Sunday, August 17, 2014

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य (14-8-14))

मजबूती और मजबूरी,आशा व खिंचाव में झूल रहा है आज का आर्थिक परिदृश्य। हाँ , ज्यादा बातें आशा जगा रही हैं ।
इतना ही नहीं, कुछ बाते इतनी अच्छी हो रही है की मन रोमांच से भर जाता है। इस बार जेनेवा में विश्व व्यापार संगठन की बैठक में भारत ने कमाल कर दिया। व्यापार सरलीकरण के लिए व्याकुल अमरीका को बताया की भारत के किसानों की कीमत पर कुछ नहीं हो सकता। चीन भी भारत के साथ मिलकर अमरीकी दादागिरी के खिलाफ तालठोक कर खड़ा हो गया तो पूरी दुनियाँ के विकासशील और अविकसित देशों की आँखे भारत पर गड़ गयी। देखना है अगली बैठक तक कितना तनाव विकसित देशों का भारत झेल पाता है। इधर देश में माइक्रो-मैक्स जैसी गुडगाँव की भारतीय कंपनी दुनियां की ताकतवर मोबाइल कंपनियों को पछाड़ प्रथम स्थान पर आ खड़ी हुई तो भारत की तमाम छोटे बड़े उद्योग आशान्वित हुए। लेकिन टमाटर-प्याज की कीमतें क्यों काबू नहीं आरही, सामान्य आदमी को तो क्या विशेषज्ञ भी नहीं समझ पा रहे। जिस  खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के विरोध के लिए भारत बंद करवाने में भाजपा ही सबसे आगे थी, आज उसी के नेता उसकी कई मामलोन में पुरजोर वकालत करते दिखते हैं, तो समर्थक भी खिंचे खिंचे नजर आते है। ऐसी क्या मजबूरियां है, वो समझना चाहता है।

आओ, सबसे पहले तो मीठी बातें करें! बजट में आम आदमी को राहत मिली और आय कर की सीमा दो लाख से अढाई लाख रूपए करने से सामान्य आदमी की थोड़ी बांछे खिली। हालाँकि लोगों को ये जान कर हैरानी हुई की हमारी कुल जनसँख्या के तीन प्रतिशत लोग ही टैक्स देते है।  वैसे लगे हाथ बता है की इस सरकार के नए फेंसले से बहुत बड़ी राहत आम आदमी को है की दस्तावेजो का सत्यापन स्वयं किया जा सकता है, अफसरों के बेकार चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे । लेकिन बजट का एक सबसे महत्वपूर्ण पैरा 102 है छोटे और मझोले उद्योगों संबंधी। स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक और नामी अर्थशास्त्री श्री गुरुमूर्ति ने तो इस एक पैरे पर ही प्रसंशात्मक पूरा लेख न्योछावर किया है।
उनका कहना है की बड़े उद्योग केवल आधी जीडीपी और मात्र 10% ही रोजगार सृजन करते हैं। बाकी तो छोटेउद्योग ही करिश्मा करते है। इस बजट में उनकी पूरी चिंता हुई है। वास्तव में चीन के भारत के बाज़ार पर कब्जे को हटाने के लिए ये अहम् कदम है। इससे आगे रोजगार सृजन की अनंत संभावनाएं दिखती हैं। कृषि और किसान की सुध भी ली गयी और नदियों की, विशेषकर गंगा की साफ़ सम्हाल भी पर्यावरण की चिंता कुछ हो रही है, ऐसा आश्वश्ति कर रहे है।

अभी  नेपाल में और पहले भूटान में प्रधान मंत्री का दौरा गजब की आर्थिक छलांग है। सिर्फ 1 अरब अमरीकी डॉलर नेपाल को सस्ते व्याज पर देने की घोषणा लोगों को संकेत दे रही है की भारत केवल भिक्षा मांगने वाला देश नहीं है और हिट फार्मूला उन्हें सुझाने वाला भारत ऊर्जा प्राप्ति के अपने रास्ते तलाशने में सफल दिख रहा है। चीन ने हमारे आसपास के देशों से इतने आर्थिक समझोते कर लिए थे की भारत के लिए चुनौती बन गए थे। सार्क देशों से प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह से सुधरे सम्बन्ध नयी इबारत लिख रहे है। बिना चिढाये,  चीन को ये मुंहतोड़ जवाब है।
क्या आप जानते है की डेबिट/क्रेडिट कार्ड्स पर दुनियां की दो बड़ी कंपनियों मास्टर्स और वीजा का एकाधिकार है। नयी बात है की हमारे रिज़र्व बैंक ने इनको दुनिया में पहली बार चुनौती दी और सफलता प्राप्त की है। भारत ने रु-पे नामक वैकल्पिक कार्ड बनाया है तो इन दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की हर लेनदेन पर मोटी हिस्सेदारी पर लात मार दी है!
क्रायोजेनिक इंजन द्वारा विदेशी उपगृह छोड़ने में सफलता और प्रधान मंत्री की वहां उपस्थित रह कर ये  घोषणा क़ि एक उपग्रह सार्क देशों के लिए निशुल्क छोड़ा जायेगा, बिलकुल एक सपना साकार होने जैसा है। इस तकनीक का विकास भारत के उज्जवल भविष्य की सनद है। कभी पूरी दुनियां ने हमारी क्र्योजेनिक इंजन की मांग को अस्वीकार किया था। तीन चीजे हमारी जरूरत थी, पहली क्रायोजेनिक इंजन, दूसरी सुपर कंप्यूटर और तीसरे परमाणु तकनीक। हमने उनसे कंप्यूटर चिप मांगी तो उन्होंने हमें अंकल चिप्स थमा दिए - डॉ. जोशी का ये कथन जुमला बन गया है। भारत ने तीनो विधायो को अपने बलबूते ना केवल खड़ा किया बल्कि वैश्विक बुलंदियों को छुया। रक्षा मामले में उच्च विदेशी तकनीक मिलने की उम्मीद एक छलावा हे, मृग तृष्णा है

