Thursday, May 24, 2012
नेक्सावर के लिये अनिवार्य लाइसेन्स स्वागत योग्य
नेक्सावर के लिये अनिवार्य लाइसेन्स स्वागत योग्य
``बहु-राश्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार के विरूद्ध पेटेण्ट के
मामले में आम जनता की पहली जीत´´
जर्मनी की बेयर ए.जी. कम्पनी, अपने पेटेण्ट के आधार पर जिस केन्सर-रोधी दवा ``नेक्सावर´´, को
2,80,000 रूपये मे बेचती थी, उसे मात्र 8,800 रूपये ( 3 प्रतिशत या 1/33 कीमत) में बेचने का
प्रस्ताव करने पर, भारतीय दवा कम्पनी नाटको को भारतीय पेटेण्ट कार्यालय द्वारा अनिवार्य लाइसेन्स
की स्वीकृति एक प्रशंसनीय व ऐतिहासिक कदम है।
यहाँ हम यह भी बताते चलें कि जिस महोदय श्री कुरियन ने यह शाबासी वाला काम किया हे , उन्होंने ने इस एतिहासिक काम करने के कुछ दिन बाद ही इस जिम्मेवारी से इस्तीफ़ा दे दिया हालाँकि उनका आधा कार्यकाल बाकी था. ये भी एक रहस्य ही है
पेटेण्ट नियन्त्रक पी.एच.कुरियन का यह साहसिक कदम, जहाँ 1995 से बाद के दवा मॉलिक्यूल्स पर
उत्पाद पेटेण्ट का प्रावधान करने के बाद का पहला ऐसा कदम है जो आगे चल करके देश में, और
विदेशों में भी, विशेश कर विकासशील देशों में, बहुराश्ट्रीय कम्पनियों के विरूद्ध मानवता की जीत की
पहल कहा जायेगा। इससे पेटेण्ट के एकाधिकार के कारण मंहगी बेची जा रही अन्य भी अनेक
दवाओं के विरूद्ध अनिवार्य लाइसेन्स देने का मार्ग प्रशस्त होगा। आज बीसों ऐसी आयातित दवाएँ हैं
जो अमरिकी `` खाद्य व औशध प्रशासन´´ की परिभाशानुसार भी देश के बाजार में एकाधिकारी दवा की
श्रेणी मे आती है, जिनके निर्माण हेतु भारतीय कम्पनियों को अनिवार्य लाइसेन्स के लिए आवेदन करने
हेतु आगे आना चाहिये। उदाहरणत: रोश कम्पनी का 50 मिलि. का केन्सर-रोधी दवा हरसेप्टीन रू.
1,35,000 का आता है। मर्क का इबीZटक्स 87,920 रूपये का, फाइजर का मेक्यूजेन 45,300 रू. का
आता है। इसी प्रकार पेटेण्ट के नाम से लिये एकाधिकार के कारण केन्सर, मधुमेह, हृदय रोग, यकृत
व गुर्दो की जानलेवा बीमारियों की दवाओं की लागत से कई सौ प्रतिशत उच्च कीमत लेने के अनेक
उदाहरण हैं। नेक्सावर को ही जहाँ भारतीय कम्पनी नाटको अपना लाभ व अनुसन्धान लागत आदि
सब जोड़ कर जहाँ 8800 रूपये में सुलभ करायेगी वहीं बेयर ए.जी. अभी तक इसे नाटको की तुलना
में 3300 प्रतिशत उच्च दामों में बेच रही थी। वस्तुत: बेयर द्वारा नेक्सावर का पेटेण्ट लेने के बाद भी
उसे देश में यथोचित रूप में उपलब्ध न कराना व देश में यकृत व गुर्दे के केन्सर से मरने वाले
रोगियों की बड़ी संख्या को देखते हुये पेटेण्ट आफिस ने यह निर्णय लिया है। भारतीय दवा कम्पनी
नाटको की भी यह पहल सराहनीय है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी ही जो अनेक अन्य दवायें जिनके अत्यन्त ऊँचे
एकाधिकारी दाम लेकर, बहुराश्ट्रीय कम्पनियों द्वारा मरणासé रोगियों की विवशता पर जों लाभार्जन
रू. 2,80,000 मे बिक रही केन्सर-रोधी दवा को रूपये 8800 में बना कर बेचने का
अनिवार्य लाइसेन्स : भारतीय पेटेण्ट आफिस का प्रशंसनीय व ऐतिहासिक कदम।
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किया जा रहा है। उन सभी दवाओं के देश मे उत्पादन के लिये सभी समर्थ भारतीय दवा कम्पनियों,
को अनिवार्य लाइसेन्स के आवेदन के लिये आगे आना चाहिये। वहीं दूसरी ओर जन स्वास्थ्य के प्रति
सजग सामाजिक संगठनो को भी इस दिशा मे जन दबाव बनाने की दिशा में सजग होना चाहिये कि
बेयर ए. जी. पेटेण्ट आफिस के इस निर्णय पर सर्वोच्य न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर स्थगनादेश न ले
ले।
एक भिन्न मामले में जहाँ इमेण्टीनिब नामक दवा जो 1995 के पूर्व की होने से उस पर उसकी
पेटेण्ट-धारी कम्पनी, नोवार्टिस, जिसका भारत में उत्पाद पेटेण्ट नहीं होने पर भी, जब वह उसे
11,00,000 रू. मे बेच रही थी व 3 भारतीय कम्पनियों द्वारा वही इमेिण्टनिब रूपये 34,000 मे सुलभ
करा देने पर, पिछले दशक में चेन्नई उच्च न्यायालय से कई महिनों के लिये, निराधार ही स्थगनादेश
ले कर 24,000 रक्त केन्सर के रोगियों की चिकित्सा बाधित कर दी थी। यदि इस मामले में बेयर ए.
