Wednesday, May 26, 2021

भारत में नहाने के साबुन की कथा

क्या आपको पता है कि  जिस Hindustan Lever Limited के सौंदर्य प्रशासन आप आज खरीद रहे हो यह ब्रिटेन के दो भाई लीवर ब्रदर्स की कंपनी है जिन्होंने 1898 मैं मेरठ के अंदर पहला कारखाना लगाया था इस कारखाने में नहाने का साबुन बनाया नही गया बल्कि लीवर ब्रदर्स अन्य देशों से साबुन लाकर यहां सप्लाई करते थे, आप यूं कह सकते हो कि भारत में साबुन से नहाने का का प्रयोग 1898 मैं किया था..!
मगर यह साबुन सिर्फ अंग्रेजों को और राजे महाराजाओं को ही दिया जाता था आम जनता को साबुन नहीं दिया जाता, ब्रिटिश सेना में जो हमारे भारतीय सैनिक थे उन्हें हर महीने एक साबुन दिया जाता था.!
भारत के कई बड़े व्यापारी को यह बात अच्छी नहीं लगी उन्हीं में से एक थे रतन टाटा के दादाजी जमशेद जी टाटा उन्होंने इस कंपनी को टक्कर देने के लिए स्वदेशी कंपनी लाने की योजना बनाई जिसके product पर हर भारतीय का अधिकार हो ..।
यही सोचकर उन्होंने मैसूर के शासक कृष्णा राजा वाडियार से मुलाकात की और उनसे कहा कि आप एक स्वदेशी फैक्ट्री लगाएं और एक फैक्ट्री में लगाता हूं साबुन का फार्मूला मैं आपको देता हूं।  तब मैसूर के राजा ने 1916 में बेंगलुरु में मैसूर सैंडल सॉप कंपनी की स्थापना की और पहला स्वदेशी साबुन भारत में बना। मगर उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था इसलिए इसकी बिक्री 1918 में हुई..!
इस साबुन की खासियत है कि इससे अगर एक बार कोई नहाले तो 2 दिन तक इस साबुन की महक उसके शरीर से नहीं जाती है, क्योंकि यह चंदन से बना साबुन है और आज भी ब्रिटेन की महारानी इसी साबुन से नहाती है यह भारत का लग्जरी शाही साबुन है..!
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में त्वचा संबंधी रोग फैला था, इसी को ध्यान में रखकर 1918 में जमशेद टाटा ने केरल में नीम का साबुन बनाया था, उसका नाम बाद में हमाम पड़ा था। जमशेद टाटा ने उस वक्त यह साबुन गरीबों को मुफ्त बांटे थे ताकि वह बीमारी से ठीक हो जाये।
मैसूर सैंडल सॉप और हमाम साबुन उस वक्त भारत में इतने ज्यादा बिके कि लीवर ब्रदर्स कंपनी को उस वक्त लाखों रुपए का नुकसान हुआ था।
तो अंग्रेजों ने लीवर ब्रदर्स को बचाने के लिए इन साबुन पर रोक लगा दी थी, अंग्रेजों का यह प्लान सफल नहीं हुआ इसीलिए अंग्रेजों ने अपनी सेना और उनके परिवारों के लिए लीवर ब्रदर्स के साबुन को अनिवार्य कर दिया..!
लीवर ब्रदर्स के लिए ट्रांसपोर्टेशन महंगा पड़ रहा था इसलिए उसने भी भारत में ही साबुन बनाने का काम शुरू किया। और उसके बाद उसने ब्रिटिश सेना की मदद से अपना प्रचार करवाया और अपने घाटे की भरपाई की। मगर 1931 में भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद फिर से लोग स्वदेशी की तरफ आ गए, और यह दोनों साबुन इतने प्रसिद्ध हुए की भारत से एक्सपोर्ट होने लग गए.!
जमशेद टाटा दूरदर्शी व्यक्ति थे वे भारत को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे इसीलिए उनके चार सपने थे पहला स्टील का कारखाना भारत में लगाना, दूसरा आवागमन के लिए साधन बनाना तीसरा पानी से बिजली बनाना और चौथा होटल बनाना.! मगर जमशेदजी अपनी उम्र में सिर्फ एक सपना ही पूरा कर सके थे वह था होटल बनाना जो मुंबई में आज भी ताज होटल के नाम से विख्यात है.!
यह देश का पहला होटल है जिसमें बिजली थी हर कमरे में पंखे अमेरिका से मंगवा कर लगाए थे.! यह होटल भी जिद की वजह से बनाया था जब जमशेद टाटा विदेश गए थे तो उन्हें होटल में नहीं रुकने दिया गया था क्योंकि वह भारतीय काले इंसान थे और होटल अंग्रेज गौरो का था मजबूरी वश उन्हें विदेश में सड़क पर सोना पड़ा, 12 दिन विदेश में रुकने के बाद भारत आकर उन्होंने सर्वप्रथम होटल बनाया। जमशेद टाटा के बाकी के तीनों सपने उनके बेटे और पोते ने पूरे किए।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रथम विश्व युद्ध में दर्द की कोई गोली नहीं थी जमशेद #टाटा ने चाइना से अफीम मंगवा कर अंग्रेजों को दी थी।
जमशेद टाटा लीगल तरीके से भारत के पहले अफीम आयात करने वाले व्यक्ति बने थे।
इसके बाद इसी अफीम से दर्द निवारक गोलियां बनी और भारत में अफीम पैदा होने लगी, इसका भी श्रेय जमशेद टाटा जी को ही जाता है।
लोग चाहे रामदेव बाबा का मजाक उड़ाए, मगर यह सत्य है कि जमशेद टाटा के बाद विदेशी कंपनियों को टक्कर रामदेव बाबा ने ही दी है।
भारत में पहली कार भी जमशेद टाटा ने ही खरीदी थी।
और भारत में पहला आवागमन का साधन बस और ट्रक टाटा ने ही भारत को दिया है।
जब भी भारत में संकट आता है तब भारत के व्यापारी और भारतीय कंपनियां ही मदद के लिए आगे आती हैं अतः आप सभी से विनती है कि स्वदेशी अपनाएं और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करें।

Monday, May 24, 2021

Corona Vaccination patent free : press statements Hindi, English

स्वदेशी जागरण मंच
 “धर्मक्षेत्र, सेक्टर -8, आर.के.  पुरम, नई दिल्ली
 Ph। 011-26184595, 
वेब: www.swadeshionline.in

 प्रेस विज्ञप्ति
 02-05-2021 


प्रेस विज्ञप्ति

कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है और प्रत्येक दिन नए मामलों की संख्या 4 लाख को पार कर गई है।  विशेष रूप से महामारी की दूसरी लहर का जवाब देने के लिए दवाओं और टीकों समेत विभिन्न चिकित्सा उत्पादों को देश में सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराने की तत्काल आवश्यकता है।  यद्यपि रेमेडिसवीर  और फ़ेविपवीर का स्थानीय उत्पादन हो रहा है, लेकिन समस्या की गंभीरता के कारण बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए उपलब्ध मात्रा अत्यधिक अपर्याप्त है।  एक घातक "साइटोकिन स्टॉर्म" के साथ कोरोना रोगियों के इलाज के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण दवा टोसिलिज़ुमाब है, जिसका भारत में उत्पादन  नहीं होता है।  आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस दवा का आयात अत्यधिक अपर्याप्त है।

  हालांकि रेमेडिसवीर  के लिए कंपनियों ने मूल्य में स्वैच्छिक कमी की है, यह अभी भी बहुत अधिक है और 899 रुपये और 3490 रुपये प्रति शीशी के बीच है।  इस संबंध में रिपोर्ट बताती है कि उचित लाभ सहित रेमेडिसविर की पूर्ण लागत 9 अमरीकी डॉलर  के आसपास है, यानी लगभग 666 रुपये। दूसरी ओर, टोसीलिज़ुमाब की क़ीमत 40000 रुपये प्रति शीशी है।  वर्तमान परिदृश्य के मद्देनज़र आम जनता कॉर्पोरेट लालच के दबाव में पिस रही है, जिस पर किसी भी हालत में पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।
  इस संदर्भ में, स्वदेशी जागरण मंच वैश्विक कॉरपोरेट बिल गेट्स के उस कथन का पुरजोर विरोध करता है, कि वे वैक्सीन फार्मूला, भारत और अन्य देशों के साथ साझा करने के ख़िलाफ़ हैं ।  यह इस सदी की वीभत्स महामारी के समय  में भी कॉर्पोरेट लालच की एक और अभिव्यक्ति है।  इन दवाओं की कीमतों की सीलिंग जैसे उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।  राज्य सरकार की खरीद और निजी अस्पतालों के लिए दोनों कंपनियों द्वारा घोषित वैक्सीन की कीमतें बहुत ज़्यादा हैं और इससे देश में टीकाकरण की गति धीमी हो सकती है। खासकर एक महामारी के दौरान  दवाओं और टीकों में अनैतिक मुनाफ़ा सभी परिस्थितियों में अनुचित है,।