इसके साथ ही हैरानी होती है की ऐसे में सुरक्षा और बीमा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26% से 49% बढाने की क्या मजबूरी आन पड़ी थी?  अभी इस 4 अगस्त को बिज़नस टुडे ने विदेशी नामी कंपनियों के प्रबंधन अधिकारीयों के कार्यक्रम में मुझे भी निमंत्रित किया। मेरे एक सवाल का शायद किसी के पास जवाब नहीं था। पिछली सरकार ने अपने दस्तावेज में लिखा ही था कि सुरक्षा के क्षेत्र में केबिनेट फेंसले से कितना भी निवेश सीमा बढ़ा सकते थे परन्तु तकनीक स्थानान्तरण की शर्त पूरी करनी पड़ेगी। इस प्रश्न पर की क्या कोई बड़ी सुरक्षा तकनीक भारत को स्थानांतरित की गयी? उत्तर का सन्नाटा मुझे ही तोडना पड़ा। भारत को सुरक्षा के लिए बाहर मुंह ताकने की जरूरत नहीं । इसके लिए स्वयं प्रयत्न करने होगे। बाहर से उधार क्यों लेना?  जिस देश का दुनिया में सबसे ज्यादा कालाधन विदेशी बेंको में पड़ा हो, जिस देश के एक सुदूर मंदिर के एक कमरे में पाया धन रेलवे बजट का मोटा हिस्सा पूरा कर सकता हो, जहाँ का स्थानीय बचत का हिस्सा कुल राष्ट्रीय बचत का (2008 में बकोल गोल्डमन सैश सरीखी कंपनी की रिपोर्ट  ) 38% हो, उस देश को बिदेशी निवेश की मृगतृष्णा का शिकार नहीं होना चाहिए। वैसे भी जीवन बीमा निगम की साख विदेशी बीमा कंपनियों से लाख अच्छी है। ठीक है की हर भारतीय के स्वस्थ्य का बीमा जीवन बीमा नहीं करता । परन्तु ये भी सच है की अमरीका में स्वस्थ्य बीमा और हर एक के स्वस्थ्य की चिंता करने वाली बहु प्रचारित 'ओबामा केयर' आज बुरी तरह बदनाम है। 65% वहां के लोग उसके खिलाफ हो रहे है। डॉ.हर्ष वर्धन ने जैसे परसों जड़ी-बूटी दिवस मनाया, जैसे पोलियो उन्मूलन को सफल बनाया था, वैसे ही कोई स्वास्थ्य सुधार का भारतीय मॉडल ढूंढे, यह अविकसित दुनिया की भी हमारे से अपेक्षा है। यही बात पीपीपी मॉडल, 100 विशेष आर्थिक जोन बनाने पर भी लागू होते है। 

खैर, धन्यवाद है पर्यावरण व कृषि मंत्रालय का की एक बार तो जैव नियंत्रित फसलो को जमीनी परीक्षण से रोका है? परन्तु बहुराष्ट्रीय कंपनियों की घुसपैठ हर जगह है। सम्हाल के रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से।
अंत में कहूँ गा क़ि जो उम्मीद जेनेवा में जगी है वो बरकरार रहे। सौभाग्य से या संयोग से श्री मोदी की विदेश यात्रा का शुभारम्भ भूटान से हुआ। वहां के राजा ने दुनियां की आर्थिक समृधि मापने का नया फार्मूला दिया। जीडीपी नहीं जीडी एन! मायने देश की समृधि को राष्ट्रीय उत्पाद से नहीं हेप्पीनेस यानी प्रसन्नता से तोलना। पर्यावरण व जीवन शैली में बदल से यह होगा। शायद कुछ ऐसा ही गाँधी बाबा कहते थे और ऐसा ही पंडित दीनदयाल। उनके द्वारा रचित एकात्म मानव दर्शन का ये स्वर्ण जयंती वर्ष है। उस पुराने रास्ते को समझ कर आगे बढे गे तो  भारत को दुनिया के लिए आकाशदीप बनाएगा। जय भारत !

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