Tuesday, September 14, 2021

Panipat Resolution No. 1 (Hindi

Panipat Resolution No. 1 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 1

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश

सघन चर्चा, बहस एवं आंदोलनात्मक कार्यक्रमों के कारण आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में सबसे चर्चित विषय है। विविध क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को पिछले दशक में अंधाधुंध रूप से खोला गया है। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लगभग सभी क्षेत्रों में खोला गया है। अब हमें इस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का देश की जनता एवं आर्थिक स्थिति पर क्या परिणाम हुआ है इसका आकलन करने के लिए पर्याप्त उपलब्ध है।

विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का हिस्सा मात्र 5 प्रतिशत तक रहा है तथा घरेलू बचत से विकास दर सतत ऊंचा बना रहा है। 2007-08 से चली हालांकि मुद्रा के प्रसार के माध्यम से वे देश आज किसी प्रकार से बच पाये हैं वैश्विक आर्थिक मंदी ने अमरीका एवं यूरोपीय समुदाय जैसी आर्थिक महासत्ताओं के खो
FOREIGN INVESTMENT IN INDIA
Amidst intense campaigns and agitational programmes against Foreign Direct Investment, it has been a subject of intense discussion in the country. It is notable that the country has opened various sectors to FDI and the momentum gathered speed in the last decade. Now FDI is permitted in various sectors barring a few with sectoral caps, some under the automatic route and some others under the approval route. We have sufficient experience with us which enables us to assess the impact of FDI on the people of India and Indian Economy as a whole.

Various studies have revealed that the share of FDI in Indian Economy is less than 5% and the country achieved consistently high growth through domestic investments. The Global Economic Meltdown during the 2007-08 thoroughly exposed the shallowness of the so called Economic Powers like the United States and the European Union. Creation of currencies by their countries has saved the day for them. After deep introspection the International community now looks up to the Asian Countries and their model to initiate sustainable development and their hope on India is immense.

Swadeshi Jagran Manch is of the firm belief that FDI and FII have done more bad than good to the country. We find that in 1992-93, total outflow of foreign exchange in the name of interest, profits, royalties, salaries etc. was $ 3.8 billion which increased to $31.7 billion in 2012-13. It is notable that inflow of FDI has been only $26 billion in 2012-13. Another source of foreign investment namely Foreign Institutional Investment (FII) is highly volatile. After meltdown in USA and Europe, these FIIs withdrew and stock markets crashed suddenly leaving domestic investor in lurch, who lost lakh of crores of rupees. Further large scale outflow of foreign exchange, led to the dampening of rupee too.

Our country is savings oriented, with 30 plus percentage. This factor with a high GDP growth in the last two decades, increased the capital available for investment. Now the focus should be on improving the capital output ratio which will help in increasing manufacturing efficiency. Efforts should be on import substitution through increased investment in R & D leading to savings in Foreign Exchange. This will be significant step to reduce the current account deficit. Various studies both by the local and International Financial bodies confirm that India is capable of meeting all its investment needs of trillions of rupees on its own without outside support. The time has come to play leadership role and the days of succumbing to International pressure from bodies like IMF, World Bank are over.

A new government under strong leadership with the complete mandate of the nation has assumed power. The SJM joins the nation in congratulating the government and wishing it all round success. The SJM welcomes the stand the government expressed by the Hon’ble Commerce Minister that the government is not in favour of FDI in Multi Brand Retail.

However, we would like to reiterate that, after global meltdown, the world has understood that the developed nations are the largest debtors and the Asian countries are their creditors. They themselves are facing shortage of capital. Hard Foreign Exchange Reserves are available only with countries like China, Korea etc. The new hope generated due to political change has enthused the domestic investors and they are waiting in the wings go ahead with the new investment and expansion plans. This coupled with Public Sector investment can stimulate the economy. The SJM suggests that at this crucial juncture a thorough review of the FDI policy needs to be initiated based on our experience during the last two decades and also the International experience. In view of the fact that FDI and FIIs have far reaching consequences for the economy, this National Council of Swadeshi Jagran Manch urges upon the government to institute a study on the impact of FDI on Indian economy with respect to employment, technology up gradation and upliftment of poor and issue a ‘white paper’ on the subject encompassing all the above aspects.. In this attempt for technological improvement, green field investments and employment generation should be the guiding factors. The outgo of foreign exchange in form of Royalty, repatriation of profits must be carefully evaluated in considering FDI proposals. The SJM appeals to the government to fully utilize the domestic potential before turning outwards.