जी. भी अनिवार्य लाइसेन्स की क्रियािन्वती में अनावश्यक विलम्ब करने के लिये सर्वोच्य न्यायालय मे
जाती है तो ``बेयर ए.जी.´´ की सारी दवाओं, कीटनाशको व अन्य उत्पादों का पूर्ण बहिश्कार करने की
सामान्य जनता व विशेशकर चिकित्सक समुदाय को आगे आना चाहिये।
देश का यह पहला अनिवार्य लाइसेन्स है। इसकी क्रियान्वति में आने वाली हर सम्भावित बाधा को
समाप्त करने के लिये देश के सभी वर्गो को अग्र-सोच के साथ सन्नद्ध हो जाना चाहिये। सर्वाधिक
चिन्ता का विशय, कुछ वर्गों द्वारा यह सुझाना है कि, विश्व मे अनुसन्धान प्रोत्साहन व पेटेण्ट के
मामलों में अनावश्यक विवादों से बचने के लिये नाटको को जर्मन कम्पनी से समझौता करके चलना
चाहिये। ऐसे समय मे हर जागरूक नागरिक को नाटको कम्पनी व पेटेण्ट आफिस के साथ खडे़ रहने
की आवश्यकता है। विशेशकर जब जर्मन कम्पनी को, उसके पेटेण्ट की रॉयल्टी दिलाने हेतु, नाटको
के बिक्री मूल्य की 6 प्रतिशत रािश प्रति त्रैमासिक बिक्री की आय में से न्यायपूर्वक दिलाने का भी
निर्णय दिया है। ऐसे में बेयर ए.जी. द्वारा सर्वोच्य न्यायालय में जाना उचित नहीं है। उसके पेटेण्ट की
रॉयल्टी उसे दिलायी जा रही है। अतएव अब मामला सर्वोच्य न्यायालय में ले जाकर बेयर कहीं
नाटको को और अधिक रॉयल्टी के लिये बाध्य न कर सके, इस हेतु ऐसा वातावरण बनाना परम
आवश्यक है। पेटेण्ट नियन्त्रक पी.एच. कुरियन के इस क्रान्तिकारी निर्णय से उच्च लाभ अर्जित करने
वाली एकाधिकारी कम्पनियों में अन्दर तक सिहरन दौड गयी है
स्विस कम्पनी `रोश होिल्डंग ए.जी.´ ने तो भारतीय पेटेण्ट नियंत्रक पी.एच. कुरियन के मार्च 9, 2012
के एक ही साहसिक निर्णय पर, घबरा कर उसका जो हरसेिप्टन नामक इंजेक्शन जो वह एक
इंजेक्शन 1,35,000 रूपये में बेचती है और मेबथेरा जिसकी इलाज के लिये मासिक मात्रा थोक में वह
2,56,000 मे बेच रही है, उन्हें भिन्न नामों से भारत में कुछ कम कीमत मे बेचने की घोशणा कर दी
है। लेकिन यह कीमत जो उसने घोशित नही की है, उसकी तुलना में इन दवाओं के भारत में
अनिवार्य लाइसेन्स के अधीन बनने पर अत्यन्त कम होगी। इसलिये अनिवार्य लाइसेन्स के इस
अभियान में जन संगठनो को आगे आकर भारतीय कम्पनियों को और भी मंहगी दवाओं के सम्बन्ध में
अनिवार्य लाइसेन्स के लिये आवेदन करने को प्रेरित करना चाहिये। यही रीति नीति मंहगे कृशि
रसायनों के सम्बन्ध में भी विकसित करना आवश्यक है।
जरूरी हे कि इस बात बात की आम लोगो को जानकारी दी जाये. हम जानते हे कि ऐसा ही एक उधाहरण एक MULTINATIONAL कंपनी का हे जो अफ़्रीक के देशो में एड्स कि बहुत ही महँगी दवाई देती हे. एक भारतीय कंपनी के प्रयास से बहुत सस्ती दावा निकली गयी थी, और उस कंपनीने कोर्ट में केस कर दिया था. हज़ारो कि तादात में लोगो सडको पर आ गए उस कंपनी के खिलाफ और जबरदस्त विरोध पर्दर्शन हुआ. खैर जनाक्रोश के कारण उस कंपनी ने कुछ ही समय के बाद अपना दावा वापिस ले लिया. जनमत के आगे सबको झुकना पड़ेगा. इस लिए इस विषय पर बहुत अधिक जागरूकता कि जरूरत हे.
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