प्रतिस्पर्धा कीमतों को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है।  पेटेंट सुरक्षा इन दवाओं के सामान्य उत्पादन के लिए प्रमुख बाधा है।  हालांकि 7 भारतीय कंपनियां स्वैच्छिक लाइसेंस के तहत रेमेडिसवीर बना रही हैं, लेकिन मांग को पूरा करने के लिए उसके उत्पादन की मात्रा पर्याप्त नहीं है, और कीमत सामर्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत अधिक है।  सरकार को पेटेंट अधिनियम में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का उपयोग करना चाहिए और आने वाले दिनों में और अधिक कंपनियों को अनिवार्य लाइसेन्स के माध्यम से इन दवाओं के उत्पादन की अनुमति देनी चाहिए।

 टीका के मामले में, देश को कम से कम 70% आबादी का टीकाकरण करने के लिए लगभग 195 करोड़ खुराक की आवश्यकता है।  यह दोनों कंपनियों द्वारा अकेले पूरा नहीं किया जा सकता है।  उत्पादन शुरू करने के लिए अधिक विनिर्माण लाने की तत्काल आवश्यकता है।  प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए, सरकार को पेटेंट और व्यापार रहस्य सहित बौद्धिक संपदा बाधाओं को दूर करने के लिए उपाय करने होंगे।

स्वदेशी जागरण मंच देशभक्त नागरिकों का आह्वान करता है कि वे इस कठिन समय में जरूरतमंदों की सेवा करने के साथ-साथ वैश्विक मुनाफाखोरों के खिलाफ आवाज भी उठाएं।

भारत सरकार को वैश्विक इन जन भावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए, सभी चिकित्सा उत्पादों को वैश्विक कल्याण वस्तु घोषित करते हुए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

इस पृष्ठभूमि के मद्देनजर स्वदेशी जागरण मंच भारत सरकार से दृढ़ता से आग्रह करता है कि:

 • स्वदेशी जागरण मंच ने देशभक्त नागरिकों का आह्वान करता है कि वे इन कठिन समय में जरूरतमंदों की सेवा करने के साथ-साथ वैश्विक मुनाफाखोरों के खिलाफ आवाज उठाएं।

भारत सरकार को वैश्विक इन जन भावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए, सभी चिकित्सा उत्पादों को वैश्विक जन वस्तु घोषित करते हुए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

इस पृष्ठभूमि के मद्देनजर स्वदेशी जागरण मंच भारत सरकार से दृढ़ता से आग्रह करता है कि:

 • रेमेडीसविर, फेविरेसीर, टोसीलुजुमाब जैसी दवाओं के उत्पादन और मोलनुपीरविर जैसी नई दवाओं के उत्पादन के लिए या तो सरकार धारा 100 के तहत अनिवार्य लाइसेंस के प्रावधानों का उपयोग करे या धारा 92 के तहत अनिवार्य लाइसेंस जारी करे।

• कोवैक्सीन  और कोविलफील्ड के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सभी संभावित निर्माताओं के लिए व्यापार रहस्य सहित टीकों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा सुनिश्चित की जाए।

 • कुछ कंपनियों के बजाय तकनीकी क्षमताओं के साथ अधिक फार्मा कंपनियों के लिए व्यापक रूप से वैक्सीन उत्पादन लाइसेन्स दिए जाएँ।

 • स्पुतनिक V  वैक्सीन का स्थानीय उत्पादन शुरू करने के लिए नियामक मंजूरी प्रदान की जाए ।

 • उत्पादन लागत आधारित फ़ार्मूले के आधार पर  दवाओं और टीकों की कीमतों पर सीलिंग लगाई जाए।

 • वैश्विक स्तर पर दवाओं और वैक्सीन के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकियों का स्थानांतरण सुनिश्चित हो।

 • वैश्विक स्तर पर सभी प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा की आवश्यकता और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की छूट की माँग को आगे बढ़ाया जाए। इस हेतु जी 7, जी 20 और अन्य समूहों में राजनयिक प्रयासों में तेजी लायी जाए ।
डा. अश्वनी महाजन 
 राष्ट्रीय सह संयोजक
Swadeshi Jagran Manch
“Dharamakshetra, Sector-8, R.K. Puram, New Delhi
Ph. 011-26184595, Web: www.swadeshionline.in

Press Release
Issued on 02-05-2021
 
 The second wave of COVID is sweptwing the country and the number of new cases on each day has crossed 4 lakhs. There is an urgent need for various medical products to effectively respond to the second wave of pandemic especially medicines and vaccines to be made available at affordable prices in the country. Though the local production of Remdesivir and Favirapvir is taking place, the available quantity is highly inadequate to meet the increasing demand due to the severity of the problem. Another important medicine to treat COVID 19 patients with a deadly "cytokine storm" is Tocilizumab, which is not produced in India. The importation of this medicine is highly inadequate to meet the requirements.
 
Though there is a voluntary price reduction for Remdesivir it is still very high and ranges between Rs 899 and Rs 3490 per vial. Reports in this regard state the cost of the full course of Remedsivir including reasonable profit is around USD 9 i.e. around Rs 666. On the other hand, the cost of Tocilizumab is Rs 40000 per vial. Under the present scenario the general public is reeling under the corporate greed, which needs to be curbed at any cost.
In this context, Swadeshi Jagran Manch strongly deplores the statement of global corporate leader, Bill Gates that vaccine formula shouldn’t be shared with India and other countries. This is nothing but yet another manifestation of corporate greed to profit from worst pandemic of the century. There is an urgent need to invoke measures like ceiling of the prices of these medicines. The prices of vaccine announced by both companies for the state government procurement and private hospitals are exorbitant and affect the acceleration of vaccination in the country. Unreasonable profit for medicines and vaccines are unjustifiable in all circumstances, especially in a pandemic.
 
Introduction of the competition is the best way to lowering the prices. Patent protection is the major barrier to the generic production of these medicines. Though 7 Indian companies are making Remdesivir under the voluntary license the quantity is not enough to meet the demand, and the price is very high from the point of view of affordability. Government should use the public health safeguards in the Patents Act and permit more companies to produce these medicines in the coming days .
 
In the case of vaccine, the country needs nearly 195 crores of doses to cover at least 70% of the population. This cannot be fulfilled by the two companies alone. There is an urgent need to bring more manufactures to start the production. To facilitate the technology transfer, Government has to take measures to overcome the intellectual property barriers including patent and trade secret.
 
The government of India should treat all medical products to respond to COVID 19 as a global public good and take the following measures to translate the idea of a global public good into a reality.

Swadeshi Jagran Manch calls upon the patriotic citizens to raise their voice against the global profiteers along with serving the needy in these difficult times.
 
Against this background Swadeshi Jagran Manch strongly urge the Government of India to:
 
• Issue either government use license under Section 100 or compulsory licence under section 92 to scale up production of medicines like Remdesivir, Faviracire, Tociluzumab and new medicines like Molnupiravir.


• Facilitate technology transfer of vaccines including the trade secrets to all potential manufacturers to scale up the production of Covaxin and Covishield.

• License vaccine production widely to more pharma companies with technological capabilities, instead of a few companies.

• Provide the regulatory clearance to start the local production of the Sputnik V vaccine.

• Impose ceiling of prices of COVID19 medicines and vaccines taking into account the cost of production based formula.

• Transfer the technologies for the production of medicines and vaccine globally.

• Articulate the need to waiver of IP and facilitation of technology transfer in all relevant international forums at the global level and accelerate diplomatic efforts at G7, G20 and other groupings.

Dr. Ashwani Mahajan

National Co Convenor
........
2.Proposed Press Release SJM Demands the Revision of the Governments Affidavit in the Supreme Court (Not Released)
 
The Swadeshi Jagran Manch (SJM) express its utmost concern on the Government’s assertions on the issuance of compulsory license on medicines required for the treatment of COVID19 patients. The latest affidavit filed in the Supreme Court states:
 
“ Any exercise of statutory powers either under the patents act 1970 read with Trips agreement and Doha declaration or in any other way can only prove to be counter-productive at this stage, the central government is very actively engaging itself with global organisations at a diplomatic level to find out a solution in the best possible interest of India. It is earnestly urged that any discussion or a mention of exercise of statutory powers either for essential drugs or vaccines having patent issues would have serious, severe and unintended adverse consequences in the countries efforts being made on global platform using all its resources, good-will and good-offices though diplomatic and other channels."
 
This is a completely misplaced concern. Further such assertion ignores the legislative intent behind the public health safeguards in the Patents Act 1970 like the compulsory license or government use. These provisions are incorporated in the Patents Act to check the abuse of patents and to ensure access to patented medicines at an affordable price. It is also quite amusing that India a vocal advocate of the use of TRIPS flexibilities is changing its stance, while the USA, the biggest opponent of  TRIPS flexibilities asking countries to make use of the TRIPS flexibilities to scale up production of COVID 19 medical products.
 
Swadeshi Jagran Manch firmly believes that the need of the hour is to scale-up up the production of both medicine and vaccines to ensure availability and accessibility. The best way to do this is to promote competition in the market for these products. Currently, patents are preventing both availability and affordability of medicines used for COVID19 like Remdesivir and Tocilizumab. The current situation is demanding the invocation of those safeguards. Many countries including Israel, Hungary, Russia etc. have already issued compulsory license to facilitate the generic production of COVID19 medicines.
 
