 बार घुसपैठ कर चुका है। इस लिए चीन का खतरा सिर्फ एक बार का नहीं है बल्कि बार, बार का है. दूसरी बात है की चीन का खतरा एक प्रकार का नहीं है कई क्षेत्रों में है, चाहे वो सीमा पर हो, देश के अन्दर हो, और चाहे आर्धिक क्षेत्र में हो, उसका खतरा बहु आयामी है.
2.  यदि ये पूछा जाये कि आजाद भारत का ऐसा कौन सा क्षण हे जिस पर आप सबसे ज्यादा गर्व कर सकते हे. इस के कई उत्तर हो सकते हे. पोखरण के विस्फोट से लेकर बाबरी ढांचा गिरने तक और कारगिल विजय से अन्ना हजारे की विजय तक कई उत्तर हो सकते हैं. लेकिन आजाद भारत के पूरे इतिहास को देखें तो बंग्लादेश पर विजय एक ऐसा उत्तर हे जिसपर काफी लोग सहमत हो जायेंगे. इस तेरह दिन के युद्ध में भारत ने पकिस्तान को बुरी तरह परास्त करके आत्म-समर्पण के लिए मजबूर किया. क्या नज़ारा था जब 16 दिसंबर 1971 को हमारे जेनेरल अरोड़ा ने पकिस्तान के जेनेरल निआज़ी को आत्मसमर्पण पत्र पर दस्तखत करने पर उनके 90000 से ज्यादा भेद-बकरीओं की तरह इकट्ठे किये सैनिको को रिहा किया. अब अगर इससे बिलकुल उल्टा प्रश्न ये पूछा जाये कि आजादी के बाद का सबसे शर्मनाक समय कौन सा हो सकता है, तो इसके भी कई उत्तर हो सकते हे । संसद पर या ताज होटल पर हमले से लेकर नोट फॉर वोट जैसी घटना के कई शर्मनाक दिन गिनाये जा सकते हे. लेकिन एक उत्तर पर ज्यादातर लोगों कि सहमति होगी. वो होगी चीन से करारी हार. 1962 में चीन के हाथों ये बहुत ही शर्मनाक हार थी, और आज भी उसका स्मरण कर सर शर्म से झुकता है. कोई लोग तो उस दुर्घटना को याद भी नहीं करना चाहेंगे। इस हार के कारण क्या थे, इसको विष्लेषण करने के लिए एक समिति बनाई गई थी। Handerson and Bhagat Report. उस रिपोर्ट पर चर्चा करके कुछ सबक सीखने की बात तो दूर, उस रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक ही नहीं किया गया।

3.  हमने इस पराजय को एक घिसे-पिटे शब्द से छुपाने व पर्दा डालने की कोशिश की और वह शब्द है ‘‘धोखा’’। चीन ने हमारे साथ छल किया, फरेब किया ऐसा हमारे नेताओं ने कहा. 'हिन्दी चीनी भाई-भाई' के नारे लगाते-लगाते गला अभी सहज भी नहीं हो पाया था कि हमारा गला कोई घोंटने लगा । हमारे प्रधानमंत्री जी ने पंचषील के शांति के कबूतर छोड़कर और उनके सुखद फडफड़ाने के स्वर से आह्लादित हो आंखे बंद कर ली थी. अचानक हमारे इन शांतिदूत कबूतरों के गले से दबी चीख निकली और खून के छींटे नीचे गिरे। चीन के बाजों और चीलों ने उनपर झपट्टा मारके घायल कर दिया था। नेहरु लाचार थे. और सारा देश शर्मसार था. उनको कुछ समझ नहीं आ रहा की ये कैसे हो गया.

