Sunday, August 21, 2022

गुरुदक्षिणा

कोई पांच अच्छी कहानियां और साथ में अच्छा आंकड़े 

1. नंबर 1 देने का महत्व और विवेकानंद और आयल किंग की कहानी आज के समय में कौन कितना दान दे रहा है और सीएसआर आदि की बातें और हमें भी अपना धन देना। संघ परम्परा, गुरुदक्षिणा का इतिहास।
2. Swatantrata 75 में बाकी लोगों की गुरु दक्षिणा कैसे करवाना उनको कैसे जोड़ना और समय दान के लिए अपनी तैयारी है यह अंतिम हो एक बिंदु या तीसरा दिन दो स्वदेशी के बारे में आज का महत्व aaspaas success story ko dhundhna purn Viram 


चौथा बिंदु गुरु पूजा उसका महत्व। शरीर का व समय का महत्व देने का। स्वामी दयानंद की कथा। अंधे को एक घण्टा आंख, मरणोपरांत आंख व शरीर देह दान। एक घण्टा प्रतिदिन समय दान।
गुरु के विषय में जितना कहा जाए उतना ही कम साबित होता है। गुरु ही वह पहली कड़ी है जो ईश्वर से हमें जोड़ती है। माता को प्रथम गुरु माना गया है , माता ही जगत में बालक का परिचय कराती है। अपने बालक में संस्कार का बीजारोपण माता के द्वारा ही संभव है। अतः उन्हें गुरु का दर्जा दिया जाना लाजमी है।

माता के उपरांत गुरु का विशेष महत्व होता है , क्योंकि गुरु अपने शिष्य में उन सभी आवश्यक तथ्यों का भंडार करता है जिसके कारण वह सत्य – असत्य , मिथ्या आदि में फर्क कर पाता है। गुरु के माध्यम से ही ब्रह्मा के दर्शन होते हैं , गुरु ही ईश्वर का परिचय कराता है। अतः गुरु ईश्वर से पहले पूजनीय है बिना गुरु के ज्ञान यह सब संभव नहीं हो पाता है।


कबीर भी कहते हैं –

सतगुरु की महिमा अनंत , अनंत किया उपकार

लोचन अनंत उघारिया , अनंत दिखावण हार। ।

अतः गुरु की महिमा अपार है जिसके माध्यम से हमारे अंदर के नेत्र जागृत होते हैं , जिसके कारण हम अनंत देख सकते हैं। बालक को बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं है इसका उदाहरण आप किसी भी काल में अवतरित हुए महापुरुषों को देख सकते हैं।

स्वयं राम , कृष्ण और यहां तक कि एकलव्य जैसा एक आदिवासी बालक भी गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाया।  अतः ज्ञान प्राप्ति का माध्यम गुरु ही है।

 

जीवन में गुरु का महत्व –
प्राचीनकाल के एक गुरु अपने आश्रम को लेकर बहुत चिंतित थे। गुरु वृद्ध हो चले थे और अब शेष जीवन हिमालय में ही बिताना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह चिंता सताए जा रही थी कि मेरी जगह कौन योग्य उत्तराधिकारी हो, जो आश्रम को ठीक तरह से संचालित कर सके।

उस आश्रम में दो योग्य शिष्य थे और दोनों ही गुरु को प्रिय थे। दोनों को गुरु ने बुलाया और कहा- शिष्यों मैं तीर्थ पर जा रहा हूँ और गुरुदक्षिणा के रूप में तुमसे बस इतना ही माँगता हूँ कि यह दो मुट्ठी गेहूँ है। एक-एक मुट्ठी तुम दोनों अपने पास संभालकर रखो और जब मैं आऊँ तो मुझे यह दो मुठ्ठी गेहूँ वापस करना है। जो शिष्य मुझे अपने गेहूँ सुरक्षित वापस कर देगा, मैं उसे ही इस गुरुकुल का गुरु नियुक्त करूँगा। दोनों शिष्यों ने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य रखा और गु
गुरु के बिना यह जीवन सुना और निरर्थक है , गुरु के मार्गदर्शन से ही बालक अपने अंदर समाहित गुणों को बाहर निकाल पाता है और बाहरी दुनिया को जान पाता है , इसके बिना यह सब संभव नहीं है। गुरु ही एक माध्यम है जिसके द्वारा बालक अपने अंतर्ज्ञान को बाहर निकालता है और जगत सत्य और मिथ्या आदि में फर्क कर पाता है। इसी के माध्यम से वह सत्य – असत्य को पहचान पाता है।
कहानियां
1. 
एक शिष्य गुरु को भगवान मानता था। उसने तो गुरु के दिए हुए एक मुट्ठी गेहूँ को पुट्टल बाँधकर एक आलिए में सुरक्षित रख दिए और रोज उसकी पूजा करने लगा। दूसरा शिष्य जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था उसने उन एक मुट्ठी गेहूँ को ले जाकर गुरुकुल के पीछे खेत में बो दिए।

कुछ महीनों बाद जब गुरु आए तो उन्होंने जो शिष्य गुरु को भगवान मानता था उससे अपने एक मुट्ठी गेहूँ माँगे। उस शिष्य ने गुरु को ले जाकर आलिए में रखी गेहूँ की पुट्टल बताई जिसकी वह रोज पूजा करता था। गुरु ने देखा कि उस पुट्टल के गेहूँ सड़ चुके हैं और अब वे किसी काम के नहीं रहे। तब गुरु ने उस शिष्य को जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था उससे अपने गेहूँ दिखाने के लिए कहा। उसने गुरु को आश्रम के पीछे ले जाकर कहा- गुरुदेव यह लहलहाती जो फसल देख रहे हैं यही आपके एक मुट्ठी गेहूँ हैं और मुझे क्षमा करें कि जो गेहूँ आप दे गए थे वही गेहूँ मैं दे नहीं सकता।

लहलहाती फसल को देखकर गुरु का चित्त प्रसन्न हो गया और उन्होंने कहा जो शिष्य गुरु के ज्ञान को फैलाता है, बाँटता है वही श्रेष्ठ उत्तराधिकारी होने का पात्र है। मूलतः गुरु के प्रति सच्ची दक्षिणा यही है। सामान्य अर्थ में गुरुदक्षिणा का अर्थ पारितोषिक के रूप में लिया जाता है, किंतु गुरुदक्षिणा का वास्तविक अर्थ कहीं ज्यादा व्यापक है। महज पारितोषिक नहीं।

गुरुदक्षिणा का अर्थ है कि गुरु से प्राप्त की गई शिक्षा एवं ज्ञान का प्रचार-प्रसार व उसका सही उपयोग कर जनकल्याण में लगाएँ। मूलतः गुरुदक्षिणा का अर्थ शिष्य की परीक्षा के संदर्भ में भी लिया जाता है। गुरुदक्षिणा गुरु के प्रति सम्मान व समर्पण भाव है। गुरु के प्रति सही दक्षिणा यही है कि गुरु अब चाहता है कि तुम खुद गुरु बनो

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