Monday, July 4, 2011

अंग्रेजों का षड़यंत्र उजागर करती एक पुस्तक:रिवर ऑफ़ स्मोक


अमिताव घोष की पुस्तक: रिवर ऑफ स्मोक पर कुछ विचाररिवर ऑफ स्मोकः यह प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक अमिताव घोष की 500 पेज की बहुत चर्चित पुस्तक हे और भारत में ही नहीं दुनिया में प्रसिद्ध हो रही हे. इस में एक सनसनीखेज कहानी हे. चीन को दबाने के लिए १९वी शताब्दी में योरोप ने एक चाल चली थी वहां के लोगों को अफीम की लत लगाने की. चीन के सम्राट ने विरोध किया तो अंग्रेजो और अमरीकी ताकतों ने वहां दो युद्ध किये जिसे अफीम के युद्ध कहा जाता हे. जिस बेईमानी, चालाकी एवं शातिर तरीके से चीन को हराया गया वे आज भी गोरे मुल्को का बाकी देशों को दबाने का तरीका हे. आज के वैश्वीकरण, पटेंट, विष्व बैंक, आदि के दाव-पेंच बहुत आसानी से इस युद्ध द्वारा समझे जा सकते हे. लेखक अंग्रेजी के सिद्ध-हस्त लेखक मने जाते हे और इससे पहले की उनकी पुस्तकः सी ऑफ पॉपीज भी बुकर 2008 के लिए शोर्ट- लिस्ट हुई थी. कहने को इस विषय पर जो तीन पुस्तके लिखने का निश्चय लेखक ने किया हे, ये पुस्तक उसकी दूसरी किश्त हे, लेकिन सभी पुस्तकों का अपना अलग अस्तित्व है . मैंने इस पुस्तक के बारें में जो कुछ पढ़ा, सुना हे या इस विषय के जानकारों से चर्चा हुई, इस के आधार पर इस 500 पृष्ठों को में पांच पेराग्राफ में डालने की कोशिश कर रहा हूँ . आशा हे यह प्रयास आपको पसंद आएगा.
पहला भाग रू ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और यूरोप व अमरीकी ताकतों का चीन से जो दो युद्ध 1839 -42 एवं 1856 से 1860 के बीच हुए उनकी नीव में चाय की वो पत्ती थी जो चीन में पैदा होती थी और पूरे योरोप में अत्यधिक लोकप्रिय हो गयी थी. गोरे मुल्को के इस के बदले में बहुत अधिक मात्र में चांदी देनी पढ़ रही थी, जिससे बचने का वो कोई रास्ता ढूंढ़ रहे थे. इसके लिए उन्होंने एक भयंकर साजिश रची. वो ये थी कि जैसे-तैसे चीन के लोगों को अफीम की लत लगवाई जाये और उससे जो कमाई हो उससे चाय का भुगतान किया जावे. इस खूंखार साजिश को अंजाम देने के लिए अंग्रेजों ने धीरे धीरे चीन में प्रवेश करके वहां के लोगो को नशे की आदत डालनी शुरू की. कुछ समय जब इसके खतरनाक परिणाम आने शुरू हुए तो चीनी सम्राट इस चाल को समझ गया और उसने 1730 सन में अफीम का व्यापार ही पूरी तरह गैर कानूनी घोषित कर दिया. दूसरा शिकंजा उसने एक और कसा जिसके द्वारा कोई भी अंग्रेज चीन में प्रवेश ही नहीं कर सकता था, और उनको ‘कान्टन प्रणाली’ कहा गया, क्योंकि चीन के मुख्य द्वार के पास कान्टन नामक द्वीप तक ही अंग्रेजो को आने जाने की अनुमति थी. लेकिन अंग्रेजों ने एक नयी रन-नीति चली और देखते ही देखते अंग्रेजो द्वारा भीजी गयी अफीम पूरे चीन में छा गयी. तो वो कैसे? आईये जरा उस शैतानी चाल को देखे इस दुसरे भाग में.
भाग दोः बिना चीनी सरकार की अनुमति के चीन में अफीम घर घर कैसे पहुँची, एक बेजोड़ अंग्रेजों का षड्यंत्र अंग्रेजो का तरीका बहुत ही नायाब था. जिस पर्ल नदी के मुहाने पर ये द्वीप जिसका नाम लिनतिन था, उसके आसपास बहुत से द्वीप थे और चीन का उसपर कोई कब्जा नहीं था. इन पर चोर-डाकू रहते थे जैसे की आजकल भी दुनिया के कुछ भागों में हैं. अंग्रेज बिहार मं अफीम की खेती करवाते और गाजीपुर के कारखानों में उसे तेयार करवा कर मुंबई (तब बम्बई) लाते. वहां से विशाल जहाजों में पूरी सुरक्षा बंदोबस्त के साथ लिन टिन द्वीप या मकाउ नामक स्थान तक ले जाते और वहां बिना मस्तूल के जहाजों में अफीम को रख देते. इसे पूरी तरह स्टोर करने के बाद वे चीनी अफसरों के आगे जाकर जहाज को चेक करवातेः ‘देखो हम कोई भी अफीम आदि नहीं लाये’. इधर यहाँ से छोटी तेज नोकाओं द्वारा ये अफीम चीन के दूरस्थ अड्डों और अमीरों की ह्वेलियों तक पहुँच जाती और कानून धरे के धरे रह जाते। क्या नायाब तरीके थे अंग्रेजो के कानून की धज्जियाँ उडाने के। इसी से तंग आकर चीन सम्राट ने जो दो युद्ध किये उसमें चीन की बुरी तरह हार हुई और जो असमान संधि अंग्रेजों से हुई, उसमे अफीम के व्यापार को कानून घोषित किया गया. दूसरी बात चीनी शासको ने मानते हुए पर्ल नदी के मुहाने के इलाके को अंग्रेजो को देना तय हुआ। बस और क्या चाहते थे अंग्रेज! खुले आम अफीम बेच बेच कर चीन को तबाह किया और अपने देश में आकूत धन सम्पति ले गए। लेकिन एक प्रश्न हे कि क्या इस हेराफेरी के काम में कुछ नाम-चीन हस्तियाँ भी शामिल थी या आम व्यापारी ही लगा हुआ था ? तो उत्तर सकारात्मक हे, और कौन कौन खास लोग थे इस पाप के धंधे में - जरा पढ़े तीसरे भाग मेंः