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Add new commentखलेपन को उजागर किया है। लेकिन दीर्घकालीन रूप से ये देश एशियाई देशों की ओर चिरंजीवी विकास के प्रारूप के लिए आशा भरी निगाहों से देख रहे है।

स्वदेशी जगारण मंच की यह मान्यता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं विदेशी संस्थागत निवेश ने देश का भले से बुरा ही अधिक किया है। हमें ध्यान में आता है कि सत्र 1992-93 में ब्याज, लाभांश, अधिकार शुल्क, वेतन एवं ऐसे माध्यमों से डाॅलर 3.8 बिलियन की विदेशी मुद्रा देश से बाहर गई है जो सन 1992-93 में डाॅलर 31.7 बिलियन हो गई। जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सन 2012-13 में मात्र डाॅलर 26 बिलियन रहा है। विदेशी संस्थागत निवेश यह विदेशी निवेश दूसरा महत्वपूर्ण स्त्रोत है। संस्थात्मक विदेशी निवेश के अचानक निकाले जाने से प्रतिभूति बाजार में भारी गिरावट देखी गयी जिससे भारतीय निवेशकों को लाखों करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ा है। विदेशी संस्थागत निवेश के निकल जाने से रूपए पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है।

बचत हमारे देश के जनसामान्य की आदत है तथा 30 प्रतिशत से अधिक बचत परिवार द्वारा की जाती है। ऐसी बचत से देश का विकास दर गत दो दशकों में बढ़ता रहा है। देश में बचत से उपलब्ध निधि के द्वारा मैन्यूफैक्चरिंग की क्षमता बढ़ाने पर हमारा ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। अनुसंधान एवं विकास पर अधिक व्यय करते हुए विकास योजना पर ध्यान देने से विदेशी मुद्रा को बहिर्गमन पर काबू पाया जा सकता है। यह चालू खाते घाटे को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।

देश एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई अध्ययनों का मत है कि भारत अपनी खरबों रूपए घाटे की मैन्यूफैक्चरिंग लागत की आवश्यकताओं को स्वयं ही पूर्ण कर सकता है। इसके लिए उसे विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं है। अब समय आया है कि जब हमारे देश ने विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के समक्ष निवेश के लिए गिडगिडाने की अपेक्षा दृढ़ रहकर स्वावलंबन की ओर जाने वाले देशों को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।
देश में बहुमत से स्थापित मजबूत नेतृत्व वाली सरकार के गठन पर स्वदेशी जागरण मंच को प्रसन्नता है तथा हम सरकार का अभिनंदन करते है। वाणित्य मंत्री द्वारा खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अस्वीकृत करने के बयान से हमें संतोष है।

वैश्विक आर्थिक मंदी आने से दुनिया को स्पष्ट हो गया है कि विकसित देश अत्यधिक देनदार है एवं एशियाई देश उनके लेनदार है। वास्तव में विकसित देश ही पूंजी के अभाव को महसूस कर रहे हैं। केवल चीन, कोरिया जैसे देशों के पास ही विदेशी मुद्रा का भंडार है। सत्ता परिवर्तन से देश के घरेलू निवेशको की आशाएं पल्लवित हुई है तथा वे शासन की योजनाएं एवं विस्तार कार्य में अपना सहयोग प्रदान करने का अवसर ढूंढ रहे हैं। घरेलू निवेश एवं सरकारी क्षेत्र के उद्योगों के निवेश से भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। स्वदेशी जागरण मंच का मत है कि पिछले दो दशकों की विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की समीक्षा कर ऐसे निवेश की आवश्यकता पर पुनर्विचार किया जाए और उपरोक्त सभी पक्षों को शमिल करते हुए एक श्वेत पत्र जारी करे। प्रत्यक्ष विदेशी एवं संस्थागत निवेश का देश की आर्थिक स्थिति पर दूरगामी परिणाम होता है। स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद मांग करती है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के देश की आर्थिक स्थिति पर हुए प्रभाव का अध्ययन कर, रोजगार निर्मिति, तकनीकी, उन्नययन तथा गरीबों के उद्धार में इस निवेश का क्या सहयोग रहा है, इसका अध्ययन किया जाए।