4.  चीन का आक्रमण क्या अचानक हुआ था?
:हमारे कुछ रक्षा विषेषज्ञों ने इस सत्य को तथ्यों के साथ उजागर किया है कि ‘‘धोखे’’ का यह इल्जाम शंकास्पद ही नहीं, हास्यास्पद भी है। 'फन्नी' ही नहीं 'फाल्स' भी हे. समय रहते हम ने चीन के कुत्सित इरादों की और कभी गौर नहीं किया था. नेहरु जी की दुनिया में शांति का मसीहा बनाने की खोखली चाहत ने उन्हें कुछ समझने ही नहीं दिया. इतिहास गवाह हे की चीनी नेता माओत्से तुंग ने कई बार कहा था कि तिब्बत चीन के हाथ ही हथेली की मानिंद है और हथेली के साथ की पांच उंगलियां लद्दाख, सिक्किम, नेपाल, भूटान और नेफा है. लेकिन हमने कभी जियादा गौर नहीं किया था। 1950 के बाद के अपने नक्शों में चीन कोरिया, इंडोचीन, मंगोलिया, बर्मा, मलेषिया, पूर्वी तुर्किस्तान, नेपाल, सिक्किम, भूटान व भारत जैसे 11 देषों को अपनी सीमा में दिखाता रहा है. हमें तभी संभलना चाहिए था. लेकिन हमने गौर नहीं किया ।(भारत वर्मा , रक्षा विशेषज्ञ, चीन से भारत को आशंका, इंडियन डिफेन्स रेवियु , मई 2010 ) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया श्रीगुरू जी की भविष्यवाणी उसी समय की गई थी की चीन भारत पर हमला कर सकता हे . उसी समाया चीनी प्रधानमंत्री चायू एन लाई की भारत यात्रा के समय भारत हिंदी-चीनी, भाई-भाई के नारे लगा रहे थे । श्रीगुरू जी की चेतावनी भी अनसुनी कर दी गई - और फिर कहा गया कि धोखा हुआ है। अलबत्ता स्टैंड चीन का तब भी वही था और अब 2013 में भी वही है कि भारत और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण अभी नहीं हुआ है। भारत का उस समय यह कहना था कि मैकमोहन रेखा से सीमा निर्धारण हो चुका है। चीन उस समय भी और अब भी भारत तिब्बत सीमा को भारत चीन सीमा कहता है। उसने 1950 में ही तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया था। पटेल ने उस समय भी नेहरू को लिखा था कि तिब्बत की सहायता करनी चाहिये क्योंकि यदि चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया तो वह हमारा पड़ोसी बन जायेगा।

5.  इस धोखे की बात को आज फिर याद करना पड़ेगा । 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर 38000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया। इसके बाद 1963 में हमारे शत्रु पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की 5183 वर्ग किलोमीटर भूमि चीन को और दे दी।
चीन आज अरूणाचल प्रदेश सहित देश की 90,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर अपना दावा जता कर सीमा चैकियाँ आगे बढ़ाते हुए घुसपैठ करके हमारे निर्माण कार्यों में बाधा डाल रहा.  कुछ विशेषज्ञों का मानना हे की चीन फिर भारत पर  हमला कर सकता हे. उन रक्षा विषेषज्ञों का अनुमान है कि चीनी विजय के 50 वर्ष 2012 में होंगे। इस स्वर्ण जयन्ति (गोल्डन जुबली ) को चीन भारत पर दुबारा कभी भी हमला करके मनाएगा। इसके कारन भी बताये हे. चीन की अपनी घरेलू समस्याएं हैं, गरीब अमीर का अंतर  बढ़ रहा हे । गाँव में आक्रोश हे की शहरों की चकाचोंध वहीं सिमट कर रह गई हे. और  सारी दुनिया में लोकतंत्र की बयार उनके देश को नहीं छू रही. वो पहले की तरह तिनामिनान चौक पर अपने लोगों को टैंकों से रोंद कर 'श्मशान की शांति' पैदा करने से बचना चाहेगा। वह भारत पर आक्रमण करके अपनी जनता का ध्यान बढते हुए आक्रोश से हटा सकता है। भारत की समृधि की और बढ़त उसे फूटी आँखों सुहा नहीं रही. उसे भी अवरुद्ध करने वो हमला कर सकता हे. लेकिन क्या हमारी तैयारी है? क्या हम इसी भरोसे बैठे हैं की चीन व्यापारी बन गया हे और हमारे बाजार को छोड़ेगा नहीं, युद्ध तक नहीं जायेगा. यही बातें 1962 पहले भी नेतायों द्वारा कही जाती थी. हम इतिहास के गढ़े मुर्दे उखडने के आदी नहीं है, लेकिन इतना ही स्मरण करवाना चाहते है कि जो लोग इस कहावत को अक्सर भूलते है कि इतिहास अपने को दोहराते हैं और उससे सीख नहीं लेते वे पुनः लज्जा, शर्म सहने को अभिषप्त रहते है। हमारा ये जन जागरण अभियान एक चेतावनी सा हे. हम पूरे देश के सामने ये बात रखना चाहते हे की यदि युद्ध दुबारा होता हे तो क्या हमारी तेयारी हे. नेता इस मामले में चैन से सोते दिखाई दे रहे हैं.