It is an irony that people in India, which take pride as the pharmacy of the developing world, is facing an acute shortage of medicines and vaccines during this pandemic. This shortage is not the result of a lack of technological capacity or the lack of tools but the result of certain vested interest among the bureaucrats and advisors who favours the rent-seeking behaviour of the pharmaceutical companies.  
 
SJM also strongly urge the government to scale up the vaccine production through open licensing and also press the untapped manufacturing facilities existing in the public and private sector. HLL facility in the Chengalpattu District of Tamil Nadu is an example of an unutilised facility existing in the private sector.
 
We call upon the highest political leaders in the government to urgently intervene and reverse the stand taken in the affidavit, which places pharma profit above the peoples’ life. Further, the political leadership should take note of the contradictory stand of the government seeking diplomatic support on the TRIPS Waiver and refusing to use the compulsory licensing to facilitate generic production. This is the time Government should do the walk the talk and set an example to the whole world.  Therefore, SJM demands the issuance of a government use license on all the patented medicine and vaccine technologies by invoking Section 100 of the Indian Patent Act 1970.  We also call for the lifting of the trade secret protection on COVID19 vaccines and press for relevant technology transfer. (Proposed but not released)

2.A
Swadeshi Jagran Manch
“Dharamakshetra, Sector-8, R.K. Puram, New Delhi
Ph. 011-26184595, Web: www.swadeshionline.in
Press Release
Digital Signature Campaign for Universal Access of Vaccine and Medicines
As we are aware that humanity is facing a worst medical crisis these days due to second wave of the Covid19. To deal with the situation, country needs sufficient supply of vaccine, medicines and different types of medical equipments. Swadeshi Jagran Manch firmly believes that many Indian manufacturers have the capacity and expertise in the production of essential medicines and vaccine, provided intellectual property rights hurdles are removed with technology transfer and trade secret issues resolved. Patent protection is the major barrier to the generic production of these medicines. Many Indian companies are already making Remdesivir under the voluntary license, however, the quantity is not sufficient to meet the demand, and the price is also very high from the point of view of affordability. We understand that the government needs to use the public health safeguards in the Patents Act and permit more companies to produce these medicines in the coming days.
As we may be requiring nearly 2 billion doses of vaccine in the next 6 months, we need to involve many more companies in manufacturing of these vaccines. It’s heartening to note that licences have already been issued to many companies for Covaxin and also for remdesivir. We may have to multiply these efforts.
We reiterate our demand for declaring all medical products required to respond to COVID 19 as global public good, and put an end to profiteering to serve the needy in these difficult times.
In order to make it possible to ensure availability of vaccine and essential medicines for Covid 19, Swadeshi Jagran Manch has started a digital signature campaign a requesting the patriotic citizens to sign the petition with the following appeal:
(i) The WTO for granting waiver in the provisions of TRIPS.
(ii) The global pharma companies for voluntarily giving patent free rights including technology transfer, passcodes and raw material to other pharma manufacturers for the sake of humanity.
(iii) The government for taking necessary steps including using its sovereign rights to grant the compulsory license to other pharma manufacturers to produce vaccine and medicines.
(iv) Other concerned individuals and organizations to come forward and facilitate Universal Access to Vaccines and Medicines to fight against Corona.

https://joinswadeshi.com/form2/
(Link to the petition)

Apart from patriotic citizens, Swadeshi Jagran Manch’s activists are also reaching out to the top academicians including vice chancellors, prominent professors; scientists, opinion makers, political personalities, past and present bureaucrats, people in policy making and others separately to sign this petition.
Dr Ashwani Mahajan
National Co Convenor

स्वदेशी जागरण मंच
 “धर्मक्षेत्र, सेक्टर -8, आर.के.  पुरम, नई दिल्ली
 Ph। 011-26184595, 
वेब: www.swadeshionline.in

 प्रेस विज्ञप्ति
 17-05-2021

प्रेस विज्ञप्ति

वैक्सीन और दवाओं की वैश्विक सर्वसुलभता  के लिए डिजिटल हस्ताक्षर अभियान

 जैसा कि हम जानते हैं कि कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण मानवता इन दिनों अभूतपूर्व चिकित्सा संकट का सामना कर रही है।  स्थिति से निपटने के लिए देश को वैक्सीन, दवाओं और विभिन्न प्रकार के चिकित्सा उपकरणों की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता है।  स्वदेशी जागरण मंच का दृढ़ विश्वास है कि कई भारतीय निर्माताओं के पास आवश्यक दवाओं और वैक्सीन के उत्पादन की क्षमता और विशेषज्ञता है, बशर्ते कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और व्यापार रहस्य के मुद्दों को हल करने के साथ बौद्धिक संपदा अधिकार की बाधाएं दूर हों।  पेटेंट संरक्षण इन दवाओं के जेनेरिक उत्पादन में प्रमुख बाधा है।  कई भारतीय कंपनियां पहले से ही रेमडेसिविर को स्वैच्छिक लाइसेंस के तहत बना रही हैं, हालांकि, मात्रा मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, और कीमत भी सामर्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक है।  हम समझते हैं कि सरकार को पेटेंट अधिनियम में निहित जनस्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का उपयोग करने और आने वाले दिनों में अधिक कंपनियों को इन दवाओं के उत्पादन की अनुमति देने की आवश्यकता है।
 चूंकि हमें अगले 6 महीनों में वैक्सीन की लगभग 200 करोड़ खुराक की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए हमें इन टीकों के निर्माण में कई और कंपनियों को शामिल करने की आवश्यकता है।  यह खुशी की बात है कि कोवैक्सिन और रेमडेसिविर के लिए भी कई कंपनियों को लाइसेंस पहले ही जारी किए जा चुके हैं।  हमें इन प्रयासों को आगे बढ़ाना होगा।
 हम कोविड 19 के लिए आवश्यक सभी चिकित्सा उत्पादों को जनता के लिए आवश्यक वस्तु (पब्लिक गुड) घोषित करने की अपनी मांग को दोहराते हैं, और इस कठिन समय में जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए मुनाफाखोरी को समाप्त करने की माँग करते हैं।
 कोविड-19 के लिए टीके और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्वदेशी जागरण मंच ने एक डिजिटल हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है, जिसमें देशभक्त नागरिकों से निम्नलिखित अपील के साथ याचिका पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया गया है:

1. विश्व व्यापार संगठन, बौद्धिक संपदा अधिकार के प्रावधानों में छूट दे।
2. वैश्विक दवा निर्माता और वैक्सीन निर्माता कपनियां स्वेच्छा से, मानवता के लिए, अन्य निर्माताओं को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित पेटेंट मुक्त अधिकार दें।
3. सरकार अन्य दवा निर्माताओं (वैक्सीन व दवाईयां) को अनिवार्य लाइसेंस देने के लिए अपने संप्रभु अधिकारों का उपयोग करने सहित आवश्यक कदम उठाये।
4. कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए  एवं वैक्सीन और दवाओं की वैश्विक उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, सभी  संबंधित व्यक्ति और संगठन बढ़-चढ़कर आगे आएँ ।

 https://joinswadeshi.com/form2/
 (याचिका का लिंक)

 देशभक्त नागरिकों के अलावा, स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ता इस याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए कुलपति, प्रमुख प्रोफेसरों सहित शीर्ष शिक्षाविदों;  वैज्ञानिकों, जनता में राय बनाने वाले लोगों, राजनीतिक हस्तियों, अतीत और वर्तमान नौकरशाहों, नीति बनाने वाले अन्य लोगों तक पहुंच बना रहे हैं।
 डॉ अश्विनी महाजन
 राष्ट्रीय सह संयोजक
......
3. New Delhi
20th May 2021
 
To
Mr. Ugo Astuto,
Hon’ble Ambassador
Delegation of the European Union to India and Bhutan
5/5, Shantiniketan, New Delhi - 110 021, INDIA
 
SUB: TRIPS Waiver Proposal 
Dear Ambassdor Astuto,
The Swadeshi Jagran Manch (SJM) is writing to draw your attention to the European Union’s (EU’s) reluctance to support a text-based negotiation of TRIPS Waiver proposal to suspend certain intellectual property (IP) for the COVID19 medical products.  

As you are aware that in view of the COVID-19, a worst pandemic faced by the humanity, India along  with South Africa has proposed in October 2020 in WTO and urged WTO to grant a waiver for limited years (which will be negotiated by the TRIPS Council) from the implementation, application and enforcement of specific provisions of the TRIPS agreement for the prevention, containment and treatment of COVID-19.

After the announcement of the USTR on 5th May to support the text-based negotiations on the waiver proposal many countries came forward to support the negotiation. However, the announcement of the EU is not clear in its support to the text-based negotiation. Further, the EU attempted to limit it to the scope of the TRIPS Waiver to only to the vaccine patents. As you know the international human rights obligation also includes an obligation to desist from taking measures that result in the infringement of human rights in other countries. These attempts to support the monopoly in COVID 19 medical products goes against the concept of solidarity and even violate the right to health guaranteed under Article 12 of the International Covenant on Economic Social and Cultural Rights (ICESCR).
 
We would like to state that the best option before the whole world is to scale up the production of various COVID19 medical products by removing the legal barrier against the freedom of operation. The approach of charity i.e. donating vaccines and other medical products is not a sustainable strategy. Further such an approach has also failed so far to effectively addressing the problem. This kind of approach is likely to lead to continuation of monopoly by a few companies over Covid19 medical products; and it will only accentuate the miseries of the people, as the same is likely to cause shortages and unaffordable treatment, which India and world has gone through in recent months.
 