Panipat Resolution No. 2 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 2

आर्थिक चुनौतियां और समाधान
स्वदेशी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय परिषद केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन का स्वागत करती है। उल्लेखनीय है कि इस सरकार को एक बीमार अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है। मंहगाई, गरीबी, बेरोजगारी, भारी राजकोषीय और भुगतान घाटे, भुखमरी और भ्रष्टाचार से ग्रस्त इस अर्थव्यवस्था को पुनः अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करने, गरीब और बेरोजगार की विपदाओं को समाप्त करने और रूपये की बदहाली का अंत करने के लिए जरूरी है कि तुरंत कुछ प्रभावी कदम उठाये जायें। जरूरी है कि ऐसी समस्त नीतियों, कार्यक्रमों और प्रकल्पों की पहचान की जाए, जिसके माध्यम से अर्थव्यवस्था में खुशहाली लाई जा सके।

पिछले एक दशक से चल रही यूपीए सरकार द्वारा अपनायी गई जनविरोधी आर्थिक नीतियों के कारण देश केवल मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक गिरावट आदि की त्रास्दी से ही ग्रस्त नहीं हुआ, देश पर विदेशी ताकतों का प्रभुत्व भी बढ़ा और देश जो इससे पूर्व दुनिया में अपनी पहचान बनाने की ओर अग्रसर हो रहा था, विकास की दौड़ में पिछड़ने लगा।

स्वदेशी जागरण मंच मानता है कि देश के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों के चलते नई सरकार की राह कठिन है, कई ठोस और कठोर निर्णय लेने की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन बढ़ती मंहगाई के लिए जिम्मेदार है। आज जरूरत इस बात की है कि पूर्व सरकार की कृषि की अनदेखी को समाप्त करते हुए कृषि उत्पादन, विशेष तौर पर खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने का काम किया जाए। गौरतलब है कि खाद्य पदार्थों की आपूर्ति और मांग में असंतुलन के कारण पिछले तीन सालों में खाद्य पदार्थाें की कीमतें 50 प्रतिशत बढ़ चुकी है। सटोरियों और कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से पिछले लगभग 15 सालों से काॅमोडिटी एक्सचेंजों में कृषि उत्पादों का वायदा बाजार चलाया जा रहा है। यह सर्व मान्य है कि इस वायदा बाजार, जिसमें कृत्रिम कमी पैदा कर कीमतें बढ़ाई जाती है और खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती है। किसानों को इससे कोई लाभ नहीं होता। कामोडिटी एक्सचेंजों से खाद्य पदार्थों को बाहर करने से बढ़ती खाद्य कीमतों को रोका जा सकता है। यही नहीं विदेशों से आयात पर रोक लगनी चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा की मांग घटे और रूपये पर दबाव कम हो सके। रूपये में 10 प्रतिशत का सुधार देश में मुद्रा स्फीति को 3 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

नई सरकार के सामने एक अन्य चुनौती रोजगार सृजन की है। पिछली सरकार में दस साल के शासनकाल में बेरोजगारों की संख्या में दस करोड़ की वृद्धि हुई है। बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में कुंठा और हताशा बढ़ा रही है। समय की मांग है जहां-जहां संभव हो बड़ी पूंजी के स्थान पर लघु उद्यमों को बढ़ावा दिया जाए, ऐसी तकनीकों का उपयोग हो जहां श्रम का उपयोग बढ़े। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा दिया जाए। 12 साल पहले बनी एस.पी. गुप्ता कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए।

देश में मैन्यूफैक्चरिंग बुऱी अवस्था में है। मैन्यूफैक्चरिंग संवृद्धि दर जो 10 से 15 प्रतिशत के बीच चल रही थी, पिछले साल ऋणात्मक 0.2 प्रतिशत पहुंच चुकी है। गौरतलब है कि आज इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रोनिक उपभोक्ता वस्तुएं ही नहीं, बड़ी मात्रा में प्रोजेक्ट वस्तुओं, पूंजीगत साज सामान और पावर प्लांट भी आयात किए जा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे बी.एच.ई., लारसन एण्ड टुयरो इत्यादि की आर्डर बुक सूख रही है और पूंजीगत वस्तुओं का आयात भारी मात्रा में हो रहा है।

स्वदेशी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय परिषद देश की सरकार से आह्वाहन करती है कि देश के समक्ष भीषण आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर पूर्व सरकार की कृषि की अनदेखी समाप्त करे, कृषि उत्पादों को काॅमोडिटी एक्सचेंज से बाहर करे।