भाग तीनः इस पाप के धंधे में शामिल थे प्रमुख लोगः जब अमिताव से पूछा गया की क्या आम व्यापारी आदि ही इसमें शामिल थे तो उन्होंने कहा की उस समय की बहुत मशहूर हस्तियाँ भी इस धंधे में शामिल थे। अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट के दादा एंडूव डेलानो एक थे। ३०वे राष्ट्पति अमरीका के यानी केल्विन कोलिज के परिवार के लोग आदि आदि भी . उन्होंने एक और अहम खुलासा किया की ये पाप की कमाई लेकर लोग जब अपने देश में लोटते थे तो अपना नाम कमाने के लिए इस अफीम की कमाई से वहां की शिक्षण संस्थाओं का वित्त पोषण करते और इस से नेक नाम कमाते. अमिताव का एक और कहना बहुत महत्त्व रखता हे की इस काले धंधे में वैसे तो सभी लोग शामिल थे, अंग्रेज, चीनी, अमरीकी, पारसी और भारतीय भी... लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य की सबसे घिनोनी बात उसका ढोंग था। ब्रिटिश साम्राज्य इस सारे पाप को छुपाने के लिए हमेश ही बहुत सुन्दर शब्दों का चयन करता थाः ‘हम ये सब आपकी भलाई के लिए कर रहे हे, सद्भाव बढ़ाने और आप सबकी मुक्ति के लिए, जबकि असल में उनका मंतव्य था अति नीच श्रेणी का लालच, शो-बाजी और नस्लवाद। ये बुराइयाँ तो हर जगह व्याप्त रहती हे, लेकिन इसके लिए अच्छे अच्छे शब्दों का चयन कोई ब्रिटिश साम्राज्यवाद से ही सीखे। लेकिन समझाने की बात हे की ऐसे सब तथ्यों को एक रोचक उपन्यास में कैसे ढाला हे अमिताव ने। तो इसके लिए जरा चैथा भाग को देखेंः
भाग चारः कथानक में कैसे पिरोया हे ये एतिहासिक ताना-बानाः वैसे देखा जाए तो लेखक के मन में इतना जियादा अफीम का विषय नहीं था जब उसने इस उपन्यास को लिखना शुरू किया थाः उसके मन में था की औपनिवेशिक काल में बिहार से जो अनुबंधित मजदूरों का मामला था जिनको अंग्रेजो ने बिहार से ले जाकर दुसरे देशो में गुलाम बना कर काम लिया - इस विषय पर अन्वेषण करना। लेकिन ये खोज शुरू करते ही लगा के सब के सब रास्ते अंत में अफीम से होकर ही जाते हैं. कहानी एक चतुर पारसी व्यापारी बहराम के आसपास घूमती हे जो इस जल्दी में हे की जैसे तैसे अफीम पर प्रतिबन्ध लगने से पूर्व ही उसका जहाज मकाउ पहुँच जाये और उसके लिए वो हर तरह का भ्रष्ट तरीका अपनाने को तैयार हे। नशे और सेक्स की छोंक से कहानी उस वक्त का बहुत बारीकी से चित्रण करती हे. एक अन्य पात्र पौलेट हे जो एक कोरीआयी मूल के वनस्पति शास्त्र के ज्ञाता के साथ किसी मिथकीय स्वर्णिम कैमेलिया की खोज में चीन की यात्रा कर रहा हे। लोगों की टूटी-फूटी अंग्रेजी भाषा, वेश-भूषा और व्यवहार बहुत ही मनोरंजक ढंग से कथानक को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन आज इस कथा का कोई सन्दर्भ हे क्या, कोई अर्थ हे क्या? इसे समझाने के लिए अब अंतिम भाग में प्रवेश करें...
भाग पांचः आज के सन्दर्भ में कहानीः बिलकुल सही - देखा जाये तो आज खुद चीन भी और अमरीका की ताकतें वही कर रही हे जो की उस समय की ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतें कभी करती रही हैंै। मोनसेंटो वही कंपनी हे जो कभी युद्ध में जहरीले अस्त्र-शस्त्र बनाती थी, युद्ध के बाद अब खेत के लिए उन्ही जहरीली चीजों का इस्तेमाल खेती में कीड़े-मार दवाइयों के नाम से कर रही हे. मकसद खेती का भला नहीं बल्कि अपना मोटा मुनाफा हे चाहे जमीन दुनिया की बंजर हो जाये। बीजों में बी टी तकनीक का प्रचालन भी दुनिया को लूटने की नयी साजिश हे. वाल-मार्ट जैसे मगरमच्छ आज भी खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश करके आम आदमी का रोजगार धंधा नष्ट करने पर तुले हुए हे। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कोका कोला हो या पेप्सी के मार्केट पर कब्जा करने के षड्यंत्र देख लीजिये। पेट्रोल उत्पादक क्षेत्र पर कब्जे करने के लिए ऐसे तेल वाले देशो पर हमले - सबके सब अफीम युद्ध की याद दिलाते हैं. आज फिर जब भूमंडलीकरण के बीस साल हो गए हैं तो बहु-राष्ट्रीय कंपनियों का खुनी चेहरा पहचानने की जरूरत हे, और ये किताब या इस जैसा साहित्य एक नयी जाग्रति की लहर ला सकता हे. आप भी इस प्रकार के कुच्छ उदहारण दे सकते हे इस विषय लो समझाने के लिए। आपक इन्तजार है 

