Wednesday, September 15, 2021

न मन हूँ न बुद्धि न चित अहंकार



निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य 1200 वर्ष पूर्व। 
The Atmashatkam (, ātmaṣaṭkam), also known as Nirvanashatkam ( Nirvāṇaṣaṭkam), is a composition consisting of 6 fold śloka (and hence the name Ṣaṭ-ka to mean six-fold) written by the Hindu philosopher Adi Shankara summarizing the basic teachings of Advaita Vedanta, or the Hindu teachings of non-dualism. It was written around 788-820 BCE.
It is said that when Ādi Śaṅkara was a young boy of eight and wandering near River Narmada, seeking to find his guru, he encountered the seer Govinda Bhagavatpada who asked him, "Who are you?". The boy answered with these stanzas, which are known as "Nirvāṇa Ṣaṭkam" or Ātma Ṣaṭkam". Swami Govindapada accepted Ādi Śaṅkara as his disciple. The verses are said to be valued to progress in contemplation practices that lead to Self-Realization.
"Nirvāṇa" is complete equanimity, peace, tranquility, freedom and joy. "Ātma" is the True Self
जन्मकाल अर्थात 2631 युधिष्‍ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5158 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5158 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2527 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2527 में से हम 2019 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व हुआ था। इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी।Most historians agree that Adi Shankaracharya lived in the 8th century CE, ईसापूर्व  or 1,200 years ago, 1,300 years after the Buddha. कालड़ी, म्रत्यु केदारनाथ,32 वर्ष आयु। 

 
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका कर्ण द्वार
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका कर्णद्वार
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।1।।

मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं ,
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु ,
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥
2. 
ना मैं प्राण हूँ ना ही हूँ पंच वायु
ना मुझमें घृणा ना कोई लगाव
ना लोभ मोह इर्ष्या ना अभिमान भाव
धन धर्म काम मोक्ष सब अप्रभाव
 मैं धन राग गुणदोष विषय परियन्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।2।।
मैं धन राग गुणदोष विषय परियांता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता......

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:,
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥

3. 
मैं पुण्य ना पाप सुख दुःख से विलग हूँ
ना मंत्र ना ज्ञान ना तीर्थ और यज्ञ हूँ
 ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता
ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता
जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता।।3।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥
(न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ,
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: .
न धर्मो न च अर्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं .. ॥ ३ ॥)

 
                ।।4।।

ना मृत्यु का भय है ना मत भेद जाना
ना मेरा पिता माता मैं हूँ अजन्मा
 निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
निराकार साकार शिव सिद्ध संता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता।।
           ।।5।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न (बंधुर न) मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥

मैं निरलिप्त निरविकल्प सूक्ष्म जगत हूँ
हूँ चैतन्य रूप और सर्वत्र व्याप्त हूँ
मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं ..॥ ६॥

              ।।6।।

ये भौतिक चराचर ये जगमग अँधेरा
ये उसका ये इसका ये तेरा ये मेरा
ये आना ये जाना लगाना है फेरा
ये नश्वर जगत थोड़े दिन का है डेरा
 ये प्रश्नों में उत्तर हूँ, निहित दिगंता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता।।।


 

ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार
ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार

 ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ अनादि अनंता
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अर्थ
मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥2॥

मैं न प्राण चेतना हूं‚ न ही ह्यशरीर को चलाने वालीहृ पञ्च वायु हूं
मैं न ह्यशरीर का निर्माण करने वालीहृ सात धातुएं हूं‚ और न ही ह्यशरीर केहृ पाँच कोश
मैं न वाणी हूं‚ न हाथ हूं‚ न पैर‚ न ही विसर्जन की इंद्रियां हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः
न धर्मो न चार्थोन कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥

न मुझे किसी से वैर है‚ न किसी से प्रेम‚ न मुझे लोभ है‚ न मोह
न मुझे अभिमान है‚ न ईष्र्या
मैं धर्म‚ धन‚ लालसा एवं मोह से परे हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥4॥

मैं पुण्य‚ पाप‚ सुख और दुख से विलग हूं
न मैं मंत्र हूं‚ न तीर्थ‚ न ज्ञान‚ न ही यज्ञ
न मैं भोजन हूं‚ न ही भोगने योग्य हूं‚ और न ही भोक्ता हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥

न मुझे मृत्यु का डर है‚ न जाति का भय
मेरा न कोई पिता है‚ न माता‚ न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है‚ न मित्र‚ न गुरु‚ न शिष्य
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगत नैव मुक्तिर्न मेयःव
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥6॥

मै निर्विकल्प हूं‚ निराकार हूं
मैं विचार विमुक्त हूं‚ और सर्व इंद्रियों से पृथक हूं
न मैं कल्पनीय हूं‚ न आसक्ति हूं‚ न ही मुक्ति हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।

∼ आदि शंकराचार्य


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