6.  हमारी सरकार को व जनता को लगातार इस खतरों को भांपना चाहिए था। हर बार पृथ्वीराज की तरह उदार होते-होते फिर स्वयं गिरफ्तार और आंखों से लाचार होने को अभिशप्त होना हमारी नियति नहीं होनी चाहिए. धोखा-धोखा चिल्लाने की बजाय कुछ और सोचना चाहिए. क्या अच्छा नही कि भारत शिवाजी महाराज की तरह पूर्व तैयारी में हो. धोखा देने वाला अफजल खां रूपी चीनी दैत्य स्वयम पेट की आंतडियां बाहर निकलते वक्त चिल्लाए 'फरेब', 'धोखा'। यदि भारत चैन की नींद न सोये तो यह बिलकुल हो सकता है. भारत को तेयार रहना ही चाहिए. .

7.  .नेहरु का पंचशील और आजके पंचशूल: हमने नेहरू के पंचषील के सिद्धांत की दुर्दषा होते देखी है - वह पंचषील हमारे लिए ‘पंचषूल’ बन गया और आज वे पांच शूल बहुत ही कष्ट दे रहे है .

(a)पहला शूल तो हे आर्थिक रूप से नुकसान. जो चीनी माल हमारे देष की दूकानों में अटे पड़े है। बचों के खिलोनो से लेकर पूजा के लिए लक्ष्मी गणेश कि प्रतिमा तक चीन निर्मित हे. होली का रंग भी चीन का, पिचकारी भी चीन की. दिवाली के चीन निर्मित पटाखे हमारे देश का दिवाला निकल के छोड़ें गे. हर साल 60 हजार करोड़ रुपये हम चीन तो मुनाफे के रूप में दे रहे हे. अभी एक साल पहले अखबारों में सुरक्षा सलाहकार का खुलासा चौकाने वाला हे. उसके मुताबिक चीन का खतरा अब देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से पर उसका परोक्ष कब्जा हो गया है। लगभग 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन अब चीन से आयातित इनपुट या उत्पादों पर निर्भर है, यानी उसकी मुट्ठी में है।  .इसके अनुसार चीन ने कई संवेदनशील क्षेत्रों में हमारी आत्मनिर्भरता पर दांत गड़ा दिए हैं। बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में उसका दखल अब खतरनाक स्तर तक पहुंच गया .
। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की नीयत और नीतियां साफ नहीं है। वह दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में अपने दखल का इस्तेमाल साइबर जासूसी के लिए कर सकता है।
. अगर हम आपनी चीजो का उपयोग नहीं करेंगे, अपने यहाँ उत्पादन नहीं करेंगे तो हमेशा के लिए पिछड़ जायेंगे. कच्चा माल ही चीन को देकर खुश होंगे और तेयार माल कई गुना कीमत चुका कर लेते रहेंगे तो हालत बहुत बुरी होगी. ये नीति तो ईस्ट इंडिया कंपनी हमारे साथ आजादी से पहले करती थी. कहाँ तो हम अमरीकी और यूरोप के आर्थिक जाल से बचने की कोशिश कर रहे थे, और कहाँ एक नया फन्दा चीन का और पड़ गया. इसी बात से अनुमान लगा लीजिये की आर्थिक गुलामी चीन से कितनी हे.