 we ask ourselves if there is any historical evidence of these designs, the answer is definite: YES. Historical evidence clearly show that by 1730 only 15 tones of opium was consumed in China and by 1773 it escalated to 75 tones, six time growth। Again by 1820 it reached the 900 tons mark 60 times growth9and by 1838, the period which is depicted in this novel, the consumption in China was 1400 tons. In 1938 when King of China appointed a very honest and efficient young official Lin Zexu as a commissioner of Canton, he seized and destroyed all the opium confiscated from foreign vessels. 1700 opium dealers were arrested and 2.6 million pounds of opium (equal to 1179340.16 kilograms) ad destroyed. To be more specific 20,000 chests of opium were seized and each chest contained 55 kg of opium in it, so about 11,00,000 kilograms of opium was destroyed (15,000 times) drained in the sea in the presence of all – local and foreigners. Definitely a River of Smoke it was! The records show, if we go further, by 1881 the population of China was also reduced from 400 million to 370 million 
every third person in China was an opium addict.

1 comment:

  1. sh Kashmiri lal ji,

    Bahut sunder chitran kiya hai aapne.

    last para me lkha hai china bhee aaj yahi kar raha hai. vastav me to ye business ka matlab sahi nahin hain. Lekin aaj kee duniya me busniess ka yahi matlab rah gaya hai.

    earn by hook or crook. Esi hee ek pstak Bhpal trasadi par hai. Jaha Panjab ke kisano ko pesticide ke use ke sambandh me union carbide ke safal prayas ka varnan kiya hai. Pura vishav aaj in maulinational ke changul me hai.

    Kabhi na kabhi monsanto bhee (GM) aa hee jayega. Kyonki ek stage paer government bhee haath khade kar leti hai. Lekin jahan smaj jagrat hota hai vahan introduction of such strategies are delayed.
    Lekin aaj ke sandrabh me Chuna ke sandrabh me pustak likhna kuchh samajh me nahi aataa. Kahin Ghosh ji China se prerit v fanance to prapt nahi kar rahe. AAj ke sandrabh me China ek dust dragon hai aur ise kill karna he necessary hai.

    Dragon ke jagne ka dusprinam sabhi ko bhugtana padega vesheskar bharat ko. Bharat hee ise kill bhee kar sakta kai

    sdar naman

    shri krishan singhal

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