Tuesday, February 4, 2020

वृक्षपुरुष भैयाराम यादव


11 साल, 40 हज़ार पेड़ और एक ‘पागल’ हीरो: मिलिए चित्रकूट के ट्री-मैन से!
भैयाराम यादव की कड़ी मेहनत और विश्वास ने सूखाग्रस्त क्षेत्र कहे जाने वाले बुंदेलखंड की 50 एकड़ भूमि पर आज एक घना जंगल उपजा दिया है।
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यह कहानी है चित्रकूट के ‘वृक्ष पुरुष’ कहे जाने वाले बाबा भैयाराम यादव की। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के भरतपुर गाँव के रहने वाले भैयाराम ने साल 2007 में शपथ ली थी कि वे सिर्फ़ पेड़ों के लिए जियेंगे। आज, लगभग 11 साल बाद वे अपने लगाए हुए 40 हज़ार पेड़ों की अपने बच्चों की तरह देखभाल कर रहे हैं।

उनके इस फ़ैसले के पीछे की वजह उनके जीवन में घटी एक दुर्घटना है। वह बताते हैं, “पहले मेरी ज़िंदगी का कोई उद्देश्य नहीं था। मेरी शादी हो गई और एक बेटा भी हुआ। लेकिन 2001 में मेरी पत्नी बेटे को जन्म देते वक्त चल बसी, उसके सात साल बाद 2007 में मेरा बेटा भी बीमारी के चलते गुजर गया और मैं अकेला रह गया। तब मैंने तय किया कि अब मैं दूसरों के लिए जियूँगा न कि खुद के लिए।”

पत्नी और पुत्र वियोग में भैयाराम चित्रकूट में भटकने लगे, इसी दौरान उन्होंने वन विभाग का स्लोगन ‘एक वृक्ष 100 पुत्र समान’ पढ़ा। भैयाराम उसी वक्त अपने गाँव भरतपुर लौट पड़े। उन्होंने गाँव के बाहर जंगल में जाकर झोपड़ी बनाई और वहीं बस गए। वहां वन विभाग की खाली पड़ी ज़मीन पर पौधे लगाए और अपने गाँव से 3 किलोमीटर दूर से जंगल में पानी ले जाकर पौधों को पानी पिलाने लगे। लोगों को लगा कि भैयाराम पागल हो चुके हैं।

“मेरे पिता की इच्छा थी कि मैं मरने से पहले अपने जीवन में 5 महुआ के पेड़ लगाऊं। वे मुझे स्कूल तो नहीं भेज सकते थे लेकिन उन्होंने मुझे पेड़ लगाना और फिर उनकी देखभाल करना ज़रूर सिखाया। मैं ये पेड़ अपनी ज़मीन में नहीं लगा सकता था क्योंकि मुझे डर था कि भविष्य में अगर किसी ने इन पेड़ों को काट दिया तो,” भैयाराम जी ने आगे बताया।

वक़्त के साथ भैयाराम यादव के 5 पौधे, 40 हज़ार पेड़ों में तब्दील हो गए। लेकिन उन्हें अपने इस अभियान में काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। गाँव के बाहर पानी का कोई स्त्रोत नहीं था। इसलिए वे हर रोज़ अपने कंधे पर एक पतली-सी रस्सी के सहारे 20-20 किलोग्राम के दो डिब्बों में गाँव से पानी भरकर लाते और पौधों को पिलाते, ऐसा वे दिन में चार बार करते थे।

भैयाराम यादव की कड़ी मेहनत और विश्वास ने बुंदेलखंड की 50 एकड़ भूमि पर आज एक घना जंगल उपजा दिया है, वरना बुंदेलखंड को सूखाग्रस्त क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि यहाँ बारिश बहुत ही कम होती है। इस जंगल को इतना घना और बड़ा बनाने के लिए उनकी 11 साल की मेहनत लगी।
वक़्त के साथ उन्होंने इन पेड़ों की देखभाल करना ही अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया। इस वजह से उनका संपर्क बाकी गांवों और दुनिया से मानों खत्म ही हो गया। जंगल में रहते हुए, वे एक छोटी सी जगह में अनाज और सब्ज़ियाँ भी उगाते हैं जिससे उनका भरण-पोषण हो सके। इसके अलावा उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। उनके लगाए गए फल के पेड़ जैसे महुआ, औरा, इमली, बेल, अनार आदि पक्षियों को काफ़ी आकर्षित करते हैं और इन वृक्षों के फलों को ये पक्षी ही खाते हैं।
अपने इस काम में उन्हें सरकार से सिर्फ़ इतनी ही मदद चाहिए कि सरकार उनके जंगल में बोरवेल लगवा दे ताकि पानी की आपूर्ति होने से पेड़ों की देखभाल करना आसान हो जाए। इस बारे में उन्होंने कई बार सरकारी अधिकारियों से गुजारिश भी की, लेकिन अब तक उन्हें कोई मदद नहीं मिली है।

इस अनदेखी पर भैयाराम का कहना है, “पर्यावरण दिवस पर सरकार हर एक जिले में पौधारोपण अभियान में लाखों रुपए खर्च करती है। लेकिन, इस दिन के बाद फिर कोई भी इन पौधों की तरफ पलटकर नहीं देखता और मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब हमारे यहाँ ऐसे लोग हैं जो अपना समय और साधन खर्च करके पेड़ों की देखभाल और पर्यावरण संरक्षण का काम कर रहे हैं, ऐसे में सरकार की तरफ से कोई तवज्जो नहीं मिलती है तो मनोबल टूटता है।”

और जहाँ तक पौधरोपण की बात है तो वे कहते हैं, “लगाने वाले बहुत है, बचाने वाले नहीं।”

अब तक भले ही उन्होंने 40 हज़ार पेड़ लगाए हैं, लेकिन उनके इरादे इससे भी बड़े हैं। वे अधिकारियों का साथ और पानी की अच्छी सप्लाई चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि पेड़ों की संख्या 40 लाख तक पहुंच जाए। पेड़ उनकी ज़िंदगी है और अपनी आख़िरी सांस तक इनकी देखभाल करना चाहते हैं।

अपने काम के ज़रिए वे लोगों को पेड़ बचाने का संदेश देते हैं। बहुत से लोग उनके पेड़ों को काटने और टिम्बर चोरी करने की भी कोशिश करते हैं, इसलिए भैयाराम को हमेशा अलर्ट रहना पड़ता है। सवाल यह है कि उनके जाने के बाद इन पेड़ों का ख्याल कौन रखेगा ?

इस पर वे अंत में सिर्फ़ इतना कहते हैं, “फ़िलहाल, यह ज़िम्मेदारी मेरी है और मेरी मौत के बाद, दूसरे इसे उठा सकते हैं। अब लोग इनकी देखभाल करें या फिर इन्हें काटे, किसी को क्या पता ? लेकिन जब तक मैं हूँ, इन्हें कोई नहीं काट सकता।”

संपादन: भगवती लाल तेली
(साभार: खबर लहरिया और नवभारत टाइम्स)

 

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