(b) दूसरा नुक्सान पर्यावरण का हे. सारी दुनिया में आज पर्यावरण रक्षा की दुहाई दी जा रही हे. लेकिन पता हमें पता रहना चाहिए कि दुनिया का सबसे बड़े पर्यावरण विनाशको में से एक चीन है. बल्कि वो नंबर एक हे । दुनिया के सारे प्रदूषण का पांचवा हिस्सा यानि 21 प्रतिषत चीन फैला रहा है।

(c). तीसरा नुकसान चीन द्वारा हमारे देष में अराजकता फेलाना हे । माओवादी कहां से संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं, उनको हथियार से लेकर ट्रेनिंग देने में चीन की बहुत बड़ी भूमिका हे. हमारे देश में लगभग 150 जिलो में मायो-वादियों का सिक्का चल रहा हे. और तो और - 'माओ' नाम ही उनके यहां से आया है .

(d) चौथा नुक्सान चीन कर रहा हे कि वो हमारे सभी पड़ोसियों को हथियार दे देकर और आर्थिक सहयोग करके उन्हें हमारे खिलाफ उकसा रहा है। पाकिस्तान, नेपाल, बंग्लादेष सभी को हमारे खिलाफ उकसाने का काम तो चीन कर ही रहा हे, उसने वहां अपनी सैनिक चोकियाँ बना ली हे। भारत की चारों ओर से घेराबंदी की दृष्टि से चीन ने पाकिस्तान (ग्वादर बंदरगाह), नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश (चटगांव बंदरगाह) एवं श्रीलंका में सैन्य गतिविधियाँ तेज कर दी है।  भारत के सभी पड़ोसी देशों में चीनी सैन्य उपस्थिति के कारण हमारा संपूर्ण देश संकट में हैं।
और
(e).  पांचवा सीधा-सीधा चीन से सामरिक खतरा है। रक्ष विशेषज्ञों को प्राय ये लगता हे के चीन के सामने हम कहीं नहीं टिकते. संसद में 2007 में सरकार ने एक सवाल के जवाब में इस बात को माना की चीन बार बार हमारे यहाँ घुसपैठ करता हे. ये माना की अकेले इस साल के ग्यारह महीनो में चीन ने 146 बार घुसपैठ की हे. मोटा अनुमान हे की बासठ के युद्ध के बाद अबतक 1500 बार चीन ने हमारी सीमायों में घुसपैठ की हे. ये भी लगता हे के दुबारा चीन से युद्ध होने पर फिर शर्मनाक हार होगी. ये भी लगता हे के सरकार उसी तरह गुमराह हे, या मुगालते में हे जैसे पहले थी. हम उसको अपने देश में मार्केट देकर समझ रहे हे के चीन हमारे से युद्ध करके इस व्यापार को नहीं खोएगा. लेकिन हालत खतरनाक हे. अब तो चीन के शस्त्र भी नये-नये है। उधाहरण के लिए यदि चीन ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे बांध को ही कहीं विस्फोट से तोड़ता है तो बहुत बड़े हमारे भूभाग को सुनामी जैसी स्थिति में ला सकता है। यह कल्पना की उड़ान नहीं, कुछ वर्ष पूर्व पूरा हिमाचल ऐसी ही स्थिति में लाने का चीनी प्रयोग सफल रहा है।
 चीन द्वारा जम्मू-कश्मीर को अपने नक्शांंे में भारत का अंग नहीं दिखाया जाता है। अरूणाचल प्रदेश को चीन का अंग दिखाकर वहां के नागरिकों को बिना पासपोर्ट वीजा के चीन आने का आमन्त्रण दिया जाता है।
 हमारे प्रधानमंत्री द्वारा अरूणाचल को ‘‘हमारा सूरज का प्रदेश’’ कहने पर चीन द्वारा हमारी महिला राजदूत को रात्रि 2 बजे उठाकर कड़ा विरोध व्यक्त करते हुए चेतावनी दी जाती है।
 चीन ने हमें आहत करने हेतु लश्कर-ए-तोयबा के आतंकवादी व जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्तुत भारत के प्रस्ताव का विरोध किया।
 तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी जो हजारो वर्षों से पूर्वी भारत का जीवन आधार है, चीन इसकी जल धारा अवरूद्ध कर रहा है।
 चीन ने भारतीय सीमा पर परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी हैं जिनके मारक क्षेत्र में सम्पूर्ण भारत आता है। हमारी सरकार को व जनता को लगातार इस खतरों को भांपना चाहिए था.
. चीन का रक्षा बजट 150 अरब डाॅलर है जबकि भारत का रक्षा बजट मात्र 36
अरब डाॅलर है