कृषि और लघु उद्योगों को राष्ट्रीय अर्थनीति के केन्द्र में लाया जाना चाहिए। रेलवे बजट की तर्ज पर कृषि बजट बनना चाहिए। कृषि ऋण शून्य ब्याज दर पर उपलब्ध करवाया जाए। मैन्यूफैक्चरिंग को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है कि मंहगाई को थामते हुए ब्याज दरों को घटाया जाए, आयातों विशेष तौर पर चीन से आयातों पर रोग लगे। हर वस्तु पर अधिकतम खुदरा मूल्य के साथ-साथ लागत मूल्य घोषित हो।

Panipat Resolution No. 3 (Hindi)
स्वदेशी जागरण मंच
राष्ट्रीय परिषद बैठक, पनीपत (हरियाणा)
31 मई - 1 जून 2014

प्रस्ताव क्रमांक - 3

जी.एम. फसलों के खुले परीक्षण के खतरे
देश में जैव रूपान्तरित फसलों अर्थात् जेनेटिकली माॅडिफाइड (जी.एम.) फसलों के परीक्षण के विरूद्ध सर्वोच्य न्यायालय में याचिका विचाराधीन होने पर भी पूर्व पर्यावरण मंत्री वीरप्पा मोयली द्वारा फरवरी 28 को ऐसी 200 प्रजातियों के परीक्षण की अनुमति दे देने से देश के पारिस्थितिकी तंत्र के सम्मुख एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। देश के सम्पूर्ण वानस्पतिक जगत, उसके जैव द्रव्य और जीव सृष्टि के सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करने वाले इन परीक्षणों पर रोक लगाने के सर्वाेच्च न्यायालय के कारण बताओ नोटिस की अनदेखी कर आचार संहिता लागू हाने के ठीक पहले अनुमति दे देना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण एवं सन्देहास्पद है। इन परीक्षणों के विरूद्ध सुनवाई के क्रम में सर्वोच्य न्यायालय द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने भी इन परीक्षणों पर रोक की अनुशंसा की है। सर्वोच्च न्यायालय के कारण बताओ नोटिस का उत्तर देकर न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करने के स्थान पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री मोयली द्वारा पर्यावरण के लिए इन घातक प्रभाव वाले परीक्षणों को अनुमति दे देने में की जल्दबाजी के गंभीर दुष्परिणाम होंगे।

वस्तुतः खुले में इन जैव रूपान्तरित फसलों के परीक्षण की दशा में इनके पराग कण विकिरण से आस-पास की साधारण फसलों या अन्य किन्हीं पादप प्रजातियों के जैव द्रव्यों को अनजाने में ही प्रदूषित कर सकते हैं। इस प्रकार पर-परागण या परा-निषेचन से प्रदूषण की संभावना को निर्मूल करने के लिए जी.एम. फसलों में टर्मिनेटर टेक्नोलाॅजी अर्थात बांझ बीजों का उपयोग करने की दशा में, किसानों को उनकी फसल से बीज नहीं प्राप्त हो सकेगा। इसलिए परागणकणों के विकिरण को रोकने के लिए ये परीक्षण खुले में न कर कांच या पी.वी.सी. के ग्रीन हाउस में ही किए जाने चाहिए।
परीक्षण के बाद भी इन फसलों की खेती की दशा में भी जैव रूपान्तरित फसलों में उत्परिवर्तन या म्यूटेशन की संभावनाएं बनी रहती है। उत्परिवर्तन की दशा में ही वह फसल अधिक गुणकारी या घातक व एलर्जी पैदा करने वाली अथवा विषैली हो सकती है। इसलिए बिना टर्मिनेटर या बांझ बीजों के बिना इनकी खेती करना जन स्वास्थ्य व हमारे जैव द्रव्य की शुद्धता के लिए खतरनाक है। दूसरी ओर टर्मिनेटर या बांझ बीजों से किसान को बीजविहीन कर देना भी खतरनाक है। इसके अतिरिक्त कीटाणुरोधी जी.एम. फसलों के कारण संवर्द्धित कीट या सुपर पेस्ट विकसित होने की घटनाएं भी खतरनाक हैं। ऐसे परिवर्तन कपास के डोडा कीट में भी हुए हैं।