Against this background, we request the European Union to unconditionally support the TRIPS Waiver Proposal and constructively engage in the text-based negotiation to conclude the negotiation at the earliest without compromising the purposes and objectives behind the proposal. 
 
Looking forward to your reply
 
With regards
 
CC
Embassies of all EU Member States
स्वदेशी जागरण मंच
 “धर्मक्षेत्र, सेक्टर -8, आर.के.  पुरम, नई दिल्ली
 Ph। 011-26184595, 
वेब: www.swadeshionline.in

सेवा
 श्री उगो अस्तुतो,
 माननीय राजदूत
 भारत और भूटान को यूरोपीय संघ का प्रतिनिधिमंडल
 5/5, शांतिनिकेतन, नई दिल्ली - 110 021, भारत

 विषय: ट्रिप्स छूट प्रस्ताव

 प्रिय राजदूत अस्तुतो,

 स्वदेशी जागरण मंच यह पत्र कोविड-19 चिकित्सा उत्पादों के लिए कुछ बौद्धिक संपदा (IP) को निलंबित करने के ट्रिप्स (TRIPS) छूट प्रस्ताव की दस्तावेज-आधारित बातचीत का समर्थन करने के लिए यूरोपीय संघ की अनिच्छा की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए लिख रहा है।

 जैसा कि आप जानते हैं कि कोविड-19, मानवता के सामने सबसे भयानक महामारी के मद्देनजर, भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर अक्टूबर 2020 में डब्ल्यूटीओ में प्रस्ताव रखा है और डब्ल्यूटीओ की ट्रिप्स काउंसिल, से सीमित वर्षों (जिस पर बातचीत की जाएगी) के लिए कोविड-19 की रोकथाम और उपचार के लिए ट्रिप्स समझौते के विशिष्ट प्रावधानों के कार्यान्वयन, आवेदन और प्रवर्तन से छूट देने का आग्रह किया है।

जैसा कि आप जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्व में ऐसे उपाय करने से बचने का दायित्व भी शामिल है जिसके परिणामस्वरूप अन्य देशों में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।  दस्तावेज़ आधारित वार्ता को अवरुद्ध करने का प्रयास कोविड-19 चिकित्सा उत्पादों के एकाधिकार के  लिए एक अप्रत्यक्ष समर्थन है जो एकजुटता की अवधारणा के खिलाफ जाता है। और यहां तक ​​कि यह आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (ICESCR) के अनुच्छेद 12 के तहत गारंटीकृत स्वास्थ्य के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।

 हम यह बताना चाहेंगे कि हमारे सामने सबसे अच्छा विकल्प,ऑपरेशन की स्वतंत्रता के खिलाफ कानूनी बाधा को हटाकर,  विभिन्न कोविड19 चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन को बढ़ाना है।  ‘दान’ का दृष्टिकोण यानी टीके और अन्य चिकित्सा उत्पादों का ‘दान’ करना एक स्थायी रणनीति नहीं हो सकती है।  इसके अलावा इस तरह का दृष्टिकोण भी अब तक समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने में विफल रहा है।  इस तरह के दृष्टिकोण से कुछ कंपनियों द्वारा कोविड-19 चिकित्सा उत्पादों पर एकाधिकार जारी रखने की संभावना है;  और यह केवल लोगों के दुखों को बढ़ाएगा, जिसे भारत और दुनिया ने हाल के महीनों में झेला है, क्योंकि इससे चिकित्सा उत्पादों की कमी बनी रहेगी और उपचार वहनीय नहीं हो सकेगा।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेटेंट ही एकमात्र बाधा नहीं है; टीकों, दवाओं आदि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यापार रहस्य तक पहुंच भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, यूरोपीय संघ ने प्रस्तावित कोविड-19 वैक्सीन के वास्तविक मुद्दे को संबोधित करने के बजाय, पेटेंट पूल  के विषय को लाकर मुद्दे को भटकाने की रणनीति अपनायी है।  इस अभूतपूर्व अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट पर लोगों के स्वास्थ्य को लाभ से ऊपर रखना महत्वपूर्ण है।

 इस पृष्ठभूमि के साथ, हम आपसे अनुरोध करते हैं कि ट्रिप्स छूट प्रस्ताव का बिना शर्त समर्थन करें और प्रस्ताव के उद्देश्यों और मूल भावना से समझौता किए बिना बातचीत को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए दस्तावेज-आधारित बातचीत में रचनात्मक रूप से शामिल हों।

 आपके उत्तर की प्रतीक्षा में।

 सस्नेह

डॉ अश्विनी महाजन
 राष्ट्रीय सह संयोजक

 सीसी
 सभी यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के दूतावास

Saturday, May 22, 2021

Patent war: One Dollar a Day

PATENT WARS
How an Indian tycoon fought Big Pharma to sell AIDS drugs for $1 a day

REUTERS/VIVEK PRAKASH
A pill for everyone.
By Katherine Eban
July 15, 2019
Dr. Yusuf Hamied of Cipla was a prolific reader of medical journals, with an annual subscription budget that topped $150,000 (Rs1 crore at current rates).

One day in 1986, he was introduced to something he knew nothing about. A colleague mentioned, “According to the Tufts report, AZT is the only drug available for AIDS.” “What is AIDS?” Hamied responded.

At the time of Hamied’s question, the disease had barely surfaced in most of India. But it was brewing so forcefully in Bombay’s red-light district, not far from Cipla’s headquarters, that within a few years the city would earn the moniker “AIDS capital of India.”

In 1991, Rama Rao, the research head of an Indian government laboratory, told Hamied that he had developed a chemical synthesis of AZT, or azidothymidine, and wanted Cipla to manufacture it.

It was the only drug that postponed the onset of AIDS. But just one company, Burroughs Wellcome in the United States, made it, and it was selling the drug at roughly $8,000 per patient a year. Hamied readily agreed to manufacture it and launched the drug in 1993 at less than one-tenth of the international price, or about $2 a day.

Even that was well beyond what most Indians could afford. “Our sales were zero,” Hamied recalled. At that point, Hamied asked the government if it could purchase and distribute the drug. But the Indian government refused: it had money only for detection and prevention, not treatment. In total disgust, Hamied ended up discarding 200,000 capsules.

A few years later, he read in a medical journal that a cocktail of three drugs called HAART (highly active anti-retroviral therapy) was effective in controlling AIDS. The three drugs in question—stavudine, lamivudine, and nevirapine—were made by three different multinational drug companies.

The combined price for a single patient reached $12,000 a year. Hamied immediately set out to make the drugs in the cocktail.

In 1997, under the leadership of Nelson Mandela, South Africa altered its law to make it easier to sidestep pharmaceutical patents and import low-cost medicine.

The new law sparked a furious reaction from Big Pharma. Fearing a domino effect, thirty-nine international brand-name drug companies, with the support of the US government, sued South Africa, claiming that the new health law violated an international trade agreement called TRIPS (Trade-related Aspects of Intellectual Property Rights).

It was a deadly global stalemate. As drug companies skirmished over intellectual property, 24 million people got sicker, with no foreseeable access to the affordable medicine they so desperately needed.

As drug companies skirmished over intellectual property, 24 million people got sicker.
On Aug. 8, 2000, Hamied got a call from an activist in the United States whom he had never met. “Me and some of my colleagues would like to come see you,” said the man on the phone. It was William F Haddad, a former investigative journalist who had campaigned so vigorously for the Hatch-Waxman Act, the law that launched the US generic drug industry.

The colleagues Haddad referred to were a motley group of activists who had banded together in pursuit of a single objective—to find a way to get affordable AIDS medicine to those who needed it most, free from the stranglehold of patents.

An extraordinary alliance
Four days after contacting Hamied, Bill Haddad, Jamie Love (an intellectual- property activist), and three others, including a French doctor with the group Doctors Without Borders, arrived at the elegant London duplex where Hamied sat out the brutal Indian summer.

He led them up the stairs to a glass dining table. They asked him: how low could he price the AIDS cocktail, and how much of it could he make? As they spoke, Hamied scrawled calculations with a pencil and paper. He concluded that he could cut his price by more than half, to about $800 a year.

The men talked into the night, and the group vowed that they would support Hamied in the inevitable battles with the multinational drug companies that lay ahead.

Together, an Indian drug maker and international activists had forged an extraordinary alliance, pledging to upend the established global commercial and pharmaceutical order in order to save millions of lives.

About a month later, in part through their efforts, Hamied received an invitation to speak at the European Commission’s conference in Brussels on HIV/AIDS, malaria, tuberculosis, and poverty reduction. On Sept. 28, 2000, he took to the podium and looked out over the gathering of staid, sceptical, and white, Europeans, who included health ministers, ex–prime ministers, and representatives of multinational drug companies.

“Friends,” he told the unfriendly group, “I represent the needs and aspirations of the third world.” He then proceeded to unveil three offers: he would sell the AIDS cocktail for $800 a year ($600 to governments buying in bulk); give the technology to make the drugs free to any African government willing to produce its own drugs; and provide nevirapine, the drug that limited transmission of the disease from mother to child, for free.