आईये, पहले दो बिन्दुयों को जरा विस्तार से समझे. कारण ये हे की युद्ध हो या आतंकवाद -?हमारी सीमायों पर हो या देश के भहर हो, उसकी बात जियादा समझ में आती है. उसपर चर्चा जियादा होती हे. लेकिन आर्थिक और पर्यावरण का हमला चुपचाप और बिना शब्द के होता है. isliye सीमा पर युद्ध होगा या नहीं, कहना मुश्किल है. लेकिन आर्थिक और पर्यावरण का हमला तो हो चूका है, और हो ही रहा है. इस लिए इसको जरा विस्तार से समझे.

पहला शूल: चीन का भारत पर आर्थिक हमला:

अभी इस 16 सितम्बर के दैनिक जागरण एवं दुसरे अखबारों में सुरक्षा सलाहकार का खुलासा चौकाने वाला हे. उसके मुताबिक चीन का खतरा अब देश की सीमाओं तक सीमित नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से पर उसका परोक्ष कब्जा हो गया है। लगभग 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन अब चीन से आयातित इनपुट या उत्पादों पर निर्भर है, यानी उसकी मुट्ठी में है। यह हैरतअंगेज निष्कर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार [एनएसए] का है। एनएसए सचिवालय ने चीन पर हाल में सरकारी विभागों को एक रिपोर्ट दी है।

इसके अनुसार चीन ने कई संवेदनशील क्षेत्रों में हमारी आत्मनिर्भरता पर दांत गड़ा दिए हैं। बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में उसका दखल अब खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इस रिपोर्ट के बाद विदेश मंत्रालय और आर्थिक मंत्रालयों में हड़कंप मचा हुआ है।

करीब आठ पेज की यह गोपनीय रिपोर्ट बेहद सनसनीखेज है। एनएसए ने इस साल मार्च में योजना आयोग और अगस्त में आर्थिक मंत्रालयों के साथ बैठक की थी। इसके बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की नीयत और नीतियां साफ नहीं है। वह दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में अपने दखल का इस्तेमाल साइबर जासूसी के लिए कर सकता है।

इस रहस्योद्घाटन ने सरकार के हाथों से तोते उड़ा दिए हैं कि अगले पांच साल में चीन हमारे 75 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन को नियंत्रित करने लगेगा। इस समय देश मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का करीब 26 फीसदी उत्पादन चीन से मिलने वाली आपूर्ति के भरोसे है। एक देश पर इतनी बड़ी निर्भरता अर्थव्यवस्था को गहरे खतरे की तरफ ले जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक तमाम तरह की सब्सिडी और मौद्रिक अवमूल्यन के चलते चीन हमारी तुलना में 40 फीसदी सस्ता उत्पादन करता है, जिससे भारत की औद्योगिक प्रतिस्पतर्धा बुरी तरह टूट रही है।

चीन के असर से भारत की आत्मनिर्भरता को खतरे के कई उदाहरण इस रिपोर्ट में दर्ज हैं। हमारे उद्योग बिजली बचाने वाले सीएफएल लैंप के प्रमुख कच्चे माल [फास्फोरस] के लिए चीन पर पूरी तरह निर्भर हैं। हाल में फास्फोरस की कीमत बढ़ाकर चीन ने यहां के सीएफएल उद्योग की चूलें हिला दीं। स्टील और इसके उत्पादों में ही चीन की कीमतें यहां से 26 फीसदी कम हैं। हमारा दवा उद्योग भी कुछ बेहद जरूरी [फमर्ेंटेशन आधारित] कच्चे माल यानी और बल्क ड्रग के लिए पूरी तरह चीन के भरोसे है। घरेलू दवा उद्योग चीन से सस्ते आयात के चलते सालाना 2500 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रहा है। कंपनियां चीन से आयातित पेनिसिलीन जी पर एंटी डंपिंग लगाने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का निष्कर्ष है कि भारत में दूरसंचार उद्योग अपनी जरूरत के 50 फीसदी उपकरण आयात करता है, जिसमें चीन का हिस्सा 62 फीसदी है। बिजली परियोजनाओं के एक तिहाई ब्वॉयलर और टरबाइन जनरेटर चीन से आए हैं, जो भारत के मुकाबले 6 से 20 फीसदी सस्ते हैं। दूरसंचार और बिजली क्षेत्र में चीन के दखल को लेकर सुरक्षा चिंताएं चरम पर हैं। यही चिंता सूचना तनकीक उत्पादों को लेकर भी है, जिनका आयात का आकार 2020 तक पेट्रो आयात से ज्यादा हो जाएगा। चीन इन उत्पादों का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है, इसलिए भारत में प्रमुख सप्लायर है।