परीक्षणों के बाद व्यापारिक स्तर पर इन्हें उगाने पर ये खाद्य कितने खतरनाक हो सकते हैं, इसके भी कुछ उदाहरणों व प्रयोगों का उल्लेख यहां आवश्यक है। अनेक प्रयोगों में जी.एम. टमाटर से चूहों के आमाशय में रक्तस्राव, बी.टी. आलू से चूहों में आंत्रक्षति, बी.टी. मक्का से सूअरों व गायों में वन्ध्यापन, आर.आर. सोयाबीन से चूहों, खरगोशों आदि के यकृत, अग्नयाश्य आदि पर दुष्प्रभाव आदि के अनेक मामले प्रायोगिक परीक्षणों के सामने आए हैं। जी.एम. फसलों से व्यक्ति में एण्टीबायोटिक दवाओं के विरूद्ध प्रतिरोध उपजना, कोषिका चयापचय (सेल मेटाबालिज्म) पर प्रतिकूल प्रभाव आदि जैसी अनेक जटिलताओं के भी कई शोध परिणाम सामने आए हैं। बी.टी. कपास की चराई के बाद कुछ भेड़ों के मरने आदि के भी समाचार आते रहे हैं। जी.एम. फसला या खाद्य के अनगिनत दुष्प्रभावों के परिणाम प्रयोगों में सामने आते रहे हैं।

कुछ समय पूर्व, नवंबर 12, 2012 को आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने ‘फ्रेन्केन’ नाम जैव रूपान्तरित गेहूं के बारे में चेतावनी देते हुए कहा है कि इस गेहूं से यकृत खराब (लीवर फैल्यर) हो सकता है। पागलपनर या खाने वाले की अनुवांशिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। इस गेहूं में बाहरी वंशाणु (जीन) प्रवेश कराने के स्थान पर इसी के कुछ वंशाणु अवरूद्ध (जीन ब्लाक) किए गए हैं।

जी.एम. फसलों के उपरोक्त प्रत्यक्ष दुष्प्रभावों के अतिरिक्त देश में प्रत्येक फसल की प्रजातियों में जो अथाह विविधता है और जिसके कारण प्रत्येक प्रजाति में प्रकृति में आने वाले विभिन्न चुनौतियों के विरुद्ध प्रतिरोध की भिन्न-भिन्न प्रकार की विविधतापूर्ण सामथ्र्य है। उनके स्थान पर एक ही जी.एम. फसल लेने पर हमारी विविध वैशिष्ठ्य वाली जैविक निधि विलोपित हो जायेगी। इसके अतिरिक्त पराग कण विकिरण की संभावनाओं के चलते क्या इनके खुले परीक्षण के लिए कदम बढ़ाने चाहिए ? एक बार किसी देश की कृषि व उसकी कृषि फसलों सहित संपूर्ण वानस्पतिक जगत के जैव द्रव्य के प्रदूषण से होने वाली क्षति की पूर्ति क्या कभी भी संपूर्ण हो सकेगी? यदि नही ंतो वीरप्पा मोयली का यह निर्णय तत्काल उलटना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त राज्यों को भी अपने अधिकारों का उपयोग कर इन परीक्षणों को अनुमति नहीं देनी चाहिए।
इसलिए स्वदेशी जागरण मंच सरकार से आग्रह करता है कि जिन जी.एम. फसलों के परीक्षण की अनुमति पूर्व पर्यावरण मंत्री ने दे दी है, उनके खुले में परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। कोई भी जी.एम. परीक्षण कभी भी बन्द ग्रीन हाउस के बाहर नहीं किए जाएं। इसके साथ ही जी.एम. द्रव्य युक्त खाद्य पदार्थों पर जी.एम. लेबल की अनिवार्य बाध्यता को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। आयातित कृषि उत्पादों व कृषि जैव द्रव्य के संबंध में कठोर संगरोध प्रक्रिया अपनायी जाए। इसके अतिरिक्त कृषि जैव आतंकवाद से सुरक्षा के भी समुचित कदम उठाए जाने चाहिए। मंच अपने सभी कार्यकर्ताओं, नागरिकों के जागरूक संगठनों, किसान बंधुओं एवं समस्त देशवासियों का भी आवाह्न करता है कि हमारी कृषि जैव संपदा के प्रति जी.एम. फसलों से उपजे संकटों के विरुद्ध हम एकजुट हो जाएं।





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