He closed with a challenge: “We call upon the participants of this conference to do what their conscience dictates.”

No one took him up on his proposal. The global pharmaceutical marketplace was intersected by patents and trade agreements, which precluded many countries from reaching out for cheap medicine.

But the other problem was credibility.

Much of the world viewed Indian generics as poor-quality knockoffs, a perception that Hamied had laboured against for years.

He decided then that he could not simply wait for governments to take him up on the offer he’d made in Brussels. Just as he was pondering his next steps, the way forward presented itself.

William Haddad called Hamied back, this time with a specific question. Would Cipla be able to offer the AIDS cocktail for $1 a day? After some back-of-the-envelope calculations, Hamied agreed. He would offer the price exclusively to Doctors Without Borders. It was a number low enough to be world-changing.

On Feb. 6, 2001, at around midnight, Hamied was at a dinner party in Mumbai when his cell phone rang. The caller was the New York Times reporter Donald McNeil. “Dr. Hamied, is it true you offered $1 a day (to Doctors Without Borders)?” McNeil asked him.

Once Hamied confirmed this, McNeil laughed aloud: “Dr. Hamied, your life will not be the same from tomorrow.” McNeil’s story was published the next morning on the front page of the Times.

Fighting the giants
According to the article, Cipla was offering to sell the AIDS cocktail for $350 a year per patient, or roughly $1 a day, as compared to Western prices of between $10,000 and $15,000 a year, but was being blocked by the multinational drug makers that held the patents, who were being backed by the Bush administration.

News of Big Pharma’s patent protection efforts in the face of the global pandemic and the Bush administration’s support of them sparked international outrage and stoked street protests from Philadelphia to Pretoria, even accusations of genocide.

The result was a PR debacle for Big Pharma. Even among the industry’s lowest moments, its stance in South Africa seemed uniquely horrible.

As GlaxoSmithKline’s CEO Jean-Pierre Garnier declared of Cipla and the Indian generics companies at a 2001 health care forum, “They are pirates. That’s about what they are. They have never done a day of research in their lives.”

Some in Big Pharma accused Hamied of trying to grab market share in Africa, to which he responded: “I am accused of having an ulterior motive. Of course I have an ulterior motive: before I die, I want to do some good.”

Hamied and the activists prevailed. The following month, the multinational drug companies announced that they would drop their lawsuit in South Africa and waive their patents so that generic fixed-dose combinations of the AIDS cocktail could be sold cheaply in Africa.

However, it was the $1 a day figure that changed the calculus of the West—from “we can’t afford to help,” to “we can’t afford not to.”