सिफ इतना ही नहीं तो आज हर तरफ हमारे बाज़ार चीनी माल से भरा पड़ा हे. 2001 तक चीन का भारत से व्यापार कोई खास नहीं था. भारत चीन को हर तरह से सुविधाएँ दे रहा हे. और 2010 तक भारत चीन व्यापार 62 अरब डालर का हो गया था, और 2011 में 84 अरब डालर और 2015ख़तम होते तक ये आंकड़ा100 अरब डालर तक पहुँचाने वाला हे. इस व्यापार में दो हिस्से चीन के हे और एक हिस्सा भारत के, लेकिन इस में भी एक पेच हे. वो ये हे की हम जो बीस अरब डालर का माल चीन को देते हे वो कच्चा माल हे. इन बेश-कीमती खनिज पदार्थों में से भी साठ प्रतिशत तो कच्चा लोहा हे. अनुमान हे की यदि भारत इसी गति से लोह-अयस्क का निर्यात करेगा तो ये पचास साठ साल में बिलकुल ख़तम हो जायेगा. फिर जरूरत पूरी करने पर चीन से किस भाव खरीदेंगे, इसका नदाजा ही रोंगटे खड़े कर देता हे. दूसरा सामान जो चीन को हम भेजते हे वो कच्चा रबर हे. आज भारत दुनिया के तीन-चार बड़े रबर उत्पादक देशों में से एक हे. लेकिन त्रासदी ये हे की हम अपना रबर अनुदान देकर निर्यात करते हे. इस का नतीजा ये हे की चीन हमारा रबर सस्ते रूप में खरीदता हे. बस और ट्रक का टायर चीन इसी कारण भारत में 2000 से 3000 रुपये सस्ता बेचता हे. अब हालत ये की बड़ी-बड़ी भारतीय कम्पनिया भी चीन में कारखाना लगाने की सोच रहीं हैं . ऐसे ही वस्त्र उद्योग भी प्रभावित हो रहा हे. कपास भी बड़ी मात्र में चीन जा रही हे.
फिक्की के सर्वे में आया हे की 74 पर्तिशत उद्यमियों को चीनी उत्पादों के कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा हे. 62 फ़ीसदी उद्यमियों का मानना हे की चीन के सस्ते उद्पादों के कारण कभी भी उनको अपना कारखाना बंद करना पड़ सकता हे. यही हाल प्रिंटिंग या इंजिनीरिंग के उत्पादों का हे, और रसायनों का तो और भी बुरा हाल हे. आज की तारीख में 35 फ़ीसदी पवार प्लांट और टेलीफोन एक्सचेंज भी चीनी लग रहे हे. आर्थिक नुक्सान के साथ साथ एक बहुत बड़ा खतरा ये भी हे की टेलीफोन क्षेत्र में चीन का आना वैसे भी बड़ा संवेदनशील मुद्दा हे. चीन जब चाहे हमारे महत्वपूर्ण लोगो की बात जब चाहे टेप कर सकता हे, देश की सुरक्षा और गोपनीयता कहा बचेगी.चीन से बड़ी मात्र में हम मौसम जानने वाले संयंत्र आयात कर रहे हे. अब वो हमें मौसम का हाल बताएँगे, या यहाँ की गतिविधियों के चित्र अपने देश में पहुचाएंगे.- हमारे देश के अतिसंवेदनशील स्थानों पर विविध परियोजनाओं में निर्माण के ठेके अत्यन्त कम दरों पर भरकर देश के अन्दर चीन अपनी उपस्थिति एवं गतिविधियां बढ़ा रहा है।

