Tuesday, November 4, 2014

राज्य के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी द्वारा प्रदेश में जैनेटीकली मोडिफाइड सरसांे (जी‐एम‐सरसो) के खुले परीक्षण की अनुमति नहीं दिया जाना एक स्वागत योग्य कदम



राज्य के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी द्वारा प्रदेश में जैनेटीकली मोडिफाइड सरसांे (जी‐एम‐सरसो) के खुले परीक्षण की अनुमति नहीं दिया जाना एक स्वागत योग्य कदम है।प्रदेश के कृषि मंत्री द्वारा इन विवादित बीजो के परीक्षण की अनुमति नहीं दिया जाना प्रदेश के कृषि जैव द्रव्य की शुद्वता के लिये आवश्यक कदम है। स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान मंच, भरतीय मजदूर संघ, ग्राहक पंचायत, लघु उघोग भारती एवं सहकार भारती सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हैं। देश के पारिस्थितिकी तंत्र एवं जन-स्वास्थ्य के लिए सर्वथा असुरक्षित जैनेटीकली मोडिफाइड फसलों (जी‐एम‐ फसलांे) के परीक्षण के विरुद्व एक जन हित याचिका सर्वोच्च न्यायलय में विचाराधीन होने पर भी पिछली यू‐पी‐ए‐ सरकार में पर्यावरण मंत्री, वीरप्पा मोईली ने, जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण की अनदेखी करते हुए कई जी‐ एम‐ फसलो की खुल्ले में अनुमति दे दी थी। इन फसलो के पर्यावरण व जन स्वास्थ्य पर प्रतिकुल प्रभावांे को देखते हुए ही यूरोपीय संघ सहित विश्व के अधिकांश देशो में आज तक इन जी‐एम‐ फसलों के परीक्षण पर रोक है। लेकिन, देश में बीजों के 5-6 लाख करोड़ रुपयोे के बाजार को देखते हुए मोन्सेण्टो व एवेन्टिस जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनीयाँ, अपने धन-बल से कई देशो में सरकारांे को रिझाने में लगी हुई हंै। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि पर्यावरण मन्त्रालय में अतिरिक्त सचिव रेंक के अधिकारी हेम पाण्डे की अध्यक्षता वाली जैव अभियान्त्रिकी अनुमोदन समिति ने दूसरे चरण में, मोइली के बाद और कई जी‐एम‐ फसलों के परीक्षण की अनुमति जारी कर दी है। इस केन्द्रीय समिति द्वारा प्रदेश मे भी तीन स्थानो पर जी‐एम‐ सरसो के परीक्षण की अनुमति दे दी है जिसे अविलम्ब वापस लेनी चाहिये।
स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान मंच, भारतीय मजदूर संघ, गा्रहक पंचायत, लघु उघोग भारती एवं सहकार भारती ने अपने संयुक्त वक्तव्य में केन्द्र सरकार से भी आग्रह किया है कि यू‐पी‐ए‐ के कार्यकाल में गठित विदेशी प्रभाववाली जैव अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति केा पुर्नगठित किया जावे और यू‐पी‐ए‐ के कार्यकाल व उसके बाद में भी इस समिति द्वारा जिन जी‐एम‐ फसलांे के खुले परीक्षण की अनुमति दी गई है उस,े अविलम्ब वापस लिया जावे।
इन छ संगठ़नो की मांग है कि, सर्वाैच्च न्यायलय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की अनुषंसा के अनुरुप, देश में जी‐एम‐ फसलांे के खुले परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जावे। वैज्ञानिक प्रयोगो की दृष्टि से यदि इन फसलो के कोई परीक्षण किये जाने है तो व,े पी‐वी‐सी‐ या काँच के ग्रीन हाउस में ही किये जाने चाहिये। अन्यथा, जी‐एम‐ फसलांे के खुले परीक्षण से जी‐एम‐ फसलांे के परागकणांे द्वारा देश की प्राकृतिक वनस्पति व कृषि जैव द्रव्य के प्रदूषित हो जाने का खतरा बना रहेगा। भारत जैसे देश की कृषि जैव सम्पदा प्रदूषित हो जाने के बाद, हमारे पास क्या विकल्प बचेगा? वस्तुतः, इन फसलांे से एलर्जी,आंतांे से रक्त स्त्राव एवं चूहांे में बन्ध्यापण जैसी अनेक समस्याऐं प्रकट हो चुकी है। इसलिए प्रकृति से छेड़छाड़ केे ऐसे खुले दुस्साहस से परीक्षणकर्ता वैज्ञानिको को विरत या दूर रहना चाहिये। इनके जो भी परीक्षण हो वे ग्रीन हाउस के बाहर कदापि नहीं होने चाहिये। भगवती प्रकाश शर्मा ने मांग की है कि प्रदेश के कृषि मंत्री द्वारा इन विवादित बीजो के परीक्षण की अनुमति नहीं दिये जाना प्रदेश के कृषि जैव द्रव्य की शुद्वता के लिए आवश्यक कदम है। स्वदेशी जागरण मंच सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हैं।



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