Sunday, May 16, 2021

कोविड उपचार एवं उन्मूलनः वैश्विक एकजुटता अनिवार्य प्रोफेसर भगवती प्रकाश

कोविड उपचार एवं उन्मूलनः वैश्विक एकजुटता अनिवार्य प्रोफेसर भगवती प्रकाश
विष्व के कोरोना संक्रमित लोगों के उपचार एवं इस महामारी के उन्मूलन के लिए कोविड-19 की औषधियों व टीकों की सर्व-सुलभता आवष्यक है। इस हेतु इनका पेटेंट मुक्त होना और इनके उत्पादन की प्रौद्योगिकी का हस्तान्तरण व उसके लिए इनके कच्चे की अबाधिक पूत्र्ति अनिवार्य है। इन औषधियों व टीकों को पेटेंट मुक्त किये जाने के लिए विष्व व्यापर संगठन में भारत व दक्षिण अफ्रीका ने अक्टूबर 2020 में ही प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया था। छः माह तक 10 बैठकों में प्रतिरोध के उपरान्त जन दबाव के आगे झुकते हुए अमेरिका व अधिकांष औद्योगिक देषों ने टीकों को पेटेंट मुक्त करने के प्रस्ताव का 5 मई को विष्व व्यापार संगठन की जनरल काउन्सिल में समर्थन दिया। अब यह प्रस्ताव ट्रिप्स काउन्सिल की 8-9 जून की बैठक में जाएगा। उसके उपरान्त मन्त्री स्तरीय बैठक से अनुमोदन भी अपेक्षित होगा। तब भी केवल टीकों की पेटेंट मुक्ति ही सम्भव हो सकेगी। इनके उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी का हस्तान्तरण भी आवष्यक होगा। जीने का अधिकार सर्वोपरिः
विष्व में 16 करोड़ व भारत में 2.5 करोड़ संक्रमित रोगी जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे हैं और प्रतिदिन बड़ी संख्या में संक्रमित रोगी मर रहे हैं। इसका प्रमुख कारण इस रोग के उपचार की औषधियों व रोकथाम के टीकों पर इनकी पेटेंट धारक कम्पनियों के एकाधिकारवष इनकी आपूत्र्ति अपर्याप्त व मूल्य बहुत ऊंचे है। इन पर पेटेंट समाप्ति के बाद भी अन्य उत्पादकों द्वारा इनका उत्पादन अविलम्ब आरम्भ करने के लिए पेटेंटधारी कम्पनियों द्वारा इनके उत्पादन की प्रौद्योगिकी का हस्तान्तरण व इनकी उत्पादन सामग्री की पूत्र्ति भी आवष्यक है।
व्यक्ति का जीने का अधिकार ‘‘सार्वभौम अधिकार’’ है और भारतीय संविधान के अन्तर्गत ‘‘जीवन का मौलिक’’ अधिकार है। इस दृष्टि से कोरोना की औषधियों व टीकों की सर्वसुलभता परम-आवष्यक है। इस हेतु इन औषधियों व टीकों के उत्पादन हेतु अनिवार्य अनुज्ञापन, इनकी पेटेंट मुक्ति, उत्पादन सामग्री की पूत्र्ति एवं प्रौद्योगिकी के हस्तान्तरण सुनिष्चित किए जाने जैसे सभी उपाय आवष्यक है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि इजरायल ने अपनी 87 लाख में से अधिकांष वयस्क जनसंख्या की टीकाकरण कर इस महामारी को नियंत्रित कर लिया है। अब वहाँ मास्क लगाये रखने की आवष्यकता भी नहीं रह गई है।
प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण की विधिसम्मत अनिवार्यताः
विष्व व्यापार संगठन के 1995 के ‘‘बौद्धिक सम्पदा अधिकारों पर हुए समझौते’’ जिसे ‘‘एग्रीमेण्ट आन ट्रेड रिलेटेड इण्टेलेक्चुअल राइट्स’’ या ‘ट्रिप्स समझौता’ कहा जाता है में उसकी धारा 7 में प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण का वैधानिक प्रावधान है। इसलिए औद्योगिक देषों को प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण करवाने के इस धारा 7 के दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। वैसे पेटेण्ट मुक्ति का यह निर्णय टीकों के सन्दर्भ में ही हुआ है। कोरोना की चिकित्सा की औषधियों के उत्पादन को पेटेंट मुक्त नही किए जाने से पेटेण्टधारक से इतर उत्पादकों को इन औषधियों के उत्पादन के लिए ‘अनिवार्य अनुज्ञापन’ (कम्पल्सरी लाइसेसिंग) के माध्यम से ही अधिकृत करना होगा। भारत के पेटेंट अधिनियम की धारा 84,92 व 100 में अनिवार्य अनुज्ञापन के प्रवधान हैं। 
अनिवार्य अनुज्ञापनः पेटेंटधारकों के शोषण पर अंकुशः
यकृत व गुर्दे के कैंसर की जर्मन कंपनी ‘बायर’ का ‘नेक्सावर’ नामक इंजेक्शन 2,80,000 रूपये का आता था। उसे मात्र 8,8,00 रु. में बेचने का प्रस्ताव कर एक भारतीय कंपनी ‘नाट्को’ ने भारत के मुख्य पेटेंट नियंत्रक को आवेदन लाइसेंस प्राप्त कर लिया। आज नेक्सावर भारत के बाहर 2,80,000 रु. में मिलता है, वहीं भारत में यह उसकी मात्र तीन प्रतिशत कीमत पर मिल जाता है। दुर्भाग्य से इस अनिवार्य अनुज्ञा पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर यूरो-अमेरिकी देशों का इतना दबाव आया कि उन नियंत्रक को पद छोड़ना पड़ गया। अभी यह भी गर्व का विषय है कि भारतीय कंपनी ‘नाट्को’ फार्मा ने पुनः अमेरिकी कंपनी ‘एली लिलि’ की कोरोना की औषधि ‘बेरिसिटिनिब’ के समानांतर उत्पादन हेतु अनिवार्य अनुज्ञापन के लिए आवेदन कर दिया है। आशा है शीघ्र ही कोरोना की शेष औषधियों के उत्पादन के लिए कई कंपनियां अनिवार्य अनुज्ञापन के लिए आगे आएंगी।
पेटेण्टधारको के शोषण के विरुद्ध पिछला संघर्षः
नब्बे के दशक में यूरो-अमेरिकी कंपनियां एड्स की औषधियों की कीमत इतनी लेती थीं कि भारत से बाहर एक रोगी की वार्षिक चिकित्सा लागत 15,000 डॉलर यानी 10,00,000 रुपये से अधिक आती थी। चूंकि 1995 के पहले भारत में ‘प्रोडक्ट पेटेंट’ न होकर, केवल ‘प्रक्रिया पेटेंट’ ही होता था। इसलिए कई भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय पेटेंटधारक की उत्पादन प्रक्रिया से भिन्न प्रक्रिया का विकास कर इन्हें बनाती व इतनी कम लागत पर बेचती थीं कि व्यक्ति की चिकित्सा लागत 350-450 डॉलर ही आती थी। इसलिए दक्षिणी अफ्रीका व ब्राजील ने भारत से इन औषधियों के आयात हेतु अनिवार्य अनुज्ञापन के कानून बना लिए। तब अमेरिकी कंपनियों के एक समूह ने दक्षिण अफ्रीकी कानून को ट्रिप्स विरोधी बता कर दक्षिण अफ्रीकी सर्वाेच्च न्यायालय में व अमेरिकी सरकार ने ब्राजील के कानून को डब्ल्यूटीओ के विवाद निवारण तंत्र में चुनौती दे डाली। इस पर दक्षिणी अफ्रीका में अमेरिकी दूतावास के सम्मुख सड़कों पर ऐसा उग्र प्रदर्शन हुआ कि अमेरिकी कंपनियों ने सर्वाेच्च न्यायालय से व अमेरिकी सरकार ने डब्ल्यूटीओ के विवाद निवारण तंत्र से वे मुकदमे वापस ले लिए। 
इसके बाद 2001 के विष्व व्यापार संगठन के दोहा के मंत्री स्तरीय सम्मेलन के पहले दिन ही सभी विकासशील देशों ने इतने उग्र तेवर दिखाए कि गैर विश्व व्यापार संगठन के पांच दशक के इतिहास में पहली बार सम्मेलन के पहले दिन ही औषधियों के उत्पादन के लिए अनिवार्य अनुज्ञापन का प्रस्ताव पारित करना पड़ा। इस प्रस्ताव के आधार पर ही भारत के पेटेंट कानून में 2005 में अनिवार्य अनुज्ञापन का प्रावधान धारा 84, 92 व 100 के माध्यम से जोड़ना संभव हुआ। इसी अनिवार्य अनुज्ञापन से ‘नेक्सावर’ इंजेक्शन का भारत में उत्पादन और तीन प्रतिशत कीमत अर्थात 8,800 रु. में बेचना संभव हुआ। इसी प्रावधान के अधीन नाट्को फार्मा ने कोरोना की औषधि ‘बेरिसिटिनिब’ के अनिवार्य अनुज्ञापन हेतु आवेदन किया है और शेष औषधियों की भी सर्व सुलभता के लिए भारतीय कंपनियां अनिवार्य अनुज्ञापन हेतु आवेदन की तैयारी में हैं।
रक्त कैन्सर की जेनेरिक औषधिः भारतीय कीर्तिमान!
1995 के पूर्व के भारतीय पेटेंट अधिनियम के अंतर्गत 1 जनवरी, 1995 के पहले आविष्कृत किसी भी औषधि के पेटेंटधारक के नाम पेटेंट से रक्षित प्रक्रिया को छोड़कर स्व अनुसंधान से विकसित प्रक्रिया से दवा उत्पादन की स्वतंत्रता थी। ट्रिप्स समझौते के कारण ही भारत को यह नियम बदल कर ‘प्रोडक्ट पेटेंट’ का नियम लागू करना पड़ा था, जिससे 1995 के बाद में आविष्कृत औषधियों के उत्पादन का वह अधिकार भारतीय कंपनियों से छिन गया। इसीलिए 1995 के पहले की हजारों औषधियां भारत में अत्यंत अल्प मूल्य पर सुलभ हैं। इन्हीं के मूल्य भारत को छोड़कर शेष देशों में 10 से 60 गुने तक हैं। रक्त कैंसर की ‘ग्लिवेक’ नामक 1994 में आविष्कृत औषधि स्विस कंपनी नोवार्टिस 1200 रु. प्रति टेबलेट बेचती थी। इसे भारतीय कंपनियों ने अपनी वैकल्पिक विधियों से उत्पादित कर मात्र 90 रु. में बेचना प्रारंभ कर दिया। आज विष्व के 40 प्रतिशत रक्त कैंसर के रोगी इस औषधि को भारत से आयात करते हैं। इस ‘ग्लिवेक’ के 1994 के मूल रसायन ‘इमेंटीनिब’ का एक ‘डेरिटवेटिव’ विकसित कर 1998 में एक और पेटेंट आवेदन कर दिया। लेकिन भारत ने मूल पेटेंट में मामूली परिवर्तन से पेटेंटों की अवधि पूरी होने पर भी उसके दुरुपयाग को रोकने हेतु पेटेंट अधिनियम की धारा 3 डी में ‘इन्क्रीमेंटल’ अनुसंधानों को पेटेंट योग्य नहीं माना। यह विवाद सर्वाेच्च न्यायालय तक गया पर नोवार्टिस कंपनी हार गई और आज विष्व के रक्त कैंसर के रोगी 1200 रु. के स्थान पर 90 रु. प्रति टेबलेट की दर पर इसे क्रय कर पा रहे हैं।
ट्रिप्स आधारित पेटेंट व्यवस्था अमानवीय
ट्रिप्स आधारित वर्तमान पेटेंट व्यवस्था सर्वथा न्याय विरुद्ध और अमानवीय है। किसी भी आविष्कार के प्रथम आविष्कारक को संपूर्ण विष्व की 740 करोड़ जनसंख्या के विरुद्ध 20 वर्ष के लिए यह एकाधिकार प्रदान कर देना कि वह आविष्कारक इस आविष्कार या औषधि की कुछ भी कीमत ले, यह ठीक नहीं है। इसमें प्रथम आविष्कारक के बाद स्व अनुसंधान से या प्रथम आविष्कारक से तकनीक प्राप्त कर किसी उत्तरवर्ती उत्पादक द्वारा उस औषधि को अत्यंत अल्प कीमत पर आपूर्ति करने की दशा में सभी उत्तरवर्ती उत्पादकों से 5-15 प्रतिशत तक रॉयल्टी भुगतान का प्रावधान किया जा सकता है। वह रॉयल्टी भी तब तक दिलाई जा सकती है जब तक कि उस आविष्कारक को अपनी लागत की दुगुनी या तिगुनी कीमत न प्राप्त हो जाए। लेकिन किसी प्रथम उत्पादक को संपूर्ण विष्व के विरुद्ध ऐसा एकाधिकार देकर पूरे विष्व के असीम शोषण की छूट देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। विशेषकर जब उसी उत्पाद या औषधि को विष्व में सैकड़ों उत्पादक व अनुसंधानकर्ता मात्र 1-3 प्रतिशत मूल्य या उससे भी कम में सुलभ करा सकें। सिप्रोफ्लोक्सासिन पर बायर कम्पनी की पेटेंट की अवधि समाप्ति के पहले जब वह कम्पनी विष्व भर में एक आधे ग्राम की टेबलेट के 150-300 रू. तक लेती रही है। भारत में तब प्रोडक्ट पेटेंट का नियम न हो कर प्रोसेस पेटेंट का मानवोचित पेटेंट प्रावधान होने से 90 थोक दवा उत्पादक उसे 900 रू. किलो बेचते थे। उनसे सैकड़ो कम्पनियाँ उसे क्रय कर रू0 3-8 में वही आधा ग्राम (500 मिली ग्राम) की टेबलेट बेच लेती थीं। यही स्थिति 1995 के पहले की अधिकांष औषधियों के सम्बन्ध मे थी। 
निष्कर्षः
कोविड-19 के टीकों व औषधियों के पेटेंट मुक्त होने पर भी इनकी उत्पादन प्रौद्योगिकी व सामग्री की सुलभता परम-आवष्यक है। अन्यथा भारत और विष्व में इनके उत्पादन में तत्पर कम्पनियों को स्व अनुसन्धान से इनके उत्पादन की प्रौद्योगिकी विकसित करनी होगी। इसमें विलम्ब होगा। ऐसी स्थिति में भारतीय व अन्य औषधि उत्पादकों को अनिवार्य अनुज्ञापन के माध्यम से ही आगे बढ़ना होगा। इस हेतु भारत में आवेदन पर तत्काल अनिवार्य अनुज्ञापन की पद्धति लागू की जा सकती है या आवेदन पर स्वतः अनिवार्य अनुज्ञापन की भी पद्धति अपनाई जाने की भी पूरी सम्भावना है। 
इसके साथ ही टीकों व कोरोना की सभी औषधियों के द्रुत उत्पादन के लिए सभी पेटेंटधारकों को विष्व भर में स्वेच्छिक अनुज्ञाएँ स्वीकृत कर प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण हेतु प्रेरित या बाध्य किया जाना भी आवष्यक है। इसके लिए आवष्यक जनदबाव एवं विष्व व्यापार संगठन में भी एक अतिरिक्त प्रस्ताव लाना आवष्यक है। इसके साथ ही इन कम्पनियों पर इस हेतु प्रभावी जनदबाव भी अति आवष्यक है।

क्या कांग्रेस बैंक बनाती है और मोदी उसे बेचता है?