आज दुनिया में तकनीक समृद्ध करने की होड़ लगी हे. हमारे यहाँ बताते हे की अभी टेलकम में प्रथम जेनेरशन टेक्नोलोगी ही विकसित हुई, और दूसरी पीड़ी की टेलेकाम टेक्नोलोजी ही यहाँ विकसित नहीं हुई. और तीसरी की तो दूर दूर तक सोची नहीं. चीन, आपकी जानकारी के लिए, चौथी पीड़ी की टेक्नोलोजी विकसित करने में अमरीका से भी आगे बढ़ने की कोशिश में हे. अगर हम आपनी चीजो का उपयोग नहीं करेंगे, अपने यहाँ उत्पादन नहीं करेंगे तो हमेशा के लिए पिछड़ जायेंगे. कच्चा माल ही चीन को देकर खुश होंगे और तेयार माल कई गुना कीमत चुका कर लेते रहेंगे तो हालत बहुत बुरी होगी. ये नीति तो ईस्ट इंडिया कंपनी हमारे साथ आजादी से पहले करती थी. कहाँ तो हम अमरीकी और यूरोप के आर्थिक जाल से बचने की कोशिश कर रहे थे, और कहाँ एक नया फन्दा चीन का और पड़ गया. इसी बात से अनुमान लगा लीजिये की आर्थिक गुलामी चीन से कितनी हे. बच्चो के खिलोनो से लेकर टेक्सन के केलकुलेटर चीनी हे. दिवाली के पटाखों से लेकर 'लिनोवा' के कम्प्यूटर भी चीनी हे. मंदिर पर जगमगाने वाली बिजली की लड़ियों से लेकर पूजा में रखी गयी लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियाँ भी चीनी हे. मोटा अनुमान हे की हर साल हम 50-60  हजार करोड़ रुपये का आर्थिक सहयोग मुनाफे के रूप में चीन का कर रहे हे. शत्रु देश का आर्थिक सशक्तीकरण करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना ही होता हे. . कुछ समय पहले ही चीन ने जापान को दुनिया की दुसरे नंबर की सर्व-श्रेष्ट अमीर अर्थवयवस्था के स्थान से हटा कर अपना कब्ज़ा जमाया हे. वैसे भी चीन के सामान नुकसानदेह हे. चीनी दूध के उत्पाद दुनिया भर में प्रतिबन्ध का विषय बने हैं क्योंकि उनमे एक मेलामाइन नामक नुक्सानदेह औद्योगिक रसायन हे. खिलोनो के रंगों में भी घातक रसायन बच्चों के लिए खतरनाक हे. सस्ते जरूर होते हे चीनी सामान लेकिन इतनी जल्दी खराब होते हे की पूछिए नहीं. इस लिए लम्बे वक्त में कुल मिला कर चीनी उत्पाद महंगे ही पड़ते हे. बेशक ये एक चुटकला होगो पर चीनी वस्तुयों की हकीकत दर्शाता हे. एक लड़के ने किसी चीन की लडकी से शादी की और पांच-छे महीने बाद ही वो लड़की मर गयी. अफ़सोस करने वालों में से एक ने उसे यूँ धाडस दिलाया: भले मानस क्यों रोता हे, पांच छे महीने तो निकाल ही गयी आपकी चीनी पत्नी. ये क्या कम हे. और चीनी माल वैसे चलता ही कितनी देर हे," ऐसे में फिर क्यों खरीदना ऐसा चीनी सामान को. क्योंकी इससे सेहत का भी नुक्सान, जेब का भी नुक्सान और वातावरण का भी नुक्सान.

दूसरा शूल - चीन से पर्यावरण को खतरा: तिब्बत कभी दुनिया के सबसे पर्यावरण की दृष्टि से साफ़-सुथरे स्थानों में से एक था. लेकिन तिब्बत को हडपने के बाद उसने तिब्बत को न केवल सैनिक अड्डे बल्कि आणविक कचरादान के रूप में तब्दील कर दिया हे. ऐसा करने के लिए तिब्बत के घने जंगलो को उसने काटना शुरू कर दिया हे. तकरीबन 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फ़ैली चीन के हरयाली और खूबसूरती को तहस-नहस कर दिया हे. यहाँ से निकलने वाली दस नदियाँ भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, बंगलादेश, भूटान, पकिस्तान, थाईलैंड, बर्मा, विएतनाम, लोस और कम्बोडिया जैसे अन्य ग्यारह देशों का मेरुदंड हैं. ये न केवल उन देशों की पानी की जरूरत पूरी करती हे बल्कि उपजाऊ मिटटी भी इनके बहाव के साथ मिलकर इन देशों की फसल को उपजाऊ बनती हे. मोटे तौर पर इन नदिओं के तटों पर विश्व के करीब आधी आबादी बसती हे.( भारत-नीति प्रतिष्ठान ,'चीनी- विस्तारवाद' पेज 17.)

लेकिन पिछले चार दशकों से इन देशों का मौसम चीन के कारण से बुरी तरह प्रभावित हुआ हे. अगर चीन के द्वारा सैनिक समीकरण के नाम पर तिब्बत की पहाड़ों पर बड़े-बड़े डैम बनाये जाते तो प्रत्यक्ष नुक्सान तो भारत को होगा, पर चीखे गी दुनिया भी. लेकिन इससे भी खराब बात हे के तिब्बत के एक हिस्से को आणविक अवशेष में तब्दील कर दिया गया हे. इससे ये परमाणु का कचरा मुहाने के भारतीय खेत खलिहानों और लोगों के घरों तक पहुँच रहा हे. यहाँ ये बात बताने की हे के कभी दलाई लामा ने विश्व शांति के लिए इस क्षेत्र को 'आणविक-मुक्त क्षेत्र' घोषित करने की बात 1980 के दशक में कही थी. वैसे भी चीन दुनिया के सबसे प्रदूषण फैलाने वाले देशों में अग्रणी हे. दुनिया का पांचवा हिस्सा परदुषण यानी 21 अकेला चीन ही फैला रहा हे. विश्व की सर्वाधिक प्रदुशंकारी ग्रीन हाउस गसों का उत्सर्जन चीन ही कर रहा हे. दुनिया में इस बात की काफी चर्चा हे, और चीन की प्रोद्योगिकी इतनी प्रदुषण पैदा करने वाली हे. ये बाते लोगों के जेहन में बिठाई जाती हे तो चीन देश द्वारा बनाई चीज़ों का बहिष्कार लोग सरलता से कर देंगे.परन्तु साथ में भारत सरकार की एक और बहुत बड़ी गलती ही नहीं बल्की पाप का जिक्र हम करना चाहेंगे. अभी दो साल पहले पर्यावरण पर संपन्न कोपेंगेहन वार्ता में   चीन के साथ उस समाया दिया पर्यावरण के मुद्दे पर  दुनिया के कोपभाजन का शिकार था.

8.  हम क्या कर सकते हैं?
चीन ने कैलाश मानसरोवर जैसे प्रमुख तीरथ पर कब्ज़ा करके वहां के दर्शन भी कठिन कर दिए है. मांग करनी चाहिए के इस तीर्थ को तुरंत भारत को वापिस करे.
 समाज को जाग्रत करके केन्द्र सरकार पर दबाव डालकर देश की सीमाओं की रक्षा सुदृढ़ करना।
 सक्रिय एवं जागरूक नागरिक होने के नाते हम चीनी उत्पादों का तत्काल उपयोग बंद करने का दृढ़ संकल्प लेवें तथा अधिकाधिक समाज बन्धुओं को इस हेतु प्रेरित करें।
 केन्द्र सरकार पर दबाव बनाकर भारत में ट्यूरिस्ट वीजा पर रह रहे चीनी कर्मचारियों को देश से बाहर निकालना।
 संवेदनशील क्षेत्रों में दिए जा रहे ठेकों पर रोक लगाने की माँग करना।
 विभिन्न संगठनों द्वारा इस संदर्भ में सरकार पर दबाव डालने के लिए आयोजित धरनों, प्रदर्शनों, गोष्ठियों में सक्रियता से भाग लें।
हम पुनः सावधान हों - चीन आज तिब्बत, हांगकांग, ताईवान जैसे देशों को पूरी तरह निगल चुका है और यदि हम नहीं जागे तो यह दिन हमेंं भी देखने पड़ सकते है।
हम स्वयं जगंे - समाज को जगाएं - देश को बचाएं