■ ज्ञानेश पाठक :
एक कितना शानदार #झूठ


 फैला दिया जाता है कि कांग्रेस सरकारी बैंक बनाती है और मोदी सरकार उसे बेच देती है और काफी सारे लोग उस झूठ पर यकीन भी कर लेते हैं।■ 
आईसीसी
*आज जो निजी क्षेत्र के 3 सबसे बड़े बैंक हैं यानी ICICI बैंक  एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक यह तीनों कभी सरकारी हुआ करते थे लेकिन पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने इन्हें बेच दिया*

आई सी आई सी का पूरा नाम इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया था ..यह भारत सरकार की ऐसी संस्था थी जो बड़े उद्योगों को लोन देती थी लेकिन एक झटके में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने इसका डिसइनवेस्टमेंट करके इसे प्राइवेट बना दिया और इसका नाम और आईसीआईसीआई बैंक हो गया 

आज जो एचडीएफसी बैंक है उसका पूरा नाम हाउसिंग डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया था यह भारत सरकार की एक ऐसी संस्था हुआ करती थी जो मध्यम वर्ग के लोगों को सस्ते ब्याज पर होम लोन देने का काम करती थी

 नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने कहा सरकार का काम सिर्फ गवर्नेंस करना है होम लोन बेचना नही है 

 मनमोहन सिंह  इसे जरूरी कदम बताते हैं और कहते हैं सरकार का काम सिर्फ सरकार चलाना है बैंक चलाना लोन देना नहीं 

और एक झटके में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने एचडीएफसी बैंक को बेच दिया और यह निजी क्षेत्र का बैंक बन गया 

इसी तरह की बेहद दिलचस्प कहानी एक्सिस बैंक की है 

भारत सरकार की एक संस्था हुआ करती थी उसका नाम था यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया यह संस्था लघु बचत को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी यानी आप इसमें छोटे-छोटे रकम जमा कर सकते थे मनमोहन सरकार नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा की सरकार का काम चिटफंड की स्कीम चलाना नहीं है और एक झटके में इसे बेच दिया गया पहले इसका नाम यूटीआई बैंक हुआ और बाद में इसका नाम एक्सिस बैंक हो गया

इसी तरह आज आईडीबीआई बैंक है जो एक प्राइवेट बैंक है एक समय में यह भारत सरकार की संस्था हुआ करती थी जिसका नाम था इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया इसका भी काम उद्योगों को लोन देना था लेकिन मनमोहन सिंह ने इसे भी बेच दिया और आज यह निजी बैंक बन गया

अपनी यादाश्त को कमजोर न होने दो कभी

 डिसइनवेस्टमेंट पॉलिसी को भारत में कौन लाया था जरा सर्च कर लो जब *नरसिंम्ह राव के समय में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे जब मनमोहन सिंह ने संसद में कहा था मैक्सिमम गवर्नमेंट लेस गवर्नेंस उन्होंने कहा था कि सरकार का काम धंधा करना नहीं सरकार का काम गवर्नेंस देना है* ऐसा माहौल देना है कि लोग यह सब काम करें.

मनमोहन सिंह ने ही *सबसे पहले टोल टैक्स पॉलिसी लाई थी* यानी निजी कंपनियों द्वारा सड़क बनाओ और उन कंपनियों को टोल टैक्स वसूलने  का परमिशन दो.

मनमोहन सिंह ने *सबसे पहले एयरपोर्ट की निजी करण* की शुरुआत की थी और सबसे पहला दिल्ली का *इंदिरा गांधी एयरपोर्ट को जीएमआर ग्रुप को* दिया गया.
आज चम्पक उछल उछल कर नाच नाच कर बेसुर रागा गाता फिर रहा है, "मोदी ने दोस्तो को बेच दिया..

*मनमोहन सिंह करें तो - विनिवेश*

*मोदी करें तो - देश को बेचा .. !!!*

 *2009-10 में मनमोहन सिंह ने 5 कंपनियां बेचीं*-

 NHPC Ltd.-
 OIL - ऑयल इंडिया लिमिटेड
 एनटीपीसी - नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन
 आरईसी - ग्रामीण विद्युतीकरण निगम
 एनएमडीसी - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम

 *2010-11 में, मनमोहन सिंह ने 6 कंपनियाँ बेचीं!*

 एसजेवीएन - सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड
 ईआईएल - इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड
 CIL - कोल इंडिया लिमिटेड
 पीजीसीआईएल - पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
 MOIL - मैंगनीज अयस्क इंडिया लिमिटेड
 एससीआई - शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया।

*2011-12 में मनमोहन सिंह ने 2 कंपनियाँ बेचीं*

 पीएफसी - पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन।
 ओएनजीसी - तेल और प्राकृतिक गैस निगम

*2012-13 में, मनमोहन सिंह ने बेचीं 8 कंपनियां-*

 सेल - भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड
 नाल्को - नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड
 आरसीएफ - राष्ट्रीय रसायन और उर्वरक
 एनटीपीसी - नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन
 OIL - ऑयल इंडिया लिमिटेड
 एनएमडीसी - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम
 HCL - हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड
 एनबीसीसी

👉 *2013-14 में मनमोहन सिंह ने 12 कंपनियां बेचीं*-

 एनएचपीसी - नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन
 भेल - भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड
 ईआईएल - इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड
 एनएमडीसी - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम
 सीपीएसई - सीपीएसई-एक्सचेंज ट्रेडेड फंड
 PGCI - पावर ग्रिड कॉर्पोफ़ इंडिया लि।
 एनएफएल - राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटेड
 MMTC - धातु और खनिज व्यापार निगम
 HCL - हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड
 आईटीडीसी - भारतीय पर्यटन विकास निगम
 एसटीसी - स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन
 एनएलसी - नेयली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड

  *इन सभी का प्रमाण भी है...* 

 1.) वित्त मंत्रालय, केंद्र सरकार के तहत, *निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट* पर जाएँ: www.dipam.gov.इन

 2.) सबसे पहले *Dis-Investment पर क्लिक करें।  इसके बाद Past Dis-Investment पर क्लिक करें*

 3.) पोस्ट में दिए गए सभी डेटा वहां उपलब्ध हैं।

 *मैंने यह पोस्ट उन लोगों की आँखे खोलने के लिए किया है, जो सोचते हैं कि मोदी देश को बेच रहे हैं।  मोदी देश को बेच रहे हैं, तो मनमोहन पहले ही देश को बेच चुके हैं।*

  @ #झूठ परोसने वालों की भाषा में - *मनमोहन सिंह ने 2009-14 में  33 बार 26 सरकारी कंपनियों को बेचा !*

Friday, May 14, 2021

कोई मूवमेंट कैसे शुरू कर सकते हैं

how to start a movement

00:04
Ladies and gentlemen, at TED we talk a lot about leadership and how to make a movement. So let's watch a movement happen, start to finish, in under three minutes and dissect some lessons from it. ( अपने भाषण ही उसने विशेषता बताएं और जिज्ञासा जगाई कैसे स्टार्ट से फिनिश हम 3 मिनट में देखेंगे।
00:14
First, of course you know, a leader needs the guts to stand out and be ridiculed. What he's doing is so easy to follow. Here's his first follower with a crucial role; he's going to show everyone else how to follow. 


00:27
Now, notice that the leader embraces him as an equal. Now it's not about the leader anymore; it's about them, plural. Now, there he is calling to his friends. Now, if you notice that the first follower is actually an underestimated form of leadership in itself. It takes guts to stand out like that. The first follower is what transforms a lone nut (: a foolish, eccentric, or crazy person ) into a leader. 

And here comes a second follower. Now it's not a lone nut, it's not two nuts -- three is a crowd, and a crowd is news. So a movement must be public. It's important to show not just the leader, but the followers, because you find that new followers emulate the followers, not the leader. ( यहां पर वह है अपने बाद के निष्कर्ष के लिए वातावरण बनाता है की नेता को आजकल ओवर ग्लैमराइज किया गया है जबकि शुरू शुरू के शिष्य बिग बॉस बढ़िया होते हैं और दूसरी बात कि ज्यादातर लोग नेता की नकल नहीं करते उसके अनुयायियों की नकल करते हैं।


01:10
Now, here come two more people, and immediately after, three more people. Now we've got momentum. This is the tipping point. Now we've got a movement.  यहां ट्रिपिंग पॉइंट शब्द का अपना महत्व है और मनमोहन वैद्य जी बताते हैं इस पर एक पुस्तक भी लिखी गई है।


01:20
So, notice that, as more people join in, it's less risky. So those that were sitting on the fence before now have no reason not to. They won't stand out, they won't be ridiculed, but they will be part of the in-crowd if they hurry.
01:36
So, over the next minute, you'll see all of those that prefer to stick with the crowd because eventually they would be ridiculed for not joining in. And that's how you make a movement.  यहां बहुत महत्वपूर्ण बिंदु आता है जब बाहर रहने वालों को खतरा लगता है कि हमारा मजाक उड़ेगा यदि वो इस भीड़ में शामिल नहीं होंगे। शुरू में उनको खतरा था कि डांस में शामिल होंगे तो मजाक उड़ेगा और बाद में उनको होता है जो बाहर रह जाएंगे तो मजाक उड़ेगा ।


01:46
But let's recap some lessons from this. So first, if you are the type, like the shirtless dancing guy that is standing alone, remember the importance of nurturing your first few followers as equals so it's clearly about the movement, not you.  पहला लेसन ए शुरू के शिष्यों को अपने समान ही समझना चाहिए और उनका पर पूरा ध्यान देना चाहिए तभी मूवमेंट बनता है।


02:00
(Laughter) 


02:02
Okay, but we might have missed the real lesson here.  यह उसकी कहानी का अन आपेक्षित क्लाइमेक्स है कि आपने असली  सीख को छोड़ दिया।


02:04
The biggest lesson, if you noticed -- did you catch it? -- is that leadership is over-glorified. Yes, it was the shirtless guy who was first, and he'll get all the credit, but it was really the first follower that transformed the lone nut into a leader. So, as we're told that we should all be leaders, that would be really ineffective. 


02:23
If you really care about starting a movement, have the courage to follow and show others how to follow. And when you find a lone nut doing something great, have the guts to be the first one to stand up and join in. And what a perfect place to do that, at TED.02:38
Thanks. यहां तो चीजें महत्वपूर्ण है पहले के वह बेडरूम में एक फिल्म चलती है जिसमें सारी स्टोरी है और वही उसकी टॉक का आधार है। दूसरा जब तक निष्कर्ष नहीं बताते बहुत ज्यादा वातावरण नहीं बनता उसने तो तीन निष्कर्ष बता दिए नंबर 1 लीडर वह होता है जो शर्म आता नहीं है मजा आप से डरता नहीं है नंबर दो की प्रारंभ के शिष्य या अनुयाई की बहुत चिंता करनी चाहिए क्योंकि वही आप को लीडर बना रहे हैं वरना तो आप एक मात्र खिले हुए आदमी थे आपके साथियों में आपको बड़ा बनाया है और तीसरा सिर्फ लीडर ही ना बनने की सोच है जैसा कि सिखाया जाता है शुरु-शुरु के शिष्य बनने की कोशिश भी करें जिससे कि मूवमेंट बनता है।

https://www.ted.com/talks/derek_sivers_how_to_start_a_movement?utm_campaign=tedspread&utm_medium=referral&utm_source=tedcomshare

2. I was just watching an exclusive *BBC interview* with the *founder of Dubai Sheik Rashid al Maktoum,* about Dubai and one thing that caught my attention was when they asked him about the future of his country and he said " *My father was on a camel, I'm in a Mercedes, my son is on a Land Rover, and my grandson is going to be from Land Rover , but my great grandson will be back on a camel"*

Why is that? they asked..

He replied "*Tough times create strong men, strong men create easy times. Easy times create weak men, weak men create tough times.*” 

Many won't understand but you have to *raise warriors, not parasites*"


Thursday, May 13, 2021

कोरोना व मानसिक नियंत्रण: विनय सिंह

*गंभीर बीमारी का कारण वायरस नहीं घबराहट है, जानिए ठीक होने के उपाय* *-डॉo विनय सिंह (संछिप्त परिचय नीचे)*
 
*क्या हमको वायरस मार रहा है? नहीं।*
 
आपको जान कर आश्चर्य होगा कि कोविड बीमारी के लक्षण शुरू होने के दिन से सात दिन के अंदर सभी कोरोना वायरस मर जातें हैं, केवल उनके मृत टुकड़े हमारे शरीर में इधर उधर पड़े रहतें हैं; जबकि गंभीर बीमारी और मृत्यु दूसरे सप्ताह या उसके बाद, हमारी अपनी ही भ्रमित रोग प्रतिरोधक तंत्र के द्वारा फेफड़ों और खून की नालियों को नुकसान पहुंचाने से होती है। ऐसा समझें कि सांप निकल जाए और हम लकीर पीटने के क्रम में अपना हाथ- पैर या माथा फोड़ लें या हाथी पागल होकर अपने ही मालिक को घायल कर दे या मार दे।
 
*मन और शरीर का सम्बंध और घबराहट का हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव*
 
हम सब जानते हैं कि मन और शरीर का, एक दूसरे के साथ, बहुत ही नजदीक का संबंध है और एक के गड़बड़ाने से दूसरा भी गड़बड़ा जाता है। मन में अत्यधिक चिंता और घबराहट होने से शरीर में कई परिवर्तन होतें है, लेकिन उनमें से निम्नलिखित तीन, कोविड बीमारी में जीवन और मौत के बीच का अंतर तय करतीं हैं।
 
1. रोग प्रतिरोधक तंत्र की क्षमता में भारी कमी - इसका प्रभाव पहले सप्ताह के दौरान वायरस के संहार की अवधि के बढ़ने के रूप सामने आती है।
 
2. रोग प्रतिरोधक व्यवस्था का भारी मति भ्रम (पगला जाना) जिसके चलते दूसरे सप्ताह में मृत वायरसओं को जिंदा समझ  कर उन पर भारी बमबारी, जिसके चलते अपने ही फेफड़ों के कोशिकाओं एवं रक्त नलिकाओं को भारी नुकसान, बीमारी का बढ़ना और कुछ मामलों में मृत्यु होना।
 
3. अत्यधिक चिंता और घबराहट से शरीर के एक एक कोशिका में आक्सीजन की मांग का बढ़ना जो कि कुछ मामलों में 20% तक चली जाती है।
 
*घबराहट कम करने के उपाय*
 
ऊपर की बातों से स्पष्ट है कि अपने अत्यधिक चिंता और घबड़ाहट पर नियंत्रण, अपने जीवन को बचाने का साधन बन सकती है। शरीर के मामलों की तो कई पैथियाँ है और उनमें मतभेद भी है, लेकिन सौभाग्य से, मन को शांत करने की एकमात्र तकनीक योग है, इसे पूरा विश्व मानता है। आइए, हम उन उपायोंको देखें जिनसे हमारी चिंता और घबराहट कम होगी।
 
1. ईश्वर परिधान - अपने इष्ट की मूर्ति / चित्र को अपने सामने रखना, नियमित प्रार्थना करना और उनपर पूर्ण विश्वास करके, मामले को सौंप देना. 
 
2. भक्तिपूर्ण चलचित्र देखना और संगीत सुनना।
 
3. परिवार के सभी लोगों के साथ भजन करना।
 
4. दिन में खाली पेट की अवस्था में 3-4 बार 10-10 मिनट भ्रामरी प्राणायाम एवं मकार पर जोर देते हुए ॐकार करना।
 
5. अपने सांसों का उपयोग करके अंतर्मुखी होना एवं ध्यान लगाना।

 
 
 
 
डॉo विनय सिंह, MBBS, MS, MCA, 9663599333, drvinoy@gmail.com, संछिप्त परिचय:
 
*पश्चिमी मेडिकल ज्ञान और भारतिय योग विद्या के समन्यव से एक समेकित स्वास्थ्य पद्धति का निर्माण कर, उसे विश्व स्तर पर स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत। 
 
SVYASA विश्वविद्यालय के योग आधारित समेकित चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर के रूप में 2015 से 2019 तक योगदान।
 
पटना मेडिकल कॉलेज के जेनरल सर्जरी विभाग में एक फैकल्टी के रूप में 15 वर्ष का योगदान। 
 
सर्जरी के साथ साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन्स में भी स्नातकोत्तर डिग्री, हेल्थ इंफ़ोरमेटिक्स के क्षेत्र में दुनिया के विभिन्न देशों में योगदान।

Friday, May 7, 2021

कैदी घोड़े को उड़ना सिखाएगा

पहले वाला कार्य पहले कीजिए !!

एक राजा ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई । उसमें से एक यह जानता था कि राजा को अपने घोड़े से बहुत ज्यादा प्यार है । उसने राजा से कहा कि यदि मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं एक साल में उसके घोड़े को उड़ना सीखा दूँगा।
          यह सुनकर राजा खुश हो गया कि वह दुनिया के इकलौते उड़ने वाले घोड़े की सवारी कर सकता है । यह जानकर राजा ने पहले कैदी को मुक्त कर दिया और उसे यह प्रयोग करने की अनुमति दी और अपने महल में चला गया। 
          दूसरे कैदी ने अपने मित्र की ओर अविश्वास की नजर से देखा और बोला, तुम जानते हो कि कोई भी घोड़ा उड़ नहीं सकता ! तुमने इस तरह पागलपन की बात सोची भी कैसे ? तुम तो अपनी मौत को एक साल के लिए टाल रहे हो ।
         पहला कैदी बोला, ऐसी बात नहीं है । मैंने दरअसल खुद को स्वतंत्रता के चार मौके दिए हैं .. पहली बात राजा एक साल के भीतर मर सकता है ! दूसरी बात मैं मर सकता हूं ! तीसरी बात घोड़ा मर सकता है ! और चौथी बात… हो सकता है, मैं घोड़े को उड़ना सीखा दूं !!
           इसलिए बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए। रिकवरी रेट बढ़ रहा हैं, पॉज़िटिवीटी रेट घट रहा हैं, बिस्तर बढ़ रहे हैं, आक़्सिजन बढ़ रही है, इंजेक्शन का बड़ा उत्पादन शुरू हो गया है । वैक्सीन आ गई है !!
          रेल एक्सप्रेस, वायुयान दौड़ रहे है, आयुर्वेद और योग शक्ति दे रहा हैं, धैर्य रखें हम जीत रहें हैं । आत्मविश्वास बनाए रखना है और सकारात्मक रहना है । सब तरफ से कुछ अच्छा होने वाला है…